हमारी वैयक्तिक कोशिश के अनुपात में फल पाना
यहोवा परमेश्वर ने मनुष्यजाति के लिए अपना प्रेम कई रीतियों में प्रदर्शित किया है। यीशु ने परमेश्वर के अद्वितीय प्रेम को विशिष्ट किया, एकत्रित भीड़ को यह बतलाकर कि परमेश्वर “भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करते हैं, धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाते हैं।” (मत्ती ५:४३-४८, न्यू.व.) एक और अवसर पर, यीशु ने अपने पिता के प्रेम की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति का शिनाख़्त की—उनके एकलौते पुत्र का बलिदान, जिसे परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिए दे दिया। (यूहन्ना ३:१६) यीशु ने अपने श्रोताओं को यहोवा के प्रेम की ओर क़दरदानी से प्रतिक्रिया दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया। क्या हम वैसा करने की कोशिश कर रहे हैं?
२ हमें पूरी क़दर व्यक्त करने और यहोवा के प्रेम से स्थायी लाभ प्राप्त करने के लिए, हमें उन से परिचित होना चाहिए। (यूहन्ना १७:३) हमें सलाह और निर्देशन की ज़रूरत है कि हम किस तरह स्वीकार्य रूप से उनकी सेवा कर सकते हैं। यहोवा ने हमें अपना प्रेरित वचन, बाइबल, देकर और अपना बढ़िया संगठन खड़ा करके, जिसके ज़रिए हम उनकी सलाह और उपदेश प्राप्त करते हैं, अपनी प्रेममय परवाह दर्शायी है। (मत्ती २४:४५-४७; २ तीमु. ३:१६, १७) यहोवा के समर्पित लोग होने के नाते, हमें उनकी राह में सिखलाया गया है। पर क्या हम अपनी वैयक्तिक कोशिश से दिखा रहे हैं कि हम यहोवा के प्रेम की क़दरदान हैं? क्या हम उनकी सलाह का अनुपालन कर रहे हैं ताकि हम उन्हें प्रसन्न करें और उसके द्वारा खुद लाभ प्राप्त करें? (यशा. ४८:१७; याकूब १:२२) १ कुरिन्थियों ३:८ में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मज़दूरी पाएगा।”
३ हाँ, हमें उस कार्य में लगे रहना चाहिए जो परमेश्वर चाहते हैं कि हम करें। हर कोई समान गति से आध्यात्मिक रूप से प्रगति नहीं करता। ऐसे अनेक तत्त्व हैं जो हमारी प्रगति से सम्बन्ध रखते हैं, और उत्साह भंग कर देनेवाली तुलनाएँ करना अविवेकी होगा। परन्तु, जो व्यक्तिगत कोशिश हम करते हैं, यह अत्यावश्यक महत्त्व रखती है। संगठन के और भी नज़दीक़ आने के लिए हम क्या कर सकते हैं? क्या ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हम मसीहियों के तौर से अपनी वैयक्तिक ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करने में सुधर सकते हैं? मण्डली की गतिविधियों को बेहतर रूप से समर्थन देने के लिए किस तरह की कोशिश लगेगी? क्या संगठन द्वारा दिए आदेशों के संबंध में ऐसी बातें हैं जिनका अनुप्रयोग करने की हमें ज़रूरत है?—१ तीमु. ४:१६.
विश्वसनीय लोगों का अनुकरण कीजिए
४ राज्य का सुसमाचार दशकों से विश्वसनीय भाइयों और बहनों द्वारा सुनाया गया है। पौलुस के जैसे, ये विश्वसनीय लोग भी अनुकरण के योग्य हैं। (१ कुरि. ११:१) उन्होंने परमेश्वर के प्रेम के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी है और उनके परिश्रम और बाइबल की सलाह का अनुपालन करने की उनकी वैयक्तिक कोशिशों के कारण उन्होंने अनेक लाभ पाए हैं। वे अपनी वैयक्तिक ज़िम्मेदारी से पीछे न हटकर, मण्डली में सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक मज़बूत केन्द्र बिन्दु बनते हैं। हम उनके वैयक्तिक परिश्रम का फल देख सकते हैं।—रोमि. १:१३; २ कुरि. ३:१-३.
