निर्गमन
1 इसराएल यानी याकूब के जो बेटे उसके साथ अपने-अपने परिवार को लेकर मिस्र आए, वे ये हैं:+ 2 रूबेन, शिमोन, लेवी और यहूदा,+ 3 इस्साकार, जबूलून और बिन्यामीन, 4 दान और नप्ताली, गाद और आशेर।+ 5 यूसुफ पहले से मिस्र में था। याकूब के घराने में जितने लोग पैदा हुए थे* उनकी गिनती 70 थी।+ 6 कुछ वक्त बाद यूसुफ की मौत हो गयी+ और उसके सभी भाई और उसकी पीढ़ी के सब लोग मर गए। 7 इसराएलियों* की कई संतानें हुईं और उनकी गिनती बहुत बढ़ने लगी। वे दिनों-दिन ताकतवर होते गए और उनकी आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ने लगी कि वे पूरे मिस्र में भर गए।+
8 कुछ समय बाद मिस्र में एक नया राजा गद्दी पर बैठा जो यूसुफ को नहीं जानता था। 9 उस राजा ने अपने लोगों से कहा, “देखो, इन इसराएलियों की गिनती हमसे ज़्यादा हो गयी है और ये हमसे ज़्यादा ताकतवर हो गए हैं!+ 10 इसलिए आओ हम इनकी आबादी रोकने की कोई तरकीब सोचें, वरना इनकी तादाद इसी तरह बढ़ती जाएगी। और अगर हमारे दुश्मनों ने हमारे खिलाफ जंग छेड़ी तो ये इसराएली उनके साथ मिल जाएँगे और हमसे लड़ेंगे और यह देश छोड़कर भाग जाएँगे।”
11 इसलिए मिस्रियों ने इसराएलियों को सताने के लिए उन पर ऐसे अधिकारी* ठहराए जो उनसे कड़ी मज़दूरी करवाते थे।+ इसराएलियों ने इसी तरह मज़दूरी करके फिरौन के लिए पितोम और रामसेस+ नाम के गोदामवाले शहर बनाए। 12 मिस्रियों ने इसराएलियों को बहुत सताया, फिर भी इसराएलियों की तादाद बढ़ती गयी और वे मिस्र में दूर-दूर तक फैलते गए। इससे मिस्रियों के दिल में इसराएलियों का खौफ बैठ गया और वे उनसे नफरत करने लगे।+ 13 अब मिस्री इसराएलियों से और भी कड़ी गुलामी करवाने लगे।+ 14 उन्होंने उनका जीना मुश्किल कर दिया। उन्होंने उनसे मिट्टी का गारा और ईंट बनाने का काम करवाया और मैदानों में भी उनसे हर तरह की गुलामी करवायी। इस तरह मिस्रियों ने उनसे बुरे-से-बुरे हालात में कड़ी मज़दूरी करायी।+
15 बाद में मिस्र के राजा ने शिपरा और पूआ नाम की दो इब्री धाइयों से कहा, 16 “जब तुम इब्री औरतों का प्रसव कराओ+ तो एक काम करना। अगर लड़का पैदा हुआ तो उसे मार डालना, लड़की हुई तो छोड़ देना।” 17 लेकिन उन धाइयों ने वैसा नहीं किया जैसा राजा ने उनसे कहा था, क्योंकि वे सच्चे परमेश्वर का डर मानती थीं। वे लड़कों को ज़िंदा छोड़ देती थीं।+ 18 कुछ वक्त बाद मिस्र के राजा ने उन धाइयों को बुलाकर उनसे पूछा, “तुम लड़कों को ज़िंदा क्यों छोड़ देती हो?” 19 धाइयों ने फिरौन से कहा, “इब्री औरतें मिस्री औरतों की तरह नहीं हैं। वे बड़ी फुर्तीली हैं, धाई के आने से पहले ही बच्चा जन लेती हैं।”
20 उन धाइयों ने जो किया, उसकी वजह से परमेश्वर ने उनके साथ भलाई की। इसराएलियों की गिनती बढ़ती गयी, वे बहुत ताकतवर होते गए। 21 उन धाइयों ने सच्चे परमेश्वर का डर माना था, इसलिए आगे चलकर परमेश्वर ने उन्हें औलाद का सुख दिया। 22 अब फिरौन ने अपने सभी लोगों को आज्ञा दी, “इब्रियों के घर जो भी लड़का होगा उसे तुम नील नदी में फेंक देना। अगर लड़की हुई तो उसे ज़िंदा छोड़ देना।”+
2 उन्हीं दिनों लेवी गोत्र के एक आदमी ने अपने गोत्र की एक लड़की से शादी की।+ 2 फिर उस आदमी की पत्नी गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। जब उस औरत ने देखा कि उसका बच्चा बहुत सुंदर है तो उसने तीन महीने तक उसे छिपाए रखा।+ 3 मगर इसके बाद वह बच्चे को और छिपा न सकी,+ इसलिए उसने सरकंडे से बनी एक टोकरी* ली और उस पर डामर लगाया। फिर उसने बच्चे को टोकरी में रखा और टोकरी नील नदी के किनारे, नरकटों के बीच रख दी। 4 बच्चे की बहन+ यह देखने के लिए दूर खड़ी रही कि उसके साथ क्या होगा।
5 फिरौन की बेटी नील नदी में नहाने आयी और उसके साथ उसकी सेविकाएँ भी आयीं और नदी किनारे टहलने लगीं। अचानक फिरौन की बेटी की नज़र उस टोकरी पर पड़ी जो नरकटों के बीच रखी हुई थी। उसने फौरन अपनी दासी से कहा कि वह जाकर टोकरी ले आए।+ 6 जब फिरौन की बेटी ने टोकरी खोली तो देखा कि उसमें एक बच्चा है जो रो रहा है। उसे लड़के पर तरस आया मगर फिर उसने कहा, “यह तो किसी इब्री का बच्चा है।” 7 तब बच्चे की बहन ने आकर फिरौन की बेटी से कहा, “क्या मैं जाकर तेरे लिए किसी इब्री औरत को बुला लाऊँ ताकि वह बच्चे को दूध पिलाए और उसकी देखभाल करे?” 8 फिरौन की बेटी ने कहा, “जा, ले आ।” लड़की तुरंत गयी और बच्चे की माँ को बुला लायी।+ 9 फिरौन की बेटी ने उस औरत से कहा, “तू यह बच्चा अपने पास रख और इसे दूध पिलाकर इसकी देखभाल कर। मैं तुझे इसकी मज़दूरी दूँगी।” वह औरत बच्चे को ले गयी और दूध पिलाकर उसकी देखभाल करने लगी। 10 जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो वह उसे फिरौन की बेटी के पास लायी। फिरौन की बेटी ने उसे गोद लिया+ और यह कहकर उसका नाम मूसा* रखा, “मैं इसे पानी में से निकाल लायी थी।”+
11 जब मूसा बड़ा हुआ* तो एक दिन वह अपने इब्री भाइयों को देखने गया कि उन्हें कैसी कड़ी मज़दूरी करनी पड़ रही है।+ तभी उसने देखा कि उसके एक इब्री भाई को एक मिस्री आदमी बहुत मार रहा है। 12 फिर मूसा ने इधर-उधर देखा और जब उसे कोई नज़र नहीं आया तो उसने उस मिस्री को मार डाला और उसकी लाश रेत में छिपा दी।+
13 मूसा अगले दिन भी बाहर गया, मगर उस दिन उसने देखा कि दो इब्री आदमी आपस में लड़ रहे हैं। तब उनमें से जो गुनहगार था, उससे मूसा ने कहा, “तू अपने भाई को क्यों मार रहा है?”+ 14 उस आदमी ने कहा, “तुझे किसने हमारा अधिकारी और न्यायी ठहराया है? क्या तू मुझे भी मार डालेगा, जैसे उस मिस्री को मार डाला था?”+ यह सुनकर मूसा डर गया और मन-ही-मन कहने लगा, “ज़रूर यह बात सबको पता चल गयी है!”
15 फिरौन को भी इसका पता चल गया और वह मूसा को मार डालने की कोशिश करने लगा। मगर मूसा फिरौन के यहाँ से भाग गया और मिद्यान+ देश में रहने चला गया। जब वह वहाँ पहुँचा तो एक कुएँ के पास बैठ गया। 16 मिद्यान में एक याजक था+ जिसकी सात बेटियाँ थीं। वे अपने पिता की भेड़-बकरियों को पानी पिलाने कुएँ के पास आयीं। वे अपने जानवरों के लिए पानी खींचकर हौदियों में भरना चाहती थीं। 17 मगर कुछ चरवाहे वहाँ आए और उन्होंने हमेशा की तरह उन्हें भगा दिया। जब मूसा ने यह देखा तो उसने जाकर लड़कियों की मदद की* और उनके जानवरों को पानी पिलाया। 18 फिर जब लड़कियाँ घर लौटीं तो उनके पिता रूएल*+ ने बड़ी हैरत से पूछा, “आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गयीं?” 19 उन्होंने कहा, “एक मिस्री आदमी+ ने हमें चरवाहों से बचाया, यहाँ तक कि उसने पानी निकालकर हमारे जानवरों को पिलाया।” 20 उनके पिता ने उनसे कहा, “कहाँ है वह आदमी? तुम उसे अपने साथ घर क्यों नहीं लायीं? जाओ जाकर उसे बुला लाओ ताकि वह हमारे साथ खाना खाए।” 21 इसके बाद मूसा उस आदमी के कहने पर उसके साथ रहने के लिए राज़ी हो गया। और उस आदमी ने अपनी बेटी सिप्पोरा+ से उसकी शादी करायी। 22 बाद में सिप्पोरा से मूसा के एक बेटा हुआ जिसका नाम उसने गेरशोम*+ रखा क्योंकि उसने कहा, “मैं परदेस में रहनेवाला परदेसी बन गया हूँ।”+
23 कई सालों* बाद मिस्र का राजा मर गया,+ मगर इसराएली अब भी गुलाम थे और उन पर इतने ज़ुल्म ढाए जाते थे कि वे आहें भर-भरकर जीते थे। वे मदद के लिए दिन-रात सच्चे परमेश्वर से फरियाद करते और उसकी दुहाई देते थे।+ 24 वक्त आने पर परमेश्वर ने उनका कराहना सुना+ और अपना वह करार याद किया जो उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ किया था।+ 25 परमेश्वर ने इसराएलियों की हालत देखी और उन पर ध्यान दिया।
3 मूसा एक चरवाहा बना और अपने ससुर, मिद्यान के याजक यित्रो+ की भेड़-बकरियाँ चराने लगा। एक दिन वह जानवरों के झुंड को वीराने के पश्चिम की तरफ ले जा रहा था और चलते-चलते वह सच्चे परमेश्वर के पहाड़ होरेब+ के पास पहुँचा। 2 वहाँ एक जलती हुई कँटीली झाड़ी में लपटों के बीच यहोवा का एक स्वर्गदूत उसके सामने प्रकट हुआ।+ जब मूसा ने देखा कि कँटीली झाड़ी में आग लगी है फिर भी झाड़ी जल नहीं रही 3 तो उसने कहा, “यह कैसी अजब बात है! मैं पास जाकर देखता हूँ कि झाड़ी क्यों जल नहीं रही।” 4 जब यहोवा ने देखा कि मूसा झाड़ी को देखने के लिए पास आ रहा है तो उसने झाड़ी में से उसे पुकारा, “मूसा! मूसा!” तब उसने कहा, “हाँ, प्रभु!” 5 परमेश्वर ने कहा, “अब और नज़दीक मत आ। तू अपने पाँवों की जूतियाँ उतार दे क्योंकि जिस ज़मीन पर तू खड़ा है वह पवित्र है।”
6 फिर उसने कहा, “मैं तेरे पुरखों का परमेश्वर हूँ, अब्राहम का परमेश्वर,+ इसहाक का परमेश्वर+ और याकूब का परमेश्वर।”+ तब मूसा ने अपना चेहरा छिपा लिया क्योंकि वह सच्चे परमेश्वर को देखने से डर रहा था। 7 फिर यहोवा ने उससे कहा, “मैंने बेशक देखा है कि मिस्र में मेरे लोग कितनी दुख-तकलीफें झेल रहे हैं। मैंने उनका रोना-बिलखना सुना है क्योंकि मिस्र में उनसे जबरन मज़दूरी करवायी जा रही है। मैं अपने लोगों का दुख अच्छी तरह समझ सकता हूँ।+ 8 इसलिए मैं नीचे जाकर उन्हें मिस्रियों के हाथ से छुड़ाऊँगा+ और उन्हें एक अच्छे और बड़े देश में ले जाऊँगा, जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं+ और जहाँ आज कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी और यबूसी लोग रहते हैं।+ 9 देख! इसराएलियों की फरियाद मुझ तक पहुँची है और मैंने देखा है कि मिस्री उन्हें कितनी बेरहमी से सता रहे हैं।+ 10 इसलिए मैं तुझे फिरौन के पास भेज रहा हूँ और तू मेरे इसराएली लोगों को मिस्र से बाहर निकाल लाएगा।”+
11 मगर मूसा ने सच्चे परमेश्वर से कहा, “मैं कौन हूँ जो फिरौन के सामने जाऊँ और इसराएलियों को मिस्र से छुड़ा लाऊँ?” 12 तब परमेश्वर ने उससे कहा, “मैं तेरे साथ रहूँगा।+ मैं तुझसे एक वादा* करता हूँ जिसके पूरे होने पर तुझे यकीन हो जाएगा कि मैंने ही तुझे भेजा है। मेरा वादा है कि तू इसराएल को मिस्र से निकाल लाने में ज़रूर कामयाब होगा और वहाँ से निकलने के बाद तुम लोग इसी पहाड़ पर मुझ सच्चे परमेश्वर की सेवा* करोगे।”+
13 लेकिन मूसा ने सच्चे परमेश्वर से कहा, “अगर मैं इसराएलियों के पास जाकर उनसे कहूँ, ‘तुम्हारे पुरखों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है’ और वे मुझसे पूछें, ‘उस परमेश्वर का नाम क्या है?’+ तो मैं उनसे क्या कहूँ?” 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं वह बन जाऊँगा जो मैं बनना चाहता हूँ।”*+ उसने यह भी कहा, “तू इसराएलियों से कहना, ‘“मैं वह बन जाऊँगा” ने मुझे भेजा है।’”+ 15 इसके बाद परमेश्वर ने एक बार फिर मूसा से कहा,
“तू इसराएलियों से कहना, ‘यहोवा जो तुम्हारे पुरखों का परमेश्वर है, अब्राहम का परमेश्वर,+ इसहाक का परमेश्वर+ और याकूब का परमेश्वर है,+ उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।’ सदा तक मेरा नाम यही रहेगा+ और पीढ़ी-पीढ़ी तक मुझे इसी नाम से याद किया जाएगा। 16 अब तू जा और इसराएल के मुखियाओं को इकट्ठा करके उनसे कह, ‘यहोवा जो तुम्हारे पुरखों का परमेश्वर है, अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर है, वह मेरे सामने प्रकट हुआ और उसने मुझसे कहा है, “मैंने बेशक तुम लोगों की हालत पर गौर किया है,+ मैंने देखा है कि मिस्र में तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जा रहा है। 17 इसलिए मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें मिस्रियों के अत्याचार से छुड़ाऊँगा+ और एक ऐसे देश में ले जाऊँगा जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं+ और जहाँ आज कनानी, हित्ती, एमोरी,+ परिज्जी, हिव्वी और यबूसी लोग रहते हैं।”’+
18 वे ज़रूर तेरी बात मानेंगे।+ फिर तू इसराएल के मुखियाओं के साथ मिलकर मिस्र के राजा के पास जाना और उससे कहना, ‘इब्रियों+ के परमेश्वर यहोवा ने हमसे बात की है। इसलिए हम तुझसे इजाज़त माँगते हैं कि हमें तीन दिन का सफर तय करके वीराने में जाने दे ताकि हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ा सकें।’+ 19 मगर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम्हें तब तक जाने की इजाज़त नहीं देगा जब तक कि मेरा शक्तिशाली हाथ उसे मजबूर न करे।+ 20 इसलिए मुझे मिस्र के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाकर कहर ढाना होगा और तरह-तरह के अजूबे करने होंगे, तब वह तुम्हें देश से भेज देगा।+ 21 जब तुम लोग मिस्र से निकलोगे तो खाली हाथ नहीं जाओगे। मैं मिस्रियों को तुम पर मेहरबान कर दूँगा।+ 22 हर औरत को चाहिए कि वह अपनी पड़ोसिन से और अपने घर में रहनेवाली औरत से सोने-चाँदी की चीज़ें और कपड़े माँगे। ये सब तुम अपने बेटे-बेटियों को पहनाओगे। तुम मिस्रियों को लूट लोगे।”+
4 तब मूसा ने कहा, “लेकिन अगर वे मेरा यकीन न करें और यह कहकर मेरी बात मानने से इनकार कर दें+ कि यहोवा तेरे सामने प्रकट नहीं हुआ, तो मैं क्या करूँ?” 2 यहोवा ने उससे कहा, “वह तेरे हाथ में क्या है?” उसने कहा, “छड़ी है।” 3 परमेश्वर ने कहा, “उसे नीचे ज़मीन पर फेंक।” मूसा ने छड़ी ज़मीन पर फेंकी और वह साँप बन गयी।+ तब मूसा वहाँ से दूर भागा। 4 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ बढ़ाकर उसे पूँछ से पकड़।” मूसा ने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लिया और वह उसके हाथ में फिर से छड़ी बन गया। 5 तब परमेश्वर ने कहा, “तू लोगों के सामने ऐसा ही करना ताकि वे यकीन करें कि यहोवा वाकई तेरे सामने प्रकट हुआ,+ जो उनके पुरखों का परमेश्वर है, अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर है।”+
6 यहोवा ने उससे यह भी कहा, “अब ज़रा अपना हाथ अपने बागे की ऊपरी तह के अंदर रख।” मूसा ने अपना हाथ बागे की ऊपरी तह के अंदर रखा। जब उसने हाथ बाहर निकाला, तो यह देखकर चौंक गया कि उसका हाथ कोढ़ से भर गया है और बर्फ जैसा सफेद हो गया है!+ 7 फिर परमेश्वर ने कहा, “अब अपना हाथ वापस बागे की ऊपरी तह के अंदर रख।” मूसा ने ऐसा ही किया। जब उसने बागे में से अपना हाथ बाहर निकाला, तो देखा कि उसका हाथ पहले की तरह अच्छा हो गया है! 8 तब परमेश्वर ने कहा, “अगर वे तेरा यकीन न करें और पहले चमत्कार पर ध्यान न दें तो वे दूसरा चमत्कार देखकर ज़रूर यकीन करेंगे।+ 9 और अगर ये दोनों चमत्कार देखकर भी वे यकीन न करें और तेरी बात मानने से इनकार कर दें, तो तू नील नदी में से थोड़ा पानी लेना और सूखी ज़मीन पर उँडेलना। तब वह पानी जिसे तू ज़मीन पर उँडेलेगा खून में बदल जाएगा।”+
10 मूसा ने यहोवा से कहा, “माफ करना यहोवा, मैं बोलने में निपुण नहीं हूँ, मैं साफ-साफ बोल नहीं पाता। न तो मैं पहले कभी बोलने में कुशल था और न ही जब से तूने मुझसे बात की तब से कुशल बना हूँ।”+ 11 यहोवा ने उससे कहा, “अच्छा, तू यह बता कि इंसान को बोलने के लिए मुँह किसने दिया, देखने के लिए आँखें किसने दीं और वह कौन है जो उसे गूँगा, बहरा या अंधा बनाता है?* क्या वह मैं यहोवा नहीं? 12 इसलिए अब तू जा और मेरे लोगों से बात कर, मैं तेरी मदद करूँगा* और तुझे सिखाता रहूँगा कि तुझे क्या कहना है।”+ 13 मगर फिर भी मूसा ने कहा, “माफ करना यहोवा, तू इस काम के लिए किसी और को चुनकर भेज।” 14 तब यहोवा का गुस्सा मूसा पर भड़क उठा। फिर उसने कहा, “देख, लेवी गोत्र का हारून जो तेरा भाई है,+ वह तुझसे मिलने आ रहा है। जब वह तुझसे मिलेगा तो खुशी से फूला नहीं समाएगा।+ मैं जानता हूँ कि वह अच्छी तरह बात कर सकता है। 15 इसलिए मैंने तुझसे जो-जो बातें कही हैं, वे सब उसे बताना।+ जब तू बात करेगा, तो मैं तुम दोनों के साथ रहूँगा+ और तुम्हें सिखाऊँगा कि तुम्हें क्या-क्या करना है। 16 हारून तेरी तरफ से लोगों से बात करेगा, वह तेरी ज़बान बन जाएगा और तू उसके लिए परमेश्वर जैसा होगा।*+ 17 और तेरे हाथ में जो छड़ी है, उसे तू अपने साथ ले जाएगा और उससे चमत्कार करेगा।”+
18 फिर मूसा अपने ससुर यित्रो+ के पास गया और उससे कहा, “मैं मिस्र जाने की इजाज़त चाहता हूँ ताकि जाकर देखूँ कि मेरे भाई खैरियत से हैं या नहीं।” यित्रो ने मूसा से कहा, “ठीक है, कुशल से जा।” 19 इसके बाद यहोवा ने मूसा से, जो मिद्यान में था, कहा, “तू अब मिस्र लौट जा क्योंकि जितने आदमी तेरी जान के पीछे पड़े थे, वे सब मर चुके हैं।”+
20 तब मूसा ने अपनी पत्नी और अपने बेटों को एक गधे पर बिठाया और मिस्र लौटने के लिए निकल पड़ा। मूसा ने अपने हाथ में सच्चे परमेश्वर की छड़ी भी ली। 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने तुझे जितने भी चमत्कार करने की शक्ति दी है, तू मिस्र लौटने पर फिरौन के सामने वे सारे चमत्कार ज़रूर करना।+ फिर भी फिरौन मेरे लोगों को जाने नहीं देगा,+ क्योंकि मैं उसके दिल को कठोर होने दूँगा।+ 22 तू फिरौन से कहना, ‘यहोवा कहता है, “इसराएल मेरा बेटा है, मेरा पहलौठा।+ 23 मैं तुझसे कहता हूँ, मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी सेवा करे। अगर तूने उसे भेजने से इनकार कर दिया तो मैं तेरे बेटे को, तेरे पहलौठे को मार डालूँगा।”’”+
24 फिर हुआ यह कि रास्ते में एक मुसाफिरखाने पर यहोवा+ उससे मिला और उसे मार डालने की कोशिश करने लगा।+ 25 तब सिप्पोरा+ ने एक तेज़ चकमक पत्थर लिया* और अपने बेटे का खतना किया और फिर उसकी खलड़ी से उसका पैर छुआ और कहा, “यह इसलिए है क्योंकि तू मेरे लिए खून का दूल्हा है।” 26 इसलिए परमेश्वर ने उसे जाने दिया। उस वक्त सिप्पोरा ने खतने की वजह से “खून का दूल्हा” कहा।
27 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “तू वीराने में जा और मूसा से मिल।”+ हारून गया और सच्चे परमेश्वर के पहाड़+ के पास मूसा से मिला। उससे मिलने पर हारून ने उसे चूमा। 28 फिर मूसा ने हारून को बताया कि यहोवा ने उसे क्या-क्या बताकर भेजा है+ और क्या-क्या चमत्कार करने की आज्ञा दी है।+ 29 इसके बाद मूसा और हारून ने जाकर इसराएलियों के सभी मुखियाओं को इकट्ठा किया।+ 30 हारून ने उन्हें वे सारी बातें बतायीं जो यहोवा ने मूसा से कही थीं और मूसा ने लोगों के सामने चमत्कार किए।+ 31 यह देखकर लोगों ने मूसा का यकीन किया।+ और जब उन्होंने सुना कि यहोवा ने इसराएलियों की हालत पर ध्यान दिया है+ और उनकी दुख-तकलीफों पर गौर किया है,+ तो उन्होंने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।
5 इसके बाद मूसा और हारून फिरौन के सामने गए और उन्होंने कहा, “इसराएल का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, ‘मेरे लोगों को वीराने में जाने दे ताकि वे मेरे लिए एक त्योहार मनाएँ।’” 2 मगर फिरौन ने कहा, “यह यहोवा कौन है+ कि मैं उसकी बात मानकर इसराएल को जाने दूँ?+ मैं किसी यहोवा को नहीं जानता और मैं इसराएल को हरगिज़ नहीं जाने दूँगा।”+ 3 फिर भी उन्होंने कहा, “इब्रियों के परमेश्वर ने हमसे बात की है। इसलिए हम तुझसे इजाज़त माँगते हैं कि हमें तीन दिन का सफर तय करके वीराने में जाने दे ताकि हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ा सकें,+ वरना परमेश्वर हमें बीमारी या तलवार से नाश कर देगा।” 4 मिस्र के राजा ने कहा, “हे मूसा और हारून, तुम क्यों लोगों को उनके काम से दूर ले जाना चाहते हो? सब लोग अपने-अपने काम पर लौट जाएँ और चुपचाप मज़दूरी करें!”+ 5 फिरौन ने यह भी कहा, “देखो, इस देश में तुम्हारे कितने लोग हैं जो मज़दूरी करते हैं। और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात मानकर इन सबको छुट्टी दे दूँ?”
