सुसमाचार की भेंट—सुनने के ज़रिए अधिक प्रभावकारी रूप से करना
हमारी सेवकाई में अधिक प्रभावकारी होने के लिए, हमें यह पहचानना चाहिए कि कोई दो व्यक्ति एक समान नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति की ज़िन्दगी में अलग अनुभव रहते हैं और साथ ही अलग चिन्ताएँ और आकांक्षाएँ भी होती हैं। चुनौती है राज्य संदेश को व्यक्तिगत बनाना, यानी, उस व्यक्ति को दिखाना कि हम इस विषय में बोल रहे हैं कि यह उसके लिए एक व्यक्ति के तौर से क्या अर्थ रखता है। ऐसा प्रभावकारी रूप से करने के लिए, हमें ध्यानपूर्वक सुनना भी चाहिए।
२ अनेक प्रचारक अपनी प्रस्तावनाओं में व्यवहार-कुशल रूप से सवालों का प्रयोग करते हैं, और यह गृहस्वामी को बातचीत में शामिल करने में सहायक है। दृष्टिकोण के सवाल, जो गृहस्वामी को शर्मिन्दा न कर दें, सबसे प्रभावकारी हैं। लेकिन जब एक गृहस्वामी बोलता है, तो यह अत्यावश्यक है कि जो वह कह रहा है, उसे हम सुनें। सुनने से पड़ोसी के लिए प्रेम और आदर प्रकट होता है, और ऐसा करने से हम उस व्यक्ति की विचारणा में अन्तर्दृष्टि हासिल करते हैं। किसी व्यक्ति के हालात जानने से हम समानुभूति दर्शा सकते हैं, खुद को उसकी जगह पर रख सकते हैं। हम फिर उसे बाइबल में से सान्त्वना और आशा दे सकते हैं।
अनुकूलनीय हों
३ प्रेरित पौलुस ने समझाया: “तुम यह जाँच करो कि जिस जिस व्यक्ति से तुम मिलोगे, उस से किस तरह उत्तम रीति से बात करना चाहिए।” (कुलुस्सियों ४:६, न्यू इंग्लिश बाइबल) यद्यपि हम पहले से नहीं जानते कि एक व्यक्ति ठीक-ठीक क्या कहेगा, हम उन समस्याओं से वाक़िफ़ हैं, जिनका सामना कई लोगों को करना पड़ता है। इस प्रकार, हम “जाँच” कर सकते हैं और विविध परिस्थितियों की ओर प्रतिक्रिया दिखाने के लिए मानसिक रूप से तैयार रह सकते हैं।
४ उदाहरणार्थ, हम ने विश्व शान्ति के विषय पर बातचीत करने की तैयारी की होगी, परन्तु गृहस्वामी ज़िक्र करता है कि उसकी नौकरी चली गयी है। क्या हमें इस बात की उपेक्षा करनी चाहिए? इस में कोई सन्देह नहीं कि अपने परिवार का भरण-पोषण करने की बात उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर एक बोझ बन गयी है। आप उसकी ज़रूरतों की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं? आप उसकी स्थिति के लिए असली चिन्ता दिखाकर, उस से समानुभूति कर सकते हैं। फिर दयालुता से उसका ध्यान उन शास्त्रपदों की ओर आकर्षित करें, जो दिखाते हैं कि किस तरह परमेश्वर की सरकार सन्तोषजनक रोज़गार देगी और हमारी सभी ज़रूरतों की पूर्ति करेगी।—यशा. ६५:१७, २१, २२, २४.
५ शायद हमें पता चले कि वह व्यक्ति या उसके परिवार का कोई सदस्य हाल में किसी अपराध का, या किसी अन्याय का शिकार हुआ है। इन हालातों में हमारी सहानुभूतिशील चिन्ता और वैयक्तिक दिलचस्पी से शायद उस व्यक्ति का दिल पिघल जाए, जिस से उसे यह दिखाना संभव हो जाएगा कि यहोवा परमेश्वर इन दुःखद समस्याओं से पूरी तरह अवगत हैं और जल्दी ही वह सभी बुराइयों को हटा देने के लिए कार्य करेंगे।—रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिप्चर्स, पृष्ठ १०, १२, २२९-३१ देखें।
६ दो व्यक्तियों के बीच सम्बंध इस लिए बुरा बन जाता है कि उन्होंने अच्छी तरह से विचार-विनिमय नहीं किया है। जब एक बोलता है, तब शायद सामनेवाला अपने मन और दिल से सचमुच ध्यान न दे रहा होगा। सुनने की ऐसी ख़राब आदतों के परिणामस्वरूप ग़लतफ़हमियाँ उत्पन्न हो सकती हैं या किसी की मदद करने के मौक़े गवाँ दिए जा सकते हैं। आदरपूर्वक सुनने की अच्छी आदत विकसित करने से, हम सुसमाचार को अधिक प्रभावकारी रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं, दूसरों में यहोवा की निस्स्वार्थ दिलचस्पी को प्रतिबिंबित कर सकते हैं, और दूसरों को हमारे प्रेममय सृजनहार और उनके लोगों के साथ एक अच्छा संबंध विकसित करने की मदद कर सकते हैं।—याकूब १:१९; g74 11/22 pp 21-3.