५ अब, हर वर्ष हज़ारों नए लोग संगठन में आ रहे हैं। (यशा. ६०:८) वे भी पूर्ण-विकसित आध्यात्मिक व्यक्ति बनने के लिए परिश्रम करने के बारे में संजीदा हैं, और प्रचार कार्य में उनका उत्साह प्रशंसा के योग्य है। वे यह देखने से लाभ प्राप्त करते हैं कि यहोवा उन लोगों को किस तरह आशीर्वाद देते हैं जो उनकी सेवा में परिश्रम करते हैं। प्रौढ़ भाइयों और बहनों के मिसाल से नए लोगों को समझने में मदद होती है कि यह अपना हाथ ढीला कर देने का या परमेश्वर को दी अपनी सेवा में बन्द हो जाने का समय बिल्कुल नहीं है। चाहे हम नए जन हों या अनुभवी प्रचारक, क्या हम अपनी वैयक्तिक मसीही ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करते हुए और सभी ईश्वरशासित प्रबंधों का फ़ायदा उठाकर, आध्यात्मिक रूप से बढ़ते जा रहे हैं?
हम जो सीखते हैं, उसका अनुप्रयोग करना
६ याकूब के यह लिखने से बहुत समय पहले, कि हमें ‘वचन पर चलनेवाले’ होना चाहिए, मूसा ने यहूदियों से कहा: “मेरे ये वचन . . . धारण किए रहना।” (याकूब १:२५, न्यू.व.; व्यव. ११:१८) तो सिर्फ़ ज्ञान ही काफ़ी न थी। यहूदियों को यहोवा के प्रति आज्ञापालन दिखाकर व्यवस्था के वचनों पर अमल करने की ज़रूरत थी। यह मूलभूत सिद्धान्त वैसा ही रहता है। परमेश्वर के पुत्र, यीशु निश्चय ही आज्ञापालन का महत्त्व जानते थे। (यूहन्ना ८:२८) उन्होंने मत्ती ७:२४ में कहा: “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह . . . बुद्धिमान मनुष्य की नाईं ठहरेगा।”
७ क्या हम उन बातों पर अमल कर रहे हैं जो हम ने सर्किट सभाओं में सीखी हैं? क्या हम समझ सकते हैं कि इस समय जागृत रहना और सचेत रहना इतना अत्यावश्यक क्यों है? क्या हम इब्लीस के चालाक हमलों और उसके द्वारा बिछाए फँदों की ओर चौकन्ना हैं? क्या हम मण्डली में नैतिक और आध्यात्मिक स्वच्छता बनाए रखने की ज़रूरत से संबंधित उपदेश और चेतावनियों का महत्त्व समझते हैं जो संस्था हमें बार-बार देती है? हम किस हद तक व्यक्तिगत रूप से उन बातों पर अमल कर रहे हैं, जो हम सुनते हैं?—याकूब १:२३-२५.
८ चालू ख़ास सभा दिन के कार्यक्रम में हमारी इस आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, कि हम उसी तरह पवित्र रहें, जैसे यहोवा पवित्र हैं। (१ पत. १:१४-१६) पवित्रता का मतलब है धार्मिक स्वच्छता या विशुद्धता, पावनता। यह परमेश्वर की सेवा के लिए अलग रखे जाने की अवस्था सूचित करती है। हमें सुसमाचार की सेवकाई को सौंप दिया गया है। इसलिए, हमें आध्यात्मिक, नैतिक और शारीरिक रूप से साफ़ होना चाहिए ताकि हम सच्चाई के पवित्र वचन को लोगों तक पहुँचाने के क़ाबिल हों। (इब्रा. २:१) जैसे जैसे हम ऐसा करते हैं, वैसे वैसे हम अपनी वैयक्तिक कोशिश के अनुपात में फल पाएँगे।
वैयक्तिक अभ्यास से लाभ उठाना
९ वैयक्तिक अभ्यास हमें दृढ़ विश्वास विकसित करने की मदद करता है और यह सच्चाई के लिए हमारी क़दरदानी को अधिक गहरा बनाता है। यह हमें आत्मविश्वास देता है और हमें अधिकार से बोलने के लिए सक्षम बनाता है। यह हमें अन्तर्दृष्टि और पहचान देता है और हमें नए व्यक्तित्व को पहन लेने की मदद करता है। (कुलु. १:९-११) परन्तु, उत्पादनकारी अभ्यास के लिए समय और कोशिश आवश्यक है, और यथार्थ ज्ञान तथा आध्यात्मिक गहराई हासिल करने के लिए कोई सरल उपाय नहीं है। हम अभ्यास के ख़ाते में जो भी डालेंगे, वही हम उस से निकाल सकेंगे।—२ कुरि. ९:६, ७; गल. ६:७.