6 उसी दिन फिरौन ने इसराएलियों पर ठहराए गए जल्लादों और उनके सहायक अधिकारियों* को यह हुक्म दिया: 7 “तुम अब से लोगों को ईंटें बनाने के लिए पुआल मत देना।+ उनसे कहो कि वे खुद जाकर पुआल इकट्ठा करें। 8 मगर उनसे हर दिन उतनी ही ईंटें बनवाना जितनी वे अब तक बनाते आए हैं। उसमें कोई कटौती मत करना। वे कामचोर हो गए हैं!* इसीलिए कह रहे हैं, ‘हम अपने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाना चाहते हैं, हमें जाने दे!’ 9 उनसे और भी ज़्यादा मज़दूरी कराओ, काम में इतना उलझा दो कि झूठी बातों पर ध्यान न दे सकें।”
10 तब वे जल्लाद+ और उनके सहायक अधिकारी लोगों के पास गए और उनसे कहने लगे, “सुनो, फिरौन का यह आदेश है, ‘अब से मैं तुम लोगों को पुआल नहीं दूँगा। 11 तुम जाओ, जहाँ कहीं तुम्हें पुआल मिले खुद इकट्ठा करो। मगर तुम्हारे काम में कोई कटौती नहीं होगी।’” 12 तब लोग पूरे मिस्र में यहाँ-वहाँ जाकर पुआल के लिए घास-फूस इकट्ठा करने लगे। 13 और जल्लाद यह कहकर उनके पीछे पड़ जाते थे, “तुम्हें हर दिन उतनी ही ईंटें बनानी हैं जितनी तुम उस वक्त बनाते थे जब तुम्हें पुआल दिया जाता था।” 14 फिरौन के जल्लादों ने उन इसराएली आदमियों को भी पीटा जिन्हें उन्होंने सहायक अधिकारी ठहराया था+ और उनसे पूछा, “तुमने उतनी ईंटें क्यों नहीं बनायीं जितनी तुम पहले बनाते थे? कल भी नहीं बनायी थीं, आज भी नहीं बनायीं।”
15 तब इसराएलियों के सहायक अधिकारी फिरौन के पास गए और उससे शिकायत करने लगे, “तू अपने दासों के साथ ऐसा सलूक क्यों कर रहा है? 16 तेरे लोग हमें बिलकुल पुआल नहीं दे रहे, फिर भी हमसे माँग करते हैं, ‘ईंटें बनाओ! ईंटें बनाओ!’ गलती तेरे लोगों की है और पीटा हमें जा रहा है।” 17 मगर फिरौन ने उनसे कहा, “तुम लोग कामचोर हो, कामचोर!*+ इसीलिए कहते हो, ‘हम यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाना चाहते हैं, हमें जाने दे!’+ 18 हाँ-हाँ, जाओ ज़रूर जाओ, मगर सीधे अपने काम पर! तुम्हें कोई पुआल नहीं दिया जाएगा, फिर भी तुम्हें पहले जितनी ईंटें ही बनानी होंगी।”
19 अधिकारियों ने देखा कि फिरौन के इस आदेश की वजह से कि उन्हें हर दिन पहले जितनी ईंटें ही बनानी होंगी, उनकी तकलीफ अब और बढ़ गयी है। 20 जब वे फिरौन के दरबार से बाहर आए तो उन्होंने देखा कि मूसा और हारून उनसे मिलने के लिए वहाँ इंतज़ार कर रहे हैं। 21 उन्हें देखते ही अधिकारियों ने कहा, “तुम दोनों की वजह से फिरौन और उसके सेवक हमसे नफरत करने लगे हैं, तुमने तो उनके हाथ में तलवार दे दी है कि वे हमें मार डालें। यहोवा तुम्हें देखे और तुम्हारा न्याय करे।”+ 22 तब मूसा ने यहोवा से फरियाद की, “हे यहोवा, तू क्यों इन लोगों को इतने दुख देता है? तूने क्यों मुझे यहाँ भेजा? 23 जब से मैं फिरौन के सामने गया और मैंने तेरे नाम से बात की,+ तब से वह इन लोगों पर और भी ज़ुल्म ढा रहा है+ और तू अपने लोगों को छुड़ाने के लिए कुछ भी नहीं कर रहा।”+
6 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तू देखना मैं फिरौन का क्या करता हूँ।+ मेरा शक्तिशाली हाथ उसे ऐसा मजबूर करेगा कि वह मेरे लोगों को भेज देगा, यहाँ तक कि उन्हें अपने देश से भगा देगा।”+
2 फिर परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं यहोवा हूँ। 3 मैं अब्राहम, इसहाक और याकूब के सामने प्रकट होता था और मैंने उन पर ज़ाहिर किया कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ।+ मगर अपने नाम यहोवा+ से मैंने खुद को उन पर ज़ाहिर नहीं किया था।+ 4 और मैंने उनके साथ यह करार भी किया था कि मैं उन्हें कनान देश दूँगा, जहाँ उन्होंने परदेसियों की ज़िंदगी गुज़ारी थी।+ 5 मुझे वह करार याद है+ और मैंने इसराएलियों का रोना-बिलखना सुना है जिनसे मिस्री गुलामी करवा रहे हैं।
6 इसलिए तू इसराएलियों से मेरी यह बात कहना, ‘मैं यहोवा हूँ, मैं तुम लोगों को मिस्रियों के बोझ से छुटकारा दिलाऊँगा, उनकी गुलामी से आज़ाद कर दूँगा।+ मैं अपना हाथ बढ़ाकर* तुम्हें छुड़ा लूँगा और उन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा दूँगा।+ 7 मैं तुम्हें अपना लूँगा जिससे कि तुम मेरे अपने लोग बन जाओगे और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा।+ और तुम बेशक जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें मिस्र के बोझ से छुड़ाकर बाहर ला रहा है। 8 मैं तुम्हें उस देश में ले जाऊँगा, जिसके बारे में मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खाकर वादा किया था* कि मैं यह देश उन्हें दूँगा। और वह देश तुम्हारी जागीर होगा।+ मैं यहोवा हूँ।’”+
9 बाद में मूसा ने परमेश्वर का यह संदेश इसराएलियों को दिया। मगर उन्होंने मूसा की बात मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे निराश हो गए थे और उनसे सख्ती से गुलामी करायी जा रही थी।+
10 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 11 “तू मिस्र के राजा फिरौन के पास जा और उससे कह कि वह इसराएलियों को मिस्र से भेज दे।” 12 मगर मूसा ने यहोवा से कहा, “जब इसराएलियों ने मेरी बात नहीं सुनी+ तो फिरौन कहाँ सुनेगा? मैं तो ठीक से बोल भी नहीं सकता।”+ 13 मगर यहोवा ने एक बार फिर मूसा और हारून से कहा कि वे इसराएलियों को और मिस्र के राजा फिरौन को उसकी आज्ञाएँ सुनाएँ ताकि इसराएलियों को मिस्र से बाहर निकाल लाएँ।
14 अलग-अलग गोत्रों के घरानों के मुखियाओं के नाम ये हैं: इसराएल के पहलौठे+ रूबेन के बेटे हानोक, पल्लू, हेसरोन और करमी।+ इन्हीं से रूबेन के वंशजों के कुल चले।
15 शिमोन के बेटे थे यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर और शौल जो एक कनानी औरत से पैदा हुआ था।+ इन्हीं से शिमोन के वंशजों के कुल चले।
16 लेवी+ के बेटों के नाम हैं गेरशोन, कहात और मरारी,+ जिनसे उनके अपने-अपने कुल निकले। लेवी 137 साल जीया था।
17 गेरशोन के बेटे थे लिबनी और शिमी जिनसे उनके अपने-अपने कुल निकले।+
18 कहात के बेटे थे अमराम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल।+ कहात 133 साल जीया था।
19 मरारी के बेटे थे महली और मूशी।
ये सभी लेवी के वंशज थे जिनसे उनके अपने-अपने कुल चले।+
20 अमराम ने अपने पिता की बहन योकेबेद से शादी की थी।+ योकेबेद से उसे हारून और मूसा पैदा हुए।+ अमराम 137 साल जीया था।
21 यिसहार के बेटे थे कोरह,+ नेपेग और जिक्री।
22 उज्जीएल के बेटे थे मीशाएल, एलसापान+ और सित्री।
23 हारून ने अम्मीनादाब की बेटी एलीशेबा से शादी की जो नहशोन+ की बहन थी। एलीशेबा से हारून के ये बेटे हुए: नादाब, अबीहू, एलिआज़र और ईतामार।+
24 कोरह के बेटे थे अस्सीर, एलकाना और अबीआसाप।+ इनसे कोरह के वंशजों के कुल चले।+
25 हारून के बेटे एलिआज़र+ ने पूतीएल की एक बेटी से शादी की, जिससे उसका बेटा फिनेहास+ पैदा हुआ।
ये सभी लेवियों के अलग-अलग कुलों के घरानों के मुखिया हैं।+
26 हारून और मूसा की वंशावली यही है। यहोवा ने उन दोनों से कहा, “इसराएलियों के अलग-अलग दल बनाकर* उन्हें मिस्र देश से बाहर ले आओ।”+ 27 उन दोनों ने ही जाकर मिस्र के राजा फिरौन से बात की ताकि वे इसराएलियों को मिस्र से बाहर ले जा सकें।+
28 यहोवा ने जिस दिन मिस्र देश में मूसा से बात की, 29 उस दिन यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं यहोवा हूँ। मैं तुझे जो-जो बता रहा हूँ वह सब तू मिस्र के राजा फिरौन से कहना।” 30 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “फिरौन मुझ जैसे आदमी की बात कहाँ मानेगा? मैं तो ठीक से बोल भी नहीं सकता।”+
7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “देख, मैं तुझे फिरौन के लिए परमेश्वर जैसा बनाता हूँ। और तेरा अपना भाई हारून तेरा भविष्यवक्ता ठहरेगा।+ 2 तू अपने भाई हारून को वे सारी बातें बताना जिनकी मैं तुझे आज्ञा दूँगा और हारून फिरौन से बात करेगा। और फिरौन इसराएलियों को अपने देश से भेज देगा। 3 मैं फिरौन के दिल को कठोर होने दूँगा+ और मिस्र में बहुत सारे चिन्ह और चमत्कार दिखाऊँगा।+ 4 फिर भी फिरौन तुम्हारी बात नहीं मानेगा, इसलिए मैं अपना हाथ मिस्र पर उठाऊँगा और उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दूँगा और अपनी बड़ी भीड़* को, अपने लोगों, इसराएलियों को मिस्र से बाहर निकाल लाऊँगा।+ 5 जब मैं मिस्र के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाऊँगा और उनके बीच से इसराएलियों को निकाल लाऊँगा तो मिस्री लोग हर हाल में जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।”+ 6 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के मुताबिक काम किया। उन्होंने ठीक वैसा ही किया। 7 मूसा 80 साल का था और हारून 83 साल का जब वे दोनों फिरौन के सामने गए।+
8 इसके बाद यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 9 “अगर फिरौन तुमसे कहे, ‘मुझे कोई चमत्कार करके दिखाओ’ तो तू हारून से कहना, ‘अपनी छड़ी फिरौन के सामने ज़मीन पर फेंक।’ तब वह छड़ी एक बड़ा साँप बन जाएगी।”+ 10 तब मूसा और हारून फिरौन के सामने गए और उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी। हारून ने अपनी छड़ी फिरौन और उसके सेवकों के सामने ज़मीन पर फेंकी और वह छड़ी एक बड़ा साँप बन गयी। 11 तब फिरौन ने मिस्र के ज्ञानियों और टोना-टोटका करनेवालों को बुलवाया और उन जादू-टोना करनेवाले पुजारियों+ ने भी अपनी जादूगरी* से वैसा ही चमत्कार कर दिखाया।+ 12 उन सबने अपनी-अपनी छड़ी ज़मीन पर फेंकी और उनकी छड़ियाँ बड़े-बड़े साँप बन गयीं। मगर हारून की छड़ी ने उनकी छड़ियों को निगल लिया। 13 यह देखने के बाद भी फिरौन का दिल कठोर बना रहा।+ उसने मूसा और हारून की बात नहीं मानी, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।
14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन के दिल पर कोई असर नहीं हुआ है।+ उसने मेरे लोगों को छोड़ने से इनकार कर दिया है। 15 इसलिए तू एक काम कर, कल सुबह फिरौन के पास जा। वह नील नदी के किनारे आएगा और तू उससे मिलने के लिए पहले से वहाँ खड़ा रह। तू अपने हाथ में वह छड़ी ले जा जो साँप बन गयी थी।+ 16 तू फिरौन से कहना, ‘इब्रियों के परमेश्वर यहोवा ने मुझे तेरे पास भेजा+ और तुझसे कहा था, “मेरे लोगों को जाने दे ताकि वे वीराने में जाकर मेरी सेवा करें,” मगर तूने अभी तक उसकी बात नहीं मानी। 17 इसलिए अब यहोवा तुझसे कहता है, “मैं एक ऐसा काम करनेवाला हूँ जिससे तू जान जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।+ मेरे हाथ में जो छड़ी है, उससे मैं नील नदी को मारूँगा और उसका पानी खून में बदल जाएगा। 18 नील नदी की सारी मछलियाँ मर जाएँगी और नदी से बदबू आने लगेगी और मिस्री लोग नदी का पानी नहीं पी सकेंगे।”’”
19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कहना, ‘तू अपनी छड़ी ले और मिस्र के नदी-नालों, नहरों,* झीलों, दलदलों+ और सभी तालाबों पर अपना हाथ बढ़ा+ ताकि उनका सारा पानी खून में बदल जाए।’ पूरे मिस्र में हर कहीं पानी की जगह खून नज़र आएगा, यहाँ तक कि लकड़ी और पत्थर के बरतनों में भी।” 20 तब मूसा और हारून ने बिना देर किए यहोवा की आज्ञा के मुताबिक काम किया। हारून ने नील नदी के पास फिरौन और उसके सेवकों के देखते अपनी छड़ी उठायी और पानी पर मारी। तब नदी का सारा पानी खून में बदल गया।+ 21 नदी की सारी मछलियाँ मर गयीं+ और नदी से बदबू आने लगी। अब मिस्रियों के लिए नील नदी का पानी पीना नामुमकिन हो गया।+ पूरे मिस्र में पानी की जगह खून-ही-खून था।
22 मिस्र के जादू-टोना करनेवाले पुजारियों ने भी अपनी जादुई कला से वैसा ही चमत्कार किया।+ इसलिए फिरौन का दिल कठोर ही बना रहा। उसने मूसा और हारून की बात नहीं मानी, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।+ 23 इसके बाद फिरौन अपने घर लौट गया। इस कहर का भी उसके दिल पर कुछ असर नहीं हुआ। 24 अब मिस्र के सब लोग पानी की तलाश में नील नदी के आस-पास खुदाई करने लगे, क्योंकि वे उस नदी का पानी नहीं पी सकते थे। 25 यहोवा ने जब नील नदी को मारा तो उसके बाद पूरे सात दिन तक यही हाल रहा।
8 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन के पास जा और उससे कह, ‘यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को जाने दे ताकि वे मेरी सेवा करें।+ 2 अगर तू इसी तरह इनकार करता रहा, तो मैं तेरे देश के पूरे इलाके पर मेंढकों का कहर ढा दूँगा।+ 3 नील नदी मेंढकों से भर जाएगी और वे नदी से निकलकर तेरे घर में घुस आएँगे। तेरे सोने के कमरे में, तेरे बिस्तर पर और तेरे सेवकों के घरों में, तेरे लोगों पर, तेरे तंदूरों में और आटा गूँधने के बरतनों* में, जहाँ देखो वहाँ मेंढक-ही-मेंढक होंगे।+ 4 वे तुझ पर, तेरे लोगों पर और तेरे सभी सेवकों पर चढ़ आएँगे।”’”
5 बाद में यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कह, ‘तू अपनी छड़ी ले और मिस्र की नदियों, नील नदी की नहरों और दलदलों पर अपना हाथ बढ़ा और मिस्र देश में मेंढक ले आ।’” 6 तब हारून ने मिस्र के नदी-नालों पर अपना हाथ बढ़ाया। पानी में से मेंढक निकलने लगे और देखते-ही-देखते पूरे मिस्र में फैल गए। 7 फिर मिस्र के जादू-टोना करनेवाले पुजारियों ने भी अपनी जादुई कला से ऐसा चमत्कार किया, वे मिस्र देश में मेंढक ले आए।+ 8 तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाया और उनसे कहा, “यहोवा से फरियाद करो कि वह मेंढकों को मेरे और मेरे लोगों के बीच से दूर कर दे।+ मैं तुम्हारे लोगों को भेजने के लिए तैयार हूँ ताकि वे यहोवा के लिए बलिदान चढ़ा सकें।” 9 मूसा ने फिरौन से कहा, “ठीक है, तू ही बता, मैं कब यह फरियाद करूँ कि मेंढक तुझसे, तेरे सेवकों और लोगों से और तेरे घरों से दूर कर दिए जाएँ। सिर्फ नील नदी में मेंढक रह जाएँगे।” 10 फिरौन ने कहा, “तू कल फरियाद करना।” मूसा ने कहा, “तूने जैसा कहा है वैसा ही होगा ताकि तू जान ले कि हमारे परमेश्वर यहोवा जैसा कोई परमेश्वर नहीं।+ 11 जितने भी मेंढक हैं, वे तुझसे, तेरे घरों और तेरे सेवकों और लोगों से दूर कर दिए जाएँगे। सिर्फ नील नदी में मेंढक रह जाएँगे।”+
12 तब मूसा और हारून फिरौन के सामने से चले गए। फिर मूसा ने यहोवा से फरियाद की कि वह मेंढकों का कहर फिरौन से दूर कर दे।+ 13 यहोवा ने मूसा की यह फरियाद सुनी, इसलिए लोगों के घरों, आँगनों और मैदानों में जहाँ-जहाँ मेंढक थे वे सब मरने लगे। 14 लोगों ने मरे हुए मेंढकों को इकट्ठा किया जिससे जगह-जगह मेंढकों का ढेर लग गया और पूरे देश में बदबू फैल गयी। 15 अब जैसे ही फिरौन ने देखा कि मुसीबत टल गयी है, उसने अपना दिल कठोर कर लिया।+ उसने मूसा और हारून की बात मानने से इनकार कर दिया, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।
16 इसलिए यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कह, ‘अपना हाथ बढ़ाकर छड़ी ज़मीन की धूल पर मार, तब धूल मच्छरों* में बदल जाएगी और पूरा मिस्र मच्छरों से भर जाएगा।’” 17 मूसा और हारून ने ऐसा ही किया। हारून ने अपनी छड़ी हाथ में ली और हाथ बढ़ाकर ज़मीन की धूल पर मारी। तब मिस्र की ज़मीन की सारी धूल मच्छरों में बदल गयी+ और वे इंसानों और जानवरों को काटने लगे। 18 जादू-टोना करनेवाले पुजारियों ने भी अपनी जादुई कला से मच्छर लाने की कोशिश की+ मगर वे नाकाम रहे। इंसानों और जानवरों पर मच्छरों का कहर बना रहा। 19 तब जादू-टोना करनेवाले पुजारियों ने फिरौन से कहा, “यह ज़रूर परमेश्वर की शक्ति* से हुआ है!”+ मगर फिरौन का दिल कठोर ही बना रहा। उसने मूसा और हारून की बात मानने से इनकार कर दिया, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।
20 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू कल सुबह तड़के उठकर फिरौन के सामने जा। वह नदी के पास आनेवाला है। तू उससे कहना, ‘यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को भेज दे ताकि वे मेरी सेवा करें। 21 अगर तू नहीं भेजेगा तो मैं तुझ पर, तेरे सेवकों और लोगों पर और तेरे घरों में खून चूसनेवाली मक्खियाँ भेजूँगा। और मिस्रियों के घरों में, यहाँ तक कि उस ज़मीन पर भी, जहाँ वे* कदम रखेंगे, मक्खियाँ छा जाएँगी। 22 मगर उस दिन मैं गोशेन को पूरे मिस्र देश में अलग दिखाऊँगा, जहाँ मेरे लोग रहते हैं। वहाँ एक भी खून चूसनेवाली मक्खी नहीं होगी।+ तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा इस देश में हूँ।+ 23 मैं अपने लोगों और तेरे लोगों के बीच फर्क साफ दिखाऊँगा। यह चमत्कार कल होगा।”’”
24 और यहोवा ने ऐसा ही किया। मिस्र पर खून चूसनेवाली मक्खियों का हमला शुरू हो गया। फिरौन और उसके सेवकों के घरों में, यहाँ तक कि पूरे मिस्र में मक्खियों के झुंड-के-झुंड टूट पड़े।+ मक्खियों ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया।+ 25 आखिरकार फिरौन ने मूसा और हारून को बुलाकर कहा, “तुम इसी देश में कहीं जाकर अपने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ा सकते हो।” 26 मगर मूसा ने कहा, “हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि जब मिस्री देखेंगे कि हम अपने परमेश्वर यहोवा को बलिदान में क्या चढ़ा रहे हैं तो वे भड़क जाएँगे।+ अगर हम उनके देखते ऐसे बलिदान चढ़ाएँगे तो क्या वे पत्थरों से हमें मार नहीं डालेंगे? 27 इसलिए हम तीन दिन का सफर तय करके वीराने में जाना चाहते हैं और जैसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमसे कहा है, हम वहाँ उसके लिए बलिदान चढ़ाएँगे।”+
28 अब फिरौन ने कहा, “अगर तुम लोग वीराने में ही जाकर अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाना चाहते हो तो ठीक है, मैं तुम्हें इजाज़त देता हूँ। बस तुम ज़्यादा दूर मत जाना और मेरी खातिर फरियाद करना कि यह कहर टल जाए।”+ 29 मूसा ने कहा, “मैं यहोवा से ज़रूर फरियाद करूँगा। अब मैं जा रहा हूँ। कल फिरौन और उसके सेवकों और लोगों को मक्खियों से राहत मिल जाएगी। मगर मुझे फिरौन से बस इतना कहना है कि वह हमसे और धोखा* न करे और हमारे लोगों को भेज दे ताकि वे यहोवा के लिए बलिदान चढ़ा सकें।”+ 30 तब मूसा फिरौन के पास से चला गया और उसने यहोवा से फरियाद की।+ 31 यहोवा ने मूसा की फरियाद सुनी। तब फिरौन और उसके सेवकों और लोगों के पास से खून चूसनेवाली मक्खियाँ दूर हो गयीं। एक भी मक्खी नहीं रही। 32 मगर फिरौन ने एक बार फिर अपना दिल कठोर कर लिया और इसराएलियों को नहीं भेजा।
9 इसलिए यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन के पास जा और उससे कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को जाने दे ताकि वे मेरी सेवा करें।+ 2 अगर तू उन्हें भेजने से इनकार कर देगा और उन्हें रोके रहेगा, 3 तो देख! मुझ यहोवा का हाथ+ तेरे सभी जानवरों के खिलाफ उठेगा। मैं तेरे घोड़ों, गधों, ऊँटों, गाय-बैलों और भेड़-बकरियों को एक महामारी से मारूँगा।+ 4 मैं यहोवा इसराएलियों के जानवरों और मिस्रियों के जानवरों के बीच फर्क साफ दिखाऊँगा। इसराएलियों का एक भी जानवर नहीं मरेगा।”’”+ 5 यहोवा ने यह महामारी लाने का एक समय भी तय किया और कहा, “मैं यहोवा कल के दिन मिस्र पर यह कहर लाऊँगा।”
6 यहोवा ने अगले दिन ऐसा ही किया। मिस्र के हर तरह के जानवर मरने लगे।+ मगर इसराएल का एक भी जानवर नहीं मरा। 7 जब फिरौन ने इस बारे में जाँच-पड़ताल करवायी तो पता चला कि इसराएलियों का एक भी जानवर नहीं मरा! फिर भी उसके दिल पर कोई असर नहीं हुआ और उसने इसराएलियों को नहीं जाने दिया।+
8 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “तुम एक भट्ठे से राख लेना और अपनी दोनों मुट्ठियाँ भर लेना। फिर मूसा फिरौन के देखते वह राख ऊपर हवा में उड़ाए। 9 तब वह राख बारीक धूल में बदलकर पूरे मिस्र में फैल जाएगी और इससे मिस्र के सभी इंसानों और जानवरों के शरीर पर फोड़े निकल आएँगे और उनसे मवाद बहने लगेगा।”
10 तब मूसा और हारून ने एक भट्ठे से राख ली और वे फिरौन के सामने गए। फिर मूसा ने राख हवा में उड़ायी। इससे इंसानों और जानवरों के शरीर पर फोड़े निकल आए और उनसे मवाद बहने लगा। 11 सभी मिस्रियों पर, यहाँ तक कि जादू-टोना करनेवाले पुजारियों के शरीर पर भी फोड़े निकल आए, इसलिए वे पुजारी मूसा के सामने खड़े न हो सके।+ 12 मगर इस कहर के बावजूद फिरौन का दिल कठोर बना रहा और यहोवा ने उसे कठोर ही रहने दिया। फिरौन ने मूसा और हारून की बात नहीं मानी, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा से कहा था।+
13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू कल सुबह तड़के उठकर फिरौन के सामने जा और उससे कह, ‘इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे लोगों को भेज दे ताकि वे मेरी सेवा करें। 14 अगर तू ऐसा नहीं करेगा, तो मैं सारे कहर लाकर तुझ पर और तेरे सेवकों और लोगों पर ऐसा वार करूँगा कि तू जान जाएगा कि पूरे जहान में मेरे जैसा परमेश्वर कोई नहीं।+ 15 मैं चाहता तो अपना हाथ बढ़ाकर तुझ पर और तेरे लोगों पर कोई महामारी लाता और अब तक धरती से तेरा नामो-निशान मिटा चुका होता। 16 मगर मैंने तुझे इसलिए ज़िंदा रहने दिया है ताकि तुझे अपनी शक्ति दिखा सकूँ और पूरी धरती पर अपने नाम का ऐलान करा सकूँ।+ 17 क्या तू अब भी मगरूर बना हुआ है और मेरे लोगों को न छोड़ने की ज़िद पर अड़ा है? 18 अब देखना मैं क्या करता हूँ। मैं कल इसी समय मिस्र पर ऐसे भारी-भारी ओले बरसाऊँगा, जैसे आज तक इस देश में कभी नहीं बरसे। 19 इसलिए अब तू अपने आदमियों से बोल कि वे जाकर तेरे सभी जानवरों को और तेरा जो कुछ बाहर है वह सब अंदर ले आएँ। हर वह इंसान और जानवर जो घर के बाहर होगा और अंदर नहीं लाया जाएगा, वह ओलों के गिरने से मर जाएगा।”’”
20 फिरौन के सेवकों में से जिस-जिसने यहोवा की बात सुनी और उसका डर माना, वे फटाफट जाकर अपने दासों और जानवरों को घरों के अंदर ले आए। 21 मगर जिन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी, उन्होंने अपने दासों और जानवरों को बाहर ही रहने दिया।
22 अब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आसमान की तरफ उठा ताकि पूरे मिस्र पर ओले बरसें,+ मिस्र के सभी इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों पर ओले गिरें।”+ 23 तब मूसा ने अपनी छड़ी ऊपर आसमान की तरफ उठायी और यहोवा ने बादल के तेज़ गरजन के साथ ज़मीन पर ओले और आग* बरसायी। यहोवा मिस्र पर लगातार ओले बरसाता रहा। 24 ओलों की जमकर बारिश हुई और उनके साथ-साथ आग भी गिरती रही। जब से मिस्र देश बसा था, तब से मिस्र में ओलों की ऐसी बारिश नहीं हुई थी।+ 25 ओलों ने पूरे मिस्र में तबाही मचा दी। जितने भी इंसान और जानवर बाहर थे सब मारे गए, पेड़ टूटकर गिर गए और सारे पौधे नष्ट हो गए।+ 26 सिर्फ गोशेन में, जहाँ इसराएली रहते थे, ओले नहीं पड़े।+
27 इसलिए फिरौन ने मूसा और हारून को अपने पास बुलवाया और उनसे कहा, “अब मैं मानता हूँ कि मैंने पाप किया है। यहोवा ने जो किया वह सही है क्योंकि मैं और मेरे लोग दोषी हैं। 28 अब यहोवा से फरियाद करो कि वह ओलों का गिरना और बादलों का गरजना बंद कर दे। तब मैं तुम लोगों को यहाँ से जाने दूँगा, तुम्हें और नहीं रोकूँगा।” 29 मूसा ने कहा, “ठीक है, मैं जैसे ही शहर से बाहर कदम रखूँगा, यहोवा के सामने हाथ फैलाकर दुआ करूँगा। तब यह गरजन और ये ओले बंद हो जाएँगे ताकि तू जान ले कि सारी धरती का मालिक यहोवा है।+ 30 मगर मुझे मालूम है कि इसके बाद भी तू और तेरे सेवक यहोवा परमेश्वर का डर नहीं माननेवाले।”
31 ओलों की वजह से मिस्र में अलसी और जौ की फसल बरबाद हो गयी क्योंकि जौ की फसल करीब-करीब पक चुकी थी और अलसी के पौधों में कलियाँ लग चुकी थीं। 32 मगर गेहूँ और कठिया गेहूँ की फसल को नुकसान नहीं हुआ क्योंकि इनकी फसल तैयार होने में अभी देर थी।* 33 मूसा फिरौन के पास से चला गया और शहर से बाहर आने के बाद उसने हाथ फैलाकर यहोवा से दुआ की। तब ओलों का गिरना, गरजन और बारिश सब बंद हो गया।+ 34 जब फिरौन ने देखा कि बारिश, ओले और गरजन बंद हो गए हैं, तो उसने और उसके सेवकों ने फिर से पाप किया, उन्होंने अपना दिल कठोर बना लिया।+ 35 फिरौन का दिल कठोर ही बना रहा और उसने इसराएलियों को जाने नहीं दिया। यह बिलकुल वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा से कहलवाया था।+
10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू फिरौन के सामने जा। देख, फिरौन और उसके अधिकारियों के दिल पर कोई असर नहीं हुआ है, वे अब भी ढीठ बने हुए हैं।+ और मैंने उन्हें ढीठ ही रहने दिया है ताकि मैं फिरौन के सामने अपने चिन्ह दिखा सकूँ,+ 2 और तुम अपने बेटों और पोतों को यह दास्तान सुना सको कि मैं मिस्र पर कैसी-कैसी मुसीबतें लाया और मैंने क्या-क्या चिन्ह दिखाए।+ इससे तुम बेशक जान जाओगे कि मैं यहोवा हूँ।”
3 इसलिए मूसा और हारून फिरौन के पास गए और उससे कहने लगे, “इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझसे कहता है, ‘तू और कब तक मेरे आगे झुकने से इनकार करता रहेगा?+ मेरे लोगों को जाने दे ताकि वे मेरी सेवा करें। 4 अगर तू मेरे लोगों को भेजने से इनकार करता रहेगा तो मैं कल तेरे देश के सभी इलाकों में टिड्डियों का कहर लाऊँगा। 5 उनकी तादाद इतनी होगी कि ज़मीन पूरी तरह ढक जाएगी, एक चप्पा भी कहीं नज़र नहीं आएगा। और ओलों की मार से जो कुछ बच गया है उसे टिड्डियाँ खा जाएँगी। मैदान में जितने भी पेड़ हैं, उनका एक-एक पत्ता साफ कर जाएँगी।+ 6 तेरे और तेरे सभी अधिकारियों के घर, और सभी मिस्रियों के घर टिड्डियों से भर जाएँगे। तेरे देश पर टिड्डियों का इतना बड़ा दल टूट पड़ेगा जितना तेरे पुरखों के ज़माने से लेकर आज तक किसी ने कभी न देखा होगा।’”+ इतना कहने के बाद मूसा फिरौन के पास से चला गया।
7 तब फिरौन के अधिकारियों ने उससे कहा, “यह आदमी और कब तक हम पर मुसीबतें लाता रहेगा?* इन लोगों को जाने दे ताकि वे अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करें। क्या तू देख नहीं रहा, पूरा-का-पूरा मिस्र बरबाद हो गया है?” 8 तब मूसा और हारून को फिरौन के पास वापस लाया गया। फिरौन ने उनसे कहा, “तुम लोग जाओ अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करने। मगर यह बताओ तुममें से कौन-कौन जाएगा?” 9 मूसा ने कहा, “हम यहोवा के लिए एक त्योहार मनाने जा रहे हैं।+ इसलिए हमारे सभी लोग जाएँगे, हमारे बेटे-बेटियाँ, जवान, बुज़ुर्ग, छोटे-बड़े सब लोग। और हम अपनी भेड़ों और गाय-बैलों को भी साथ ले जाएँगे।”+ 10 फिरौन ने उनसे कहा, “अगर मैंने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को यहाँ से जाने दिया तो इसका मतलब होगा कि यहोवा तुम्हारे साथ है।+ लेकिन ऐसा कुछ नहीं होनेवाला। मैं जानता हूँ कि तुम लोगों के इरादे सही नहीं हैं। 11 नहीं, मैं सबको नहीं जाने दूँगा। सिर्फ तुम्हारे आदमी जा सकते हैं, वे ही जाकर यहोवा की सेवा करें, आखिर तुमने इसी के लिए तो इजाज़त माँगी थी।” इसके बाद मूसा और हारून को फिरौन के यहाँ से भगा दिया गया।
12 अब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू अपना हाथ मिस्र पर बढ़ा ताकि पूरे देश पर टिड्डियाँ छा जाएँ और उन सभी पेड़-पौधों और फसलों को खा जाएँ जो ओलों की मार से बच गयी हैं।” 13 मूसा ने फौरन अपनी छड़ी मिस्र पर बढ़ायी और यहोवा ने पूरब से एक हवा चलायी जो पूरे दिन और पूरी रात उस देश में चलती रही। सुबह होने पर पूरब की हवा के साथ टिड्डियाँ आने लगीं। 14 उनके झुंड-के-झुंड पूरे मिस्र पर मँडराने लगे और कोने-कोने में छा गए।+ टिड्डियों का यह कहर बड़ा ही दुखदायी था।+ टिड्डियों का इतना बड़ा दल मिस्र में न इससे पहले कभी देखा गया था, न ही इसके बाद कभी देखा जाएगा। 15 देश का चप्पा-चप्पा टिड्डियों के दल से इतना भर गया कि चारों तरफ अँधेरा-सा छा गया। टिड्डियाँ उन सभी पेड़-पौधों और फलों को चट कर गयीं जो ओलों की मार से बच गए थे। टिड्डियों ने कहीं एक पत्ता या घास का एक तिनका तक नहीं छोड़ा।
16 यह देखकर फिरौन ने मूसा और हारून को जल्द अपने पास बुलवाया और उनसे कहा, “मैंने तुम्हारे और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के खिलाफ पाप किया है। 17 बस इस बार मेरा पाप माफ कर दो और अपने परमेश्वर यहोवा से मेरे लिए फरियाद करो कि यह कहर मुझसे दूर कर दे।” 18 तब वह* फिरौन के पास से चला गया और उसने यहोवा से फरियाद की।+ 19 फिर यहोवा ने हवा का रुख बदल दिया और वह हवा पश्चिम से बहनेवाली तेज़ हवा बनकर सारी टिड्डियों को उड़ा ले गयी और उन्हें लाल सागर में डुबो दिया। पूरे मिस्र में एक भी टिड्डी नहीं बची। 20 मगर इस कहर के बाद भी फिरौन का दिल कठोर बना रहा और यहोवा ने उसे कठोर ही रहने दिया।+ फिरौन ने इसराएलियों को नहीं जाने दिया।
21 अब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आसमान की तरफ बढ़ा ताकि मिस्र देश पर अँधेरा छा जाए, ऐसा घनघोर अँधेरा कि लोग उसे महसूस कर सकें।” 22 मूसा ने फौरन अपना हाथ आसमान की तरफ बढ़ाया और तीन दिन तक पूरे मिस्र पर घुप अँधेरा छाया रहा।+ 23 तीन दिन तक लोग न तो एक-दूसरे को देख पाए, न ही कोई घर से बाहर कदम रख सका। मगर जहाँ इसराएली रहते थे वहाँ उजाला था।+ 24 इसके बाद फिरौन ने मूसा को बुलाया और उससे कहा, “तुम यहोवा की सेवा करने जा सकते हो,+ अपने बच्चों को भी साथ ले जा सकते हो। मगर तुम अपनी भेड़ों और गाय-बैलों को नहीं ले जाओगे।” 25 लेकिन मूसा ने कहा, “तू खुद हमें बलिदानों और होम-बलियों के लिए जानवर देगा* और हम उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के लिए चढ़ाएँगे।+ 26 हम अपने जानवरों को भी साथ ले जाएँगे, एक को* भी नहीं छोड़ सकते क्योंकि हमें अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना में इनमें से कुछ जानवरों की बलि चढ़ानी है। मगर यहोवा को ठीक कौन-से जानवर चढ़ाने हैं, यह हमें तभी पता चलेगा जब हम वहाँ पहुँचेंगे।” 27 तब फिरौन का दिल और कठोर हो गया और यहोवा ने उसे कठोर ही रहने दिया। फिरौन इसराएलियों को भेजने के लिए राज़ी नहीं हुआ।+ 28 उसने मूसा से कहा, “दूर हो जा मेरी नज़रों से! और खबरदार जो तूने फिर कभी मेरे सामने आने की जुर्रत की। जिस दिन तू मेरे सामने आएगा, उसी दिन मर जाएगा।” 29 मूसा ने कहा, “ठीक है, मैं फिर कभी तेरे सामने नहीं आऊँगा।”
11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं फिरौन और मिस्र पर एक और कहर लानेवाला हूँ। उसके बाद वह तुम्हें अपने देश से ज़रूर भेज देगा,+ यहाँ तक कि वह तुम्हें भगा देगा।+ 2 अब तू जाकर इसराएलियों से कह कि सभी आदमी-औरतें अपने मिस्री पड़ोसियों से सोने-चाँदी की चीज़ें माँगें।”+ 3 यहोवा ने मिस्रियों को इसराएलियों पर मेहरबान कर दिया। यही नहीं, फिरौन के अधिकारी और मिस्री लोग मूसा का बहुत सम्मान करने लगे।
4 फिर मूसा ने कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘आज आधी रात को मैं मिस्र आनेवाला हूँ।+ 5 मिस्र देश का हर पहलौठा मर जाएगा।+ राजगद्दी पर बैठे फिरौन के पहलौठे से लेकर चक्की* पीसनेवाली दासी के पहलौठे तक, सब मर जाएँगे और सब जानवरों के पहलौठे भी मर जाएँगे।+ 6 देश-भर में ऐसा रोना-बिलखना होगा जैसा न पहले कभी हुआ था, न फिर कभी होगा।+ 7 मगर इसराएली और उनके जानवर सब सलामत रहेंगे, उन पर एक कुत्ता भी नहीं भौंकेगा। तब तुम जान जाओगे कि यहोवा इसराएलियों और मिस्रियों में कैसे फर्क कर सकता है।’+ 8 जब परमेश्वर यह कहर लाएगा, तब तेरे सभी अधिकारी मेरे पास आएँगे और मेरे सामने गिरकर मुझसे बिनती करेंगे, ‘तू और तेरे सब लोग यह देश छोड़कर चले जाएँ।’+ और तब मैं इस देश से निकल जाऊँगा।” इतना कहकर मूसा तमतमाता हुआ फिरौन के पास से चला गया।
