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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति

उत्पत्ति

1 शुरूआत में परमेश्‍वर ने आकाश* और पृथ्वी की सृष्टि की।+

2 पृथ्वी बेडौल और सूनी* थी। गहरे पानी* की सतह+ पर अँधेरा था और परमेश्‍वर की ज़ोरदार शक्‍ति*+ पानी की सतह+ के ऊपर यहाँ से वहाँ घूमती हुई काम कर रही थी।

3 परमेश्‍वर ने कहा, “उजाला हो जाए” और उजाला हो गया।+ 4 इसके बाद परमेश्‍वर ने देखा कि उजाला अच्छा है और परमेश्‍वर उजाले को अँधेरे से अलग करने लगा। 5 परमेश्‍वर ने उजाले को दिन कहा और अँधेरे को रात।+ फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह पहला दिन पूरा हुआ।

6 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पानी ऊपर और नीचे की तरफ, दो हिस्सों में बँट जाए और बीच में खुली जगह* बन जाए+ जो ऊपर के हिस्से को नीचे के हिस्से से अलग करे।”+ 7 फिर परमेश्‍वर ने पानी को ऊपर और नीचे की तरफ दो हिस्सों में बाँट दिया और बीच में खुली जगह बनायी।+ और वैसा ही हो गया। 8 परमेश्‍वर ने उस खुली जगह को आसमान कहा। फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह दूसरा दिन पूरा हुआ।

9 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का सारा पानी एक जगह इकट्ठा हो जाए और सूखी ज़मीन दिखायी दे।”+ और वैसा ही हो गया। 10 परमेश्‍वर ने सूखी ज़मीन को धरती कहा,+ मगर जो पानी इकट्ठा हुआ था उसे समुंदर* कहा।+ और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है।+ 11 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “धरती पर घास, बीजवाले पौधे और ऐसे फलदार पेड़ जिनके फलों में बीज भी हों, अपनी-अपनी जाति के मुताबिक उगें।” और वैसा ही हो गया। 12 धरती से घास, बीजवाले पौधे+ और फलदार पेड़, जिनके फलों में बीज होते हैं अपनी-अपनी जाति के मुताबिक उगने लगे। तब परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 13 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह तीसरा दिन पूरा हुआ।

14 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आसमान में रौशनी देनेवाली ज्योतियाँ+ चमकें जो दिन को रात से अलग करें।+ इन ज्योतियों की मदद से दिन, साल और मौसम का पता लगाया जाएगा।+ 15 ये ज्योतियाँ खुले आसमान में रौशनी देने का काम करेंगी जिससे धरती को रौशनी मिलेगी।” और वैसा ही हो गया। 16 परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनायीं। जो ज्योति ज़्यादा बड़ी थी, उसे दिन पर अधिकार दिया+ और छोटी ज्योति को रात पर अधिकार दिया। परमेश्‍वर ने तारे भी बनाए।+ 17 इस तरह परमेश्‍वर ने उन्हें खुले आसमान में तैनात किया ताकि धरती को रौशनी मिले, 18 दिन और रात पर इनका अधिकार हो और उजाले को अँधेरे से अलग करें।+ तब परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 19 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह चौथा दिन पूरा हुआ।

20 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पानी जीव-जंतुओं* के झुंडों से भर जाए और उड़नेवाले जीव धरती के ऊपर फैले आसमान में उड़ें।”+ 21 और परमेश्‍वर ने समुंदर में रहनेवाले बड़े-बड़े जंतुओं और तैरनेवाले दूसरे जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा जो पानी में झुंड बनाकर रहते हैं। उसने पंछियों और कीट-पतंगों को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा। और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 22 परमेश्‍वर ने उन्हें यह आशीष दी, “फूलो-फलो, गिनती में बढ़ जाओ और समुंदर को भर दो+ और उड़नेवाले जीवों की गिनती पृथ्वी पर बहुत बढ़ जाए।” 23 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह पाँचवाँ दिन पूरा हुआ।

24 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “ज़मीन पर अपनी-अपनी जाति के मुताबिक जीव-जंतु हों, पालतू जानवर, रेंगनेवाले जंतु* और जंगली जानवर हों।”+ और वैसा ही हो गया। 25 परमेश्‍वर ने धरती के जंगली जानवरों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सब जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक बनाया। और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है।

26 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आओ हम+ इंसान को अपनी छवि में,+ अपने जैसा बनाएँ।+ और वे समुंदर की मछलियों, आसमान के पंछियों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सभी जंतुओं पर और सारी धरती पर अधिकार रखें।”+ 27 परमेश्‍वर ने अपनी छवि में इंसान की सृष्टि की, हाँ, उसने अपनी ही छवि में इंसान की सृष्टि की। उसने उन्हें नर और नारी बनाया।+ 28 फिर परमेश्‍वर ने उन्हें आशीष दी और उनसे कहा, “फूलो-फलो और गिनती में बढ़ जाओ, धरती को आबाद करो+ और इस पर अधिकार रखो।+ समुंदर की मछलियों, आसमान में उड़नेवाले जीवों और ज़मीन पर चलने-फिरनेवाले सब जीव-जंतुओं पर अधिकार रखो।”+

29 फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “देखो, मैं तुम्हें धरती के सभी बीजवाले पौधे और ऐसे सभी पेड़ देता हूँ, जिन पर बीजवाले फल लगते हैं। ये तुम्हारे खाने के लिए हों।+ 30 और मैं धरती के सभी जंगली जानवरों, आसमान में उड़नेवाले सभी जीवों और बाकी सभी जीव-जंतुओं को, जिनमें जीवन है, खाने के लिए हरी घास और पेड़-पौधे देता हूँ।”+ और वैसा ही हो गया।

31 इसके बाद परमेश्‍वर ने वह सब देखा जो उसने बनाया था। वाह! सबकुछ बहुत बढ़िया था।+ फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह छठा दिन पूरा हुआ।

2 इस तरह आकाश और पृथ्वी और जो कुछ उनमें है, उन सबको* बनाने का काम पूरा हुआ।+ 2 परमेश्‍वर जो काम कर रहा था,* उसे सातवें दिन से पहले उसने पूरा कर दिया। सारा काम पूरा करने के बाद सातवें दिन उसने विश्राम करना शुरू किया।+ 3 परमेश्‍वर ने सातवें दिन पर आशीष दी और ऐलान किया कि यह दिन पवित्र है, क्योंकि इस दिन से परमेश्‍वर सृष्टि के सारे कामों से विश्राम ले रहा है। परमेश्‍वर ने अपने मकसद के मुताबिक जो-जो बनाना चाहा था उसकी सृष्टि कर ली थी।

4 यह उस वक्‍त का ब्यौरा है जब आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की गयी थी, वह दिन जब यहोवा* परमेश्‍वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया था।+

5 मैदान में अब तक झाड़ियाँ और पौधे नहीं उगे थे, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने धरती पर पानी नहीं बरसाया था और ज़मीन जोतने के लिए कोई इंसान नहीं था। 6 मगर धरती से कोहरा उठता और सारी ज़मीन को सींचता था।

7 यहोवा परमेश्‍वर ने ज़मीन की मिट्टी से आदमी को रचा+ और उसके नथनों में जीवन की साँस फूँकी।+ तब वह जीता-जागता इंसान* बन गया।+ 8 यहोवा परमेश्‍वर ने पूरब की तरफ, अदन नाम के इलाके में एक बाग लगाया+ और वहाँ उसने आदमी को बसाया जिसे उसने रचा था।+ 9 यहोवा परमेश्‍वर ने ज़मीन से हर तरह के पेड़ उगाए जो दिखने में सुंदर और खाने के लिए अच्छे थे। उसने बाग के बीच में जीवन का पेड़+ और अच्छे-बुरे के ज्ञान का पेड़+ भी लगाया।

10 अदन से एक नदी बहती थी जो बाग को सींचती थी और वह आगे जाकर चार नदियों में बँट गयी। 11 पहली नदी का नाम है पीशोन। यह वही नदी है जो हवीला देश के चारों तरफ बहती है जहाँ सोना पाया जाता है। 12 उस देश का सोना बढ़िया होता है। वहाँ गुग्गुल पौधे का गोंद और सुलेमानी पत्थर भी पाया जाता है। 13 दूसरी नदी का नाम गीहोन है। यह वही नदी है जो कूश देश के चारों तरफ बहती है। 14 तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल* है।+ यही नदी अश्‍शूर देश+ के पूरब में बहती है। और चौथी नदी फरात है।+

15 यहोवा परमेश्‍वर ने आदमी को लेकर अदन के बाग में बसाया ताकि वह उसमें काम करे और उसकी देखभाल करे।+ 16 यहोवा परमेश्‍वर ने आदमी को यह आज्ञा भी दी, “तू बाग के हरेक पेड़ से जी-भरकर खा सकता है।+ 17 मगर अच्छे-बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तू हरगिज़ न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उस दिन ज़रूर मर जाएगा।”+

18 फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “आदमी के लिए यह अच्छा नहीं कि वह अकेला ही रहे। मैं उसके लिए एक मददगार बनाऊँगा, ऐसा साथी जो उससे मेल खाए।”+ 19 यहोवा परमेश्‍वर ज़मीन की मिट्टी से मैदान के सब जंगली जानवर और आसमान में उड़नेवाले सारे जीव बनाता जा रहा था। वह उन्हें आदमी के पास लाने लगा ताकि देखे कि आदमी हरेक को क्या नाम देता है। आदमी ने उन जीव-जंतुओं को जिस-जिस नाम से पुकारा वही उनका नाम हो गया।+ 20 इस तरह आदमी ने सभी पालतू जानवरों, आसमान में उड़नेवाले जीवों और मैदान के सभी जंगली जानवरों के नाम रखे। मगर जहाँ तक आदमी की बात थी, उसके लिए कोई साथी और मददगार नहीं था जो उससे मेल खाता। 21 इसलिए यहोवा परमेश्‍वर ने आदमी को गहरी नींद सुला दिया और जब वह सो रहा था, तो उसकी एक पसली निकाली और फिर चीरा बंद कर दिया। 22 और यहोवा परमेश्‍वर ने आदमी से जो पसली निकाली थी, उससे एक औरत बनायी और उसे आदमी के पास ले आया।+

23 तब आदमी ने कहा,

“आखिरकार यह वह है जिसकी हड्डियाँ मेरी हड्डियों से रची गयी हैं,

जिसका माँस मेरे माँस से बनाया गया है।

यह नर में से निकाली गयी है,

इसलिए यह नारी कहलाएगी।”+

24 इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा* और वे दोनों एक तन होंगे।+ 25 आदमी और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे,+ फिर भी वे शर्म महसूस नहीं करते थे।

3 यहोवा परमेश्‍वर ने जितने भी जंगली जानवर बनाए थे, उन सबमें साँप+ सबसे सतर्क रहनेवाला* जीव था। साँप ने औरत से कहा, “क्या यह सच है कि परमेश्‍वर ने तुमसे कहा है कि तुम इस बाग के किसी भी पेड़ का फल मत खाना?”+ 2 औरत ने साँप से कहा, “हम बाग के सब पेड़ों के फल खा सकते हैं।+ 3 मगर जो पेड़ बाग के बीच में है+ उसके फल के बारे में परमेश्‍वर ने हमसे कहा है, ‘तुम उसका फल मत खाना, उसे छूना तक नहीं, वरना मर जाओगे।’” 4 तब साँप ने औरत से कहा, “तुम हरगिज़ नहीं मरोगे।+ 5 परमेश्‍वर जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम परमेश्‍वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।”+

6 इसलिए जब औरत ने पेड़ पर नज़र डाली तो उसे लगा कि उसका फल खाने के लिए अच्छा है और वह पेड़ उसकी आँखों को भाने लगा। हाँ, वह दिखने में बड़ा लुभावना लग रहा था। इसलिए वह उसका फल तोड़कर खाने लगी।+ बाद में जब उसका पति उसके साथ था, तो उसने उसे भी फल दिया और वह भी खाने लगा।+ 7 फिर उन दोनों की आँखें खुल गयीं और उन्हें एहसास हुआ कि वे नंगे हैं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़कर अपने लिए लंगोट जैसे बना लिए।+

8 फिर शाम के वक्‍त जब हवा चल रही थी, आदमी और उसकी पत्नी ने यहोवा परमेश्‍वर की आवाज़ सुनी जो बाग में चला आ रहा था। तब वे दोनों यहोवा परमेश्‍वर से छिपने के लिए पेड़ों के झुरमुट में चले गए। 9 और यहोवा परमेश्‍वर आदमी को पुकारता रहा, “तू कहाँ है?” 10 आखिरकार आदमी ने कहा, “मैंने बाग में तेरी आवाज़ सुनी थी, मगर मैं तेरे सामने आने से डर गया क्योंकि मैं नंगा था। इसलिए मैं छिप गया।” 11 तब परमेश्‍वर ने कहा, “तुझसे किसने कहा कि तू नंगा है?+ क्या तूने उस पेड़ का फल खाया है जिसके बारे में मैंने आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना?”+ 12 आदमी ने कहा, “तूने यह जो औरत मुझे दी है, इसी ने मुझे उस पेड़ का फल दिया और मैंने खाया।” 13 तब यहोवा परमेश्‍वर ने औरत से कहा, “यह तूने क्या किया?” औरत ने जवाब दिया, “साँप ने मुझे बहका दिया इसीलिए मैंने खाया।”+

14 फिर यहोवा परमेश्‍वर ने साँप+ से कहा, “तूने यह जो किया है इस वजह से सब पालतू और जंगली जानवरों में से तू शापित ठहरेगा। तू अपने पेट के बल रेंगा करेगा और सारी ज़िंदगी धूल चाटेगा। 15 और मैं तेरे+ और औरत+ के बीच और तेरे वंश+ और उसके वंश*+ के बीच दुश्‍मनी पैदा करूँगा।+ वह तेरा सिर कुचल डालेगा*+ और तू उसकी एड़ी को घायल करेगा।”*+

16 परमेश्‍वर ने औरत से कहा, “मैं तेरे गर्भ के दिनों का दर्द बहुत बढ़ा दूँगा। तू दर्द से तड़पती हुई बच्चे पैदा करेगी। तू अपने पति का साथ पाने के लिए तरसती रहेगी और वह तुझ पर हुक्म चलाएगा।”

17 और परमेश्‍वर ने आदम* से कहा, “तूने अपनी पत्नी की बात मानकर उस पेड़ का फल खा लिया जिसके बारे में मैंने आज्ञा दी थी कि तू मत खाना।+ इसलिए तेरी वजह से ज़मीन शापित है।+ तू सारी ज़िंदगी दुख-दर्द के साथ इसकी उपज खाया करेगा।+ 18 ज़मीन पर काँटे और कँटीली झाड़ियाँ उगेंगी और तू खेत की उपज खाया करेगा। 19 सारी ज़िंदगी तुझे रोटी* के लिए पसीना बहाना होगा और आखिर में तू मिट्टी में मिल जाएगा क्योंकि तू उसी से बनाया गया है।+ तू मिट्टी ही है और वापस मिट्टी में मिल जाएगा।”+

20 इसके बाद, आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा* रखा क्योंकि वह दुनिया में जीनेवाले सभी इंसानों की माँ बनती।+ 21 और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े की लंबी-लंबी पोशाकें बनायीं।+ 22 फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “अब इंसान इस मायने में हमारे बराबर हो गया है कि वह खुद जानने लगा है* कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।+ अब कहीं ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के पेड़+ का फल भी तोड़कर खा ले और हमेशा तक जीता रहे,—” 23 तब यहोवा परमेश्‍वर ने उसे अदन के बाग से बाहर निकाल दिया+ ताकि वह उस ज़मीन को जोते जिसकी मिट्टी से उसे बनाया गया था।+ 24 उसने इंसान को बाहर खदेड़ दिया और जीवन के पेड़ तक जानेवाले रास्ते का पहरा देने के लिए अदन के बाग के पूरब में करूब+ तैनात किए और लगातार घूमनेवाली एक तलवार भी रखी जिससे आग की लपटें निकल रही थीं।

4 आदम ने अपनी पत्नी हव्वा के साथ संबंध रखे और वह गर्भवती हुई।+ जब हव्वा ने कैन+ को जन्म दिया तो उसने कहा, “मैंने यहोवा की मदद से एक बेटे को जन्म दिया है।” 2 बाद में उसने कैन के भाई हाबिल+ को जन्म दिया।

बड़ा होकर हाबिल चरवाहा बना और कैन किसान। 3 एक दिन कैन ने ज़मीन की उपज में से कुछ चीज़ें लाकर यहोवा को अर्पित कीं। 4 मगर हाबिल ने अपनी भेड़ों में से कुछ पहलौठे मेम्ने और उनकी चरबी बलिदान में चढ़ायी।+ यहोवा ने हाबिल और उसके बलिदान को तो मंज़ूर किया,+ 5 मगर कैन और उसके चढ़ावे को मंज़ूर नहीं किया। यह देखकर कैन गुस्से से भर गया और उसका मुँह उतर गया। 6 तब यहोवा ने कैन से कहा, “तू क्यों इतने गुस्से में है? तेरा मुँह क्यों उतरा हुआ है? 7 अगर तू अच्छे काम करने लगे तो क्या मैं तुझे मंज़ूर नहीं करूँगा? लेकिन अगर तू अच्छाई की तरफ न फिरे, तो जान ले कि पाप तुझे धर-दबोचने के लिए दरवाज़े पर घात लगाए बैठा है। इसलिए तू पाप करने की इच्छा को काबू में कर ले।”

8 इसके बाद कैन ने अपने भाई हाबिल से कहा, “आओ, हम मैदान में चलें।” जब वे मैदान में थे तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला।+ 9 बाद में यहोवा ने कैन से कहा, “तेरा भाई हाबिल कहाँ है?” उसने कहा, “मुझे क्या पता? मैं क्या अपने भाई का रखवाला हूँ?” 10 तब परमेश्‍वर ने कहा, “यह तूने क्या कर डाला? सुन! तेरे भाई का खून ज़मीन से चीख-चीखकर मुझे न्याय की दुहाई दे रहा है।+ 11 इसलिए अब मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू इस जगह से खदेड़ दिया जाएगा, जिसने अपना मुँह खोलकर तेरे हाथों तेरे भाई का खून पीया है।+ 12 जब तू ज़मीन जोतेगा तो वह तुझे अच्छी उपज* नहीं देगी। तू एक भगोड़े की ज़िंदगी जीएगा और धरती पर मारा-मारा फिरेगा।” 13 तब कैन ने यहोवा से कहा, “तूने मेरी गलती की इतनी बड़ी सज़ा दी है, मैं इसे कैसे सह पाऊँगा? 14 आज तू मुझे इस जगह से भगा रहा है और अपनी नज़रों से दूर कर रहा है। तूने मुझे भगोड़ा बनने और धरती पर मारा-मारा फिरने के लिए छोड़ दिया है। अगर मैं किसी के हाथ पड़ गया तो वह मुझे ज़रूर मार डालेगा।” 15 तब यहोवा ने उससे कहा, “नहीं, ऐसा नहीं होगा। अगर किसी ने कैन का खून किया, तो बदले में उसे सात गुना ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाएगी।”

फिर यहोवा ने कैन के लिए एक निशानी ठहरायी ताकि कोई उसे पाने पर मार न डाले। 16 फिर कैन यहोवा के सामने से चला गया और अदन के पूरब में+ भगोड़ों के देश* में जा बसा।

17 बाद में कैन ने अपनी पत्नी+ के साथ संबंध रखे और वह गर्भवती हुई और उसने हनोक को जन्म दिया। फिर कैन ने एक शहर बनाया और अपने बेटे के नाम पर शहर का नाम हनोक रखा। 18 बाद में हनोक से ईराद पैदा हुआ। ईराद से महूयाएल पैदा हुआ, महूयाएल से मतूशाएल और मतूशाएल से लेमेक पैदा हुआ।

19 लेमेक ने दो औरतों से शादी की। पहली का नाम आदा था और दूसरी का सिल्ला। 20 आदा ने याबाल को जन्म दिया। याबाल ने ही तंबुओं में रहने और मवेशी पालने के काम की शुरूआत की थी। 21 उसके भाई का नाम यूबाल था। उसने सुरमंडल और बाँसुरी बजाने की शुरूआत की थी। 22 सिल्ला ने तूबल-कैन को जन्म दिया। तूबल-कैन ताँबे और लोहे के हर तरह के औज़ार बनाता था। उसकी बहन थी नामा। 23 फिर लेमेक ने आदा और सिल्ला के लिए, जो उसकी पत्नियाँ थीं, यह कविता रची:

“लेमेक की पत्नियो, मेरी आवाज़ सुनो,

मेरी बात पर कान लगाओ:

मैंने एक आदमी को मार डाला जिसने मुझे ज़ख्मी किया,

हाँ, एक जवान आदमी को, जिसने मुझ पर वार किया।

24 अगर कैन के कातिल को 7 गुना ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाएगी,+

तो लेमेक के कातिल को 77 गुना ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाए।”

25 आदम ने फिर से अपनी पत्नी के साथ संबंध रखे और उसने एक बेटे को जन्म दिया। हव्वा ने उसका नाम शेत*+ रखा क्योंकि उसने कहा, “परमेश्‍वर ने हाबिल की जगह मुझे एक और वंश दिया है, क्योंकि कैन ने हाबिल को मार डाला।”+ 26 शेत का भी एक बेटा हुआ और शेत ने उसका नाम एनोश+ रखा। उन दिनों लोगों ने यहोवा का नाम पुकारना शुरू किया।

5 यह है आदम के बारे में ब्यौरा।* जब परमेश्‍वर ने आदम की सृष्टि की तो उसे अपने जैसा बनाया था।+ 2 उसने इंसान को नर और नारी बनाया।+ जिस दिन परमेश्‍वर ने उनकी सृष्टि की,+ उस दिन उन्हें आशीष दी और उन्हें इंसान* कहा।

3 जब आदम 130 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जो उसके ही जैसा और उसकी छवि था। आदम ने उसका नाम शेत+ रखा। 4 शेत के पैदा होने के बाद आदम 800 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 5 आदम कुल मिलाकर 930 साल जीया और फिर मर गया।+

6 जब शेत 105 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम एनोश+ था। 7 एनोश के पैदा होने के बाद शेत 807 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 8 शेत कुल मिलाकर 912 साल जीया और फिर मर गया।

9 जब एनोश 90 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम केनान था। 10 केनान के पैदा होने के बाद एनोश 815 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 11 एनोश कुल मिलाकर 905 साल जीया और फिर मर गया।

12 जब केनान 70 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम महल-लेल+ था। 13 महल-लेल के पैदा होने के बाद केनान 840 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 14 केनान कुल मिलाकर 910 साल जीया और फिर मर गया।

15 जब महल-लेल 65 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम येरेद+ था। 16 येरेद के पैदा होने के बाद महल-लेल 830 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 17 महल-लेल कुल मिलाकर 895 साल जीया और फिर मर गया।

18 जब येरेद 162 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम हनोक+ था। 19 हनोक के पैदा होने के बाद येरेद 800 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 20 येरेद कुल मिलाकर 962 साल जीया और फिर मर गया।

21 जब हनोक 65 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम मतूशेलह+ था। 22 मतूशेलह के पैदा होने के बाद हनोक 300 साल और जीया और वह सच्चे परमेश्‍वर* के साथ-साथ चलता रहा। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 23 हनोक कुल मिलाकर 365 साल जीया। 24 हनोक सच्चे परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा।+ इसके बाद वह नहीं रहा क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ले लिया।+

25 जब मतूशेलह 187 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम लेमेक+ था। 26 लेमेक के पैदा होने के बाद मतूशेलह 782 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 27 मतूशेलह कुल मिलाकर 969 साल जीया और फिर मर गया।

28 जब लेमेक 182 साल का हुआ तो उसका एक बेटा हुआ। 29 उसने यह कहकर उसका नाम नूह*+ रखा कि यह लड़का बड़ा होकर हमारी ज़िंदगी को चैन* दिलाएगा। ज़मीन पर यहोवा के शाप की वजह से हमें जो कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और खून-पसीना बहाना पड़ता है,+ उन सारी तकलीफों से यह लड़का हमें राहत दिलाएगा। 30 नूह के पैदा होने के बाद लेमेक 595 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए। 31 लेमेक कुल मिलाकर 777 साल जीया और फिर मर गया।

32 जब नूह 500 साल का हुआ तो उसके तीन बेटे हुए: शेम,+ हाम+ और येपेत।+

6 धरती पर इंसानों की गिनती बढ़ने लगी और उनकी लड़कियाँ भी पैदा हुईं। 2 फिर सच्चे परमेश्‍वर के बेटे*+ धरती की औरतों पर ध्यान देने लगे कि वे कितनी खूबसूरत हैं। इसलिए उन्हें जो-जो अच्छी लगीं उन सबको अपनी पत्नी बना लिया। 3 तब यहोवा ने कहा, “मैं इंसान को हमेशा तक बरदाश्‍त नहीं करूँगा,+ क्योंकि वह पापी है।* इसलिए उसके दिन 120 साल के होंगे।”+

4 उन दिनों और उसके बाद भी धरती पर नफिलीम* हुआ करते थे। उस दौरान सच्चे परमेश्‍वर के बेटे औरतों के साथ संबंध रखते थे और इन औरतों से उनके बेटे पैदा हुए। यही बेटे नफिलीम कहलाए जो बड़े ताकतवर थे और उस ज़माने के लोगों में उनका बहुत नाम था।

5 यहोवा ने देखा कि धरती पर इंसान की दुष्टता बहुत बढ़ गयी है और उसके मन का झुकाव हर वक्‍त बुराई की तरफ होता है।+ 6 यहोवा को इस बात का बहुत दुख* हुआ कि उसने धरती पर इंसान को बनाया और उसका मन बहुत उदास हुआ।*+ 7 इसलिए यहोवा ने कहा, “मैं धरती से इंसान को मिटा दूँगा जिसे मैंने सिरजा था। मुझे दुख है कि मैंने उसे बनाया। मैं इंसान के साथ-साथ पालतू जानवरों, रेंगनेवाले जंतुओं, पंछियों और कीट-पतंगों को भी नाश कर दूँगा।” 8 मगर नूह एक ऐसा इंसान था जिसने यहोवा को खुश किया।

9 ये हैं नूह के दिनों में हुई घटनाएँ।

नूह एक नेक इंसान था।+ वह अपने ज़माने के लोगों से अलग था। उसका चालचलन बिलकुल बेदाग था।* नूह सच्चे परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा।+ 10 बाद में उसके तीन बेटे हुए: शेम, हाम और येपेत।+ 11 उस वक्‍त की दुनिया सच्चे परमेश्‍वर की नज़र में बिलकुल बिगड़ चुकी थी और हर तरफ खून-खराबा हो रहा था। 12 हाँ, परमेश्‍वर ने दुनिया पर नज़र डाली और देखा कि यह बिलकुल बिगड़ चुकी है+ और सब लोग बुरे काम कर रहे हैं।+

13 इसके बाद परमेश्‍वर ने नूह से कहा, “मैंने फैसला किया है कि मैं धरती से सब इंसानों को मिटा दूँगा, क्योंकि उन्होंने हर तरफ मार-काट मचा रखी है। इंसान के साथ-साथ मैं धरती को भी तबाह कर दूँगा।+ 14 इसलिए तू अपने लिए एक जहाज़* बना।+ उसे बनाने के लिए तू रालदार पेड़ की लकड़ी लेना और जहाज़ में अलग-अलग खाने बनाना। जहाज़ पर हर तरफ, अंदर-बाहर तारकोल*+ लगाना। 15 जहाज़ इस तरह बनाना: उसकी लंबाई 300 हाथ, चौड़ाई 50 हाथ और ऊँचाई 30 हाथ हो।* 16 जहाज़ की छत से एक हाथ नीचे एक खिड़की* बनाना जिससे जहाज़ के अंदर रौशनी आ सके। जहाज़ के एक तरफ दरवाज़ा बनाना+ और उसमें तीन तल बनाना, निचला तल, बीच का तल और ऊपरी तल।

17 मैं पूरी धरती पर एक जलप्रलय लानेवाला हूँ+ और उसमें सभी इंसान और जीव-जंतु नाश हो जाएँगे जिनमें जीवन की साँस* है। धरती पर जो कुछ है वह सब मिट जाएगा।+ 18 मगर मैं तेरे साथ एक करार करता हूँ कि मैं तुझे बचाऊँगा। तू जहाज़ के अंदर जाना, तेरे साथ तेरी पत्नी, तेरे बेटे और तेरी बहुएँ भी जाएँ।+ 19 तू सभी किस्म के जीव-जंतुओं में से नर-मादा+ का एक-एक जोड़ा जहाज़ में ले जाना+ ताकि तेरे साथ-साथ वे भी ज़िंदा बचें। 20 अलग-अलग जाति के पंछियों और कीट-पतंगों, अलग-अलग जाति के पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले अलग-अलग जाति के जीव-जंतुओं में से एक-एक जोड़ा तेरे पास जहाज़ में आएगा ताकि वे ज़िंदा बचें।+ 21 तू अपने लिए और जानवरों के लिए हर तरह की खाने की चीज़ इकट्ठा करके जहाज़ के अंदर ले जाना।”+

22 नूह ने हर काम वैसा ही किया जैसा परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी। उसे जैसा बताया गया था, उसने ठीक वैसा ही किया।+

7 इसके बाद यहोवा ने नूह से कहा, “तू अपने पूरे परिवार को लेकर जहाज़ के अंदर चला जा, क्योंकि इस ज़माने के सब लोगों में मैंने सिर्फ तुझी को नेक इंसान पाया है।+ 2 तू अपने साथ शुद्ध जानवरों की हर जाति में से सात-सात जानवर* ले जाना+ जिनमें नर और मादा दोनों हों। और सभी अशुद्ध जानवरों में से नर-मादा का सिर्फ एक-एक जोड़ा ले जाना। 3 आसमान में उड़नेवाले पंछियों और कीट-पतंगों में से भी सात-सात* ले जाना, जिनमें नर और मादा दोनों हों ताकि इनकी नसल सारी धरती पर कायम रहे।+ 4 अब सिर्फ सात दिन बचे हैं, मैं 40 दिन और 40 रात+ तक धरती पर पानी बरसाऊँगा।+ मैंने धरती पर जितने भी इंसान और जीव-जंतु बनाए हैं, उन सबको मिटा दूँगा।”+ 5 यहोवा ने नूह को जो-जो काम करने की आज्ञा दी थी, वह सब उसने किया।

6 जब पृथ्वी पर जलप्रलय आया तब नूह 600 साल का था।+ 7 जलप्रलय के शुरू होने से पहले नूह अपनी पत्नी, अपने बेटों और अपनी बहुओं के साथ जहाज़ के अंदर चला गया।+ 8 और शुद्ध और अशुद्ध जानवरों, उड़नेवाले जीवों और ज़मीन पर चलने-फिरनेवाले सब जीव-जंतुओं+ में से 9 नर-मादा के जोड़े जहाज़ में नूह के पास गए, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने नूह को आज्ञा दी थी। 10 फिर सात दिन बाद पृथ्वी पर जलप्रलय आ गया।

11 नूह की ज़िंदगी के 600 साल के दूसरे महीने के 17वें दिन धरती पर जलप्रलय आया। उस दिन आकाश में पानी के सभी सोते फूट पड़े और पानी के फाटक खुल गए।+ 12 और धरती पर 40 दिन और 40 रात लगातार मूसलाधार बारिश होती रही। 13 उसी दिन नूह जहाज़ के अंदर गया था और उसके साथ उसकी पत्नी, उसके बेटे शेम, हाम और येपेत+ और उनकी पत्नियाँ भी गयीं।+ 14 और हर जाति के जंगली जानवर, हर जाति के पालतू जानवर, ज़मीन पर रेंगनेवाले हर जाति के जीव-जंतु और हर जाति के उड़नेवाले पंछी और कीट-पतंगे भी अंदर गए। 15 हर किस्म के जीव-जंतुओं के जोड़े, जिनमें जीवन की साँस* है, जहाज़ में नूह के पास गए। 16 इस तरह ठीक जैसे परमेश्‍वर ने नूह को आज्ञा दी थी, हर किस्म के जीव-जंतुओं में से नर-मादा के जोड़े जहाज़ में गए। इसके बाद यहोवा ने जहाज़ का दरवाज़ा बंद कर दिया।

17 धरती पर 40 दिन लगातार बारिश होती रही, पानी बढ़ता गया और जहाज़ ज़मीन की सतह से बहुत ऊपर उठ गया और पानी पर तैरने लगा। 18 पानी बढ़ते-बढ़ते पूरी पृथ्वी पर फैल गया, फिर भी जहाज़ पानी की सतह पर तैरता रहा। 19 पानी इतना बढ़ गया कि पूरी धरती पर जितने भी ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे सब डूब गए।+ 20 पानी पहाड़ों से 15 हाथ* ऊँचाई तक बढ़ गया था।

21 इस तरह धरती पर चलने-फिरनेवाले सभी जीव-जंतु और इंसान मिट गए।+ उड़नेवाले जीव, पालतू जानवर, जंगली जानवर, झुंड में रहनेवाले छोटे-छोटे जीव-जंतु, इंसान सब-के-सब खत्म हो गए।+ 22 ज़मीन पर रहनेवाले सभी जीव, जिनके नथनों में जीवन की साँस* चलती थी, मर गए।+ 23 इस तरह परमेश्‍वर ने धरती से सभी जीवों का सफाया कर दिया। इंसान, जानवर, रेंगनेवाले जीव-जंतु, आसमान में उड़नेवाले जीव, सब-के-सब धरती से मिट गए।+ सिर्फ नूह और जो उसके साथ जहाज़ में थे वे ही ज़िंदा बचे।+ 24 और पूरी धरती जलप्रलय के पानी में 150 दिन तक डूबी रही।+

8 मगर परमेश्‍वर ने नूह पर और उसके साथ जहाज़ में जितने जंगली और पालतू जानवर थे,+ उन सब पर ध्यान दिया* और उनकी खातिर पूरी धरती पर हवा चलायी जिससे जलप्रलय का पानी कम होने लगा। 2 अब तक धरती पर पानी बरसना रुक गया था* क्योंकि आकाश में पानी के सोते और पानी के फाटक बंद कर दिए गए थे।+ 3 फिर धरती पर पानी का स्तर लगातार घटने लगा और 150 दिन के बीतने पर पानी काफी कम हो गया। 4 सातवें महीने के 17वें दिन, जहाज़ अरारात के पहाड़ों पर जा ठहरा। 5 और पानी दसवें महीने तक लगातार घटता गया। दसवें महीने के पहले दिन पहाड़ों की चोटियाँ नज़र आने लगीं।+

6 फिर 40 दिन बाद नूह ने वह खिड़की+ खोली जो उसने जहाज़ में बनायी थी 7 और एक कौवे को बाहर छोड़ा। वह बाहर उड़ता और वापस जहाज़ में लौट आता था। कौवा तब तक ऐसा करता रहा जब तक कि धरती पर पानी सूख न गया।

8 बाद में नूह ने एक फाख्ता बाहर छोड़ी ताकि देखे कि ज़मीन पर पानी कम हुआ है या नहीं। 9 मगर धरती पर अब भी चारों तरफ पानी था+ और फाख्ते को कहीं पंजा टेकने की* भी जगह नहीं मिली। वह वापस नूह के पास लौट आयी और नूह ने हाथ बढ़ाकर उसे जहाज़ के अंदर ले लिया। 10 नूह ने सात दिन और इंतज़ार किया और एक बार फिर फाख्ते को जहाज़ के बाहर छोड़ा। 11 शाम को फाख्ता लौट आयी और नूह ने देखा कि उसकी चोंच में जैतून की एक कोमल पत्ती है! इससे नूह जान गया कि धरती पर पानी कम हो गया है।+ 12 उसने सात दिन और इंतज़ार किया। इसके बाद उसने फाख्ते को फिर से बाहर छोड़ा। मगर इस बार वह नूह के पास लौटकर नहीं आयी।

13 नूह की ज़िंदगी के 601 साल+ के पहले महीने के पहले दिन तक, धरती पर पानी लगभग सूख गया था। जब नूह ने जहाज़ की छत खोली तो उसने देखा कि ज़मीन सूखने लगी है। 14 दूसरे महीने के 27वें दिन तक धरती पूरी तरह सूख गयी थी।

15 अब परमेश्‍वर ने नूह से कहा, 16 “तू अपनी पत्नी, अपने बेटों और अपनी बहुओं को लेकर जहाज़ से बाहर निकल आ।+ 17 जहाज़ में तेरे साथ जितने भी जीव-जंतु हैं,+ हर तरह के जानवर, उड़नेवाले जीव और धरती पर रेंगनेवाले जंतु, सबको बाहर ले आ ताकि वे फूलें-फलें और धरती पर उनकी गिनती बढ़ जाए।”+

18 तब नूह अपनी पत्नी, बेटों+ और बहुओं को लेकर जहाज़ से बाहर निकल आया। 19 और जहाज़ में जितने भी जीव-जंतु थे, उड़नेवाले जीव, रेंगनेवाले जंतु और दूसरे जानवर, सब अपने-अपने झुंड के साथ बाहर आ गए।+ 20 फिर नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी+ और उस पर कुछ शुद्ध जानवरों और कुछ शुद्ध पंछियों+ की होम-बलि चढ़ायी।+ 21 यहोवा इन बलिदानों की सुगंध पाकर खुश हुआ। इसलिए यहोवा ने अपने मन में कहा, “अब मैं फिर कभी इंसान की वजह से ज़मीन को शाप नहीं दूँगा,+ क्योंकि बचपन से इंसान के मन का झुकाव बुराई की तरफ होता है।+ और मैं फिर कभी धरती पर रहनेवाले सभी जीवों का नाश नहीं करूँगा, जैसा मैंने अभी किया है।+ 22 अब से धरती पर दिन और रात, ठंड और गरमी, बोआई और कटाई, सर्दियों और गरमियों का सिलसिला चलता रहेगा, कभी बंद नहीं होगा।”+

9 परमेश्‍वर ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी और उनसे कहा, “फूलो-फलो, गिनती में बढ़ जाओ और धरती को आबाद करो।+ 2 तुम्हारा डर धरती के सभी जानवरों में बना रहेगा। ज़मीन पर चलने-फिरनेवाले सभी जीव-जंतुओं, आसमान में उड़नेवाले सभी पंछियों और समुंदर की सभी मछलियों में तुम्हारा खौफ बना रहेगा। मैं इन सबको तुम्हारे हाथ में सौंपता हूँ।*+ 3 तुम हर चलते-फिरते जानवर को जो ज़िंदा है, मारकर खा सकते हो।+ मैं ये सब तुम्हें खाने के लिए देता हूँ, ठीक जैसे मैंने तुम्हें साग-पात दिया था।+ 4 लेकिन तुम माँस के साथ खून मत खाना+ क्योंकि खून जीवन* है।+ 5 और अगर कोई तुम्हारा खून बहाए, जो कि तुम्हारा जीवन* है, तो मैं उससे तुम्हारे खून का हिसाब माँगूँगा। अगर कोई जानवर तुम्हारी जान ले तो उसे मार डाला जाएगा। और अगर कोई इंसान ऐसा करे, तो मैं उससे तुम्हारी जान का हिसाब लूँगा। उसे अपनी जान गँवानी होगी क्योंकि उसने अपने भाई की जान ली है।+ 6 जो किसी इंसान का खून बहाएगा उसका खून भी इंसान के हाथों बहाया जाएगा,+ क्योंकि परमेश्‍वर ने इंसान को अपनी छवि में बनाया है।+ 7 और तुम फूलो-फलो, गिनती में बढ़ते जाओ और धरती को अपनी संतान से आबाद करो।”+

8 फिर परमेश्‍वर ने नूह और उसके बेटों से कहा, 9 “अब मैं तुम्हारे साथ और तुम्हारी आनेवाली संतानों के साथ एक करार करता हूँ।+ 10 यह करार मैं उन सब जीव-जंतुओं के साथ करता हूँ जो तुम्हारे साथ हैं, पंछियों, जानवरों और धरती के सब जीवित प्राणियों के साथ जो जहाज़ से बाहर निकल आए हैं और तुम्हारे साथ हैं। मैं धरती के हर जीवित प्राणी+ के साथ यह करार करता हूँ। 11 हाँ, मैं तुम्हारे साथ यह करार करता हूँ कि मैं फिर कभी जलप्रलय लाकर सभी इंसानों और जानवरों* का नाश नहीं करूँगा और न ही कभी पूरी धरती को पानी से तबाह करूँगा।”+

12 परमेश्‍वर ने यह भी कहा, “जो करार मैं तुम्हारे साथ और सभी इंसानों और जीव-जंतुओं के साथ कर रहा हूँ, वह पीढ़ी-पीढ़ी तक बना रहेगा। उसकी एक निशानी मैं तुम्हें दे रहा हूँ। 13 मैं बादलों में अपना मेघ-धनुष दिखाऊँगा। यह इस करार की निशानी ठहरेगा जो मैंने धरती के साथ किया है। 14 जब भी मैं धरती के ऊपर बादल लाऊँगा, तो बादलों में मेघ-धनुष ज़रूर दिखायी देगा। 15 और मैं अपना यह करार ज़रूर याद करूँगा जो मैंने तुम्हारे और सभी इंसानों और हर जाति के जीव-जंतु के साथ किया है कि मैं फिर कभी जलप्रलय लाकर सभी इंसानों और जानवरों का नाश नहीं करूँगा।+ 16 और जब भी बादलों में मेघ-धनुष दिखायी देगा, तो मैं उसे देखकर ज़रूर याद करूँगा कि मैंने धरती के सब इंसानों और हर जाति के जीव-जंतु के साथ सदा का करार किया है।”

17 परमेश्‍वर ने एक बार फिर नूह से कहा, “मेघ-धनुष मेरे उस करार की निशानी है जो मैंने धरती के सब इंसानों और जानवरों के साथ किया है।”+

18 नूह के साथ उसके बेटे शेम, हाम और येपेत+ जहाज़ से बाहर निकले। बाद में हाम का एक बेटा हुआ जिसका नाम कनान था।+ 19 ये तीनों नूह के बेटे थे और इन्हीं से पूरी धरती पर आबादी फैली।+

20 नूह ने ज़मीन जोतने का काम शुरू किया और अंगूरों का एक बाग लगाया। 21 एक दिन उसने अंगूरों से बनी मदिरा पी और उसे इतना नशा हो गया कि वह अपने तंबू में कपड़े उतारकर नंगा पड़ा रहा। 22 जब हाम ने, जो कनान का पिता था, अपने पिता नूह को नंगा देखा, तो उसने बाहर जाकर अपने दोनों भाइयों को बताया। 23 तब शेम और येपेत ने अपने कंधों पर एक बड़ा कपड़ा रखा और वे नूह की तरफ पीठ किए हुए उसके पास गए और दूसरी तरफ मुँह किए हुए उसे कपड़ा ओढ़ा दिया। उन्होंने अपने पिता का नंगापन नहीं देखा।