१० क्या हम मण्डली की सभाओं के वास्ते तैयारी करने के लिए हर सप्ताह पर्याप्त समय अलग से रखते हैं? यह एक तरीक़ा है जिस से हम उस आध्यात्मिक आहार के लिए क़दरदानी दिखा सकते हैं जो यहोवा विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास के ज़रिए देते हैं। सभाओं के लिए सही तैयारी करने से हमें परमेश्वर का वचन पढ़ने और उसका अभ्यास करने की तालिका पर डटे रहने की मदद मिलती है। क्या हम अपने बाइबल पठन के लिए समय अलग से रखते हैं, जैसा कि थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल के कार्यक्रम में बताया गया है? हर दिन यह पढ़ने और इस पर मनन करने के लिए सिर्फ़ कुछ ही मिनट लगते हैं। सेवा सभा हमें उन तरीक़ों के संबंध में सतर्क रहने की मदद करती है, जिन के द्वारा हम अपनी सार्वजनिक सेवकाई प्रभावकारी बना सकते हैं। क्या हम इस बात पर विशेष विचार करके तैयारी करते हैं, कि हम इस विषय को सेवकाई में किस तरह इस्तेमाल कर सकते हैं? और क्या हम कोशिश करते हैं कि हम इसे फ़ौरन इस्तेमाल करें? वॉचटावर (प्रहरीदुर्ग) अध्ययन और मण्डली पुस्तक अध्ययन के लिए तैयारी करने के लिए स्पष्ट व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए। क्या हम वैसा कर रहे हैं?
सभाओं में हिस्सा लेना
११ हम सभाओं से अधिक लाभ पा सकते हैं जब हम उन में हिस्सा लेते हैं। सभाओं के लिए तैयारी करना और फिर हिस्सा लेने की कोशिश करना हमें सभाओं के दौरान एकाग्र रखता है और दूसरों की टिप्पणियों से लाभ उठाना हमारे लिए ज़्यादा आसान बना देता है। अनेक लोग अब भी वह कड़ी मेहनत याद करते हैं जो उन्होंने सभा में अपनी पहली टिप्पणी या थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में अपना पहला विद्यार्थी भाषण तैयार करने में की थी। हालाँकि अत्याधिक घबराहट को कम होना चाहिए था, क्या हम परिश्रम करते रहते हैं कि अपना आध्यात्मिक विकास हर किसी पर प्रकट हो? (१ तीमु. ४:१५) दूसरे लोग हमारी टिप्पणी से लाभ उठाते और प्रात्साहित होते हैं। अगर हम ने हमारी सभाओं में जिस विषय पर ग़ौर किया जाएगा, उसका अभ्यास करके अच्छी तरह से तैयारी की है, तो उस में हमारा अर्थपूर्ण रूप से हिस्सा लेने से हम अन्यों को प्रेम और भले कामों के लिए प्रोत्साहित करेंगे।—इब्रा. १०:२३-२५.
१२ हमारी टिप्पणी लम्बी और पेचीदा नहीं होनी चाहिए। आम तौर पर संक्षिप्त टिप्पणी करना सबसे अच्छा है, जो पूछे गए सवालों का सीधा जवाब देती हैं या जो किसी शास्त्रपद के अनुप्रयोग को स्पष्ट करने में मदद करती हैं। अगर हम ने अच्छी तरह से तैयारी की है, तो हम खुद अपने शब्दों में टीका कर सकेंगे। जब हम ऐसा करते हैं, तब हमारे लिए और दूसरों के लिए फ़ायदे और भी अधिक होते हैं। क्यों? इसलिए कि इस से आवश्यक होता है कि हम जो भी कह रहे हैं, उसके बारे में सोचें और मुद्दे को इस तरीक़े से समझाएँ, जैसा कि हम समझते हैं। इस से शायद दूसरों को विषय समझने में आसानी होगी। और, इस से हमें उस जानकारी को याद रखने की मदद होगी, जिसे हम किसी दूसरे अवसर पर इस्तेमाल कर सकेंगे।
क्षेत्र में उदारता से बोएँ
१३ हमारी मसीही सेवकाई सेवा का एक ख़ज़ाना है। (२ कुरि. ४:७) क्या आप इसका विचार उस तरह करते हैं? सेवकाई के ज़रिए हमें अपना विश्वास दूसरों के सामने व्यक्त करने का विशेषाधिकार है। यीशु ने कहा कि जो हृदय में भरा है, वही उसके मुँह पर आता है। (लूका ६:४५) क्षेत्र सेवकाई में एक पूर्ण हिस्सा लेने के लिए जो वैयक्तिक कोशिश हम करते हैं, उस से हम अनेक लाभों का फ़ायदा उठा सकते हैं। सच्चाई के विषय में हमारी समझ तीव्र होती है, और हम बाइबल का प्रयोग करने में और अधिक योग्यता विकसित करते हैं। हमें दूसरों को सच्चाई प्रस्तुत करने और उन्हें अपने महान सृजनहार के बारे में सीखने की मदद करने का हर्ष प्राप्त है। हम परमेश्वर के शासन और प्रभुसत्ता के औचित्य के लिए गवाहों के तौर से खड़े हैं। हम इसलिए आनन्दित हैं कि हम जानते हैं कि हम यहोवा को प्रसन्न कर रहे हैं और उनकी समानता में बदले जाकर उनकी इच्छानुसार कर रहे हैं।—मत्ती ५:४८.