9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन तुम्हारी बात नहीं मानेगा+ क्योंकि मिस्र में मुझे और भी चमत्कार जो दिखाने हैं।”+ 10 मूसा और हारून ने फिरौन के देखते ये सारे चमत्कार किए,+ मगर फिरौन का दिल कठोर बना रहा और यहोवा ने उसे कठोर ही रहने दिया। फिरौन ने इसराएलियों को अपने देश से नहीं जाने दिया।+
12 मूसा और हारून जब मिस्र में थे तब यहोवा ने उनसे कहा, 2 “यह महीना तुम्हारे लिए पहला महीना होगा। तुम इसे साल का पहला महीना मानना।+ 3 इसराएल की पूरी मंडली से कहना, ‘इस महीने के दसवें दिन, इसराएल के सब घराने अपने लिए एक-एक मेम्ना+ लें, हर परिवार के लिए एक मेम्ना। 4 लेकिन अगर एक घराने में पूरे मेम्ने को खाने के लिए लोग कम हों, तो वह देखे कि मेम्ने को और कितने लोग खा सकते हैं और उस हिसाब से पड़ोस के किसी परिवार के साथ अपने घर में मिल-बाँटकर खाए। और मेम्ने को खाने के लिए कितने लोग होंगे उसके हिसाब से यह भी तय करे कि हर कोई मेम्ने का कितना गोश्त खाएगा। 5 तुम ऐसा मेम्ना चुनना जिसमें कोई दोष न हो।+ वह नर हो और एक साल का हो। तुम या तो भेड़ का बच्चा ले सकते हो या बकरी का। 6 तुम इस महीने के 14वें दिन तक उसकी देखभाल करना।+ और उसी दिन शाम के झुटपुटे के समय*+ इसराएलियों की मंडली का हर परिवार अपना मेम्ना हलाल करे, 7 और मेम्ने का थोड़ा-सा खून ले और जिस घर में वह परिवार मेम्ने को खाएगा, उसके दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं और चौखट के ऊपरी हिस्से पर उसका खून छिड़के।+
8 लोग मेम्ने का माँस 14वें दिन की रात को ही खाएँ।+ मेम्ना हलाल करने के बाद उसे आग में भून दिया जाए और उसे बिन-खमीर की रोटी+ और कड़वे साग के साथ खाया जाए।+ 9 जानवर को कच्चा या पानी में उबालकर मत खाना बल्कि पूरे जानवर को उसके सिर, पायों और अंदरूनी अंगों समेत आग में भूनकर खाना। 10 अगली सुबह के लिए कुछ बचाकर मत रखना, अगर कुछ बच गया तो उसे आग में जला देना।+ 11 तुम लोग कमरबंद बाँधकर,* पैरों में जूतियाँ पहनकर और हाथ में लाठी लिए पूरी तरह तैयार होकर यह खाना खाना। और तुम जल्दी-जल्दी खाना। यह यहोवा के लिए मनाया जानेवाला फसह है। 12 उसी रात मैं मिस्र देश आऊँगा और मिस्र के हर पहलौठे को मार डालूँगा, चाहे वह इंसान का हो या जानवर का।+ मैं मिस्र के सब देवी-देवताओं को सज़ा दूँगा।+ मैं यहोवा हूँ। 13 जिन घरों में तुम रहोगे, उन पर लगा खून तुम्हारे लिए निशानी होगा। वह खून देखकर मैं तुम्हें छोड़ दूँगा और आगे बढ़ जाऊँगा। और मैं मिस्र देश को मारने के लिए जो कहर लानेवाला हूँ उससे तुम बच जाओगे।+
14 यह दिन तुम्हारे लिए यादगार बन जाएगा। तुम पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस दिन यहोवा के लिए त्योहार मनाया करना। यह नियम तुम्हें हमेशा के लिए दिया जा रहा है। 15 तुम्हें सात दिन तक बिन-खमीर की रोटी खानी होगी।+ इस त्योहार के पहले दिन ही तुम अपने घरों से खमीरा आटा* निकाल फेंकना क्योंकि इन सात दिनों में अगर तुममें से कोई ऐसी चीज़ खाएगा जिसमें खमीर मिला हो, तो उसे इसराएल में से हमेशा के लिए नाश कर दिया जाए। 16 पहले दिन तुम एक पवित्र सभा रखना और सातवें दिन फिर से एक पवित्र सभा रखना। इन दिनों में कोई भी काम न किया जाए।+ सिर्फ हरेक की ज़रूरत के मुताबिक खाना तैयार किया जा सकता है, इसके अलावा कोई और काम नहीं किया जा सकता।
17 तुम बिन-खमीर की रोटी का त्योहार ज़रूर मनाया करना,+ क्योंकि इसी दिन मैं तुम लोगों की बड़ी भीड़* को मिस्र से निकालकर बाहर ले जानेवाला हूँ। तुम पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह दिन मनाया करना। यह नियम तुम्हें हमेशा के लिए दिया जा रहा है। 18 साल के पहले महीने के 14वें दिन की शाम से लेकर उस महीने के 21वें दिन की शाम तक तुम्हें बिन-खमीर की रोटी खानी होगी।+ 19 इन सात दिनों के दौरान तुम्हारे घरों में खमीरा आटा बिलकुल भी न पाया जाए क्योंकि कोई भी इंसान, चाहे वह पैदाइशी इसराएली हो या परदेसी,+ अगर ऐसी कोई चीज़ खाएगा जिसमें खमीर मिला हो, तो उसे इसराएल की मंडली में से नाश कर दिया जाएगा।+ 20 तुम्हें ऐसी कोई भी चीज़ नहीं खानी चाहिए जिसमें खमीर मिला हो। तुम सबको अपने घरों में सिर्फ बिन-खमीर की रोटी खानी होगी।’”
21 मूसा ने फौरन इसराएल के सभी मुखियाओं को बुलाया+ और उनसे कहा, “तुम सब जाकर अपने-अपने परिवार के लिए मेम्ने* ले आओ और उन्हें फसह की बलि के लिए हलाल करो। 22 फिर मेम्ने का खून एक बड़े कटोरे में लो और मरुए का गुच्छा उसमें डुबोकर उससे चौखट के ऊपरी हिस्से और दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं पर खून लगाओ। अगली सुबह तक तुममें से कोई भी अपने घर के दरवाज़े से बाहर कदम न रखे। 23 फिर जब यहोवा मिस्रियों पर कहर ढाने के लिए आएगा और तुम्हारे घरों की चौखट के ऊपरी हिस्से और दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं पर खून देखेगा, तो यहोवा तुम्हारे दरवाज़े को छोड़कर आगे बढ़ जाएगा और मौत के कहर* को तुम्हारे घरों में नहीं घुसने देगा।+
24 तुम लोग इस घटना की यादगार ज़रूर मनाया करना। यह नियम तुम्हें और तुम्हारे बेटों को हमेशा के लिए दिया जा रहा है।+ 25 जब तुम उस देश में दाखिल होगे जो यहोवा अपने कहे मुताबिक तुम्हें देगा, तो वहाँ तुम यह त्योहार मनाया करना।+ 26 अगर कभी तुम्हारे बेटे तुमसे पूछें, ‘हम यह त्योहार क्यों मनाते हैं?’+ 27 तो तुम उन्हें बताना, ‘जब इसराएली मिस्र में थे, तब परमेश्वर ने मिस्रियों पर कहर ढाया था। मगर वह इसराएलियों के घरों को छोड़कर आगे बढ़ गया और इस तरह उसने हमारे घरों को बख्श दिया। इसीलिए हम फसह की यह बलि यहोवा के लिए चढ़ाते हैं।’”
तब इसराएलियों ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया। 28 इसराएलियों ने जाकर वही किया जो यहोवा ने मूसा और हारून को आज्ञा दी थी।+ उन्होंने ठीक वैसा ही किया।
29 फिर उसी दिन आधी रात को यहोवा ने मिस्र देश के सभी पहलौठों को मार डाला।+ राजगद्दी पर बैठनेवाले फिरौन के पहलौठे से लेकर जेल* में पड़े कैदी तक के पहलौठे को और सब जानवरों के पहलौठों को मार डाला।+ 30 रात में फिरौन और उसके सभी अधिकारी और मिस्री लोग जाग उठे। मिस्रियों के यहाँ बड़ा हाहाकार मच गया क्योंकि एक भी घर ऐसा नहीं था जहाँ मौत न हुई हो।+ 31 फिरौन ने रात में ही मूसा और हारून को बुलवाया+ और उनसे कहा, “चले जाओ तुम यहाँ से। अपने सब इसराएलियों को लेकर निकल जाओ मेरे लोगों के बीच से। तुमने कहा था न, तुम यहोवा की सेवा करना चाहते हो, तो जाओ यहाँ से।+ 32 और जैसा तुमने कहा था, अपनी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल सब साथ लेते जाओ।+ मगर जाते-जाते मुझे दुआएँ देना मत भूलो।”
33 फिर मिस्री लोग इसराएलियों से हड़बड़ी कराने लगे कि वे जल्द-से-जल्द+ उनके देश से निकल जाएँ। मिस्री कहने लगे, “कहीं ऐसा न हो कि हम सब मर जाएँ।”+ 34 इसलिए इसराएलियों ने गुँधा हुआ आटा लिया और उसमें खमीर मिलाए बगैर ही उसे आटा गूँधने के बरतनों* में डालकर कपड़ों में लपेटा और अपने कंधों पर रख लिया। 35 और जैसे मूसा ने उन्हें बताया था, उन्होंने मिस्रियों से सोने-चाँदी की चीज़ें और कपड़े माँगे।+ 36 यहोवा ने मिस्रियों को इसराएलियों पर ऐसा मेहरबान किया कि उन्होंने इसराएलियों को मुँह माँगी चीज़ें दे दीं। इसराएलियों ने एक तरह से मिस्रियों को लूट लिया।+
37 इसके बाद इसराएली रामसेस+ से सुक्कोत+ के लिए निकल पड़े। उनमें आदमियों की गिनती करीब 6,00,000 थी जो पैदल चलकर गए और उनके अलावा बच्चे भी थे।+ 38 उनके साथ लोगों की एक मिली-जुली भीड़*+ भी निकली। वे सब अपने साथ भेड़-बकरियों और गाय-बैलों का एक बड़ा झुंड भी ले गए। 39 रास्ते में उन्होंने उस गुँधे हुए आटे से, जो वे मिस्र से लाए थे, बिन-खमीर की गोल-गोल रोटियाँ बनायीं। आटे में खमीर नहीं मिलाया गया था, क्योंकि उन्हें इतनी जल्दी मिस्र छोड़ना पड़ा था कि वे खाने की चीज़ें तैयार नहीं कर पाए।+
40 इसराएलियों ने, जो मिस्र में रह रहे थे,+ 430 साल+ परदेसियों की ज़िंदगी गुज़ारी थी। 41 जिस दिन 430 साल खत्म हुए उसी दिन यहोवा के लोगों की बड़ी भीड़* मिस्र देश से बाहर निकली। 42 हर साल इस रात वे इस बात की खुशियाँ मनाएँगे कि यहोवा उन्हें मिस्र से निकाल लाया था। सभी इसराएलियों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहोवा के सम्मान में इस रात की यादगार मनानी है।+
43 यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फसह के त्योहार के नियम ये हैं: कोई भी परदेसी फसह का खाना नहीं खा सकता।+ 44 लेकिन अगर किसी इसराएली के पास दाम देकर खरीदा हुआ दास हो तो उसका खतना किया जाना चाहिए,+ तभी वह फसह का खाना खा सकता है। 45 कोई भी प्रवासी या दिहाड़ी पर काम करनेवाला फसह का खाना नहीं खा सकता। 46 फसह का मेम्ना एक ही घर के अंदर खाया जाए। उसका माँस तुम घर के बाहर मत ले जाना और उसकी एक भी हड्डी न तोड़ना।+ 47 इसराएल की पूरी मंडली को यह त्योहार मनाना चाहिए। 48 तुम्हारे बीच रहनेवाला कोई परदेसी अगर यहोवा के लिए फसह मनाना चाहता है, तो उसे अपने घराने के सभी लड़कों और आदमियों का खतना कराना होगा। ऐसा करने पर वह पैदाइशी इसराएलियों के बराबर समझा जाएगा और तभी वह फसह का त्योहार मना सकेगा। मगर कोई भी खतनारहित आदमी फसह का खाना नहीं खा सकता।+ 49 पैदाइशी इसराएलियों और तुम्हारे बीच रहनेवाले परदेसियों, दोनों पर एक ही कानून लागू होगा।”+
50 सब इसराएलियों ने वही किया जो यहोवा ने मूसा और हारून को आज्ञा दी थी। उन्होंने ठीक वैसा ही किया। 51 इसी दिन यहोवा इसराएलियों की पूरी भीड़* को मिस्र से बाहर निकाल लाया।
13 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 2 “इसराएलियों के हर पहलौठे को मेरे लिए अलग ठहराना।* इंसानों के सभी पहलौठे लड़के और जानवरों के सभी नर पहलौठे मेरे हैं।”+
3 तब मूसा ने लोगों से कहा, “यह दिन तुम याद रखना, क्योंकि आज के दिन तुम गुलामी के घर मिस्र से बाहर निकल आए हो+ और यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से तुम्हें वहाँ से आज़ाद किया है।+ इसलिए तुम ऐसी कोई भी चीज़ न खाना जिसमें खमीर मिला हो। 4 इस आबीब* महीने में आज के दिन तुम यहाँ से जा रहे हो।+ 5 यहोवा ने जैसे तुम्हारे पुरखों से शपथ खाकर कहा था,+ वह तुम्हें कनानी, हित्ती, एमोरी, हिव्वी और यबूसी+ लोगों के देश में ले जाएगा जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ वहाँ तुम इस महीने यह त्योहार मनाया करना: 6 सात दिन तुम्हें बिन-खमीर की रोटी खानी है+ और सातवें दिन यहोवा के लिए एक त्योहार होगा। 7 इन सात दिनों तक तुम्हें बिन-खमीर की रोटी खानी होगी+ और इस दौरान तुम्हारे पास ऐसी कोई भी चीज़ न पायी जाए जिसमें खमीर मिला हो।+ तुम्हारे पूरे इलाके में कहीं भी खमीरा आटा न पाया जाए। 8 उस दिन तुम अपने-अपने बेटे को बताना, ‘जब मैं मिस्र से निकला था, तब यहोवा ने मेरी खातिर जो किया उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है।’+ 9 इस त्योहार से तुम्हारे दिलो-दिमाग में उस छुटकारे की याद ताज़ा बनी रहेगी, मानो उसके बारे में तुम्हारे हाथ और माथे पर* लिखा हो।+ और तुम यहोवा के कानून के बारे में चर्चा करोगे, क्योंकि यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से तुम्हें मिस्र से बाहर निकाला। 10 तुम यह नियम हर साल तय वक्त पर ज़रूर माना करना।+
11 जब यहोवा तुम्हें कनानियों के देश में ले जाएगा जिसके बारे में उसने तुमसे और तुम्हारे पुरखों से शपथ खाकर कहा था कि वह यह देश तुम्हें देगा,+ 12 तब तुममें से हर परिवार को चाहिए कि वह अपना पहलौठा यहोवा को देने के लिए अलग ठहराए। और अपने झुंड के हर जानवर का नर पहलौठा भी परमेश्वर को देने के लिए अलग ठहराए। इंसान और जानवर, सबके पहलौठे यहोवा के हैं।+ 13 तुम गधों में से हर पहलौठे को छुड़ाने के लिए एक भेड़ देना। अगर तुम गधे के पहलौठे को नहीं छुड़ाते तो उसका गला काटकर उसे मार डालना। और तुम्हें अपने सभी पहलौठे बेटों को छुड़ाना होगा।+
14 अगर भविष्य में कभी तुम्हारे बेटे तुमसे पूछें, ‘हम ऐसा क्यों करते हैं?’ तो तुम उनसे कहना, ‘यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से हमें गुलामी के घर, मिस्र से बाहर निकाला था।+ 15 वहाँ का फिरौन बहुत ढीठ था, उसने हमें छोड़ने से साफ इनकार कर दिया था।+ इसलिए यहोवा ने मिस्रियों के सभी पहलौठों को, इंसानों के पहलौठों से लेकर जानवरों के पहलौठों तक को मार डाला।+ यही वजह है कि हम अपने सभी जानवरों के नर पहलौठों को यहोवा के लिए बलि चढ़ाते हैं और अपने सभी पहलौठे बेटों को दाम देकर छुड़ाते हैं।’ 16 यह त्योहार तुम्हारे लिए हाथ पर लगाए चिन्ह और माथे पर* पट्टी जैसा हो,+ क्योंकि यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से हमें मिस्र से बाहर निकाला है।”
17 जब फिरौन ने इसराएलियों को जाने दिया, तो परमेश्वर उन्हें उस रास्ते से नहीं ले गया जो पलिश्तियों के देश से होकर गुज़रता है, इसके बावजूद कि वह रास्ता छोटा पड़ता। परमेश्वर ने कहा, “अगर लोग उस रास्ते जाएँगे, तो उन्हें वहाँ के लोगों से लड़ना पड़ेगा। तब हो सकता है कि वे पछताने लगें और मिस्र लौटने का फैसला कर लें।” 18 इसलिए परमेश्वर उन्हें उस लंबे रास्ते से ले गया जो लाल सागर के पासवाले वीराने से होकर जाता है।+ और जब इसराएली मिस्र से निकले तो वे सेना-दलों की तरह एक अच्छे इंतज़ाम के मुताबिक निकले। 19 मूसा ने अपने साथ यूसुफ की हड्डियाँ भी लीं क्योंकि यूसुफ ने इसराएल के बेटों को शपथ दिलाकर उनसे कहा था: “परमेश्वर ज़रूर तुम लोगों पर ध्यान देगा, इसलिए यहाँ से जाते वक्त तुम मेरी हड्डियाँ अपने साथ ले जाना।”+ 20 फिर इसराएली सुक्कोत से रवाना हुए और उन्होंने वीराने के छोर पर इताम नाम की जगह डेरा डाला।
21 यहोवा उनके आगे-आगे चलकर उन्हें रास्ता दिखाता रहा। वह दिन के वक्त बादल के खंभे से उन्हें रास्ता दिखाता+ और रात के वक्त आग के खंभे से उन्हें उजाला देता था, इसलिए वे दिन और रात दोनों समय सफर कर सके।+ 22 दिन के वक्त बादल का खंभा और रात के वक्त आग का खंभा लोगों के साथ-साथ रहा, उनसे कभी दूर नहीं गया।+
14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इसराएलियों से कहना कि वे पीछे मुड़ जाएँ और जाकर पीहाहीरोत में डेरा डालें, जो मिगदोल और सागर के बीच है। वहाँ तुम लोग सागर के पास बाल-सिपोन के सामने डेरा डालना।+ 3 तब फिरौन इसराएलियों के बारे में कहेगा, ‘वे देश में इधर-उधर भटक रहे हैं, वीराने में फँस गए हैं।’ 4 और मैं फिरौन के दिल को कठोर होने दूँगा।+ और जब वह इसराएलियों का पीछा करते हुए आएगा तो मैं उसे और उसकी सारी सेना को बुरी तरह हरा दूँगा ताकि मेरी महिमा हो।+ और मिस्री लोग हर हाल में जान जाएँगे कि मैं यहोवा हूँ।”+ इसराएलियों ने ठीक वैसा ही किया जैसा उन्हें बताया गया था।
5 बाद में मिस्र के राजा फिरौन को बताया गया कि इसराएली भाग गए हैं। यह सुनते ही फिरौन और उसके अधिकारी पछताने लगे+ और कहने लगे, “यह हमने क्या किया! इसराएलियों को, अपने गुलामों को जाने दिया!” 6 तब फिरौन ने अपने युद्ध-रथ तैयार किए और अपने योद्धाओं को लेकर चल पड़ा।+ 7 उसने मिस्र के 600 बेहतरीन रथ और बाकी सब रथ लिए। हर रथ पर योद्धा सवार थे। 8 इस तरह यहोवा ने मिस्र के राजा फिरौन का दिल कठोर होने दिया और फिरौन ने इसराएलियों का पीछा किया जो बिना किसी डर के* चले जा रहे थे।+ 9 फिरौन की सारी सेना, उसके रथ और घुड़सवार इसराएलियों को पकड़ने के लिए उनकी तरफ तेज़ी से बढ़ते गए,+ जो सागर के पास पीहाहीरोत में बाल-सिपोन के सामने डेरा डाले हुए थे।
10 जब फिरौन इसराएलियों के करीब आ पहुँचा तो उन्होंने नज़र उठाकर देखा कि मिस्री उनका पीछा करते हुए चले आ रहे हैं। इसराएली डर के मारे थर-थर काँपने लगे और बचाव के लिए यहोवा को पुकारने लगे।+ 11 वे मूसा से कहने लगे, “तू क्यों हमें यहाँ वीराने में ले आया? क्या मिस्र में कब्रें कम पड़ गयी थीं जो तू हमें यहाँ मरने के लिए ले आया?+ 12 क्या हमने मिस्र में तुझसे नहीं कहा था, ‘हमें अपने हाल पर छोड़ दे, हमें मिस्रियों की गुलामी करने दे’? यहाँ वीराने में आकर मरने से तो अच्छा होता कि हम मिस्रियों की गुलामी करते।”+ 13 तब मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत।+ मज़बूत खड़े रहो और देखो कि आज यहोवा तुम्हें किस तरह उद्धार दिलाता है।+ ये जो मिस्री तुम्हारे सामने हैं ये आज के बाद फिर कभी नज़र नहीं आएँगे।+ 14 यहोवा खुद तुम्हारी तरफ से लड़ेगा+ और तुम चुपचाप खड़े देखोगे।”
15 यहोवा ने अब मूसा से कहा, “तू क्यों मेरी दुहाई दे रहा है? इसराएलियों से बोल कि वे अपना पड़ाव उठाकर आगे बढ़ें। 16 और तू अपनी छड़ी सागर की तरफ बढ़ा और उसे दो हिस्सों में बाँट दे ताकि बीच में सूखी ज़मीन बन जाए और इसराएली उस पर चलकर सागर पार कर सकें। 17 देख, मैंने मिस्रियों के दिल को कठोर होने दिया है ताकि वे इसराएलियों के पीछे-पीछे सागर के बीच आ जाएँ। तब मैं फिरौन और उसकी पूरी सेना को, उसके युद्ध-रथों और घुड़सवारों को बुरी तरह हरा दूँगा जिससे मेरी महिमा हो।+ 18 इस तरह जब मैं फिरौन और उसके युद्ध-रथों और घुड़सवारों को हराकर अपनी महिमा करूँगा तो मिस्री बेशक जान जाएँगे कि मैं यहोवा हूँ।”+
19 तब सच्चे परमेश्वर का स्वर्गदूत,+ जो इसराएलियों के आगे-आगे चल रहा था, वहाँ से हटकर उनके पीछे आ गया। और उनके आगे जो बादल का खंभा था, वह आगे से हटकर उनके पीछे चला गया+ 20 और मिस्रियों और इसराएलियों के बीच खड़ा हो गया।+ बादल ने एक तरफ अँधेरा कर दिया, मगर दूसरी तरफ इतनी रौशनी फैलायी कि रात-भर उजाला रहा।+ बादल की वजह से मिस्री पूरी रात इसराएलियों के पास नहीं आ सके।
21 मूसा ने अब अपना हाथ सागर पर बढ़ाया+ और यहोवा ने सारी रात पूरब से तेज़ हवा चलायी जिससे सागर का पानी दो हिस्सों में बँट गया+ और बीच में सूखी ज़मीन दिखायी देने लगी।+ 22 फिर इसराएली सूखी ज़मीन पर उतरे और सागर पार करने लगे।+ इस पूरे समय के दौरान उनके दायीं और बायीं तरफ सागर का पानी ऊँची दीवार की तरह खड़ा रहा।+ 23 फिर मिस्री भी उनके पीछे-पीछे गए। फिरौन के घोड़े, युद्ध-रथ और घुड़सवार इसराएलियों का पीछा करते हुए सागर के बीच सूखी ज़मीन पर उतर पड़े।+ 24 सुबह के पहर* के दौरान, यहोवा ने आग और बादल के खंभे में से देखा+ कि मिस्री सेना उसके लोगों की तरफ चली आ रही है और उसने मिस्रियों के बीच खलबली मचा दी। 25 परमेश्वर ने उनके रथों के पहिए निकाल दिए जिससे उनका आगे बढ़ना मुश्किल हो गया। मिस्री एक-दूसरे से कहने लगे, “भागो यहाँ से, इसराएलियों से दूर भागो। यहोवा उनकी तरफ से लड़ रहा है, वह हम मिस्रियों का नाश कर देगा।”+
26 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ सागर पर बढ़ा ताकि पानी वापस मिल जाए और मिस्रियों और उनके युद्ध-रथों और घुड़सवारों पर गिर पड़े।” 27 मूसा ने फौरन अपना हाथ सागर पर बढ़ाया और सुबह होते-होते सागर का सारा पानी पहले की तरह मिल गया। सागर के पानी को मिलता देख मिस्रियों ने भागने की कोशिश की, मगर यहोवा ने उन्हें सागर के बीच ही झटक दिया।+ 28 फिरौन की पूरी सेना पर, उसके युद्ध-रथों और घुड़सवारों पर, जो इसराएलियों का पीछा करते हुए सागर के बीच घुसे थे, पानी पलटकर आ गिरा और वे सब-के-सब डूब मरे।+ एक भी ज़िंदा नहीं बचा।+
29 मगर इसराएली सागर के बीच सूखी ज़मीन पर चलते हुए पार निकल गए+ और पानी उनके दायीं और बायीं तरफ ऊँची दीवार की तरह खड़ा रहा।+ 30 इस तरह यहोवा ने उस दिन इसराएलियों को मिस्रियों के हाथ में पड़ने से बचाया।+ इसराएलियों ने मिस्रियों की लाशें सागर किनारे पड़ी देखीं। 31 उन्होंने देखा कि यहोवा ने कैसे अपनी महाशक्ति से मिस्रियों को कड़ी सज़ा दी। और लोग यहोवा का डर मानने लगे और उन्होंने यहोवा और उसके सेवक मूसा पर विश्वास किया।+
15 फिर मूसा और इसराएलियों ने यहोवा के लिए यह गीत गाया:+
“मैं यहोवा के लिए गीत गाऊँगा क्योंकि उसने शानदार जीत हासिल की है।+
घोड़े के साथ घुड़सवार को उसने गहरे समुंदर में फेंक दिया है।+
2 याह* मेरी ताकत है, मेरा बल है क्योंकि वह मेरा उद्धार करता है।+
वही मेरा परमेश्वर है, मैं उसकी तारीफ करूँगा,+ वह मेरे पिता का परमेश्वर है,+ मैं उसकी बड़ाई करूँगा।+
3 यहोवा एक शक्तिशाली योद्धा है।+ यहोवा उसका नाम है।+
5 उफनती लहरों ने उन्हें ढाँप लिया, वे गहराई में ऐसे डूब गए मानो पत्थर हों।+
7 महानता में तेरा कोई सानी नहीं, तेरे खिलाफ उठनेवालों को तू उठाकर पटक सकता है।+
तू अपने क्रोध की आग बरसाता है और वे घास-फूस की तरह भस्म हो जाते हैं।
8 तेरे नथनों की एक साँस से पानी इकट्ठा हो गया,
तेज़ धाराएँ थमकर रह गयीं,
सागर के बीचों-बीच उफनती लहरें जम गयीं।
9 दुश्मन ने कहा, ‘मैं उनका पीछा करूँगा! उन्हें पकड़ लूँगा!
मैं लूट का माल बाँट लूँगा जब तक कि मेरा जी न भर जाए!
मैं अपनी तलवार खींचूँगा! अपने हाथ से उन्हें अधीन करूँगा!’+
11 हे यहोवा, देवताओं में कौन है जो तेरी बराबरी कर सके?+
कौन है जो तुझ जैसा परम-पवित्र हो?+
तू ऐसा परमेश्वर है जिसका डर माना जाए, जिसकी तारीफ में गीत गाए जाएँ, तू ही बड़े-बड़े अजूबे करता है।+
12 तूने अपना दायाँ हाथ बढ़ाया और धरती उन सबको निगल गयी।+
13 अपने अटल प्यार की वजह से तूने अपने छुड़ाए हुए लोगों को राह दिखायी है,+
तू अपनी शक्ति से उन्हें अपने पवित्र निवास तक ले चलेगा।
कनान के सभी निवासियों का दिल बैठ जाएगा।+
16 उन सब पर डर और खौफ छा जाएगा।+
तेरे बाज़ुओं की ताकत देखकर वे पत्थर की तरह सुन्न रह जाएँगे,
जब तक कि हे यहोवा, तेरे लोग पार न निकल जाएँ,
17 तू उन्हें लाकर अपनी विरासत के पहाड़ पर लगाएगा,+
हे यहोवा, उस जगह पर जो तूने अपने निवास के लिए तैयार की है,
हे यहोवा, उस पवित्र-स्थान पर जिसे तूने अपने हाथों से बनाया है।
18 यहोवा राजा है, वह युग-युग तक राज करता रहेगा।+
19 जब फिरौन के घोड़े, युद्ध-रथ और घुड़सवार समुंदर में उतरे,+
तो यहोवा ने समुंदर का पानी उन पर पलट दिया,+
मगर इसराएली समुंदर के बीच सूखी ज़मीन पर चलकर पार हो गए।”+
20 फिर हारून की बहन मिरयम, जो एक भविष्यवक्तिन थी, हाथ में डफली लिए सामने आयी। और बाकी सभी औरतें डफली बजाती और नाचती हुई मिरयम के पीछे निकल पड़ीं। 21 आदमियों के गाने के जवाब में मिरयम यह गाती थी:
“यहोवा के लिए गीत गाओ क्योंकि उसने शानदार जीत हासिल की है।+
घोड़े के साथ घुड़सवार को उसने गहरे समुंदर में फेंक दिया है।”+
22 बाद में मूसा इसराएलियों को लाल सागर से आगे ले गया। वे शूर वीराने में पहुँचे और वहाँ तीन दिन तक चलते रहे। अब तक उन्हें कहीं भी पानी नहीं मिला था। 23 जब वे मारा* नाम की जगह पहुँचे+ तो वहाँ उन्हें पानी मिला, मगर पानी इतना कड़वा था कि वे पी न सके। इसीलिए उसने उस जगह का नाम मारा रखा। 24 तब लोग मूसा के खिलाफ यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे,+ “अब हम क्या पीएँगे?” 25 फिर मूसा ने यहोवा को पुकारा+ और यहोवा ने उसे एक छोटा पेड़ दिखाया। मूसा ने जब वह पेड़ उठाकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।
वहाँ परमेश्वर ने लोगों को एक नियम और न्याय-सिद्धांत दिया और उन्हें परखा।+ 26 उसने कहा, “तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात सख्ती से मानना और वही करना जो उसकी नज़रों में सही है, उसकी आज्ञाओं पर ध्यान देना और उसके सभी नियमों का पालन करना।+ अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम पर ऐसी कोई बीमारी नहीं लाऊँगा जो मैं मिस्रियों पर लाया था।+ मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।”+
27 इसके बाद वे एलीम आए जहाँ पानी के 12 सोते और 70 खजूर के पेड़ थे। उन्होंने वहीं पानी के पास डेरा डाला।
16 इसराएलियों की पूरी मंडली एलीम से निकलने के बाद चलते-चलते सीन वीराने में पहुँची,+ जो एलीम और सीनै के बीच है। मिस्र छोड़ने के दूसरे महीने के 15वें दिन वे इस जगह पहुँचे।
2 वहाँ वीराने में इसराएलियों की पूरी मंडली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगी।+ 3 वे बार-बार उनसे कहते रहे, “तुम हमें वीराने में इसलिए लाए हो कि हमारी पूरी मंडली भूखी मर जाए।+ इससे तो अच्छा था कि हम यहोवा के हाथों मिस्र में ही मारे जाते, जहाँ हमें भरपेट रोटी मिलती थी और हम गोश्त की हाँडियों के पास बैठकर खाया करते थे।”+
4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “देख, मैं आकाश से तुम लोगों के लिए खाना बरसाऊँगा।+ तुममें से हरेक जन रोज़ बाहर जाए और दिन-भर की ज़रूरत के हिसाब से खाना इकट्ठा करे।+ इस इंतज़ाम से मैं लोगों को परखूँगा कि वे मेरे कानून पर चलेंगे या नहीं।+ 5 छठे दिन+ उन्हें बाकी दिनों से दुगना खाना इकट्ठा करना है और उसे पहले से तैयार करके रखना है।”+
6 तब मूसा और हारून ने सभी इसराएलियों से कहा, “आज की शाम तुम सब बेशक जान जाओगे कि वह यहोवा ही है जो तुम्हें मिस्र से बाहर निकाल लाया है।+ 7 कल सुबह तुम यहोवा की महिमा देखोगे क्योंकि तुमने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाते हुए जो-जो कहा, वह सब उसने सुना है। हम कौन हैं जो तुम हमारे खिलाफ कुड़कुड़ाते हो?” 8 मूसा ने यह भी कहा, “आज शाम यहोवा तुम्हें खाने को गोश्त देगा और कल सुबह रोटी देगा ताकि तुम जी-भरकर खा सको। तब तुम जान लोगे कि तुमने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाते हुए जो भी कहा वह उसने सुना है। मगर हम कौन हैं जो तुम हमारे खिलाफ कुड़कुड़ाते हो? तुम असल में हमारे खिलाफ नहीं, यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे हो।”+
9 इसके बाद मूसा ने हारून से कहा, “इसराएलियों की पूरी मंडली से कहना, ‘तुम सब यहोवा के पास आओ क्योंकि उसने तुम्हारा कुड़कुड़ाना सुना है।’”+ 10 फिर हारून ने जाकर इसराएलियों की पूरी मंडली से वह बात कही। तब उन सबने फौरन मुड़कर वीराने की तरफ मुँह किया और देखा कि यहोवा की महिमा का तेज बादल में प्रकट हुआ है!+
11 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 12 “मैंने इसराएलियों का कुड़कुड़ाना सुना है।+ उनसे कह, ‘आज शाम झुटपुटे के समय* तुम्हें खाने को गोश्त मिलेगा और कल सुबह तुम भरपेट रोटी खाओगे।+ तब तुम बेशक जान जाओगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।’”+
13 फिर उस शाम बटेरों का एक बड़ा झुंड उड़ता हुआ आया और पूरी छावनी को ढक लिया।+ और सुबह हुई तो छावनी के चारों तरफ ज़मीन पर ओस पड़ी हुई थी। 14 फिर ओस सूख गयी और वीराने की ज़मीन पर पपड़ीदार चीज़ रह गयी+ जो पाले की तरह महीन थी। 15 जब इसराएलियों ने उसे देखा तो वे एक-दूसरे से कहने लगे, “यह क्या है?” क्योंकि वे नहीं जानते थे कि वह क्या था। मूसा ने उन्हें बताया, “यह तुम्हारे लिए खाना है, यहोवा ने दिया है।+ 16 यहोवा की यह आज्ञा है: ‘तुममें से हर कोई उतना खाना उठाए जितना वह खा सकता है। तुम्हारे तंबू में जितने लोग हैं उनमें से हरेक के लिए एक ओमेर*+ के हिसाब से तुम खाना लेना।’” 17 इसराएलियों ने ऐसा ही किया। वे जाकर खाना इकट्ठा करने लगे, किसी ने कम तो किसी ने ज़्यादा उठाया। 18 फिर उन्होंने उसे ओमेर से नापा। जिस किसी ने ज़्यादा उठाया था उसके पास ज़रूरत से ज़्यादा नहीं रहा और जिस किसी ने कम उठाया था उसके लिए कम नहीं पड़ा।+ हर किसी को उतना ही मिला था जितना वह खा सकता था।
19 फिर मूसा ने लोगों से कहा, “तुममें से कोई भी यह खाना अगली सुबह तक बचाकर न रखे।”+ 20 मगर उन्होंने मूसा की बात नहीं मानी। कुछ लोगों ने थोड़ा खाना सुबह के लिए बचाकर रखा, लेकिन उसमें कीड़े पड़ गए और बदबू आने लगी। तब मूसा उन पर भड़क उठा। 21 रोज़ सुबह हर कोई उतना खाना इकट्ठा करता था जितना वह खा सकता था। जब धूप तेज़ हो जाती तो ज़मीन पर बचा खाना पिघल जाता था।
22 छठे दिन लोगों ने दुगना खाना इकट्ठा किया,+ यानी हरेक के लिए दो ओमेर के हिसाब से। फिर इसराएलियों के सभी प्रधान मूसा के पास गए और उन्होंने उसे यह बात बतायी। 23 मूसा ने उनसे कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘कल का दिन पूरे विश्राम का दिन होगा,* यहोवा को समर्पित पवित्र सब्त का दिन।+ इसलिए तुम्हें जो भी खाना सेंकना हो या उबालना हो, आज ही कर लो+ और बचा हुआ खाना कल सुबह के लिए रख लो।’” 24 तब लोगों ने सुबह के लिए खाना बचाकर रखा, ठीक जैसे मूसा ने आज्ञा दी थी। अगले दिन उन्होंने देखा कि खाने में न तो कीड़े पड़े थे, न ही उससे बदबू आयी। 25 तब मूसा ने लोगों से कहा, “तुम्हारे पास जो खाना है, उसे तुम आज खा लेना। आज तुम्हें ज़मीन पर कोई खाना नहीं मिलेगा। क्योंकि आज का दिन यहोवा के लिए सब्त है। 26 तुम छ: दिन खाना इकट्ठा करोगे, मगर सातवें दिन ज़मीन पर कोई खाना नहीं मिलेगा क्योंकि वह सब्त का दिन होगा।”+ 27 फिर भी कुछ लोग सातवें दिन खाना इकट्ठा करने बाहर गए, मगर उन्हें कुछ नहीं मिला।
28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम लोग कब तक मेरी आज्ञाओं और मेरे कायदे-कानूनों को मानने से इनकार करते रहोगे?+ 29 इस बात का ध्यान रखो कि यहोवा ने तुम्हारे लिए सब्त का दिन ठहराया है।+ इसीलिए छठे दिन वह तुम्हें दो दिन का खाना दे रहा है। सातवें दिन हर कोई अपने इलाके में ही रहे, कोई बाहर न जाए।” 30 और सातवें दिन लोगों ने सब्त मनाया।*+
31 इसराएलियों ने उस खाने का नाम “मन्ना”* रखा। वह दिखने में धनिए के बीज जैसा सफेद था और उसका स्वाद शहद से बने पुए जैसा था।+ 32 मूसा ने कहा, “यहोवा की यह आज्ञा है: ‘एक ओमेर-भर खाना अलग रखना ताकि यह पीढ़ी-पीढ़ी तक रहे और तुम्हारे वंशज देख सकें+ कि मैंने तुम्हें मिस्र से छुड़ा लाने के बाद वीराने में कैसा खाना दिया था।’” 33 तब मूसा ने हारून से कहा, “तू एक मर्तबान ले और उसमें ओमेर-भर मन्ना डाल और उसे यहोवा के सामने रख ताकि वह पीढ़ी-पीढ़ी तक रहे।”+ 34 हारून ने ठीक वैसा ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। उसने एक मर्तबान में मन्ना भरकर उसे एक खास संदूक*+ के सामने रखा ताकि वह सही-सलामत रहे। 35 इसराएलियों ने जब तक उस देश में कदम नहीं रखा+ जहाँ दूसरे लोग रहते थे, तब तक उन्होंने मन्ना ही खाया।+ कनान की सरहद पर पहुँचने तक 40 साल उन्होंने मन्ना खाया।+ 36 एक ओमेर, एपा* का दसवाँ भाग है।
17 इसराएलियों की पूरी मंडली यहोवा के आदेश के मुताबिक सीन वीराने से आगे बढ़ी।+ वे जगह-जगह से होते हुए रपीदीम+ पहुँचे और वहाँ उन्होंने डेरा डाला।+ मगर लोगों के पीने के लिए कहीं पानी नहीं था।
2 इसलिए लोग मूसा से झगड़ने लगे+ और कहने लगे, “हमें पीने के लिए पानी दे।” मूसा ने उनसे कहा, “तुम लोग क्यों मुझसे झगड़ रहे हो? क्यों बार-बार यहोवा की परीक्षा लेते हो?”+ 3 फिर भी वे मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाते रहे क्योंकि उन्हें बहुत प्यास लगी थी।+ वे मूसा से कहते रहे, “तू क्यों हमें मिस्र से यहाँ ले आया? क्यों हमें और हमारे बच्चों और जानवरों को प्यासा मार रहा है?” 4 आखिरकार मूसा ने यहोवा को पुकारा, “मैं इन लोगों का क्या करूँ? कुछ ही देर में ये लोग मुझे पत्थरों से मार डालेंगे!”