24 जब नूह का नशा उतरा, वह नींद से जागा और उसे पता चला कि उसके छोटे बेटे ने उसके साथ क्या किया 25 तो उसने कहा,

“कनान+ पर शाप पड़े।

वह अपने भाइयों के दासों का दास बने।”+

26 उसने यह भी कहा:

“शेम के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो

और कनान शेम का दास बने।+

27 परमेश्‍वर येपेत को एक बड़ा इलाका दे,

येपेत का निवास शेम के तंबुओं में हो।

कनान येपेत का भी दास बने।”

28 जलप्रलय के बाद नूह 350 साल और जीया।+ 29 इस तरह नूह कुल मिलाकर 950 साल जीया। इसके बाद वह मर गया।

10 यह है नूह के बेटे शेम,+ हाम और येपेत का ब्यौरा।

जलप्रलय के बाद इन तीनों के बेटे पैदा हुए।+ 2 येपेत के बेटे थे गोमेर,+ मागोग,+ मादई, यावान, तूबल,+ मेशेक+ और तीरास।+

3 गोमेर के बेटे थे अशकनज,+ रीपत और तोगरमा।+

4 यावान के बेटे थे एलीशाह,+ तरशीश,+ कित्तीम+ और दोदानी।

5 इन्हीं से वे लोग निकले जो द्वीपों में बस गए थे। बाद में वे अपनी-अपनी भाषा, कुल और जाति के मुताबिक अलग-अलग इलाकों में जा बसे।

6 हाम के बेटे थे कूश, मिसरैम,+ पुट+ और कनान।+

7 कूश के बेटे थे सबा,+ हवीला, सबता, रामा+ और सब-तका।

रामा के बेटे थे शीबा और ददान।

8 कूश का एक और बेटा था, निमरोद। निमरोद दुनिया का पहला ऐसा आदमी था जिसने बहुत ताकत हासिल की थी। 9 वह यहोवा के खिलाफ काम करनेवाला एक ताकतवर शिकारी बना। इसलिए कुछ लोगों की तुलना निमरोद से की जाती है और कहा जाता है, “यह बिलकुल निमरोद जैसा है जो यहोवा के खिलाफ काम करनेवाला ताकतवर शिकारी था।” 10 उसके राज के शुरूआती शहर थे बाबेल,*+ एरेख,+ अक्कद और कलने जो शिनार के इलाके+ में थे। 11 फिर शिनार से वह अश्‍शूर+ गया और वहाँ उसने नीनवे,+ रहोबोत-ईर, कालह 12 और रेसेन नाम के शहर बसाए। रेसेन, नीनवे और कालह के बीच पड़ता है। यही बड़ा शहर है।*

13 मिसरैम के बेटे थे लूदी,+ अनामी, लहाबी, नपतूही,+ 14 पत्रूसी,+ कसलूही (इससे पलिश्‍ती जाति+ निकली) और कप्तोरी।*+

15 कनान के बेटे थे उसका पहलौठा सीदोन,+ फिर हित्त,+ 16 यबूसी,+ एमोरी,+ गिरगाशी, 17 हिव्वी,+ अरकी, सीनी, 18 अरवादी,+ समारी और हमाती।+ बाद में कनानियों के कुल अलग-अलग जगहों में जा बसे। 19 कनानियों की सरहद सीदोन से लेकर दूर गाज़ा+ के पास गरार+ तक और लाशा के पास सदोम, अमोरा,+ अदमा और सबोयीम+ तक फैली थी। 20 ये हाम के बेटे थे जिनके कुलों से अलग-अलग जातियाँ निकलीं। ये जातियाँ अपनी-अपनी भाषा के मुताबिक अलग-अलग इलाकों में जा बसीं।

21 शेम के भी बच्चे हुए, जिसका सबसे बड़ा भाई येपेत था।* शेम एबेर+ के सभी बेटों का पुरखा था। 22 शेम के बेटे थे एलाम,+ अस्सूर,+ अरपक्षद,+ लूद और अराम।+

23 अराम के बेटे थे ऊज़, हूल, गेतेर और मश।

24 अरपक्षद का बेटा शेलह+ था और शेलह का बेटा एबेर था।

25 एबेर के दो बेटे थे। एक का नाम पेलेग*+ था क्योंकि उसके दिनों में धरती* का बँटवारा हुआ था। उसके भाई का नाम योकतान+ था।

26 योकतान के बेटे थे अल्मोदाद, शेलेप, हसरमावेत, येरह,+ 27 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला, 28 ओबाल, अबीमाएल, शीबा, 29 ओपीर,+ हवीला और योबाब। ये सब योकतान के बेटे थे।

30 इन लोगों के रहने का इलाका मेशा से लेकर दूर पूरब में सपारा के पहाड़ी प्रदेश तक फैला था।

31 ये शेम के बेटे थे जिनके कुलों से अलग-अलग जातियाँ निकलीं। ये जातियाँ अपनी-अपनी भाषा के मुताबिक अलग-अलग इलाकों में जा बसीं।+

32 ये सभी नूह के बेटों के खानदान और उनसे निकले कुल हैं। इन्हीं से अलग-अलग जातियाँ बनीं जो जलप्रलय के बाद पूरी धरती पर जा बसीं।+

11 उन दिनों पृथ्वी पर रहनेवाले सब लोगों की एक ही भाषा थी और वे सब एक ही तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। 2 फिर ऐसा हुआ कि वे सफर करते-करते पूरब की तरफ गए और जब उन्होंने शिनार+ में घाटी का एक मैदान देखा तो वे वहाँ रहने लगे। 3 फिर उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “आओ हम ईंटें बनाकर उन्हें आग में पकाएँ।” इसलिए उन्होंने पत्थरों के बदले ईंटों का इस्तेमाल किया और तारकोल का इस्तेमाल गारे की तरह किया। 4 और उन्होंने कहा, “आओ हम अपने लिए एक शहर बनाएँ और इतनी ऊँची एक मीनार बनाएँ कि उसकी चोटी आसमान से बातें करे। इससे हमारा बहुत नाम होगा और हमें पूरी धरती पर बिखरना भी नहीं पड़ेगा।”+

5 तब यहोवा ने उस शहर और मीनार पर ध्यान दिया* जिसे लोग बना रहे थे। 6 यहोवा ने कहा, “देखो! ये सभी एकजुट हैं और इनकी भाषा एक है।+ अब तो वे जो भी करने की सोचेंगे उसे करना उनके लिए नामुमकिन नहीं होगा। 7 इसलिए आओ, हम+ नीचे जाकर इनकी भाषा में गड़बड़ी पैदा कर दें ताकि वे एक-दूसरे की बात समझ न सकें।” 8 इसलिए यहोवा ने उन्हें वहाँ से पूरी धरती पर तितर-बितर कर दिया+ और उन्होंने धीरे-धीरे शहर बनाने का काम छोड़ दिया। 9 इसी वजह से उस शहर का नाम बाबेल*+ पड़ा क्योंकि यहोवा ने वहीं पर सब लोगों की भाषा में गड़बड़ी डाली थी। और यहोवा ने उन्हें वहाँ से पूरी धरती पर तितर-बितर कर दिया।

10 यह शेम+ के बारे में ब्यौरा है।

जलप्रलय के दो साल बाद शेम का एक बेटा हुआ जिसका नाम अरपक्षद था।+ उस वक्‍त शेम 100 साल का था। 11 अरपक्षद के पैदा होने के बाद शेम 500 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।+

12 जब अरपक्षद 35 साल का हुआ तो उसका बेटा शेलह+ पैदा हुआ। 13 शेलह के पैदा होने के बाद अरपक्षद 403 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

14 जब शेलह 30 साल का हुआ तो उसका बेटा एबेर+ पैदा हुआ। 15 एबेर के पैदा होने के बाद शेलह 403 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

16 जब एबेर 34 साल का हुआ तो उसका बेटा पेलेग पैदा हुआ।+ 17 पेलेग के पैदा होने के बाद एबेर 430 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

18 जब पेलेग 30 साल का हुआ तो उसका बेटा रऊ+ पैदा हुआ। 19 रऊ के पैदा होने के बाद पेलेग 209 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

20 जब रऊ 32 साल का हुआ तो उसका बेटा सरूग पैदा हुआ। 21 सरूग के पैदा होने के बाद रऊ 207 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

22 जब सरूग 30 साल का हुआ तो उसका बेटा नाहोर पैदा हुआ। 23 नाहोर के पैदा होने के बाद सरूग 200 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

24 जब नाहोर 29 साल का हुआ तो उसका बेटा तिरह+ पैदा हुआ। 25 तिरह के पैदा होने के बाद नाहोर 119 साल और जीया। उसके और भी बेटे-बेटियाँ हुए।

26 जब तिरह 70 साल का हुआ तो उसके बाद उसके बेटे अब्राम,+ नाहोर+ और हारान पैदा हुए।

27 यह है तिरह के बारे में ब्यौरा।

तिरह के बेटे थे अब्राम, नाहोर और हारान। हारान का बेटा था लूत।+ 28 हारान का जन्म कसदी लोगों+ के ऊर शहर+ में हुआ था और उसकी मौत भी वहीं पर हुई थी। हारान की मौत के वक्‍त उसका पिता तिरह ज़िंदा था। 29 अब्राम और उसके भाई नाहोर ने शादी की। अब्राम की पत्नी का नाम सारै+ था और नाहोर की पत्नी का नाम मिलका+ था जो हारान की बेटी थी। हारान की एक और बेटी थी, यिस्का। 30 सारै का कोई बच्चा नहीं था, वह बाँझ थी।+

31 बाद में तिरह ने कसदियों का ऊर शहर छोड़ दिया और वह अपने परिवार को लेकर कनान देश+ के लिए निकल पड़ा। उसके साथ उसका बेटा अब्राम, उसकी बहू सारै और उसका पोता लूत भी था+ जो हारान का बेटा था। कुछ समय बाद वे हारान नाम की जगह+ पहुँचे और वहाँ रहने लगे। 32 तिरह कुल मिलाकर 205 साल जीया और हारान में उसकी मौत हो गयी।

12 यहोवा ने अब्राम से कहा, “तू अपने पिता के घराने और नाते-रिश्‍तेदारों को और अपने देश को छोड़कर एक ऐसे देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।+ 2 मैं तुझसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा और तुझे आशीष दूँगा और तेरा नाम महान करूँगा और तू दूसरों के लिए एक आशीष ठहरेगा।+ 3 जो तुझे आशीर्वाद देंगे उन्हें मैं आशीष दूँगा और जो तुझे शाप देंगे उन्हें मैं शाप दूँगा+ और तेरे ज़रिए धरती के सभी कुल ज़रूर आशीष पाएँगे।”*+

4 अब्राम ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने उससे कहा था। वह हारान से निकल पड़ा और उसके साथ लूत भी गया। उस वक्‍त अब्राम 75 साल का था।+ 5 अब्राम अपनी पत्नी सारै+ और अपने भतीजे लूत+ को साथ ले गया। हारान में उन्होंने जितने भी दास-दासियाँ और जितनी भी धन-संपत्ति हासिल की थी,+ वह सब अपने साथ लेकर वे कनान देश के लिए रवाना हो गए।+ जब वे कनान पहुँचे, 6 तो वहाँ अब्राम सफर करते-करते दूर शेकेम नाम की जगह+ तक गया जहाँ पास में मोरे के बड़े-बड़े पेड़ थे।+ उन दिनों उस देश में कनानी लोग रहते थे। 7 फिर यहोवा ने अब्राम के सामने प्रकट होकर कहा, “मैं यह देश तेरे वंश*+ को दूँगा।”+ इसलिए अब्राम ने वहाँ यहोवा के लिए एक वेदी बनायी जो उसके सामने प्रकट हुआ था। 8 बाद में अब्राम वहाँ से बेतेल+ के पूरब की तरफ पहाड़ी प्रदेश में गया और वहाँ अपना तंबू गाड़ा। वहाँ से बेतेल पश्‍चिम की तरफ था और पूरब की तरफ ऐ नाम की जगह+ थी। उस पहाड़ी इलाके में उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी+ और वह यहोवा का नाम पुकारने लगा।+ 9 बाद में अब्राम ने अपना पड़ाव उठाया और वह जगह-जगह डेरा डालते हुए नेगेब+ की तरफ बढ़ा।

10 उन दिनों कनान देश में अकाल पड़ा और खाने के इतने लाले पड़ गए+ कि अब्राम, कनान से नीचे मिस्र के लिए निकल पड़ा ताकि वहाँ कुछ समय तक रहे।*+ 11 जब अब्राम मिस्र पहुँचनेवाला था तो उसने अपनी पत्नी सारै से कहा, “मुझे तुझसे एक बात कहनी है। जब हम मिस्र में कदम रखेंगे तो वहाँ के लोगों की नज़र ज़रूर तुझ पर पड़ेगी, क्योंकि तू इतनी खूबसूरत जो है।+ 12 और जब वे तुझे मेरे साथ देखेंगे तो कहेंगे, ‘यह उसकी बीवी होगी।’ फिर वे मुझे मार डालेंगे और तुझे अपने पास रख लेंगे। 13 इसलिए तुझसे मेरी एक बिनती है, तू वहाँ के लोगों से कहना कि तू मेरी बहन है। इस तरह तेरी बदौलत मेरी जान सलामत रहेगी और मुझे कोई खतरा नहीं होगा।”+

14 जैसे ही अब्राम और सारै मिस्र पहुँचे, वहाँ के लोगों की नज़र सारै पर पड़ी और उन्होंने देखा कि वह बहुत खूबसूरत है। 15 फिरौन के हाकिमों ने भी उसे देखा और वे फिरौन से उसकी खूबसूरती की तारीफ करने लगे। इसलिए सारै को फिरौन के भवन में लाया गया। 16 सारै की वजह से फिरौन ने अब्राम के साथ अच्छा व्यवहार किया। उसने अब्राम को भेड़ें, गाय-बैल, गधे-गधियाँ, ऊँट और दास-दासियाँ दिए।+ 17 तब यहोवा अब्राम की पत्नी सारै+ की वजह से फिरौन और उसके घराने पर बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ ले आया। 18 इसलिए फिरौन ने अब्राम को बुलाकर कहा, “यह तूने मेरे साथ क्या किया? तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि यह तेरी पत्नी है? 19 तूने मुझसे कहा था कि यह तेरी बहन है+ इसलिए मैं इसे अपनी पत्नी बनानेवाला था। यह रही तेरी पत्नी। इसे लेकर यहाँ से चला जा!” 20 तब फिरौन ने अपने आदमियों को उसके बारे में हुक्म दिया और उन्होंने अब्राम और उसकी पत्नी को उनके पास जो कुछ था, उसके साथ विदा किया।+

13 तब अब्राम मिस्र से निकल पड़ा। वह अपनी पत्नी और लूत को, साथ ही उसके पास जो कुछ था, सब लेकर नेगेब चला गया।+ 2 अब्राम के पास बहुत-से मवेशी थे और ढेर सारा सोना-चाँदी था।+ 3 फिर वह नेगेब से रवाना हुआ और जगह-जगह डेरा डालते हुए बेतेल की तरफ गया। वह उस जगह पहुँचा जो बेतेल और ऐ के बीच थी।+ यह वही जगह थी जहाँ उसने पहले भी एक बार अपना तंबू गाड़ा था 4 और एक वेदी बनायी थी। वहाँ अब्राम ने यहोवा का नाम पुकारा।

5 लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ सफर कर रहा था, भेड़ें, गाय-बैल और तंबू थे। 6 वहाँ अब्राम और लूत के लिए जगह कम पड़ने लगी और उनका साथ रहना मुश्‍किल हो गया, क्योंकि उन दोनों के पास बहुत संपत्ति हो गयी थी। 7 इस वजह से अब्राम के चरवाहों और लूत के चरवाहों के बीच झगड़ा हो गया। (उन दिनों उस देश में कनानी और परिज्जी लोग रहते थे।)+ 8 तब अब्राम ने लूत+ से कहा, “देख, हम दोनों भाई-भाई हैं। इसलिए यह ठीक नहीं कि हम दोनों के बीच और हमारे चरवाहों के बीच झगड़ा हो। 9 क्यों न हम एक-दूसरे से अलग हो जाएँ? देख, तेरे सामने यह सारा देश पड़ा है। अगर तू बायीं तरफ जाएगा, तो मैं दायीं तरफ चला जाऊँगा। और अगर तू दायीं तरफ जाएगा तो मैं बायीं तरफ चला जाऊँगा।” 10 तब लूत ने चारों तरफ नज़र दौड़ायी और यरदन का पूरा इलाका देखा+ जो दूर सोआर+ तक फैला था। उसने देखा कि पूरा इलाका यहोवा के बाग*+ जैसा और मिस्र जैसा है और वहाँ भरपूर पानी है (तब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा का नाश नहीं किया था)। 11 इसलिए लूत ने अपने लिए यरदन का पूरा इलाका चुना। उसने अपना डेरा उठाया और पूरब की तरफ चला गया। इस तरह अब्राम और लूत एक-दूसरे से अलग हो गए। 12 अब्राम कनान देश में ही रहा जबकि लूत यरदन के इलाके के शहरों के पास रहने लगा।+ आखिर में उसने सदोम के पास अपना तंबू गाड़ा। 13 सदोम के लोग बहुत दुष्ट थे और यहोवा के खिलाफ घोर पाप करते थे।+

14 अब्राम से लूत के अलग होने के बाद यहोवा ने अब्राम से कहा, “ज़रा अपनी आँखें उठाकर चारों तरफ देख। जहाँ तू है वहाँ से उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्‍चिम चारों दिशाओं में अपनी नज़र दौड़ा, 15 क्योंकि यह सारा देश जो तू देख रहा है, यह मैं तुझे और तेरे वंश* को हमेशा के लिए दे दूँगा। यह तुम्हारी जागीर होगा।+ 16 मैं तेरे वंश को इतना बढ़ाऊँगा कि उनकी गिनती धूल के कणों की तरह अनगिनत हो जाएगी। जैसे कोई धूल के कणों को नहीं गिन सकता, वैसे ही तेरे वंश को भी कोई नहीं गिन पाएगा।+ 17 अब जा, पूरे देश का दौरा कर* क्योंकि यह देश मैं तुझे दूँगा।” 18 इसलिए अब्राम जगह-जगह तंबुओं में ही रहा। बाद में वह हेब्रोन+ में ममरे गया और वहाँ उसने बड़े-बड़े पेड़ों के बीच डेरा डाला+ और यहोवा के लिए एक वेदी बनायी।+

14 उन दिनों शिनार+ का राजा अमरापेल था, एल्लासार का राजा अरयोक, एलाम+ का राजा कदोर-लाओमेर+ और गोयीम का राजा तिदाल था। 2 इन राजाओं ने मिलकर सदोम+ के राजा बेरा, अमोरा+ के राजा बिरशा, अदमा के राजा शिनाब, सबोयीम+ के राजा शेमेबेर और बेला यानी सोआर के राजा से युद्ध किया। 3 ये सभी राजा* सिद्दीम घाटी में अपनी-अपनी सेना के साथ इकट्ठा हुए।+ यह घाटी लवण सागर* है।+

4 वे* 12 साल तक राजा कदोर-लाओमेर के अधीन रहे, मगर 13वें साल उन्होंने उससे बगावत की। 5 इसलिए 14वें साल में कदोर-लाओमेर और उसके साथी राजाओं ने आकर उन पर हमला कर दिया। उन्होंने अश्‍तरोत-करनैम में रपाई लोगों को, हाम में जूजी लोगों को और शावे-किरयातैम में एमी लोगों+ को हराया 6 और सेईर के पहाड़ी प्रदेश+ में रहनेवाले होरी लोगों+ से नीचे एल-पारन तक लड़ते रहे, जो वीराने के किनारे है। 7 फिर वहाँ से लौटकर वे एन-मिशपात यानी कादेश+ आए और उन्होंने अमालेकियों+ का पूरा इलाका जीत लिया। साथ ही, उन्होंने हसासोन-तामार+ में रहनेवाले एमोरी लोगों+ को भी हरा दिया।

8 तब सदोम, अमोरा, अदमा, सबोयीम और बेला यानी सोआर के राजा एकजुट होकर उनसे लड़ने निकल पड़े। इन पाँच राजाओं ने उनका सामना करने के लिए सिद्दीम घाटी में मोरचा बाँधा। 9 वहाँ उन्होंने एलाम के राजा कदोर-लाओमेर, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अमरापेल और एल्लासार के राजा अरयोक+ पर हमला किया। इस तरह, चार राजाओं का पाँच राजाओं से युद्ध होने लगा। 10 अंजाम यह हुआ कि सदोम और अमोरा के राजा अपनी जान बचाकर भागे। लेकिन सिद्दीम घाटी में जगह-जगह तारकोल के गड्‌ढे थे, इसलिए वे उन गड्‌ढों में गिर पड़े और जो बच गए वे पहाड़ी प्रदेश भाग गए। 11 युद्ध में जीतनेवालों ने सदोम और अमोरा का सारा माल और खाने की चीज़ें ले लीं और अपनी राह चल दिए।+ 12 उन्होंने अब्राम के भतीजे लूत को भी बंदी बना लिया जो सदोम में रहता था।+ वे उसका सारा सामान भी लूटकर ले गए।

13 तब एक आदमी ने, जो बचकर भाग निकला था, आकर इस बारे में अब्राम को (जो एक इब्री था) खबर दी। उस वक्‍त अब्राम ममरे नाम के एक एमोरी आदमी के यहाँ बड़े-बड़े पेड़ों के बीच पड़ाव डालकर रहता था।+ ममरे के दो भाई थे, एशकोल और आनेर।+ इन तीनों भाइयों और अब्राम के बीच संधि हुई थी। 14 जब अब्राम को पता चला कि उसका रिश्‍तेदार* लूत+ बंदी बना लिया गया है, तो उसने अपने घराने में पैदा हुए 318 दासों को इकट्ठा किया जिन्होंने युद्ध की तालीम पायी थी। वह उन्हें लेकर हमलावरों का पीछा करते-करते दान+ तक गया। 15 रात के वक्‍त अब्राम ने अपने सैनिकों को अलग-अलग दलों में बाँट दिया। फिर उसने और उसके दासों ने मिलकर दुश्‍मनों पर हमला किया और उन्हें हरा दिया और दमिश्‍क के उत्तर में होबा तक उन्हें खदेड़ा। 16 अब्राम ने दुश्‍मनों से सारा माल छुड़ा लिया। उसने अपने रिश्‍तेदार लूत को और उसका सारा सामान और उन औरतों और लोगों को भी छुड़ा लिया जिन्हें दुश्‍मन उठा ले गए थे।

17 जब अब्राम, कदोर-लाओमेर और उसके साथी राजाओं को हराकर वापस लौट रहा था, तो सदोम का राजा उससे शावे घाटी में मिलने आया जो ‘राजा की घाटी’+ भी कहलाती है। 18 और शालेम का राजा मेल्कीसेदेक+ रोटी और दाख-मदिरा लेकर अब्राम से मिलने आया। मेल्कीसेदेक परम-प्रधान परमेश्‍वर का याजक था।+

19 उसने अब्राम को आशीर्वाद दिया और कहा,

“अब्राम पर परम-प्रधान परमेश्‍वर की आशीष बनी रहे,

जो आकाश और धरती का बनानेवाला है।

20 और परम-प्रधान परमेश्‍वर की तारीफ हो,

जिसने तुझे सतानेवालों को तेरे हाथ में कर दिया!”

तब अब्राम ने दुश्‍मनों से छुड़ायी सब चीज़ों का दसवाँ हिस्सा मेल्कीसेदेक को दिया।+

21 इसके बाद सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, “तू सारा माल रख ले, सिर्फ ये लोग मुझे दे दे।” 22 मगर अब्राम ने सदोम के राजा से कहा, “मैं हाथ ऊपर उठाकर आकाश और धरती के बनानेवाले परम-प्रधान परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाता हूँ 23 कि मैं तेरी एक भी चीज़ नहीं लूँगा। एक धागा या जूते का फीता तक नहीं लूँगा ताकि तू कल को यह न कहे, ‘मेरी बदौलत ही अब्राम मालामाल हुआ है।’ 24 इन जवानों ने जो खाया है, उसे छोड़ मैं और कुछ नहीं लूँगा। मगर जहाँ तक आनेर, एशकोल और ममरे+ की बात है, जो मेरे साथ युद्ध में गए थे, इन आदमियों को अपना-अपना हिस्सा लेने दे।”

15 इसके बाद अब्राम को एक दर्शन में यहोवा का यह संदेश मिला: “अब्राम, तुझे किसी बात से डरने की ज़रूरत नहीं।+ मैं तेरे लिए एक ढाल हूँ।+ मैं तुझे बहुत बड़ा इनाम दूँगा।”+ 2 अब्राम ने कहा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मैं तो बेऔलाद हूँ। इसलिए तू मुझे जो भी इनाम देगा, उससे मुझे क्या फायदा? मेरे घर का वारिस एलीएज़ेर होगा जो दमिश्‍क से है।”+ 3 अब्राम ने यह भी कहा, “तूने मुझे कोई वंश नहीं दिया+ और मेरे घराने का एक आदमी* मेरा वारिस बननेवाला है।” 4 मगर जवाब में उसे यहोवा से यह संदेश मिला: “यह आदमी तेरा वारिस नहीं होगा बल्कि तेरा अपना बेटा* तेरा वारिस बनेगा।”+

5 फिर परमेश्‍वर ने अब्राम को बाहर लाकर उससे कहा, “ज़रा अपनी नज़रें उठाकर आसमान की तरफ देख। अगर तू तारों को गिन सके तो गिन।” फिर परमेश्‍वर ने उससे कहा, “तेरे वंश* की गिनती भी इसी तरह बेशुमार होगी।”+ 6 अब्राम ने यहोवा पर विश्‍वास किया+ और इस वजह से परमेश्‍वर ने उसे नेक समझा।+ 7 परमेश्‍वर ने यह भी कहा, “मैं यहोवा हूँ, मैं ही तुझे कसदियों के शहर ऊर से यहाँ ले आया था ताकि तुझे यह देश दूँ और यह तेरी जागीर हो।”+ 8 तब अब्राम ने कहा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मैं कैसे यकीन करूँ कि यह देश मेरी जागीर होगा?” 9 परमेश्‍वर ने अब्राम से कहा, “मेरे लिए तीन साल की एक गाय,* तीन साल की एक बकरी, तीन साल का एक मेढ़ा, एक फाख्ता और कबूतर का एक बच्चा ले आ।” 10 अब्राम यह सब ले आया और उसने उन सबके दो-दो टुकड़े किए और उन टुकड़ों को आमने-सामने रखा।* मगर उसने पंछियों को नहीं काटा। 11 तब शिकारी पक्षी उन टुकड़ों पर झपटने लगे और अब्राम उन्हें भगाता रहा।

12 जब सूरज डूबने पर था, तो अब्राम गहरी नींद सो गया और उसने देखा कि उसके चारों तरफ घोर, भयानक अँधेरा छाया हुआ है। 13 तब परमेश्‍वर ने अब्राम से कहा, “तू एक बात पक्के तौर पर जान ले कि तेरा वंश* पराए देश में परदेसी बनकर रहेगा और वहाँ के लोग उससे गुलामी करवाएँगे और 400 साल तक उसे सताते रहेंगे।+ 14 मगर जिस देश की वे गुलामी करेंगे उसे मैं सज़ा दूँगा।+ इसके बाद वे खूब सारी दौलत लेकर वहाँ से निकल जाएँगे।+ 15 जहाँ तक तेरी बात है, तू एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जीएगा और आखिर में शांति से मरेगा और तेरे पुरखों की तरह तुझे भी दफना दिया जाएगा।+ 16 तेरे वंश की चौथी पीढ़ी यहाँ वापस लौटेगी,+ क्योंकि तब तक एमोरी लोग पाप करने में हद कर चुके होंगे।”+

17 जब सूरज ढल गया और घोर अँधेरा छा गया तो एक भट्ठी, जिसमें से धुआँ उठ रहा था और एक जलती मशाल दिखायी दीं, जो जानवरों के टुकड़ों के बीच से होती हुई आगे निकल गयीं। 18 उस दिन यहोवा ने अब्राम के साथ एक करार किया+ और उससे कहा, “मैं तेरे वंश* को यह देश दूँगा,+ जो मिस्र की नदी से लेकर महानदी फरात तक फैला है,+ 19 जहाँ आज केनी,+ कनिज्जी, कदमोनी, 20 हित्ती,+ परिज्जी,+ रपाई,+ 21 एमोरी, कनानी, गिरगाशी और यबूसी लोग रहते हैं।”+

16 अब्राम की पत्नी सारै के अब तक कोई बच्चा नहीं हुआ था।+ सारै की एक मिस्री दासी थी जिसका नाम हाजिरा+ था। 2 सारै ने अब्राम से कहा, “देख, यहोवा ने मेरी कोख बंद कर रखी है। इसलिए मेरी बिनती है कि तू मेरी दासी ले ले। हो सकता है उसके बच्चा होने से मेरी सूनी गोद भर जाए।”+ अब्राम ने सारै की बात मान ली। 3 अब तक अब्राम को कनान देश में रहते दस साल हो गए थे। सारै ने उसे अपनी मिस्री दासी हाजिरा दी ताकि वह उसकी पत्नी बने। 4 तब अब्राम ने हाजिरा के साथ संबंध रखे और वह गर्भवती हुई। जब हाजिरा को पता चला कि वह पेट से है, तो वह अपनी मालकिन को नीचा दिखाने लगी।

5 इस पर सारै ने अब्राम से कहा, “मेरे साथ जो बुरा सलूक किया जा रहा है, उसके लिए तू ज़िम्मेदार है। मैंने ही अपनी दासी तुझे दी थी। मगर जब से उसे पता चला कि वह गर्भवती है, वह मुझे नीचा दिखाने लगी है। अब यहोवा ही मेरे और तेरे बीच न्याय करे।” 6 अब्राम ने सारै से कहा, “देख, तू उसकी मालकिन है। तुझे उसके साथ जो सही लगे वही कर।” तब सारै अपनी दासी को नीचा दिखाने लगी और वह दासी उसके यहाँ से भाग गयी।

7 बाद में यहोवा के स्वर्गदूत ने वीराने में, शूर+ जानेवाले रास्ते पर एक सोते के पास हाजिरा को पाया। 8 स्वर्गदूत ने उससे पूछा, “सारै की दासी हाजिरा, तू कहाँ से आयी है और कहाँ जा रही है?” हाजिरा ने कहा, “मैं अपनी मालकिन सारै के यहाँ से भाग आयी हूँ।” 9 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे कहा, “तू अपनी मालकिन के पास लौट जा और नम्र होकर उसके अधीन रह।” 10 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे यह भी कहा, “मैं तेरे वंश* को इतना बढ़ाऊँगा कि कोई उसकी गिनती नहीं कर पाएगा।”+ 11 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे यह भी कहा, “तू जो गर्भवती है, तू एक बेटे को जन्म देगी। तू उसका नाम इश्‍माएल* रखना क्योंकि यहोवा ने तेरी दर्द-भरी पुकार सुनी है। 12 जब वह बड़ा होगा तो उसकी फितरत जंगली गधे* जैसी होगी। उसका हाथ सबके खिलाफ उठेगा और सबका हाथ उसके खिलाफ। और वह अपने सब भाइयों के सामने बसेरा करेगा।”*

13 फिर हाजिरा ने यहोवा का नाम पुकारा, जो उससे बात कर रहा था और कहा, “तू ऐसा परमेश्‍वर है जो सबकुछ देखता है,”*+ क्योंकि उसने कहा, “यहाँ मैंने सचमुच उसे देखा है जिसकी नज़र मुझ पर है।” 14 इसीलिए उस कुएँ का नाम बेर-लहै-रोई* पड़ा। (यह कुआँ कादेश और बेरेद के बीच है।) 15 हाजिरा ने अब्राम के बेटे को जन्म दिया और अब्राम ने उसका नाम इश्‍माएल रखा।+ 16 जब हाजिरा से इश्‍माएल पैदा हुआ तब अब्राम 86 साल का था।

17 जब अब्राम 99 साल का था, तब यहोवा ने उसके सामने प्रकट होकर कहा, “मैं सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर हूँ। तू मेरे सामने सही राह पर चलता रह और अपना चालचलन निर्दोष बनाए रख। 2 मैंने तेरे साथ जो करार किया था उसे पक्का करूँगा+ और तेरे वंशजों की गिनती बहुत-बहुत बढ़ाऊँगा।”+

3 इस पर अब्राम मुँह के बल गिरा और परमेश्‍वर ने उससे यह भी कहा, 4 “देख, मैंने तेरे साथ एक करार किया है,+ इसलिए तू बेशक बहुत-सी जातियों का पिता बनेगा।+ 5 अब से तेरा नाम अब्राम* नहीं बल्कि अब्राहम* होगा, क्योंकि मैं तुझे बहुत-सी जातियों का पिता बनाऊँगा। 6 मैं तेरे वंशजों की गिनती इतनी बढ़ाऊँगा कि उनसे कई जातियाँ बनेंगी और तेरे वंश से राजा पैदा होंगे।+

7 मैं अपना यह करार निभाऊँगा जो मैंने तुझसे और तेरे बाद पीढ़ी-पीढ़ी तक तेरे वंश* से किया है।+ यह सदा का करार है कि मैं तेरा और तेरे बाद तेरे वंश* का परमेश्‍वर होऊँगा। 8 आज तू इस कनान देश में एक परदेसी की तरह रह रहा है, मगर एक दिन मैं यह सारा देश तुझे और तेरे बाद तेरे वंश* को हमेशा के लिए दे दूँगा+ ताकि यह उनकी जागीर हो। और मैं उनका परमेश्‍वर होऊँगा।”+

9 परमेश्‍वर ने अब्राहम से यह भी कहा, “तुझे और तेरे बाद तेरे वंश को पीढ़ी-पीढ़ी तक मेरा करार मानना होगा। 10 यह करार तुझे और तेरे बाद तेरे वंश* को इस तरह मानना होगा: तुममें से हर आदमी और लड़के का खतना किया जाए।+ 11 तुम्हें अपना खतना करवाना होगा, क्योंकि खतना मेरे और तुम्हारे बीच हुए करार की निशानी ठहरेगा।+ 12 तुम्हारे घराने में पैदा होनेवाले हर लड़के का खतना जन्म के आठवें दिन किया जाए।+ और उन आदमियों और लड़कों का भी खतना किया जाए जो तुम्हारे वंश* के नहीं हैं, मगर किसी परदेसी से खरीदे गए हैं। खतने का यह नियम तुम्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानना होगा। 13 तुम्हारे यहाँ पैदा हुए हर आदमी का और उन सभी आदमियों का भी, जिन्हें तुमने खरीदा हो, खतना किया जाए।+ तुम्हारे शरीर पर यह निशानी इस बात का सबूत होगी कि मैंने तुम्हारे साथ सदा तक कायम रहनेवाला करार किया है। 14 जो लड़का या आदमी खतना नहीं करवाता वह मेरा करार तोड़ता है। उसे उसके लोगों के बीच से काट डाला जाए।”*

15 फिर परमेश्‍वर ने अब्राहम से कहा, “तू अपनी पत्नी को सारै*+ न बुलाना क्योंकि अब से उसका नाम सारा* होगा। 16 मैं उसे आशीष दूँगा और उससे तुझे एक बेटा होगा।+ मेरी आशीष सारा पर होगी और उससे बहुत-सी जातियाँ निकलेंगी और देशों के राजा पैदा होंगे।” 17 तब अब्राहम ने मुँह के बल गिरकर परमेश्‍वर को दंडवत किया और वह मन-ही-मन यह कहकर हँसने लगा,+ “क्या यह मुमकिन है कि 100 साल के इस बूढ़े का बच्चा होगा और सारा 90 की होकर भी माँ बनेगी!”+

18 इसलिए अब्राहम ने सच्चे परमेश्‍वर से कहा, “मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि इश्‍माएल पर तेरी आशीष हो!”+ 19 तब परमेश्‍वर ने उससे कहा, “तेरी पत्नी सारा बेशक तुझे एक बेटा देगी और तू उसका नाम इसहाक*+ रखना। मैं उसके साथ और उसके बाद उसके वंश* के साथ सदा का करार करूँगा।+ 20 रही बात इश्‍माएल की, उसके बारे में मैंने तेरी बिनती सुनी है। मैं उसे आशीष दूँगा। वह बहुत फूलेगा-फलेगा और उसकी बहुत-सी संतान होंगी। उससे 12 प्रधान निकलेंगे और मैं उसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।+ 21 लेकिन मैं अपना करार सिर्फ इसहाक के साथ करूँगा,+ जिसे सारा अगले साल इसी समय जन्म देगी।”+

22 यह कहने के बाद परमेश्‍वर अब्राहम के पास से चला गया। 23 फिर अब्राहम ने उसी दिन अपने बेटे इश्‍माएल का और अपने घराने में पैदा हुए सभी आदमियों और खरीदे गए सभी दासों का खतना किया। उसने अपने घराने के सभी लड़कों और आदमियों का खतना किया, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने उससे कहा था।+ 24 जब अब्राहम का खतना हुआ+ तब वह 99 साल का था। 25 उसका बेटा इश्‍माएल अपने खतने के वक्‍त 13 साल का था।+ 26 उसी दिन अब्राहम का खतना किया गया था और उसके बेटे इश्‍माएल का भी खतना किया गया। 27 अब्राहम के साथ-साथ उसके घराने के उन सभी लड़कों और आदमियों का खतना किया गया जो उसके घर में पैदा हुए थे या किसी परदेसी से खरीदे गए थे।

18 बाद में यहोवा+ अब्राहम के सामने प्रकट हुआ। भरी दोपहरी का वक्‍त था और कड़ी धूप थी। अब्राहम, ममरे में बड़े-बड़े पेड़ों के बीच+ अपने तंबू के द्वार पर बैठा था। 2 जब उसने आँख उठाकर देखा तो उसे तीन आदमी नज़र आए जो उसके तंबू से कुछ दूरी पर खड़े थे।+ जैसे ही अब्राहम ने उन्हें देखा, वह उनसे मिलने के लिए तंबू के द्वार से दौड़कर गया और उसने ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया। 3 फिर उसने कहा, “हे यहोवा, अगर तेरी कृपा मुझ पर हो तो अपने दास के तंबू में आए बगैर यहाँ से मत जाना। 4 मैं थोड़ा पानी लाता हूँ ताकि तुम्हारे पैर धोए जाएँ।+ फिर इस पेड़ के नीचे कुछ देर आराम कर लेना। 5 देखो, तुम अपने दास के यहाँ मेहमान हो, मैं तुम्हें खाना खाए बगैर नहीं जाने दूँगा। मैं जाकर तुम्हारे लिए थोड़ी रोटियाँ लाता हूँ ताकि तुम खाकर तरो-ताज़ा हो जाओ।”* उन्होंने कहा, “ठीक है, जैसी तेरी मरज़ी।”

6 तब अब्राहम भागकर तंबू में सारा के पास गया और उससे कहा, “जल्दी से तीन पैमाना* मैदा ले और उसे गूँधकर रोटियाँ बना।” 7 इसके बाद, अब्राहम दौड़कर अपने गाय-बैल के झुंड के पास गया और उसने एक अच्छा-सा मुलायम बछड़ा लाकर अपने सेवक को दिया। वह फौरन उसे पकाने में लग गया। 8 फिर अब्राहम ने मक्खन, दूध और गोश्‍त लिया और अपने मेहमानों के सामने खाना परोसा। जब वे पेड़ के नीचे बैठे खा रहे थे, तो अब्राहम उनके पास ही खड़ा रहा।+

9 उन्होंने अब्राहम से पूछा, “तेरी पत्नी सारा+ कहाँ है?” उसने कहा, “यहीं तंबू में है।” 10 तब उनमें से एक ने कहा, “मैं अगले साल इसी समय तेरे पास फिर आऊँगा और देख, तेरी पत्नी सारा के एक बेटा होगा!”+ सारा उस आदमी के पीछे तंबू के द्वार पर खड़ी सब सुन रही थी। 11 अब्राहम और सारा, दोनों की उम्र ढल चुकी थी+ और सारा की बच्चे पैदा करने की उम्र बीत चुकी थी।*+ 12 इसलिए सारा मन-ही-मन हँस पड़ी और कहने लगी, “मैं तो बूढ़ी हो गयी हूँ, मेरा मालिक भी बूढ़ा हो गया है। क्या इस उम्र में वाकई मुझे औलाद का सुख मिलेगा?”+ 13 तब यहोवा ने अब्राहम से कहा, “सारा क्यों हँसी? उसने यह क्यों कहा, ‘मैं तो इतनी बूढ़ी हूँ, मेरे बच्चा कैसे हो सकता है?’ 14 क्या यहोवा के लिए कुछ भी नामुमकिन है?+ मैं अगले साल इसी समय तेरे पास फिर आऊँगा और सारा के एक बेटा होगा।” 15 मगर सारा डर के मारे बोली, “नहीं, मैं नहीं हँसी!” परमेश्‍वर ने कहा, “नहीं, तू हँसी थी।”

16 फिर वे आदमी जाने के लिए उठे और उन्होंने नीचे सदोम की तरफ देखा।+ अब्राहम उन्हें विदा करने के लिए उनके साथ-साथ गया। 17 यहोवा ने कहा, “मैं जो करने जा रहा हूँ वह अब्राहम को न बताऊँ, यह नहीं हो सकता।+ 18 क्योंकि अब्राहम एक बड़ी और शक्‍तिशाली जाति का पिता बनेगा और धरती की सभी जातियाँ उसके ज़रिए आशीष पाएँगी।*+ 19 मैं अब्राहम को अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे पूरा यकीन है कि वह अपने बेटों और वंशजों को आज्ञा देगा कि वे वही करें जो सही और न्याय के मुताबिक है और इस तरह यहोवा की राह पर चलते रहें।+ तब मैं यहोवा, अब्राहम के बारे में किया अपना वादा पूरा करूँगा।”

20 फिर यहोवा ने कहा, “सदोम और अमोरा का पाप हद से गुज़र गया है,+ उनके बारे में शिकायत बढ़ती जा रही है।+ 21 मैं नीचे जाकर उन शहरों का मुआयना करूँगा और देखूँगा कि मैंने जो सुना है क्या वह सही है, क्या सचमुच वहाँ की हालत इतनी खराब है। मैं इस बारे में ज़रूर जानना चाहूँगा।”+