१४ अगर हम निरन्तर रूप से अपनी वैयक्तिक कोशिश आँकते रहेंगे, तो यहोवा को दी हमारी उपासना कभी एक नाम-मात्र की सेवा नहीं रहेगी। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हम उनकी सेवा करने का सिर्फ़ एक दिखावा करके या सेवा की एक अल्पतम मात्रा देकर, जिस में न असली हार्दिक भक्ति है और न कोशिश, परमेश्वर की इच्छा का अनुपालन करने में बेमन न होंगे। यहोवा को दी हमारी सेवा हार्दिक होनी ही चाहिए। उनकी सेवा में अपना सर्वस्व देना हमारा धर्मशास्त्रीय कर्तव्य है। (कुलु. ३:२३, २४) यह सच है, परिस्थितियाँ तरह-तरह की होती हैं, और यहोवा हमारी क़ाबिलियत से ज़्यादा हम से अपेक्षा नहीं रखते। परन्तु, वह हम से यह अपेक्षा ज़रूर रखते हैं, कि हम वह सब करें जो हम कर सकते हैं! (मत्ती २२:३७) चूँकि पतित मानवीय स्वभाव आत्म-त्यागी नहीं होने के लिए प्रवृत्त है, समय-समय पर अपने आप की जाँच करना और यह देखना अच्छा है कि हम परमेश्वर को दी हमारी सेवा में कहाँ-कहाँ सुधार कर सकते हैं। क्या हम ऐसा करने के आदी हैं?
१५ अगर हमें वैयक्तिक लक्ष्यों और इच्छाओं को यहोवा की सेवा में अपना सर्वोत्तम देने में बाधा बनने देने से बचकर रहना है, तो सावधानी बरतनी होगी। सुख-विलास, शौक़ और मनबहलाव की गतिविधियों को अपनी-अपनी जगह में रखना चाहिए। और, हमें सांसारिक गतिविधियों में अत्याधिक मात्रा में उलझ जाने की प्रवृत्ति से सावधान रहना चाहिए। मत्ती ६:२२, २३ में दिए यीशु की सलाह पर अमल करने के द्वारा, हम आध्यात्मिक हितों के पीछे लगे रहने और तदनुसार फल पाने में बेशक अधिक कोशिश कर सकेंगे।
१६ जैसे जैसे हम नए व्यक्तित्व को पहन लेने में कड़ी मेहनत करते रहेंगे, वैसे वैसे हम मण्डली की सभाओं, सर्किट सभाओं, सम्मेलनों, और प्रकाशनों के ज़रिए प्राप्त सलाह और सुझावों का अनुप्रयोग करने में खुद अपनी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करेंगे। हम में से हर एक व्यक्ति अध्यवसाय से अभ्यास करे, सभाओं में सक्रिय रूप से हिस्सा ले और, जिस हद तक हमारी वैयक्तिक परिस्थितियाँ अनुमति दें, उस हद तक शिष्य-बनाने के इस बड़े कार्य में हिस्सा ले। परमेश्वर के प्रेम की ओर इस तरह गुणग्रहण से प्रतिक्रिया दिखाकर, हम अभी प्रचुर आध्यात्मिक प्रतिफल पाने और यहोवा की नयी दुनिया में अनन्त जीवन की पक्की आशा बनाए रखने के विषय आश्वस्त रह सकते हैं।