5 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू अपने हाथ में वह छड़ी ले, जिसे तूने नील नदी पर मारा था+ और इसराएल के कुछ मुखियाओं को लेकर लोगों के आगे-आगे चल 6 और होरेब जा। देख! मैं वहाँ होरेब में चट्टान के पास तेरे सामने खड़ा रहूँगा। तुझे उस चट्टान पर छड़ी मारनी होगी, तब उसमें से पानी निकलेगा और लोग पीएँगे।”+ मूसा ने इसराएल के मुखियाओं के देखते ऐसा ही किया। 7 उसने उस जगह का नाम मस्सा*+ और मरीबा*+ रखा, क्योंकि वहीं पर इसराएलियों ने उससे झगड़ा किया था और यह कहते हुए यहोवा की परीक्षा ली थी,+ “यहोवा हमारे बीच है भी या नहीं?”
8 जब इसराएली रपीदीम में थे, तब अमालेकी+ लोगों ने आकर उन पर हमला बोल दिया।+ 9 इस पर मूसा ने यहोशू+ से कहा, “तू हमारे कुछ आदमियों को चुन और उन्हें साथ लेकर कल अमालेकियों से लड़ने जा। मैं अपने हाथ में सच्चे परमेश्वर की छड़ी लिए पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूँगा।” 10 यहोशू ने ठीक वैसा ही किया जैसा मूसा ने उसे बताया था।+ उसने जाकर अमालेकियों से लड़ाई की। मूसा, हारून और हूर+ पहाड़ी की चोटी पर गए।
11 इस लड़ाई के दौरान जब मूसा अपने हाथ ऊपर उठाए रहता तो इसराएली जीतने लगते, मगर जैसे ही वह अपने हाथ नीचे करता अमालेकी जीतने लगते। 12 कुछ समय बाद जब मूसा के हाथ थकने लगे तो वे उसके बैठने के लिए एक पत्थर ले आए और मूसा उस पर बैठ गया। फिर हारून और हूर ने मूसा के हाथों को सहारा दिया, एक ने बायीं तरफ से और दूसरे ने दायीं तरफ से। इसलिए सूरज ढलने तक मूसा अपने हाथ ऊपर उठाए रहा। 13 इस तरह यहोशू ने अपनी तलवार से अमालेकियों और उनके साथियों को हरा दिया।+
14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं अमालेकियों को धरती* से इस तरह मिटा दूँगा कि कोई उन्हें याद तक नहीं करेगा। मेरी यह बात किताब में लिखकर रख ताकि यह कभी भुलायी न जाए* और यहोशू को भी सुना।”+ 15 इसके बाद मूसा ने एक वेदी बनायी और उसका नाम यहोवा-निस्सी* रखा। 16 उसने कहा, “अमालेक ने याह की राजगद्दी के खिलाफ हाथ उठाया है,+ इसलिए यहोवा पीढ़ी-पीढ़ी तक उससे युद्ध करता रहेगा।”+
18 मूसा के ससुर यित्रो ने, जो मिद्यान का याजक था,+ सुना कि यहोवा ने मूसा और अपने इसराएली लोगों की खातिर क्या-क्या किया और कैसे उन सबको मिस्र से निकालकर बाहर ले आया।+ 2 मूसा के ससुर यित्रो ने मूसा की पत्नी सिप्पोरा को अपने घर रखा था जिसे मूसा ने वहाँ रहने भेजा था। 3 मूसा ने सिप्पोरा के साथ अपने दोनों बेटों+ को भी भेजा था। उनमें से एक का नाम गेरशोम*+ था क्योंकि मूसा ने कहा, “मैं परदेस में रहनेवाला परदेसी बन गया हूँ।” 4 दूसरे बेटे का नाम एलीएज़ेर* था क्योंकि मूसा ने कहा, “मेरे पिता का परमेश्वर मेरा मददगार है, जिसने मुझे फिरौन की तलवार से बचाया है।”+
5 अब यित्रो मूसा की पत्नी और उसके दोनों बेटों को लेकर वीराने में मूसा के पास आया, जो सच्चे परमेश्वर के पहाड़ के पास डेरा डाले हुए था।+ 6 उसने मूसा को खबर भेजी: “मैं तेरा ससुर यित्रो+ तेरे यहाँ आ रहा हूँ। मैं तेरी पत्नी और तेरे दोनों बेटों को साथ ला रहा हूँ।” 7 यह खबर सुनते ही मूसा अपने ससुर से मिलने गया और उससे मिलने पर झुककर उसे प्रणाम किया और चूमा। फिर उन्होंने एक-दूसरे की खैरियत पूछी और वे तंबू के अंदर गए।
8 मूसा ने अपने ससुर को बताया कि यहोवा ने इसराएल की खातिर फिरौन और मिस्र के साथ क्या-क्या किया,+ सफर के दौरान इसराएलियों पर क्या-क्या मुसीबतें आयीं+ और यहोवा ने कैसे उन सारी मुसीबतों से उन्हें छुड़ाया। 9 जब यित्रो ने सुना कि यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाकर उनके साथ कैसी भलाई की तो उसे बड़ी खुशी हुई। 10 उसने कहा, “यहोवा की तारीफ हो जिसने फिरौन के हाथ से और मिस्र से तुम लोगों को छुड़ाया है, जिसने मिस्र के चंगुल से तुम्हें छुड़ाया है। 11 अब मैं जान गया हूँ कि यहोवा दुनिया के सभी देवताओं से कहीं महान है,+ क्योंकि उसने उन लोगों का बुरा हाल कर दिया जिन्होंने घमंड से भरकर उसकी प्रजा को बहुत सताया था।” 12 फिर मूसा का ससुर यित्रो, परमेश्वर के लिए एक होम-बलि और बलिदान चढ़ाने के लिए कुछ जानवर ले आया। और हारून और इसराएल के सभी मुखिया सच्चे परमेश्वर के सामने यित्रो के साथ खाना खाने आए।
13 अगले दिन मूसा हर रोज़ की तरह लोगों के मामलों का न्याय करने बैठा। सुबह से शाम तक लोगों की भीड़ लगी रहती थी। 14 जब मूसा के ससुर ने वह सब देखा जो मूसा लोगों की खातिर कर रहा था, तो उसने पूछा, “यह तू लोगों के लिए क्या कर रहा है? तू क्यों यहाँ अकेला बैठा रहता है और क्यों सुबह से शाम तक तेरे सामने लोगों की भीड़ लगी रहती है?” 15 मूसा ने अपने ससुर से कहा, “लोग परमेश्वर की मरज़ी जानने मेरे पास आते हैं। 16 जब दो लोगों के बीच कोई मसला उठता है तो वे उसे मेरे पास लाते हैं और मुझे उन दोनों के बीच न्याय करना होता है। मैं उन्हें सच्चे परमेश्वर के फैसले और कायदे-कानून बताता हूँ।”+
17 मूसा के ससुर ने उससे कहा, “तू जिस तरह यह काम कर रहा है वह ठीक नहीं है। 18 ऐसा ही चलता रहा तो तू और तेरे पास आनेवाले सब पस्त हो जाएँगे क्योंकि यह काम बहुत भारी है। तू अकेले इसे नहीं कर पाएगा। 19 मेरी सुन, मैं तुझे एक सलाह देता हूँ। और परमेश्वर तेरे साथ रहेगा।+ तू सच्चे परमेश्वर के सामने लोगों की तरफ से सेवा कर+ और उनके मामले उसके सामने पेश कर।+ 20 लोगों को परमेश्वर के नियम और कायदे-कानून सिखा,+ उन्हें बता कि उन्हें किस राह पर चलना चाहिए और उन्हें क्या-क्या फर्ज़ निभाना चाहिए। 21 लेकिन तू ऐसे कुछ काबिल आदमियों को चुन+ जो परमेश्वर का डर मानते हों, भरोसेमंद हों और बेईमानी की कमाई से नफरत करते हों।+ उन आदमियों को दस-दस, पचास-पचास, सौ-सौ और हज़ार-हज़ार लोगों का प्रधान ठहरा।+ 22 ये प्रधान हर समय लोगों के मामलों का न्याय करेंगे। छोटे-छोटे मामलों का वे खुद फैसला करें, लेकिन अगर कोई मामला पेचीदा हो तो वे उसे तेरे पास लाएँ।+ इस तरह उनके साथ काम बाँटने से तेरा बोझ हलका हो जाएगा।+ 23 अगर तू ऐसा करे और परमेश्वर भी तुझे यही करने की आज्ञा दे, तो तुझे ज़्यादा तनाव नहीं होगा और न्याय के लिए आनेवाला हर कोई संतुष्ट होकर लौटेगा।”
24 मूसा ने फौरन अपने ससुर की सलाह मानी और उसने जो-जो बताया वह सब किया। 25 मूसा ने पूरे इसराएल में से काबिल आदमियों को चुना और उन्हें लोगों का अधिकारी ठहराया। उन्हें दस-दस, पचास-पचास, सौ-सौ और हज़ार-हज़ार लोगों का प्रधान ठहराया। 26 और ये प्रधान लोगों के मामलों का फैसला करने लगे। छोटे-छोटे मामले वे खुद निपटाते थे, मगर पेचीदा मामले मूसा के पास लाते थे।+ 27 इसके बाद मूसा ने अपने ससुर को विदा किया+ और वह अपने देश लौट गया।
19 मिस्र से निकलने के तीसरे महीने में इसराएली सीनै वीराने पहुँचे। 2 उसी दिन उन्होंने रपीदीम+ से अपना पड़ाव उठाया और सीनै वीराने में आकर अपना पड़ाव डाला। इसराएल ने वहाँ पहाड़ के सामने डेरा डाला।+
3 फिर मूसा ऊपर पहाड़ पर सच्चे परमेश्वर के पास गया।+ पहाड़ पर से यहोवा ने मूसा से कहा, “तू याकूब के घराने से, इसराएलियों से कहना: 4 ‘तुमने खुद अपनी आँखों से देखा है कि मैंने मिस्रियों के साथ क्या किया+ ताकि तुम्हें अपने पास ले आऊँ, जैसे उकाब अपने चूज़ों को पंखों पर चढ़ाकर ले जाता है।+ 5 अब अगर तुम सख्ती से मेरी आज्ञा का पालन करोगे और मेरा करार मानोगे, तो सब देशों में से तुम मेरी खास जागीर* बन जाओगे,+ क्योंकि मैं ही पूरी धरती का मालिक हूँ।+ 6 तुम मेरे लिए याजकों से बना राज और एक पवित्र राष्ट्र बन जाओगे।’+ तू जाकर इसराएलियों से ये सारी बातें कहना।”
7 मूसा ने जाकर लोगों के मुखियाओं को बुलाया और उन्हें वे सारी बातें बतायीं जिनकी आज्ञा यहोवा ने उसे दी थी।+ 8 इसके बाद सारे लोगों ने एकमत होकर जवाब दिया, “यहोवा ने जो-जो कहा है, वह सब करना हमें मंज़ूर है।”+ मूसा ने फौरन जाकर लोगों की यह बात यहोवा को बतायी। 9 यहोवा ने मूसा से कहा, “देख! मैं एक काले बादल में तेरे पास आऊँगा ताकि जब मैं तुझसे बात करूँ तो लोग सुन सकें और सदा तुझ पर भी विश्वास करें।” फिर मूसा ने यहोवा को बताया कि लोगों ने क्या कहा।
10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू लोगों के पास जा और उन्हें आज और कल के दिन पवित्र ठहरा और वे अपने कपड़े ज़रूर धोएँ। 11 वे तीसरे दिन के लिए तैयार रहें क्योंकि उस दिन यहोवा सब लोगों के सामने सीनै पहाड़ पर उतरेगा। 12 तुझे पहाड़ के चारों तरफ लोगों के लिए हद तय करनी होगी और उन्हें यह बताना होगा, ‘ध्यान रखो, तुममें से कोई भी पहाड़ के ऊपर न जाए, न ही उस पर कदम रखे। अगर किसी ने पहाड़ पर कदम रखा तो उसे ज़रूर मार डाला जाएगा। 13 उस गुनहगार को कोई भी हाथ से न छुए बल्कि उसे पत्थरों से या भेदकर* मार डाला जाए। चाहे वह इंसान हो या जानवर, उसे ज़िंदा नहीं छोड़ा जाएगा।’+ मगर जब नरसिंगे की आवाज़ सुनायी पड़ेगी+ तब लोग पहाड़ के पास आ सकते हैं।”
14 फिर मूसा पहाड़ से उतरकर लोगों के पास गया। वह उन्हें पवित्र ठहराने लगा और उन्होंने अपने कपड़े धोए।+ 15 मूसा ने लोगों से कहा, “तुम सब तीसरे दिन के लिए तैयार हो जाओ। तुममें से कोई भी यौन-संबंध न रखे।”*
16 तीसरे दिन सुबह तेज़ गरजन होने लगा और बिजली चमकने लगी। पहाड़ पर एक घना बादल+ दिखायी दिया और नरसिंगे की ज़ोरदार आवाज़ सुनायी दी। छावनी में सब लोग डर के मारे थरथराने लगे।+ 17 फिर मूसा लोगों को सच्चे परमेश्वर से मिलाने के लिए छावनी से बाहर ले आया और वे सब पहाड़ के नीचे खड़े हुए। 18 सीनै पहाड़ धुएँ से ढक गया क्योंकि यहोवा आग में उस पर उतरा था।+ ऐसा धुआँ उठ रहा था जैसे भट्ठे में से उठता है और पूरा पहाड़ बुरी तरह काँपने लगा।+ 19 नरसिंगे की आवाज़ तेज़ होती गयी और मूसा ने सच्चे परमेश्वर से बात की और परमेश्वर की आवाज़ ने उसे जवाब दिया।
20 इस तरह यहोवा सीनै पहाड़ की चोटी पर उतरा। फिर यहोवा ने मूसा को पहाड़ की चोटी पर आने के लिए कहा और मूसा वहाँ गया।+ 21 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू नीचे जा और लोगों को खबरदार कर कि वे यहोवा को देखने के लिए, तय की गयी हद पार करने की कोशिश न करें, वरना बहुत-से लोग नाश हो जाएँगे। 22 और याजक भी, जो यहोवा के पास आया करते हैं, खुद को पवित्र ठहराएँ ताकि यहोवा उन्हें मार न डाले।”*+ 23 मूसा ने यहोवा से कहा, “लोग सीनै पहाड़ पर नहीं आएँगे क्योंकि तूने पहले ही हमें मना किया था और मुझसे कहा था, ‘पहाड़ के चारों तरफ हद तय करना और उसे पवित्र ठहराना।’”+ 24 फिर भी यहोवा ने उससे कहा, “तू नीचे जा और अपने साथ हारून को लेकर वापस ऊपर आ। मगर याजकों और लोगों से कहना कि वे तय की गयी हद पार करके यहोवा के पास आने की कोशिश न करें ताकि ऐसा न हो कि वह उन्हें मार डाले।”+ 25 फिर मूसा पहाड़ से उतरकर लोगों के पास गया और उन्हें यह सब बताया।
20 फिर परमेश्वर ने ये सारी आज्ञाएँ बतायीं:+
2 “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें गुलामी के घर, मिस्र से बाहर निकाल लाया।+ 3 मेरे सिवा तुम्हारा कोई और ईश्वर न हो।*+
4 तुम अपने लिए कोई मूरत न तराशना। ऊपर आसमान में, नीचे ज़मीन पर और पानी में जो कुछ है, उनमें से किसी के भी आकार की कोई चीज़ न बनाना।+ 5 तुम उनके आगे दंडवत न करना और न ही उनकी पूजा करने के लिए बहक जाना,+ क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा माँग करता हूँ कि सिर्फ मेरी भक्ति की जाए, मुझे छोड़ किसी और की नहीं।+ जो मुझसे नफरत करते हैं उनके गुनाह की सज़ा मैं उनके बेटों, पोतों और परपोतों को भी देता हूँ। 6 मगर जो मुझसे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाएँ मानते हैं, उनकी हज़ारों पीढ़ियों से मैं प्यार* करता हूँ।+
7 तुम अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का गलत इस्तेमाल न करना,+ क्योंकि जो उसके नाम का गलत इस्तेमाल करता है उसे यहोवा सज़ा दिए बिना नहीं छोड़ेगा।+
8 सब्त का दिन याद से मनाया करना और इसे पवित्र मानना।+ 9 घर-बाहर का जो भी काम या मज़दूरी हो, तुम छ: दिन तक करना।+ 10 मगर सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिए अलग ठहराया गया सब्त है। इस दिन न तुम, न तुम्हारे बेटे-बेटियाँ, न तुम्हारे दास-दासियाँ और न ही तुम्हारी बस्तियों में* रहनेवाले परदेसी कोई काम करें। तुम अपने जानवरों से भी कोई काम न कराना।+ 11 यहोवा ने आकाश, धरती, समुंदर और जो कुछ उनमें है, सबको छ: दिनों में बनाया और सातवें दिन से वह विश्राम करने लगा।+ इसीलिए यहोवा ने सब्त के दिन पर आशीष दी और उसे पवित्र ठहराया।
12 अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना,+ तब तुम उस देश में लंबी ज़िंदगी जीओगे जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देनेवाला है।+
16 जब तुम्हें अपने संगी-साथी के खिलाफ गवाही देनी हो तो तुम झूठी गवाही न देना।+
17 तुम अपने संगी-साथी के घर का लालच न करना। तुम उसकी पत्नी या उसके दास-दासी या उसके बैल या गधे या उसकी किसी भी चीज़ का लालच न करना।”+
18 इस दौरान वहाँ जो तेज़ गरजन हुआ, बिजली चमकी, नरसिंगे की आवाज़ आयी और पहाड़ से धुआँ उठता रहा, उसे लोग देख और सुन रहे थे। वे डर से काँपने लगे और पहाड़ से दूर ही खड़े रहे।+ 19 उन्होंने मूसा से कहा, “तू ही हमसे बात कर, हम तुझसे सुन लेंगे। परमेश्वर से कहना कि वह हमसे बात न करे क्योंकि हमें डर है कि कहीं हम मर न जाएँ।”+ 20 मूसा ने उनसे कहा, “घबराओ मत, क्योंकि सच्चा परमेश्वर तुम्हें परखने के लिए आया है+ ताकि तुम हमेशा उसका डर मानो और पाप न करो।”+ 21 लोग दूर ही खड़े रहे, मगर मूसा उस काले बादल के पास गया जहाँ सच्चा परमेश्वर मौजूद था।+
22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू जाकर इसराएलियों से कहना, ‘तुम लोगों ने खुद अपनी आँखों से देखा है कि कैसे मैंने स्वर्ग से तुमसे बात की।+ 23 मेरे सिवा तुम्हारा कोई और ईश्वर न हो और तुम सोने-चाँदी से देवताओं की कोई मूरत न बनाना।+ 24 तुम मेरे लिए मिट्टी की एक वेदी बनाना जिस पर अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों की होम-बलि और शांति-बलि चढ़ाना। मैं जो भी जगह चुनूँगा कि वहाँ मेरा नाम याद किया जाए,+ वहाँ मैं तुम्हारे पास आऊँगा और तुम्हें आशीष दूँगा। 25 अगर तुम मेरे लिए पत्थरों की वेदी बनाते हो, तो औज़ारों से काटे हुए पत्थर* इस्तेमाल न करना,+ क्योंकि अगर तुम पत्थरों पर छेनी चलाओगे तो वेदी अपवित्र हो जाएगी। 26 तुम मेरी वेदी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ न बनाना ताकि ऐसा न हो कि उस पर चढ़ते वक्त तुम्हारा नंगापन* दिखायी दे।’”
21 “ये मेरे न्याय-सिद्धांत हैं जो तुझे लोगों को बताने हैं:+
2 अगर तुम किसी इब्री दास को खरीदते हो+ तो वह छ: साल तक तुम्हारी सेवा करेगा। मगर सातवें साल वह कोई कीमत चुकाए बगैर आज़ाद हो जाएगा।+ 3 अगर वह अकेला आया है तो अकेला आज़ाद किया जाएगा। लेकिन अगर वह शादीशुदा है तो उसके आज़ाद होने पर उसकी पत्नी भी उसके साथ जाए। 4 अगर एक मालिक अपने दास की शादी करवाता है और उस दास के बेटे-बेटियाँ होते हैं, तो आज़ाद होने पर वह दास अकेला ही छूटेगा। उसकी पत्नी और बच्चे मालिक के हो जाएँगे।+ 5 लेकिन अगर दास जाने से इनकार कर दे और कहे, ‘मैं अपने मालिक से और अपने बीवी-बच्चों से बहुत प्यार करता हूँ इसलिए मैं आज़ाद नहीं होना चाहता,’+ 6 तो मालिक को चाहिए कि वह दास को दरवाज़े या चौखट के पास ले जाए और एक सुए से उसका कान छेद दे। सच्चा परमेश्वर इसका गवाह होगा* और वह दास ज़िंदगी-भर के लिए अपने मालिक का हो जाएगा।
7 अगर कोई आदमी अपनी बेटी को दासी होने के लिए बेच देता है, तो वह दासी उस तरह आज़ाद नहीं की जाएगी, जिस तरह एक दास आज़ाद किया जाता है। 8 अगर दासी का मालिक उससे खुश नहीं है और उसे अपनी उप-पत्नी नहीं बनाता तो वह उसे किसी और को बेच सकता है। मगर मालिक को उसे किसी परदेसी के हाथ बेचने का हक नहीं है, क्योंकि उसने दासी के साथ अन्याय किया है। 9 अगर एक मालिक अपनी दासी की शादी अपने बेटे से कराता है, तो उसे चाहिए कि दासी को वह सारे हक दे जो एक बेटी को दिए जाते हैं। 10 अगर वह दूसरी शादी करता है, तो उसे चाहिए कि वह अपनी पहली पत्नी के खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करे और उसका पत्नी होने का हक*+ न मारे। 11 अगर वह उसकी ये तीनों ज़रूरतें पूरी नहीं करता, तो वह औरत कोई कीमत चुकाए बगैर आज़ाद होकर चली जाए।
12 अगर कोई किसी आदमी पर ऐसा वार करता है कि वह मर जाता है, तो उस गुनहगार को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।+ 13 लेकिन अगर उससे यह अनजाने में हुआ है और सच्चे परमेश्वर ने इसे होने दिया है, तो मैं उसके लिए ऐसी जगह ठहराऊँगा जहाँ वह भागकर जा सकता है।+ 14 अगर एक आदमी अपने संगी-साथी से बहुत गुस्सा हो जाता है और जानबूझकर उसका कत्ल कर देता है,+ तो वह कातिल मार डाला जाए। चाहे वह बचाव के लिए मेरी वेदी के पास आए, तो भी तुम उसे वहाँ से दूर ले जाकर मार डालना।+ 15 जो कोई अपने पिता या अपनी माँ पर हाथ उठाता है, उसे मौत की सज़ा दी जाए।+
16 अगर कोई किसी आदमी को अगवा करके+ उसे बेच देता है या अगवा किया गया आदमी उसके कब्ज़े में पाया जाता है,+ तो वह गुनहगार मार डाला जाए।+
17 जो अपने पिता या अपनी माँ को शाप देता है उसे मार डाला जाए।+
18 अगर दो आदमी आपस में झगड़ते हैं और एक आदमी पत्थर से दूसरे पर वार करता है या उसे घूँसा* मारता है और दूसरे आदमी की जान तो बच जाती है मगर वह घायल होकर बिस्तर पकड़ लेता है, तो ऐसे मामले में यह किया जाना चाहिए: 19 अगर कुछ वक्त बाद वह बिस्तर से उठकर लाठी के सहारे घर के बाहर चल-फिर सकता है, तो जिसने उसे मारा था वह सज़ा से बच जाएगा, उसे सिर्फ मुआवज़ा देना होगा। घायल आदमी को काम पर न जाने की वजह से जितने दिन का नुकसान होता है उतने दिनों का उसे मुआवज़ा देना होगा। उसे तब तक ऐसा करना होगा जब तक कि घायल आदमी पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता।
20 अगर एक आदमी छड़ी से अपने दास या दासी को मारे और वह उसके हाथों मर जाए तो मालिक से उसकी जान का बदला लिया जाए।+ 21 लेकिन अगर वह एक-दो दिन तक ज़िंदा रहे तो मालिक से उसकी जान का बदला न लिया जाए, क्योंकि वह मालिक की खरीदी हुई संपत्ति है।
22 अगर दो आदमियों के बीच हाथापाई हो जाती है और वे लड़ते-लड़ते किसी गर्भवती औरत को घायल कर देते हैं और समय से पहले उसका बच्चा हो जाता है,+ मगर माँ और बच्चे की जान बच जाती है,* तो गुनहगार को नुकसान की भरपाई करनी होगी। उस औरत का पति माँग करेगा कि कितनी भरपाई की जाए और फिर न्यायी जो फैसला करेंगे, उसके मुताबिक गुनहगार को भरपाई करनी होगी।+ 23 लेकिन अगर माँ या बच्चे की मौत हो जाती है, तो उसकी जान के बदले गुनहगार की जान ली जाए।+ 24 या अगर गहरी चोट लगती है तो उसके लिए भी गुनहगार से बराबर का बदला लिया जाए, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर,+ 25 जलाने के बदले जलाना, घाव के बदले घाव और मार के बदले मार।
26 अगर एक आदमी अपने दास या दासी की आँख पर ऐसा मारता है कि उसकी आँख फूट जाती है, तो उसे मुआवज़े के तौर पर अपने दास या दासी को आज़ाद करना होगा।+ 27 अगर वह अपने दास या दासी का दाँत तोड़ देता है, तो उसे मुआवज़े के तौर पर अपने दास या दासी को आज़ाद करना होगा।
28 अगर एक बैल किसी आदमी या औरत को सींग मारता है जिससे वह मर जाता है, तो उस बैल को पत्थरों से मार डाला जाए।+ ऐसे बैल का माँस खाना मना है। बैल के मालिक को कोई सज़ा न दी जाए। 29 लेकिन अगर एक बैल पहले से सींग मारता रहा है और उसके मालिक को आगाह करने पर भी उसने उसे बाँधकर नहीं रखा और उस बैल के सींग मारने से किसी आदमी या औरत की मौत हो जाती है, तो उस बैल को पत्थरों से मार डाला जाए और उसके मालिक को भी मौत की सज़ा दी जाए। 30 अगर मालिक से फिरौती* की माँग की जाए, तो उसे अपनी जान छुड़ाने के लिए उतनी रकम अदा करनी होगी जितनी उससे माँग की जाती है। 31 अगर एक बैल किसी के बेटे या बेटी को सींग मारता है, तो इसी न्याय-सिद्धांत के मुताबिक बैल के मालिक का फैसला किया जाना चाहिए। 32 अगर एक बैल किसी दास या दासी को सींग मारता है तो बैल का मालिक उस दास या दासी के मालिक को 30 शेकेल* देगा। और बैल को पत्थरों से मार डाला जाएगा।
33 अगर एक आदमी कोई गड्ढा खोलकर छोड़ देता है या फिर गड्ढा खोदकर उसे ढकता नहीं और उसमें किसी का बैल या गधा गिर जाता है 34 और मर जाता है, तो उस आदमी को नुकसान की भरपाई करनी होगी।+ उसे जानवर के मालिक को उसकी कीमत अदा करनी होगी और मरा हुआ जानवर उसका हो जाएगा। 35 अगर एक आदमी का बैल किसी दूसरे आदमी के बैल को मारता है और वह बैल मर जाता है, तो उन्हें ज़िंदा बैल को बेच देना चाहिए और मिलनेवाली रकम आपस में बाँट लेनी चाहिए। और मरे हुए जानवर को भी आपस में बाँट लेना चाहिए। 36 लेकिन अगर यह बात सबको पता थी कि उसका बैल सींग मारता है, फिर भी मालिक ने उसे बाँधकर नहीं रखा और उसका बैल दूसरे के बैल को मार डालता है, तो उसे मुआवज़े में बैल के बदले बैल देना होगा और मरा हुआ बैल उसका हो जाएगा।”
22 “अगर एक आदमी किसी का बैल या भेड़ चुराकर हलाल कर दे या बेच दे, तो उसे मुआवज़े में एक बैल के बदले पाँच बैल और एक भेड़ के बदले चार भेड़ें देनी होंगी।+
2 (अगर एक चोर+ सेंध लगाते हुए पकड़ा जाता है और उस पर ऐसा वार किया जाता है कि वह मर जाता है, तो उसे मारनेवाला खून का दोषी नहीं होगा। 3 लेकिन अगर चोर दिन में चोरी करते वक्त मारा जाए तो उसे मारनेवाला खून का दोषी होगा।)
एक चोर को चोरी किए हुए माल का मुआवज़ा देना होगा। अगर उसके पास देने के लिए कुछ नहीं है, तो उसे बेच दिया जाना चाहिए ताकि वह मुआवज़ा दे सके। 4 अगर उसके पास चुराया हुआ जानवर ज़िंदा पाया जाता है, फिर चाहे वह बैल हो या गधा या भेड़, तो उसे दुगना मुआवज़ा देना होगा।
5 अगर कोई आदमी अपने जानवरों को मैदान या अंगूरों के बाग में चराता है और उन्हें किसी और के खेत में चरने देता है, तो उसे उस खेत के मालिक को मुआवज़ा देना होगा, उसे अपने खेत या अंगूरों के बाग की सबसे बढ़िया पैदावार देनी होगी।
6 अगर कोई आग जलाता है और आग कँटीली झाड़ियों में लगकर ऐसी फैलती है कि पूलों का ढेर या खड़ी फसल या पूरा खेत जलकर भस्म हो जाता है, तो आग जलानेवाले को पूरे नुकसान की भरपाई करनी होगी।
7 अगर एक आदमी अपना पैसा या कोई चीज़ अपने संगी-साथी को देता है कि वह उसे सँभालकर रखे, मगर वह उसके घर से चोरी हो जाती है और चोर पकड़ा जाता है, तो चोर को दुगना मुआवज़ा देना होगा।+ 8 लेकिन अगर चोर पकड़ा नहीं जाता तो घर के मालिक को सच्चे परमेश्वर के सामने पेश किया जाना चाहिए+ ताकि यह पता लगाया जाए कि कहीं उसी ने तो हाथ साफ नहीं कर दिया। 9 अगर किसी चीज़ को लेकर दो आदमियों के बीच झगड़ा होता है क्योंकि उनमें से एक दावा करता है, ‘यह मेरी है!’ तो ऐसे हर मामले को निपटाने का तरीका यह होगा: दोनों आदमी अपना मामला सच्चे परमेश्वर के सामने पेश करें,+ फिर चाहे झगड़ा एक बैल, गधे, भेड़ या कपड़े या खोयी हुई किसी भी चीज़ को लेकर हो। फिर परमेश्वर उन दोनों में से जिसे दोषी बताएगा उसे अपने संगी-साथी को दुगना मुआवज़ा देना होगा।+
10 अगर एक आदमी अपने संगी-साथी के पास कुछ समय के लिए अपना गधा, बैल, भेड़ या कोई और पालतू जानवर छोड़ता है, मगर उस दौरान वह जानवर मर जाता है या चोट खाकर लँगड़ा हो जाता है या उसे कोई उठा ले जाता है और इसका कोई गवाह नहीं, 11 तो जिसके हवाले जानवर छोड़ा गया था उसे यहोवा के सामने शपथ खाकर कहना होगा, ‘इस नुकसान के लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँ’ और जानवर के मालिक को उसकी बात मान लेनी चाहिए। और जिसे जानवर सौंपा गया था उसे मुआवज़ा देने की ज़रूरत नहीं है।+ 12 लेकिन अगर उसके यहाँ से जानवर की चोरी हो जाती है तो उसे जानवर के मालिक को मुआवज़ा देना होगा। 13 अगर किसी जंगली जानवर ने उस जानवर को फाड़ डाला है तो उस आदमी को इसका सबूत पेश करना होगा। जंगली जानवर से हुए नुकसान के लिए उसे मुआवज़ा नहीं देना पड़ेगा।
14 अगर कोई अपने संगी-साथी से कुछ वक्त के लिए उसका जानवर माँगकर ले जाता है और जानवर के मालिक के न रहते जानवर चोट खाकर लँगड़ा हो जाता है या मर जाता है तो जिसने जानवर लिया था उसे नुकसान का मुआवज़ा देना होगा। 15 लेकिन अगर नुकसान मालिक के सामने हुआ है, तो माँगनेवाले को इसकी भरपाई नहीं करनी होगी। अगर जानवर किराए पर लिया गया था, तो उसके लिए दिया गया किराया ही मुआवज़ा होगा।
16 अगर एक आदमी किसी कुँवारी लड़की को, जिसकी अब तक सगाई नहीं हुई है, फुसलाकर उसके साथ सोता है तो उस आदमी को महर की रकम देकर उसे अपनी पत्नी बनाना होगा।+ 17 अगर लड़की का पिता उसे अपनी बेटी देने से साफ इनकार कर देता है तो भी उस आदमी को महर की उतनी रकम देनी होगी जितनी एक कुँवारी लड़की के लिए देनी होती है।
18 तुम किसी टोना-टोटका करनेवाली औरत को ज़िंदा न छोड़ना।+
19 जो किसी जानवर के साथ यौन-संबंध रखता है उसे हर हाल में मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।+
20 जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता को बलि चढ़ाता है, उसे नाश किया जाए।+
21 तुम अपने यहाँ रहनेवाले किसी परदेसी के साथ बदसलूकी मत करना और न ही उस पर ज़ुल्म करना,+ क्योंकि तुम भी कभी मिस्र में परदेसी हुआ करते थे।+
22 तुम किसी विधवा या अनाथ* को मत सताना।+ 23 अगर तू उन्हें ज़रा-सा भी सताएगा और वे मेरी दुहाई देंगे तो मैं ज़रूर उनकी सुनूँगा+ 24 और तुम पर मेरा क्रोध भड़क उठेगा। मैं तुम्हें तलवार से मार डालूँगा और तुम्हारी पत्नियाँ विधवा हो जाएँगी और तुम्हारे बच्चे अनाथ हो जाएँगे।
25 अगर तुम मेरे लोगों में से किसी गरीब* को, जो तुम्हारे बीच रहता है, पैसे उधार देते हो तो उसके साथ लेनदारों* जैसा सलूक मत करना, उससे ब्याज की माँग मत करना।+
26 अगर किसी संगी-साथी को उधार देते वक्त तुम उसका कपड़ा गिरवी* रखवाते हो+ तो सूरज ढलने से पहले उसका कपड़ा उसे लौटा देना, 27 क्योंकि उसके पास तन ढकने के लिए यही एक कपड़ा है। बिना इसके वह कैसे सोएगा?+ अगर वह मेरी दुहाई देगा तो मैं ज़रूर उसकी सुनूँगा क्योंकि मैं करुणा करनेवाला* परमेश्वर हूँ।+