22 इसके बाद वे आदमी वहाँ से सदोम की तरफ चले गए। मगर यहोवा+ अब्राहम के संग रह गया। 23 तब अब्राहम ने परमेश्‍वर के पास जाकर उससे पूछा, “क्या तू दुष्टों के साथ-साथ नेक लोगों को भी मिटा देगा?+ 24 मान लो उस शहर में 50 नेक लोग हैं। क्या तब भी तू उसका नाश कर देगा? क्या तू उन 50 की खातिर उस जगह को नहीं बख्शेगा? 25 तू दुष्ट के साथ-साथ नेक जन को मार डालने की कभी सोच भी नहीं सकता।+ तू दोनों को एक ही सिला दे, यह कभी नहीं हो सकता।+ क्या सारी दुनिया का न्याय करनेवाला कभी अन्याय कर सकता है?”+ 26 तब यहोवा ने कहा, “अगर मुझे सदोम में 50 लोग भी नेक मिले, तो मैं उनकी खातिर पूरे शहर को छोड़ दूँगा।” 27 मगर अब्राहम ने फिर कहा, “मैं तो बस मिट्टी और राख हूँ, फिर भी मैं यहोवा से एक और बार बोलने की गुस्ताखी कर रहा हूँ। 28 मान लो शहर में 50 नहीं, 45 नेक लोग हैं, तो क्या तू पाँच के कम होने से पूरा शहर नाश कर देगा?” परमेश्‍वर ने कहा, “नहीं। अगर मुझे 45 लोग भी नेक मिले, तो मैं उसे नाश नहीं करूँगा।”+

29 मगर अब्राहम ने एक बार फिर कहा, “मान लो वहाँ 40 लोग मिलते हैं।” परमेश्‍वर ने कहा, “मैं उन 40 की खातिर उस जगह का नाश नहीं करूँगा।” 30 अब्राहम ने फिर कहा, “हे यहोवा, तू मुझ पर भड़क न जाना।+ मैं फिर से पूछना चाहूँगा, मान लो वहाँ बस 30 लोग मिलते हैं।” तब परमेश्‍वर ने कहा, “अगर मुझे 30 भी मिले तो मैं नाश नहीं करूँगा।” 31 अब्राहम ने फिर कहा, “गुस्ताखी माफ हो यहोवा, अगर वहाँ सिर्फ 20 लोग मिलते हैं।” परमेश्‍वर ने कहा, “मैं उन 20 की खातिर उसका नाश नहीं करूँगा।” 32 अब्राहम ने कहा, “हे यहोवा, तू मुझ पर भड़क न जाना। बस एक आखिरी बार मुझे पूछने दे, अगर वहाँ सिर्फ दस लोग मिलते हैं।” परमेश्‍वर ने कहा, “मैं उन दस की खातिर भी उसका नाश नहीं करूँगा।” 33 यहोवा अब्राहम से बातचीत करने के बाद वहाँ से चला गया+ और अब्राहम अपने यहाँ लौट गया।

19 वे दोनों स्वर्गदूत जब सदोम पहुँचे तो तब तक शाम हो चुकी थी। लूत सदोम के फाटक पर बैठा हुआ था। जब उसने स्वर्गदूतों को देखा, तो वह उठकर उनसे मिलने गया और उसने ज़मीन पर गिरकर उन्हें प्रणाम किया।+ 2 लूत ने उनसे कहा, “साहिबो, मेहरबानी करके अपने दास के घर आओ और हमें तुम्हारे पैर धोने का मौका दो। आज रात मेरे यहाँ रुक जाओ और चाहो तो सुबह होते ही चले जाना।” मगर उन्होंने कहा, “नहीं, हम शहर के चौक में ही रात बिता लेंगे।” 3 लेकिन लूत उन्हें इतना मनाने लगा कि वे उसके साथ उसके घर चल दिए। लूत ने उनके लिए एक दावत तैयार की। उसने बिन-खमीर की रोटियाँ बनायीं और उन्होंने लूत के घर खाना खाया।

4 इससे पहले कि वे सोते, सदोम शहर के सारे आदमी, लड़कों से लेकर बूढ़ों तक सब लूत के घर आ धमके और उन्होंने चारों तरफ से उसका घर घेर लिया। 5 वे चिल्ला-चिल्लाकर लूत से कहने लगे, “कहाँ हैं वे आदमी जो आज रात तेरे घर आए थे? बाहर ला उन्हें। हमें उनके साथ संभोग करना है।”+

6 तब लूत घर से बाहर आया और उसने अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया। 7 उसने उनसे कहा, “मेरे भाइयो, मैं तुमसे बिनती करता हूँ, ऐसा दुष्ट काम मत करो। 8 देखो, मेरी दो कुँवारी बेटियाँ हैं। कहो तो मैं उन्हें तुम्हारे सामने लाता हूँ, तुम उनके साथ जो चाहो कर लो। मगर उन आदमियों को छोड़ दो क्योंकि वे मेरी छत तले* आए हैं।”+ 9 तब वे चिल्लाए, “चल हट यहाँ से!” और कहने लगे, “इसकी मजाल तो देखो! यह परदेसी बनकर हमारे यहाँ रहने आया था और अब हमारा न्यायी बन बैठा है। अब तेरी खैर नहीं, हम तेरा उनसे भी बुरा हाल करेंगे।” फिर उन्होंने लूत को धर-दबोचा और वे उसके घर का दरवाज़ा तोड़ने आगे बढ़े। 10 मगर तभी लूत के घर आए आदमियों ने अपना हाथ बढ़ाकर लूत को अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। 11 और उन्होंने घर के बाहर इकट्ठा सभी आदमियों को अंधा कर दिया। छोटे-बड़े, सब-के-सब अंधे हो गए और वे दरवाज़ा टटोलते-टटोलते थक गए।

12 फिर लूत के मेहमानों ने उससे कहा, “क्या यहाँ तेरा कोई और भी है? तेरे बेटे-बेटियाँ, दामाद जो भी हैं, सबको साथ लेकर इस इलाके से निकल जा! 13 हम इस इलाके को नाश करनेवाले हैं, क्योंकि यहोवा के सामने यहाँ के लोगों के बारे में शिकायतें इतनी बढ़ गयी हैं+ कि यहोवा ने हमें इस शहर का नाश करने भेजा है।” 14 तब लूत अपने दामादों के पास गया जो उसकी बेटियों से शादी करनेवाले थे और उन्हें समझाने लगा, “चलो-चलो, जल्दी करो! हमें फौरन यहाँ से भाग निकलना है। यहोवा इस शहर का नाश करनेवाला है!” मगर उसके दामादों को लगा कि वह मज़ाक कर रहा है।+

15 जब भोर होने लगी तो स्वर्गदूतों ने लूत से फुर्ती करायी और वे कहने लगे, “जल्दी कर! अपनी पत्नी और दोनों बेटियों को लेकर फौरन यहाँ से निकल जा, वरना तुम भी नाश हो जाओगे! इस शहर को जल्द ही इसके पापों की सज़ा मिलनेवाली है।”+ 16 मगर जब लूत देर करने लगा तो यहोवा ने उस पर दया की+ और वे आदमी उसका और उसकी पत्नी और दोनों बेटियों का हाथ पकड़कर शहर के बाहर ले गए।+ 17 वहाँ पहुँचते ही उन आदमियों में से एक ने कहा, “अपनी जान बचाकर भागो यहाँ से! तुम लोग पीछे मुड़कर मत देखना+ और इस पूरे इलाके+ में कहीं भी मत रुकना! भागकर उस पहाड़ी प्रदेश में चले जाओ, वरना तुम भी नाश हो जाओगे!”

18 तब लूत ने उनसे कहा, “हे यहोवा, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, मुझे वहाँ जाने के लिए न कह! 19 तूने अपने सेवक पर मेहरबानी की है। तूने मुझ पर महा-कृपा* करके मेरी जान बचायी है।+ मगर मैं उस पहाड़ी प्रदेश में नहीं भाग सकता क्योंकि मुझे डर है कि कहीं मेरे साथ कुछ बुरा न हो जाए और मैं अपनी जान गँवा बैठूँ।+ 20 देख, यह नगर कितना पास है और छोटा भी है। मैं वहाँ भागकर अपनी जान बचा सकता हूँ। अगर तू कहे तो क्या मैं वहाँ चला जाऊँ? वह बस एक छोटी-सी जगह है।” 21 तब उसने लूत से कहा, “ठीक है, मैं इस बात में भी तेरा लिहाज़ करता हूँ।+ जिस नगर के बारे में तूने कहा है, मैं उसे नाश नहीं करूँगा।+ 22 तू जल्दी से वहाँ भाग जा! क्योंकि जब तक तू वहाँ न पहुँचे, मैं कुछ नहीं कर सकता।”+ इसीलिए उस नगर का नाम सोआर*+ पड़ा।

23 जब लूत सोआर पहुँचा तब तक दिन चढ़ आया था। 24 तब यहोवा ने सदोम और अमोरा पर आग और गंधक बरसाना शुरू किया। हाँ, उन शहरों पर यहोवा की तरफ से आसमान से आग और गंधक बरसी।+ 25 इस तरह परमेश्‍वर ने उन शहरों को और उस पूरे इलाके को खाक में मिला दिया। वहाँ के सभी इंसान और पेड़-पौधे नाश हो गए।+ 26 लूत की पत्नी, जो उसके पीछे-पीछे चल रही थी, मुड़कर देखने लगी इसलिए वह नमक का खंभा बन गयी।+

27 अब्राहम सुबह-सुबह उठकर उस जगह गया, जहाँ पहले उसने यहोवा के सामने खड़े होकर उससे बात की थी।+ 28 वहाँ से उसने नीचे सदोम, अमोरा और आस-पास का पूरा इलाका देखा। क्या ही भयानक मंज़र था! धुएँ के ऐसे घने बादल उठ रहे थे मानो धधकते भट्ठे से धुआँ उठ रहा हो!+ 29 इस तरह, जब परमेश्‍वर ने वहाँ के शहरों का नाश किया तो उसने अब्राहम की बिनती का ध्यान रखते हुए लूत को उस जगह से दूर भेज दिया, जहाँ वह पहले रहता था।+

30 बाद में लूत ने सोआर छोड़ दिया क्योंकि वह उस नगर में रहने से डरने लगा।+ वह अपनी दोनों बेटियों के साथ पहाड़ी प्रदेश चला गया।+ वहाँ वे तीनों एक गुफा में रहने लगे। 31 लूत की बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, “हमारा पिता बूढ़ा हो गया है। और इस इलाके में ऐसा कोई आदमी नहीं जिससे हम दुनिया की रीत के मुताबिक शादी करें। 32 इसलिए आओ हम अपने पिता को दाख-मदिरा पिलाएँ ताकि उसके साथ सोएँ और उसी से उसका वंश बनाए रखें।”

33 उस रात उन्होंने अपने पिता को खूब दाख-मदिरा पिलायी। फिर बड़ी लड़की अपने पिता के पास गयी और उसके साथ सोयी। मगर उसके पिता को पता नहीं चला कि वह कब उसके साथ सोयी और कब उठकर चली गयी। 34 अगले दिन बड़ी ने छोटी से कहा, “आज रात भी हम अपने पिता को दाख-मदिरा पिलाते हैं। फिर तू जाकर उसके साथ सोना, जैसे कल रात मैं सोयी थी। इस तरह हम अपने पिता से उसका वंश बनाए रखेंगे।” 35 उस रात भी उन्होंने अपने पिता को खूब दाख-मदिरा पिलायी। फिर छोटी लड़की उसके पास गयी और उसके साथ सोयी। लूत को पता नहीं चला कि वह कब उसके साथ सोयी और कब उठकर चली गयी। 36 इस तरह लूत की दोनों बेटियाँ अपने पिता से गर्भवती हुईं। 37 बड़ी लड़की ने एक बेटे को जन्म दिया और उसका नाम मोआब+ रखा। मोआब से वे लोग निकले जो आज मोआबी कहलाते हैं।+ 38 छोटी लड़की ने भी एक बेटे को जन्म दिया और उसका नाम बेन-अम्मी रखा। बेन-अम्मी से वे लोग निकले जो आज अम्मोनी+ कहलाते हैं।

20 अब अब्राहम अपना+ पड़ाव उठाकर नेगेब की तरफ गया और कादेश+ और शूर+ के बीच रहने लगा। कुछ समय के लिए वह गरार+ में भी रहा।* 2 यहाँ भी अब्राहम अपनी पत्नी सारा के बारे में कहता था, “यह मेरी बहन है।”+ इसलिए गरार के राजा अबीमेलेक ने सारा को बुलवाकर अपने पास रख लिया।+ 3 बाद में रात को अबीमेलेक के सपने में परमेश्‍वर ने उससे कहा, “अब तेरी मौत तय है, क्योंकि तूने जिस औरत को अपने पास रख लिया,+ वह शादीशुदा है और किसी दूसरे आदमी की है।”+ 4 मगर अबीमेलेक ने सारा को छुआ तक नहीं था।* इसलिए उसने कहा, “हे यहोवा, क्या तू एक ऐसी जाति को मिटा देगा जो सचमुच बेकसूर* है? 5 क्या अब्राहम ने मुझसे नहीं कहा था कि यह मेरी बहन है? और क्या सारा ने भी नहीं कहा था कि यह मेरा भाई है? इसलिए मैंने जो भी किया साफ मन से किया, मेरा कोई गलत इरादा नहीं था।” 6 तब सच्चे परमेश्‍वर ने सपने में उससे कहा, “मैं जानता हूँ कि तूने जो भी किया साफ मन से किया। इसलिए मैंने तुझे रोक लिया कि तू मेरे खिलाफ कोई पाप न करे। और तुझे सारा को छूने तक नहीं दिया। 7 अब उस आदमी की पत्नी उसे लौटा दे क्योंकि वह एक भविष्यवक्‍ता है,+ वह तेरे लिए मिन्‍नत करेगा,+ तभी तू जीवित रहेगा। लेकिन अगर तू उसे न लौटाए, तो जान ले कि तू ज़रूर मर जाएगा और तेरे साथ-साथ तेरे सब लोग मर जाएँगे।”

8 अबीमेलेक तड़के सुबह उठा और अपने सभी दासों को बुलवाकर उन्हें सारा हाल कह सुनाया। यह सुनकर वे थर-थर काँपने लगे। 9 फिर अबीमेलेक ने अब्राहम को बुलवाकर उससे कहा, “यह तूने हमारे साथ क्या किया? मैंने तेरे खिलाफ क्या गुनाह किया कि तू मुझे और मेरे राज्य को इतने बड़े पाप का दोषी बनानेवाला था? तूने मेरे साथ ठीक नहीं किया।” 10 अबीमेलेक ने अब्राहम से फिर कहा, “आखिर तूने ऐसा क्यों किया?”+ 11 अब्राहम ने कहा, “मैंने सोचा कि यहाँ के लोगों में तो परमेश्‍वर का डर नहीं है, इसलिए वे मेरी पत्नी को हासिल करने के लिए मुझे मार डालेंगे।+ 12 और वैसे भी, सारा वाकई मेरी बहन है क्योंकि हम दोनों का पिता एक है, हमारी माँएँ अलग-अलग हैं। मैंने उससे शादी की।+ 13 इसलिए परमेश्‍वर के कहने पर जब मैंने अपने पिता का घर छोड़ा और मैं जगह-जगह सफर करने लगा,+ तो मैंने सारा से कहा कि हम जहाँ भी जाएँ, तू लोगों से कहना कि मैं तेरा भाई हूँ+ और इस तरह मेरे लिए अपने अटल प्यार का सबूत देना।”

14 तब अबीमेलेक ने अब्राहम को उसकी पत्नी सारा लौटा दी और उसे भेड़ें, गाय-बैल और दास-दासियाँ भी दिए। 15 फिर अबीमेलेक ने अब्राहम से कहा, “देख, मेरा सारा इलाका तेरे सामने है, तू जहाँ चाहे वहाँ रह।” 16 और सारा से उसने कहा, “मैं तेरे भाई+ को चाँदी के 1,000 टुकड़े दे रहा हूँ। यह तेरे लोगों के सामने और बाकी सबके सामने इस बात का सबूत है* कि तेरी इज़्ज़त पर कोई आँच नहीं आयी है, तू बेदाग है।” 17 तब अब्राहम सच्चे परमेश्‍वर से मिन्‍नत करने लगा और परमेश्‍वर ने अबीमेलेक और उसकी पत्नी और दासियों को चंगा कर दिया और उनकी फिर से संतान होने लगी। 18 यहोवा ने अब्राहम की पत्नी सारा की वजह से अबीमेलेक के घराने की सभी औरतों की कोख बंद कर दी थी।+

21 यहोवा ने सारा पर ध्यान दिया, ठीक जैसे उसने कहा था और यहोवा ने सारा की खातिर वही किया जिसका उसने वादा किया था।+ 2 इसलिए सारा गर्भवती हुई+ और उसने ठहराए समय पर अब्राहम के बुढ़ापे में उसे एक बेटा दिया, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने वादा किया था।+ 3 अब्राहम ने अपने इस बेटे का नाम इसहाक रखा जिसे सारा ने जन्म दिया।+ 4 इसहाक जब आठ दिन का हुआ तो अब्राहम ने उसका खतना किया, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी।+ 5 इसहाक के जन्म के वक्‍त अब्राहम 100 साल का था। 6 सारा ने कहा, “परमेश्‍वर ने मुझे हँसते-मुस्कुराते जीने की वजह दी है। अब मेरे बारे में जो कोई सुनेगा, उसके चेहरे पर भी हँसी खिल उठेगी।”* 7 उसने यह भी कहा, “किसी ने कभी अब्राहम से नहीं कहा होगा कि एक दिन सारा ज़रूर बच्चे खिलाएगी! मगर देखो, आज मैंने अब्राहम को उसके बुढ़ापे में एक बेटा दिया है।”

8 बच्चा बड़ा होने लगा। जब उसका दूध छुड़ाने का दिन आया तो अब्राहम ने एक बड़ी दावत रखी। 9 सारा गौर करती रही कि उसकी मिस्री दासी हाजिरा का लड़का,+ जो उसे अब्राहम से हुआ था, इसहाक की खिल्ली उड़ा रहा था।+ 10 इसलिए उसने अब्राहम से कहा, “इस दासी और इसके लड़के को घर से निकाल दे क्योंकि इसका लड़का मेरे बेटे इसहाक के साथ वारिस कभी नहीं बनेगा!”+ 11 मगर सारा की यह बात अब्राहम को बहुत बुरी लगी क्योंकि वह भी उसका बेटा था।+ 12 तब परमेश्‍वर ने अब्राहम से कहा, “सारा तेरी दासी और उस लड़के के बारे में जो कह रही है, उससे तुझे बुरा नहीं लगना चाहिए। सारा की बात मान, क्योंकि तुझसे जिस वंश* का वादा किया गया है वह इसहाक से आएगा।+ 13 और जहाँ तक तेरी दासी के लड़के+ की बात है, उससे भी मैं एक जाति बनाऊँगा+ क्योंकि वह तेरा बेटा है।”

14 इसलिए अब्राहम सुबह-सुबह उठा और उसने रोटी और पानी से भरी एक मशक ली। उसने ये चीज़ें हाजिरा के कंधे पर रखकर उसे और लड़के को घर से भेज दिया।+ हाजिरा अपने लड़के को लेकर निकल पड़ी और बेरशेबा+ के पास वीराने में भटकती फिरी। 15 कुछ समय बाद जब मशक का सारा पानी खत्म हो गया, तो हाजिरा ने अपने लड़के को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया। 16 फिर वह कुछ दूर, तीर के टप्पे-भर की दूरी पर जाकर बैठ गयी क्योंकि उसने कहा, “मैं अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकती।” वह वहीं बैठी फूट-फूटकर रोने लगी।

17 तब परमेश्‍वर ने उसके लड़के की पुकार सुनी+ और स्वर्ग से परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत ने हाजिरा को आवाज़ देकर कहा,+ “क्या हुआ हाजिरा, तू क्यों रो रही है? मत डर। तेरा बेटा जो वहाँ है उसकी पुकार परमेश्‍वर ने सुनी है। 18 अब उठ, जाकर अपने लड़के को उठा और उसे सहारा दे क्योंकि मैं उससे एक बड़ी जाति बनाऊँगा।”+ 19 तब परमेश्‍वर ने हाजिरा को एक कुआँ दिखाया और वह जाकर अपनी मशक में पानी भर लायी और उसने लड़के को पिलाया। 20 उस लड़के+ पर परमेश्‍वर का साया बना रहा। वह बड़ा होकर तीरंदाज़ बना और उसने अपनी ज़िंदगी वीराने में बितायी। 21 वह पारान वीराने+ में रहता था। उसकी माँ ने एक मिस्री लड़की से उसकी शादी करवायी।

22 उन्हीं दिनों अबीमेलेक अपने सेनापति पीकोल के साथ अब्राहम से मिला और उससे कहा, “हमने देखा है कि परमेश्‍वर हर काम में तेरा साथ देता है।+ 23 अब तू यहाँ मेरे सामने परमेश्‍वर की शपथ खाकर कह कि जैसे आज तक मैं तेरे साथ कृपा* से पेश आया हूँ वैसे तू भी मेरे साथ और मेरे देश के लोगों के साथ कृपा से पेश आएगा जिनके बीच तू रहता है।+ वादा कर कि तू यह शपथ कभी नहीं तोड़ेगा और मेरे साथ या मेरे बच्चों और मेरी आनेवाली पीढ़ियों के साथ छल नहीं करेगा।” 24 अब्राहम ने कहा, “हाँ, मैं शपथ खाता हूँ।”

25 फिर अब्राहम ने अपने कुएँ के बारे में अबीमेलेक से शिकायत की जिस पर अबीमेलेक के दासों ने ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया था।+ 26 अबीमेलेक ने उससे कहा, “सच कहता हूँ, मुझे तो पता ही नहीं यह सब किसने किया। आज तक मुझे किसी ने नहीं बताया, तूने भी नहीं।” 27 तब अब्राहम ने अबीमेलेक को कुछ भेड़ें और गाय-बैल दिए और उन दोनों ने आपस में एक करार किया। 28 अब्राहम ने झुंड में से सात मादा मेम्नों को अलग किया। 29 तब अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, “तूने ये सात मेम्ने अलग क्यों किए?” 30 अब्राहम ने कहा, “तू ये सात मेम्ने मेरे हाथ से कबूल कर ताकि ये इस बात का सबूत ठहरें कि यह कुआँ मैंने खुदवाया है।” 31 अब्राहम ने उस जगह का नाम बेरशेबा* रखा+ क्योंकि वहाँ उन दोनों ने शपथ खायी थी। 32 इस तरह उन्होंने बेरशेबा में एक करार किया।+ इसके बाद अबीमेलेक और उसका सेनापति पीकोल, दोनों पलिश्‍तियों के देश+ लौट गए। 33 फिर अब्राहम ने बेरशेबा में एक झाऊ का पेड़ लगाया और वहाँ यहोवा का नाम पुकारा+ जो युग-युग का परमेश्‍वर है।+ 34 अब्राहम एक लंबे समय* तक पलिश्‍तियों के देश में रहा।*+

22 इसके बाद सच्चे परमेश्‍वर ने अब्राहम को परखा।+ उसने अब्राहम को पुकारा, “अब्राहम!” अब्राहम ने जवाब दिया, “हाँ, प्रभु।” 2 परमेश्‍वर ने कहा, “क्या तू मेरी एक बात मानेगा? अपने इकलौते बेटे इसहाक+ को ले जिससे तू बेहद प्यार करता है+ और सफर करके मोरिया देश+ जा। वहाँ एक पहाड़ पर, जो मैं तुझे बताऊँगा, इसहाक की होम-बलि चढ़ा।”

3 अब्राहम सुबह-सुबह उठा और उसने अपने गधे पर काठी कसी। उसने अपने बेटे इसहाक के साथ-साथ दो सेवकों को लिया। अब्राहम ने होम-बलि के लिए लकड़ियाँ चीरीं और फिर वे सब उस जगह के लिए निकल पड़े जो सच्चे परमेश्‍वर ने उसे बतायी थी। 4 सफर के तीसरे दिन अब्राहम को दूर से वह जगह दिखने लगी जहाँ उसे जाना था। 5 तब उसने अपने सेवकों से कहा, “तुम दोनों यहीं गधे के पास रुको, मैं और लड़का वहाँ जाकर परमेश्‍वर की उपासना करके आते हैं।”

6 अब्राहम ने होम-बलि की लकड़ियाँ लीं और अपने बेटे इसहाक के कंधे पर रखीं। फिर अब्राहम ने आग और छुरा लिया और वे दोनों साथ चलते गए। 7 रास्ते में इसहाक ने अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता!” अब्राहम बोला, “हाँ, बेटा!” इसहाक ने कहा, “आग और लकड़ी तो हम ले आए हैं, मगर होम-बलि के लिए भेड़ कहाँ है?” 8 अब्राहम ने कहा, “बेटे, होम-बलि के लिए भेड़+ का इंतज़ाम परमेश्‍वर खुद करेगा।” और वे दोनों साथ चलते गए।

9 चलते-चलते वे उस जगह पहुँचे जो सच्चे परमेश्‍वर ने अब्राहम को बतायी थी। वहाँ अब्राहम ने एक वेदी बनायी और उस पर लकड़ियाँ बिछायीं। फिर उसने अपने बेटे इसहाक के हाथ-पैर बाँध दिए और उसे लकड़ियों पर लिटा दिया।+ 10 फिर अब्राहम ने अपने बेटे को मारने के लिए हाथ बढ़ाकर छुरा उठाया।+ 11 मगर तभी स्वर्ग से यहोवा के स्वर्गदूत ने उसे आवाज़ दी, “अब्राहम, अब्राहम!” तब अब्राहम बोला, “हाँ, प्रभु!” 12 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “लड़के को मत मार, उसे कुछ मत कर। अब मैं जान गया हूँ कि तू सचमुच परमेश्‍वर का डर माननेवाला इंसान है, क्योंकि तू अपने इकलौते बेटे तक को मुझे देने से पीछे नहीं हटा।”+ 13 फिर अब्राहम ने देखा कि कुछ ही दूरी पर एक मेढ़ा है, जिसके सींग घनी झाड़ियों में फँसे हुए हैं। अब्राहम उस मेढ़े को पकड़ लाया और उसने अपने बेटे की जगह उसकी होम-बलि चढ़ायी। 14 अब्राहम ने उस जगह का नाम यहोवा-यिरे* रखा। इसलिए आज भी यह कहा जाता है: “यहोवा के पहाड़ पर इंतज़ाम हो जाएगा।”+

15 यहोवा के स्वर्गदूत ने दूसरी बार स्वर्ग से अब्राहम को आवाज़ दी 16 और कहा, “यहोवा कहता है, ‘तू अपने बेटे को, अपने इकलौते बेटे को भी देने से पीछे नहीं हटा।+ तेरे इस काम की वजह से मैं अपनी शपथ खाकर कहता हूँ+ 17 कि मैं तुझे ज़रूर आशीष दूँगा और तेरे वंश* को इतना बढ़ाऊँगा कि वह आसमान के तारों और समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसा अनगिनत हो जाएगा।+ और तेरा वंश* अपने दुश्‍मनों के शहरों* को अपने अधिकार में कर लेगा।+ 18 और तेरे वंश*+ के ज़रिए धरती की सभी जातियाँ आशीष पाएँगी,* क्योंकि तूने मेरी आज्ञा मानी है।’”+

19 इसके बाद अब्राहम अपने सेवकों के पास आया और फिर वे सब बेरशेबा+ लौट गए। और अब्राहम बेरशेबा में ही रहा।

20 कुछ समय बाद अब्राहम को यह खबर मिली: “तेरे भाई नाहोर को भी उसकी पत्नी मिलका से बेटे हुए हैं।+ 21 पहलौठा ऊज़ है, फिर उसका भाई बूज, उसके बाद कमूएल जिसका बेटा अराम है, 22 फिर केसेद, हज़ो, पिलदाश, यिदलाप और बतूएल।”+ 23 बतूएल ही रिबका+ का पिता था। ये आठ लड़के अब्राहम के भाई नाहोर को उसकी पत्नी मिलका से हुए। 24 नाहोर को उसकी उप-पत्नी रूमाह से भी बेटे हुए। वे थे तेबह, गहम, तहश और माका।

23 सारा की कुल उम्र 127 साल थी।+ 2 उसकी मौत कनान देश+ के किरयत-अरबा+ यानी हेब्रोन+ में हुई और अब्राहम मातम मनाने लगा, वह बहुत रोया। 3 फिर वह अपनी पत्नी की लाश के पास से उठा और उसने हित्त+ के बेटों के पास जाकर कहा, 4 “मैं तो एक परदेसी हूँ, दूसरे देश से यहाँ रहने आया हूँ।+ क्या तुम मुझे अपनी पत्नी को दफनाने के लिए थोड़ी जगह दोगे?” 5 हित्त के बेटों ने अब्राहम से कहा, 6 “देख मालिक, तू परमेश्‍वर का चुना हुआ प्रधान* है।+ तू चाहे तो हमारी कब्रों में से सबसे बढ़िया कब्र ले सकता है। हममें से कोई तुझे अपनी कब्र देने से मना नहीं करेगा। तू जहाँ चाहे वहाँ अपनी पत्नी को दफना ले।”

7 उनके ऐसा कहने पर अब्राहम उठकर हित्त+ के बेटों के आगे झुका, जो वहाँ के निवासी थे। 8 अब्राहम ने उनसे कहा, “अगर तुम्हें मंज़ूर है कि मैं अपनी पत्नी को तुम्हारे यहाँ दफनाऊँ, तो तुमसे मेरी एक गुज़ारिश है। मेरी तरफ से सोहर के बेटे एप्रोन से बिनती करो 9 कि वह मुझे अपनी मकपेला की गुफा बेच दे जो उसकी ज़मीन के कोने पर है। मैं तुम सबके सामने उससे वह गुफा खरीदना चाहता हूँ। मैं उसकी पूरी कीमत देने के लिए तैयार हूँ, जितनी भी चाँदी लगेगी मैं दूँगा+ ताकि मेरे पास अपनी ज़मीन हो जिसमें मैं अपनी पत्नी को दफना सकूँ।”+

10 एप्रोन हित्त के बेटों के बीच बैठा था। इसलिए हित्ती एप्रोन ने उन बेटों के सामने और उन सबके सामने, जो शहर के फाटक पर मौजूद थे,+ अब्राहम से कहा, 11 “मालिक, मैं कुछ कहना चाहता हूँ। तू मुझसे गुफा ही नहीं, पूरी ज़मीन ले ले। मैं अपने लोगों के सामने तुझे देता हूँ। तू अपनी पत्नी को वहाँ दफना ले।” 12 तब अब्राहम ने वहाँ के उन निवासियों के आगे सिर झुकाया 13 और सबके सामने एप्रोन से कहा, “ठीक है, मैं तुझसे पूरी ज़मीन ले लूँगा, मगर उसकी कीमत देकर। जितनी भी चाँदी लगेगी, तुझे मुझसे लेनी होगी। तभी मैं वहाँ अपनी पत्नी को दफनाऊँगा।”

14 तब एप्रोन ने अब्राहम से कहा, 15 “वैसे देखा जाए तो मालिक, इस ज़मीन की कीमत 400 शेकेल* चाँदी है। मगर पैसे कहाँ भागे जा रहे हैं? तू जा, अपनी पत्नी को दफना ले।” 16 अब्राहम उतनी कीमत देने को राज़ी हो गया, जितनी एप्रोन ने हित्तियों के सामने बतायी थी। और उन दिनों व्यापारियों में जो तौल चलती थी उसके मुताबिक अब्राहम ने उसे 400 शेकेल* चाँदी तौलकर दे दी।+ 17 इस तरह यह तय हुआ कि एप्रोन की वह ज़मीन, जो मकपेला में ममरे के पास थी और उस ज़मीन में जो गुफा थी और जितने पेड़ थे, वह सब 18 अब्राहम के होंगे। यह लेन-देन हित्त के बेटों और उन सबके सामने हुआ जो शहर के फाटक पर मौजूद थे। 19 इसके बाद अब्राहम ने अपनी पत्नी सारा को मकपेला की गुफा में दफना दिया, जो कनान देश के ममरे यानी हेब्रोन के पास थी। 20 इस तरह हित्त के बेटों ने वह ज़मीन और गुफा अब्राहम के नाम कर दी ताकि वह अपनी पत्नी को वहाँ दफना सके।+

24 अब्राहम बूढ़ा हो गया था, उसकी उम्र काफी ढल चुकी थी और यहोवा ने उसे सब बातों में आशीष दी थी।+ 2 एक दिन अब्राहम ने अपने सबसे पुराने सेवक से, जो उसके घराने के सब कामों की देखरेख करता था,+ यह गुज़ारिश की: “तू अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रख 3 और स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खा कि तू मेरे बेटे के लिए कनानियों की कोई लड़की नहीं लाएगा जिनके देश में मैं रहता हूँ।+ 4 इसके बजाय, तुझे मेरे देश जाना होगा और इसहाक के लिए मेरे रिश्‍तेदारों+ में से एक लड़की लानी होगी।”

5 सेवक ने अब्राहम से कहा, “लेकिन अगर लड़की मेरे साथ इस देश में आने को तैयार नहीं हुई तो क्या मैं तेरे बेटे को उस देश में ले जाऊँ, जहाँ से तू आया है?”+ 6 इस पर अब्राहम ने कहा, “नहीं, मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ मत ले जाना।+ 7 स्वर्ग का परमेश्‍वर यहोवा, जो मुझे मेरे पिता के घर से और मेरे रिश्‍तेदारों के देश से यहाँ लाया है+ और जिसने मुझसे बात की और शपथ खाकर कहा,+ ‘मैं यह देश तेरे वंश+ को दूँगा,’+ वह अपने स्वर्गदूत को तेरे आगे-आगे भेजेगा+ और तू मेरे बेटे के लिए वहाँ+ से लड़की ढूँढ़ने में ज़रूर कामयाब होगा। 8 लेकिन अगर लड़की तेरे साथ आने को राज़ी न हुई, तो तू इस शपथ से छूट जाएगा। मगर तू मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ नहीं ले जाएगा।” 9 तब सेवक ने अपना हाथ अपने मालिक अब्राहम की जाँघ के नीचे रखा और शपथ खायी कि वह उसके कहे मुताबिक ही करेगा।+

10 फिर सेवक ने अपने मालिक के ऊँटों में से दस ऊँट और उसकी दी हुई हर तरह की बढ़िया-बढ़िया चीज़ें अपने साथ लीं और सफर के लिए रवाना हो गया। वह मेसोपोटामिया में नाहोर के शहर की तरफ चल पड़ा। 11 जब वह शहर के नज़दीक पहुँचा, तो वहाँ उसने एक कुएँ के पास ऊँटों को बिठा दिया। शाम का समय हो रहा था जब औरतें वहाँ कुएँ पर पानी भरने आया करती थीं। 12 अब्राहम के सेवक ने प्रार्थना की, “हे यहोवा, मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्‍वर, आज मैं जिस काम के लिए यहाँ आया हूँ उसे सफल कर दे और इस तरह मेरे मालिक के लिए अपने अटल प्यार का सबूत दे। 13 देख, मैं यहाँ पानी के सोते के पास खड़ा हूँ और शहर की औरतें पानी भरने आ रही हैं। 14 ऐसा हो कि मैं जिस लड़की से कहूँ, ‘क्या मुझे अपने घड़े से थोड़ा पानी पिलाएगी?’ और वह मुझसे कहे, ‘ज़रूर, और मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ वह वही लड़की हो जिसे तूने अपने सेवक इसहाक के लिए चुना है। तेरे ऐसा करने से मैं जान लूँगा कि मेरे मालिक के लिए तेरा प्यार अटल है।”

15 अब्राहम का सेवक अभी यह कह ही रहा था कि रिबका अपने कंधे पर घड़ा लिए शहर से बाहर उस जगह आयी। रिबका, बतूएल की बेटी थी+ और बतूएल, अब्राहम के भाई नाहोर+ और उसकी पत्नी मिलका+ का बेटा था। 16 रिबका एक कुँवारी लड़की थी, उसने किसी भी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखे थे। वह दिखने में बड़ी सुंदर थी। वह पानी भरने के लिए नीचे उतरकर पानी के सोते के पास गयी और अपना घड़ा भरकर ऊपर आयी। 17 तभी सेवक दौड़कर उसके पास गया और उससे कहा, “क्या मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी मिलेगा?” 18 लड़की ने कहा, “हाँ मालिक, ज़रूर।” उसने फौरन अपने कंधे से घड़ा उतारा और उसे पानी पिलाया। 19 सेवक को पानी देने के बाद वह बोली, “मैं तेरे ऊँटों को भी पानी पिलाऊँगी। वे जितना पीएँगे, मैं भर लाऊँगी।” 20 उसने फौरन घड़े का बचा हुआ पानी हौद में डाल दिया और कुएँ से पानी लाकर हौद में भरने लगी। वह तब तक भाग-भागकर पानी लाती रही, जब तक कि सारे ऊँट पी न चुके। 21 इस दौरान अब्राहम का सेवक वहाँ खड़ा बड़ी हैरत से उस लड़की को देखता रहा और मन-ही-मन सोचता रहा कि वह जिस काम के लिए यहाँ आया है क्या उसे यहोवा ने वाकई सफल कर दिया है।

22 जब सारे ऊँट पानी पी चुके तो सेवक ने उस लड़की के लिए सोने की एक नथ और दो कंगन निकाले। नथ का वज़न आधा शेकेल* था और कंगन का दस शेकेल।* 23 उसने लड़की से पूछा, “क्या मैं जान सकता हूँ, तू किसकी बेटी है? क्या तेरे पिता के घर हमें रात-भर के लिए जगह मिलेगी?” 24 लड़की ने कहा, “मैं बतूएल की बेटी हूँ+ और मेरे दादा-दादी का नाम नाहोर और मिलका है।”+ 25 उसने यह भी कहा, “हमारे यहाँ ठहरने के लिए काफी जगह है और जानवरों के लिए भरपूर चारा और पुआल भी है।” 26 तब सेवक ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर यहोवा को दंडवत किया 27 और कहा, “मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो क्योंकि उसने मेरे मालिक से प्यार* करना नहीं छोड़ा और उसका विश्‍वासयोग्य बना रहा। यहोवा ही है जो मुझे राह दिखाता हुआ मेरे मालिक के भाइयों के घर तक लाया।”

28 तब रिबका दौड़कर अपने घर गयी और उसने अपनी माँ को और घर के बाकी लोगों को सारा हाल कह सुनाया। 29 रिबका का एक भाई था, लाबान।+ लाबान दौड़कर उस आदमी से मिलने गया। 30 वह आदमी अब भी पानी के सोते के पास अपने ऊँटों के साथ खड़ा था। लाबान इसलिए दौड़कर गया क्योंकि उसने रिबका की नथ और कंगन देखे थे और रिबका की बातें सुनी थीं कि उस आदमी ने मुझसे ये-ये कहा। 31 लाबान ने वहाँ पहुँचते ही उस आदमी से कहा, “हे यहोवा के सेवक, तुझ पर वाकई उसकी आशीष है। तू यहाँ क्यों खड़ा है? मेरे घर चल, मैंने तेरे ठहरने का सारा इंतज़ाम कर दिया है। तेरे ऊँटों के लिए भी जगह तैयार है।” 32 तब वह सेवक लाबान के घर गया। और उसने* ऊँटों को खोला और उनके आगे चारा और पुआल डाला। फिर उसने सेवक और उसके साथ आए आदमियों को पैर धोने के लिए पानी दिया। 33 इसके बाद खाना परोसा गया, मगर सेवक ने कहा, “पहले मैं बताना चाहूँगा कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ, उसके बाद ही खाना खाऊँगा।” लाबान ने कहा, “हाँ-हाँ, ज़रूर बता।”

34 उसने कहा, “मैं अब्राहम का सेवक हूँ।+ 35 यहोवा ने मेरे मालिक को बहुत आशीष दी है। उसकी बदौलत मेरा मालिक हर तरह से मालामाल है, सोना-चाँदी, दास-दासियाँ, भेड़-बकरी, गाय-बैल, ऊँट, गधे सबकुछ है उसके पास।+ 36 इतना ही नहीं, मालिक की पत्नी सारा ने अपने बुढ़ापे में उसे एक बेटा दिया।+ और मालिक अपना सबकुछ अपने बेटे को दे देगा।+ 37 मालिक ने मुझे शपथ दिलाकर कहा है, ‘तू मेरे बेटे के लिए कनानियों की कोई लड़की नहीं लाएगा, जिनके देश में मैं रहता हूँ।+ 38 इसके बजाय, तू मेरे पिता के घराने और रिश्‍तेदारों के यहाँ जाएगा+ और वहाँ से मेरे बेटे के लिए लड़की लाएगा।’+ 39 तब मैंने मालिक से कहा, ‘अगर वह लड़की मेरे साथ आने को तैयार न हुई तो?’+ 40 मालिक ने मुझसे कहा, ‘यहोवा परमेश्‍वर, जिसके सामने मैं सही राह पर चलता आया हूँ,+ अपना स्वर्गदूत तेरे साथ भेजेगा+ और तुझे इस काम में ज़रूर कामयाबी देगा। तुझे मेरे बेटे के लिए मेरे पिता के घराने से, मेरे रिश्‍तेदारों+ के यहाँ से लड़की लानी होगी। 41 लेकिन अगर मेरे रिश्‍तेदार जिनके पास तू जा रहा है, तुझे अपनी लड़की न दें तो तू अपनी शपथ से छूट जाएगा।’+

42 फिर आज जब मैं पानी के सोते के पास पहुँचा तो मैंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की, ‘हे यहोवा, मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्‍वर, अगर तू चाहता है कि मैं जिस काम से यहाँ आया हूँ उसमें कामयाब होऊँ तो मेरी यह दुआ सुन ले। 43 मैं यहाँ पानी के सोते के पास खड़ा हूँ और ऐसा हो कि यहाँ पानी भरने के लिए आनेवाली जिस लड़की+ से मैं कहूँ, “क्या अपने घड़े से मुझे थोड़ा पानी पिलाएगी?” 44 और वह कहे, “ज़रूर और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी पानी भर लाऊँगी,” वह वही लड़की हो जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के बेटे के लिए चुना है।’+