28 तुम परमेश्वर की निंदा मत करना+ और न ही अपने लोगों के किसी प्रधान* की निंदा करना।+
29 तुम्हारे यहाँ जब अनाज की भरपूर पैदावार होती है और तेल और दाख-मदिरा के हौद उमड़ने लगते हैं, तो अपनी उपज में से कुछ मुझे चढ़ाने से मत झिझकना।+ तुम अपने बेटों में से पहलौठा मुझे देना।+ 30 अपना पहलौठा बछड़ा और पहलौठा मेढ़ा भी मुझे देना।+ पैदा होने के सात दिन तक उसे अपनी माँ के साथ रहने देना और आठवें दिन मुझे अर्पित करना।+
31 तुम मेरे पवित्र लोग होने का सबूत देना।+ तुम मैदान में पड़े किसी ऐसे जानवर का गोश्त मत खाना जिसे जंगली जानवर ने फाड़ डाला हो।+ तुम्हें उसे कुत्तों के सामने फेंक देना चाहिए।
23 तुम ऐसी कोई खबर न फैलाना जो सच नहीं है।+ जब कोई दुष्ट किसी का बुरा करने के इरादे से तुम्हें उसके खिलाफ गवाही देने को कहता है, तो तुम उसका साथ मत देना।+ 2 तुम भीड़ के पीछे जाकर कोई बुरा काम मत करना। तुम किसी मामले में गवाही देते वक्त भीड़ के साथ मत हो लेना* क्योंकि इससे अन्याय हो सकता है। 3 तुम किसी गरीब के झगड़े में पक्षपात न करना।+
4 अगर तुम अपने दुश्मन के खोए हुए बैल या गधे को कहीं भटकता हुआ देखो तो उसे लाकर उसके मालिक को सौंप देना।+ 5 अगर तुम देखते हो कि तुमसे नफरत करनेवाले किसी आदमी का गधा बोझ तले दबा हुआ है, तो तुम आँखें फेरकर वहाँ से चले मत जाना। तुम उस आदमी की मदद करना ताकि वह अपने जानवर को बोझ से छुड़ा सके।+
6 तुम अपने बीच रहनेवाले किसी गरीब के मुकदमे की सुनवाई करते वक्त गलत फैसला सुनाकर अन्याय मत करना।+
7 तुम झूठे इलज़ाम से दूर रहना। किसी बेगुनाह और नेक इंसान को मार न डालना क्योंकि ऐसा दुष्ट काम करनेवाले को मैं हरगिज़ निर्दोष नहीं ठहराऊँगा।*+
8 तुम रिश्वत न लेना क्योंकि रिश्वत समझ-बूझवाले इंसानों को भी अंधा कर देती है और नेक लोगों से भी झूठ बुलवाती है।+
9 तुम अपने यहाँ रहनेवाले किसी परदेसी पर ज़ुल्म न ढाना। तुम जानते हो कि एक परदेसी की ज़िंदगी क्या होती है क्योंकि एक वक्त पर तुम भी मिस्र में परदेसी हुआ करते थे।+
10 तुम अपनी ज़मीन पर छ: साल खेती करना और उसकी फसल काटना।+ 11 मगर सातवें साल ज़मीन पर कोई जुताई-बोआई न करना, उसे परती छोड़ देना। तब उसमें जो भी उगेगा उसे तुम्हारे बीच रहनेवाले गरीब खाएँगे और उसके बाद जो बचेगा उसे मैदान के जंगली जानवर खाएँगे। तुम अपने अंगूरों के बाग और जैतून के बाग के साथ भी यही करना।
12 तुम छ: दिन अपना काम-काज करना, मगर सातवें दिन विश्राम करना ताकि तुम्हारे बैल और गधे को आराम मिले और तुम्हारी दासी का बेटा और तुम्हारे बीच रहनेवाला परदेसी विश्राम करके तरो-ताज़ा हो जाए।+
13 मैंने तुम्हें जो-जो बताया है, वह सब तुम बिना चूके करना।+ तुम दूसरे देवताओं का नाम मत पुकारना, उनका नाम तुम्हारी ज़बान* पर कभी न आए।+
14 साल में तीन बार तुम मेरे लिए एक त्योहार मनाना।+ 15 तुम बिन-खमीर की रोटी का त्योहार मनाना।+ तुम सात दिन तक बिन-खमीर की रोटी खाना, जैसे मैंने तुम्हें आज्ञा दी थी। तुम यह त्योहार आबीब* महीने में तय वक्त पर मनाना,+ क्योंकि उसी वक्त तुम मिस्र से बाहर आए थे। कोई भी मेरे सामने खाली हाथ न आए।+ 16 इसके अलावा, तुम्हें कटाई का त्योहार* मनाना है, जब तुम्हें अपनी मेहनत से उगायी फसल का पहला फल मिलेगा।+ और साल के आखिर में बटोरने का त्योहार* मनाना, जब तुम खेतों से अपनी मेहनत का फल बटोरकर इकट्ठा करोगे।+ 17 साल में तीन बार सभी आदमी सच्चे प्रभु यहोवा के सामने हाज़िर हों।+
18 तुम मेरे बलि-पशु के खून के साथ कोई खमीरी चीज़ मत चढ़ाना। मेरे त्योहारों में चरबी की जो बलि चढ़ायी जाती है, उसे अगली सुबह तक न रहने दिया जाए।
19 तुम अपनी ज़मीन की पहली उपज में से सबसे बढ़िया फल अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में लाकर देना।+
तुम बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में मत उबालना।+
20 मैं एक स्वर्गदूत को तुम्हारे आगे-आगे भेजूँगा+ ताकि रास्ते में वह तुम्हारी हिफाज़त करे और तुम्हें उस जगह पहुँचाए जो मैंने तुम्हारे लिए तैयार की है।+ 21 तुम उसकी बात ध्यान से सुनना और उसकी आज्ञा मानना। वह मेरे नाम से तुम्हारे पास आता है इसलिए उसके खिलाफ कभी बगावत मत करना। वह तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।+ 22 लेकिन अगर तुम उसकी बात सख्ती से मानोगे और वह सब करोगे जो मैं तुमसे कहता हूँ, तो मैं तुम्हारे दुश्मनों का सामना करूँगा और जो तुम्हारा विरोध करते हैं उनका विरोध करूँगा। 23 मेरा स्वर्गदूत तुम्हारे आगे-आगे जाएगा और तुम्हें उस देश में पहुँचाएगा जहाँ एमोरी, हित्ती, परिज्जी, कनानी, हिव्वी और यबूसी लोग रहते हैं। मैं उन सबको मिटा दूँगा।+ 24 तुम उनके देवताओं के आगे झुककर उन्हें दंडवत मत करना और उनकी पूजा करने के लिए बहक मत जाना। तुम वहाँ के लोगों के तौर-तरीके मत अपनाना।+ इसके बजाय, तुम उनकी मूरतें ढा देना और उनके पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर देना।+ 25 तुम अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करना+ और वह तुम्हें आशीष देगा जिससे तुम्हें रोटी और पानी की कोई कमी नहीं होगी।+ मैं तुम्हारे बीच से बीमारियाँ दूर कर दूँगा।+ 26 तुम्हारे देश की औरतों का गर्भ नहीं गिरेगा और न ही वे बाँझ होंगी।+ मैं तुम्हें एक लंबी ज़िंदगी दूँगा।*
27 तुम्हारे वहाँ पहुँचने से पहले, मैं वहाँ के लोगों में अपना डर फैला दूँगा।+ जिन लोगों से तुम्हारा सामना होगा उनके बीच मैं खलबली मचा दूँगा और तुम्हारे सभी दुश्मनों को ऐसा हरा दूँगा कि वे तुम्हारे सामने से भाग खड़े होंगे।*+ 28 तुम्हारे वहाँ पहुँचने से पहले ही मैं वहाँ के हिव्वी, कनानी और हित्ती लोगों का हौसला तोड़ दूँगा*+ और वे तुम्हारे सामने से भाग जाएँगे।+ 29 मैं उन सबको एक ही साल के अंदर नहीं भगाऊँगा ताकि देश जंगल और वीरान न हो जाए और जंगली जानवरों से न भर जाए जिससे तुम्हें खतरा हो सकता है।+ 30 मैं उन्हें तब तक थोड़ा-थोड़ा करके भगाता रहूँगा जब तक कि तुम्हारी गिनती बढ़ न जाए और पूरे देश को तुम अपने कब्ज़े में न कर लो।+
31 मैं लाल सागर से पलिश्तियों के सागर तक और वीराने से महानदी* तक तुम्हारे लिए सरहद ठहराऊँगा।+ मैं उस देश के निवासियों को तुम्हारे हाथ में कर दूँगा और तुम उन्हें अपने सामने से खदेड़ दोगे।+ 32 तुम न तो उनके साथ और न उनके देवताओं के साथ कोई करार करना।+ 33 तुम उन्हें अपने देश में कहीं रहने न देना ताकि वे तुमसे मेरे खिलाफ कोई पाप न करवाएँ। अगर तुम उनके देवताओं की पूजा करोगे तो यह ज़रूर तुम्हारे लिए एक फंदा बन जाएगा।”+
24 फिर उसने मूसा से कहा, “तू अपने साथ हारून, नादाब और अबीहू+ और इसराएल के मुखियाओं में से 70 आदमियों को लेकर पहाड़ पर जा और तुम लोग कुछ दूर खड़े रहकर यहोवा को दंडवत करना। 2 फिर मूसा अकेला ही यहोवा के पास जाए, मगर वे आदमी न जाएँ। और बाकी लोग भी मूसा के साथ न जाएँ।”+
3 इसके बाद मूसा ने आकर लोगों को वे सारी बातें बतायीं जो यहोवा ने कही थीं और सारे न्याय-सिद्धांत सुनाए।+ तब सब लोगों ने एकमत होकर कहा, “यहोवा ने जो-जो कहा है, वह सब करना हमें मंज़ूर है।”+ 4 फिर मूसा ने वे सारी बातें लिख डालीं जो यहोवा ने उससे कही थीं।+ फिर वह सुबह तड़के उठा और उसने पहाड़ के नीचे एक वेदी बनायी और इसराएल के 12 गोत्रों के लिए यादगार के तौर पर 12 पत्थर खड़े किए। 5 इसके बाद उसने कुछ जवान इसराएली आदमियों को भेजा और उन्होंने यहोवा के लिए होम-बलियाँ चढ़ायीं और बैलों की शांति-बलि अर्पित की।+ 6 फिर मूसा ने उन जानवरों के खून में से आधा खून लेकर कटोरों में डाला और आधा खून वेदी पर छिड़क दिया। 7 तब मूसा ने करार की किताब ली और उसे लोगों के सामने पढ़कर सुनाया।+ उन्होंने कहा, “यहोवा ने जो-जो कहा है, वह सब हम करेंगे और उसकी हर आज्ञा मानेंगे।”+ 8 तब मूसा ने वह खून लेकर लोगों पर छिड़का+ और कहा, “तुमने इस किताब में लिखी बातों को मानने की हामी भरी है इसलिए देखो, यहोवा ने तुम्हारे साथ जो करार किया है उसे यह खून पक्का करता है।”+
9 फिर मूसा और हारून, नादाब और अबीहू और इसराएल के मुखियाओं में से 70 आदमी पहाड़ पर गए। 10 वहाँ उन्होंने इसराएल के परमेश्वर को देखा।+ उसके पैरों के नीचे नीलम के फर्श जैसा कुछ दिखायी दिया, जो स्वर्ग-सा शुद्ध और निर्मल था।+ 11 परमेश्वर ने उन खास आदमियों को कुछ नहीं किया+ और उन्होंने सच्चे परमेश्वर का एक दर्शन देखा और खाया-पीया।
12 यहोवा ने अब मूसा से कहा, “तू यहाँ पहाड़ के ऊपर मेरे पास आ और यहीं रह। मैं तुझे पत्थर की पटियाएँ दूँगा जिन पर मैं अपना कानून और अपनी आज्ञाएँ लिखूँगा ताकि ये लोगों को सिखायी जाएँ।”+ 13 तब मूसा अपने सेवक यहोशू के साथ गया+ और मूसा सच्चे परमेश्वर के पहाड़ के ऊपर चढ़ा।+ 14 मूसा ने इसराएल के मुखियाओं से कहा था, “जब तक हम दोनों लौटकर नहीं आते, तुम सब यहीं हमारा इंतज़ार करना।+ हारून और हूर+ तुम्हारे साथ रहेंगे। अगर किसी का कोई मुकदमा हो तो वह उन दोनों के पास जाए।”+ 15 फिर मूसा पहाड़ के ऊपर चढ़ा जिसकी चोटी बादल से ढकी हुई थी।+
16 यहोवा की महिमा का तेज+ सीनै पहाड़+ पर बना रहा और छ: दिन तक पहाड़ बादल से ढका रहा। फिर सातवें दिन परमेश्वर ने बादल में से मूसा को पुकारा। 17 पहाड़ के नीचे जो इसराएली देख रहे थे, उन्हें यहोवा की महिमा का तेज ऐसा दिखायी दे रहा था मानो पहाड़ की चोटी पर आग धधक रही हो। 18 फिर मूसा बादल के अंदर गया और पहाड़ पर चढ़ा।+ वह 40 दिन और 40 रात वहीं पहाड़ पर रहा।+
25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इसराएल के लोगों से कहना कि वे मेरे लिए दान लेकर आएँ। ऐसे हर इंसान से, जिसका दिल उसे देने के लिए उभारता है, तुम मेरे लिए दान इकट्ठा करना।+ 3 लोगों से तुम दान में ये चीज़ें लेना: सोना,+ चाँदी,+ ताँबा,+ 4 नीला धागा, बैंजनी ऊन,* सुर्ख लाल धागा,* बढ़िया मलमल, बकरी के बाल, 5 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़े की खाल, सील मछली की खाल, बबूल की लकड़ी,+ 6 दीयों के लिए तेल,+ अभिषेक के तेल+ और सुगंधित धूप+ के लिए बलसाँ, 7 एपोद+ और सीनेबंद+ में जड़ने के लिए सुलेमानी पत्थर और दूसरे रत्न। 8 वे मेरे लिए एक पवित्र-स्थान बनाएँ और मैं उनके बीच निवास* करूँगा।+ 9 मैं तुझे एक नमूना दिखाऊँगा और तुम लोग ठीक उसी के मुताबिक मेरे लिए एक पवित्र डेरा और उसके सारे साजो-सामान बनाना।+
10 वे बबूल की लकड़ी से एक संदूक* बनाएँ जिसकी लंबाई ढाई हाथ,* चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ हो।+ 11 फिर तू शुद्ध सोने से संदूक को मढ़ना।+ तू अंदर और बाहर से उस पर सोना मढ़ना और उसके चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाना।+ 12 और तू सोने के चार कड़े ढालकर बनाना और उन्हें संदूक के चारों पायों के ऊपर लगाना, संदूक के एक तरफ दो कड़े हों और दूसरी तरफ दो कड़े। 13 और बबूल की लकड़ी से लंबे-लंबे डंडे बनाना और उन पर सोना मढ़ना।+ 14 फिर तू ये डंडे संदूक के दोनों तरफ लगे कड़ों में डालना ताकि उनके सहारे संदूक उठाया जा सके। 15 ये डंडे हमेशा संदूक के कड़ों के अंदर ही रहें, उन्हें कभी कड़ों से बाहर न निकाला जाए।+ 16 तू संदूक के अंदर गवाही की वे पटियाएँ रखना जो मैं तुझे दूँगा।+
17 तू संदूक के लिए एक ढकना तैयार करना जो शुद्ध सोने का बना हो। इसकी लंबाई ढाई हाथ हो और चौड़ाई डेढ़ हाथ।+ 18 संदूक के ढकने के दोनों किनारों पर सोने के दो करूब बनाना। सोने को हथौड़े से पीटकर ये करूब बनाना।+ 19 ढकने के दोनों किनारों पर करूब बनाना, एक किनारे पर एक करूब होगा और दूसरे किनारे पर दूसरा करूब। 20 करूबों के दोनों पंख ऊपर की तरफ फैले हुए हों और संदूक के ढकने को ढके हुए हों।+ दोनों करूब आमने-सामने हों और उनके मुँह ढकने की तरफ नीचे झुके हुए हों। 21 तू ढकने को संदूक के ऊपर रखना+ और संदूक के अंदर गवाही की वे पटियाएँ रखना जो मैं तुझे दूँगा। 22 मैं संदूक के ढकने के ऊपर तुझ पर प्रकट होऊँगा और वहीं से तुझसे बात किया करूँगा।+ मैं गवाही के संदूक के ऊपर दोनों करूबों के बीच से तुझे वह सारी आज्ञाएँ दूँगा जिन पर इसराएलियों को चलना है।
23 तू बबूल की लकड़ी से एक मेज़ भी बनाना।+ उसकी लंबाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ हो।+ 24 मेज़ को शुद्ध सोने से मढ़ना और उसके चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाना। 25 फिर उस किनारे के साथ-साथ मेज़ के चारों तरफ एक पट्टी भी बनाना। उस पट्टी की चौड़ाई चार अंगुल* हो। पट्टी के नीचे सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाना। 26 मेज़ के लिए सोने के चार कड़े बनाना और उन्हें मेज़ के चारों कोनों पर उस जगह लगाना जहाँ उसके चार पाए जुड़े हों। 27 ये कड़े मेज़ की पट्टी के बिलकुल पास हों ताकि उनके अंदर वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे मेज़ उठायी जाएगी। 28 तू ये डंडे बबूल की लकड़ी से बनाना और उन पर सोना मढ़ना। इन डंडों के सहारे ही मेज़ उठायी जाएगी।
29 तू मेज़ के लिए थालियाँ और प्याले बनाना और अर्घ चढ़ाने के लिए सुराहियाँ और कटोरे बनाना। तू ये सारे बरतन शुद्ध सोने के बनाना।+ 30 तू मेज़ पर मेरे सामने नज़राने की रोटी नियमित तौर पर रखना।+
31 तू शुद्ध सोने की एक दीवट बनाना।+ सोने को हथौड़े से पीटकर यह दीवट बनाना। दीवट का पाया, उसकी डंडी, डालियाँ, फूल, कलियाँ और पंखुड़ियाँ, ये सब सोने के एक ही टुकड़े के बने हों।+ 32 दीवट की डंडी के दोनों तरफ से छ: डालियाँ निकलेंगी, एक तरफ से तीन और दूसरी तरफ से तीन। 33 हर डाली पर बादाम के फूल जैसे तीन फूलों की बनावट होनी चाहिए। और इन फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी की रचना होनी चाहिए। इस तरह की रचनाएँ दीवट की डंडी से निकलनेवाली छ: की छ: डालियों पर होनी चाहिए। 34 दीवट की डंडी पर बादाम के फूल जैसे चार फूलों की बनावट होनी चाहिए और फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी होनी चाहिए। 35 दीवट की डंडी के जिस हिस्से से डालियों का पहला जोड़ा निकलता है उसके नीचे एक कली जैसी रचना होनी चाहिए। इसी तरह जहाँ से डालियों का दूसरा और तीसरा जोड़ा निकलता है, उसके नीचे भी एक-एक कली जैसी रचना होनी चाहिए। कली जैसी रचनाएँ सभी छ: डालियों के नीचे होनी चाहिए। 36 शुद्ध सोने के एक ही टुकड़े को हथौड़े से पीटकर कलियाँ, डालियाँ और पूरी दीवट बनाना।+ 37 दीवट पर रखने के लिए सात दीए बनाना जिनके जलने से सामने की पूरी जगह रौशन हो जाएगी।+ 38 दीवट के चिमटे और आग उठाने के करछे शुद्ध सोने से बनाए जाएँ।+ 39 दीवट और ये सारी चीज़ें एक तोड़े* शुद्ध सोने से बनायी जाएँ। 40 ध्यान रखना कि ये सारी चीज़ें ठीक उसी नमूने के मुताबिक बनायी जाएँ जो तुझे इस पहाड़ पर दिखाया गया है।+
26 तू पवित्र डेरे+ को ढकने के लिए दस कपड़े बनाना। ये कपड़े बटे हुए बढ़िया मलमल, नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे से बनाना। और उन पर कढ़ाई करके करूब+ बनाना।+ 2 हर कपड़ा 28 हाथ* लंबा और 4 हाथ चौड़ा हो। ये दसों कपड़े एक ही नाप के होने चाहिए।+ 3 इनमें से पाँच कपड़ों को एक-दूसरे से जोड़ देना और बाकी पाँच को भी एक-दूसरे से जोड़ देना। 4 पाँच कपड़ों के एक भाग के उस छोर पर तू नीले धागे के फंदे बनाना जहाँ दूसरा भाग उससे जोड़ा जाएगा। दूसरे भाग के उस छोर पर भी फंदे बनाना जहाँ वह पहले भाग से जोड़ा जाएगा। 5 दोनों भागों के छोर पर पचास-पचास फंदे बनाना। ये फंदे एक-दूसरे के आमने-सामने हों ताकि दोनों भागों को जोड़ा जा सके। 6 और सोने की 50 चिमटियाँ बनाना और उनसे दोनों भागों को जोड़ देना ताकि उनसे एक बड़ा कपड़ा तैयार हो जाए।+
7 तू पवित्र डेरे को ढकने के लिए बकरी के बालों से भी बुनकर कपड़े बनाना।+ तू इस तरह के 11 कपड़े बनाना।+ 8 हर कपड़ा 30 हाथ लंबा और 4 हाथ चौड़ा हो। ये 11 कपड़े एक ही नाप के होने चाहिए। 9 इनमें से पाँच कपड़ों को एक-दूसरे से जोड़ देना और बाकी छ: को भी एक-दूसरे से जोड़ देना। इस कपड़े को डेरे के ऊपर इस तरह डालना कि छ: कपड़ोंवाला भाग सामने की तरफ हो। फिर सामने की तरफ लटके हुए छठे कपड़े को मोड़ देना। 10 पाँच कपड़ों से बने भाग के छोर पर तू 50 फंदे बनाना। उसी तरह छ: कपड़ों से बने भाग के उस छोर पर भी 50 फंदे बनाना जहाँ वह पहले भाग से जोड़ा जाएगा। 11 तू ताँबे की 50 चिमटियाँ बनाना और उन्हें फंदों में फँसाना ताकि उनसे दोनों भागों को जोड़कर एक बड़ा कपड़ा तैयार हो जाए। 12 इस बड़े कपड़े को डेरे के ऊपर डालने से उसका जो हिस्सा लटका हुआ होगा उसे लटका ही रहने देना। पाँच कपड़ोंवाला जो भाग डेरे पर डाला जाएगा उसके आधे कपड़े को पीछे की तरफ लटका ही रहने देना। 13 बकरी के बालों से बुना यह कपड़ा डेरे के दोनों तरफ पहले कपड़े से एक-एक हाथ लंबा होना चाहिए ताकि डेरा अच्छी तरह ढक जाए।
14 तू डेरे को ढकने के लिए एक और चादर बनाना जो लाल रंग से रंगी हुई मेढ़े की खाल की हो। उसके ऊपर डालने के लिए एक और चादर बनाना जो सील मछली की खाल की हो।+
15 तू डेरे के लिए बबूल की लकड़ी से ऐसी चौखटें बनाना+ जो सीधी खड़ी की जा सकें।+ 16 हर चौखट की ऊँचाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो। 17 हर चौखट के नीचे दो चूलें* बनाना जो एक सीध में हों। तुम डेरे की सभी चौखटें इसी तरह बनाना। 18 तू डेरे के दक्षिणी हिस्से के लिए 20 चौखटें बनाना। यह हिस्सा दक्षिण की तरफ होगा।
19 इन 20 चौखटों को खड़ा करने के लिए चाँदी की 40 खाँचेदार चौकियाँ+ बनाना जिनमें चूलों को बिठाया जाएगा। हर चौखट की दो चूलों के लिए दो चौकियाँ होंगी।+ 20 डेरे के दूसरी तरफ यानी उत्तरी हिस्से के लिए 20 चौखटें बनाना 21 और उन्हें खड़ा करने के लिए चाँदी की 40 खाँचेदार चौकियाँ बनाना। हर चौखट के लिए दो चौकियाँ होंगी। 22 डेरे के पीछे के हिस्से यानी पश्चिमी हिस्से के लिए छ: चौखटें बनाना।+ 23 और तिकोने आकार में दो चौखटें बनाना जो डेरे के लिए कोने के खंभों का काम करेंगी। 24 कोने की हर चौखट के दोनों भाग नीचे से जाकर ऊपरी सिरे पर एक-दूसरे से मिल जाएँ और वहाँ पहले कड़े पर जुड़ जाएँ। दोनों कोनों के लिए ऐसी ही चौखटें बनाना जो कोने के खंभों का काम करेंगी। 25 इस तरह पीछे के हिस्से के लिए कुल आठ चौखटें होंगी और उन्हें खड़ा करने के लिए चाँदी की 16 खाँचेदार चौकियाँ होंगी, यानी हर चौखट के नीचे दो चौकियाँ।
26 तू डेरे की चौखटों को जोड़ने के लिए बबूल की लकड़ी के डंडे बनाना। डेरे के एक तरफ की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे,+ 27 दूसरी तरफ की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे और पीछे यानी पश्चिमी हिस्से की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे बनाना। 28 बीच में एक लंबा डंडा होना चाहिए जो एक कोने से दूसरे कोने तक चौखटों को जोड़ेगा।
29 तू चौखटों को और उन्हें जोड़नेवाले डंडों को सोने से मढ़ना।+ तू सोने के कड़े बनाना ताकि उनके अंदर डंडे डालकर चौखटों को जोड़ा जा सके। 30 तू पवित्र डेरे को उसी नमूने के मुताबिक खड़ा करना जो तुझे पहाड़ पर दिखाया गया है।+
31 तू नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से एक परदा+ बनाना और उस पर कढ़ाई करके करूब बनाना। 32 इस परदे को चार खंभों पर लटकाना। ये खंभे बबूल की लकड़ी के बने हों और उन पर सोना मढ़ा हो और उन्हें चाँदी की चार खाँचेदार चौकियों पर बिठाना। इन खंभों पर सोने के अंकड़े लगाना। 33 परदे को चिमटियों के नीचे लटकाना। यह परदा पवित्र भाग+ और परम-पवित्र भाग+ के बीच एक दीवार का काम करेगा। फिर गवाही का संदूक+ लाकर परदे के उस तरफ रखना। 34 गवाही के संदूक को ढकने से ढक देना और उसे परम-पवित्र भाग के अंदर रखना।
35 परदे के इस तरफ उत्तर दिशा में मेज़ रखना। मेज़ के सामने यानी दक्षिण की तरफ दीवट रखना।+ 36 तू डेरे के द्वार के लिए भी एक परदा बनाना। यह परदा नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से बुनकर तैयार करना।+ 37 डेरे के द्वार पर परदा लटकाने के लिए बबूल की लकड़ी के पाँच खंभे बनाना और उन्हें सोने से मढ़ना। उन खंभों पर लगाए जानेवाले अंकड़े सोने के होने चाहिए और तू उन खंभों को खड़ा करने के लिए ताँबे की पाँच खाँचेदार चौकियाँ ढालकर बनाना।
27 तू बबूल की लकड़ी की एक वेदी बनाना।+ उसकी लंबाई पाँच हाथ* और चौड़ाई पाँच हाथ हो। वेदी चौकोर हो और उसकी ऊँचाई तीन हाथ हो।+ 2 वेदी के चारों कोनों पर सींग+ बनाना। ये सींग वेदी का ही हिस्सा होने चाहिए। तू पूरी वेदी को ताँबे से मढ़ना।+ 3 तू वेदी की राख* उठाकर ले जाने के लिए बाल्टियाँ बनाना। साथ ही बेलचे, कटोरे, काँटे और आग उठाने के करछे बनाना। वेदी की सारी चीज़ें तू ताँबे से बनाना।+ 4 तू वेदी के लिए ताँबे की एक जाली बनाना और चारों कोनों पर ताँबे के चार कड़े बनाना। 5 इस जाली को वेदी के अंदर लगाना। यह वेदी के किनारे से थोड़ा नीचे यानी वेदी के बीच में लगी होनी चाहिए। 6 वेदी के लिए बबूल की लकड़ी से डंडे बनाना और उन पर ताँबा मढ़ना। 7 ये डंडे वेदी के दोनों तरफ के कड़ों के अंदर डाले जाएँगे ताकि उनके सहारे वेदी उठायी जाए।+ 8 तू तख्तों को जोड़कर एक पेटी के आकार में यह वेदी बनाना। यह ऊपर और नीचे, दोनों तरफ खुली होनी चाहिए। वेदी ठीक उसी तरह बनायी जाए जैसे तुझे पहाड़ पर इसका नमूना दिखाया गया है।+
9 तू पवित्र डेरे के लिए एक आँगन बनाना।+ आँगन के चारों तरफ बटे हुए बढ़िया मलमल की कनातों से एक घेरा बनाना। दक्षिण में कनातों की कुल लंबाई 100 हाथ होगी।+ 10 कनातों को लगाने के लिए 20 खंभे होने चाहिए। ये खंभे ताँबे की 20 खाँचेदार चौकियों पर बिठाए जाएँगे। इन खंभों के अंकड़े और उनके छल्ले चाँदी के होने चाहिए। 11 उत्तर की कनातों की कुल लंबाई भी 100 हाथ होगी। उन्हें लगाने के लिए 20 खंभे होंगे जिन्हें ताँबे की 20 खाँचेदार चौकियों पर बिठाया जाएगा। इन खंभों के अंकड़े और उनके छल्ले भी चाँदी के होने चाहिए। 12 पश्चिम की तरफ आँगन की चौड़ाई के लिए कनातों की कुल लंबाई 50 हाथ होनी चाहिए। कनातों को लगाने के लिए दस खंभे होने चाहिए और ये खंभे दस खाँचेदार चौकियों पर बिठाए जाएँगे। 13 पूरब की तरफ, जहाँ सूरज उगता है, आँगन की चौड़ाई 50 हाथ हो। 14 वहाँ आँगन के द्वार के दायीं तरफ की कनातें 15 हाथ लंबी होंगी। उनके लिए तीन खंभे और तीन खाँचेदार चौकियाँ होंगी।+ 15 आँगन के द्वार के बायीं तरफ की कनातें भी 15 हाथ लंबी होंगी। उनके लिए तीन खंभे और तीन खाँचेदार चौकियाँ होंगी।
16 आँगन के द्वार पर 20 हाथ लंबा एक परदा होना चाहिए। इस परदे को नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से बुनकर तैयार करना।+ यह परदा लगाने के लिए वहाँ चार खंभे होने चाहिए और इन्हें चार खाँचेदार चौकियों पर बिठाना चाहिए।+ 17 आँगन के चारों तरफ सभी खंभों में चाँदी के जोड़ और चाँदी के अंकड़े होने चाहिए, मगर उनकी खाँचेदार चौकियाँ ताँबे की होनी चाहिए।+ 18 आँगन की लंबाई 100 हाथ,+ चौड़ाई 50 हाथ और चारों तरफ कनातों की ऊँचाई 5 हाथ होनी चाहिए। इन कनातों को बटे हुए बढ़िया मलमल से बनाना। आँगन की खाँचेदार चौकियाँ ताँबे की होनी चाहिए। 19 पवित्र डेरे में सेवा के लिए इस्तेमाल होनेवाले सभी बरतन और चीज़ें, साथ ही डेरे की खूँटियाँ और आँगन की सारी खूँटियाँ ताँबे की होनी चाहिए।+
20 इसराएलियों को आज्ञा देना कि पवित्र डेरे में दीयों को हमेशा जलाए रखने के लिए वे शुद्ध जैतून का तेल लाकर तुझे दिया करें, जो कूटकर निकाला गया हो।+ 21 इन दीयों को, जो भेंट के तंबू में गवाही के संदूक के पासवाले परदे के इस तरफ होंगे,+ हारून और उसके बेटे यहोवा के सामने शाम से सुबह तक जलाए रखने का इंतज़ाम करेंगे।+ इसराएलियों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस नियम का पालन करना है, जो उन्हें सदा के लिए दिया जा रहा है।+
28 तू इसराएलियों में से अपने भाई हारून+ को और उसके बेटे+ नादाब, अबीहू,+ एलिआज़र और ईतामार+ को मेरे सामने हाज़िर होने का आदेश देना ताकि वे याजकों के नाते मेरी सेवा करें।+ 2 तू अपने भाई हारून के लिए ऐसी पवित्र पोशाक बनाना जो उसे गरिमा दे और उसकी शोभा बढ़ाए।+ 3 यह पोशाक तैयार करने के लिए तू उन सब कुशल कारीगरों* से बात करना जिन्हें मैंने भरपूर बुद्धि दी है।+ वे हारून के लिए ऐसी पोशाक बनाएँगे जिससे पहचान हो कि उसे याजक के नाते मेरी सेवा करने के लिए पवित्र ठहराया गया है।
4 कारीगर ये सब बनाएँगे: एक सीनाबंद,+ एक एपोद,+ बिन आस्तीन का एक बागा,+ एक चारखानेदार कुरता, एक पगड़ी+ और एक कमर-पट्टी।+ वे तेरे भाई हारून और उसके वंशजों के लिए यह पवित्र पोशाक बनाएँ ताकि वे याजकों के नाते मेरी सेवा करें। 5 कुशल कारीगर इसे सोने, नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बढ़िया मलमल से बनाएँगे।
6 वे एपोद को सोने, नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से बनाएँ। उस पर कढ़ाई का काम होना चाहिए।+ 7 एपोद के दो हिस्से होने चाहिए। सामनेवाले हिस्से को पीछेवाले हिस्से से कंधे की जगह पर जोड़ा जाना चाहिए। 8 एपोद में एक बुना हुआ कमरबंद+ लगा होना चाहिए ताकि एपोद को कसकर बाँधा जा सके। कमरबंद भी इन चीज़ों से बनाया जाए: सोना, नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा और बटा हुआ बढ़िया मलमल।
9 तू दो सुलेमानी पत्थर+ लेना और उन पर इसराएल के बेटों के नाम खोदना।+ 10 उनकी उम्र के मुताबिक क्रम से एक पत्थर पर छ: के नाम और दूसरे पर बाकी छ: के नाम खोदना। 11 पत्थरों पर खुदाई करनेवाला कारीगर दोनों पत्थरों पर इसराएल के बेटों के नाम इस तरह खोदकर लिखेगा जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है।+ फिर उन पत्थरों को सोने के खाँचों में जड़ना। 12 तू दोनों पत्थरों को एपोद के कंधेवाले हिस्सों पर लगाना ताकि ये इसराएल के बेटों के लिए यादगार के पत्थर बन जाएँ।+ ये नाम जो यादगार के लिए लिखे गए हैं, इन्हें हारून अपने दोनों कंधों पर धारण किए यहोवा के सामने हाज़िर हुआ करेगा। 13 तू सोने के खाँचे बनाना 14 और शुद्ध सोने की दो ज़ंजीरें बनाना जो एक डोरी की तरह बटी हों।+ इन ज़ंजीरों को खाँचों से जोड़ देना।+