45 मैं मन में यह कह ही रहा था कि मैंने देखा, रिबका अपने कंधे पर घड़ा लिए चली आ रही है। वह नीचे उतरकर पानी के सोते के पास गयी और पानी भरने लगी। फिर मैंने उससे कहा, ‘क्या मुझे थोड़ा पानी पिलाएगी?’+ 46 उसने फौरन कंधे से घड़ा उतारा और कहा, ‘ज़रूर+ और मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी।’ तब रिबका ने मुझे पानी पिलाया और इसके बाद मेरे ऊँटों को भी पानी दिया। 47 फिर मैंने उससे पूछा, ‘तू किसकी बेटी है?’ उसने कहा, ‘मैं बतूएल की बेटी हूँ और मेरे दादा-दादी का नाम नाहोर और मिलका है।’ जब मैंने यह सुना तो मैंने उसे नथ और कंगन पहनाए।+ 48 फिर मैंने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर अपने मालिक अब्राहम के परमेश्‍वर यहोवा को दंडवत किया और यहोवा की तारीफ की+ जिसने मुझे सही राह दिखायी और मुझे अपने मालिक के भाई के घर पहुँचाया ताकि मैं उसकी बेटी को अपने मालिक के बेटे के लिए ले जाऊँ। 49 अब फैसला तुम पर है, तुम चाहो तो अपनी बेटी देकर मेरे मालिक के लिए अपने अटल प्यार का और विश्‍वासयोग्य होने का सबूत दे सकते हो। अगर नहीं, तो बता दो ताकि मैं सोचूँ कि मुझे आगे क्या करना है।”*+

50 तब लाबान और बतूएल ने कहा, “यह सब यहोवा की तरफ से हुआ है। अब हम कौन होते हैं हाँ या न कहनेवाले?* 51 देख, रिबका तेरे सामने है। इसे तू ले जा सकता है ताकि यह तेरे मालिक के बेटे की पत्नी बने, ठीक जैसे यहोवा ने कहा है।” 52 यह सुनते ही अब्राहम के सेवक ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर यहोवा को दंडवत किया। 53 फिर उसने सोने-चाँदी के गहने और कपड़े निकाले और रिबका को दिए। उसने रिबका के भाई और उसकी माँ को भी कई कीमती चीज़ें दीं। 54 इसके बाद सेवक और उसके साथ आए आदमियों ने खाया-पीया और उस रात वे वहीं ठहरे।

सुबह होने पर सेवक ने कहा, “अब मुझे जाने की इजाज़त दो।” 55 तब रिबका के भाई और माँ ने उससे कहा, “लड़की को हमारे साथ कुछ दिन रहने दे, कम-से-कम दस दिन। इसके बाद उसे ले जाना।” 56 मगर सेवक ने कहा, “नहीं, अब मैं और नहीं रुक सकता। यहोवा की मदद से वह काम पूरा हो गया है जिसके लिए मैं आया था। अब मुझे इजाज़त दो कि मैं अपने मालिक के पास लौट जाऊँ।” 57 तब उन्होंने कहा, “क्यों न हम लड़की को बुलाकर उसी से पूछ लें कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाकर उससे पूछा, “क्या तू इस आदमी के साथ जाना चाहेगी?” उसने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 तब उन्होंने अपनी बहन रिबका+ और उसकी धाई*+ को, साथ ही अब्राहम के सेवक और उसके आदमियों को विदा किया। 60 उन्होंने यह कहकर रिबका को आशीर्वाद दिया, “प्यारी बहना, हमारी यह दुआ लेती जाना। तेरा वंश इतना बढ़े कि तू हज़ारों-लाखों की माँ कहलाए। तेरा वंश उन लोगों के शहरों* को अपने अधिकार में कर ले, जो उससे नफरत करते हैं।”+ 61 इसके बाद रिबका और उसकी दासियाँ ऊँटों पर सवार होकर उस आदमी के पीछे-पीछे निकल पड़ीं। इस तरह वह सेवक रिबका को साथ लेकर अपने रास्ते चल दिया।

62 इधर इसहाक, जो नेगेब में रहता था,+ बेर-लहै-रोई+ से आ रहा था। 63 शाम के झुटपुटे का समय था और वह मनन करता हुआ+ मैदान में टहल रहा था। जब उसने नज़रें उठायीं तो देखा कि सामने से ऊँटों का कारवाँ चला आ रहा है! 64 और जब रिबका ने इसहाक को देखा तो वह फौरन ऊँट से नीचे उतरी। 65 उसने सेवक से पूछा, “वह जो आदमी हमसे मिलने आ रहा है, कौन है?” सेवक ने कहा, “वह मेरा मालिक है।” तब रिबका ने ओढ़नी से अपना सिर ढक लिया। 66 फिर सेवक ने इसहाक को अपने सफर की पूरी कहानी सुनायी, उसे बताया कि उसने क्या-क्या किया। 67 इसके बाद इसहाक, रिबका को अपनी माँ सारा के तंबू में लाया।+ इस तरह उसने रिबका को अपनी पत्नी बनाया और उसे रिबका से प्यार हो गया+ और वह अपनी माँ की मौत के गम से उबर पाया।+

25 अब्राहम ने दोबारा शादी की। उसने कतूरा नाम की एक औरत को अपनी पत्नी बनाया। 2 कतूरा से अब्राहम के ये बेटे हुए: जिमरान, योक्षान, मदान, मिद्यान,+ यिशबाक और शूह।+

3 योक्षान के बेटे थे शीबा और ददान।

ददान के बेटे थे असूरी, लतूशी और लुम्मी।

4 मिद्यान के बेटे थे एपा, एपेर, हानोक, अबीदा और एलदा।

ये सब कतूरा के बेटे थे।

5 आगे चलकर अब्राहम ने अपना सबकुछ इसहाक को दे दिया।+ 6 मगर अपनी उप-पत्नियों से हुए बेटों को उसने तोहफे दिए और जीते-जी उन्हें इसहाक से बहुत दूर, पूरब देश में भेज दिया।+ 7 अब्राहम कुल मिलाकर 175 साल जीया। 8 वह अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह खुश था। एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जीने के बाद उसकी मौत हो गयी और उसे दफनाया गया।* 9 अब्राहम को उसके बेटे इसहाक और इश्‍माएल ने मकपेला की गुफा में दफनाया, जो ममरे के पास हित्ती सोहर के बेटे एप्रोन की ज़मीन में थी।+ 10 वह ज़मीन अब्राहम ने हित्तियों से खरीदी थी। वहाँ सारा को दफनाया गया था+ और अब्राहम को भी वहीं दफनाया गया। 11 अब्राहम की मौत के बाद भी परमेश्‍वर उसके बेटे इसहाक को आशीष देता रहा।+ इसहाक बेर-लहै-रोई+ के पास रहता था।

12 यह इश्‍माएल+ के बारे में ब्यौरा है। इश्‍माएल अब्राहम का वह बेटा था जो सारा की मिस्री दासी हाजिरा+ से पैदा हुआ था।

13 ये थे इश्‍माएल के बेटे जिनके नाम से उनके अपने-अपने कुल चले: इश्‍माएल का पहलौठा नबायोत,+ फिर केदार,+ अदबेल, मिबसाम,+ 14 मिशमा, दूमा, मस्सा, 15 हदद, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा। 16 ये थे इश्‍माएल के 12 बेटे जो अपने-अपने कुल के प्रधान थे।+ हर कुल की अपनी एक अलग बस्ती और छावनी* थी जो अपने प्रधान के नाम से जानी जाती थी। 17 इश्‍माएल कुल मिलाकर 137 साल जीया। इसके बाद उसकी मौत हो गयी और उसे दफनाया गया।* 18 इश्‍माएल के वंशज हवीला+ से लेकर दूर अश्‍शूर तक के इलाके में रहा करते थे। हवीला शूर+ के पास है और शूर, मिस्र के पास है। इश्‍माएल के वंशज अपने सब भाइयों के आस-पास रहते थे।*+

19 ये हैं अब्राहम के बेटे इसहाक+ के परिवार में हुई घटनाएँ।

इसहाक अब्राहम का बेटा था। 20 जब इसहाक 40 साल का था तब उसने रिबका से शादी की। रिबका बतूएल की बेटी+ और लाबान की बहन थी जो पद्दन-अराम के रहनेवाले अरामी लोग थे। 21 रिबका बाँझ थी इसलिए इसहाक उसके लिए यहोवा से मिन्‍नतें करता रहता था। यहोवा ने उसकी सुनी और उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई। 22 रिबका की कोख में पल रहे लड़के एक-दूसरे से लड़ने लगे।+ इसलिए उसने कहा, “इस तरह दुख झेलने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।” फिर उसने यहोवा से इसकी वजह पूछी। 23 यहोवा ने उससे कहा, “तेरी कोख में दो लड़के* पल रहे हैं,+ उनसे दो राष्ट्र निकलेंगे और उन दोनों के रास्ते अलग-अलग होंगे।+ एक राष्ट्र दूसरे से ज़्यादा ताकतवर होगा+ और बड़ा छोटे की सेवा करेगा।”+

24 जब रिबका के दिन पूरे हुए तो उसके जुड़वाँ लड़के हुए, ठीक जैसे उससे कहा गया था! 25 गर्भ से जो पहला लड़का निकला वह एकदम लाल था। उसके शरीर पर इतने बाल थे मानो उसने रोएँदार कपड़ा पहना हो।+ इसलिए उन्होंने उसका नाम एसाव*+ रखा। 26 फिर उसका भाई पैदा हुआ जो उसकी एड़ी पकड़े हुए बाहर निकला।+ इसलिए उसका नाम याकूब* रखा गया।+ जब रिबका ने इन लड़कों को जन्म दिया, तब इसहाक 60 साल का था।

27 एसाव बड़ा होकर एक कुशल शिकारी बना।+ वह जंगल में रहा करता था, जबकि याकूब एक सीधा-सादा* इंसान था और तंबुओं में रहा करता था।+ 28 इसहाक एसाव से प्यार करता था, क्योंकि वह उसके लिए शिकार जो मारकर लाता था। मगर रिबका याकूब से प्यार करती थी।+ 29 एक दिन याकूब मसूर की दाल पका रहा था और उसी वक्‍त एसाव थका-हारा जंगल से लौटा। 30 उसने याकूब से कहा, “तू जो लाल-लाल चीज़ पका रहा है, थोड़ी-सी मुझे दे। जल्दी कर! मैं भूख से मरा जा रहा हूँ!”* इसीलिए एसाव का नाम एदोम* भी पड़ा।+ 31 तब याकूब ने कहा, “पहले तू मुझे अपना पहलौठे का अधिकार बेच।”+ 32 एसाव ने कहा, “जब मेरी जान ही निकली जा रही है, तो मैं पहलौठे का अधिकार रखकर क्या करूँगा?” 33 याकूब ने कहा, “नहीं, पहले तू शपथ खा!” तब एसाव ने शपथ खायी और अपना पहलौठे का अधिकार याकूब को बेच दिया।+ 34 इसके बाद याकूब ने एसाव को दाल और रोटी दी और वह खा-पीकर अपनी राह चलता बना। इस तरह एसाव ने अपने पहलौठे के अधिकार को तुच्छ जाना।

26 अब देश में अकाल पड़ा। ऐसा ही अकाल पहली बार अब्राहम के दिनों में पड़ा था।+ इसलिए इसहाक गरार में पलिश्‍तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। 2 वहाँ यहोवा ने इसहाक के सामने प्रकट होकर उससे कहा, “तू नीचे मिस्र मत जाना। इसके बजाय उस देश में जाकर रहना जो मैं तुझे बताऊँगा। 3 तू इस देश में परदेसी बनकर रह।+ मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगा और तुझे आशीष दूँगा, क्योंकि मैं तुझे और तेरे वंश* को ये सभी इलाके दूँगा।+ और मैं अपना यह वादा पूरा करूँगा जो मैंने तेरे पिता अब्राहम से शपथ खाकर किया था:+ 4 ‘मैं तेरे वंश* को इतना बढ़ाऊँगा कि वह आसमान के तारों जैसा अनगिनत हो जाएगा+ और मैं तेरे वंश* को ये सभी इलाके दूँगा।+ तेरे वंश* के ज़रिए धरती की सभी जातियाँ आशीष पाएँगी।’*+ 5 मैं अपना यह वादा इसलिए पूरा करूँगा, क्योंकि अब्राहम ने मेरी आज्ञा मानी और हमेशा वही किया जो मैंने उससे चाहा था, वह मेरा हुक्म, मेरी विधियाँ और मेरे कानून मानता रहा।”+ 6 इसलिए इसहाक गरार में ही रहा।+

7 वहाँ के आदमी इसहाक से उसकी पत्नी के बारे में बार-बार पूछते थे कि यह कौन है और वह कहता था, “यह मेरी बहन है।”+ वह उन्हें यह बताने से डरता था कि रिबका उसकी पत्नी है। रिबका बहुत सुंदर थी+ इसलिए इसहाक ने सोचा, “अगर मैं बताऊँगा कि रिबका मेरी पत्नी है तो हो सकता है यहाँ के आदमी रिबका को हासिल करने के लिए मुझे मार डालें।” 8 इसहाक और रिबका को वहाँ रहते कुछ समय बीत गया था। एक दिन जब पलिश्‍तियों का राजा अबीमेलेक अपनी खिड़की से बाहर देख रहा था तो उसने देखा कि इसहाक रिबका को प्यार कर रहा है।*+ 9 उसने फौरन इसहाक को बुलवाकर उससे कहा, “वह औरत तो तेरी पत्नी है! फिर तूने यह क्यों कहा कि वह तेरी बहन है?” इसहाक ने कहा, “मुझे डर था कि कहीं उसकी वजह से लोग मुझे मार न डालें।”+ 10 अबीमेलेक ने कहा, “यह तूने हमारे साथ क्या किया?+ मेरे लोगों में से कोई तेरी पत्नी के साथ गलत काम कर सकता था। हम तेरी वजह से कितने बड़े पाप के दोषी बन जाते!”+ 11 फिर अबीमेलेक ने सब लोगों को आज्ञा दी: “अगर किसी ने इस आदमी या इसकी पत्नी को हाथ भी लगाया, तो उसे मार डाला जाएगा!”

12 फिर इसहाक वहाँ की ज़मीन में बीज बोने लगा। उस साल उसने जितना बोया उसका 100 गुना पाया, क्योंकि यहोवा की आशीष उस पर थी।+ 13 इसहाक दिनों-दिन अमीर होता गया और एक वक्‍त ऐसा आया कि वह बेशुमार दौलत का मालिक बन गया। 14 उसके पास भेड़ों और गाय-बैलों के झुंड-के-झुंड हो गए और बहुत सारे दास-दासियाँ भी।+ मगर यह देखकर पलिश्‍तियों को जलन होने लगी।

15 इसलिए पलिश्‍तियों ने उन सारे कुओं को मिट्टी से भर दिया जो उसके पिता अब्राहम ने अपने सेवकों से खुदवाए थे।+ 16 फिर अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, “तू हमारे इलाके से चला जा, क्योंकि तू हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हो गया है।” 17 तब इसहाक वह जगह छोड़कर गरार+ की घाटी में चला गया और वहाँ डेरा डालकर रहने लगा। 18 वहाँ बहुत पहले अब्राहम ने कुछ कुएँ खुदवाए थे मगर उसकी मौत के बाद पलिश्‍तियों ने उन्हें बंद कर दिया था।+ अब इसहाक ने उन्हीं कुओं को फिर से खुदवाया और उनके वही नाम रखे जो उसके पिता ने रखे थे।+

19 जब इसहाक के दास पानी की तलाश में घाटी में खुदाई कर रहे थे, तो उन्हें साफ पानी का एक कुआँ मिला। 20 मगर गरार में रहनेवाले चरवाहे इसहाक के चरवाहों से यह कहकर झगड़ने लगे: “यह कुआँ हमारा है!” तब इसहाक ने उस कुएँ का नाम एसेक* रखा, क्योंकि उन्होंने उसके साथ झगड़ा किया था। 21 फिर इसहाक के दास दूसरा कुआँ खोदने लगे, मगर गरार के चरवाहों ने उस पर भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्ना* रखा। 22 बाद में इसहाक वहाँ से दूसरी जगह गया और उसने वहाँ भी एक कुआँ खोदा। मगर इस बार गरार के चरवाहों ने उससे झगड़ा नहीं किया। इसलिए उसने उस कुएँ का नाम रहोबोत* रखा और कहा, “यहोवा ने हमें बहुत बड़ी जगह दी है ताकि हम फलते-फूलते जाएँ।”+

23 इसके बाद इसहाक वहाँ से बेरशेबा+ गया। 24 उस रात यहोवा उसके सामने प्रकट हुआ और उससे कहा, “मैं तेरे पिता अब्राहम का परमेश्‍वर हूँ।+ तुझे किसी बात से डरने की ज़रूरत नहीं+ क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। मैं अपने सेवक अब्राहम की खातिर तुझे आशीष दूँगा और तेरे वंश को कई गुना बढ़ाऊँगा।”+ 25 तब इसहाक ने वहाँ एक वेदी बनायी और यहोवा का नाम पुकारा।+ वहाँ उसने अपना तंबू गाड़ा+ और उसके सेवकों ने एक कुआँ खोदा।

26 बाद में अबीमेलेक गरार से इसहाक के पास आया। उसके साथ उसका निजी सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल भी था।+ 27 इसहाक ने उन लोगों से कहा, “तुम लोगों ने मुझसे नफरत की और मुझे अपने यहाँ से निकाल दिया था। अब क्यों आए हो मेरे पास?” 28 जवाब में उन्होंने कहा, “हमने साफ देखा है कि यहोवा हमेशा से तेरे साथ रहा है।+ इसलिए हमने तेरे सामने यह बात रखने का फैसला किया है कि अगर तुझे एतराज़ न हो, तो हम एक-दूसरे के साथ शांति का रिश्‍ता बनाए रखने की शपथ खाएँ और आपस में करार करें+ 29 कि तू हमारे साथ कुछ बुरा नहीं करेगा, जैसे हमने भी तेरा कुछ बुरा नहीं किया। क्योंकि जब हमने तुझे अपने यहाँ से भेजा तो तुझे शांति से विदा किया और इस तरह तेरे साथ भलाई की। तुझ पर वाकई यहोवा की आशीष है।” 30 फिर इसहाक ने उन लोगों के लिए दावत रखी और उन्होंने खाया-पीया। 31 सुबह वे जल्दी उठे और इसहाक और अबीमेलेक ने एक-दूसरे से शपथ खायी।+ इसके बाद इसहाक ने उन्हें शांति से विदा किया और वे वहाँ से चले गए।

32 उसी दिन इसहाक के दासों ने आकर उस कुएँ के बारे में उसे खबर दी जो उन्होंने खोदा था।+ उन्होंने कहा, “हमें पानी मिल गया!” 33 इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम शिबा रखा। और वहाँ जो शहर है वह आज तक बेरशेबा+ नाम से ही जाना जाता है।

34 जब एसाव 40 साल का था, तो उसने यहूदीत और बाशमत नाम की दो हित्ती लड़कियों से शादी की। यहूदीत का पिता बएरी था और बाशमत का पिता एलोन था।+ 35 उन हित्ती लड़कियों की वजह से इसहाक और रिबका का जीवन बहुत दुखी हो गया।+

27 इसहाक बूढ़ा हो गया था और उसकी आँखें इतनी कमज़ोर हो गयीं कि उसे कुछ दिखायी नहीं देता था। एक दिन उसने अपने बड़े बेटे एसाव को अपने पास बुलाकर कहा,+ “मेरे बेटे।” एसाव ने कहा, “हाँ, मेरे पिता।” 2 इसहाक ने कहा, “देख, मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ। क्या पता, कब मौत आ जाए। 3 इसलिए तू अपने हथियार, अपना तीर-कमान और तरकश लेकर जंगल में जा और मेरे लिए शिकार मारकर ला।+ 4 और वह लज़ीज़ गोश्‍त पका जो मुझे बहुत पसंद है ताकि मैं खाऊँ और मरने से पहले तुझे आशीर्वाद दूँ।”

5 जब इसहाक एसाव से यह सब कह रहा था तो रिबका ने उसकी बातें सुन लीं। एसाव शिकार मारकर लाने के लिए जंगल चला गया।+ 6 इधर रिबका ने अपने बेटे याकूब से कहा,+ “मैंने अभी-अभी तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना, 7 ‘मेरे लिए शिकार मारकर ला और लज़ीज़ गोश्‍त पका ताकि मैं खाऊँ और मरने से पहले यहोवा को गवाह मानकर तुझे आशीर्वाद दूँ।’+ 8 इसलिए बेटा याकूब, मेरी बात ध्यान से सुन और मैं जो-जो कहूँ, वह कर।+ 9 तू पहले जा और बकरियों के झुंड से दो बढ़िया बच्चे चुनकर ले आ। मैं तेरे पिता के लिए बिलकुल वैसा ही लज़ीज़ गोश्‍त बनाऊँगी जैसा उसे पसंद है। 10 फिर तू उसे ले जाकर अपने पिता को देना ताकि वह खाए और अपनी मौत से पहले तुझे आशीर्वाद दे।”

11 याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, “मगर एसाव के शरीर पर तो बाल-ही-बाल हैं,+ जबकि मेरे शरीर पर न के बराबर हैं। 12 अगर मेरे पिता ने मुझे छूकर पहचान लिया तो?+ वह यही सोचेगा कि मैं उसका मज़ाक बना रहा हूँ। फिर मैं आशीर्वाद पाने के बदले खुद पर शाप ले आऊँगा।” 13 तब उसकी माँ ने कहा, “ऐसा मत कह बेटा। तेरा शाप मुझे लग जाए। अभी तू इस बात की चिंता मत कर। तू बस वही कर जो मैं कह रही हूँ। अब जा और बकरी के बच्चे ले आ।”+ 14 तब याकूब ने बकरी के दो बच्चे लाकर अपनी माँ को दिए और उसकी माँ ने वैसा ही लज़ीज़ गोश्‍त तैयार किया जैसा उसके पिता को पसंद था। 15 इसके बाद रिबका ने अपने बड़े बेटे एसाव के सबसे बढ़िया कपड़े लिए, जो रिबका के पास घर में थे और अपने छोटे बेटे याकूब को पहना दिए।+ 16 उसने याकूब के हाथों पर और गरदन के उस हिस्से पर जहाँ बाल नहीं थे, बकरी के बच्चों की खाल लपेट दी।+ 17 फिर उसने याकूब के हाथ में वह लज़ीज़ गोश्‍त और रोटी दी जो उसने पकायी थी।+

18 याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया और उससे कहा, “मेरे पिता!” इसहाक ने कहा, “तू कौन है बेटा?” 19 याकूब ने कहा, “मैं एसाव हूँ, तेरा पहलौठा।+ तूने जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया। मैं तेरे लिए शिकार का गोश्‍त पकाकर लाया हूँ। अब ज़रा उठ और इसे खा। फिर मुझे आशीर्वाद देना।”+ 20 इसहाक ने अपने बेटे से कहा, “बेटा, तुझे इतनी जल्दी शिकार कैसे मिल गया?” याकूब ने कहा, “तेरा परमेश्‍वर यहोवा उसे मेरे सामने ले आया।” 21 तब इसहाक ने उससे कहा, “बेटा, ज़रा नज़दीक आ। मैं तुझे छूकर देख लूँ कि तू मेरा एसाव ही है या कोई और है।”+ 22 याकूब अपने पिता के पास गया और इसहाक ने उसे छूकर देखा। इसहाक ने कहा, “आवाज़ तो याकूब की लग रही है, मगर हाथ एसाव के हैं।”+ 23 याकूब के हाथों पर एसाव की तरह बाल थे, इसलिए इसहाक उसे पहचान नहीं पाया और उसे एसाव समझकर आशीर्वाद दिया।+

24 इसके बाद इसहाक ने पूछा, “तू सचमुच मेरा एसाव ही है न?” उसने कहा, “हाँ।” 25 इसहाक ने कहा, “तूने जो शिकार का गोश्‍त बनाया है, ला मुझे दे ताकि मैं खाऊँ और तुझे आशीर्वाद दूँ।” तब उसने अपने पिता को गोश्‍त दिया और उसने खाया। उसने उसे दाख-मदिरा भी दी और उसने पी। 26 फिर इसहाक ने उससे कहा, “बेटा, मेरे पास आ और मुझे चूम।”+ 27 तब वह इसहाक के पास आया और उसे चूमा और इसहाक को एसाव के कपड़ों की महक आयी।+ तब इसहाक ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा,

“देख, मेरे बेटे की महक उस मैदान की महक की तरह है जिसे यहोवा ने आशीष दी है। 28 सच्चे परमेश्‍वर से मेरी यही दुआ है कि वह तुझे आकाश की ओस,+ धरती की उपजाऊ ज़मीन+ और बहुतायत में अनाज और नयी-नयी दाख-मदिरा दे।+ 29 देश-देश के लोग तेरी सेवा करें और सभी राष्ट्र तेरे सामने अपना सिर झुकाएँ। तू अपने भाइयों का मालिक हो और तेरे भाई तेरे सामने सिर झुकाएँ।+ जो कोई तुझे शाप दे वह शापित ठहरे और जो कोई तुझे आशीर्वाद दे उसे आशीर्वाद मिले।”+

30 जैसे ही इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना खत्म किया और याकूब उसके पास से निकला, एसाव शिकार से लौट आया।+ 31 एसाव ने भी लज़ीज़ गोश्‍त बनाया और उसे लेकर अपने पिता के पास आया। उसने अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, उठ और अपने बेटे के शिकार का गोश्‍त खा और फिर मुझे आशीर्वाद दे।” 32 तब इसहाक ने कहा, “तू कौन है?” उसने कहा, “मैं एसाव हूँ, तेरा बेटा, तेरा पहलौठा।”+ 33 यह सुनकर इसहाक बुरी तरह काँपने लगा और उसने कहा, “फिर वह कौन था जो तुझसे पहले मेरे लिए शिकार मारकर लाया था? उसने मुझे गोश्‍त पकाकर दिया और मैंने खाकर उसे आशीर्वाद भी दे दिया। अब तो आशीर्वाद उसी का हो गया!”

34 जैसे ही एसाव ने यह सुना वह दुख के मारे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा। उसने अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे, मुझे भी!”+ 35 मगर इसहाक ने कहा, “तेरे भाई ने आकर मुझसे छल किया और वह आशीर्वाद ले गया जो तुझे मिलना था।” 36 एसाव ने कहा, “कैसा धोखेबाज़ है वह! पहले तो मेरा पहलौठे का अधिकार छीन लिया+ और अब मेरा आशीर्वाद भी ले गया!+ दो-दो बार मेरी जगह ले ली।+ उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? नाम भी तो याकूब* है, दूसरों की चीज़ें हड़पनेवाला!” फिर वह अपने पिता से कहने लगा, “क्या तेरे पास मेरे लिए कोई भी आशीर्वाद नहीं बचा?” 37 इसहाक ने जवाब दिया, “देख, मैंने उसे तेरा मालिक ठहराया है+ और उसके सभी भाइयों को उसका सेवक। मैंने उसे आशीर्वाद दिया है कि उसके पास खाने-पीने के लिए हमेशा अनाज और नयी दाख-मदिरा हो।+ अब तुझे देने के लिए मेरे पास बचा ही क्या मेरे बेटे?”

38 एसाव ने अपने पिता से कहा, “क्या तेरे पास सिर्फ यही एक आशीर्वाद था? नहीं मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे, मुझे भी!” यह कहकर एसाव फूट-फूटकर रोने लगा।+ 39 उसके पिता इसहाक ने कहा,

“देख, तेरा बसेरा धरती की उपजाऊ ज़मीन से कोसों दूर होगा और वहाँ आकाश की ओस नहीं पड़ेगी।+ 40 तू अपनी तलवार के दम पर जीएगा+ और अपने भाई की गुलामी करेगा।+ लेकिन जब तुझसे गुलामी का यह जुआ उठाना और बरदाश्‍त नहीं होगा, तब तू अपनी गरदन से यह जुआ तोड़ फेंकेगा।”+

41 इसके बाद से एसाव अपने मन में याकूब के लिए नफरत पालने लगा, क्योंकि याकूब ने पिता से आशीर्वाद ले लिया था।+ एसाव खुद से कहता था, “बस कुछ ही समय की बात है, मेरे पिता की मौत हो जाएगी,*+ फिर मैं अपने भाई याकूब को जान से मार डालूँगा।” 42 जब एसाव की यह बात रिबका को बतायी गयी, तो उसने फौरन अपने छोटे बेटे याकूब को बुलवाया और कहा, “देख, तेरा भाई तुझसे बदला लेने के लिए तुझे मार डालने की सोच रहा है!* 43 इसलिए बेटा, जैसा मैं कहती हूँ वैसा कर। तू यहाँ से हारान भाग जा, मेरे भाई लाबान के घर।+ 44 और कुछ दिन वहीं रह जब तक कि तेरे भाई का गुस्सा शांत नहीं हो जाता। 45 जब उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा और वह भूल जाएगा कि तूने उसके साथ क्या किया, तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा लूँगी। लेकिन अगर तू यहीं रहा, तो हो सकता है मैं तुम दोनों को एक-साथ खो बैठूँ!”

46 इसके बाद रिबका इसहाक से बार-बार कहती रही, “इन हित्ती लड़कियों की वजह से मुझे ज़िंदगी से नफरत हो गयी है।+ अब अगर याकूब भी इस देश की हित्ती लड़कियों में से किसी को ले आया तो मुझसे बरदाश्‍त नहीं होगा, मेरा मर जाना ही बेहतर होगा।”+

28 इसलिए इसहाक ने याकूब को बुलाकर उसे आशीर्वाद दिया और उसे यह आज्ञा दी: “तू कनान देश की किसी लड़की से शादी मत करना।+ 2 इसके बजाय, तू अपने नाना बतूएल के घर पद्दन-अराम जा और अपने मामा लाबान की किसी बेटी+ से शादी कर। 3 सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर तुझे आशीष देगा जिससे तू फूलेगा-फलेगा और तेरी बहुत-सी संतान होंगी। और तेरे वंशजों से कई गोत्रों की एक बहुत बड़ी मंडली बनेगी।+ 4 और जो आशीष उसने अब्राहम को दी थी+ वही आशीष तुझे और तेरे वंश को देगा और तू इस देश पर अधिकार करेगा जहाँ तू परदेसी बनकर रह रहा है और जो उसने अब्राहम को दिया था।”+

5 फिर इसहाक ने याकूब को विदा किया और याकूब लाबान के घर पद्दन-अराम के लिए निकल पड़ा। लाबान, अरामी बतूएल का बेटा+ और याकूब और एसाव की माँ रिबका का भाई था।+

6 एसाव ने देखा कि इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया और पद्दन-अराम भेजा ताकि वह वहाँ की किसी लड़की से शादी करे। एसाव ने गौर किया कि इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देते वक्‍त उसे यह आज्ञा दी: “तू कनान देश की किसी लड़की से शादी मत करना”+ 7 और याकूब अपने माँ-बाप की आज्ञा मानकर पद्दन-अराम के लिए रवाना हो गया।+ 8 यह सब देखकर एसाव को एहसास हुआ कि उसके पिता इसहाक को कनान की लड़कियों से कितनी घृणा है।+ 9 इसलिए वह अब्राहम के बेटे इश्‍माएल के यहाँ गया और उसने इश्‍माएल की बेटी महलत से शादी की जो नबायोत की बहन थी। इस तरह एसाव ने अपनी दो पत्नियों के अलावा एक और शादी की।+

10 याकूब बेरशेबा से निकला और हारान की तरफ बढ़ता गया।+ 11 सफर करते-करते वह एक जगह पहुँचा और उसने वहीं रात बिताने की सोची क्योंकि सूरज ढल गया था। उसने वहाँ से एक पत्थर लिया और उस पर सिर रखकर वहीं लेट गया।+ 12 फिर उसे एक सपना आया और उसने देखा कि धरती पर एक सीढ़ी थी जो इतनी लंबी थी कि वह ऊपर स्वर्ग तक पहुँच रही थी और परमेश्‍वर के स्वर्गदूत सीढ़ी पर चढ़ और उतर रहे थे।+ 13 फिर उसने देखा कि सीढ़ी के बिलकुल ऊपर यहोवा था। उसने याकूब से कहा,

“मैं तेरे दादा अब्राहम का और तेरे पिता इसहाक का परमेश्‍वर यहोवा हूँ।+ यह देश, जिसकी ज़मीन पर तू लेटा हुआ है, मैं तुझे और तेरे वंश* को दूँगा।+ 14 तेरा वंश* धूल के कणों की तरह अनगिनत हो जाएगा।+ तू उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्‍चिम, चारों दिशाओं में फैल जाएगा। तेरे और तेरे वंश* के ज़रिए धरती के सारे कुल ज़रूर आशीष पाएँगे।*+ 15 मैं तेरे साथ हूँ और जहाँ-जहाँ तू जाएगा मैं तेरी हिफाज़त करूँगा और एक दिन तुझे वापस इस देश में ले आऊँगा।+ मैं तेरा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा और तुझसे जो वादा किया था उसे पूरा करूँगा।”+

16 तब याकूब नींद से जाग उठा और उसने कहा, “वाकई, इस जगह पर यहोवा मौजूद है और मैं यह बात नहीं जानता था।” 17 याकूब पर डर छा गया और उसने कहा, “यह कोई मामूली जगह नहीं है! यह पवित्र जगह है। यह परमेश्‍वर का घर ही हो सकता है।+ यही स्वर्ग का द्वार है।”+ 18 फिर याकूब सुबह जल्दी उठा और उसने वह पत्थर लिया जिस पर वह सिर रखकर सोया था। उसने उस पत्थर को एक यादगार के तौर पर खड़ा किया और उस पर तेल उँडेला।+ 19 उसने उस जगह का नाम बेतेल* रखा। लेकिन पहले उस शहर का नाम लूज था।+

20 फिर याकूब ने परमेश्‍वर से यह मन्‍नत मानी: “अगर तू हर कदम पर मेरा साथ दे, सफर में मेरी हिफाज़त करता रहे, मुझे खाने के लिए रोटी और पहनने के लिए कपड़े देता रहे 21 और अगर मैं सही-सलामत अपने पिता के घर लौट आया, तो हे यहोवा, मैं जान जाऊँगा कि तूने खुद को मेरा परमेश्‍वर साबित किया है। 22 और यह पत्थर जिसे मैंने यादगार के तौर पर खड़ा किया है, परमेश्‍वर का घर ठहरेगा।+ और मैं वादा करता हूँ कि तेरी दी हुई हर चीज़ का दसवाँ हिस्सा तुझे ज़रूर अर्पित करूँगा।”

29 इसके बाद याकूब वहाँ से आगे बढ़ा और सफर करते-करते पूरब के देश में पहुँचा। 2 वहाँ उसने मैदान में एक कुआँ देखा जिसके आस-पास भेड़ों के तीन झुंड बैठे थे। इस कुएँ से चरवाहे अकसर अपनी भेड़ों को पानी पिलाया करते थे। कुएँ के मुँह पर एक बड़ा-सा पत्थर रखा हुआ था। 3 जब भेड़ों के सारे झुंड वहाँ इकट्ठा हो जाते, तो चरवाहे कुएँ के मुँह से पत्थर हटाकर उन्हें पानी पिलाते थे। इसके बाद वे फिर से कुएँ का मुँह पत्थर से ढक देते थे।

4 याकूब ने वहाँ जो चरवाहे थे उनसे पूछा, “भाइयो, तुम कहाँ के रहनेवाले हो?” उन्होंने कहा, “हम हारान से हैं।”+ 5 फिर उसने पूछा, “क्या तुम नाहोर+ के पोते लाबान+ को जानते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, हम जानते हैं।” 6 उसने कहा, “उसके क्या हाल-चाल हैं?” उन्होंने कहा, “वह बिलकुल ठीक है। वह देख, उसकी बेटी राहेल!+ अपनी भेड़ें लेकर यहीं आ रही है।” 7 फिर याकूब ने उनसे कहा, “तुम अपनी भेड़ों को इतनी जल्दी बाड़े में क्यों ले जा रहे हो? अभी तो दोपहर ही हुई है। तुम इन्हें पानी पिलाकर थोड़ी देर और क्यों नहीं चरा लेते?” 8 चरवाहों ने उससे कहा, “जब तक सारे झुंड नहीं आ जाते तब तक हमें कुएँ से पत्थर हटाकर अपनी भेड़ों को पानी पिलाने की इजाज़त नहीं है। सबके आने के बाद ही पत्थर हटाया जाएगा और हम भेड़ों को पानी दे सकेंगे।”

9 याकूब उन चरवाहों से बात कर ही रहा था कि तभी राहेल अपने पिता की भेड़ें लेकर वहाँ आयी। राहेल भेड़ें चराया करती थी। 10 जब याकूब ने देखा कि उसके मामा लाबान की बेटी राहेल भेड़ें लेकर वहाँ आयी है, तो वह फौरन कुएँ के पास गया। उसने कुएँ के मुँह से पत्थर हटाया और अपने मामा की भेड़ों को पानी पिलाया। 11 फिर याकूब ने राहेल को चूमा और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। 12 उसने राहेल को बताया कि वह उसके पिता का रिश्‍तेदार* और रिबका का बेटा है। तब राहेल दौड़कर अपने पिता के पास गयी और उसे यह खबर दी।

13 जैसे ही लाबान+ ने अपने भाँजे याकूब के आने की खबर सुनी, वह दौड़कर उससे मिलने गया। लाबान ने याकूब को गले लगाया और उसे चूमा। फिर वह याकूब को अपने घर ले आया। और याकूब ने लाबान को अपना सारा हाल कह सुनाया। 14 तब लाबान ने उससे कहा, “तू मेरा अपना खून है।”* इसलिए याकूब उसके साथ पूरा एक महीना रहा।

15 फिर लाबान ने याकूब से कहा, “भले ही तू मेरा रिश्‍तेदार* है,+ फिर भी मैं तुझसे मुफ्त में काम नहीं लेना चाहता। बोल, तू क्या मज़दूरी लेना चाहेगा?”+ 16 लाबान की दो बेटियाँ थीं। बड़ी का नाम लिआ था और छोटी का राहेल।+ 17 लिआ की आँखों में कोई खास आकर्षण नहीं था, जबकि राहेल इतनी खूबसूरत थी कि उसका रंग-रूप देखते ही बनता था। 18 याकूब को राहेल से प्यार हो गया था, इसलिए उसने लाबान से कहा, “मैं तुझसे तेरी छोटी बेटी राहेल का हाथ माँगता हूँ। मैं उसके लिए तेरे यहाँ सात साल काम करने को तैयार हूँ।”+ 19 लाबान ने कहा, “मुझे मंज़ूर है। अपनी बेटी का हाथ किसी गैर को देने से अच्छा है कि मैं तुझे दूँ। तू मेरे साथ ही रह।” 20 याकूब ने राहेल के लिए सात साल काम किया।+ मगर ये सात साल उसके लिए ऐसे बीत गए मानो सात दिन हों क्योंकि वह राहेल से बहुत प्यार करता था।

21 सात साल बीतने पर याकूब ने लाबान से कहा, “मेरी मज़दूरी के दिन पूरे हो गए हैं, अब लड़की मुझे दे दे ताकि मैं उसे अपनी पत्नी बनाऊँ।”* 22 तब लाबान ने शादी की दावत रखी और अपने यहाँ के सभी लोगों को बुलाया। 23 लेकिन उस शाम लाबान अपनी छोटी बेटी राहेल के बजाय बड़ी बेटी लिआ को याकूब के पास ले आया ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना ले। 24 लाबान ने अपनी बेटी लिआ की सेवा के लिए उसे अपनी दासी जिल्पा भी दी।+ 25 जब सुबह हुई तो याकूब ने देखा कि यह तो लिआ है! उसने जाकर लाबान से कहा, “यह तूने मेरे साथ क्या किया? क्या मैंने तेरे यहाँ राहेल के लिए काम नहीं किया था? फिर तूने मुझे क्यों धोखा दिया?”+ 26 लाबान ने कहा, “हमारे यहाँ ऐसा दस्तूर नहीं कि बड़ी से पहले छोटी की शादी करा दें। 27 तू यह हफ्ता इस लड़की के साथ खुशियाँ मना ले। फिर मैं तुझे दूसरी लड़की भी दे दूँगा, मगर उसके लिए तुझे सात साल और काम करना होगा।”+ 28 याकूब ने उसकी बात मान ली और एक हफ्ता लिआ के साथ खुशियाँ मनायीं। बाद में लाबान ने उसे अपनी छोटी बेटी राहेल भी दे दी। 29 लाबान ने राहेल की सेवा के लिए उसे अपनी दासी बिल्हा+ भी दी।

30 याकूब ने राहेल के साथ भी संबंध रखे। वह लिआ से ज़्यादा राहेल से प्यार करता था और उसने लाबान के यहाँ सात साल और काम किया।+ 31 जब यहोवा ने देखा कि लिआ को उतना प्यार नहीं मिल रहा है जितना राहेल को,* तो उसने लिआ की कोख खोल दी+ जबकि राहेल बाँझ रही।+ 32 लिआ गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। उसने यह कहकर उसका नाम रूबेन*+ रखा कि “यहोवा ने मेरे मन की तड़प देखी है,+ अब मेरा पति ज़रूर मुझसे प्यार करने लगेगा।” 33 लिआ दोबारा गर्भवती हुई और उसका एक बेटा हुआ। उसने कहा, “यहोवा ने मेरी फरियाद सुन ली कि मुझे अपने पति का प्यार नहीं मिल रहा इसलिए उसने मुझे एक और बेटा दिया।” लिआ ने इस लड़के का नाम शिमोन*+ रखा। 34 लिआ एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। उसने कहा, “अब मेरे पति को ज़रूर मुझसे लगाव हो जाएगा क्योंकि मैंने उसे तीन-तीन बेटे दिए हैं।” इसलिए उसने तीसरे बेटे का नाम लेवी*+ रखा। 35 लिआ का फिर से गर्भ ठहरा और उसका एक और लड़का हुआ। उसने कहा, “इस बार मैं यहोवा की तारीफ करूँगी।” उसने अपने चौथे बेटे का नाम यहूदा*+ रखा। इसके बाद लिआ के बच्चे होने बंद हो गए।

30 जब राहेल ने देखा कि अब तक उसका एक भी बच्चा नहीं हुआ, तो वह अपनी बहन से जलने लगी। वह याकूब से कहने लगी, “मुझे भी बच्चे दे, वरना मैं मर जाऊँगी।” 2 यह सुनकर याकूब राहेल पर भड़क उठा और उसने कहा, “जब परमेश्‍वर ने तेरी कोख बंद कर रखी है* तो तू मुझे क्यों दोष दे रही है? क्या मैं परमेश्‍वर हूँ?” 3 तब राहेल ने कहा, “मैं तुझे अपनी दासी बिल्हा+ देती हूँ, तू उसके साथ सो ताकि वह मेरे लिए बच्चे जने* और मैं भी माँ कहलाऊँ।” 4 तब राहेल ने याकूब को अपनी दासी बिल्हा दी ताकि वह उसकी पत्नी बने। फिर याकूब ने उसके साथ संबंध रखे।+ 5 बिल्हा गर्भवती हुई और कुछ समय बाद उसने याकूब को एक बेटा दिया। 6 तब राहेल ने कहा, “परमेश्‍वर ने न्यायी बनकर मेरा इंसाफ किया है। उसने मेरी दुआ सुन ली और मुझे एक बेटा दिया।” इसलिए उसने उस लड़के का नाम दान*+ रखा। 7 राहेल की दासी बिल्हा एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने याकूब को एक और बेटा दिया। 8 तब राहेल ने कहा, “मैंने अपनी बहन से कुश्‍ती लड़ने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया और आखिरकार मैं जीत गयी!” इसलिए उसने इस बच्चे का नाम नप्ताली*+ रखा।

9 जब लिआ ने देखा कि उसके बच्चे होने बंद हो गए हैं, तो उसने भी याकूब को अपनी दासी जिल्पा दी ताकि वह उसकी पत्नी बने।+ 10 और लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब को एक बेटा दिया। 11 इस पर लिआ ने कहा, “यह तो कमाल हो गया!” उसने इस लड़के का नाम गाद*+ रखा। 12 इसके बाद लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब को एक और बेटा दिया। 13 तब लिआ ने कहा, “आज मेरी खुशी की सीमा नहीं! अब से ज़रूर औरतें मुझे सुखी कहा करेंगी।”+ इसलिए उसने इस लड़के का नाम आशेर*+ रखा।

14 गेहूँ की कटाई का मौसम था। एक दिन रूबेन+ जब मैदान में चल रहा था तो उसे कुछ दूदाफल* मिले। उसने ये फल लाकर अपनी माँ लिआ को दिए। फिर राहेल ने लिआ से कहा, “क्या तू मुझे अपने बेटे के लाए कुछ दूदाफल देगी?” 15 लिआ ने कहा, “तू मेरे पति को पहले ही ले चुकी है,+ क्या यह कम है जो अब तेरी नज़र मेरे बेटे के लाए दूदाफलों पर है?” जवाब में राहेल ने कहा, “अच्छा तो ऐसा कर, आज की रात तू मेरे पति के साथ सो जा, बस बदले में अपने बेटे के लाए कुछ दूदाफल मुझे दे दे।”

16 शाम को जब याकूब खेत से लौट रहा था, तो लिआ उससे मिलने गयी और कहने लगी, “आज तू मेरे साथ सोएगा, क्योंकि मैंने तुझे अपने बेटे के दूदाफल के बदले किराए पर लिया है। हाँ, मैंने तेरे लिए किराए का दाम चुकाया है।” इसलिए उस रात याकूब, लिआ के साथ सोया। 17 परमेश्‍वर ने लिआ की प्रार्थना सुनकर उसका जवाब दिया और वह गर्भवती हुई और उसने याकूब को पाँचवाँ बेटा दिया। 18 लिआ ने कहा, “मैंने अपने पति को दासी दी थी, इसलिए परमेश्‍वर ने मुझे मेरी मज़दूरी* दी है।” इसलिए लिआ ने अपने इस बेटे का नाम इस्साकार*+ रखा। 19 लिआ एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने याकूब को छठा बेटा दिया।+ 20 लिआ ने कहा, “परमेश्‍वर ने मुझे बढ़िया तोहफा दिया है, अब तो मेरा पति मुझे नज़रअंदाज़ नहीं करेगा। मैंने उसे छ:-छ: बेटे दिए हैं,+ इसलिए वह मुझे ज़रूर बरदाश्‍त करेगा।”+ उसने इस लड़के का नाम जबूलून*+ रखा। 21 बाद में लिआ की एक बेटी भी हुई जिसका नाम उसने दीना+ रखा।

22 आखिरकार परमेश्‍वर ने राहेल की हालत पर ध्यान दिया। उसने राहेल की दुआ सुन ली और उसकी कोख खोल दी।+ 23 वह गर्भवती हुई और उसका एक बेटा हुआ। तब उसने कहा, “देखो, परमेश्‍वर ने मेरी बदनामी दूर कर दी!”+ 24 इसलिए राहेल ने अपने बेटे का नाम यूसुफ*+ रखा और कहा, “यहोवा ने मुझे एक और बेटा दिया है।”

25 जब राहेल ने यूसुफ को जन्म दिया तो उसके कुछ ही समय बाद याकूब ने लाबान से कहा, “अब मैं तुझसे विदा लेना चाहता हूँ ताकि मैं अपने घर और अपने देश लौट जाऊँ।+ 26 मुझे मेरी पत्नियाँ और मेरे बच्चे दे दे जिनके लिए मैंने तेरे यहाँ काम किया। तू अच्छी तरह जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की।”+ 27 तब लाबान ने उससे कहा, “मैं तुझसे बिनती करता हूँ, तू मत जा, मेरे साथ ही रह। मैंने शकुन विचारकर* जाना है कि तेरी वजह से ही यहोवा मुझे इतनी आशीषें दे रहा है।” 28 उसने याकूब से यह भी कहा, “तू मज़दूरी में जो भी माँगेगा, मैं देने को तैयार हूँ।”+ 29 याकूब ने उससे कहा, “तू जानता है कि तेरे यहाँ सेवा करने में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। और मैंने तेरी भेड़-बकरियों की कितनी अच्छी देखभाल की।+ 30 मेरे आने से पहले तेरे पास बहुत कम जानवर थे, मगर जब से मैं आया यहोवा ने तुझे कितनी आशीषें दीं, तेरी भेड़-बकरियों की गिनती दिन-ब-दिन बढ़ती गयी। अब अगर सारी ज़िंदगी मैं तेरी सेवा करता रहा तो अपने परिवार के बारे में कब सोचूँगा?”+

31 तब लाबान ने उससे कहा, “बता मैं तुझे क्या दूँ?” याकूब ने कहा, “मैं तुझसे कुछ नहीं चाहता! बस तू मेरी एक बात मान ले, तो मैं तेरी भेड़-बकरियों को चराने और उनकी हिफाज़त करने का काम करता रहूँगा।+ 32 आज हम दोनों जाकर तेरे पूरे झुंड का मुआयना करते हैं। फिर तू अपने झुंड में से धब्बेदार और चितकबरी भेड़ों को, गहरे भूरे रंग के मेढ़ों को और धब्बेदार और चितकबरी बकरियों को अलग कर लेना। और आगे चलकर जो भी धब्बेदार, चितकबरे और गहरे भूरे रंग के बच्चे पैदा होंगे, सिर्फ उन्हीं को मैं मज़दूरी में लूँगा।+ 33 अगर किसी दिन तू मेरी मज़दूरी की भेड़-बकरियाँ देखने आया तो तू मेरी नेकी* का सबूत साफ देख सकेगा। मेरे उन जानवरों में तुझे चितकबरी या धब्बेदार बकरियों और गहरे भूरे रंग के मेढ़ों के अलावा कोई और भेड़-बकरी नहीं मिलेगी। अगर मिली तो वह चोरी की समझी जाएगी।”

34 तब लाबान ने कहा, “ठीक है! तूने जैसा कहा हम वैसा ही करते हैं।”+ 35 फिर उसी दिन लाबान ने अपने झुंड में से सभी चितकबरे और धारीदार बकरे, चितकबरी और धब्बेदार बकरियाँ, यहाँ तक कि वे भी जिन पर ज़रा-सा सफेद दाग था और गहरे भूरे रंग के मेढ़े, सब अलग करके अपने बेटों को दिए कि वे उनकी देखभाल करें। 36 अब लाबान के पास जो भेड़-बकरियाँ बच गयी थीं वे उसने याकूब को दीं और याकूब इनकी देखरेख का काम करने लगा। लाबान ने अपने झुंड और याकूब के झुंड के बीच तीन दिन के सफर की दूरी रखी।

37 फिर याकूब ने सिलाजीत, बादाम और चिनार पेड़ की हरी डालियाँ लीं और उन्हें कहीं-कहीं इस तरह छीला कि उनके अंदर की सफेदी, धब्बों के रूप में दिखायी देने लगी। 38 इसके बाद उसने ये छिली हुई छड़ियाँ पानी की हौदियों में खड़ी कर दीं ताकि जब भेड़-बकरियाँ वहाँ पानी पीने आएँ तो इनके सामने सहवास करें।

39 फिर ऐसा हुआ कि भेड़-बकरियाँ उन छड़ियों के सामने सहवास करतीं। वे गाभिन होतीं और उनसे धारीदार, धब्बेदार और चितकबरे बच्चे पैदा होते। 40 याकूब ने इन बच्चों को झुंड की उन बाकी भेड़-बकरियों से अलग किया जो लाबान के हिस्से की थीं। और उसने लाबान की भेड़-बकरियों का मुँह धारीदार और गहरे भूरे रंग के जानवरों की तरफ मोड़ा। फिर उसने अपनी भेड़-बकरियों को अलग किया ताकि वे उन भेड़-बकरियों में न मिलें जो लाबान की थीं। 41 जब भी मोटी-ताज़ी भेड़-बकरियों के सहवास का समय आता तो याकूब पानी की हौदियों में छड़ियाँ खड़ी कर देता था ताकि उन छड़ियों के सामने वे सहवास करें। 42 लेकिन जो भेड़-बकरियाँ कमज़ोर थीं उनके सामने वह छड़ियाँ नहीं रखता था। इसलिए लाबान के हिस्से में कमज़ोर भेड़-बकरियाँ ही आतीं जबकि याकूब की भेड़-बकरियाँ मोटी-ताज़ी होतीं।+

43 इस तरह याकूब बहुत अमीर हो गया और उसके पास बहुत-से दास-दासियाँ, भेड़-बकरियाँ, ऊँट और गधे हो गए।+

31 कुछ समय बाद याकूब ने सुना कि लाबान के बेटे उसके बारे में कह रहे हैं, “याकूब ने हमारे पिता का सबकुछ हड़प लिया है। हमारे पिता की जायदाद से ही उसने इतनी दौलत बटोरी है।”+ 2 और याकूब ने लाबान के चेहरे से भाँप लिया कि वह अब पहले जैसा नहीं रहा, वह उसके साथ रूखा व्यवहार कर रहा है।+ 3 आखिरकार, एक दिन यहोवा ने याकूब से कहा, “तू अपने पुरखों और रिश्‍तेदारों के देश लौट जा+ और मैं आगे भी तेरे साथ रहूँगा।” 4 फिर याकूब ने राहेल और लिआ को खबर भेजकर उन्हें उस मैदान में बुलवाया जहाँ वह अपनी भेड़-बकरियों की देखरेख कर रहा था। 5 फिर उसने उन दोनों से कहा,

“मैं देख रहा हूँ कि आजकल तुम्हारा पिता मुझसे रूखा व्यवहार कर रहा है।+ मगर मेरे पिता के परमेश्‍वर ने हमेशा मेरा साथ दिया है।+ 6 तुम दोनों अच्छी तरह जानती हो कि मैंने कैसे खून-पसीना एक करके तुम्हारे पिता की सेवा की।+ 7 फिर भी तुम्हारे पिता ने मेरे साथ धोखा करने की कोशिश की। उसने एक बार नहीं, दस बार मेरी मज़दूरी बदली। मगर परमेश्‍वर ने उसे मेरा कुछ भी नुकसान नहीं करने दिया। 8 जब तुम्हारा पिता मुझसे कहता, ‘तेरी मज़दूरी धब्बेदार भेड़-बकरियाँ होंगी,’ तो पूरा झुंड धब्बेदार बच्चे पैदा करता। और जब वह कहता, ‘अब से तेरी मज़दूरी धारीदार भेड़-बकरियाँ हुआ करेंगी,’ तो पूरा झुंड धारीदार बच्चे पैदा करता।+ 9 मेरी इस कामयाबी में परमेश्‍वर का हाथ है, वह मानो तुम्हारे पिता के झुंड से भेड़-बकरियाँ लेकर मेरे झुंड में मिलाता रहा। 10 और हाल ही में जब भेड़-बकरियों के सहवास का समय आया तो मैंने सपने में देखा कि मेरे झुंड के जो बकरे बकरियों से सहवास कर रहे थे वे धारीदार, चितकबरे और धब्बेदार थे।+ 11 तब सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत ने सपने में मुझे पुकारा, ‘याकूब!’ और मैंने जवाब दिया, ‘हाँ, प्रभु।’ 12 उसने कहा, ‘ज़रा अपनी आँखें उठाकर देख कि जितने भी बकरे बकरियों से सहवास कर रहे हैं वे सभी धारीदार, चितकबरे और धब्बेदार हैं। मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि लाबान तेरे साथ जो सलूक कर रहा है, वह सब मैंने देखा है।+ 13 मैं सच्चा परमेश्‍वर हूँ जो बेतेल+ में तेरे सामने प्रकट हुआ था, जहाँ तूने यादगार के लिए एक पत्थर खड़ा करके उसका अभिषेक किया था और मुझसे एक मन्‍नत मानी थी।+ अब उठ और यह देश छोड़कर अपने देश लौट जा जहाँ तू पैदा हुआ था।’”+

14 याकूब की बातें सुनकर राहेल और लिआ ने जवाब में उससे कहा, “हमें नहीं लगता कि हमारा पिता हमें विरासत का कुछ हिस्सा देगा। 15 देखा नहीं, उसने हमारे साथ कैसे गैरों जैसा व्यवहार किया? अपने ही हाथों हमें बेच दिया और हमारे लिए दी गयी रकम भी खा रहा है।+ 16 इसलिए वह सारी दौलत जो परमेश्‍वर ने हमारे पिता से लेकर तुझे दी है, उस पर हमारा और हमारे बच्चों का ही हक बनता है।+ अब तू वही कर जो परमेश्‍वर ने तुझसे कहा है।”+

17 तब याकूब वहाँ से निकलने की तैयारी करने लगा। उसने अपने बच्चों और पत्नियों को ऊँटों पर चढ़ाया+ 18 और अपना सबकुछ समेटा जो उसने पद्दन-अराम में रहते हासिल किया था,+ अपने जानवरों का झुंड और अपना सारा सामान। यह सब लेकर वह अपने पिता इसहाक के पास कनान देश के लिए निकल पड़ा।+

19 उस समय लाबान अपनी भेड़ों का ऊन कतरने गया हुआ था और इसी बीच राहेल ने कुल देवताओं की मूरतें+ चुरा ली थीं जो उसके पिता की थीं।+ 20 और याकूब ने होशियारी से काम लिया और अरामी लाबान को बिना कुछ बताए वहाँ से निकल गया। 21 वह अपना सबकुछ लेकर वहाँ से भाग निकला और महानदी* के पार चला गया।+ वहाँ से वह गिलाद के पहाड़ी प्रदेश की तरफ जाने लगा।+ 22 याकूब के निकलने के तीसरे दिन इधर लाबान को बताया गया कि याकूब भाग गया है। 23 यह सुनते ही लाबान अपने भाई-बंधुओं को साथ लेकर याकूब का पीछा करने निकल पड़ा। सात दिन बाद आखिरकार लाबान गिलाद के पहाड़ी प्रदेश में उस जगह पहुँच गया जहाँ याकूब था। 24 फिर परमेश्‍वर ने अरामी लाबान+ से रात को सपने में+ कहा, “खबरदार जो तूने याकूब को कुछ भला-बुरा कहा।”+

25 याकूब अपना तंबू गिलाद के पहाड़ी प्रदेश में गाड़े हुए था और जब लाबान अपने भाई-बंधुओं के साथ वहाँ पहुँचा तो उसने भी उसी इलाके में डेरा डाला। उसने याकूब के पास जाकर 26 उससे कहा, “यह तूने मेरे साथ क्या किया? तूने मेरे साथ यह चाल क्यों चली? मुझे धोखा देकर मेरी बेटियों को ऐसे उठा लाया जैसे कोई तलवार के दम पर बंदियों को उठा ले जाता है। 27 तू मुझे चकमा देकर ऐसे चुपचाप क्यों भाग आया? अगर तू बताता तो मैं तुझे धूम-धाम से विदा करता, डफली और सुरमंडल बजवाता और नाच-गाने के साथ तुझे खुशी-खुशी रवाना करता। 28 मगर तूने मुझे अपनी बेटियों और नाती-नातिनों* को चूमकर विदा करने का मौका नहीं दिया। तूने यह कैसी मूर्खता की! 29 मेरे पास इतनी ताकत है कि मैं तुम लोगों का कुछ भी कर सकता हूँ, मगर कल रात तुम्हारे पिता के परमेश्‍वर ने मुझसे सपने में कहा, ‘खबरदार जो तूने याकूब को कुछ भला-बुरा कहा।’+ 30 मैं मानता हूँ कि तू शायद इसलिए चला आया क्योंकि तू अपने पिता के घर लौटने के लिए बेताब है, लेकिन यह बता कि जाते-जाते तूने मेरे देवताओं की चोरी क्यों की?”+

31 याकूब ने जवाब में लाबान से कहा, “मैं तुझे बताए बगैर इसलिए निकल आया क्योंकि मुझे डर था कि तू अपनी बेटियों को मुझसे ज़बरदस्ती छीन लेगा। 32 और जहाँ तक तेरे देवताओं की बात है, अगर वे हममें से किसी के पास पाए गए तो उसे अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ेगी। तू हमारे भाइयों के सामने मेरे पूरे सामान की तलाशी ले ले, अगर तुझे तेरी चीज़ मिल जाए तो ले लेना।” याकूब नहीं जानता था कि राहेल देवताओं की वे मूरतें चुरा लायी थी। 33 तब लाबान ने याकूब के तंबू, लिआ के तंबू और दोनों दासियों+ के तंबू में जाकर तलाशी ली, मगर उसे मूरतें नहीं मिलीं। फिर वह लिआ के तंबू से निकलकर राहेल के तंबू में गया। 34 इस दौरान राहेल ने वे मूरतें लीं और ऊँट की काठी पर रखी जानेवाली औरतों की टोकरी में छिपा दीं और खुद टोकरी पर बैठ गयी। लाबान ने राहेल का पूरा तंबू छान मारा, मगर उसे मूरतों का कहीं पता न चला। 35 तब राहेल ने अपने पिता से कहा, “मालिक, मुझ पर भड़क मत जाना, मैं उठ नहीं सकती। मुझे वह हुआ है जो हर महीने औरतों को होता है।”+ लाबान ने वहाँ बहुत ढूँढ़ा, मगर उसे कुल देवताओं की मूरतें नहीं मिलीं।+

36 तब याकूब को लाबान पर बहुत गुस्सा आया और वह लाबान को झिड़कने लगा। उसने लाबान से कहा, “आखिर मेरा कसूर क्या है? मैंने ऐसा क्या पाप किया है जो तू हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा है? 37 तूने मेरे सारे सामान की तलाशी ली, बता क्या तुझे एक भी ऐसी चीज़ मिली जो तेरी हो? अगर मिली तो यहाँ मेरे भाई-बंधुओं और अपने भाई-बंधुओं के सामने लाकर रख। फिर ये ही हम दोनों का फैसला करेंगे। 38 मैंने तेरे यहाँ पिछले 20 साल काम किया और इस दौरान न तेरी किसी भेड़ या बकरी का गर्भ गिरा+ और न ही मैंने कभी तेरे मेढ़ों को मारकर खाया। 39 अगर कोई जंगली जानवर तेरी किसी भेड़ या बकरी को फाड़ डालता+ तो मैं कभी उसका सबूत तेरे पास लाकर यह नहीं कहता था कि इस नुकसान के लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँ। इसके बजाय मैं खुद उसका नुकसान उठाता था। और अगर दिन या रात को किसी जानवर की चोरी हो जाती तो तू मुझसे उसकी भरपाई की माँग करता था। 40 मैंने तेरे झुंड की देखभाल करने में क्या-क्या नहीं सहा, दिन की चिलचिलाती धूप, रात की कड़ाके की ठंड और कभी-कभी तो मैं सारी रात जागता रहा।+ 41 इसी तरह तेरी सेवा में मेरे 20 साल गुज़र गए, 14 साल तेरी बेटियों के लिए, 6 साल तेरे इन जानवरों के लिए। और इस सबके बदले तूने मुझे क्या दिया? सिवा इसके कि तूने दस बार मेरी मज़दूरी बदली।+ 42 मगर शुक्र है उस परमेश्‍वर का जो मेरे दादा अब्राहम का परमेश्‍वर है+ और जिसका डर मेरा पिता इसहाक भी मानता है।+ उसने हमेशा मेरा साथ दिया। अगर वह न होता तो तू मुझे अपने घर से खाली हाथ ही भेज देता। परमेश्‍वर ने देखा है कि मैंने क्या-क्या दुख झेले और किस तरह अपने हाथों से कड़ी मेहनत की। इसीलिए उसने कल रात तुझे फटकारा।”+

43 तब लाबान ने याकूब से कहा, “ये लड़कियाँ मेरी बेटियाँ हैं और ये बच्चे मेरे बच्चे हैं। और भेड़-बकरियों का यह पूरा झुंड और यहाँ जो कुछ तेरे सामने है वह सब मेरा और मेरी बेटियों का ही तो है। मैं क्यों अपने ही हाथों अपनी बेटियों और उनके बच्चों का नुकसान करूँगा? 44 इसलिए अब आ, हम दोनों शांति का करार करें। यह करार हम दोनों के बीच गवाह ठहरेगा।” 45 फिर याकूब ने एक पत्थर लिया और उसे खड़ा किया कि वह उस करार की निशानी हो।+ 46 इसके बाद याकूब ने अपने भाई-बंधुओं से कहा, “यहाँ कुछ पत्थर इकट्ठा करो।” उन्होंने पत्थर जमा किए और उनका एक ढेर लगाया। फिर उन सबने पत्थरों के उस ढेर पर खाना खाया। 47 लाबान ने उस ढेर का नाम यगर-साहदूता* रखा, जबकि याकूब ने उसे गलएद* नाम दिया।

48 लाबान ने कहा, “पत्थरों का यह ढेर हम दोनों के बीच एक साक्षी है।” इसलिए उस ढेर का नाम गलएद+ और 49 पहरा मीनार रखा गया क्योंकि लाबान ने याकूब से कहा, “जब हम एक-दूसरे से दूर रहेंगे तब यहोवा हम दोनों पर नज़र रखे कि हम इस करार को निभाते हैं या नहीं। 50 अगर तूने मेरी बेटियों के साथ बुरा सलूक किया और उनके अलावा और भी पत्नियाँ ले आया, तो तुझे कोई इंसान देखे या न देखे मगर याद रख, परमेश्‍वर ज़रूर देखेगा जो हम दोनों के बीच गवाह है।” 51 लाबान ने याकूब से यह भी कहा, “पत्थरों के इस ढेर और इस पत्थर को देख जिसे मैंने इसलिए खड़ा किया कि यह हम दोनों के बीच हुए करार की निशानी हो। 52 यह पत्थर और पत्थरों का यह ढेर इस बात के गवाह हैं+ कि न मैं कभी इनकी सीमा लाँघकर तेरे खिलाफ आऊँगा और न तू कभी इनकी सीमा लाँघकर मेरे खिलाफ आएगा। 53 हम दोनों के बीच वह परमेश्‍वर न्यायी हो जो अब्राहम, नाहोर और उनके पिता का परमेश्‍वर है।”+ फिर याकूब ने उस परमेश्‍वर की शपथ खायी जिसका डर उसका पिता इसहाक मानता था।+

54 इसके बाद याकूब ने उस पहाड़ पर एक बलिदान चढ़ाया और उसने अपने सभी रिश्‍तेदारों को खाने पर बुलाया। फिर सबने खाना खाया और पहाड़ पर रात बितायी। 55 अगली सुबह लाबान जल्दी उठा और उसने अपनी बेटियों और नाती-नातिनों* को चूमा+ और उन्हें आशीर्वाद दिया।+ फिर लाबान वहाँ से अपने घर के लिए निकल पड़ा।+

32 याकूब अपने सफर में आगे बढ़ता गया और रास्ते में उसे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत मिले। 2 जैसे ही याकूब ने उन्हें देखा, उसने कहा, “यह परमेश्‍वर की छावनी है!” इसलिए उसने उस जगह का नाम महनैम* रखा।

3 फिर याकूब ने अपने आगे कुछ दूतों को अपने भाई एसाव के पास भेजा, जो सेईर यानी एदोम+ के इलाके में रहता था।+ 4 उसने अपने आदमियों को यह आज्ञा दी: “तुम मेरे मालिक एसाव से कहना, ‘तेरे दास याकूब ने तुझे यह संदेश भेजा है, “मैं एक लंबे समय तक लाबान के यहाँ था*+ 5 और वहाँ रहते वक्‍त मैंने बहुत धन-दौलत कमायी, मेरे पास बहुत-से दास-दासियाँ, बैल, गधे और भेड़ें हैं।+ मेरे मालिक, मैं तुझसे मिलने आ रहा हूँ और यह खबर तुझे इसलिए दे रहा हूँ ताकि तू मुझ पर कृपा करे।”’”

6 कुछ समय बाद याकूब के आदमियों ने लौटकर उससे कहा, “हम तेरे भाई एसाव से मिल आए हैं। वह भी तुझसे मिलने आ रहा है। उसके साथ उसके 400 आदमी भी हैं।”+ 7 जब याकूब ने यह सुना तो वह बहुत डर गया और चिंता करने लगा कि अब क्या होगा!+ इसलिए उसने अपने लोगों और भेड़-बकरियों, गाय-बैलों और ऊँटों को दो दलों में बाँट दिया। 8 याकूब ने कहा, “अगर एसाव एक दल पर हमला करे तो कम-से-कम दूसरा दल बचकर भाग सकता है।”

9 इसके बाद याकूब ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: “हे यहोवा, मेरे दादा अब्राहम और मेरे पिता इसहाक के परमेश्‍वर, तू जो मुझसे कहता है कि अपने रिश्‍तेदारों के पास अपने देश लौट जा और मैं हमेशा तेरा भला करूँगा,+ 10 तूने अपने दास को अपने अटल प्यार और वफादारी का सबूत दिया है,+ जबकि मैं इसके काबिल नहीं था। जब मैं इस यरदन नदी के पार गया था तब मेरे पास सिर्फ एक लाठी थी, मगर आज मेरे पास इतना कुछ है कि इसके दो दल हैं।+ 11 अब मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि मुझे मेरे भाई एसाव से बचा ले+ क्योंकि मुझे डर है कि वह आकर मुझ पर हमला कर देगा+ और इन माँओं और इनके बच्चों को भी नहीं बख्शेगा। 12 तूने मुझसे कहा था, ‘मैं ज़रूर तेरा भला करूँगा और तेरे वंश को इतना बढ़ाऊँगा कि वह समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसा अनगिनत हो जाएगा।’”+

13 याकूब रात को उसी जगह ठहरा। फिर उसने अपने झुंड में से कुछ जानवर अलग किए ताकि उन्हें अपने भाई एसाव को तोहफे में दे सके।+ 14 उसने 200 बकरियाँ, 20 बकरे, 200 भेड़ें, 20 मेढ़े, 15 30 ऊँटनियाँ और उनके बच्चे, 40 गायें, 10 बैल, 20 गधियाँ और 10 गधे अलग किए।+

16 उसने इन जानवरों के झुंड एक-एक करके अपने दासों को सौंपे और उनसे कहा, “तुम सब मुझसे पहले नदी के उस पार चले जाओ और एक झुंड से दूसरे झुंड के बीच कुछ फासला रखो।” 17 उसने पहले झुंड को ले जानेवाले दास को यह आज्ञा भी दी: “अगर तुझे रास्ते में मेरा भाई एसाव मिले और तुझसे पूछे, ‘तेरा मालिक कौन है, तू कहाँ जा रहा है और तेरे आगे-आगे ये जानवर किसके हैं?’ 18 तो तू उससे कहना, ‘मैं तेरे दास याकूब के यहाँ काम करता हूँ। उसने ये जानवर मेरे मालिक एसाव के लिए तोहफे में भेजे हैं+ और वह खुद भी हमारे पीछे आ रहा है।’” 19 याकूब ने दूसरे, तीसरे और बाकी सभी झुंडों को ले जानेवाले दासों को आज्ञा दी, “जब एसाव तुमसे मिलेगा तो तुम भी उससे ऐसा ही कहना। 20 तुम उससे यह भी कहना, ‘तेरा दास याकूब हमारे पीछे आ रहा है।’” याकूब ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसने सोचा, ‘अगर मैं एसाव को पहले तोहफे भेजकर उसे खुश करूँ+ तो बाद में जब मैं उससे मिलूँगा तो शायद वह मेरे साथ प्यार से पेश आए।’ 21 फिर याकूब के दास उसके दिए तोहफे लेकर उससे पहले नदी के पार निकल गए जबकि याकूब रात को वहीं डेरे में रहा।

22 रात को कुछ देर बाद याकूब उठा और अपनी दोनों पत्नियों,+ दोनों दासियों+ और अपने 11 बेटों को यब्बोक नदी के उथले हिस्से से पार ले गया।+ 23 उन सबको पार कराने के बाद, वह अपना बाकी सारा सामान भी नदी के पार ले गया।

24 जब याकूब अकेला था तो एक आदमी आकर उससे कुश्‍ती लड़ने लगा और पौ फटने तक लड़ता रहा।+ 25 जब उस आदमी ने देखा कि वह याकूब को हरा नहीं पा रहा तो उसने याकूब की जाँघ का जोड़ छुआ। इसलिए कुश्‍ती करते वक्‍त याकूब का जोड़ खिसक गया।+ 26 इसके बाद उस आदमी ने याकूब से कहा, “अब मुझे जाने दे, सुबह होनेवाली है।” मगर याकूब ने कहा, “मैं तुझे तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक तू मुझे आशीर्वाद नहीं देगा।”+ 27 फिर उस आदमी ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “याकूब।” 28 तब उस आदमी ने कहा, “अब से तेरा नाम याकूब नहीं इसराएल* होगा,+ क्योंकि तू परमेश्‍वर से और इंसानों से लड़ा+ और आखिरकार जीत गया।” 29 फिर याकूब ने उससे पूछा, “क्या मैं तेरा नाम जान सकता हूँ?” मगर उस आदमी ने कहा, “तू क्यों मेरा नाम जानना चाहता है?”+ फिर उसने याकूब को आशीर्वाद दिया। 30 याकूब ने उस जगह का नाम पनीएल*+ रखा क्योंकि उसने कहा, “मैंने परमेश्‍वर को आमने-सामने देखा, फिर भी मेरी जान बख्श दी गयी।”+

31 जब याकूब पनूएल* से आगे बढ़ा तो सूरज उगने लगा था। याकूब लँगड़ा रहा था क्योंकि उसकी जाँघ का जोड़ खिसक गया था।+ 32 इसीलिए आज तक इसराएली लोग जानवर की जाँघ के जोड़ की नस नहीं खाते क्योंकि उस आदमी ने याकूब की जाँघ के जोड़ का वह हिस्सा छुआ था जहाँ नस होती है।

33 जब याकूब ने नज़रें उठायीं तो देखा कि एसाव चला आ रहा है और उसके साथ 400 आदमी भी हैं।+ तब याकूब ने लिआ, राहेल और दोनों दासियों से कहा कि वे अपने-अपने बच्चों को अपने साथ रखें।+ 2 फिर उसने कहा कि दोनों दासियाँ अपने बच्चों को लेकर सबसे आगे आ जाएँ,+ उनके पीछे लिआ और उसके बच्चे आएँ+ और सबसे आखिर में राहेल+ और यूसुफ। 3 फिर वह खुद उन सबके आगे-आगे चलने लगा। जैसे-जैसे वह अपने भाई के नज़दीक आता गया उसने सात बार ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया।

4 तब एसाव दौड़कर उसके पास गया और उसे गले लगाकर चूमने लगा और वे दोनों फूट-फूटकर रोने लगे। 5 जब एसाव ने याकूब के साथ औरतों और बच्चों को देखा तो उसने पूछा, “ये सब कौन हैं?” याकूब ने कहा, “ये तेरे इस दास के ही बच्चे हैं। सब परमेश्‍वर की कृपा है!”+ 6 तब दोनों दासियाँ अपने बच्चों को लेकर आगे आयीं और उन सबने एसाव को प्रणाम किया। 7 फिर लिआ अपने बच्चों को लेकर आगे आयी और उन्होंने एसाव को प्रणाम किया। आखिर में यूसुफ और राहेल आगे आए और उन्होंने भी प्रणाम किया।+

8 एसाव ने याकूब से पूछा, “तूने मेरे पास जो लोग और जानवरों के झुंड भेजे थे, वह सब किस लिए?”+ याकूब ने कहा, “बस तेरी कृपा चाहता हूँ मालिक।”+ 9 एसाव ने कहा, “मेरे भाई, मेरे पास बहुत धन-संपत्ति है,+ इसलिए जो तूने भेजा था वह तू ही रख ले।” 10 मगर याकूब ने कहा, “नहीं मेरे मालिक, तुझे मेरा तोहफा लेना ही होगा, वरना मैं यही समझूँगा कि तू अब भी मुझसे नाराज़ है। मैंने वह तोहफा इसलिए भेजा था ताकि मैं तुझसे मिल सकूँ। और आज जब तूने मुझे खुशी-खुशी कबूल किया, तो मुझे ऐसा लगा मानो मैंने परमेश्‍वर को देख लिया है।+ 11 परमेश्‍वर की कृपा से आज मेरे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है।+ मेरी दुआ है कि तेरा भी हमेशा भला हो और यह तोहफा इसी बात की निशानी है।+ इसलिए मेहरबानी करके इसे कबूल कर ले।” याकूब के बार-बार कहने पर एसाव ने उसका तोहफा कबूल कर लिया।

12 कुछ देर बाद एसाव ने याकूब से कहा, “अब हम सब यहाँ से चलते हैं। मैं तेरे आगे-आगे चलकर तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।” 13 मगर याकूब ने कहा, “मालिक, तू देख सकता है कि मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं।+ और मेरे जानवरों के झुंड में ऐसी भेड़ें और गायें भी हैं जिनके दूध-पीते मेम्ने और बछड़े हैं। अगर एक दिन भी मैं उन्हें भगा-भगाकर ले जाऊँ तो पूरा झुंड मर जाएगा। 14 इसलिए मालिक, मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू आगे निकल जा, तेरा यह सेवक अपने बाल-बच्चों और झुंड के साथ धीरे-धीरे चलता हुआ बाद में आएगा। और मैं तुझे सेईर में आकर मिलूँगा।”+ 15 एसाव ने कहा, “ठीक है, तो मैं ऐसा करता हूँ, तेरी मदद के लिए अपने कुछ आदमियों को यहाँ छोड़ जाता हूँ।” इस पर याकूब ने कहा, “इसकी क्या ज़रूरत है? बस मालिक, तेरी कृपा मुझ पर बनी रहे, यही मेरे लिए काफी है।” 16 तब एसाव उसी दिन सेईर वापस जाने के लिए निकल पड़ा।

17 और याकूब अपने सफर में आगे बढ़ता हुआ सुक्कोत+ पहुँचा। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने जानवरों के लिए छप्पर डाले। इसलिए उसने उस जगह का नाम सुक्कोत* रखा।

18 याकूब पद्दन-अराम+ से सफर करता हुआ सही-सलामत कनान देश के शेकेम शहर+ पहुँचा। उसने शहर के पास ही अपना डेरा डाला। 19 फिर उसने ज़मीन का वह टुकड़ा खरीद लिया जहाँ उसने डेरा डाला था। उसने यह ज़मीन चाँदी के 100 टुकड़े देकर हमोर के बेटों से खरीदी थी। हमोर के एक बेटे का नाम शेकेम था।+ 20 याकूब ने वहाँ परमेश्‍वर के लिए एक वेदी बनायी और उसका यह नाम रखा, ‘परमेश्‍वर, इसराएल का परमेश्‍वर है।’+

34 याकूब की बेटी दीना, जो लिआ से पैदा हुई थी,+ कनान देश की जवान लड़कियों+ के साथ वक्‍त बिताने* के लिए उनके यहाँ जाया करती थी। 2 वहाँ शेकेम की नज़र उस पर पड़ी, जो हिव्वी लोगों+ के एक प्रधान हमोर का बेटा था। एक दिन ऐसा हुआ कि शेकेम ने दीना को पकड़ लिया और उसका बलात्कार करके उसे भ्रष्ट कर डाला। 3 इसके बाद, उसे याकूब की इस जवान बेटी से प्यार हो गया, वह उसे अपने दिलो-दिमाग से निकाल नहीं पा रहा था। उसने दीना से मीठी-मीठी बातें करके उसका दिल जीतने की कोशिश की।* 4 आखिरकार उसने अपने पिता हमोर+ से कहा, “तू किसी तरह इस लड़की से मेरी शादी करा दे।”

5 इस बीच याकूब को पता चला कि शेकेम ने उसकी बेटी दीना को भ्रष्ट कर दिया है। मगर उसने इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। वह अपने बेटों के आने का इंतज़ार करने लगा जो उसकी भेड़-बकरियाँ लेकर मैदान गए हुए थे। 6 बाद में शेकेम का पिता हमोर याकूब से बात करने उसके पास आया। 7 उधर जब याकूब के बेटों को दीना के बारे में खबर मिली, तो वे फौरन मैदान से घर आए। उन्हें यह बात बहुत बुरी लगी और वे क्रोध से भर गए, क्योंकि शेकेम ने याकूब की बेटी का बलात्कार करके बहुत दुष्ट काम किया था+ और इसराएल का घोर अपमान किया था।+

8 जब हमोर याकूब के यहाँ आया तो उसने याकूब और उसके बेटों से कहा, “मेरा बेटा शेकेम तुम्हारी बेटी दीना को बहुत चाहता है। इसलिए मैं तुम लोगों से बिनती करता हूँ कि अपनी बेटी की शादी मेरे बेटे से करा दो 9 और हमारी जाति से रिश्‍तेदारी कर लो। तुम लोग अपनी बेटियाँ हमें देना और हम अपनी बेटियाँ तुम्हें देंगे।+ 10 तुम हमारे यहाँ रह सकते हो, हमारा पूरा इलाका तुम्हारे सामने पड़ा है। तुम जहाँ चाहो बस जाओ, व्यापार करो और अपनी धन-संपत्ति बढ़ाओ।” 11 शेकेम ने दीना के पिता और उसके भाइयों से कहा, “तुम जो माँगोगे मैं देने को तैयार हूँ। बस मेहरबानी करके हाँ कह दो। 12 तुम महर की रकम जितनी चाहे बढ़ा दो, तोहफे में जो चाहे माँग लो।+ सिर्फ अपनी लड़की की शादी मुझसे करा दो।”

13 तब याकूब के बेटों ने शेकेम और उसके पिता हमोर के साथ एक चाल चलने की सोची, क्योंकि शेकेम ने उनकी बहन दीना को भ्रष्ट कर दिया था। 14 उन्होंने शेकेम और उसके पिता हमोर से कहा, “हम अपनी बहन की शादी ऐसे आदमी से नहीं करा सकते जिसका खतना न हुआ हो।+ यह हमारे लिए बड़े अपमान की बात होगी। 15 हम सिर्फ इस शर्त पर तुम्हें अपनी बहन दे सकते हैं, तुम्हें और तुम्हारे सभी आदमियों को हमारी तरह अपना खतना करवाना होगा।+ 16 तभी हम अपनी बेटियाँ तुम्हें देंगे और तुम्हारी बेटियाँ लेंगे और तुम्हारे यहाँ आकर बस जाएँगे। फिर हम और तुम एक ही जाति के हो जाएँगे। 17 लेकिन अगर तुम हमारी बात नहीं मानोगे और खतना नहीं करवाओगे, तो हम अपनी बहन को लेकर यहाँ से चले जाएँगे।”

18 याकूब के बेटों की यह शर्त हमोर+ और उसके बेटे शेकेम+ को ठीक लगी। 19 और उस जवान ने बिना देर किए उनके कहे मुताबिक किया+ क्योंकि वह याकूब की बेटी को बहुत चाहता था। शेकेम अपने पिता के पूरे घराने का सबसे इज़्ज़तदार आदमी माना जाता था।

20 हमोर और शेकेम शहर के फाटक पर गए और उन्होंने अपने शहर के आदमियों से कहा,+ 21 “उन आदमियों ने कहा है कि वे हमारे साथ शांति बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए क्यों न हम उन्हें अपने इलाके में आकर बसने दें और व्यापार करने दें? वैसे भी हमारा इलाका बहुत बड़ा है, जगह की कोई कमी नहीं होगी। हम उनकी बेटियाँ ब्याह सकते हैं और वे हमारी।+ 22 उन्होंने कहा है कि उन्हें हमारे यहाँ बस जाना मंज़ूर है और वे हमारे साथ मिलकर एक ही जाति के हो जाने के लिए तैयार हैं। बस उन्होंने एक शर्त रखी है, हमारे सभी आदमियों को उनकी तरह खतना करवाना होगा।+ 23 ज़रा सोचो, इससे हमें कितना फायदा होगा। उनकी जायदाद, दौलत, भेड़-बकरियाँ सबकुछ हमारा हो जाएगा। तो आओ हम उनकी शर्त मान लें ताकि वे हमारे यहाँ बस जाएँ।” 24 तब शहर के फाटक पर इकट्ठा सभी आदमियों ने हमोर और उसके बेटे शेकेम की बात मान ली और शहर के सभी आदमियों ने अपना खतना करवा लिया।

25 मगर खतना करवाने के तीसरे दिन जब उन आदमियों का दर्द से बुरा हाल था, याकूब के दो बेटे शिमोन और लेवी, जो दीना के भाई थे,+ तलवारें लेकर शहर के अंदर आए। वे इस तरह आए कि किसी को उन पर शक नहीं हुआ। और उन्होंने शहर के सभी आदमियों का कत्ल कर दिया।+ 26 उन्होंने हमोर और उसके बेटे शेकेम को भी तलवार से मार डाला और शेकेम के घर से दीना को लेकर निकल गए। 27 फिर याकूब के बाकी बेटे भी शहर में आए, जहाँ सभी आदमी मरे पड़े थे और उन्होंने शहर को लूट लिया, क्योंकि उनकी बहन को भ्रष्ट किया गया था।+ 28 वे उनकी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गधे सब ले गए और शहर के अंदर और बाहर मैदान में जो कुछ था, सब लूटकर ले गए। 29 वे उनके घरों में घुसकर सारा माल उठा ले गए, उन्होंने एक भी चीज़ नहीं छोड़ी। वे उनकी औरतों और छोटे बच्चों को भी पकड़कर ले गए।

30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी+ से कहा, “तुमने मुझे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया!* अब यहाँ के कनानी और परिज्जी लोग मुझसे नफरत करने लगेंगे। वे सब एकजुट होकर मुझ पर हमला कर देंगे और मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा, उनके सामने हमारी गिनती ही क्या है? वे मुझे और मेरे घराने को खाक में मिला देंगे।” 31 मगर उन दोनों ने कहा, “कोई हमारी बहन के साथ वेश्‍याओं जैसा बरताव करे और हम चुप बैठे रहें?”