15 तू कढ़ाई का काम करनेवाले से न्याय का सीनाबंद+ बनवाना। इसे भी एपोद की तरह इन चीज़ों से बनवाना: सोना, नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा और बटा हुआ बढ़िया मलमल।+ 16 सीनाबंद ऐसा हो कि बीच से मोड़ने पर चौकोर हो जाए, एक बित्ता* लंबा और एक बित्ता चौड़ा। 17 इसमें चार कतारों में रत्न लगाना जो खाँचों में बिठाए गए हों। पहली कतार में माणिक, पुखराज और पन्ना हों। 18 दूसरी कतार में फिरोज़ा, नीलम और यशब। 19 तीसरी कतार में लशम,* हकीक और कटैला। 20 चौथी कतार में करकेटक, सुलेमानी और मरगज। इन रत्नों को सोने के खाँचों में बिठाना। 21 इन 12 रत्नों पर इसराएल के 12 बेटों के नाम होने चाहिए। ये नाम ऐसे खुदवाना जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है। हर रत्न पर एक बेटे का नाम होगा जो एक गोत्र को दर्शाएगा।
22 तू सीनेबंद के लिए शुद्ध सोने की बटी हुई ज़ंजीरें बनाना जो दिखने में डोरियों जैसी लगें।+ 23 तू सीनेबंद के लिए सोने के दो छल्ले बनाना और उन्हें सीनेबंद के दो कोनों पर लगाना। 24 सोने की दोनों डोरियों को सीनेबंद के कोनों पर लगे छल्लों में डालना। 25 दो डोरियों के दोनों छोर को दो खाँचों के अंदर से निकालकर उन्हें एपोद के कंधेवाले हिस्सों पर, सामने की तरफ लगाना। 26 तू सोने के दो छल्ले बनाना और उन्हें सीनेबंद के निचले दो कोनों पर अंदर की तरफ लगाना, यानी सीनेबंद के उस हिस्से में जो एपोद की तरफ है।+ 27 तू सोने के दो और छल्ले बनाना और उन्हें एपोद के सामने की तरफ, कंधेवाले हिस्सों के नीचे, जहाँ वह जुड़ता है यानी बुने हुए कमरबंद+ के ठीक ऊपर लगाना। 28 फिर एक नीली डोरी से सीनेबंद के छल्लों को एपोद के छल्लों से जोड़ देना। इससे सीनाबंद एपोद में कमरबंद के ऊपर अपनी जगह पर बना रहेगा।
29 हारून जब भी डेरे के पवित्र भाग में जाएगा तो उसे अपनी छाती पर न्याय का सीनाबंद पहने और उस पर हमेशा की यादगार के लिए दर्ज़ इसराएल के बेटों के नाम धारण किए हुए यहोवा के सामने हाज़िर होना चाहिए। 30 तू न्याय के सीनेबंद में ऊरीम और तुम्मीम*+ रखना और जब भी हारून यहोवा के सामने आए तो ये उसके दिल पर हों। हारून जब भी इसराएलियों की खातिर यहोवा के फैसले जानने के लिए उसके सामने हाज़िर होगा तो उसके दिल पर परमेश्वर के फैसले जानने का यह ज़रिया हो।
31 एपोद के नीचे पहनने के लिए एक बिन आस्तीन का बागा बनाना। यह बागा सिर्फ नीले धागे से बनाना।+ 32 बागे में ऊपर गला* बनाना और उसके चारों तरफ एक जुलाहे से किनारा बनवाना। यह किनारा बख्तर के गले के किनारे जैसा मज़बूत होना चाहिए ताकि फट न जाए। 33 बागे के नीचे के घेरे में अनार के आकार में फुँदने बनाना। इन्हें नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे से बनाना। अनारों के बीच-बीच में सोने की घंटियाँ लगाना। 34 सोने की एक घंटी के बाद एक अनार, फिर एक घंटी फिर एक अनार। इस तरह बिन आस्तीन के बागे के पूरे घेरे में अनार और घंटियाँ लगाना। 35 हारून को यह बागा पहनकर ही सेवा करनी चाहिए ताकि जब भी वह पवित्र-स्थान में यहोवा के सामने जाए और वहाँ से बाहर निकले तो घंटियों की आवाज़ सुनायी दे, वरना वह मर जाएगा।+
36 तू शुद्ध सोने की एक चमचमाती पट्टी बनाना और उस पर ये शब्द खुदवाना, ‘यहोवा पवित्र है।’ ये उसी तरह खुदवाना जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है।+ 37 इस पट्टी को एक नीली डोरी से पगड़ी पर बाँधना।+ यह पट्टी हमेशा पगड़ी पर सामने की तरफ लगी होनी चाहिए। 38 यह हारून के माथे पर नज़र आएगी। जब कोई उन पवित्र चीज़ों के खिलाफ पाप करता है जिन्हें इसराएली पवित्र भेंट के तौर पर अलग करके अर्पित करते हैं, तो इसके लिए हारून ज़िम्मेदार होगा।+ यह पट्टी हारून के माथे पर हमेशा होनी चाहिए ताकि लोग यहोवा की मंज़ूरी पा सकें।
39 तू बढ़िया मलमल से चारखाने का एक कुरता बुनना और उसे बाँधने के लिए एक बुनी हुई कमर-पट्टी बनाना। और बढ़िया मलमल की एक पगड़ी भी बनाना।+
40 तू हारून के बेटों के लिए भी कुरते, कमर-पट्टियाँ और साफा बनाना+ जो उनकी गरिमा और शोभा बढ़ाए।+ 41 तू अपने भाई हारून और उसके बेटों को ये पोशाकें पहनाकर उनका अभिषेक करना,+ उन्हें याजकपद सौंपना*+ और इस सेवा के लिए अलग ठहराना। फिर वे याजकों के नाते मेरी सेवा करेंगे। 42 तू उनके लिए मलमल के जाँघिये भी बनाना ताकि उनका नंगापन* ढका रहे।+ ये जाँघिये कमर से जाँघ तक लंबे होने चाहिए। 43 हारून और उसके बेटे जब भी भेंट के तंबू में या पवित्र-स्थान की वेदी पर सेवा करने आएँगे तो वे ये जाँघिये पहने हुए हों ताकि ऐसा न हो कि वे दोषी पाए जाएँ और मार डाले जाएँ। यह हारून और उसके वंशजों के लिए सदा का नियम है।
29 तू उन्हें याजकों के नाते मेरी सेवा करने के लिए इस तरीके से पवित्र ठहराना: तू यह सब लेना, एक बैल, दो मेढ़े जिनमें कोई दोष न हो,+ 2 बिन-खमीर की रोटियाँ, छल्ले जैसी बिन-खमीर की रोटियाँ जो तेल से गूँधकर बनायी गयी हों और तेल चुपड़ी बिन-खमीर की पापड़ी।+ ये रोटियाँ और पापड़ी मैदे से बनाना 3 और इन्हें एक टोकरी में रखना।+ फिर बैल और दोनों मेढ़ों के साथ ये रोटियाँ और पापड़ी अर्पित करना।
4 तू हारून और उसके बेटों को भेंट के तंबू के द्वार+ पर लाना और उन्हें नहाने की आज्ञा देना।+ 5 फिर तू हारून के लिए बनाया गया कुरता, बिन आस्तीन का बागा, एपोद और सीनाबंद लेना और उसे पहनाना। एपोद का बुना हुआ कमरबंद उसकी कमर पर कसकर बाँधना।+ 6 तू उसके सिर पर पगड़ी रखना और पगड़ी पर समर्पण की पवित्र निशानी बाँधना।*+ 7 तू अभिषेक का तेल+ लेकर हारून के सिर पर उँडेलना और उसका अभिषेक करना।+
8 इसके बाद हारून के बेटों को सामने लाना और उन्हें कुरते पहनाना।+ 9 और हारून और उसके बेटों की कमर पर कमर-पट्टी बाँधना और उनके सिर पर साफा बाँधना। अब से याजकपद उनका होगा और यह नियम सदा के लिए है।+ इस तरह तू हारून और उसके बेटों को याजकपद सौंपना।*+
10 फिर तू भेंट के तंबू के सामने बैल को लाना और हारून और उसके बेटे बैल के सिर पर अपने हाथ रखेंगे।+ 11 तू तंबू के द्वार पर यहोवा के सामने बैल हलाल करना।+ 12 उसका थोड़ा-सा खून अपनी उँगली पर लेना और वेदी के सींगों पर लगाना।+ बाकी सारा खून वेदी के नीचे उँडेल देना।+ 13 फिर बैल की वह सारी चरबी+ लेना जो अंतड़ियों को ढके रहती है और कलेजे के आस-पास होती है, साथ ही दोनों गुरदे और उनके ऊपर की चरबी भी लेना और यह सब वेदी पर रखकर जलाना ताकि उनका धुआँ उठे।+ 14 मगर बैल का माँस, उसकी खाल और उसका गोबर छावनी के बाहर ले जाकर जला देना। यह पाप-बलि है।
15 इसके बाद तू दो मेढ़ों में से एक मेढ़ा लेना और हारून और उसके बेटे मेढ़े के सिर पर अपने हाथ रखें।+ 16 फिर वह मेढ़ा हलाल करना और उसका खून ले जाकर वेदी के चारों तरफ छिड़कना।+ 17 मेढ़े के टुकड़े-टुकड़े करना, उसकी अंतड़ियाँ और पाए साफ करना।+ उन टुकड़ों को और सिर को तरतीब से रखना। 18 तू पूरे मेढ़े को वेदी पर रखकर जलाना ताकि उसका धुआँ उठे। यह यहोवा के लिए होम-बलि है जिसकी सुगंध पाकर वह खुश होता है।+ यह आग में जलाकर यहोवा को दिया जानेवाला चढ़ावा है।
19 इसके बाद तू दूसरा मेढ़ा लेना और उसके सिर पर हारून और उसके बेटे अपने हाथ रखें।+ 20 तू मेढ़ा हलाल करना और उसका थोड़ा-सा खून लेकर हारून और उसके बेटों के दाएँ कान के निचले सिरे पर और उनके दाएँ हाथ के अँगूठे पर और दाएँ पैर के अँगूठे पर लगाना। बाकी सारा खून वेदी के चारों तरफ छिड़कना। 21 फिर वेदी से थोड़ा खून लेना और थोड़ा-सा अभिषेक का तेल+ भी लेना और इन्हें हारून और उसकी पोशाक पर, साथ ही उसके बेटों और उनकी पोशाकों पर छिड़कना। इससे हारून और उसके बेटे और उन सबकी पोशाकें पवित्र ठहरेंगी।+
22 फिर मेढ़े की चरबी, उसकी चरबीवाली मोटी पूँछ और वह चरबी जो अंतड़ियों को ढके रहती है और कलेजे के आस-पास होती है, दोनों गुरदे और उनके ऊपर की चरबी+ और दायाँ पैर अलग रखना क्योंकि यह मेढ़ा याजकपद सौंपने के मौके पर चढ़ाया जानेवाला मेढ़ा है।+ 23 साथ ही ये चीज़ें भी लेना: यहोवा के सामने रखी गयी बिन-खमीर की रोटियों की टोकरी में से एक गोल रोटी, एक पापड़ी और तेल से गूँधकर बनायी गयी छल्ले जैसी रोटी। 24 ये सारी चीज़ें तू हारून और उसके बेटों के हाथ पर रखना और इन चीज़ों को आगे-पीछे हिलाना। यह यहोवा के सामने हिलाया जानेवाला चढ़ावा है। 25 इसके बाद तू उनके हाथ से ये चीज़ें लेना और वेदी पर होम-बलि के ऊपर रखकर जलाना, जिससे उठनेवाली सुगंध से यहोवा खुश होगा। यह आग में जलाकर यहोवा को दिया जानेवाला चढ़ावा है।
26 इसके बाद तू उस मेढ़े का सीना लेना, जिसे हारून को याजकपद सौंपने के मौके पर+ उसकी खातिर बलि किया जाएगा। तू सीने को आगे-पीछे हिलाना। यह यहोवा के सामने हिलाया जानेवाला चढ़ावा है। मेढ़े का यह हिस्सा तुझे दिया जाएगा। 27 तू हारून और उसके बेटों को याजकपद सौंपने के मौके पर बलि करनेवाले मेढ़े के ये हिस्से पवित्र ठहराना: मेढ़े का सीना जो हिलाया जानेवाला चढ़ावा है और पवित्र चढ़ावे में से मेढ़े का पैर जो हिलाया गया था और लिया गया था।+ 28 यह हिस्सा हारून और उसके बेटों को दिया जाए क्योंकि यह पवित्र हिस्सा है। इसराएलियों को हमेशा के लिए यह नियम दिया जाता है कि यह हिस्सा उन्हें दिया करें।+ जब भी शांति-बलि चढ़ायी जाएगी तो यहोवा को देनेवाले पवित्र चढ़ावे में से यह हिस्सा हारून और उसके बेटों को दिया जाएगा।+
29 जो पवित्र पोशाक+ हारून की है, वह उसके बाद उसके बेटों को दी जाएगी।+ जब उनका अभिषेक किया जाएगा और उन्हें याजकपद सौंपा जाएगा, तब वे यह पोशाक पहनेंगे। 30 उसके बेटों में से जो उसकी जगह याजक चुना जाएगा और भेंट के तंबू में पवित्र जगह पर सेवा करने आएगा, वह सात दिन तक यह पोशाक पहनेगा।+
31 तू उस मेढ़े का गोश्त लेना जो याजकपद सौंपने के मौके पर चढ़ाया जाता है और उसे एक पवित्र जगह पर उबालना।+ 32 हारून और उसके बेटे भेंट के तंबू के द्वार पर मेढ़े का गोश्त और टोकरी में रखी रोटियाँ खाएँगे।+ 33 उन्हें वे चीज़ें खानी हैं जो उनके प्रायश्चित के लिए इसलिए चढ़ायी जाती हैं कि उन्हें याजकपद सौंपा जाए* और इस सेवा के लिए पवित्र ठहराया जाए। उनके सिवा किसी और* को ये चीज़ें खाने का अधिकार नहीं है क्योंकि ये पवित्र चीज़ें हैं।+ 34 याजकपद सौंपने के मौके पर दी गयी बलि के गोश्त और रोटियों में से अगर कुछ सुबह तक बच जाए, तो उसे आग में जला देना।+ उसे खाना मना है क्योंकि वह पवित्र है।
35 मैंने तुझे जो-जो आज्ञा दी है, उसी के मुताबिक तू हारून और उसके बेटों को याजक ठहराना। तू याजकपद सौंपने* की यह विधि सात दिन तक मानना।+ 36 तू उनके प्रायश्चित के लिए हर दिन पाप-बलि का बैल चढ़ाना और वेदी के लिए प्रायश्चित करके उसके पाप दूर करना और उसे शुद्ध करना और उसे पवित्र ठहराने के लिए उसका अभिषेक करना।+ 37 तू वेदी के लिए सात दिन तक प्रायश्चित करना और उसे पवित्र ठहराना ताकि वह ऐसी वेदी बन जाए जो बहुत पवित्र है।+ वेदी के पास सेवा करनेवाले हर किसी को पवित्र होना चाहिए।
38 तू हर दिन बिना नागा वेदी पर ये चीज़ें चढ़ाया करना:+ एक-एक साल के दो मेढ़े, 39 जिनमें से एक मेढ़ा सुबह चढ़ाना और दूसरा शाम के झुटपुटे के समय।*+ 40 पहले मेढ़े के साथ एपा* का दसवाँ भाग मैदा जिसमें एक-चौथाई हीन* शुद्ध तेल मिला हो और अर्घ चढ़ावे में एक-चौथाई हीन दाख-मदिरा चढ़ाना। 41 शाम के झुटपुटे के समय* दूसरे मेढ़े के साथ भी वही अनाज का चढ़ावा और अर्घ चढ़ाना जो तू सुबह चढ़ाएगा। तू यहोवा के लिए आग में जलाकर इसे चढ़ाना जिसकी सुगंध पाकर वह खुश होगा। 42 तुम्हारे वंशजों को पीढ़ी-पीढ़ी तक भेंट के तंबू के द्वार पर यहोवा के सामने नियमित तौर पर यह होम-बलि सुबह-शाम चढ़ानी होगी। मैं उस द्वार पर तुम्हारे सामने प्रकट होऊँगा और तुझसे बात करूँगा।+
43 मैं उस द्वार पर इसराएलियों के सामने प्रकट होऊँगा और वह जगह मेरी महिमा से भरकर पवित्र हो जाएगी।+ 44 मैं भेंट के तंबू और वेदी को पवित्र ठहराऊँगा और हारून और उसके बेटों को पवित्र ठहराऊँगा+ ताकि वे याजकों के नाते मेरी सेवा करें। 45 मैं इसराएलियों के बीच निवास* करूँगा और उनका परमेश्वर होऊँगा।+ 46 वे बेशक जान जाएँगे कि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया था ताकि उनके बीच निवास करूँ।+ मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ।
30 तू धूप जलाने के लिए एक वेदी बनाना।+ इसे बबूल की लकड़ी से तैयार करना।+ 2 वेदी चौकोर होनी चाहिए, लंबाई एक हाथ,* चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई दो हाथ होनी चाहिए। वेदी के कोनों को उभरा हुआ बनाकर सींग का आकार देना।+ 3 पूरी वेदी को यानी उसके ऊपरी हिस्से, उसके बाज़ुओं और सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ना। और वेदी पर चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाना। 4 वेदी पर आमने-सामने दोनों बाज़ुओं में, नक्काशीदार किनारे के नीचे सोने के दो-दो कड़े लगवाना। इन कड़ों में वे डंडे डाले जाएँगे जिनके सहारे वेदी उठायी जाएगी। 5 ये डंडे बबूल की लकड़ी से बनाना और उन पर सोना मढ़ना। 6 तू वेदी को गवाही के संदूक के पासवाले परदे के पहले,+ हाँ, उस संदूक के ढकने के आगे रखना। वहीं मैं तेरे सामने प्रकट होऊँगा।+
7 हारून+ जब हर दिन सुबह दीए ठीक करेगा,+ तो वेदी पर सुगंधित धूप जलाएगा+ ताकि वेदी से धुआँ उठे।+ 8 जब वह शाम के झुटपुटे के समय* दीए जलाएगा तब भी वेदी पर धूप जलाएगा। यह यहोवा के सामने नियमित तौर पर चढ़ाया जानेवाला धूप का चढ़ावा है और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चढ़ाया जाएगा। 9 तुम इस वेदी पर ऐसा धूप न चढ़ाना जो नियम के खिलाफ हो,+ न ही इस पर होम-बलि करना या अनाज का चढ़ावा चढ़ाना। तू इस वेदी पर कोई अर्घ भी न चढ़ाना। 10 हारून को चाहिए कि वह साल में एक बार वेदी को शुद्ध करे।+ वह प्रायश्चित के लिए दिए गए पाप-बलि के जानवर का थोड़ा-सा खून लेकर वेदी के सींगों पर लगाएगा।+ इस तरह वह साल में एक बार वेदी के लिए प्रायश्चित करके उसे शुद्ध करेगा। ऐसा पीढ़ी-दर-पीढ़ी किया जाएगा। यह वेदी यहोवा की नज़र में बहुत पवित्र है।”
11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 12 “तू जब भी इसराएलियों की गिनती लेगा,+ तो हरेक को अपनी जान के बदले यहोवा को फिरौती देनी होगी। उन्हें यह इसलिए करना होगा ताकि नाम-लिखाई के वक्त उन पर कोई कहर न ढाया जाए। 13 जिन-जिनका नाम लिखा जाता है, उन्हें अपनी फिरौती के लिए आधा शेकेल* अदा करना होगा। यह रकम पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक होनी चाहिए।+ एक शेकेल 20 गेरा* के बराबर है। उन्हें यहोवा के लिए दान में आधा शेकेल देना होगा।+ 14 जितनों की उम्र 20 साल या उससे ऊपर है, उनका नाम लिखा जाए और वे यह रकम यहोवा के लिए दान में दें।+ 15 तुम सब अपनी जान की फिरौती के लिए यहोवा को दान में आधा शेकेल* ही दोगे। न अमीर लोग इससे ज़्यादा दें और न गरीब इससे कम। 16 तू इसराएलियों से उनकी फिरौती के लिए चाँदी के पैसे लेना और भेंट के तंबू में की जानेवाली सेवा के लिए देना। यह पैसा इसराएलियों की खातिर यहोवा के सामने यादगार बन जाएगा और तुम्हारी जान की फिरौती होगा।”
17 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 18 “तू ताँबे का एक हौद बनाना और उसे रखने के लिए एक टेक बनाना।+ इस हौद को भेंट के तंबू और वेदी के बीच रखना और उसमें पानी भरना।+ 19 हारून और उसके बेटे उस हौद के पानी से अपने हाथ-पैर धोएँगे।+ 20 जब वे भेंट के तंबू के अंदर जाएँगे या वेदी के पास सेवा करने और यहोवा के लिए आग में बलि चढ़ाने जाएँगे, तो वे हौद के पानी से खुद को शुद्ध करेंगे ताकि वे मार न डाले जाएँ। 21 उन्हें अपने हाथ-पैर ज़रूर धोने चाहिए ताकि वे मर न जाएँ। यह नियम हारून और उसके वंशजों पर पीढ़ी-पीढ़ी तक सदा के लिए लागू रहेगा।”+
22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 23 “इसके बाद तू ये सारी बढ़िया-बढ़िया खुशबूदार चीज़ें लेना: 500 शेकेल गंधरस जो ठोस बन गया हो, उसका आधा माप यानी 250 शेकेल खुशबूदार दालचीनी, 250 शेकेल खुशबूदार वच 24 और 500 शेकेल तज। ये सब पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक होने चाहिए।+ साथ ही एक हीन* जैतून का तेल भी लेना। 25 इन मसालों के मिश्रण से अभिषेक का पवित्र तेल तैयार करना। यह मिश्रण बहुत ही उम्दा तरीके से बनाया जाए।*+ यह तेल अभिषेक का पवित्र तेल होगा।
26 तू इस तेल से भेंट के तंबू और गवाही के संदूक का अभिषेक करना।+ 27 साथ ही इन चीज़ों का भी अभिषेक करना: तंबू में रखी मेज़ और उसकी सारी चीज़ें, दीवट और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, धूप की वेदी, 28 होम-बलि की वेदी और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, हौद और उसकी टेक। 29 तू इन सारी चीज़ों को पवित्र ठहराना ताकि ये बहुत पवित्र हो जाएँ।+ जो भी इन चीज़ों को छूता है उसे पवित्र होना चाहिए।+ 30 तू हारून और उसके बेटों का अभिषेक करना+ और उन्हें याजकों के नाते मेरी सेवा करने के लिए पवित्र ठहराना।+
31 तू इसराएलियों से कहना, ‘यह पीढ़ी-पीढ़ी तक मेरा अभिषेक का पवित्र तेल होगा।+ 32 इसे किसी इंसान के शरीर पर नहीं लगाना चाहिए। तुम इस तरह का मिश्रण किसी और इस्तेमाल के लिए मत तैयार करना। यह पवित्र तेल है। तुम इसे सदा तक पवित्र मानना। 33 अगर कोई इस मिश्रण से तेल बनाता है और किसी ऐसे इंसान पर लगाता है जिस पर लगाने की इजाज़त नहीं है,* तो उसे मौत की सज़ा दी जाए।’”+
34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू बराबर माप में ये सारे इत्र लेना:+ नखी, बोल, गंधाबिरोजा और शुद्ध लोबान। 35 इन्हें मिलाकर धूप तैयार करना।+ मसालों का यह मिश्रण बहुत ही उम्दा तरीके से बना हो,* इसमें नमक मिला हो+ और यह शुद्ध और पवित्र हो। 36 तू इसमें से थोड़ा धूप अलग निकालकर महीन पीसना। फिर इस महीन धूप में से थोड़ा-सा धूप लेकर भेंट के तंबू में गवाही के संदूक के सामने डालना, जहाँ मैं तेरे सामने प्रकट होऊँगा। इस धूप को तुम लोग बहुत पवित्र मानना। 37 जिस मिश्रण से तुम यह धूप बनाओगे उसका धूप तुम अपने इस्तेमाल के लिए मत बनाना।+ यह यहोवा की नज़र में पवित्र धूप है और तुम इसे पवित्र मानना। 38 अगर कोई इसकी खुशबू का आनंद लेने के लिए इस मिश्रण का धूप बनाएगा तो उसे मौत की सज़ा दी जाए।”
31 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 2 “देख, मैंने यहूदा गोत्र के बसलेल को चुना है*+ जो ऊरी का बेटा और हूर का पोता है।+ 3 मैं उसे अपनी पवित्र शक्ति से भर दूँगा और हर तरह की कारीगरी में कुशल होने के लिए बुद्धि, समझ और ज्ञान दूँगा 4 ताकि वह बेहतरीन नमूने तैयार करने में, सोने, चाँदी और ताँबे के काम में, 5 कीमती रत्नों को तराशने और जड़ने में+ और लकड़ी की हर तरह की चीज़ें तैयार करने में माहिर हो जाए।+ 6 और बसलेल की मदद के लिए मैंने दान गोत्र के ओहोलीआब+ को ठहराया है जो अहीसामाक का बेटा है। मैं सभी कुशल कारीगरों* का हुनर और भी निखार दूँगा ताकि वे ये सारी चीज़ें बनाएँ जिनके बारे में मैंने तुझे आज्ञा दी है:+ 7 भेंट का तंबू,+ गवाही का संदूक+ और उसका ढकना,+ तंबू का सारा सामान, 8 मेज़+ और उसकी चीज़ें, शुद्ध सोने की दीवट और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें,+ धूप की वेदी,+ 9 होम-बलि की वेदी+ और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, हौद और उसकी टेक,+ 10 बढ़िया तरीके से बुनी हुई पोशाकें, हारून याजक के लिए पवित्र पोशाक और उसके बेटों के लिए पोशाकें जिन्हें पहनकर वे याजक का काम करेंगे,+ 11 अभिषेक का तेल और पवित्र-स्थान के लिए सुगंधित धूप।+ कारीगर हर वह काम करेंगे जिसकी मैंने तुझे आज्ञा दी है।”
12 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 13 “तू इसराएलियों को यह बताना, ‘तुम लोग मेरे सब्तों को मानने का खास ध्यान रखना,+ क्योंकि सब्त उस करार की निशानी है जो मैंने तुम्हारे साथ किया है। यह निशानी तुम्हें पीढ़ी-पीढ़ी तक इस बात की याद दिलाती रहेगी कि मुझ यहोवा ने तुम लोगों को पवित्र ठहराया है। 14 तुम सब्त का नियम ज़रूर मानना क्योंकि सब्त तुम्हारे लिए पवित्र है।+ अगर कोई उसे अपवित्र करता है, तो उसे मौत की सज़ा दी जाए। अगर कोई सब्त के दिन काम करता है तो उसे मौत की सज़ा देकर अपने लोगों में से हमेशा के लिए मिटा दिया जाए।+ 15 तुम छ: दिन अपना काम-काज कर सकते हो, मगर सातवाँ दिन सब्त होगा, पूरे विश्राम का दिन।+ यह यहोवा के लिए पवित्र दिन है। अगर कोई सब्त के दिन काम करे, तो उसे मार डालना चाहिए। 16 इसराएलियों को हर हाल में सब्त का नियम मानना होगा, उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस नियम का पालन करना होगा। यह सदा तक कायम रहनेवाला करार है। 17 मेरे और इसराएलियों के बीच सब्त हमेशा के लिए एक निशानी बना रहेगा,+ क्योंकि यहोवा ने छ: दिनों में आकाश और पृथ्वी को बनाया और काम पूरा करने के बाद उसने सातवें दिन विश्राम किया।’”+
18 परमेश्वर ने सीनै पहाड़ पर मूसा से ये सारी बातें कहने के फौरन बाद उसे गवाही की दो पटियाएँ दीं।+ ये पत्थर की पटियाएँ थीं जिन पर परमेश्वर ने अपनी उँगली से लिखा था।+
32 इस बीच जब लोगों ने देखा कि मूसा पहाड़ से नीचे आने में देर लगा रहा है,+ तो वे सब हारून के पास जमा हो गए और उससे कहने लगे, “पता नहीं उस मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया था। इसलिए अब हमारी अगुवाई के लिए तू एक देवता बना दे।”+ 2 इस पर हारून ने उनसे कहा, “तुम सब अपनी पत्नियों और बेटे-बेटियों की सोने की बालियाँ+ निकालकर मेरे पास ले आओ।” 3 फिर उन सबने जाकर अपने बीवी-बच्चों की सोने की बालियाँ निकालीं और लाकर हारून को दे दीं। 4 हारून ने वह सोना लिया और नक्काशी करनेवाले औज़ार से एक बछड़े की मूरत* तैयार की।+ फिर लोग कहने लगे, “हे इसराएल, यही तेरा परमेश्वर है जो तुझे मिस्र देश से बाहर ले आया है।”+
5 जब हारून ने यह देखा तो उसने बछड़े के सामने एक वेदी बनायी। फिर उसने ऐलान किया: “कल यहोवा के लिए एक त्योहार होगा।” 6 अगले दिन लोग सुबह तड़के उठे और होम-बलियाँ चढ़ाने और शांति-बलियाँ अर्पित करने लगे। इसके बाद लोगों ने बैठकर खाया-पीया। फिर वे उठकर मौज-मस्ती करने लगे।+
7 अब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू नीचे जा क्योंकि तेरे लोगों ने, जिन्हें तू मिस्र से निकाल लाया है, खुद को भ्रष्ट कर लिया है।+ 8 मैंने उन्हें जिस राह पर चलने की आज्ञा दी थी, वे उससे कितनी जल्दी भटककर दूर चले गए हैं।+ उन्होंने अपने लिए बछड़े की मूरत* बना ली है और वे उसके आगे दंडवत कर रहे हैं और बलियाँ चढ़ाकर कह रहे हैं, ‘हे इसराएल, यही तेरा परमेश्वर है जो तुझे मिस्र से बाहर निकाल लाया है।’” 9 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “मैं देख सकता हूँ कि ये लोग कितने ढीठ हैं।+ 10 इसलिए अब तू मुझे मत रोक। मेरे क्रोध की ज्वाला उन्हें भस्म करके ही रहेगी। और मैं उनके बदले तुझसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।”+
11 तब मूसा ने अपने परमेश्वर यहोवा से फरियाद की,+ “हे यहोवा, तू क्यों अपने लोगों पर इतना भड़क रहा है? तू कितने बड़े-बड़े अजूबे करके अपने शक्तिशाली हाथ से उन्हें मिस्र से निकालकर लाया है। अब तू क्यों उन्हें मिटा देना चाहता है?+ 12 क्यों मिस्रियों को यह कहने का मौका मिले, ‘वह उनका बुरा करने के इरादे से ही उन्हें यहाँ से ले गया। वह उन्हें इसलिए ले गया कि उन्हें पहाड़ों पर ले जाकर मार डाले और धरती से उनका नामो-निशान मिटा दे।’+ इसलिए तू शांत हो जा और अपने लोगों पर कहर लाने के फैसले पर दोबारा गौर कर।* 13 ज़रा अपने सेवक अब्राहम, इसहाक और इसराएल को याद कर। तूने अपनी शपथ खाकर उनसे कहा था, ‘मैं तुम्हारे वंश को इतना बढ़ाऊँगा कि वह आसमान के तारों जैसा अनगिनत हो जाएगा।+ और यह सारा देश मैं तुम्हारे वंश को दूँगा जो मैंने उसके लिए तय किया है ताकि यह देश हमेशा के लिए उसकी जागीर हो जाए।’”+
14 तब यहोवा ने अपने लोगों पर कहर लाने की बात पर दोबारा गौर किया।*+
15 तब मूसा वहाँ से मुड़ा और अपने हाथ में गवाही की दोनों पटियाएँ लिए पहाड़ से नीचे उतरा।+ इन पटियाओं पर आगे-पीछे, दोनों तरफ लिखा हुआ था। 16 ये पटियाएँ खुद परमेश्वर ने बनायी थीं और उसी ने उन पर खुदाई करके लिखा था।+ 17 जब यहोशू ने लोगों का शोरगुल सुना तो उसने मूसा से कहा, “छावनी से युद्ध का शोर सुनायी दे रहा है।” 18 मगर मूसा ने कहा,
“यह गाने की आवाज़ न किसी जीत के जश्न की है,*
न ही हार के गम का हाहाकार है,
मुझे तो एक अलग किस्म का गाना-बजाना सुनायी दे रहा है।”
19 छावनी के पास पहुँचते ही जब मूसा ने देखा कि वहाँ एक बछड़े की मूरत है+ और लोग नाच-गा रहे हैं, तो वह आग-बबूला हो गया। उसने मारे गुस्से के दोनों पटियाएँ ज़मीन पर पटक दीं और वे पटियाएँ पहाड़ के नीचे चूर-चूर हो गयीं।+ 20 उसने उनका बनाया बछड़ा लिया और उसे आग में जला दिया और चूर-चूर कर डाला।+ फिर उसने वह चूरा पानी पर बिखरा दिया और वह पानी इसराएलियों को पिला दिया।+ 21 मूसा ने हारून से कहा, “आखिर लोगों ने तेरे साथ ऐसा क्या किया कि तूने उनको इतने बड़े पाप में फँसाया?” 22 हारून ने कहा, “मालिक, मुझ पर भड़क न जाना। तू तो अच्छी तरह जानता है कि इन लोगों का मन हमेशा बुराई की तरफ झुका रहता है।+ 23 वे मेरे पास आकर कहने लगे, ‘पता नहीं उस मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया था। इसलिए अब हमारी अगुवाई के लिए तू एक देवता बना दे।’+ 24 तब मैंने उनसे कहा, ‘तुममें से जिस-जिसके पास सोना है, वह लाकर मुझे दे दे।’ फिर जब मैंने वह सोना आग में डाला, तो उससे एक बछड़ा तैयार हो गया।”
25 मूसा ने देखा कि लोगों ने हद कर दी है क्योंकि हारून ने उन्हें ऐसा करने की छूट दे दी थी और इस वजह से वे अपने दुश्मनों के सामने शर्मिंदा हो गए हैं। 26 मूसा छावनी के द्वार पर अपनी जगह खड़ा हो गया और उसने कहा, “तुममें से कौन-कौन यहोवा की तरफ है? वह मेरे पास आ जाए!”+ तब सभी लेवी मूसा के पास आकर जमा हो गए। 27 मूसा ने उनसे कहा, “इसराएल के परमेश्वर यहोवा ने कहा है, ‘तुममें से हर कोई अपनी तलवार बाँध ले और पूरी छावनी में घूमकर हरेक द्वार पर जाए और अपने भाई, पड़ोसी और करीबी दोस्त को मार डाले।’”+ 28 तब लेवियों ने ठीक वही किया जो मूसा ने उनसे कहा था। उस दिन करीब 3,000 आदमी मारे गए। 29 फिर मूसा ने उन लेवियों से कहा, “आज के दिन तुम सब यहोवा की सेवा के लिए खुद को अलग करो।* तुम अपने बेटों और भाइयों के खिलाफ जाने के लिए तैयार हो गए,+ इसलिए आज परमेश्वर तुम्हें आशीष देगा।”+