35 इसके बाद परमेश्‍वर ने याकूब से कहा, “अब तू यह जगह छोड़कर बेतेल+ जा और वहाँ रह। वहाँ सच्चे परमेश्‍वर के लिए एक वेदी बना, जिसने तुझे उस वक्‍त दर्शन दिया था जब तू अपने भाई एसाव से जान बचाकर भाग रहा था।”+

2 तब याकूब ने अपने घराने से और जितने भी लोग उसके साथ रहते थे उन सबसे कहा, “तुम्हारे पास झूठे देवताओं की जितनी भी मूर्तियाँ हैं, उन्हें निकालो+ और खुद को शुद्ध करो और अपने कपड़े बदलो, 3 क्योंकि अब हम यह जगह छोड़कर बेतेल जाएँगे। वहाँ मैं सच्चे परमेश्‍वर के लिए एक वेदी बनाऊँगा जिसने मुसीबत की घड़ी में मेरी दुहाई सुनी और मैं जहाँ-जहाँ* गया, वह मेरे साथ रहा।”+ 4 तब उन्होंने वह सब मूर्तियाँ, जो उनके पास थीं, निकालीं और अपने कानों की बालियाँ भी उतारीं और याकूब को दे दीं। याकूब ने यह सब ले जाकर शेकेम शहर के पासवाले बड़े पेड़ के नीचे गाड़* दिया।

5 उन्होंने अपना पड़ाव उठाया और वहाँ से निकल पड़े। वहाँ के आस-पास के शहरों के लोगों ने याकूब के बेटों का पीछा नहीं किया, क्योंकि उनमें परमेश्‍वर का खौफ समा गया था। 6 याकूब अपने लोगों के साथ सफर करते-करते कनान देश के लूज+ यानी बेतेल पहुँचा। 7 यहाँ उसने एक वेदी खड़ी की और इस जगह का नाम एल-बेतेल* रखा, क्योंकि जब वह अपने भाई से भाग रहा था तो सच्चे परमेश्‍वर ने यहीं पर उसे दर्शन दिया था।+ 8 कुछ समय बाद, रिबका की धाई दबोरा+ की मौत हो गयी और उसे बेतेल के पास एक बाँज पेड़ के नीचे दफनाया गया। याकूब ने उस जगह का नाम अल्लोन-बक्कूत* रखा।

9 जब याकूब पद्दन-अराम से लौट रहा था तो परमेश्‍वर ने एक बार फिर उसके सामने प्रकट होकर उसे आशीष दी। 10 परमेश्‍वर ने उससे कहा, “तेरा नाम याकूब है+ मगर अब से तेरा नाम याकूब नहीं, इसराएल होगा।” और परमेश्‍वर उसे इसराएल बुलाने लगा।+ 11 परमेश्‍वर ने उससे यह भी कहा, “मैं सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर हूँ।+ मैं तुझे आशीष देता हूँ कि तू फूले-फले और गिनती में बढ़ जाए। तुझसे जातियाँ निकलेंगी, हाँ, कई जातियाँ निकलेंगी+ और तेरे खानदान से राजा पैदा होंगे।+ 12 और जो देश मैंने अब्राहम और इसहाक को दिया था, वही देश मैं तुझे और तेरे बाद तेरे वंश को दूँगा।”+ 13 याकूब से यह सब कहने के बाद परमेश्‍वर वहाँ से चला गया।

14 इसके बाद याकूब ने उस जगह पर, जहाँ परमेश्‍वर ने उससे बात की थी, यादगार के तौर पर एक पत्थर खड़ा किया। फिर उस पत्थर पर अर्घ चढ़ाया और तेल उँडेला।+ 15 और याकूब ने दोबारा उस जगह को बेतेल कहा+ जहाँ परमेश्‍वर ने उससे बात की थी।

16 फिर वे बेतेल से अपना पड़ाव उठाकर आगे बढ़े। वे एप्रात से कुछ दूरी पर थे कि तभी राहेल की प्रसव-पीड़ा शुरू हो गयी। बच्चा जनने में उसे बहुत तकलीफ हो रही थी। 17 जब वह दर्द से तड़प रही थी, तो उसकी धाई ने उससे कहा, “हिम्मत रख, तुझे एक और बेटा होगा।”+ 18 फिर राहेल ने एक लड़के को जन्म दिया। बच्चा जनते-जनते उसकी मौत हो गयी। मगर जब उसकी जान निकल रही थी तो उसने अपने बेटे का नाम बेन-ओनी* रखा। लेकिन याकूब ने उसे बिन्यामीन*+ नाम दिया। 19 इस तरह एप्रात (यानी बेतलेहेम) जानेवाले रास्ते में राहेल की मौत हो गयी और उसे वहीं दफनाया गया।+ 20 याकूब ने राहेल की कब्र पर निशानी के तौर पर एक बड़ा-सा पत्थर खड़ा किया। यह पत्थर आज तक उसकी कब्र पर रखा हुआ है।

21 इसके बाद इसराएल अपना पड़ाव उठाकर आगे बढ़ा। उसने एदेर मीनार से आगे जाकर अपना तंबू गाड़ा। 22 जब इसराएल वहाँ रह रहा था तो एक दिन रूबेन ने अपने पिता की उप-पत्नी बिल्हा के साथ संबंध रखे और यह बात इसराएल को पता चली।+

याकूब के 12 बेटे थे। 23 लिआ से याकूब के ये बेटे हुए: पहलौठा रूबेन,+ उसके बाद शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार और जबूलून। 24 राहेल से यूसुफ और बिन्यामीन पैदा हुए। 25 राहेल की दासी बिल्हा से दान और नप्ताली 26 और लिआ की दासी जिल्पा से गाद और आशेर पैदा हुए। ये सभी याकूब के बेटे थे जो पद्दन-अराम में पैदा हुए थे।

27 आखिरकार याकूब अपने पिता इसहाक के पास ममरे पहुँचा+ जो किरयत-अरबा यानी हेब्रोन के इलाके में है। यहीं पर अब्राहम और इसहाक ने परदेसियों की ज़िंदगी गुज़ारी थी।+ 28 इसहाक कुल मिलाकर 180 साल जीया।+ 29 एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जीने के बाद* उसकी मौत हो गयी और उसे दफनाया गया।* इसहाक को उसके बेटे एसाव और याकूब ने दफनाया।+

36 यह है एसाव की वंशावली जो एदोम भी कहलाता है।+

2 एसाव ने इन कनानी लड़कियों से शादी की थी: आदा+ जो हित्ती एलोन की बेटी थी+ और ओहोलीबामा+ जो अना की बेटी और हिव्वी जाति के सिबोन की पोती थी। 3 एसाव की एक और पत्नी थी बाशमत,+ जो इश्‍माएल की बेटी और नबायोत की बहन थी।+

4 एसाव की पत्नी आदा से एलीपज पैदा हुआ, बाशमत से रूएल

5 और ओहोलीबामा से यूश, यालाम और कोरह।+

एसाव के ये सभी बेटे कनान देश में पैदा हुए। 6 बाद में एसाव ने कनान छोड़ दिया और याकूब से दूर एक अलग देश में जा बसा।+ वह अपनी पत्नियों, बेटे-बेटियों और घराने के बाकी सब लोगों को लेकर वहाँ चला गया। वह अपने साथ अपने सभी जानवर और अपनी पूरी दौलत ले गया जो उसने कनान में हासिल की थी।+ 7 उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि दोनों भाइयों के पास इतना साजो-सामान और इतने जानवर थे कि अब उनका एक जगह रहना* मुश्‍किल हो रहा था। 8 इसलिए एसाव सेईर के पहाड़ी प्रदेश में जा बसा।+ एसाव का दूसरा नाम एदोम है।+

9 यह एसाव के बारे में ब्यौरा है जो सेईर के पहाड़ी प्रदेश में रहनेवाले एदोमी लोगों का पुरखा था।+

10 एसाव के बेटों के नाम हैं: एलीपज, जो एसाव की पत्नी आदा से पैदा हुआ था और रूएल, जो एसाव की पत्नी बाशमत से पैदा हुआ था।+

11 एलीपज के बेटे थे तेमान,+ ओमार, सपो, गाताम और कनज।+ 12 एसाव के बेटे एलीपज की एक उप-पत्नी थी तिम्ना। तिम्ना से एलीपज का बेटा अमालेक+ पैदा हुआ। ये सभी एसाव की पत्नी आदा के पोते हैं।

13 रूएल के बेटे हैं नहत, जेरह, शम्माह और मिज्जा। ये सभी एसाव की पत्नी बाशमत+ के पोते थे।

14 ओहोलीबामा जो अना की बेटी और सिबोन की पोती थी, उससे एसाव के ये बेटे पैदा हुए: यूश, यालाम और कोरह।

15 एसाव के बेटों से जो शेख* निकले वे ये हैं:+ एसाव के पहलौठे एलीपज से शेख तेमान, शेख ओमार, शेख सपो, शेख कनज,+ 16 शेख कोरह, शेख गाताम और शेख अमालेक। ये एलीपज के बेटे हैं जो एदोम देश में शेख हैं।+ ये आदा के पोते हैं।

17 एसाव के बेटे रूएल से शेख नहत, शेख जेरह, शेख शम्माह और शेख मिज्जा निकले। ये रूएल के बेटे हैं जो एदोम देश+ में शेख हैं। ये एसाव की पत्नी बाशमत के पोते हैं।

18 आखिर में, एसाव की पत्नी ओहोलीबामा से निकले शेख ये हैं: शेख यूश, शेख यालाम और शेख कोरह। ये एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के बेटे हैं। ओहोलीबामा अना की बेटी थी।

19 तो ये हैं एसाव के बेटे और उनसे निकले शेख। एसाव का दूसरा नाम एदोम है।+

20 एदोम के इलाके के मूल निवासी होरी जाति के लोग थे। सेईर होरी जाति का था+ और उसके बेटों के नाम हैं: लोतान, शोबाल, सिबोन, अना,+ 21 दीशोन, एजेर और दीशान।+ सेईर के ये बेटे होरी जाति के शेख हैं, जो एदोम के इलाके में रहते हैं।

22 लोतान के बेटे थे होरी और हेमाम। लोतान की बहन तिम्ना थी।+

23 शोबाल के बेटे हैं आल्वान, मानहत, एबाल, शपो और ओनाम।

24 सिबोन+ के बेटे हैं अय्या और अना। यह वही अना है जिसे वीराने में अपने पिता सिबोन के गधों को चराते वक्‍त गरम पानी का सोता मिला था।

25 अना का बेटा दीशोन है और बेटी ओहोलीबामा है।

26 दीशोन के बेटे हैं हेमदान, एशबान, यित्रान और करान।+

27 एजेर के बेटे हैं बिलहान, जावान और अकान।

28 दीशान के बेटे हैं ऊज़ और अरान।+

29 होरी जाति के शेख ये हैं: शेख लोतान, शेख शोबाल, शेख सिबोन, शेख अना, 30 शेख दीशोन, शेख एजेर और शेख दीशान।+ तो ये हैं होरी जाति के शेख जो सेईर के इलाके में रहते हैं।

31 इसराएलियों* में राजाओं का दौर शुरू होने से पहले एदोम के इलाके में जो राजा हुआ करते थे,+ वे ये हैं:+ 32 बओर के बेटे बेला ने एदोम पर राज किया और उसका शहर दिनहाबा था। 33 बेला की मौत के बाद योबाब ने राज किया। योबाब, बोसरा के रहनेवाले जेरह का बेटा था। 34 योबाब की मौत के बाद हूशाम ने राज किया जो तेमानी लोगों के इलाके से था। 35 हूशाम की मौत के बाद बदद के बेटे हदद ने राज किया। यह वही हदद था जिसने मोआब के इलाके में मिद्यानियों+ को हराया था। उसका शहर अवीत था। 36 हदद की मौत के बाद समला ने राज किया जो मसरेका से था। 37 समला की मौत के बाद शौल ने राज किया, जो नदी के पासवाले रहोबोत शहर से था। 38 शौल की मौत के बाद अकबोर के बेटे बाल-हानान ने राज किया। 39 अकबोर के बेटे बाल-हानान की मौत के बाद हदर ने राज किया जिसका शहर पाऊ था। उसकी पत्नी का नाम महेतबेल था जो मत्रेद की बेटी थी। और मत्रेद, मेज़ाहाब की बेटी थी।

40 और जो शेख एसाव के वंश से आए थे, उनके कुल और उनके इलाके भी उन्हीं के नाम से जाने जाते थे। इन शेखों के नाम हैं: शेख तिम्ना, शेख अलवा, शेख यतेत,+ 41 शेख ओहोलीबामा, शेख एलाह, शेख पीनोन, 42 शेख कनज, शेख तेमान, शेख मिबसार, 43 शेख मगदीएल और शेख ईराम। ये एदोम से निकले शेख हैं जिनके नामों की सूची उनके देश में उनकी अपनी-अपनी बस्तियों के मुताबिक दी गयी है।+ एदोमी लोग एसाव के वंशज हैं।+

37 याकूब कनान देश में ही रहा, जहाँ उसके पिता ने परदेसियों की ज़िंदगी गुज़ारी थी।+

2 ये हैं याकूब के परिवार में हुई कुछ घटनाएँ।

जब याकूब का बेटा यूसुफ+ 17 साल का जवान था, तब वह अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियाँ चराने जाता था।+ उसके ये भाई याकूब की पत्नी बिल्हा और जिल्पा के बेटे थे।+ एक बार यूसुफ ने आकर अपने पिता को बताया कि उसके भाई कैसे बुरे-बुरे काम करते हैं। 3 यूसुफ इसराएल के बुढ़ापे में पैदा हुआ था, इसलिए इसराएल अपने सभी बेटों से ज़्यादा यूसुफ से प्यार करता था।+ उसने यूसुफ के लिए एक खास चोगा* बनवाया था। 4 जब उसके भाइयों ने देखा कि उनका पिता उन सबसे ज़्यादा यूसुफ से प्यार करता है, तो वे यूसुफ से नफरत करने लगे। वे उससे ठीक से बात भी नहीं करते थे।

5 कुछ समय बाद, यूसुफ ने एक सपना देखा और अपने भाइयों को बताया।+ तब वे उससे और भी नफरत करने लगे। 6 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मेहरबानी करके सुनो कि मैंने क्या सपना देखा। 7 मैंने देखा कि हम सब खेत के बीचों-बीच पूले बाँध रहे हैं। फिर अचानक मेरा पूला सीधा खड़ा हो गया और तुम सबके पूलों ने मेरे पूले को घेर लिया और उसके आगे झुकने लगे।”+ 8 उसके भाइयों ने उससे कहा, “आखिर तू कहना क्या चाहता है, तू क्या राजा बनकर हम पर हुक्म चलाएगा?”+ इस तरह जब यूसुफ के भाइयों ने उसका सपना और उसकी बातें सुनीं तो वे उससे और ज़्यादा नफरत करने लगे।

9 इसके बाद यूसुफ ने एक और सपना देखा और अपने भाइयों को बताया: “मैंने एक और सपना देखा। इस बार मैंने देखा कि सूरज, चाँद और 11 तारे मेरे आगे झुक रहे हैं।”+ 10 जब उसने अपने पिता और भाइयों को यह सपना बताया, तो उसके पिता ने उसे डाँटा, “यह कैसा सपना है? क्या मैं और तेरी माँ और तेरे भाई तेरे आगे ज़मीन पर गिरकर तुझे प्रणाम करेंगे?” 11 यूसुफ की बातें सुनकर उसके भाई उससे जलने लगे,+ मगर याकूब ने ये बातें ध्यान में रखीं।

12 एक बार यूसुफ के भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराने शेकेम शहर+ के पास गए हुए थे। 13 कुछ समय बाद, इसराएल ने यूसुफ से कहा, “बेटा तू तो जानता है कि तेरे भाई भेड़-बकरियाँ लेकर शेकेम के पास गए हुए हैं। क्या तू जाकर उन्हें देख आएगा?” यूसुफ ने कहा, “हाँ, मैं ज़रूर जाऊँगा।” 14 उसके पिता ने कहा, “जा बेटा, जाकर देख आ कि वे खैरियत से हैं या नहीं, और भेड़-बकरियों को भी देख आ। फिर आकर मुझे उनका हाल-चाल बताना।” इसलिए यूसुफ हेब्रोन+ की घाटी से, जहाँ वे रहते थे, शेकेम की तरफ चल दिया। 15 जब वह एक मैदान में यहाँ-वहाँ भटक रहा था तो एक आदमी ने उससे पूछा, “तू क्या ढूँढ़ रहा है?” 16 उसने कहा, “मैं अपने भाइयों को ढूँढ़ रहा हूँ। वे यहाँ भेड़-बकरियाँ चराने आए थे। क्या तू जानता है वे कहाँ हैं?” 17 उस आदमी ने कहा, “वे यहाँ से चले गए। मैंने उन्हें यह कहते सुना था, ‘चलो अब हम दोतान चलते हैं।’” फिर यूसुफ अपने भाइयों की तलाश में दोतान गया और वहाँ वे मिल गए।

18 यूसुफ के भाइयों ने दूर से देखा कि वह आ रहा है। इससे पहले कि वह उनके पास पहुँचता, वे उसे मार डालने की साज़िश करने लगे। 19 वे एक-दूसरे से कहने लगे, “वह देखो! आ रहा है सपने देखनेवाला!+ 20 चलो हम उसका काम तमाम कर देते हैं और उसकी लाश यहीं किसी पानी के गड्‌ढे में फेंक देते हैं। कह देंगे किसी जंगली जानवर ने उसे फाड़ खाया। फिर देखते हैं उसके सपनों का क्या होता है।” 21 जब रूबेन+ ने यह सुना तो उसने यूसुफ को बचाने की कोशिश की। उसने उनसे कहा, “नहीं, हम उसकी जान नहीं लेंगे।”+ 22 उसने यह भी कहा, “उसका खून मत बहाओ।+ चाहो तो उसे यहीं वीराने में इस गड्‌ढे में फेंक दो। मगर उसे जान से मत मारो।”*+ रूबेन उसे अपने भाइयों के हाथों से बचाकर अपने पिता के पास वापस ले जाना चाहता था।

23 जैसे ही यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुँचा, उन्होंने उसे पकड़ लिया और उसका खास चोगा उतार लिया जो वह पहने हुए था।+ 24 फिर उन्होंने उसे पानी के गड्‌ढे में धकेल दिया। उस वक्‍त वह गड्‌ढा सूखा था, उसमें ज़रा भी पानी नहीं था।

25 इसके बाद वे खाना खाने बैठे। फिर उन्होंने देखा कि इश्‍माएलियों+ का एक कारवाँ चला आ रहा है। ये इश्‍माएली गिलाद से आ रहे थे और अपने ऊँटों पर सुगंधित गोंद, बलसाँ और रालदार छाल+ लादे हुए मिस्र जा रहे थे। 26 तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, “अगर हम अपने भाई को मार डालें और यह बात छिपा भी लें, तो हमें क्या मिलेगा? 27 इससे अच्छा है कि हम उसे इन इश्‍माएलियों के हाथ बेच दें+ और उसकी जान न लें। आखिर वह हमारा भाई ही तो है, उसके साथ हमारा खून का रिश्‍ता है।” उन्होंने अपने भाई यहूदा की बात मान ली। 28 फिर जब मिद्यानी+ व्यापारी वहाँ से गुज़र रहे थे तो यूसुफ के भाइयों ने उसे गड्‌ढे से बाहर निकाला और उसे चाँदी के 20 टुकड़ों में इश्‍माएलियों के हाथ बेच दिया।+ ये आदमी यूसुफ को मिस्र ले गए।

29 बाद में जब रूबेन गड्‌ढे के पास लौटा और देखा कि यूसुफ वहाँ नहीं है, तो उसने मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े। 30 फिर वह अपने भाइयों के पास गया और चीख-चीखकर कहने लगा, “लड़का वहाँ नहीं है! अब क्या होगा? अब मैं क्या करूँ?”

31 तब उन्होंने यूसुफ का खास चोगा लिया और एक बकरे को मारकर उसके खून में चोगा डुबोया। 32 फिर उन्होंने वह चोगा अपने पिता के पास पहुँचाया और उसे यह संदेश भी भेजा: “हमें यह कपड़ा मिला है। ज़रा देख, कहीं यह तेरे बेटे का चोगा तो नहीं।”+ 33 जब याकूब ने उसे ध्यान से देखा तो वह चिल्ला उठा, “यह मेरे बेटे का ही चोगा है! ज़रूर किसी जंगली जानवर ने यूसुफ को मार डाला होगा, उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए होंगे!” 34 याकूब ने मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े और अपनी कमर पर टाट बाँधे वह कई दिनों तक अपने बेटे के लिए मातम मनाता रहा। 35 उसके सब बेटे-बेटियाँ उसे दिलासा देते रहे, मगर उसका दुख बिलकुल कम न हुआ। वह कहता, “मैं कब्र*+ में जाने तक अपने बेटे के लिए मातम मनाता रहूँगा।” इस तरह यूसुफ का पिता उसके लिए रोता रहा।

36 उधर मिद्यानी जब यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे, तो उन्होंने उसे पोतीफर नाम के एक आदमी के हाथ बेच दिया। पोतीफर, फिरौन का एक दरबारी+ और पहरेदारों का सरदार था।+

38 इन्हीं दिनों यहूदा अपने भाइयों से अलग हो गया। उसने अपना तंबू हीरा नाम के एक आदमी के यहाँ गाड़ा जो अदुल्लाम का रहनेवाला था। 2 यहूदा ने वहाँ शूआ नाम के एक कनानी आदमी की बेटी को देखा।+ यहूदा ने उसे अपनी पत्नी बनाया और उसके साथ संबंध रखे। 3 वह गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। यहूदा ने अपने बेटे का नाम एर+ रखा। 4 उसकी पत्नी एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने एक और बेटे को जन्म दिया और उसका नाम ओनान रखा। 5 बाद में उसकी पत्नी ने एक और बेटे को जन्म दिया और उसका नाम शेलह रखा। शेलह के जन्म के वक्‍त वह* अकजीब+ में था।

6 कुछ समय बाद, यहूदा ने अपने पहलौठे बेटे एर की शादी तामार+ नाम की लड़की से करायी। 7 मगर यहूदा का पहलौठा एर यहोवा की नज़र में दुष्ट था, इसलिए यहोवा ने उसे मार डाला। 8 तब यहूदा ने अपने दूसरे बेटे ओनान से कहा, “तू देवर-भाभी विवाह के रिवाज़ के मुताबिक अपने भाई की विधवा से शादी कर और अपने भाई का वंश चला।”+ 9 मगर ओनान जानता था कि उसके भाई की विधवा से उसका जो बच्चा होगा वह उसका अपना नहीं कहलाएगा।+ इसलिए अपने भाई की विधवा से संबंध रखते वक्‍त उसने अपना वीर्य धरती पर गिरा दिया, क्योंकि वह अपने भाई के लिए कोई संतान नहीं पैदा करना चाहता था।+ 10 उसका यह काम यहोवा की नज़र में बुरा था इसलिए उसने ओनान को भी मार डाला।+ 11 फिर यहूदा ने सोचा कि अगर मैं तामार को अपना बेटा शेलह दूँगा तो कहीं ऐसा न हो कि वह भी अपने भाइयों की तरह मर जाए।+ इसलिए उसने अपनी बहू तामार से कहा, “जब तक मेरा बेटा शेलह बड़ा नहीं हो जाता, तू जाकर अपने पिता के घर विधवा बनकर रह।” यहूदा के कहने पर तामार अपने पिता के घर चली गयी और वहीं रहने लगी।

12 कुछ समय बाद यहूदा की पत्नी, जो शूआ की बेटी थी,+ मर गयी। यहूदा ने उसके लिए मातम मनाया और मातम के दिन पूरे होने के बाद वह अदुल्लाम के अपने साथी हीरा+ को लेकर तिमना+ गया, जहाँ उसकी भेड़ों के ऊन कतरनेवाले लोग थे। 13 तामार को बताया गया: “तेरा ससुर अपनी भेड़ों का ऊन कतरवाने तिमना जा रहा है।” 14 तब तामार ने अपने विधवा के कपड़े बदले और एक ओढ़ना ओढ़ा और अपना चेहरा घूँघट में छिपा लिया। फिर वह एनैम के फाटक के पास जा बैठी जो तिमना के रास्ते में है। तामार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे शेलह की पत्नी नहीं बनाया गया था, जबकि अब वह बड़ा हो गया था।+

15 जैसे ही यहूदा ने उसे देखा उसने सोचा कि वह कोई वेश्‍या है, क्योंकि उसने अपना चेहरा छिपा रखा था। 16 वह सड़क किनारे उसके पास गया और बोला, “क्या तू मुझे अपने साथ संबंध रखने देगी?” वह नहीं जानता था कि वह औरत उसकी बहू है।+ तब वह बोली, “बदले में तू मुझे क्या देगा?” 17 उसने कहा, “मैं अपने झुंड में से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेजूँगा।” मगर वह बोली, “जब तक तू बकरी का बच्चा नहीं भेजता, तब तक के लिए तू बंधक में क्या रखेगा?” 18 उसने कहा, “तू ही बता, मैं बंधक में तुझे क्या दूँ?” वह बोली, “अपनी मुहरवाली अँगूठी,+ उसकी डोरी और वह छड़ी जो तेरे हाथ में है।” तब उसने वे सारी चीज़ें उसे दे दीं और उसके साथ संबंध रखे और उस औरत के गर्भ ठहर गया। 19 इसके बाद वह उठकर वहाँ से चली गयी। उसने अपना ओढ़ना उतारा और दोबारा अपने विधवा के कपड़े पहन लिए।

20 बाद में यहूदा ने अदुल्लाम के अपने साथी+ के हाथ बकरी का एक बच्चा भेजा कि वह उस औरत से बंधक की चीज़ें छुड़ा लाए। मगर जब उसका साथी वहाँ गया तो उसे वह औरत कहीं नहीं मिली। 21 उसने वहाँ के आदमियों से पूछताछ की: “मंदिर की वह वेश्‍या कहाँ है, जो एनैम में सड़क किनारे बैठा करती थी?” उन्होंने कहा, “इस इलाके में कभी कोई वेश्‍या नहीं रही।” 22 जब उसे वह औरत नहीं मिली, तो वह यहूदा के पास लौट आया और उससे कहा, “मुझे वह वेश्‍या नहीं मिली। और वहाँ के आदमियों ने भी बताया, ‘इस इलाके में कभी कोई वेश्‍या नहीं रही।’” 23 तब यहूदा ने कहा, “कोई बात नहीं, उसे मेरी चीज़ें रख लेने दो। अगर हम उसके बारे में ज़्यादा पूछताछ करेंगे तो हमारी बदनामी होगी। और मैंने तो बकरी का बच्चा भेजकर अपना वचन निभाया, मगर वह औरत नहीं मिली तो हम क्या कर सकते हैं।”

24 लेकिन करीब तीन महीने बाद यहूदा को यह बताया गया: “तेरी बहू तामार वेश्‍या बन गयी है और अपनी बदचलनी से वह गर्भवती भी हो गयी है।” तब यहूदा ने कहा, “उसे बाहर सबके सामने लाकर मार डालो और जला दो।”+ 25 जब तामार को बाहर लाया जा रहा था, तो उसने अपने ससुर को यह संदेश भेजा: “ये चीज़ें जिस आदमी की हैं, उसी से मैं गर्भवती हुई हूँ।” उसने यह भी कहलवाया, “मेहरबानी करके ध्यान से देख, यह मुहरवाली अँगूठी, डोरी और यह छड़ी किसकी है।”+ 26 जब यहूदा ने वे चीज़ें ध्यान से देखीं तो उसने कहा, “दोषी वह नहीं, मैं हूँ क्योंकि मैंने उसे अपने बेटे शेलह की पत्नी नहीं बनाया।”+ इसके बाद यहूदा ने फिर कभी तामार के साथ संबंध नहीं रखे।

27 फिर तामार के बच्चा जनने का वक्‍त आया। उसकी कोख में जुड़वाँ लड़के थे। 28 प्रसव के वक्‍त सबसे पहले एक बच्चे का हाथ बाहर आया। धाई ने फौरन एक सुर्ख लाल रंग का धागा लिया और पहचान के लिए उसके हाथ पर बाँधकर कहा, “यह पहला बच्चा है।” 29 मगर फिर उस बच्चे ने अपना हाथ अंदर खींच लिया और जैसे ही उसने ऐसा किया, उसका भाई बाहर आया। यह देखकर धाई चौंक गयी और बोली, “तू तो खुद ही दरार बनाकर निकल आया!” इसलिए उस लड़के का नाम पेरेस*+ रखा गया। 30 उसके बाद उसका भाई बाहर निकला, जिसके हाथ पर सुर्ख लाल धागा बँधा था। उसका नाम जेरह+ रखा गया।

39 जब यूसुफ को इश्‍माएली+ मिस्र ले गए+ तो वहाँ पोतीफर नाम के एक मिस्री+ ने उसे खरीद लिया, जो फिरौन का एक दरबारी और पहरेदारों का सरदार था। 2 मगर यहोवा यूसुफ के साथ था+ इसलिए वह हर काम में कामयाब होता गया और उसे अपने मिस्री मालिक के घर में कुछ ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं। 3 उसके मालिक ने भी गौर किया कि यहोवा यूसुफ के साथ है और यहोवा हर काम में उसे कामयाबी दे रहा है।

4 यूसुफ का मालिक पोतीफर उससे खुश था और वह पोतीफर का खास सेवक बन गया। पोतीफर ने उसे अपने घर का अधिकारी बनाया और अपना सबकुछ उसके ज़िम्मे सौंप दिया। 5 जब से यूसुफ को उस मिस्री के घर का अधिकारी बनाया गया, तब से यहोवा यूसुफ की वजह से उसके घर पर आशीषें देने लगा। इसलिए चाहे घर में हो या बाहर, जो कुछ पोतीफर का था, उस पर यहोवा की आशीष बनी रही।+ 6 एक वक्‍त ऐसा आया कि पोतीफर ने अपना सबकुछ यूसुफ के ज़िम्मे सौंप दिया। उसे किसी चीज़ की चिंता नहीं थी, वह बस इतना जानता था कि उसके सामने खाने में क्या परोसा जा रहा है। यही नहीं, यूसुफ अब दिखने में भी बड़ा सजीला और मज़बूत कद-काठी का हो गया था।

7 कुछ समय बाद ऐसा हुआ कि पोतीफर की पत्नी यूसुफ पर नज़र डालने लगी। वह यूसुफ से कहती, “मेरे साथ सो।” 8 मगर यूसुफ इनकार कर देता और उससे कहता, “देख, मेरे मालिक ने मुझ पर इतना भरोसा किया कि उसने अपना सबकुछ मेरे ज़िम्मे सौंप दिया है और वह मुझसे कभी किसी चीज़ का हिसाब नहीं माँगता। 9 इस घर में मुझसे बड़ा कोई नहीं और मालिक ने अपना सबकुछ मेरे हाथ में कर दिया है, सिवा तेरे क्योंकि तू उसकी पत्नी है। तो भला मैं इतना बड़ा दुष्ट काम करके परमेश्‍वर के खिलाफ पाप कैसे कर सकता हूँ?”+

10 पोतीफर की पत्नी हर दिन यूसुफ से कहती थी कि वह उसके साथ सोए या अकेले में वक्‍त बिताए, मगर यूसुफ ने हर बार उसे साफ मना कर दिया। 11 लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि यूसुफ अपना काम करने घर के अंदर गया और उस वक्‍त घर में एक भी नौकर नहीं था। 12 तब पोतीफर की पत्नी ने झट-से उसका कपड़ा पकड़ लिया और कहा, “आ, मेरे साथ सो!” मगर यूसुफ वहाँ से फौरन भाग गया और घर से बाहर चला गया। उसने अपना कपड़ा उस औरत के हाथ में ही छोड़ दिया। 13 जब उसने देखा कि यूसुफ भाग गया है और उसका कपड़ा उसके हाथ में रह गया है, 14 तो वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी और उसने अपने घर के आदमियों को बुलाकर कहा, “देखो! उस इब्री आदमी ने क्या किया, जिसे मेरा पति इस घर में लाया था। उसने हमारा मज़ाक बनाया है। उसने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की, मगर मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। 15 मुझे चिल्लाते देख वह अपना कपड़ा मेरे पास छोड़कर भाग गया।” 16 फिर वह औरत यूसुफ के मालिक पोतीफर के लौटने तक यूसुफ का कपड़ा अपने पास रखे रही।

17 जब पोतीफर घर आया तो वह उसे भी वही बातें सुनाने लगी: “जिस इब्री दास को तू हमारे घर लाया था उसने मेरा मज़ाक बनाने की कोशिश की। मगर जब वह मेरे पास आया 18 तो मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। यह देखते ही वह अपना कपड़ा मेरे पास छोड़कर भाग गया।” 19 जैसे ही उस औरत ने अपने पति को बताया, “तेरे दास ने मेरे साथ ऐसा-ऐसा किया,” यूसुफ का मालिक गुस्से से आग-बबूला हो उठा। 20 उसने यूसुफ को पकड़ लिया और उस जेल में डाल दिया जहाँ राजा अपने कैदियों को रखता था। और यूसुफ जेल में ही पड़ा रहा।+

21 मगर यहोवा ने यूसुफ का साथ नहीं छोड़ा और उस पर कृपा* करता रहा। उसकी आशीष से यूसुफ ने जेल के दारोगा की नज़रों में मंज़ूरी पायी।+ 22 इसलिए दारोगा ने यूसुफ को जेल के सारे कैदियों का अधिकारी ठहराया और वे उसी के हुक्म पर सारा काम करते थे।+ 23 यूसुफ की निगरानी में जो कुछ होता था, उस बारे में दारोगा को ज़रा भी चिंता नहीं करनी पड़ती थी क्योंकि यहोवा यूसुफ के साथ था और यहोवा हर काम में उसे कामयाबी दे रहा था।+

40 कुछ समय बाद मिस्र के राजा के प्रधान साकी+ और प्रधान रसोइए ने अपने मालिक, राजा के खिलाफ कोई अपराध किया। 2 इसलिए फिरौन अपने उन दोनों अधिकारियों यानी प्रधान साकी और प्रधान रसोइए पर भड़क उठा।+ 3 उसने उन्हें जेल में डाल दिया, उसी जेल में जो पहरेदारों के सरदार+ के अधिकार में थी और जहाँ यूसुफ भी कैद था।+ 4 पहरेदारों के सरदार ने यूसुफ को उन अधिकारियों के पास रहने और उनकी सेवा करने का काम दिया।+ वे दोनों कुछ समय* तक जेल में रहे।

5 जब मिस्र के राजा के साकी और रसोइया जेल में थे, तब दोनों ने एक ही रात में एक-एक सपना देखा। दोनों के सपनों का मतलब अलग था। 6 सुबह होने पर जब यूसुफ उनके पास आया, तो उसने देखा कि उनका चेहरा उतरा हुआ है। 7 उसने फिरौन के उन अधिकारियों से, जो उसके मालिक के घर में उसके साथ कैद थे, पूछा, “क्या बात है, आज तुम इतने उदास क्यों लग रहे हो?” 8 उन्होंने कहा, “हम दोनों ने एक सपना देखा है मगर यहाँ उनका मतलब समझानेवाला कोई नहीं है।” यूसुफ ने उनसे कहा, “सपनों का मतलब सिर्फ परमेश्‍वर समझा सकता है।+ क्या मैं जान सकता हूँ, तुमने क्या सपना देखा?”

9 तब प्रधान साकी ने यूसुफ को अपना सपना बताया, “मैंने सपने में देखा कि मेरे सामने अंगूर की एक बेल है। 10 उस बेल पर तीन टहनियाँ थीं और उन पर नयी-नयी पत्तियाँ निकलती दिखायी दीं। फिर उनमें फूल आए और उन पर गुच्छे लगे और वे पककर अंगूर बन गए। 11 मेरे हाथ में फिरौन का प्याला था और मैंने अंगूर तोड़े और उनका रस प्याले में निचोड़ा। फिर वह प्याला मैंने फिरौन के हाथ में दे दिया।” 12 तब यूसुफ ने उससे कहा, “अब सुन तेरे सपने का क्या मतलब है। तूने जो तीन टहनियाँ देखीं उनका मतलब है तीन दिन। 13 आज से तीन दिन बाद फिरौन तुझे रिहा करेगा* और तुझे तेरा पद वापस दे देगा।+ तू पहले की तरह फिरौन का साकी बन जाएगा और उसे प्याला पिलाएगा।+ 14 जब तेरे अच्छे दिन लौट आएँ तो मुझे ज़रूर याद करना। मुझ पर कृपा* करना और मेरे बारे में फिरौन से ज़रूर ज़िक्र करना ताकि वह मुझे यहाँ से आज़ाद कर दे। 15 मुझे असल में इब्रियों के देश से अगवा करके यहाँ लाया गया था+ और यहाँ भी मैंने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी मुझे जेल* में डाल दिया गया।”+

16 जब प्रधान रसोइए ने देखा कि यूसुफ ने साकी के सपने का जो मतलब बताया वह बहुत अच्छा है, तो उसने भी यूसुफ को अपना सपना बताया, “मैंने भी सपने में खुद को देखा। मेरे सिर पर तीन टोकरियाँ थीं और उनमें सफेद रोटियाँ भरी थीं। 17 सबसे ऊपरवाली टोकरी में फिरौन के लिए सेंककर बनायी गयी तरह-तरह की चीज़ें थीं। फिर मैंने देखा कि कुछ चिड़ियाँ मेरे सिर पर रखी टोकरी में से चीज़ें खा रही हैं।” 18 तब यूसुफ ने उससे कहा, “अब सुन तेरे सपने का क्या मतलब है। तूने जो तीन टोकरियाँ देखीं उनका मतलब है तीन दिन। 19 आज से तीन दिन बाद फिरौन तेरा सिर कटवाकर* तुझे काठ पर लटका देगा और पक्षी तेरा माँस खा जाएँगे।”+

20 तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था।+ उसने एक बड़ी दावत रखी और अपने सभी दरबारियों को बुलाया। उसने प्रधान साकी और प्रधान रसोइए को जेल से निकलवाया* और उन्हें दरबारियों के सामने लाया। 21 फिर उसने प्रधान साकी को उसका पद वापस दे दिया और वह पहले की तरह फिरौन को प्याला देने का काम करने लगा। 22 मगर प्रधान रसोइए को उसने काठ पर लटका दिया। उन दोनों के साथ वही हुआ जो यूसुफ ने सपनों का मतलब बताते हुए कहा था।+ 23 लेकिन प्रधान साकी ने जेल से छूटने के बाद यूसुफ को याद नहीं किया, वह उसे भूल गया।+

41 फिर दो साल बाद एक रात फिरौन को सपना आया।+ उसने देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है। 2 और नदी में से सात मोटी-ताज़ी, सुंदर गायें निकलीं और नदी किनारे घास चरने लगीं।+ 3 उनके बाद नदी में से सात और गायें निकलीं जो दुबली-पतली और दिखने में भद्दी थीं। वे नील नदी के किनारे उन मोटी गायों के पास खड़ी हो गयीं। 4 फिर ये दुबली-पतली, भद्दी गायें उन सात मोटी-ताज़ी, सुंदर गायों को खाने लगीं। इतने में फिरौन की नींद खुल गयी।

5 थोड़ी देर बाद वह फिर सो गया और उसे एक और सपना आया। उसने सपने में देखा कि एक डंठल पर अनाज की सात मोटी-मोटी, भरी हुई बालें निकल रही हैं।+ 6 इसके बाद अनाज की सात पतली-पतली बालें फूट निकलीं जो पूरब से चलनेवाली गरम हवा की वजह से झुलसी हुई थीं। 7 फिर अनाज की ये पतली बालें उन सात मोटी-मोटी, भरी हुई बालों को निगलने लगीं। तब फिरौन की आँख खुल गयी और उसे एहसास हुआ कि वह सपना था।

8 जब सुबह हुई तो फिरौन का मन बेचैन होने लगा। उसने मिस्र के सभी जादू-टोना करनेवाले पुजारियों और बड़े-बड़े ज्ञानियों को बुलवाया और उन्हें अपने सपनों के बारे में बताया। मगर उनमें से कोई भी उन सपनों का मतलब नहीं बता पाया।

9 तब फिरौन के प्रधान साकी ने उससे कहा, “आज मैं फिरौन के सामने अपने पाप कबूल करता हूँ। 10 कुछ समय पहले फिरौन मुझ पर और प्रधान रसोइए पर भड़क उठा था और हम दोनों सेवकों को उस जेल में डाल दिया गया जो पहरेदारों के सरदार के अधिकार में है।+ 11 वहाँ हमने एक ही रात में एक-एक सपना देखा। हमारे सपनों का मतलब अलग-अलग था।+ 12 जेल में हमारे साथ एक इब्री जवान भी था, जो पहरेदारों के सरदार का दास है।+ जब हमने उसे अपने सपनों के बारे में बताया+ तो उसने उनका मतलब समझाया। 13 उसने जैसा कहा, ठीक वैसा ही हुआ। मुझे मेरा पद वापस दे दिया गया और प्रधान रसोइए को काठ पर लटका दिया गया।”+

14 यह सुनकर फिरौन ने यूसुफ के पास अपने आदमी भेजे+ कि वे जल्द-से-जल्द उसे जेल* से ले आएँ।+ तब यूसुफ ने अपनी हजामत बनायी,* अपने कपड़े बदले और फिरौन के सामने आया। 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, “मैंने एक सपना देखा है, मगर उसका मतलब समझानेवाला कोई नहीं है। मैंने सुना है कि जब कोई तुझे अपना सपना बताता है तो तू उसका मतलब बता सकता है।”+ 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, “मैं तो कुछ भी नहीं! परमेश्‍वर ही है जो फिरौन के लिए कोई अच्छी खबर सुनाएगा।”+

17 तब फिरौन ने यूसुफ को बताया, “मैंने सपने में देखा कि मैं नील नदी के किनारे खड़ा हूँ। 18 और नदी में से सात मोटी-ताज़ी, सुंदर गायें निकलीं और नदी किनारे घास चरने लगीं।+ 19 उनके बाद, नदी में से सात और गायें निकलीं जो दुबली-पतली और मरियल-सी थीं और दिखने में भद्दी थीं। मैंने पूरे मिस्र में ऐसी भद्दी गायें कहीं नहीं देखीं। 20 फिर ये दुबली-पतली गायें उन सात मोटी-ताज़ी गायों को खाने लगीं। 21 मगर उन गायों को खाने के बाद भी वे ऐसी लग रही थीं जैसे उन्होंने कुछ खाया ही न हो, क्योंकि वे पहले की तरह दुबली-पतली ही थीं। इतने में मेरी नींद खुल गयी।