30 फिर अगले ही दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुम लोगों ने बहुत बड़ा पाप किया है। अब मैं जाकर यहोवा को मनाने की कोशिश करूँगा। हो सकता है वह तुम्हारे पाप माफ कर दे।”+ 31 तब मूसा यहोवा के पास दोबारा आया और उससे कहने लगा, “लोगों ने अपने लिए सोने का देवता बनाकर वाकई बहुत बड़ा पाप किया है!+ 32 फिर भी हो सके तो उनका पाप माफ कर दे।+ अगर नहीं, तो मेरी बिनती है कि तू अपनी किताब से मेरा नाम मिटा दे।”+ 33 मगर यहोवा ने मूसा से कहा, “जिस किसी ने मेरे खिलाफ पाप किया है, मैं उसका नाम अपनी किताब से मिटा दूँगा। 34 अब तू जा और लोगों की अगुवाई करके उन्हें उस जगह ले जा जिसके बारे में मैंने तुझे बताया है। देख, मेरा स्वर्गदूत तेरे आगे-आगे जाएगा।+ और जिस दिन मैं लोगों से उनके पाप का हिसाब लूँगा उस दिन मैं उन्हें सज़ा दूँगा।” 35 फिर यहोवा लोगों पर कहर ढाने लगा क्योंकि उन्होंने हारून से बछड़े की मूरत बनवायी थी।
33 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “तू उन लोगों को लेकर यहाँ से आगे बढ़, जिन्हें तू मिस्र से निकाल लाया है। तुम सब उस देश के लिए रवाना हो जाओ जिसके बारे में मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खाकर कहा था, ‘मैं यह देश तुम्हारे वंश को दूँगा।’+ 2 मैं तुम्हारे आगे-आगे एक स्वर्गदूत भेजूँगा+ और मैं कनानियों, एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों को खदेड़ दूँगा।+ 3 तुम उस देश को जाओ जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ मगर मैं तुम्हारे बीच रहकर तुम्हारे साथ नहीं चलूँगा, क्योंकि तुम बड़े ढीठ किस्म के लोग हो।+ कहीं ऐसा न हो कि मैं रास्ते में तुम्हें मिटा दूँ।”+
4 जब लोगों ने परमेश्वर के ये कड़े शब्द सुने, तो वे बहुत दुखी हुए और शोक मनाने लगे। उनमें से किसी ने भी अपने ज़ेवर नहीं पहने। 5 यहोवा ने मूसा से कहा, “इसराएलियों से कहना, ‘तुम बड़े ढीठ किस्म के लोग हो।+ अगर मैं चाहूँ तो तुम्हारे बीच से होकर तुम सबको एक ही पल में मिटा सकता हूँ।+ मगर जब तक मैं सोचूँ कि तुम्हारे साथ क्या करूँ, तुम गहने मत पहनना।’” 6 इसलिए इसराएलियों ने होरेब पहाड़ के बाद फिर कभी गहने नहीं पहने।*
7 फिर मूसा ने अपना तंबू उठाया और इसराएलियों की छावनी से बाहर कुछ दूर ले जाकर खड़ा किया। उसने अपने तंबू का नाम भेंट का तंबू रखा। जब भी कोई यहोवा की मरज़ी जानना चाहता+ तो वह छावनी के बाहर उस भेंट के तंबू के पास जाता था। 8 जैसे ही मूसा उस तंबू के पास जाता सब लोग उठकर अपने-अपने तंबू के द्वार पर खड़े हो जाते। और वे तब तक मूसा को देखते रहते जब तक कि वह तंबू के अंदर नहीं चला जाता। 9 जैसे ही मूसा तंबू के अंदर जाता, बादल का खंभा+ तंबू के द्वार पर उतर आता और अंदर जब परमेश्वर मूसा से बात कर रहा होता तो यह खंभा वहीं द्वार के पास ठहरा रहता।+ 10 जब लोग तंबू के द्वार पर बादल का खंभा देखते, तो वे सब अपने-अपने तंबू के द्वार पर सिर झुकाकर दंडवत करते। 11 यहोवा मूसा से आमने-सामने बात करता था,+ जैसे एक आदमी दूसरे आदमी से बात करता है। जब मूसा परमेश्वर से बात करने के बाद तंबू से निकलकर इसराएलियों की छावनी में जाता तो यहोशू+ तंबू के द्वार पर खड़ा होता और वहाँ से नहीं हटता। यहोशू, नून का बेटा और मूसा का सेवक और मददगार था।+
12 अब मूसा ने यहोवा से कहा, “देख, तूने मुझसे कहा, ‘इन लोगों की अगुवाई कर,’ मगर तूने मुझे यह नहीं बताया कि तू मेरे साथ किसे भेजेगा। तूने मुझसे यह भी कहा, ‘मैं तुझे तेरे नाम से जानता हूँ* और मैं तुझसे खुश हूँ।’ 13 अगर तू वाकई मुझसे खुश है तो मेहरबानी करके मुझे अपनी राहों के बारे में सिखा+ ताकि मैं तुझे जान सकूँ और तेरी कृपा पाता रहूँ। और इस राष्ट्र के बारे में यह मत भूल जाना कि ये तेरे अपने लोग हैं।”+ 14 तब परमेश्वर ने उससे कहा, “मैं खुद तेरे साथ जाऊँगा+ और तुझे चैन दूँगा।”+ 15 फिर मूसा ने कहा, “अगर तू हमारे साथ नहीं चलेगा तो हमें यहाँ से आगे मत ले चल। 16 अगर तू हमारे साथ नहीं चलेगा तो यह कैसे पता चलेगा कि तू मुझसे और अपने लोगों से खुश है?+ यह कैसे पता चलेगा कि मैं और तेरे लोग दुनिया के सभी लोगों में से तेरे लिए खास हैं?”+
17 यहोवा ने मूसा से कहा, “ठीक है, मैं तेरी यह गुज़ारिश भी पूरी करूँगा क्योंकि तूने मुझे खुश किया है और मैं तुझे तेरे नाम से जानता हूँ।” 18 तब मूसा ने परमेश्वर से यह बिनती की: “क्या तू मुझे अपनी महिमा देखने का एक मौका देगा?” 19 परमेश्वर ने कहा, “मैं तेरे सामने से गुज़रूँगा और तू देख पाएगा कि मैं कितना भला हूँ। मैं तेरे सामने अपने नाम यहोवा का ऐलान करूँगा।+ मैं जिनसे खुश होता हूँ उन पर मेहरबानी करूँगा और जिन पर दया दिखाना चाहता हूँ, उन पर दया दिखाऊँगा।”+ 20 मगर उसने यह भी कहा, “तू मेरा चेहरा नहीं देख सकेगा, क्योंकि कोई भी इंसान मुझे देखकर ज़िंदा नहीं रह सकता।”
21 यहोवा ने यह भी कहा, “यहाँ मेरे नज़दीक एक चट्टान है, तू आकर इस पर खड़ा हो जा। 22 जब मेरी महिमा का तेज तेरे सामने से गुज़रेगा तो मैं तुझे इस चट्टान की एक बड़ी दरार में रखूँगा और जब तक मैं तेरे सामने से निकल न जाऊँ तब तक अपने हाथ से तुझे ढाँपे रहूँगा। 23 इसके बाद मैं अपना हाथ हटा लूँगा और तू मेरी पीठ देखेगा। मगर मेरा चेहरा तू नहीं देख सकेगा।”+
34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू पत्थर काटकर अपने लिए दो पटियाएँ बनाना जो पहली पटियाओं जैसी हों।+ उन पर मैं वे शब्द लिखूँगा जो मैंने पहली पटियाओं पर लिखे थे,+ जिन्हें तूने चूर-चूर कर डाला था।+ 2 तू कल सुबह के लिए तैयार हो जाना क्योंकि तू कल सुबह सीनै पहाड़ पर आएगा और पहाड़ की चोटी पर मेरे सामने हाज़िर होगा।+ 3 मगर तेरे साथ कोई और नहीं आएगा, पहाड़ पर कहीं भी तेरे सिवा कोई और नज़र न आए। यहाँ तक कि पहाड़ के सामने भेड़-बकरी या गाय-बैल भी चरते हुए दिखायी न दें।”+
4 मूसा ने पत्थर काटकर पहली पटियाओं जैसी दो पटियाएँ तैयार कीं। और जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी, वह सुबह जल्दी उठा और अपने हाथ में पत्थर की दोनों पटियाएँ लिए सीनै पहाड़ पर गया। 5 फिर यहोवा बादल में उतरा+ और आकर पहाड़ पर मूसा के साथ खड़ा हो गया और यहोवा के नाम का ऐलान किया।+ 6 यहोवा ने मूसा के सामने से गुज़रते हुए यह ऐलान किया, “यहोवा, यहोवा परमेश्वर दयालु+ और करुणा से भरा है,+ क्रोध करने में धीमा+ और अटल प्यार+ और सच्चाई+ से भरपूर है,* 7 हज़ारों पीढ़ियों से प्यार* करता है,+ वह गुनाहों, अपराधों और पापों को माफ करता है।+ मगर जो दोषी है उसे सज़ा दिए बगैर हरगिज़ नहीं छोड़ेगा+ और पिता के अपराध की सज़ा उसके बेटों, पोतों और परपोतों तक को देता है।”+
8 मूसा ने फौरन घुटनों के बल ज़मीन पर गिरकर परमेश्वर को दंडवत किया। 9 फिर उसने कहा, “हे यहोवा, अगर तेरी कृपा मुझ पर है, तो हमारे साथ चल और हमारे बीच रह।+ हम ढीठ किस्म के लोग हैं,+ फिर भी हे यहोवा, हमारे गुनाह और पाप माफ कर दे+ और हमें अपनी जागीर मानकर अपना ले।” 10 तब परमेश्वर ने उससे कहा, “देखो, मैं तुम लोगों के साथ यह करार करता हूँ: मैं तुम सबके सामने ऐसे आश्चर्य के काम करूँगा, जैसे आज तक न पूरी धरती पर और न ही किसी राष्ट्र में किए गए हैं।*+ तुम जहाँ रहोगे वहाँ आस-पास की सभी जातियाँ यहोवा के काम देखेंगी क्योंकि मैं तुम्हारी खातिर विस्मयकारी काम करनेवाला हूँ।+
11 मैं आज तुम लोगों को जो आज्ञाएँ दे रहा हूँ उन पर ध्यान दो।+ मैं तुम्हारे सामने से एमोरियों, कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों को खदेड़नेवाला हूँ।+ 12 तुम इस बात का ध्यान रखना कि तुम जिस देश में जा रहे हो, वहाँ के निवासियों के साथ कोई भी करार नहीं करोगे,+ वरना यह तुम्हारे लिए एक फंदा साबित होगा।+ 13 तुम उनकी वेदियाँ ढा देना, उनके पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर देना और उनकी पूजा-लाठें* काट डालना।+ 14 तुम किसी और देवता के आगे झुककर उसे दंडवत मत करना,+ क्योंकि यहोवा यह माँग करने के लिए जाना जाता है* कि सिर्फ उसी की भक्ति की जाए।* हाँ, वह ऐसा परमेश्वर है जो माँग करता है कि सिर्फ उसी की भक्ति की जाए, किसी और की नहीं।+ 15 तुम इस बात का ध्यान रखना कि तुम उस देश के निवासियों के साथ कोई करार नहीं करोगे, क्योंकि जब वे अपने देवताओं को पूजते हैं* और उनके आगे बलिदान चढ़ाते हैं+ तो उनमें से कोई तुम्हें ज़रूर बुलाएगा और तुम जाकर उसके बलिदान में से खाने लगोगे।+ 16 फिर तुम ज़रूर अपने बेटों का रिश्ता उनकी बेटियों से कराओगे+ और उनकी बेटियाँ अपने देवताओं को पूजेंगी और तुम्हारे बेटों से भी उनकी पूजा करवाएँगी।+
17 तुम धातु ढालकर देवताओं की मूरतें न बनाना।+
18 तुम बिन-खमीर की रोटी का त्योहार मनाना।+ तुम सात दिन तक बिन-खमीर की रोटी खाना, जैसे मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। तुम यह त्योहार आबीब* महीने में तय वक्त पर मनाना+ क्योंकि तुम आबीब महीने में ही मिस्र से बाहर आए थे।
19 तुम्हारा हरेक पहलौठा मेरा है,+ यहाँ तक कि तुम्हारे जानवरों के सभी पहलौठे भी, फिर चाहे वह पहलौठा बैल हो या मेढ़ा।+ 20 तुम्हें अपने गधों में से हर पहलौठे को छुड़ाने के लिए एक भेड़ देनी होगी। अगर तुम गधे के पहलौठे को नहीं छुड़ाते तो उसका गला काटकर उसे मार डालना। तुम्हें अपने सभी पहलौठे बेटों को छुड़ाना होगा।+ तुममें से कोई भी मेरे सामने खाली हाथ न आए।
21 तुम छ: दिन तक अपना काम-काज करना, मगर सातवें दिन विश्राम करना।*+ यहाँ तक कि जुताई और कटाई के मौसम में भी तुम सातवें दिन विश्राम करना।
22 तुम गेहूँ की कटाई के वक्त कटाई का त्योहार मनाओगे और फसल से मिलनेवाले पहले अनाज का चढ़ावा चढ़ाओगे। और साल के आखिर में बटोरने का त्योहार* मनाओगे।+
23 साल में तीन बार सभी आदमी इसराएल के परमेश्वर और सच्चे प्रभु यहोवा के सामने हाज़िर हों।+ 24 साल में ये तीनों बार जब तुम अपने परमेश्वर यहोवा के सामने जाओगे तो कोई भी तुम्हारी ज़मीन का लालच नहीं करेगा, क्योंकि मैं दूसरी जातियों को तुम्हारे यहाँ से खदेड़ दूँगा+ और तुम्हारी सरहदें बढ़ा दूँगा।
25 तुम मेरे बलि-पशु के खून के साथ कोई खमीरी चीज़ मत चढ़ाना।+ फसह के त्योहार में बलि किए जानेवाले जानवर का गोश्त अगली सुबह तक मत रखना।+
26 तुम अपनी ज़मीन की पहली उपज में से सबसे बढ़िया फल अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में लाकर देना।+
तुम बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में मत उबालना।”+
27 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “तू ये सारी आज्ञाएँ लिख लेना,+ क्योंकि इन्हीं के मुताबिक मैं तेरे साथ और इसराएल के साथ एक करार कर रहा हूँ।”+ 28 मूसा 40 दिन और 40 रात वहीं पहाड़ पर यहोवा के पास रहा। इतने दिन तक उसने न रोटी खायी और न पानी पीया।+ परमेश्वर ने दोनों पटियाओं पर अपने करार की बातें यानी दस आज्ञाएँ* लिखकर उसे दीं।+
29 फिर मूसा सीनै पहाड़ से नीचे उतरा और उसके हाथ में गवाही की दोनों पटियाएँ थीं।+ जब वह पहाड़ से उतरा तो उसके चेहरे से तेज चमक रहा था क्योंकि इतने दिन उसने परमेश्वर से बात की थी। मगर वह नहीं जानता था कि उसके चेहरे से तेज निकल रहा है। 30 जब हारून और सभी इसराएलियों ने मूसा को देखा तो उन्होंने गौर किया कि उसके चेहरे से तेज निकल रहा है और वे उसके नज़दीक जाने से डरने लगे।+
31 मगर मूसा ने उन्हें अपने पास बुलाया। तब हारून और मंडली के सभी प्रधान उसके पास आए और उसने उनसे बात की। 32 इसके बाद सभी इसराएली मूसा के पास आए। मूसा ने उन्हें वे सारी आज्ञाएँ सुनायीं जो यहोवा ने उसे सीनै पहाड़ पर दी थीं।+ 33 जब भी मूसा उनसे बात करता तो अपनी बात पूरी करने के बाद अपना चेहरा परदे से ढक लेता था।+ 34 लेकिन जब वह यहोवा से बात करने के लिए तंबू के अंदर जाता, तो चेहरे से परदा हटा लेता+ और फिर तंबू से बाहर आकर परमेश्वर की बतायी सारी आज्ञाएँ इसराएलियों को सुनाता।+ 35 जब मूसा इसराएलियों को आज्ञाएँ सुना रहा होता, तो वे देख सकते थे कि उसके चेहरे से कैसा तेज चमक रहा है। इसके बाद मूसा फिर से अपना चेहरा परदे से ढक लेता और तब तक ढके रहता जब तक कि वह परमेश्वर से* बात करने के लिए तंबू के अंदर नहीं जाता।+
35 बाद में मूसा ने इसराएलियों की पूरी मंडली को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “यहोवा ने हमें ये सारी आज्ञाएँ दी हैं जिनका हमें पालन करना है:+ 2 तुम छ: दिन तक अपना काम-काज कर सकते हो, मगर सातवें दिन को तुम पवित्र मानना। यह यहोवा को समर्पित सब्त का दिन होगा, पूरे विश्राम का दिन।+ अगर कोई सब्त के दिन काम करे, तो उसे मार डाला जाए।+ 3 सब्त के दिन तुम अपने रहने की जगह पर आग तक मत जलाना।”
4 फिर मूसा ने इसराएलियों की पूरी मंडली से कहा, “यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 5 ‘यहोवा के लिए लोगों से दान इकट्ठा करना।+ हर कोई जो दिल से देना चाहता है+ वह यहोवा के लिए दान में ये चीज़ें लाकर दे: सोना, चाँदी, ताँबा, 6 नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा, बढ़िया मलमल, बकरी के बाल,+ 7 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़े की खाल, सील मछली की खाल, बबूल की लकड़ी, 8 दीयों के लिए तेल, अभिषेक के तेल और सुगंधित धूप के लिए बलसाँ,+ 9 एपोद और सीनेबंद में जड़ने के लिए सुलेमानी पत्थर और दूसरे रत्न।+
10 तुम्हारे बीच जितने भी कुशल कारीगर हैं,*+ वे सब आएँ और यहोवा ने जो-जो चीज़ें बनाने की आज्ञा दी है, वह सब बनाएँ, 11 यानी पवित्र डेरा, उसका सारा सामान, उसे ढकने के लिए कपड़े, उसकी चिमटियाँ और चौखटें, चौखटों के डंडे, तंबू के खंभे और खाँचेदार चौकियाँ, 12 संदूक,+ उसका ढकना+ और उसके डंडे,+ संदूक के सामने लगाया जानेवाला परदा,+ 13 मेज़,+ उसके डंडे, उसकी सारी चीज़ें और नज़राने की रोटी,+ 14 रौशनी के लिए दीवट,+ उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, उसके दीए और उन्हें जलाने के लिए तेल,+ 15 धूप की वेदी+ और उसके डंडे, अभिषेक का तेल और सुगंधित धूप,+ डेरे के द्वार के लिए परदा, 16 होम-बलि की वेदी,+ उसके लिए ताँबे की जाली, वेदी के डंडे और वेदी के साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, हौद और उसकी टेक,+ 17 आँगन के घेरे के लिए कनातें,+ आँगन के लिए खंभे, खाँचेदार चौकियाँ और आँगन के द्वार के लिए परदा, 18 पवित्र डेरे के लिए खूँटियाँ और आँगन के लिए खूँटियाँ और रस्सियाँ,+ 19 पवित्र-स्थान में सेवा करनेवालों के लिए बढ़िया तरीके से बुनी हुई पोशाकें,+ हारून याजक के लिए पवित्र पोशाक+ और उसके बेटों के लिए पोशाकें जिन्हें पहनकर वे याजक का काम करेंगे।’”
20 फिर इसराएलियों की पूरी मंडली मूसा के सामने से लौट गयी। 21 फिर जिस-जिसके दिल ने उसे उभारा,+ जिसके मन* ने उसे उभारा, वह यहोवा के लिए दान ले आया। लोगों ने वे सारी चीज़ें दान कीं जो भेंट का तंबू बनाने, पवित्र पोशाकें तैयार करने और तंबू की सेवा में इस्तेमाल होतीं। 22 दान देनेवालों का ताँता लग गया, आदमी-औरत सब खुशी-खुशी अपनी चीज़ें लाकर देते रहे। उन्होंने अपने जड़ाऊ पिन, कान की बालियाँ, छल्ले, दूसरे गहने और सोने की तरह-तरह की चीज़ें लाकर दीं। उन सबने अपने सोने के चढ़ावे* यहोवा को अर्पित किए।+ 23 जिनके पास नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा, बढ़िया मलमल, बकरी के बाल, लाल रंग से रंगी हुई मेढ़े की खाल और सील मछली की खाल थी, उन सबने ये चीज़ें लाकर दीं। 24 जितनों के पास चाँदी और ताँबा था उन सबने वह लाकर यहोवा के लिए दान में दिया और जितनों के पास बबूल की लकड़ी थी उन्होंने भी लाकर पवित्र डेरे के लिए दे दी।
25 और जिन औरतों के हाथ में हुनर था,+ वे सब सूत कातकर नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा और बढ़िया मलमल तैयार करके ले आयीं। 26 और जिन हुनरमंद औरतों के दिल ने उन्हें उभारा, वे सब बकरी के बालों से धागे बनाकर ले आयीं।
27 इसराएलियों के प्रधान, एपोद और सीनेबंद में जड़ने के लिए सुलेमानी पत्थर और दूसरे रत्न ले आए+ 28 और बलसाँ और तेल भी ले आए, जो दीए जलाने और अभिषेक का तेल+ और सुगंधित धूप तैयार करने में इस्तेमाल होते।+ 29 सभी आदमी-औरत जिनके दिल ने उन्हें उभारा, उस काम के लिए कुछ-न-कुछ ले आए जिसे करने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के ज़रिए दी थी। इसराएलियों ने अपनी खुशी से ये सारी चीज़ें लाकर यहोवा के लिए अर्पित कीं।+
30 फिर मूसा ने इसराएलियों से कहा, “सुनो, यहोवा ने यहूदा गोत्र के बसलेल को चुना है, जो ऊरी का बेटा और हूर का पोता है।+ 31 परमेश्वर ने बसलेल को अपनी पवित्र शक्ति से भर दिया है और उसे हर तरह की कारीगरी में कुशल होने के लिए बुद्धि, समझ और ज्ञान दिया है 32 ताकि वह बेहतरीन नमूने तैयार करने में, सोने, चाँदी और ताँबे के काम में, 33 कीमती रत्नों को तराशने और जड़ने में और लकड़ी की हर तरह की खूबसूरत चीज़ें तैयार करने में माहिर हो जाए। 34 और परमेश्वर ने बसलेल को और दान गोत्र के ओहोलीआब को,+ जो अहीसामाक का बेटा है, दूसरों को काम सिखाने की भी काबिलीयत दी है। 35 परमेश्वर ने इन दोनों आदमियों को ऐसी काबिलीयत दी है*+ ताकि वे हर तरह की कारीगरी में, कढ़ाई के काम में, नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे और बढ़िया मलमल से बुनाई करने में और जुलाहे के काम में कुशल बन जाएँ। ये आदमी परमेश्वर का बताया हर तरह का नमूना तैयार करेंगे और हर तरह का काम करेंगे।”
36 “बसलेल, ओहोलीआब और उन सभी कुशल कारीगरों* के साथ मिलकर काम करेगा जिन्हें यहोवा ने बुद्धि और समझ दी है ताकि वे पवित्र जगह के सभी काम ठीक उसी तरह करें, जैसे यहोवा ने आज्ञा दी है।”+
2 फिर मूसा ने बसलेल, ओहोलीआब और सभी हुनरमंद आदमियों को बुलाया जिन्हें यहोवा ने इस काम के लिए बुद्धि दी थी।+ उनमें से हरेक के दिल ने उसे उभारा कि वह आगे बढ़कर इस काम में हाथ बँटाए।+ 3 फिर उन्होंने मूसा के पास आकर वह सारी चीज़ें लीं जो इसराएलियों ने पवित्र जगह के काम के लिए दान में दी थीं।+ इसके बाद भी लोग हर सुबह अपनी खुशी से चीज़ें ला-लाकर दान करते रहे।
4 फिर सभी हुनरमंद कारीगरों ने पवित्र काम शुरू कर दिया। और वे एक-एक करके मूसा के पास आने लगे और 5 उससे कहने लगे, “लोग दान में चीज़ें लाते ही जा रहे हैं। यहोवा ने जिस काम की आज्ञा दी है, उसके लिए अब ज़रूरत से ज़्यादा सामान इकट्ठा हो गया है।” 6 तब मूसा ने आज्ञा दी कि पूरी छावनी में ऐलान किया जाए कि अब से कोई भी आदमी या औरत पवित्र डेरे के लिए और दान न लाए। इस तरह लोगों को और चीज़ें लाने से मना किया गया। 7 पवित्र डेरे से जुड़े सभी कामों के लिए काफी सामान इकट्ठा हो गया, यहाँ तक कि ज़रूरत से ज़्यादा हो गया था।
8 सब हुनरमंद कारीगरों+ ने बटे हुए बढ़िया मलमल, नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे से डेरे+ के लिए दस कपड़े बनाए। उसने* इन कपड़ों पर कढ़ाई करके करूब बनाए।+ 9 हर कपड़ा 28 हाथ* लंबा और 4 हाथ चौड़ा था। दसों कपड़े एक ही नाप के थे। 10 फिर उसने इनमें से पाँच कपड़ों को एक-दूसरे से जोड़ दिया और बाकी पाँच को भी एक-दूसरे से जोड़ दिया। 11 इसके बाद उसने पाँच कपड़ों के एक भाग के उस छोर पर नीले धागे के फंदे बनाए, जहाँ दूसरा भाग उससे जोड़ा जाता। उसने दूसरे भाग के उस छोर पर भी फंदे बनाए, जहाँ वह पहले भाग से जोड़ा जाता। 12 उसने दोनों भागों के छोर पर पचास-पचास फंदे बनाए ताकि ये फंदे एक-दूसरे के आमने-सामने हों और दोनों भागों को जोड़ सकें। 13 आखिर में उसने सोने की 50 चिमटियाँ बनायीं और उनसे दोनों भागों को जोड़ दिया। इस तरह एक बड़ा कपड़ा तैयार हो गया।
14 फिर उसने पवित्र डेरे को ढकने के लिए बकरी के बालों से बुनकर कपड़े बनाए। उसने इस तरह के 11 कपड़े बनाए।+ 15 हर कपड़ा 30 हाथ लंबा और 4 हाथ चौड़ा था। ये 11 कपड़े एक ही नाप के थे। 16 उसने इनमें से पाँच कपड़ों को एक-दूसरे से जोड़ दिया और बाकी छ: को भी एक-दूसरे से जोड़ दिया। 17 उसने पाँच कपड़ों से बने भाग के छोर पर 50 फंदे बनाए और उसी तरह छ: कपड़ों से बने भाग के छोर पर भी 50 फंदे बनाए ताकि दोनों भाग एक-दूसरे से जुड़ जाएँ। 18 उसने ताँबे की 50 चिमटियाँ बनायीं ताकि उनसे दोनों भागों को जोड़कर एक बड़ा कपड़ा तैयार हो जाए।
19 उसने डेरे को ढकने के लिए लाल रंग से रंगी हुई मेढ़े की खाल से एक चादर बनायी और उसके ऊपर डालने के लिए दूसरी चादर सील मछली की खाल से बनायी।+
20 फिर उसने बबूल की लकड़ी+ से डेरे के लिए ऐसी चौखटें बनायीं जो सीधी खड़ी की जा सकती थीं।+ 21 हर चौखट की ऊँचाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी। 22 हर चौखट के नीचे दो चूलें बनायी गयीं* जो एक सीध में थीं। उसने डेरे की सभी चौखटें इसी तरह बनायीं। 23 उसने डेरे के दक्षिणी हिस्से के लिए 20 चौखटें बनायीं। यह हिस्सा दक्षिण की तरफ था। 24 फिर उसने इन 20 चौखटों को खड़ा करने के लिए चाँदी की 40 खाँचेदार चौकियाँ बनायीं जिनमें चूलों को बिठाया जाना था। हर चौखट की दो चूलों के लिए दो चौकियाँ।+ 25 डेरे के दूसरी तरफ यानी उत्तरी हिस्से के लिए उसने 20 चौखटें बनायीं 26 और उन्हें खड़ा करने के लिए चाँदी की 40 खाँचेदार चौकियाँ बनायीं। हर चौखट के नीचे दो चौकियाँ।
27 डेरे के पीछे के हिस्से यानी पश्चिमी हिस्से के लिए उसने छ: चौखटें बनायीं।+ 28 उसी हिस्से में उसने तिकोने आकार में दो चौखटें बनायीं जो डेरे के लिए कोने के खंभों का काम करतीं। 29 कोने की हर चौखट के दोनों भाग नीचे से जाकर ऊपरी सिरे पर एक-दूसरे से मिल गए और वहाँ पहले कड़े पर जुड़ गए। उसने दोनों कोनों के लिए ऐसी ही चौखटें बनायीं। 30 इस तरह कुल आठ चौखटें और उन्हें खड़ा करने के लिए चाँदी की 16 खाँचेदार चौकियाँ बनायीं। हर चौखट के नीचे दो चौकियाँ।
31 फिर उसने डेरे की चौखटों को जोड़ने के लिए बबूल की लकड़ी के डंडे बनाए। डेरे के एक तरफ की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे,+ 32 दूसरी तरफ की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे और पीछे यानी पश्चिमी हिस्से की चौखटों को जोड़ने के लिए पाँच डंडे। 33 उसने बीचवाला डंडा इतना लंबा बनाया कि वह चौखटों के बीच में से होकर उन्हें एक कोने से दूसरे कोने तक जोड़े। 34 उसने चौखटों को और उन्हें जोड़नेवाले डंडों को सोने से मढ़ा। फिर उसने सोने के कड़े बनाए ताकि उनके अंदर डंडे डालकर चौखटों को जोड़ा जाए।+
35 फिर उसने नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से एक परदा+ बनाया और उस पर कढ़ाई करके करूब बनाए।+ 36 फिर उसने यह परदा लटकाने के लिए बबूल की लकड़ी से चार खंभे बनाए और उन पर सोना मढ़ा। उसने खंभों के लिए सोने के अंकड़े और चाँदी की चार खाँचेदार चौकियाँ ढालकर बनायीं। 37 फिर उसने तंबू के द्वार के लिए भी एक परदा बनाया। यह परदा उसने नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से बुनकर तैयार किया।+ 38 उसने तंबू के द्वार के लिए पाँच खंभे और उनके अंकड़े बनाए। उसने खंभों के ऊपरी सिरों और उनके छल्लों पर सोना मढ़ा, मगर उनकी पाँच खाँचेदार चौकियाँ ताँबे की बनायीं।
37 फिर बसलेल+ ने बबूल की लकड़ी से एक संदूक+ बनाया। उसकी लंबाई ढाई हाथ,* चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।+ 2 उसने संदूक पर अंदर और बाहर से शुद्ध सोना मढ़ा और चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया।+ 3 फिर उसने सोने के चार कड़े ढालकर बनाए और उन्हें संदूक के चारों पायों के ऊपर लगाया। संदूक के एक तरफ दो कड़े और दूसरी तरफ दो कड़े। 4 इसके बाद उसने बबूल की लकड़ी से डंडे बनाए और उन पर सोना मढ़ा।+ 5 उसने ये डंडे संदूक के दोनों तरफ लगे कड़ों में डाले ताकि उनके सहारे संदूक उठाया जा सके।+
6 उसने संदूक के लिए शुद्ध सोने से एक ढकना तैयार किया।+ उसकी लंबाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।+ 7 फिर उसने हथौड़े से सोना पीटकर उससे दो करूब+ बनाए और उन्हें संदूक के ढकने के दोनों किनारों पर लगाया।+ 8 एक किनारे पर एक करूब और दूसरे किनारे पर दूसरा करूब था। इस तरह उसने ढकने के दोनों किनारों पर करूब बनाए। 9 करूबों के दोनों पंख ऊपर की तरफ फैले हुए थे और संदूक के ढकने को ढके हुए थे।+ दोनों करूब आमने-सामने थे और उनके मुँह ढकने की तरफ नीचे झुके हुए थे।+
10 फिर उसने बबूल की लकड़ी से एक मेज़ बनायी।+ उसकी लंबाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।+ 11 उसने मेज़ को शुद्ध सोने से मढ़ा और उसके चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया। 12 फिर उस किनारे के साथ-साथ मेज़ के चारों तरफ एक पट्टी भी बनायी। उस पट्टी की चौड़ाई चार अंगुल* थी। पट्टी के नीचे सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया। 13 मेज़ के लिए उसने सोने के चार कड़े ढालकर बनाए और उन्हें मेज़ के चारों कोनों पर उस जगह लगाया जहाँ उसके चार पाए जुड़े हुए थे। 14 ये कड़े मेज़ की पट्टी के बिलकुल पास लगाए गए ताकि उनके अंदर वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे मेज़ उठायी जाती। 15 फिर उसने बबूल की लकड़ी से वे डंडे बनाए जिनके सहारे मेज़ उठायी जाती और उन पर सोना मढ़ा। 16 इसके बाद उसने मेज़ के लिए शुद्ध सोने से ये बरतन बनाए: थालियाँ, प्याले, अर्घ चढ़ाने के कटोरे और सुराहियाँ।+
17 फिर उसने शुद्ध सोने की एक दीवट बनायी।+ उसने सोने के एक ही टुकड़े को पीटकर पूरी दीवट यानी उसका पाया, उसकी डंडी, फूल, कलियाँ और पंखुड़ियाँ बनायीं।+ 18 दीवट की डंडी पर छ: डालियाँ थीं, डंडी के एक तरफ तीन और दूसरी तरफ तीन। 19 हर डाली पर बादाम के फूल जैसे तीन फूलों की बनावट थी। फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी की रचना थी। इस तरह की रचनाएँ दीवट की डंडी से निकलनेवाली छ: की छ: डालियों पर थीं। 20 दीवट की डंडी पर बादाम के फूल जैसे चार फूलों की बनावट थी और फूलों के बीच एक कली और एक पंखुड़ी थी। 21 दीवट की डंडी के जिस हिस्से से डालियों का पहला जोड़ा निकला उसके नीचे एक कली जैसी रचना थी। इसी तरह, जहाँ से डालियों का दूसरा और तीसरा जोड़ा निकला, उसके नीचे भी एक-एक कली जैसी रचना थी। दीवट की डंडी से निकलनेवाली छ: डालियों के नीचे ये रचनाएँ थीं। 22 शुद्ध सोने के एक ही टुकड़े को हथौड़े से पीटकर कलियाँ, डालियाँ और पूरी दीवट बनायी गयी। 23 उसने दीवट के लिए शुद्ध सोने से सात दीए,+ चिमटे और आग उठाने के करछे बनाए। 24 उसने दीवट और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें एक तोड़े* शुद्ध सोने से बनायीं।