22 फिर मुझे एक और सपना आया। मैंने देखा कि एक डंठल पर अनाज की सात मोटी-मोटी, भरी हुई बालें निकल रही हैं।+ 23 इसके बाद अनाज की सात पतली-पतली, मुरझायी हुई बालें निकलीं जो पूरब की गरम हवा से झुलसी हुई थीं। 24 फिर अनाज की ये पतली बालें उन सात मोटी बालों को निगलने लगीं। मैंने इन सपनों के बारे में जादू-टोना करनेवाले पुजारियों+ को बताया, मगर उनमें से कोई भी मेरे सपनों का मतलब नहीं बता सका।”+

25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, “फिरौन के दोनों सपनों का एक ही मतलब है। सच्चे परमेश्‍वर ने फिरौन को बताया है कि वह क्या करनेवाला है।+ 26 सात अच्छी गायों का मतलब सात साल है। उसी तरह सात अच्छी बालों का मतलब भी सात साल है। दोनों सपनों का एक ही मतलब है। 27 बाद में आनेवाली सात दुबली-पतली, भद्दी गायों का मतलब सात साल है। और सात सूखी और हवा से झुलसी बालों का मतलब यह है कि सात साल तक अकाल पड़ेगा। 28 जैसे मैंने पहले कहा था, सच्चे परमेश्‍वर ने फिरौन को दिखाया है कि वह क्या करनेवाला है।

29 देख, ऐसे सात साल आनेवाले हैं जब पूरे मिस्र में भरपूर पैदावार होगी। 30 लेकिन उसके बाद सात साल तक ऐसा भारी अकाल पड़ेगा कि बीते सात सालों की भरपूर पैदावार किसी को याद तक नहीं रहेगी। यह अकाल पूरे देश को खा जाएगा।+ 31 अकाल की मार इतनी ज़बरदस्त होगी कि लोग बीते दिनों की खुशहाली भूल जाएँगे। 32 फिरौन को दो-दो बार सपने यह बताने के लिए दिखाए गए कि सच्चे परमेश्‍वर ने जो ठाना है उसे वह ज़रूर करेगा और वह भी बहुत जल्द।

33 इसलिए अच्छा होगा कि फिरौन एक ऐसे आदमी को चुने जो सूझ-बूझ से काम लेनेवाला और बुद्धिमान हो और उसे पूरे मिस्र देश का अधिकारी ठहराए। 34 और देश-भर में निगरानी करनेवालों को ठहराए कि वे सात सालों के दौरान होनेवाली भरपूर पैदावार का पाँचवाँ हिस्सा इकट्ठा करते रहें।+ 35 और वे आनेवाले अच्छे सालों के दौरान जो अनाज इकट्ठा करेंगे उसे अलग-अलग शहरों में फिरौन के गोदामों में भरते जाएँ और सँभालकर रखें।+ 36 फिर जब मिस्र में सात साल का अकाल पड़ेगा तो यह अनाज देश-भर में मुहैया कराया जाए ताकि देश अकाल की मार से मिट न जाए।”+

37 यूसुफ का यह सुझाव फिरौन और उसके सभी दरबारियों को अच्छा लगा। 38 फिरौन ने अपने दरबारियों से कहा, “इस आदमी पर वाकई ईश्‍वर की शक्‍ति काम करती है, इसलिए इस ज़िम्मेदारी के लिए इससे बेहतर और कौन हो सकता है?” 39 इसके बाद फिरौन ने यूसुफ से कहा, “ईश्‍वर ने तुझ पर ये सारी बातें ज़ाहिर की हैं, इसलिए तुझ जैसा बुद्धिमान और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला और कोई नहीं। 40 अब से तू मेरे दरबार का सबसे बड़ा अधिकारी होगा और मेरी सारी प्रजा वही करेगी जो तू कहेगा।+ मैं सिर्फ एक राजा की हैसियत से* तुझसे बड़ा होऊँगा।” 41 फिरौन ने यूसुफ से यह भी कहा, “देख, आज मैं तुझे पूरे मिस्र देश का अधिकारी बनाता हूँ।”+ 42 यह कहकर फिरौन ने अपने हाथ से मुहरवाली अँगूठी निकाली और यूसुफ को पहना दी। और उसे बढ़िया मलमल की पोशाक पहनायी और गले में सोने का हार पहनाया। 43 इतना ही नहीं, फिरौन ने यूसुफ को अपने दूसरे शाही रथ पर सवार कराया। और लोग उसके आगे-आगे चलते हुए “अवरेक! अवरेक!”* कहने लगे। इस तरह फिरौन ने यूसुफ को पूरे मिस्र देश का अधिकारी ठहराया।

44 फिरौन ने यूसुफ से यह भी कहा, “मैं फिरौन हूँ, फिर भी तेरी इजाज़त के बगैर इस देश का कोई भी आदमी कुछ नहीं कर सकेगा।”*+ 45 इसके बाद फिरौन ने यूसुफ को सापनत-पानेह नाम दिया और ओन* शहर के पुजारी पोतीफेरा की बेटी आसनत+ से उसकी शादी करायी। और यूसुफ पूरे मिस्र देश की निगरानी का काम* करने लगा।+ 46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सामने खड़ा हुआ* तब वह 30 साल का था।+

यूसुफ, फिरौन के पास से चला गया और उसने पूरे मिस्र का दौरा किया। 47 फिर मिस्र में सात अच्छे साल शुरू हुए। इस दौरान देश भरपूर* पैदावार देने लगा। 48 यूसुफ पूरे मिस्र में अनाज इकट्ठा करवाने लगा और अलग-अलग शहर के गोदामों में जमा करवाने लगा। उसने हर शहर में उसके आस-पास के खेतों की फसल इकट्ठी करवायी। 49 वह इतना सारा अनाज इकट्ठा करवाता गया कि उसकी तादाद समुंदर की बालू की तरह हो गयी। और एक वक्‍त ऐसा आया कि उसे तौलकर हिसाब रखना मुश्‍किल हो गया, इसलिए उन्होंने हिसाब रखना ही छोड़ दिया।

50 अकाल के साल शुरू होने से पहले यूसुफ को उसकी पत्नी आसनत से, जो ओन* के पुजारी पोतीफेरा की बेटी थी, दो लड़के हुए।+ 51 यूसुफ ने अपने पहलौठे का नाम मनश्‍शे*+ रखा क्योंकि उसने कहा, “परमेश्‍वर की दया से मैंने अपने सारे गम और अपने पिता के घर की सभी यादें भुला दी हैं।” 52 यूसुफ ने अपने दूसरे बेटे का नाम एप्रैम*+ रखा क्योंकि उसने कहा, “जिस देश में मैंने तकलीफें झेलीं, उसी देश में परमेश्‍वर ने मुझे फलने-फूलने की आशीष दी है।”+

53 मिस्र देश में भरपूर पैदावार के सात साल खत्म हो गए।+ 54 इसके बाद अकाल के सात साल शुरू हो गए, ठीक जैसे यूसुफ ने कहा था।+ दुनिया के सभी देश इस अकाल की चपेट में आ गए, मगर मिस्र में अनाज* था।+ 55 जब मिस्र में भी अकाल पड़ा तो लोग खाने के लिए फिरौन से फरियाद करने लगे।+ फिरौन ने सभी मिस्रियों से कहा, “यूसुफ के पास जाओ। वह तुमसे जो कहे, वही करो।”+ 56 सारी दुनिया में अकाल का कहर बढ़ता जा रहा था।+ अब यूसुफ ने मिस्र के सारे गोदाम खोलने शुरू कर दिए और वह मिस्रियों को अनाज बेचने लगा+ क्योंकि मिस्र में अकाल की ज़बरदस्त मार पड़ी थी। 57 दुनिया के अलग-अलग देशों से भी लोग मिस्र आने लगे और यूसुफ से अनाज खरीदने लगे, क्योंकि पूरी धरती इस भयंकर अकाल की चपेट में आ गयी थी।+

42 जब याकूब को पता चला कि मिस्र में अनाज मिल रहा है,+ तो उसने अपने बेटों से कहा, “तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं?” 2 उसने यह भी कहा, “मैंने सुना है कि मिस्र में अनाज मिल रहा है। जाओ, वहाँ से हमारे लिए अनाज खरीद लाओ ताकि हम भूखे न मर जाएँ।”+ 3 तब यूसुफ के दस भाई+ अपने पिता के कहने पर अनाज खरीदने मिस्र गए। 4 याकूब ने उनके साथ बिन्यामीन को नहीं भेजा+ जो यूसुफ का सगा भाई था, क्योंकि याकूब ने कहा, “कहीं उसके साथ कोई हादसा न हो जाए।”+

5 इसराएल के बेटे कनान के दूसरे लोगों के साथ अनाज खरीदने मिस्र आए, क्योंकि कनान में भी अकाल पड़ा था।+ 6 पूरे मिस्र देश पर यूसुफ का अधिकार था+ और वही अलग-अलग देश से आनेवाले लोगों को अनाज बेचता था।+ इसलिए यूसुफ के भाई उसके पास आए और उन्होंने मुँह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया।+ 7 यूसुफ ने उन्हें देखते ही पहचान लिया, मगर उसने अनजान बनने का ढोंग किया+ और उनसे कड़ककर पूछा, “कहाँ से आए हो तुम लोग?” उन्होंने कहा, “हम कनान देश से आए हैं और अनाज खरीदना चाहते हैं।”+

8 इस तरह यूसुफ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया, मगर उन्होंने उसे नहीं पहचाना। 9 फिर तभी यूसुफ को वे सपने याद आए जो उसने अपने भाइयों के बारे में देखे थे।+ उसने उनसे कहा, “तुम लोग जासूस हो! तुम हमारे देश की कमज़ोरियों का पता लगाने आए हो!” 10 उन्होंने कहा, “नहीं मालिक, हम तो तेरे दास हैं, तुझसे अनाज खरीदने आए हैं। 11 हम सब भाई हैं, एक ही पिता के बेटे हैं। हम सीधे-सच्चे लोग हैं। हम कोई जासूसी करने नहीं आए।” 12 मगर यूसुफ ने कहा, “तुम झूठ बोल रहे हो! तुम हमारे देश की कमज़ोरियों का पता लगाने आए हो!” 13 उन्होंने कहा, “हम सच कह रहे हैं मालिक। हम 12 भाई हैं+ और हम एक ही आदमी के बेटे हैं,+ हमारा पिता कनान का रहनेवाला है। हमारा सबसे छोटा भाई पिता के साथ घर पर है+ और एक भाई अब नहीं रहा।”+

14 लेकिन यूसुफ ने उनसे कहा, “नहीं, नहीं, तुम जासूस हो! 15 सच-झूठ का पता लगाने का एक तरीका है: फिरौन के जीवन की शपथ, जब तक तुम्हारा वह छोटा भाई यहाँ नहीं आता, तब तक तुम यहाँ से हरगिज़ नहीं जा सकते।+ 16 तुम्हें यहाँ हिरासत में रहना होगा। तुममें से एक जाकर अपने भाई को यहाँ ले आए, तब पता चल जाएगा कि तुम कितना सच बोल रहे हो। अगर तुम झूठे निकले तो यह साबित हो जाएगा कि तुम सब जासूस हो।” 17 यह कहकर उसने उन सबको तीन दिन के लिए हिरासत में रखा।

18 तीसरे दिन यूसुफ ने उनसे कहा, “देखो, मैं सच्चे परमेश्‍वर का डर माननेवाला इंसान हूँ। इसलिए मैं जो कहता हूँ वह करो तो तुम्हारी जान सलामत रहेगी। 19 अगर तुम वाकई सीधे-सच्चे हो तो एक काम करो। अपने एक भाई को यहीं हिरासत में रहने दो और बाकी लोग अनाज लेकर अपने घर जाएँ ताकि तुम्हारे बाल-बच्चे भूख से न मर जाएँ।+ 20 फिर अपने सबसे छोटे भाई को यहाँ ले आओ। तभी मुझे यकीन होगा कि तुम सच बोल रहे हो और तुम नहीं मार डाले जाओगे।” यूसुफ के भाइयों ने उसकी बात मान ली।

21 फिर वे एक-दूसरे से कहने लगे, “हमने अपने भाई के साथ जो किया था, आज हमें उसी की सज़ा मिल रही है।+ याद है वह कैसे हमसे रहम की भीख माँग रहा था, उसका मन कैसे तड़प रहा था, फिर भी हमने उस पर तरस नहीं खाया इसीलिए आज हम पर यह मुसीबत टूट पड़ी है।” 22 तब रूबेन बोला, “मैंने कहा था न तुमसे, लड़के को कुछ मत करना, मगर तुमने मेरी कहाँ सुनी।+ अब देखो, उसके खून का बदला हमसे लिया जा रहा है।”+ 23 यूसुफ उनकी ये सारी बातें समझ रहा था मगर वे यह बात नहीं जानते थे, क्योंकि यूसुफ एक अनुवादक के ज़रिए उनसे बात कर रहा था। 24 उनकी बातें सुनकर यूसुफ उनसे दूर एक अलग जगह जाकर रोने लगा।+ फिर वह वापस उनके पास आया और उसने दोबारा उनसे बात की। तब उसने उनके बीच से शिमोन को अलग किया+ और उनकी आँखों के सामने उसे बंदी बना लिया।+ 25 इसके बाद, यूसुफ ने अपने आदमियों को हुक्म दिया कि वे उनकी बोरियों में अनाज भर दें और हरेक की बोरी में उसका दिया पैसा वापस रख दें। साथ ही, उनके सफर के लिए खाने की चीज़ें बाँध दें। उसके आदमियों ने वैसा ही किया।

26 फिर यूसुफ के भाइयों ने अपने गधों पर अनाज की बोरियाँ लादीं और वहाँ से चल दिए। 27 रास्ते में जब वे एक मुसाफिरखाने में ठहरे और उनमें से एक ने अपने गधे को चारा देने के लिए अपनी बोरी खोली, तो वह यह देखकर दंग रह गया कि उसका दिया पैसा बोरी में ऊपर रखा हुआ है। 28 उसने अपने भाइयों से कहा, “यह देखो, उन्होंने मेरा पैसा वापस दे दिया, यह मेरी बोरी में है!” यह देखकर उन सबका दिल बैठ गया और वे थर-थर काँपने लगे। वे एक-दूसरे से कहने लगे, “परमेश्‍वर ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?”

29 जब वे कनान देश में अपने पिता के पास पहुँचे, तो उन्होंने उसे बताया कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। 30 उन्होंने कहा, “उस देश के सबसे बड़े अधिकारी ने हमारे साथ बड़ी रुखाई से बात की+ और हम पर इलज़ाम लगाया कि हम वहाँ जासूसी करने आए हैं। 31 मगर हमने कहा, ‘हम सीधे-सच्चे लोग हैं, हम कोई जासूस नहीं हैं।+ 32 हम 12 भाई हैं,+ एक ही पिता के बेटे। एक भाई अब नहीं रहा+ और सबसे छोटा भाई कनान में हमारे पिता के साथ घर पर है।’+ 33 मगर उस अधिकारी ने हमसे कहा, ‘मैं देखना चाहता हूँ कि तुम वाकई सीधे-सच्चे हो या नहीं। एक काम करो। तुम अपने एक भाई को यहाँ छोड़ दो+ और बाकी लोग अनाज लेकर अपने घर जाएँ ताकि तुम्हारे बाल-बच्चे भूख से न मर जाएँ।+ 34 इसके बाद तुम अपने छोटे भाई को लेकर यहाँ आना, तभी मैं यकीन करूँगा कि तुम सीधे-सच्चे लोग हो, कोई जासूस नहीं हो। फिर मैं तुम्हें तुम्हारा यह भाई लौटा दूँगा और तुम आगे भी हमारे देश से अनाज खरीद सकोगे।’”

35 बाद में जब वे अपनी-अपनी बोरी खाली करने लगे तो हरेक की बोरी में उसके पैसों की थैली रखी हुई थी। यह सब देखकर याकूब और उसके बेटे डर गए। 36 उनका पिता याकूब आहें भरकर उनसे कहने लगा, “तुम क्यों मेरे बच्चों को मुझसे छीन लेना चाहते हो?+ यूसुफ तो पहले ही नहीं रहा,+ मैंने शिमोन को भी खो दिया+ और अब तुम बिन्यामीन को भी मुझसे दूर ले जाना चाहते हो। हाय! मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है?” 37 तब रूबेन ने अपने पिता से कहा, “बिन्यामीन का ज़िम्मा मैं लेता हूँ। मैं उसे सही-सलामत वापस ले आऊँगा, नहीं तो तू मेरे दोनों बेटों को मार डालना।+ मैं वादा करता हूँ कि मैं खुद बिन्यामीन को वापस ले आऊँगा।”+ 38 मगर याकूब ने कहा, “नहीं, मैं अपने बेटे को तुम्हारे साथ नहीं भेजूँगा। उसका भाई पहले ही मर चुका है और वह अकेला रह गया है।+ अगर सफर में उसके साथ कोई हादसा हो गया तो तुम्हारी वजह से यह बूढ़ा शोक में डूबा कब्र+ चला जाएगा।”+

43 कनान देश में अकाल ज़ोरों पर था।+ 2 याकूब के घर में जब मिस्र से लाया सारा अनाज खत्म हो गया,+ तो उसने अपने बेटों से कहा, “जाओ, फिर से मिस्र जाओ और हमारे लिए अनाज खरीद लाओ।” 3 तब यहूदा ने उससे कहा, “उस आदमी ने हमसे साफ-साफ कहा है, ‘जब तक तुम अपने भाई को साथ नहीं लाते, मुझे अपना मुँह मत दिखाना।’+ 4 इसलिए अगर तू हमारे भाई को साथ भेजेगा, तो हम मिस्र जाकर अनाज खरीद लाएँगे। 5 लेकिन अगर तू उसे नहीं भेजेगा तो हम नहीं जाएँगे, क्योंकि उस आदमी ने हमसे कहा है, ‘जब तक तुम अपने भाई को साथ नहीं लाते, मुझे अपना मुँह मत दिखाना।’”+ 6 इसराएल+ ने पूछा, “क्या ज़रूरत थी उसे बताने की कि तुम्हारा एक और भाई भी है? तुमने क्यों मुझे संकट में डाल दिया है?” 7 उन्होंने कहा, “उस आदमी ने हमसे सीधे-सीधे पूछा कि हमारे घर में और कौन-कौन है। उसने पूछा, ‘क्या तुम्हारा पिता है? क्या तुम्हारा कोई और भाई है?’ और हमने उसे सबकुछ सच-सच बताया।+ हमें क्या मालूम था वह कहेगा, ‘तुम अपने भाई को यहाँ ले आओ।’”+

8 फिर यहूदा ने यह कहकर अपने पिता इसराएल को मनाया, “मेरी बात मान और लड़के को मेरे साथ भेज दे+ ताकि हम जाएँ, वरना तू और हम और हमारे ये बाल-बच्चे,+ सब भूखे मर जाएँगे।+ 9 मैं यकीन दिलाता हूँ कि लड़के को सही-सलामत वापस ले आऊँगा।*+ उसकी हिफाज़त की ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ। अगर मैं उसे तेरे पास वापस न ला सका, तो मैं ज़िंदगी-भर तेरा गुनहगार रहूँगा। 10 वैसे भी हमने मिस्र जाने में बहुत देर कर दी है, अब तक तो हम दो बार जाकर लौट आते।”

11 तब उनके पिता इसराएल ने उनसे कहा, “अगर ऐसी बात है, तो जाओ। साथ में उस आदमी के लिए कुछ तोहफे ले जाओ।+ इस देश की बढ़िया-बढ़िया चीज़ें अपनी बोरियों में ले लो: थोड़ा बलसाँ,+ थोड़ा शहद, सुगंधित गोंद, रालदार छाल,+ पिस्ता और बादाम। 12 इस बार अनाज के लिए पहले से दुगना पैसा ले जाओ। और वह पैसा भी ले जाओ, जो शायद गलती से तुम्हारी बोरियों में डाल दिया गया था।+ 13 अब सफर के लिए निकलो और अपने भाई को लेकर उस आदमी के पास जाओ। 14 सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर से मेरी दुआ है कि वह आदमी तुम पर दया करे और तुम्हारे भाई को रिहा कर दे और बिन्यामीन को भी तुम्हारे साथ वापस भेज दे। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ और मुझे अपने बच्चों को खोना पड़ा, तो यह दुख सहने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं!”+

15 तब उन्होंने तोहफे में देने के लिए वह सारी चीज़ें लीं और दुगना पैसा लिया और बिन्यामीन को साथ लेकर मिस्र के लिए निकल पड़े। वहाँ पहुँचने पर वे एक बार फिर यूसुफ के सामने हाज़िर हुए।+ 16 यूसुफ ने जैसे ही उनके साथ बिन्यामीन को देखा, उसने अपने घर के अधिकारी से कहा, “इन आदमियों को मेरे घर ले जा। वे दोपहर का खाना मेरे साथ खाएँगे। जानवर हलाल कर और बढ़िया-सी दावत तैयार कर।” 17 यूसुफ ने जैसा कहा उस आदमी ने फौरन वैसा ही किया।+ वह उन सबको यूसुफ के घर ले गया। 18 जब उन्हें यूसुफ के घर ले जाया गया, तो वे बहुत डर गए और एक-दूसरे से कहने लगे, “पिछली बार हमारी बोरियों में जो पैसा रख दिया गया था, ज़रूर उसी की वजह से हमें यहाँ लाया गया है। अब देखना, वे हमें पकड़कर गुलाम बना लेंगे और हमारे गधे भी ले लेंगे!”+

19 इसलिए वे यूसुफ के घर के द्वार पर उसके अधिकारी के पास गए और उन्होंने उससे बात की। 20 उन्होंने कहा, “माफ करना मालिक, हम कुछ कहना चाहते हैं। हम पहले भी एक बार यहाँ अनाज खरीदने आए थे।+ 21 मगर यहाँ से लौटते वक्‍त जब हमने मुसाफिरखाने में अपनी बोरियाँ खोलीं, तो देखा कि हरेक की बोरी में उसका पूरा पैसा रखा हुआ है।+ हम यह पैसा वापस करना चाहते हैं। 22 इस बार अनाज खरीदने के लिए हम ज़्यादा पैसा लाए हैं। पिछली बार वह पैसा हमारी बोरियों में कैसे आ गया, हम नहीं जानते।”+ 23 तब उस अधिकारी ने कहा, “डरने की कोई बात नहीं। तुमने अनाज के लिए जो रकम दी थी वह मुझे मिली थी। जो पैसा तुम्हारी बोरियों में मिला वह तुम्हारे और तुम्हारे पिता के परमेश्‍वर ने तुम्हें दिया है।” इसके बाद वह शिमोन को बाहर उनके पास लाया।+

24 तब वह अधिकारी उन्हें यूसुफ के घर के अंदर ले गया और उन्हें पैर धोने के लिए पानी दिया और उनके गधों के लिए चारा दिया। 25 उन्होंने सुना कि यूसुफ दोपहर को घर आएगा और उनके साथ खाना खाएगा,+ इसलिए उन्होंने यूसुफ के लिए वह तोहफा तैयार किया जो वे अपने साथ लाए थे।+ 26 दोपहर को जब यूसुफ घर आया, तो उन्होंने वह तोहफा उसके सामने पेश किया और फिर ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया।+ 27 इसके बाद उसने उनकी खैरियत पूछी और उनसे कहा, “तुम्हारा पिता कैसा है जिसके बारे में तुमने मुझे बताया था? तुमने कहा था कि वह बहुत बूढ़ा हो चुका है, उसके क्या हाल-चाल हैं?”+ 28 उन्होंने कहा, “तेरा दास खैरियत से है।” फिर उन्होंने ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया।+

29 जब यूसुफ ने नज़र उठाकर अपने सगे भाई बिन्यामीन+ को देखा तो उसने कहा, “क्या यही तुम्हारा सबसे छोटा भाई है, जिसके बारे में तुमने मुझे बताया था?”+ फिर उसने बिन्यामीन से कहा, “परमेश्‍वर की कृपा तुझ पर बनी रहे मेरे बेटे।” 30 अपने भाई को देखकर उसका दिल भर आया और वह खुद को रोक नहीं पाया। वह हड़बड़ाकर वहाँ से निकल गया और अकेले एक कमरे में जाकर बहुत रोया।+ 31 इसके बाद उसने अपना मुँह धोया और कमरे से बाहर आया। उसने अपने आपको सँभाला और फिर अपने आदमियों से कहा, “हम सबके लिए खाना लगाओ।” 32 उन्होंने यूसुफ के लिए एक अलग मेज़ लगायी और उसके भाइयों के लिए एक अलग मेज़। और उसके घर में जो मिस्री थे उन्होंने भी अलग खाना खाया, क्योंकि मिस्री लोग इब्री लोगों के साथ बैठकर खाना घिनौनी बात समझते हैं।+

33 उसके भाइयों को उसके सामने ही बिठाया गया। सबसे बड़े से लेकर, जिसे पहलौठे का हक था,+ सबसे छोटे तक सबको उनकी उम्र के हिसाब से बिठाया गया। उसके भाई बड़ी हैरानी से एक-दूसरे को देखते रहे। 34 और वह अपनी मेज़ से उनके पास खाना भिजवाता रहा और उसने बिन्यामीन को बाकियों से पाँच गुना ज़्यादा खाना दिया।+ इस तरह उन्होंने उसके साथ जी-भरकर खाया-पीया।

44 बाद में यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी को हुक्म दिया, “इन आदमियों की बोरियों में उतना अनाज भर दे जितना वे ले जा सकते हैं। और हरेक का दिया पैसा भी उसकी बोरी में रख दे।+ 2 और सबसे छोटे भाई की बोरी में पैसे के साथ-साथ मेरा चाँदी का प्याला भी रख दे।” यूसुफ ने जैसा कहा उस आदमी ने वैसा ही किया।

3 अगले दिन जब सुबह हुई, तो उन आदमियों को विदा कर दिया गया और वे अपने गधों को लेकर निकल पड़े। 4 मगर वे शहर से कुछ ही दूर पहुँचे थे कि यहाँ यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, “तू जल्दी से जा, उन आदमियों का पीछा करके उन्हें रोक ले! और उनसे कह, ‘तुमने मेरे मालिक की भलाई का बदला बुराई से क्यों दिया? 5 क्यों तुमने उसका वह प्याला चुरा लिया जिससे वह पीता है और शकुन विचारता है? तुम लोगों ने कैसा दुष्ट काम किया है!’”

6 तब वह अधिकारी गया और उसने जाकर उन सबको रोक लिया और यूसुफ ने उसे जो बताया था वही उन सबसे कहा। 7 मगर उन्होंने उस आदमी से कहा, “मालिक, यह तू क्या कह रहा है? तेरे ये दास ऐसा काम करने की सोच भी नहीं सकते। 8 पिछली बार हमें बोरियों में जो पैसा मिला था, वह हम तुझे लौटाने के लिए कनान से वापस ले आए थे।+ जब हमने वह पैसा अपने पास नहीं रखा, तो हम तेरे मालिक के घर से सोना-चाँदी कैसे चुरा सकते हैं? 9 अगर तेरे दासों में से किसी के पास वह प्याला मिला, तो वह जान से मार डाला जाए और बाकी हम सब मालिक के गुलाम बन जाएँगे।” 10 उस आदमी ने कहा, “ठीक है, जैसा तुम कहते हो वैसा ही करते हैं। मगर तुममें से सिर्फ वही मेरा गुलाम बनेगा जिसके पास वह प्याला मिलेगा और बाकी सब बेकसूर ठहरोगे।” 11 तब उन सबने फटाफट अपनी बोरियाँ ज़मीन पर उतारीं और उन्हें खोला। 12 उस आदमी ने सबकी बोरियों की तलाशी ली। उसने बड़े भाई से शुरू करते हुए एक-एक करके सबकी बोरियाँ ध्यान से देखीं। आखिर में जब उसने सबसे छोटे भाई बिन्यामीन की बोरी की तलाशी ली, तो प्याला उसकी बोरी में मिला।+

13 जब उन भाइयों ने यह देखा तो उन्होंने मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े। फिर उन्होंने अपने-अपने गधे पर बोरियाँ लादीं और वापस शहर गए। 14 तब यहूदा+ और उसके भाई यूसुफ के घर गए। यूसुफ अब भी वहीं था। वे सब उसके सामने ज़मीन पर गिर पड़े।+ 15 यूसुफ ने उनसे कहा, “यह तुमने क्या किया? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि मुझ जैसा इंसान शकुन विचारकर सबकुछ पता लगा सकता है?”+ 16 तब यहूदा ने कहा, “अब हम क्या कहें मालिक? हम अपनी बेगुनाही कैसे साबित करें? हमने बरसों पहले जो गुनाह किया था, आज सच्चा परमेश्‍वर हमसे उसी का लेखा ले रहा है।+ अब हम तेरे गुलाम हैं मालिक! जिसके पास वह प्याला मिला वह और हम सब तेरे गुलाम हैं।” 17 मगर उसने कहा, “नहीं, मैं ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता! सिर्फ वही मेरा गुलाम बनेगा जिसके पास वह प्याला मिला है।+ बाकी तुम सब अपने पिता के पास कुशल से वापस जा सकते हो।”

18 तब यहूदा उसके पास गया और उससे मिन्‍नत करने लगा, “मालिक, मैं कुछ कहना चाहता हूँ, मुझ पर भड़क मत जाना। मैं जानता हूँ, तेरी हस्ती फिरौन के समान है।+ 19 मालिक ने अपने दासों से पूछा था, ‘क्या तुम्हारा पिता है? क्या तुम्हारा कोई और भाई भी है?’ 20 हमने कहा, ‘हाँ, हमारा पिता है, वह बूढ़ा हो गया है और एक भाई भी है, सबसे छोटा।+ वह हमारे पिता के बुढ़ापे में पैदा हुआ था। उसका एक सगा भाई था जो मर गया है,+ इसलिए वह अब अपनी माँ का अकेला रह गया है।+ उसका पिता उससे बेहद प्यार करता है।’ 21 तब तूने अपने दासों से कहा, ‘अपने उस भाई को मेरे पास लाओ ताकि मैं उसे देखूँ।’+ 22 मगर हमने मालिक से कहा, ‘लड़का अपने पिता को छोड़कर नहीं आ सकता। अगर वह आया तो उसका पिता मर जाएगा।’+ 23 तब तूने अपने दासों से कहा, ‘जब तक तुम अपने छोटे भाई को नहीं लाते, मुझे अपना मुँह मत दिखाना।’+

24 घर लौटने पर हमने तेरे दास, अपने पिता को मालिक की सारी बातें बतायीं। 25 बाद में जब हमारे पिता ने कहा, ‘जाओ, हमारे लिए फिर से अनाज खरीद लाओ,’+ 26 तो हमने कहा, ‘हम ऐसे नहीं जा सकते। अगर हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ चले तो ही हम जाएँगे। वरना हम उस आदमी को अपना मुँह नहीं दिखा सकते।’+ 27 तब हमारे पिता ने हमसे कहा, ‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि मेरी पत्नी ने मुझे दो बेटे दिए थे।+ 28 एक को तो मैंने खो दिया और अब तक उसकी कोई खबर नहीं है, जैसे मैंने कहा था, “सचमुच किसी जंगली जानवर ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए होंगे।”+ 29 अब अगर तुम इस लड़के को भी मुझसे दूर ले जाओगे और उसके साथ कोई हादसा हो गया तो तुम्हारी वजह से यह बूढ़ा शोक में डूबा कब्र+ चला जाएगा।’+

30 इसलिए मैं इस लड़के के बगैर वापस नहीं जा सकता, क्योंकि इस लड़के में उसके पिता की जान बसी है। 31 अगर हम इसके बगैर गए, तो जैसे ही हमारा पिता देखेगा कि लड़का हमारे साथ नहीं है, वह मर जाएगा, शोक में डूबा कब्र चला जाएगा। और तेरे ये दास अपने बूढ़े पिता की मौत के दोषी ठहरेंगे। 32 इस लड़के को मैं अपनी ज़िम्मेदारी पर यहाँ लाया था और मैंने अपने पिता से कहा था, ‘अगर मैंने तेरा बेटा तुझे नहीं लौटाया, तो मैं ज़िंदगी-भर तेरा गुनहगार रहूँगा।’+ 33 इसलिए मालिक, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, इस लड़के के बदले मुझे अपना गुलाम बना ले और इसे छोड़ दे ताकि यह अपने भाइयों के साथ लौट जाए। 34 मैं इस लड़के के बगैर अपने पिता के पास नहीं जा सकता। मैं अपनी आँखों से अपने पिता को तड़पते हुए नहीं देख सकता!”

45 यूसुफ से अब और रहा नहीं गया।+ उसने अपने सेवकों को हुक्म दिया, “सबसे कहो कि वे बाहर चले जाएँ!” अब जब यूसुफ के साथ सिर्फ उसके भाई रह गए तो उसने उन्हें बताया कि वह असल में कौन है।+

2 यूसुफ ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा और उसके रोने की आवाज़ आस-पास के मिस्रियों ने भी सुनी और इसकी खबर फिरौन के दरबार तक पहुँच गयी। 3 कुछ देर बाद यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं यूसुफ हूँ। मेरा पिता कैसा है? वह ठीक तो है न?” मगर उसके भाई हक्के-बक्के रह गए, उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था। 4 तब यूसुफ ने उनसे कहा, “आओ, मेरे पास आओ।” तब वे सब उसके पास गए।

फिर उसने कहा, “मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ जिसे तुमने मिस्रियों को बेच दिया था।+ 5 मगर अब तुम दुखी मत हो, न ही एक-दूसरे पर दोष लगाओ कि तुमने मुझे बेच दिया। परमेश्‍वर ने तुम सबकी जान बचाने के लिए मुझे तुमसे पहले यहाँ भेजा है।+ 6 अकाल का यह दूसरा साल चल रहा है,+ अभी और पाँच साल तक यही हाल रहेगा, तब तक न कहीं हल चलेगा, न ही फसल उगेगी। 7 इसीलिए परमेश्‍वर ने मुझे तुमसे पहले यहाँ भेजा ताकि तुम्हें लाजवाब तरीके से बचाए और धरती* से तुम्हारा परिवार न मिटे।+ 8 इसलिए तुमने नहीं बल्कि सच्चे परमेश्‍वर ने मुझे यहाँ भेजा है कि वह मुझे फिरौन का प्रधान सलाहकार* और उसके दरबार का सबसे बड़ा अधिकारी और पूरे मिस्र का शासक ठहराए।+

9 अब जल्दी से मेरे पिता के पास जाओ और उससे कहो, ‘तेरे बेटे यूसुफ ने कहा है, “परमेश्‍वर ने मुझे पूरे मिस्र का अधिकारी ठहराया है।+ तू मेरे पास आ जा, देर न कर।+ 10 तू यहाँ मेरे पास ही गोशेन नाम के इलाके में रहेगा,+ तू, तेरे बेटे, पोते, साथ ही तेरे गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ और तेरा सबकुछ, यहीं मेरे पास रहेगा। 11 यहाँ मैं तेरे लिए अनाज मुहैया करवाता रहूँगा ताकि तू और तेरा घराना और तेरा जो भी है, तंगी से मिट न जाए क्योंकि यह अकाल अभी और पाँच साल तक चलेगा।”’+ 12 तुम सब खुद अपनी आँखों से देख रहे हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी देख रहा है कि मैं जो तुमसे बात कर रहा हूँ, यूसुफ ही हूँ।+ 13 इसलिए तुम जाकर मेरे पिता को बताना कि मिस्र में मेरी कितनी शोहरत है और तुमने यहाँ जो कुछ देखा वह सब उसे बताना। और बिना देर किए मेरे पिता को यहाँ ले आना।”

14 इसके बाद यूसुफ अपने भाई बिन्यामीन को गले लगाकर रोने लगा और बिन्यामीन भी उससे लिपटकर रोया।+ 15 फिर उसने अपने बाकी सभी भाइयों को चूमा और उनसे गले मिलकर रोया। इसके बाद उसके भाइयों ने उससे बात की।

16 फिरौन के दरबार में यह खबर दी गयी, “यूसुफ के भाई आए हैं!” यह सुनकर फिरौन और उसके दरबारी खुश हुए। 17 फिरौन ने यूसुफ से कहा, “अपने भाइयों से कहना, ‘तुम अपने जानवरों पर अनाज लादकर कनान जाओ 18 और अपने पिता और अपने परिवारों को साथ लेकर यहाँ मेरे पास चले आओ। मैं तुम्हें मिस्र की बेहतरीन चीज़ें दूँगा और तुम इस देश की बढ़िया-से-बढ़िया उपज* में से खाओगे।’+ 19 तू उनसे यह भी कहना,+ ‘तुम मिस्र से कुछ बैल-गाड़ियाँ ले जाओ+ ताकि तुम्हारे छोटे बच्चे और तुम्हारी पत्नियाँ उन पर बैठकर यहाँ आ सकें और एक गाड़ी में तुम अपने पिता को बिठाकर ले आना।+ 20 तुम अपनी जायदाद की चिंता मत करना,+ क्योंकि मिस्र की अच्छी-से-अच्छी चीज़ें तुम्हें दी जाएँगी।’”

21 इसराएल के बेटों ने ऐसा ही किया। यूसुफ ने फिरौन के हुक्म पर उन्हें बैल-गाड़ियाँ दीं। उसने सफर के लिए उन्हें खाने-पीने की चीज़ें भी दीं। 22 और उसने हरेक को एक-एक जोड़ा नया कपड़ा दिया, मगर बिन्यामीन को पाँच जोड़े नए कपड़े+ और चाँदी के 300 टुकड़े दिए। 23 और अपने पिता याकूब के लिए उसने दस गधों पर मिस्र की अच्छी-अच्छी चीज़ें और उसके सफर के लिए दस गधियों पर अनाज, रोटियाँ और खाने की दूसरी चीज़ें भिजवायीं। 24 इस तरह उसने अपने भाइयों को विदा किया। जब वे जाने लगे तो उसने उनसे कहा, “देखो, तुम रास्ते में एक-दूसरे पर गुस्सा मत करना।”+

25 फिर वे मिस्र से रवाना हुए और कनान देश में अपने पिता याकूब के पास पहुँचे। 26 उन्होंने उसे यह खबर सुनायी, “यूसुफ ज़िंदा है! और वही पूरे मिस्र का शासक है!”+ मगर यह सुनकर याकूब का दिल धक से रह गया क्योंकि उसने उनका यकीन नहीं किया।+ 27 लेकिन जब उन्होंने याकूब को वे सारी बातें बतायीं जो यूसुफ ने कही थीं और जब उसने खुद वे गाड़ियाँ देखीं जो यूसुफ ने उसके लिए भिजवायी थीं, तो उसके अंदर मानो नयी जान आ गयी। 28 इसराएल ने कहा, “अब मुझे यकीन हो गया है कि मेरा बेटा यूसुफ ज़िंदा है! मैं उसके पास जाऊँगा, ज़रूर जाऊँगा ताकि मरने से पहले उसे एक बार देख लूँ।”+

46 फिर इसराएल अपना सबकुछ* लेकर मिस्र के लिए निकल पड़ा। जब वह बेरशेबा+ पहुँचा तो वहाँ उसने अपने पिता इसहाक के परमेश्‍वर+ को बलिदान चढ़ाए। 2 वहाँ रात को परमेश्‍वर ने एक दर्शन में इसराएल से बात की। परमेश्‍वर ने उसे पुकारा, “याकूब, याकूब!” उसने कहा, “हाँ, प्रभु!” 3 परमेश्‍वर ने उससे कहा, “मैं सच्चा परमेश्‍वर हूँ, तेरे पिता का परमेश्‍वर।+ तू मिस्र जाने से मत डर क्योंकि वहाँ मैं तुझसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।+ 4 मैं मिस्र तक तेरे साथ-साथ चलूँगा और एक दिन मैं तुझे ज़रूर वहाँ से निकालकर यहाँ ले आऊँगा।+ और जब तेरी मौत हो जाएगी तो यूसुफ अपने हाथ से तेरी आँखें बंद करेगा।”+

5 इसके बाद याकूब बेरशेबा से आगे बढ़ा। उसके बेटों ने फिरौन की भेजी बैल-गाड़ियों पर अपने पिता और अपनी पत्नियों और बच्चों को बिठाया। 6 वे अपने साथ अपने सभी जानवर और अपना सामान ले गए जो उन्होंने कनान में रहते वक्‍त हासिल किया था। सफर करते-करते याकूब और उसका पूरा परिवार आखिरकार मिस्र पहुँच गया। 7 इस तरह याकूब अपने सभी बेटे-बेटियों और नाती-पोतों को यानी अपने पूरे परिवार को लेकर मिस्र आ गया।

8 इसराएल यानी याकूब के बेटे जो मिस्र आए थे,+ उनके नाम ये हैं: याकूब का पहलौठा था रूबेन।+

9 रूबेन के बेटे थे हानोक, पल्लू, हेसरोन और करमी।+

10 शिमोन+ के बेटे थे यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर और शौल+ जो एक कनानी औरत से पैदा हुआ था।

11 लेवी+ के बेटे थे गेरशोन, कहात और मरारी।+

12 यहूदा+ के बेटे थे एर, ओनान, शेलह,+ पेरेस+ और जेरह।+ मगर एर और ओनान कनान देश में ही मर गए थे।+

पेरेस के बेटे थे हेसरोन और हामूल।+

13 इस्साकार के बेटे थे तोला, पुव्वा, योब और शिमरोन।+

14 जबूलून+ के बेटे थे सेरेद, एलोन और यहलेल।+

15 याकूब के ये बेटे लिआ से पैदा हुए थे। उसके ये बेटे और उसकी बेटी दीना+ पद्दन-अराम में पैदा हुए थे। याकूब के इन बेटे-बेटियों की कुल गिनती 33 थी।

16 गाद+ के बेटे थे सफोन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी और अरेली।+

17 आशेर+ के बेटे थे यिम्नाह, यिश्‍वा, यिश्‍वी और बरीआ। और उनकी बहन थी सेरह।

बरीआ के बेटे थे हेबेर और मलकीएल।+

18 याकूब के ये बेटे उसी जिल्पा+ से पैदा हुए जो लाबान ने अपनी बेटी लिआ को दी थी। जिल्पा से याकूब के जो वंशज हुए उनकी गिनती कुल मिलाकर 16 थी।