25 फिर उसने बबूल की लकड़ी से धूप की वेदी+ बनायी। यह वेदी चौकोर थी, लंबाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ। इसकी ऊँचाई दो हाथ थी। वेदी के कोनों को उभरा हुआ बनाकर सींग का आकार दिया गया।+ 26 उसने पूरी वेदी को यानी उसके ऊपरी हिस्से, उसके बाज़ुओं और सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ा। और वेदी के चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा बनाया। 27 उसने वेदी पर आमने-सामने दोनों बाज़ुओं में, नक्काशीदार किनारे के नीचे सोने के दो-दो कड़े लगाए ताकि उनमें वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे वेदी उठायी जाती। 28 फिर उसने बबूल की लकड़ी से डंडे बनाए और उन पर सोना मढ़ा। 29 उसने अभिषेक का पवित्र तेल+ और शुद्ध, सुगंधित धूप भी तैयार किया,+ जिन्हें मसालों के उम्दा मिश्रण से बनाया गया था।*
38 उसने बबूल की लकड़ी से होम-बलि की वेदी बनायी। यह वेदी चौकोर थी, लंबाई पाँच हाथ* और चौड़ाई पाँच हाथ। उसकी ऊँचाई तीन हाथ थी।+ 2 उसने वेदी के चारों कोनों पर सींग बनाए। उसने वेदी के चारों कोनों को उभरा हुआ बनाकर सींगों का आकार दिया। फिर उसने वेदी पर ताँबा मढ़ा।+ 3 उसने वेदी के साथ इस्तेमाल होनेवाली ये सारी चीज़ें बनायीं: बाल्टियाँ, बेलचे, कटोरे, काँटे और आग उठाने के करछे। उसने ये सारी चीज़ें ताँबे से बनायीं। 4 उसने वेदी के लिए ताँबे की एक जाली भी बनायी और उसे अंदर लगाया। इसे वेदी के किनारे से थोड़ा नीचे यानी वेदी के बीच में लगाया। 5 उसने चार कड़े ढालकर बनाए और उन्हें वेदी के चारों कोनों पर, जाली के पास लगाया ताकि उनके अंदर वे डंडे डाले जाएँ जिनके सहारे वेदी उठायी जाती। 6 इसके बाद उसने बबूल की लकड़ी से डंडे बनाए और उन पर ताँबा मढ़ा। 7 उसने डंडों को वेदी के दोनों तरफ के कड़ों के अंदर डाला ताकि उनके सहारे वेदी उठायी जाए। उसने यह वेदी तख्तों को जोड़कर एक पेटी के आकार में बनायी और उसे ऊपर और नीचे खुला बनाया।
8 फिर उसने ताँबे का हौद+ और उसके लिए ताँबे की टेक बनायी। इन्हें बनाने के लिए उसने उन औरतों के आईने* इस्तेमाल किए जो भेंट के तंबू के द्वार पर ठहराए गए इंतज़ाम के मुताबिक सेवा करती थीं।
9 फिर उसने पवित्र डेरे के लिए एक आँगन बनाया।+ उसने आँगन के चारों तरफ घेरा बनाने के लिए बटे हुए बढ़िया मलमल से कनातें तैयार कीं। दक्षिण में कनातों की कुल लंबाई 100 हाथ थी।+ 10 कनातों को लगाने के लिए 20 खंभे और ताँबे की 20 खाँचेदार चौकियाँ थीं। इन खंभों के अंकड़े और उनके छल्ले चाँदी के थे। 11 उत्तर की कनातों की कुल लंबाई भी 100 हाथ थी। उन्हें लगाने के लिए 20 खंभे और ताँबे की 20 खाँचेदार चौकियाँ थीं। इन खंभों के अंकड़े और उनके छल्ले चाँदी के थे। 12 मगर पश्चिम की कनातों की कुल लंबाई 50 हाथ थी। इन कनातों को लगाने के लिए दस खंभे और दस खाँचेदार चौकियाँ थीं। इन खंभों के अंकड़े और उनके छल्ले चाँदी के थे। 13 पूरब यानी जहाँ सूरज उगता है, वहाँ की चौड़ाई 50 हाथ थी। 14 वहाँ आँगन के द्वार के दायीं तरफ की कनातें 15 हाथ लंबी थीं। उनके लिए तीन खंभे और तीन खाँचेदार चौकियाँ थीं। 15 आँगन के द्वार के बायीं तरफ की कनातें भी 15 हाथ लंबी थीं। उनके लिए तीन खंभे और तीन खाँचेदार चौकियाँ थीं। 16 आँगन के घेरे के लिए सारी कनातें बटे हुए बढ़िया मलमल से तैयार की गयी थीं। 17 इन खंभों की खाँचेदार चौकियाँ ताँबे की थीं, खंभों के अंकड़े और छल्ले चाँदी के थे। इन खंभों के ऊपरी सिरों पर चाँदी मढ़ी गयी और सभी खंभों के जोड़ चाँदी के बनाए गए।+
18 आँगन के द्वार का परदा नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से बुनकर तैयार किया गया। इस परदे की लंबाई 20 हाथ थी और ऊँचाई आँगन के घेरे की कनातों की तरह 5 हाथ थी।+ 19 इसके लिए ताँबे के चार खंभे और चार खाँचेदार चौकियाँ थीं। इन खंभों के अंकड़े और छल्ले चाँदी के थे और खंभों के ऊपरी सिरे चाँदी से मढ़े हुए थे। 20 डेरे की सारी खूँटियाँ और पूरे आँगन की खूँटियाँ ताँबे की थीं।+
21 मूसा की आज्ञा के मुताबिक उन सारी चीज़ों की सूची तैयार की गयी जो पवित्र डेरा यानी गवाही के संदूक का डेरा+ बनाने में इस्तेमाल हुई थीं। यह ज़िम्मेदारी लेवियों को दी गयी+ और उन्होंने हारून याजक के बेटे ईतामार के निर्देशन में यह सूची तैयार की जो आगे दी गयी है।+ 22 यहूदा गोत्र के बसलेल+ ने, जो ऊरी का बेटा और हूर का पोता था, वह सारा काम किया जिसकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी। 23 और उसके साथ दान गोत्र का ओहोलीआब+ था जो अहीसामाक का बेटा था। ओहोलीआब हाथ की कारीगरी और कढ़ाई के काम में काफी हुनरमंद था और नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बढ़िया मलमल से बुनाई करने में भी कुशल था।
24 पवित्र-स्थान के काम में 29 तोड़े* और 730 शेकेल* सोना इस्तेमाल हुआ था। यह माप पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक था। यह सारा सोना उस सोने के बराबर था जो हिलाए जानेवाले चढ़ावे के तौर पर अर्पित किया गया था।+ 25 और जितने इसराएली आदमियों के नाम लिखे गए थे उनकी दी हुई कुल चाँदी, पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक 100 तोड़े और 1,775 शेकेल थी। 26 हर आदमी ने पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक आधा शेकेल चाँदी लाकर दी थी। कुल मिलाकर 6,03,550 आदमियों के नाम लिखे गए थे जिनकी उम्र 20 या उससे ज़्यादा थी।+
27 पवित्र-स्थान और परदे के खंभों के लिए जो खाँचेदार चौकियाँ ढालकर बनायी गयी थीं उनके लिए 100 तोड़े चाँदी इस्तेमाल हुई। 100 खाँचेदार चौकियों के लिए 100 तोड़े चाँदी, यानी एक चौकी के लिए एक तोड़ा चाँदी।+ 28 उसने 1,775 शेकेल चाँदी खंभों के अंकड़े बनाने, खंभों के ऊपरी सिरों को मढ़ने और खंभों के लिए जोड़ तैयार करने में इस्तेमाल की।
29 जो ताँबा चढ़ावे* में दिया गया था वह 70 तोड़े और 2,400 शेकेल ताँबा था। 30 इस ताँबे से उसने ये सारी चीज़ें बनायीं: भेंट के तंबू के द्वार के लिए खाँचेदार चौकियाँ, ताँबे की वेदी, उसकी जाली और वेदी के साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, 31 पूरे आँगन के लिए खाँचेदार चौकियाँ, आँगन के द्वार के लिए खाँचेदार चौकियाँ, डेरे की सारी खूँटियाँ और आँगन की सारी खूँटियाँ।+
39 फिर उन्होंने पवित्र-स्थान में सेवा करनेवालों के लिए नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे+ से बढ़िया बुनाई करके पोशाकें तैयार कीं। उन्होंने हारून के लिए पवित्र पोशाक तैयार की,+ ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
2 उसने सोने, नीले धागे, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागे और बटे हुए बढ़िया मलमल से एपोद तैयार किया।+ 3 उन्होंने सोने के पत्तरों को पीटकर उनकी पतली-पतली पत्तियाँ बनायीं। फिर उनके बारीक तार काटे ताकि ये तार नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे के साथ इस्तेमाल किए जा सकें। उन्होंने इनसे बढ़िया मलमल पर कढ़ाई की। 4 उन्होंने एपोद के दोनों हिस्सों को बनाया और सामनेवाले हिस्से को पीछेवाले हिस्से से कंधे की जगह पर जोड़ दिया। 5 एपोद को कसकर बाँधने के लिए उस पर एक बुना हुआ कमरबंद लगाया गया।+ कमरबंद भी इन चीज़ों से बनाया गया: सोना, नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा और बटा हुआ बढ़िया मलमल। यह सब ठीक वैसा ही बनाया गया, जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
6 फिर उन्होंने सुलेमानी पत्थर लिए और उन पर इसराएल के बेटों के नाम इस तरह खोदकर लिखे जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है। और उन पत्थरों को उन्होंने सोने के खाँचों में जड़ दिया।+ 7 उसने उन्हें एपोद के कंधेवाले हिस्सों पर लगाया ताकि ये इसराएल के बेटों के लिए यादगार के पत्थर बन जाएँ,+ ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 8 फिर उसने कढ़ाई का काम करवाकर सीनाबंद तैयार किया।+ एपोद की तरह सीनाबंद भी इन चीज़ों से तैयार किया गया: सोना, नीला धागा, बैंजनी ऊन, सुर्ख लाल धागा और बटा हुआ बढ़िया मलमल।+ 9 उन्होंने सीनाबंद इस तरह बनाया कि बीच से मोड़ने पर वह चौकोर हो जाता, एक बित्ता* लंबा और एक बित्ता चौड़ा। 10 उन्होंने सीनेबंद में चार कतारों में रत्न जड़े। पहली कतार में माणिक, पुखराज और पन्ना। 11 दूसरी कतार में फिरोज़ा, नीलम और यशब। 12 तीसरी कतार में लशम,* हकीक और कटैला। 13 चौथी कतार में करकेटक, सुलेमानी और मरगज। ये रत्न सोने के खाँचों में बिठाए गए। 14 इन 12 रत्नों पर इसराएल के 12 बेटों के नाम ऐसे खोदकर लिखे गए जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है। हर रत्न पर एक बेटे का नाम था जो एक गोत्र को दर्शाता था।
15 इसके बाद उन्होंने सीनेबंद के लिए शुद्ध सोने की बटी हुई ज़ंजीरें बनायीं जो दिखने में डोरियों जैसी थीं।+ 16 फिर उन्होंने सोने के दो खाँचे और सोने के दो छल्ले बनाए और दोनों छल्लों को सीनेबंद के दो कोनों पर लगाया। 17 फिर उन्होंने सोने की दोनों डोरियों को सीनेबंद के कोनों पर लगे छल्लों में डाला। 18 फिर उन्होंने दो डोरियों के दोनों छोर को दो खाँचों के अंदर से निकालकर उन्हें एपोद के कंधेवाले हिस्सों पर, सामने की तरफ लगाया। 19 इसके बाद उन्होंने सोने के दो छल्ले बनाए और उन्हें सीनेबंद के निचले दो कोनों पर अंदर की तरफ लगाया, यानी सीनेबंद के उस हिस्से में जो एपोद की तरफ था।+ 20 उन्होंने सोने के दो और छल्ले बनाए और उन्हें एपोद के सामने की तरफ, कंधेवाले हिस्सों के नीचे, जहाँ वह जुड़ता है यानी बुने हुए कमरबंद के ठीक ऊपर लगाया। 21 आखिर में उन्होंने एक नीली डोरी से सीनेबंद के छल्लों को एपोद के छल्लों से जोड़ दिया जिससे सीनाबंद एपोद में कमरबंद के ऊपर अपनी जगह पर बना रहे। यह सब उन्होंने ठीक वैसा ही बनाया, जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
22 फिर उसने एपोद के नीचे पहनने के लिए एक जुलाहे से बिन आस्तीन का बागा बुनवाया। यह बागा सिर्फ नीले धागे से बनाया गया।+ 23 बागे में एक गला बनाया गया, ठीक जैसे बख्तर में होता है। गले के चारों तरफ एक किनारा बनाया गया ताकि यह फट न जाए। 24 फिर उन्होंने बागे के नीचे के घेरे में अनार के आकार में फुँदने बनाए। उन्होंने ये फुँदने नीले धागे, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागे से बनाए जो आपस में बटे हुए थे। 25 फिर उन्होंने शुद्ध सोने से घंटियाँ बनायीं और उन्हें बागे के पूरे घेरे में अनारों के बीच-बीच में लगाया। 26 उन्होंने बिन आस्तीन के इस बागे के पूरे घेरे में एक घंटी के बाद एक अनार, फिर एक घंटी फिर एक अनार लगाया। इस तरह याजक के नाते सेवा करनेवाले के लिए यह बागा ठीक वैसा ही बनाया गया, जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
27 उन्होंने हारून और उसके बेटों के लिए जुलाहे के बुने हुए बढ़िया मलमल से कुरते बनाए+ 28 और उनके लिए बढ़िया मलमल की पगड़ी,+ बढ़िया मलमल के खूबसूरत, शानदार साफे+ और बटे हुए बढ़िया मलमल के जाँघिये बनाए+ 29 और बटे हुए बढ़िया मलमल से, जिस पर नीला धागा, बैंजनी ऊन और सुर्ख लाल धागा बुना हुआ था, एक कमर-पट्टी बनायी। यह सब ठीक वैसा ही बनाया गया, जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
30 आखिर में उन्होंने शुद्ध सोने की एक चमचमाती पट्टी बनायी जो समर्पण की पवित्र निशानी है* और उस पर ये शब्द खोदकर लिखे: “यहोवा पवित्र है।” ये शब्द उन्होंने उसी तरह खुदवाए जैसे मुहर पर खुदाई की जाती है।+ 31 उस पट्टी पर उन्होंने एक डोरी लगायी जो नीले धागे से बनी थी ताकि वह पट्टी पगड़ी पर बाँधी जा सके। यह सब ठीक वैसा ही किया गया, जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
32 इस तरह पवित्र डेरे का सारा काम पूरा हो गया। इसराएलियों ने भेंट के तंबू के लिए हर वह चीज़ बनायी जिसके बारे में यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।+ उन्होंने सबकुछ वैसा ही बनाया जैसा उन्हें बताया गया था।
33 फिर वे पवित्र डेरे के सभी हिस्से और उसकी सारी चीज़ें मूसा के पास ले आए:+ तंबू की चिमटियाँ,+ उसकी चौखटें,+ डंडे,+ खंभे, खाँचेदार चौकियाँ,+ 34 तंबू को ढकने के लिए लाल रंग से रंगी मेढ़े की खाल की चादर+ और सील मछली की खाल से बनी चादर, संदूक के सामने का परदा,+ 35 गवाही का संदूक, उसके डंडे+ और उसका ढकना,+ 36 मेज़ और उसकी सारी चीज़ें,+ नज़राने की रोटी, 37 शुद्ध सोने की दीवट, उस पर कतार में लगाने के लिए दीए,+ दीवट के साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें+ और दीए जलाने के लिए तेल,+ 38 सोने की वेदी,+ अभिषेक का तेल,+ सुगंधित धूप,+ तंबू के द्वार का परदा,+ 39 ताँबे की वेदी,+ उसकी ताँबे की जाली, उसके डंडे,+ उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें,+ हौद और उसकी टेक,+ 40 आँगन की कनातें, उसके खंभे और उनकी खाँचेदार चौकियाँ,+ आँगन के द्वार का परदा,+ कनातें लगाने के लिए रस्सियाँ और खूँटियाँ,+ पवित्र डेरे यानी भेंट के तंबू में सेवा के लिए इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें, 41 पवित्र-स्थान में सेवा करनेवालों के लिए बढ़िया तरीके से बुनी हुई पोशाकें, हारून याजक के लिए पवित्र पोशाक+ और उसके बेटों के लिए पोशाकें जिन्हें पहनकर वे याजकों का काम करते।
42 यहोवा ने मूसा को जो-जो आज्ञा दी थी, ठीक उसी के मुताबिक इसराएलियों ने सारा काम किया।+ 43 जब मूसा ने उनके सारे काम का मुआयना किया तो उसने देखा कि उन्होंने हर काम ठीक वैसा ही किया था जैसा यहोवा ने आज्ञा दी थी। और मूसा ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
40 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “तू पवित्र डेरे को, जो भेंट का तंबू है, पहले महीने के पहले दिन खड़ा करना।+ 3 उसके अंदर गवाही का संदूक रखना+ और सामने परदा लगाना ताकि संदूक दिखायी न दे।+ 4 फिर मेज़ लाकर डेरे के अंदर रखना+ और उस पर जो चीज़ें होनी चाहिए, उन्हें तरतीब से रखना। और दीवट लाकर रखना+ और उसके दीए जलाना।+ 5 इसके बाद धूप जलाने के लिए बनायी गयी सोने की वेदी लाना+ और उसे गवाही के संदूक के सामने रखना और डेरे के द्वार पर परदा लगाना।+
6 तू होम-बलि की वेदी+ को डेरे यानी भेंट के तंबू के द्वार के सामने रखना 7 और हौद को भेंट के तंबू और वेदी के बीच रखना और उसमें पानी भरना।+ 8 फिर तंबू के चारों तरफ कनातों से आँगन तैयार करना+ और आँगन के द्वार पर परदा+ लगाना। 9 इसके बाद तू अभिषेक का तेल+ लेना और डेरे और उसके अंदर रखी सारी चीज़ों का अभिषेक करना+ और उन्हें सेवा में इस्तेमाल के लिए अलग ठहराना ताकि इससे डेरा पवित्र हो जाए। 10 तू होम-बलि की वेदी और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ों का भी अभिषेक करके उन्हें पवित्र ठहराना ताकि इससे वेदी बहुत पवित्र हो जाए।+ 11 तू हौद और उसकी टेक का अभिषेक करके उन्हें पवित्र ठहराना।
12 फिर हारून और उसके बेटों को भेंट के तंबू के द्वार के पास लाना और उन्हें नहाने की आज्ञा देना।+ 13 तू हारून को पवित्र पोशाक पहनाना+ और उसका अभिषेक करके+ उसे पवित्र ठहराना ताकि वह याजक के नाते मेरी सेवा करे। 14 इसके बाद तू उसके बेटों को सामने लाना और उन्हें कुरते पहनाना।+ 15 तू उनका भी अभिषेक करना जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करेगा।+ और वे याजकों के नाते मेरी सेवा करेंगे। उनका अभिषेक होने के बाद से याजकपद पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमेशा के लिए उन्हीं का रहेगा।”+
16 मूसा ने यह सारा काम ठीक वैसा ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।+ उसने ठीक वैसा ही किया।
17 दूसरे साल के पहले महीने के पहले दिन पवित्र डेरा खड़ा किया गया।+ 18 मूसा ने डेरा इस तरह खड़ा किया: उसने ज़मीन पर खाँचेदार चौकियाँ रखीं,+ उन पर चौखटें खड़ी कीं,+ चौखटों में डंडे+ लगाए और खंभों को खड़ा किया। 19 उसने डेरे को कपड़े से ढका+ और उस पर चादरें डालीं,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
20 इसके बाद उसने गवाही की पटियाएँ लीं+ और उन्हें संदूक के अंदर रखा,+ संदूक में उसके डंडे लगाए+ और उसके ऊपर ढकना+ रख दिया।+ 21 वह गवाही के संदूक को डेरे के अंदर ले गया और उसने सामने परदा लगाया+ ताकि संदूक दिखायी न दे,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
22 इसके बाद उसने भेंट के तंबू में, परदे के इस पार उत्तर की तरफ मेज़ रखी+ 23 और मेज़ पर यहोवा के सामने रोटियों का ढेर तरतीब से रखा,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
24 मूसा ने तंबू के अंदर मेज़ के सामने यानी दक्षिण की तरफ दीवट+ रखा 25 और उसके दीए यहोवा के सामने जलाए,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
26 इसके बाद उसने भेंट के तंबू में परदे के सामने सोने की वेदी रखी+ 27 ताकि उस पर सुगंधित धूप+ जलाया जाए और उससे धुआँ उठे,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
28 फिर उसने डेरे के द्वार पर परदा लगाया।+
29 उसने डेरे यानी भेंट के तंबू के द्वार पर होम-बलि की वेदी रखी+ ताकि उस पर होम-बलि+ और अनाज का चढ़ावा चढ़ाए, ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।
30 फिर उसने भेंट के तंबू और वेदी के बीच हौद रखा और हाथ-पैर धोने के लिए उसमें पानी भरा।+ 31 मूसा, हारून और उसके बेटों ने हौद के पानी से वहाँ अपने हाथ-पैर धोए। 32 जब भी वे भेंट के तंबू के अंदर या वेदी के पास जाते तो पहले अपने हाथ-पैर धोते,+ ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
33 आखिर में उसने डेरे और वेदी के चारों तरफ का आँगन तैयार किया+ और आँगन के द्वार पर परदा लगाया।+
इस तरह मूसा ने सारा काम पूरा किया। 34 इसके बाद बादल भेंट के तंबू पर छाने लगा और पवित्र डेरा यहोवा की महिमा से भर गया।+ 35 मूसा भेंट के तंबू के अंदर नहीं जा पाया क्योंकि बादल उस पर छाया रहा और पवित्र डेरा यहोवा की महिमा से भर गया।+
36 इसराएलियों के पूरे सफर में जब-जब बादल डेरे से ऊपर उठता तो वे अपना पड़ाव उठाकर आगे बढ़ते थे।+ 37 लेकिन जब बादल डेरे के ऊपर छाया रहता तो वे अपना पड़ाव डाले रहते। वे तब तक आगे नहीं बढ़ते जब तक कि बादल नहीं उठता।+ 38 दिन के वक्त यहोवा का बादल डेरे के ऊपर छाया रहता और रात को उसके ऊपर आग रहती थी। यह नज़ारा इसराएल के सारे घराने को पूरे सफर के दौरान दिखायी देता रहा।+
शा., “याकूब की जाँघ से निकले थे।”
शा., “इसराएल के बेटों।”
या “जल्लाद।”
या “संदूक; पेटी।”
मतलब “निकाला गया,” यानी पानी में से बचाया गया।
या “ताकतवर हो रहा था।”
या “का बचाव किया।”
यानी यित्रो।
मतलब “वहाँ रहनेवाला एक परदेसी।”
शा., “बहुत दिनों।”
शा., “निशानी।”
या “उपासना।”
या “बनने का चुनाव करता हूँ।” या “मैं जो साबित होऊँगा वह साबित होऊँगा।” अति. क4 देखें।
या “होने देता है?”
शा., “तेरे मुँह के साथ रहूँगा।”
या “तू उसके लिए परमेश्वर का भेजा हुआ ठहरेगा।”
या “चकमक की छुरी ली।”
ये अधिकारी, इसराएलियों में से ही चुने गए थे।
या “आराम कर रहे हैं।”
या “आराम कर रहे हो, आराम!”
या “अपने शक्तिशाली हाथ से।”
शा., “मैंने हाथ उठाकर अब्राहम, इसहाक और याकूब से कहा था।”
शा., “को उनके सेना-दलों के मुताबिक।”
शा., “अपनी सेनाओं।”
या “जादुई कला।”
यानी नील नदी से निकली नहरें।
या “कटोरों।”
या “कुटकियों।” ये मच्छर जैसे कीड़े हैं जो इंसानों और जानवरों को काटते हैं।
शा., “उँगली।”
यानी मिस्री।
या “खिलवाड़।”
शायद यहाँ तेज़ बिजली की बात की गयी है।
या “यह देर से पकनेवाली फसल थी।”
शा., “हमारे लिए फंदा बना रहेगा?”
ज़ाहिर है कि यह मूसा है।
या “ले जाने देगा।”
शा., “एक खुर।”
शा., “हाथ की चक्की।”
शा., “दो शामों के बीच।” ज़ाहिर है, सूरज ढलने और अँधेरा होने के बीच का वक्त।
शा., “अपनी कमर कसकर।”
पुराने आटे की बची हुई लोई जो खमीरी होती है। नया आटा गूँधते वक्त उसे खमीरा बनाने के लिए ऐसी लोई मिलायी जाती थी।
शा., “सेनाओं।”
यानी भेड़ या बकरी के बच्चे।
शा., “नाश।”
शा., “कुंड-घर।”
या “कटोरों।”
यानी गैर-इसराएलियों की एक मिली-जुली भीड़ जिसमें मिस्री भी थे।
शा., “सेनाएँ।”
शा., “सेनाओं।”
या “पवित्र मानना।”
अति. ख15 देखें।
शा., “तुम्हारी आँखों के बीच।”
शा., “तुम्हारी आँखों के बीच।”
शा., “ऊँचे हाथ के साथ।”
यानी सुबह करीब 2 से 6 बजे तक।
“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।
शेख, गोत्र का प्रधान था।
या “तानाशाह।”
मतलब “कड़वाहट।”
शा., “दो शामों के बीच।”
करीब 2.2 ली. अति. ख14 देखें।
या “सब्त मनाया जाएगा।”
या “विश्राम किया।”
मुमकिन है कि यह शब्द इन इब्रानी शब्दों से निकला था, “यह क्या है?”
शा., “गवाही।” ज़ाहिर है कि यह एक संदूक था जिसमें ज़रूरी दस्तावेज़ सँभालकर रखे जाते थे।
एक एपा 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
मतलब “परीक्षा लेना; आज़माइश।”
मतलब “झगड़ा करना।”
शा., “आकाश के नीचे।”
या “यादगार बन जाए।”
मतलब “यहोवा मेरी निशानी का खंभा है।”
मतलब “वहाँ रहनेवाला एक परदेसी।”
मतलब “मेरा परमेश्वर मददगार है।”
या “अनमोल जायदाद।”
शायद तीर से भेदकर।
शा., “किसी औरत के पास न जाए।”
शा., “उन पर टूट न पड़े।”
या “तुम मेरे खिलाफ जाकर किसी और ईश्वर को न मानना।”
या “अटल प्यार।”
शा., “तुम्हारे फाटकों के अंदर।”
शब्दावली देखें।
या “गढ़े हुए पत्थर।”
या “तुम्हारे गुप्त अंग।”
या “मालिक उसे सच्चे परमेश्वर के पास लाएगा।”
यहाँ यौन-संबंध की बात की गयी है।
या शायद, “किसी औज़ार से।”
या “बुरी तरह घायल नहीं होते।”
या “नुकसान की भरपाई।”
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
या “जिसके पिता की मौत हो गयी है।”
या “मुसीबत के मारे।”
या “सूदखोर।”
या “बंधक।”
या “दयालु।”
या “शासक।”
या “सब जो बयान देते हैं वह मत देना।”
या “इलज़ाम से बरी नहीं करूँगा।”
शा., “मुँह।”
अति. ख15 देखें।
यह पिन्तेकुस्त भी कहलाता है।
यह छप्परों (या डेरों) का त्योहार भी कहलाता है।
या “पूरी उम्र जीने दूँगा।”
या “तुम्हारे सभी दुश्मनों को पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर करूँगा।”
या शायद, “में डर; आतंक फैला दूँगा।”
यानी फरात नदी।
या “लाल-बैंजनी रंग से रंगा ऊन।”
या “किरमिज़ी लाल रंग का धागा।”
या “डेरा।”
या “पेटी।”
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
करीब 7.4 सें.मी. (2.9 इंच)। अति. ख14 देखें।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “चौखट में दो सीधे खड़े खंभे।”
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
यानी बलिदान में जलाए गए जानवरों की पिघली चरबी से भीगी राख।
शा., “दिल से बुद्धिमान लोगों।”
करीब 22.2 सें.मी. (8.75 इंच)। अति. ख14 देखें।
इस रत्न के बारे में कोई सही जानकारी नहीं है। यह कहरुवा, धूम्रकांत, उपल या तुरमली हो सकता है।
शब्दावली देखें।
या “सिर डालने के लिए छेद।”
शा., “उनके हाथ भर देना।”
या “उनके गुप्त अंग।”
या “का पवित्र ताज रखना।”
शा., “के हाथ भर देना।”
शा., “उनका हाथ भरा जाए।”
शा., “पराए,” यानी जो हारून-वंशी न हो।
शा., “उनका हाथ भरने।”
शा., “दो शामों के बीच।”
एक एपा 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक हीन 3.67 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “दो शामों के बीच।”
या “डेरा।”
करीब 44.5 सें.मी. (17.5 इंच)। अति. ख14 देखें।
शा., “दो शामों के बीच।”
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
या “पवित्र शेकेल।”
एक गेरा 0.57 ग्रा. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
या “पवित्र शेकेल।”
एक हीन 3.67 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “वैसे ही बनाया जाए जैसे कोई इत्र बनानेवाला बनाता है।”
शा., “जो पराया हो,” यानी जो हारून-वंशी न हो।
या “वैसे ही बना हो जैसे कोई इत्र बनानेवाला बनाता है।”
शा., “नाम लेकर बुलाया है।”
शा., “मैं दिल से बुद्धिमान सभी लोगों।”
या “ढली हुई मूरत।”
या “ढली हुई मूरत।”
या “पछतावा महसूस कर।”
या “पछतावा महसूस किया।”
या “महान काम की खुशी में है।”
शा., “अपने हाथ भर लो।”
शा., “अपने गहने उतार दिए।”
या “मैंने तुझे चुना है।”
या “पूरी तरह विश्वासयोग्य है।”
या “अटल प्यार।”
या “सिरजे गए हैं।”
शब्दावली देखें।
शा., “यहोवा, उसका नाम है।”
या “वह उसका मुकाबला करनेवालों को बरदाश्त नहीं करता।”
या “के साथ वेश्याओं जैसी बदचलनी करते हैं।”
अति. ख15 देखें।
या “सब्त मनाना।”
यह छप्परों (या डेरों) का त्योहार भी कहलाता है।
शा., “दस वचन।”
शा., “उससे।”
शा., “जो दिल से बुद्धिमान हैं।”
शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
या “अपने हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे।”
शा., “का दिल बुद्धि से भर दिया है।”
शा., “दिल से बुद्धिमान सभी लोगों।”
ज़ाहिर है कि यहाँ बसलेल की बात की गयी है।
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “में दो सीधे खड़े खंभे बनाए गए।”
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
करीब 7.4 सें.मी. (2.9 इंच)। अति. ख14 देखें।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “ठीक वैसे ही जैसे कोई इत्र बनानेवाला बनाता है।”
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
यानी धातु को खूब चमकाकर तैयार किए गए आईने।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
या “पवित्र शेकेल।”
या “पवित्र शेकेल।”
या “पवित्र शेकेल।”
या “हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे।”
करीब 22.2 सें.मी. (8.75 इंच)। अति. ख14 देखें।
इस रत्न के बारे में कोई सही जानकारी नहीं है। यह कहरुवा, धूम्रकांत, उपल या तुरमली हो सकता है।
या “जो पवित्र ताज है।”