19 याकूब की पत्नी राहेल के बेटे यूसुफ+ और बिन्यामीन+ थे।

20 यूसुफ के बेटे थे मनश्‍शे+ और एप्रैम।+ ये उसे मिस्र में उसकी पत्नी आसनत+ से पैदा हुए थे, जो ओन* के पुजारी पोतीफेरा की बेटी थी।

21 बिन्यामीन+ के बेटे थे बेला, बेकेर, अशबेल, गेरा,+ नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम+ और अर्द।+

22 याकूब के ये बेटे उसे राहेल से हुए थे और उनकी गिनती कुल मिलाकर 14 थी।

23 दान+ का बेटा* था हूशीम।+

24 नप्ताली+ के बेटे थे यहसेल, गूनी, येसेर और शिल्लेम।+

25 याकूब के ये बेटे उसी बिल्हा से पैदा हुए जो लाबान ने अपनी बेटी राहेल को दी थी। बिल्हा से याकूब के जो वंशज हुए वे कुल मिलाकर सात थे।

26 याकूब के सभी वंशज जो उसके साथ मिस्र आए उनकी गिनती 66 थी।+ इसमें याकूब की बहुओं की गिनती शामिल नहीं है। 27 यूसुफ को मिस्र में दो बेटे हुए थे। इस तरह मिस्र में याकूब के घराने के लोगों की कुल गिनती 70 थी।+

28 याकूब ने यहूदा+ को आगे भेजा कि वह जाकर यूसुफ को खबर दे कि याकूब गोशेन पहुँचनेवाला है। जब याकूब और उसका पूरा घराना गोशेन+ पहुँचा, 29 तो यूसुफ ने अपना रथ तैयार करवाया और अपने पिता इसराएल से मिलने गोशेन गया। जब वह अपने पिता के सामने आया, तो उसने फौरन पिता को गले लगाया और कुछ समय तक रोता रहा। 30 फिर इसराएल ने यूसुफ से कहा, “आज मेरी इन आँखों ने तुझे देख लिया। और मेरे लिए यही काफी है कि तू ज़िंदा है। अब मैं इत्मीनान से मर सकता हूँ।”

31 फिर यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के पूरे घराने से कहा, “मैं जाकर फिरौन को खबर देता हूँ+ कि कनान से मेरे भाई और मेरे पिता के घराने के लोग यहाँ मेरे पास आ गए हैं।+ 32 वे लोग चरवाहे हैं,+ भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल पालने का काम करते हैं।+ वे अपने साथ अपने जानवर और अपना सबकुछ ले आए हैं।+ 33 और जब फिरौन तुम्हें बुलाकर तुमसे पूछे, ‘तुम लोग क्या काम करते हो?’ 34 तो तुम कहना, ‘तेरे ये दास बचपन से भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल पालने का काम करते आए हैं। हमारे बाप-दादे भी यही काम करते थे।’+ तब वह तुम्हें रहने के लिए गोशेन नाम का इलाका देगा,+ क्योंकि मिस्रियों में भेड़-बकरियाँ पालनेवालों को नीचा समझा जाता है।”+

47 फिर यूसुफ ने फिरौन के पास आकर उसे यह खबर दी:+ “कनान से मेरा पिता और मेरे भाई आ चुके हैं। वे अपने साथ अपनी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और उनके पास जो कुछ है, सब लेकर आए हैं। अभी वे गोशेन में हैं।”+ 2 और यूसुफ अपने भाइयों में से पाँच को फिरौन के पास लाया।+

3 फिरौन ने उसके भाइयों से पूछा, “तुम लोग क्या काम करते हो?” उन्होंने कहा, “तेरे दास भेड़ चराने का काम करते हैं। हमारे बाप-दादे भी यही काम करते थे।”+ 4 फिर उन्होंने फिरौन से कहा, “हम इस देश में परदेसी बनकर रहना चाहते हैं,+ क्योंकि कनान में अकाल बहुत ज़ोरों पर है+ और वहाँ हमारे जानवरों के लिए चारा-पानी नहीं रहा। इसलिए तुझसे बिनती है कि हमें गोशेन में रहने की इजाज़त दे।”+ 5 तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, “तेरा पिता और तेरे भाई, जो यहाँ तेरे पास आए हुए हैं, 6 तू उनके रहने के लिए इस देश का बढ़िया-से-बढ़िया इलाका दे सकता है,+ पूरा मिस्र तेरे सामने पड़ा है। उन्हें गोशेन का इलाका दे दे। और तेरे भाई-बंधुओं में से जो-जो आदमी तेरी नज़र में काबिल हैं, उन्हें तू मेरे मवेशियों की देखभाल का ज़िम्मा सौंप दे।”

7 फिर यूसुफ अपने पिता याकूब को फिरौन के सामने लाया। याकूब ने फिरौन को आशीर्वाद दिया। 8 फिरौन ने याकूब से पूछा, “तेरी उम्र क्या होगी?” 9 याकूब ने फिरौन से कहा, “मैं 130 साल का हूँ, मगर मेरे पुरखों के मुकाबले मेरी ज़िंदगी के ये दिन बहुत कम हैं+ जो मैंने दुख झेलकर बिताए हैं।+ मैंने सारी ज़िंदगी जगह-जगह परदेसी बनकर गुज़ारी है, जैसे मेरे पुरखे जगह-जगह परदेसी बनकर रहे थे।” 10 इसके बाद याकूब फिरौन को आशीर्वाद देकर वहाँ से चला गया।

11 यूसुफ ने रामसेस में, जो मिस्र का सबसे बढ़िया इलाका था, एक ज़मीन अपने पिता और भाइयों के नाम कर दी,+ ठीक जैसे फिरौन ने हुक्म दिया था। इस तरह यूसुफ ने उन्हें मिस्र में बसाया। 12 और यूसुफ अपने पिता और भाइयों और अपने पिता के पूरे घराने को खाना मुहैया कराता रहा। उनके हर परिवार में जितने बाल-बच्चे थे, उस हिसाब से वह उन्हें खाना देता था।

13 अकाल अब भयानक रूप ले चुका था और पूरे मिस्र और कनान देश में कहीं भी खाना नहीं था। अकाल की वजह से इन देशों की हालत बहुत खराब थी।+ 14 मिस्र और कनान के लोग यूसुफ को पैसा देकर उससे अनाज खरीदते थे+ और यूसुफ सारा पैसा लाकर फिरौन के खज़ाने में जमा कर देता था। 15 मगर कुछ वक्‍त बाद मिस्र और कनान के लोगों का सारा पैसा खत्म हो गया। इसलिए सारे मिस्री यूसुफ के पास आकर कहने लगे, “हमारे पास एक भी पैसा नहीं है, अब तू ही हमें खाना दे! कहीं ऐसा न हो कि तेरे होते हुए हम भूखे मर जाएँ!” 16 तब यूसुफ ने कहा, “अगर तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो अपने जानवर दे दो। मैं बदले में तुम्हें खाना दूँगा।” 17 फिर वे यूसुफ के पास अपने घोड़े, भेड़-बकरी, गाय-बैल और गधे लाने लगे और यूसुफ इन जानवरों के बदले उस साल उन्हें खाना देता रहा।

18 जब वह साल बीत गया तो अगले साल लोग यूसुफ के पास आकर कहने लगे, “मालिक, अब हम तुझसे अपनी हालत क्या छिपाएँ। हमारे पास न तो पैसा है न ही जानवर, यह सब हमने मालिक को पहले ही दे दिया है। अब अपनी ज़मीन और खुद को तेरे हवाले करने के सिवा हमारे पास कुछ नहीं है। 19 कहीं ऐसा न हो कि तेरे होते हुए हम भूखे मर जाएँ और हमारी ज़मीन बंजर हो जाए। इसलिए अनाज के बदले तू हमें और हमारी ज़मीन खरीद ले कि हम फिरौन के दास बन जाएँ और हमारी ज़मीन उसकी हो जाए। हमें बीज दे ताकि हम ज़िंदा रहें और भूखे न मर जाएँ और हमारी ज़मीन बंजर न हो जाए।” 20 तब यूसुफ ने मिस्रियों से सारी ज़मीन फिरौन के लिए खरीद ली, क्योंकि अकाल की मार इतनी भयानक थी कि हरेक मिस्री ने अपनी ज़मीन बेच दी। इस तरह मिस्र की सारी ज़मीन फिरौन की हो गयी।

21 इसके बाद यूसुफ ने मिस्र के अलग-अलग इलाके में रहनेवालों को आज्ञा दी कि वे अपने-अपने नज़दीकी शहर में जाकर रहें।+ 22 उसने सिर्फ पुजारियों की ज़मीन नहीं खरीदी,+ क्योंकि उन्हें फिरौन की तरफ से खाने की चीज़ें मिलती थीं। इन्हीं से उनका गुज़ारा होता था, इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन नहीं बेची। 23 फिर यूसुफ ने लोगों से कहा, “देखो, आज मैंने तुम्हें और तुम्हारी ज़मीन फिरौन के लिए खरीद ली है। अब यह बीज ले जाओ, इसे खेतों में बोओ। 24 जब फसल होगी तो पैदावार का पाँचवाँ हिस्सा तुम्हें फिरौन को देना होगा,+ बाकी चार हिस्से तुम अपने लिए रख सकते हो। यह तुम्हारे और तुम्हारे बाल-बच्चों और तुम्हारे घर के सब लोगों के लिए होगा और इसी में से तुम खेत बो सकोगे।” 25 फिर उन्होंने कहा, “मालिक, तूने हमारी जान बचायी है।+ अब हम पर एक और मेहरबानी कर, हमें फिरौन के दास बना दे।”+ 26 तब यूसुफ ने एक फरमान जारी किया जो आज तक पूरे मिस्र में लागू है कि मिस्र में होनेवाली पैदावार का पाँचवाँ हिस्सा फिरौन का होगा। सिर्फ पुजारियों की ज़मीन फिरौन की नहीं हुई।+

27 इसराएल का घराना मिस्र के गोशेन में ही रहा+ और वहीं बस गया। घराने के लोग फलते-फूलते गए और उनकी गिनती बहुत बढ़ गयी।+ 28 और याकूब मिस्र में 17 साल रहा। याकूब कुल मिलाकर 147 साल जीया।+

29 जब इसराएल को लगा कि अब वह ज़्यादा दिन नहीं जीएगा+ तो उसने अपने बेटे यूसुफ को पास बुलाया और उससे कहा, “बेटा, तू मुझ पर एक मेहरबानी कर। मेरी जाँघ के नीचे अपना हाथ रखकर शपथ खा कि तू मुझे मिस्र में नहीं दफनाएगा।+ देख, मेरा भरोसा मत तोड़ना और मेरे साथ वफादारी* निभाना। 30 मेरी मौत होने पर* तू मुझे मिस्र से ले जाना और उस कब्र* में दफनाना जहाँ मेरे पुरखों को दफनाया गया था।”+ यूसुफ ने कहा, “तूने जैसा कहा है मैं वैसा ही करूँगा।” 31 फिर याकूब ने कहा, “तू मुझसे शपथ खा” और यूसुफ ने शपथ खायी।+ तब इसराएल ने अपने पलंग के सिरहाने पर सिर झुकाकर प्रार्थना की।+

48 कुछ समय बाद यूसुफ को यह खबर दी गयी: “आजकल तेरे पिता की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती।” जब यूसुफ ने यह सुना तो वह अपने दोनों बेटों, यानी मनश्‍शे और एप्रैम को लेकर याकूब के पास गया।+ 2 फिर याकूब को बताया गया, “तेरा बेटा यूसुफ आया है।” तब इसराएल ने किसी तरह ताकत जुटायी और पलंग पर उठकर बैठा। 3 याकूब ने यूसुफ से कहा:

“सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर कनान के लूज में मेरे सामने प्रकट हुआ था और उसने मुझे आशीष दी।+ 4 उसने मुझसे कहा, ‘मैं तुझे बहुत-सी संतान देकर आबाद करूँगा और तेरे वंशजों की गिनती बहुत बढ़ाऊँगा। मैं तेरे वंशजों से कई गोत्रों की एक बहुत बड़ी मंडली बनाऊँगा।+ मैं यह देश तेरे बाद तेरे वंश को दूँगा ताकि यह हमेशा के लिए उनकी जागीर बन जाए।’+ 5 अब देख, तेरे दोनों बेटे, जो यहाँ मिस्र में मेरे आने से पहले पैदा हुए थे, अब से मेरे हैं।+ जैसे रूबेन और शिमोन मेरे बेटे हैं,+ वैसे ही एप्रैम और मनश्‍शे मेरे बेटे हैं। 6 लेकिन इनके बाद तेरे जो बेटे होंगे वे तेरे ही कहलाएँगे। उन्हें एप्रैम और मनश्‍शे की विरासत की ज़मीन से हिस्सा मिलेगा।+ 7 और जब मैं पद्दन से लौट रहा था तो कनान देश में एप्रात+ से कुछ दूरी पर मेरे सामने राहेल की मौत हो गयी।+ इसलिए मैंने उसे एप्रात जानेवाले रास्ते में, हाँ बेतलेहेम+ के रास्ते में दफना दिया।”

8 फिर इसराएल ने यूसुफ के बेटों को देखकर पूछा, “क्या ये तेरे बच्चे हैं?” 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “हाँ, ये मेरे बेटे हैं जो परमेश्‍वर ने मुझे इस देश में दिए हैं।”+ इसराएल ने कहा, “इन्हें ज़रा मेरे पास ला, मैं इन्हें आशीर्वाद देना चाहता हूँ।”+ 10 बुढ़ापे की वजह से इसराएल की नज़र बहुत कमज़ोर हो गयी थी, उसे ठीक से दिखायी नहीं देता था। इसलिए यूसुफ अपने बेटों को इसराएल के नज़दीक लाया और इसराएल ने उन्हें चूमा और गले लगाया। 11 तब उसने यूसुफ से कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं जीते-जी तेरा मुँह देख पाऊँगा।+ मगर देख, परमेश्‍वर ने मुझे न सिर्फ तुझे बल्कि तेरे वंश को भी देखने का मौका दिया है।” 12 इसके बाद यूसुफ अपने बेटों को इसराएल के घुटनों के पास से अलग ले गया। फिर यूसुफ ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।

13 इसके बाद यूसुफ, एप्रैम+ और मनश्‍शे+ को इसराएल के करीब लाया। उसने अपने दाएँ हाथ से एप्रैम को पकड़कर इसराएल के बायीं तरफ किया और अपने बाएँ हाथ से मनश्‍शे को पकड़कर उसके दायीं तरफ किया। 14 मगर इसराएल ने अपना दायाँ हाथ एप्रैम के सिर पर रखा, इसके बावजूद कि वह छोटा बेटा था और अपना बायाँ हाथ पहलौठे बेटे मनश्‍शे के सिर पर रखा।+ इसराएल ने जानबूझकर ऐसा किया। 15 फिर उसने यूसुफ को यह आशीर्वाद दिया,+

“सच्चा परमेश्‍वर, जिसके सामने मेरे दादा अब्राहम और पिता इसहाक सही राह पर चलते रहे+

और जो मेरा चरवाहा बनकर मेरे जन्म से लेकर आज तक मेरी देखभाल करता आया है, वह सच्चा परमेश्‍वर+

16 जो अपने स्वर्गदूत के ज़रिए मुझे हर मुसीबत से बचाता आया है,+ इन लड़कों को आशीष दे।+

वे मेरे नाम से, मेरे दादा अब्राहम और पिता इसहाक के नाम से जाने जाएँ,

धरती पर इनके वंशजों की गिनती कई गुना बढ़ती जाए।”+

17 जब यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने अपना दायाँ हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तो उसे बुरा लगा। इसलिए उसने उसका दायाँ हाथ एप्रैम के सिर से हटाकर मनश्‍शे के सिर पर रखने की कोशिश की। 18 उसने अपने पिता से कहा, “नहीं, नहीं, मेरे पिता, पहलौठा वह नहीं यह है।+ इस पर अपना दायाँ हाथ रख।” 19 मगर यूसुफ का पिता उसकी बात मानने से इनकार करता रहा। उसने कहा, “मैं जानता हूँ बेटे, मैं जानता हूँ। इससे भी एक बड़ी और महान जाति बनेगी। मगर इसका यह छोटा भाई इससे भी महान होगा+ और इसके वंश के लोग इतने बेशुमार होंगे कि वे कई जातियों के बराबर होंगे।”+ 20 उस दिन इसराएल ने उन दोनों लड़कों को यह आशीर्वाद भी दिया:+

“इसराएल के लोग तेरा नाम लेकर एक-दूसरे को यह आशीर्वाद दिया करें,

‘परमेश्‍वर तुझे एप्रैम और मनश्‍शे के जैसा बनाए।’”

इस तरह इसराएल ने यूसुफ के बेटों को आशीर्वाद देते वक्‍त मनश्‍शे के बजाय एप्रैम को पहला दर्जा दिया।

21 फिर इसराएल ने यूसुफ से कहा, “देख, अब मैं ज़्यादा दिन नहीं जीनेवाला।+ मगर तुम लोग एक बात का यकीन रखना, परमेश्‍वर हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा और तुम्हें तुम्हारे पुरखों के देश में वापस ले जाएगा।+ 22 मैं तुझे तेरे भाइयों से उस ज़मीन का एक हिस्सा* ज़्यादा देता हूँ, जो मैंने तीर-कमान और तलवार के दम पर एमोरियों से हासिल की थी।”

49 याकूब ने अपने सभी बेटों को बुलाया और कहा, “तुम सब मेरे पास इकट्ठा हो जाओ, मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि आगे चलकर तुम्हारे साथ क्या-क्या होगा। 2 याकूब के बेटो, तुम सब एक-साथ जमा हो जाओ और मेरी बात सुनो, अपने पिता इसराएल की बात सुनो।

3 रूबेन,+ तू मेरा पहलौठा है,+ मेरा दमखम, मेरी शक्‍ति* की पहली निशानी। तू सबसे बढ़कर गौरवशाली और ताकतवर है। 4 मगर तू औरों से आगे नहीं बढ़ पाएगा, क्योंकि तू उफनती लहरों की तरह बेकाबू हो जाता है और तू अपने पिता की सेज पर चढ़ गया।+ हाँ, तूने मेरी सेज दूषित कर दी थी।* वाकई, उसने कैसा काम किया!

5 शिमोन और लेवी भाई-भाई हैं।+ वे अपने हथियार से मार-काट मचाते हैं।+ 6 हे मेरे मन, उनके दल में शामिल मत हो। हे मेरे आदर,* उनकी टोली में मत मिल, क्योंकि उन्होंने गुस्से से भरकर आदमियों का कत्ल कर डाला+ और तमाशे के लिए बैलों की घुटनस काट दी। 7 धिक्कार है उनके गुस्से पर जो रहम से खाली है। धिक्कार है उनके क्रोध पर जो बहुत खूँखार है।+ मैं उन दोनों को याकूब के देश में बिखरा दूँगा, इसराएल में तितर-बितर कर दूँगा।+

8 हे यहूदा,+ तेरे भाई तेरी तारीफ करेंगे।+ तेरा हाथ तेरे दुश्‍मनों की गरदन पर होगा।+ तेरे पिता के बेटे तेरे आगे सिर झुकाएँगे।+ 9 यहूदा शेर का बच्चा है।+ मेरे बेटे, तू अपने शिकार को मारकर ही लौटेगा। यहूदा एक शेर की तरह ज़मीन पर पैर फैलाए लेटा है। किसकी मजाल कि उसे छेड़े? 10 जब तक शीलो* न आए,+ तब तक यहूदा के हाथ से राजदंड नहीं छूटेगा,+ न ही उसके पैरों के बीच से हाकिम की लाठी दूर होगी। देश-देश के लोग उसकी आज्ञा मानेंगे।+ 11 यहूदा अपने गधे को अंगूर की बेल से और अपनी गधी के बच्चे को बढ़िया अंगूर की बेल से बाँधेगा। वह अपने कपड़े दाख-मदिरा में और अपना बागा अंगूर के रस में धोएगा। 12 उसकी आँखें दाख-मदिरा पीने से लाल हैं और उसके दाँत दूध पीने से सफेद हैं।

13 जबूलून+ समुंदर किनारे बसेगा, हाँ, तट के पास जहाँ जहाज़ों का लंगर डाला जाता है+ और उसकी सरहद सीदोन तक फैली होगी।+

14 इस्साकार+ एक बलवान गधे की तरह है, जो ज़ीन में दोनों तरफ भारी बोझ लादे हुए भी आराम कर सकता है। 15 इस्साकार देखेगा कि उसके रहने की जगह बढ़िया है, उसके हिस्से की ज़मीन अच्छी है। वह बोझ उठाने के लिए अपना कंधा झुकाएगा और कड़ी मज़दूरी करने से पीछे नहीं हटेगा।

16 दान+ इसराएल का एक गोत्र होकर अपने जाति भाइयों का न्याय करेगा।+ 17 दान सड़क किनारे का साँप होगा, रास्ते का सींगवाला साँप जो घोड़े की एड़ी को ऐसा डसता है कि सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है।+ 18 हे यहोवा, मैं उद्धार के लिए तेरी ही राह देखूँगा।

19 गाद+ पर लुटेरा-दल हमला करेगा, मगर वह उनका डटकर मुकाबला करेगा और उन्हें भगा-भगाकर मारेगा।+

20 आशेर+ के पास रोटी* की भरमार होगी और वह राजाओं के लायक बढ़िया-से-बढ़िया खाना मुहैया कराएगा।+

21 नप्ताली+ हिरनी जैसा फुर्तीला है। उसके बोल मनभावने हैं।+

22 यूसुफ+ एक फलदार पेड़ की टहनी है, उस फलदार पेड़ की जो एक सोते के किनारे लगा है और जिसकी लंबी-लंबी डालियाँ दीवार लाँघ जाती हैं। 23 मगर तीरंदाज़ यूसुफ को सताते रहे, उस पर तीर चलाते रहे और मन में उसके खिलाफ दुश्‍मनी पालते रहे।+ 24 फिर भी उसकी कमान नहीं डगमगायी,+ उसके हाथ मज़बूत बने रहे और फुर्ती से चलते रहे।+ इसके पीछे याकूब के शक्‍तिमान का हाथ था, उस चरवाहे का हाथ था जो इसराएल का पत्थर है। 25 वह* अपने पिता के परमेश्‍वर का दिया एक तोहफा है। वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के साथ है। परमेश्‍वर उसकी मदद करेगा। वह उस पर आशीषों की बौछार करेगा, ऊपर आकाश की और नीचे गहरे सागर की आशीषें देगा।+ उसकी आशीष से उसकी बहुत-सी संतान होंगी और उसके जानवरों की बढ़ती होगी। 26 उसके पिता की ये आशीषें, युग-युग तक खड़े रहनेवाले पहाड़ों की उम्दा चीज़ों से बढ़कर होंगी और सदा कायम रहनेवाली पहाड़ियों की खूबसूरती से कहीं निराली होंगी।+ यूसुफ जो अपने भाइयों में से अलग किया गया है, उस पर ये आशीषें सदा बनी रहेंगी।+

27 बिन्यामीन+ एक भेड़िए की तरह अपने शिकार को फाड़ खाता रहेगा।+ सुबह वह अपना शिकार खाएगा और शाम को लूट का माल बाँटेगा।”+

28 ये सभी इसराएल के 12 गोत्र हैं और उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद देते वक्‍त यही सब कहा था। उसने हरेक को वैसा आशीर्वाद दिया जिसके वह योग्य था।+

29 इसके बाद याकूब ने अपने बेटों को ये आज्ञाएँ दीं: “देखो, अब मेरे मरने की घड़ी आ गयी है।*+ तुम मुझे उस गुफा में दफना देना जिसमें मेरे पुरखों को दफनाया गया था, उस गुफा में जो हित्ती एप्रोन की ज़मीन में है,+ 30 कनान देश में ममरे के पास मकपेला की ज़मीन में। यह ज़मीन अब्राहम ने हित्ती एप्रोन से खरीदी थी ताकि कब्र के लिए उसकी अपनी ज़मीन हो। 31 वहाँ अब्राहम और उसकी पत्नी सारा को और इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को दफनाया गया था+ और वहीं मैंने लिआ को दफनाया था। 32 वह ज़मीन और उसमें जो गुफा है, उसे हित्ती लोगों से खरीदा गया था।”+

33 इस तरह याकूब ने अपने बेटों को ये हिदायतें दीं। इसके बाद वह अपने पलंग पर लेट गया और उसने आखिरी साँस ली और वह मर गया।*+

50 तब यूसुफ अपने पिता की लाश पर गिर गया+ और उससे लिपटकर बहुत रोया और उसे चूमा। 2 इसके बाद यूसुफ ने वैद्यों को, जो उसके सेवक थे, हुक्म दिया कि वे उसके पिता का शवलेपन करें।+ तब वैद्यों ने इसराएल का शवलेपन किया। 3 इसमें उन्हें पूरे 40 दिन लगे क्योंकि शवलेपन में इतने दिन लगते हैं। और मिस्री लोग 70 दिन तक इसराएल के लिए आँसू बहाते रहे।

4 जब मातम के दिन पूरे हुए तो यूसुफ ने फिरौन के दरबारियों* से कहा, “मुझ पर एक मेहरबानी करो, मेरा यह संदेश फिरौन तक पहुँचा दो: 5 ‘मेरे पिता ने मुझे शपथ दिलाकर कहा था,+ “देख, अब मेरे मरने की घड़ी आ गयी है।+ तू मुझे कनान देश में उस कब्र में दफनाना जो मैंने अपने लिए तैयार करवायी थी।”+ इसलिए मुझे इजाज़त दे कि मैं कनान जाकर अपने पिता को दफना आऊँ।’” 6 फिरौन ने कहा, “ठीक है, जा और अपने पिता को दफना दे, जैसे उसने तुझे शपथ खिलायी थी।”+

7 तब यूसुफ अपने पिता को दफनाने निकल पड़ा। उसके साथ फिरौन के सभी सेवक, दरबार के बड़े-बड़े लोग*+ और मिस्र के सभी मुखिया गए। 8 यूसुफ के घराने के सब लोग, उसके भाई और उसके पिता का घराना+ उसके साथ गया। सिर्फ उनके छोटे-छोटे बच्चे, उनकी भेड़-बकरियाँ और उनके गाय-बैल गोशेन में रह गए। 9 यूसुफ के साथ बहुत-से रथ+ और घुड़सवार भी गए। इस तरह मिस्र से लोगों का एक बहुत बड़ा दल कनान के लिए निकला। 10 जब वे यरदन के इलाके में आताद के खलिहान में पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ रुककर इसराएल के लिए बहुत बड़ा मातम किया। यूसुफ ने अपने पिता के लिए सात दिन तक शोक मनाया। 11 जब वहाँ रहनेवाले कनानियों ने आताद के खलिहान में उनका यह मातम देखा तो वे कहने लगे, “मिस्री लोगों का यह कैसा दर्दनाक मातम है!” इसलिए उस जगह का नाम आबेल-मिसरैम* पड़ा जो यरदन के इलाके में है।

12 याकूब के बेटों ने ठीक वैसा ही किया जैसी उसने उन्हें हिदायत दी थी।+ 13 वे उसकी लाश कनान ले गए और उस गुफा में दफना दी जो ममरे के पास मकपेला की ज़मीन में थी। यह ज़मीन अब्राहम ने हित्ती एप्रोन से खरीदी थी ताकि कब्र के लिए उसकी अपनी ज़मीन हो।+ 14 यूसुफ अपने पिता को दफनाने के बाद अपने भाइयों के साथ मिस्र लौट आया। और वे लोग भी लौट आए जो उसके साथ गए थे।

15 अब जब उनका पिता नहीं रहा, तो यूसुफ के भाई एक-दूसरे से कहने लगे, “क्या पता यूसुफ मन-ही-मन हमसे नफरत करता हो। हमने उसके साथ जो-जो ज़्यादती की थी, हो सकता है अब वह हमसे उसका बदला ले।”+ 16 इसलिए उन्होंने यूसुफ के पास यह संदेश भेजा: “तेरे पिता ने अपनी मौत से पहले यह आज्ञा दी थी, 17 ‘तुम यूसुफ से मेरी यह बात कहना, “मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तेरे भाइयों ने तुझ पर ज़ुल्म करके जो अपराध और पाप किया था, उसे माफ कर दे।”’ अब तेरे पिता के परमेश्‍वर के ये दास भी तुझसे रहम की भीख माँगते हैं, हमारा अपराध माफ कर दे।” जब यूसुफ ने सुना कि उसके भाइयों ने ऐसा कहा है, तो वह रो पड़ा। 18 इसके बाद उसके भाई खुद उसके पास आए और उसके सामने ज़मीन पर गिरकर उससे कहने लगे, “तू हमारे साथ जो चाहे कर, हम तो बस तेरे गुलाम हैं!”+ 19 तब यूसुफ ने उनसे कहा, “डरो मत। भला मैं क्यों तुम्हारा न्याय करूँगा? क्या मैं परमेश्‍वर हूँ? 20 हालाँकि तुमने मेरा बुरा करने की सोची,+ मगर जो भी हुआ उसे परमेश्‍वर ने अच्छे के लिए बदल दिया ताकि बहुतों की जान बच सके, जैसा कि आज तुम खुद देख रहे हो।+ 21 इसलिए अब डरो नहीं। मैं तुम्हें और तुम्हारे बाल-बच्चों के लिए खाना मुहैया कराता रहूँगा।”+ इस तरह यूसुफ ने अपने भाइयों का डर दूर किया और उन्हें भरोसा दिलाया।

22 यूसुफ मिस्र में ही रहा और उसके साथ उसके पिता का घराना भी वहीं रहा। वह कुल मिलाकर 110 साल जीया। 23 वह जीते-जी अपने बेटे एप्रैम के पोतों को भी देख पाया।+ उसने मनश्‍शे के बेटे माकीर के बेटों को भी देखा।+ ये बच्चे यूसुफ के लिए अपने बच्चों जैसे थे।* 24 आखिर में यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “देखो, अब मेरी मौत की घड़ी आ गयी है। मगर तुम इस बात का यकीन रखना कि परमेश्‍वर तुम पर ध्यान देगा,+ वह तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में ले जाएगा जिसके बारे में उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खाकर कहा था।”+ 25 इसलिए यूसुफ ने इसराएल के बेटों को शपथ दिलाकर उनसे कहा, “परमेश्‍वर ज़रूर तुम लोगों पर ध्यान देगा, इसलिए यहाँ से जाते वक्‍त तुम मेरी हड्डियाँ अपने साथ ले जाना।”+ 26 इसके बाद यूसुफ 110 साल की उम्र में मर गया। उसका शवलेपन किया गया+ और उसे मिस्र में एक शव-पेटी में रखा गया।

यानी विश्‍व-मंडल जिसमें तारे, ग्रह, आकाश-गंगाएँ वगैरह शामिल हैं।

या “खाली।”

या “उफनते पानी।”

या “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति।”

यानी वायुमंडल।

यहाँ समुंदर का मतलब महासागरों के अलावा नदी-नाले, झील वगैरह भी हो सकता है।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

ज़ाहिर है कि इनमें साँप, छिपकली जैसे जंतु और ऐसे जंतु भी शामिल हैं जो आयत में बताए बाकी जानवरों से अलग हैं।

शा., “और उनकी सारी सेना को।”

या “जो बना रहा था।”

परमेश्‍वर का यह बेजोड़ नाम יהוה (य-ह-व-ह) पहली बार इस आयत में आता है। अति. क4 देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

या “टिग्रिस।”

या “के साथ ही रहेगा।”

या “सबसे चालाक; सबसे धूर्त।”

शा., “बीज।”

या “ज़ख्मी करेगा; घायल करेगा।”

या “ज़ख्मी करेगा; कुचलेगा।”

मतलब “धरती का इंसान; मानवजाति।”

या “खाना।”

मतलब “जीवित जन।”

या “खुद तय करने लगा है।”

शा., “शक्‍ति।”

या “नोद देश।”

मतलब “ठहराया गया; रखा गया; बिठाया गया।”

शा., “की पीढ़ियों के बारे में किताब।”

या “आदम; मानवजाति।”

शब्दावली देखें।

मुमकिन है कि इसका मतलब “आराम; दिलासा” है।

या “राहत।”

परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के लिए इस्तेमाल होनेवाला इब्रानी मुहावरा।

या “क्योंकि वह अपने शरीर की इच्छाओं के मुताबिक काम करता है।”

शायद इसका मतलब है, “गिरानेवाले,” यानी वे जो दूसरों को गिराते हैं। शब्दावली देखें।

या “पछतावा।”

या “उसके दिल को ठेस पहुँची।”

या “वह निर्दोष था।”

शा., “बक्सा।” यह एक बड़े आयताकार बक्से जैसा जलपोत था। माना जाता है कि इस जलपोत के कोने चौकोर थे और निचला हिस्सा सपाट था।

या “डामर।”

यानी करीब 438 फुट लंबा, 73 फुट चौड़ा और 44 फुट ऊँचा।

इब्रानी में सोहर। कुछ लोगों का मानना है कि सोहर रौशनी के लिए बनायी गयी खिड़की या खुला भाग नहीं बल्कि एक छत थी जिसमें एक हाथ लंबी ढलान थी।

या “जीवन-शक्‍ति।” शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।

या शायद, “हर शुद्ध जानवर के सात जोड़े।”

या शायद, “आसमान में उड़नेवाले पंछियों और कीट-पतंगों के सात जोड़े।”

या “जीवन-शक्‍ति।”

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “जीवन-शक्‍ति।”

शा., “सबको याद किया।”

या “रोक दिया गया था।”

या “अपने पैर के तले टेकने के लिए कोई।”

या “तुम्हारे अधिकार में करता हूँ।”

शब्दावली देखें।

शब्दावली देखें।

या “सभी जीवित प्राणियों।”

यानी बैबिलोन।

ज़ाहिर है, नीनवे, रहोबोत-ईर, कालह और रेसेन को मिलाकर बड़ा शहर माना जाता था।

शायद ये उन जातियों के नाम हैं जो मिसरैम से निकलीं।

या शायद, “जो येपेत का बड़ा भाई था।”

मतलब “बँटवारा।”

या “धरती की आबादी।”

शा., “को देखने के लिए नीचे उतरा।”

मतलब “गड़बड़ी।”

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

शा., “बीज।”

या “वहाँ परदेसी बनकर रहे।”

यानी अदन का बाग।

शा., “बीज।”

शा., “देश की लंबाई और चौड़ाई में चल फिर।”

यहाँ “ये सभी राजा” का मतलब आय. 1 में बताए राजा हो सकते हैं।

यानी मृत सागर।

यहाँ “वे” का मतलब आय. 2 में बताए राजा हो सकते हैं।

शा., “भाई।”

शा., “बेटा।”

शा., “जो तेरे अंदरूनी अंगों से निकलेगा वह।”

शा., “बीज।”

या “कलोर।”

या “हर जानवर का आधा टुकड़ा एक तरफ और दूसरा टुकड़ा दूसरी तरफ रखा।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

मतलब “परमेश्‍वर सुनता है।”

या “एक गोरखर,” जो एक किस्म का जंगली गधा है। मगर कुछ लोगों का मानना है कि यहाँ ज़ेब्रा की बात की गयी है। शायद यह जानवर मनमानी करने के रवैए को दर्शाता है।

या शायद, “अपने सब भाइयों से दुश्‍मनी करेगा।”

या “जो मुझे देखता है” या “जो प्रकट होता है।”

मतलब “उसका कुआँ जो जीवित है और मुझे देखता है।”

मतलब “पिता महान (या ऊँचा किया गया) है।”

मतलब “भीड़ का पिता; बहुतों का पिता।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

या “मार डाला जाए।”

शायद इसका मतलब है, “झगड़ालू।”

मतलब “राज-घराने की औरत।”

मतलब “हँसी।”

शा., “बीज।”

शा., “तुम्हारा दिल मज़बूत हो जाए।”

शा., “सआ माप।” एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “माहवारी बंद हो चुकी थी।”

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

या “हिफाज़त में।”

या “अटल प्यार।”

मतलब “छोटा।”

या “परदेसी की तरह रहा।”

यानी उसने सारा के साथ यौन-संबंध नहीं रखे थे।

या “नेक।”

शा., “देख, यह तेरे लिए आँखों का परदा है।”

या शायद, “वह मुझ पर हँसेगा।”

शा., “बीज।”

या “अटल प्यार।”

शायद इसका मतलब है, “शपथ का कुआँ” या “सात का कुआँ।”

शा., “कई दिनों।”

या “परदेसी की तरह रहा।”

मतलब “यहोवा इंतज़ाम करेगा; यहोवा इस बात का ध्यान रखेगा।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “फाटक।”

शा., “बीज।”

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

या शायद, “एक महान प्रधान।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “अटल प्यार।”

मुमकिन है कि यह लाबान था।

शा., “दाएँ या बाएँ मुड़ जाऊँ।”

या “हम तुझसे न भला कह सकते हैं न बुरा।”

यानी उसकी वह धाई जो अब उसकी सेविका थी।

शा., “फाटक।”

शा., “वह अपने लोगों में जा मिला।”

या “दीवारों से घिरी छावनी।”

शा., “वह अपने लोगों में जा मिला।”

या शायद, “उन्होंने अपने सब भाइयों से दुश्‍मनी की।”

शा., “राष्ट्र।”

मतलब “रोएँदार।”

मतलब “एड़ी पकड़नेवाला; दूसरे की जगह लेनेवाला।”

या “निर्दोष।”

या “मैं थककर चूर हो गया हूँ।”

मतलब “लाल।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

या “गले लगा रहा है।”

मतलब “झगड़ा।”

मतलब “इलज़ाम।”

मतलब “बड़ी-बड़ी जगह।”

मतलब “एड़ी पकड़नेवाला; दूसरे की जगह लेनेवाला।”

शा., “पिता के लिए मातम मनाने के दिन करीब हैं।”

या “तुझे मार डालने के बारे में सोचकर खुद को दिलासा दे रहा है।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

शा., “बीज।”

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

मतलब “परमेश्‍वर का घर।”

शा., “भाई।”

शा., “तू मेरा हाड़-माँस है।”

शा., “भाई।”

या “ताकि मैं उसके साथ संबंध रखूँ।”

शा., “लिआ से नफरत की जा रही है।”

मतलब “देख, एक बेटा!”

मतलब “सुनना।”

मतलब “लगाव; जुड़े रहना।”

मतलब “तारीफ हुई; जिसकी तारीफ होती है।”

या “तुझे गर्भ के फल से दूर रखा है।”

शा., “मेरे घुटनों पर जनेगी।”

मतलब “न्यायी।”

मतलब “मेरी कुश्‍ती।”

मतलब “कमाल होना।”

मतलब “सुखी; खुशी।”

यह आलू की जाति की एक जड़ी-बूटी है। माना जाता था कि इसका फल खाने से स्त्रियों में गर्भधारण की क्षमता बढ़ती है।

या “एक मज़दूर की मज़दूरी।”

मतलब “वह मज़दूरी है।”

मतलब “बरदाश्‍त।”

यह योसिप्याह नाम का छोटा रूप है जिसका मतलब है, “याह जोड़ दे (या बढ़ाए)।”

या “सबूतों से।”

या “ईमानदारी।”

यानी फरात नदी।

शा., “बेटों।”

यह अरामी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है, “साक्षी का ढेर।”

यह इब्रानी शब्द है जिसका मतलब है, “साक्षी का ढेर।”

शा., “बेटों।”

मतलब “दो छावनियाँ।”

या “परदेसी की तरह रहा।”

मतलब “परमेश्‍वर से लड़नेवाला (या हार न माननेवाला)” या “परमेश्‍वर लड़ता है।”

मतलब “परमेश्‍वर का चेहरा।”

या “पनीएल।”

मतलब “छप्पर।”

या “को देखने।”

शा., “उस लड़की के दिल से बात की।”

या “तुम्हारी वजह से मुझे बिरादरी से निकाल दिया जाएगा।”

या “जिस रास्ते।”

या “छिपा।”

मतलब “बेतेल का परमेश्‍वर।”

मतलब “रोने का बाँज।”

मतलब “मेरे मातम का बेटा।”

मतलब “दाएँ हाथ का बेटा,” यानी मेरा चहेता बेटा।

शा., “बूढ़ा और पूरी उम्र का होकर।”

शा., “वह अपने लोगों में जा मिला।”

या “परदेसियों की तरह रहना।”

शेख, गोत्र का प्रधान था।

शा., “इसराएल के बेटों।”

या “एक लंबा, सुंदर चोगा।”

या “हाथ न लगाना।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

यानी यहूदा।

मतलब “फटना,” मुमकिन है कि यहाँ मूलाधार के फटने की बात की गयी है।

या “अटल प्यार।”

शा., “दिनों।”

शा., “तेरा सिर उठाएगा।”

या “अटल प्यार।”

शा., “कुंड; गड्‌ढा।”

शा., “तेरा सिर तुझ पर से उठाकर।”

शा., “के सिर उठाए।”

शा., “कुंड; गड्‌ढा।”

यहाँ इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्द का मतलब दाढ़ी के साथ-साथ सिर मुँड़ाना भी हो सकता है।

या “सिर्फ राजगद्दी के मामले में।”

ज़ाहिर है कि इस शब्द से किसी को आदर-सम्मान देने की पुकार लगायी जाती थी।

शा., “अपना हाथ या पैर नहीं उठा सकेगा।”

यानी हीलिओ-पोलिस।

या “का दौरा।”

या “की सेवा करने लगा।”

शा., “मुट्ठी भर-भरकर।”

यानी हीलिओ-पोलिस।

मतलब “वह जो भुलवा देता है।”

मतलब “दुगना फलना-फूलना।”

या “खाना।”

या “मैं उसका ज़ामिन बनूँगा।”

या “देश।”

शा., “पिता-सा।”

या “चरबी।”

या “अपने सब लोगों को।”

यानी हीलिओ-पोलिस।

शा., “बेटे।”

या “अटल प्यार।”

शा., “जब मैं अपने पुरखों के साथ सो जाऊँगा तब।”

शब्दावली देखें।

या “ज़मीन की एक ढलान।”

या “संतान पैदा करने की शक्‍ति।”

या “का अपमान किया था।”

या शायद, “मन का रुझान।”

मतलब “वह जिसका यह है; वह जो इसका हकदार है।”

या “खाने।”

यानी यूसुफ।

शा., “मैं अपने लोगों से मिलने पर हूँ।”

शा., “अपने लोगों में जा मिला।”

या “घराने।”

या “उसके घराने के बुज़ुर्ग।”

मतलब “मिस्रियों का मातम।”

शा., “वे यूसुफ के घुटनों पर पैदा हुए थे।” यानी उसने उन्हें अपने बेटे माना और उन पर खास मेहरबान हुआ।

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