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प्रश्‍न बक्स

▪ कलीसिया को प्रस्ताव प्रस्तुत करते वक्‍त कौन-सी प्रक्रिया का अनुकरण किया जाना चाहिए?

एक प्रस्ताव की आवश्‍यकता होती है जब महत्त्वपूर्ण मामलों पर जैसे कि सम्पत्ति ख़रीदने, राज्यगृह की मरम्मत या निर्माण करने, संस्था को विशेष अंशदान भेजने, या सर्किट ओवरसियर के ख़र्चे की देखरेख करने के लिए निर्णय करना होता है। प्रत्येक बार जब कलीसिया के पैसे ख़र्च किए जाते हैं यह आम तौर पर सबसे बेहतरीन होता है कि स्वीकृति के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाए।

अपवाद के तौर पर, संसार-व्याप्त प्रचार कार्य के लिए प्रत्येक व्यक्‍ति जो योगदान देता है उसके अतिरिक्‍त, कलीसिया शायद एक ही बार प्रत्येक महीने निर्धारित राशि का अंशदान संस्था को देने का निश्‍चय करे। साथ ही, राज्यगृह के सामान्य परिचालन ख़र्च, जैसे कि जन-उपयोगी सेवाएँ और सफ़ाई की सामग्री के लिए प्रस्ताव की आवश्‍यकता नहीं है।

जब एक ज़रूरत उठती है, प्राचीनों के निकाय को मामले की अच्छी तरह चर्चा करनी चाहिए। यदि अधिकांश जन सहमत हैं कि कुछ किया जाना चाहिए, प्राचीनों में से एक, शायद कलीसिया सेवा कमेटी के एक सदस्य को सेवा सभा में प्रस्तुति के लिए एक लिखित प्रस्ताव तैयार करना चाहिए।

जो प्राचीन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है उसे संक्षिप्त लेकिन स्पष्ट रूप से विद्यमान ज़रूरत को समझाना चाहिए और यह कि प्राचीनों का निकाय इसको पूरा करने के लिए क्या सिफ़ारिश करता है। कलीसिया को फिर सम्बद्ध सवालों को पूछने का अवसर दिया जाता है। यदि मामला जटिल है, तो सबसे बेहतरीन होगा कि वोट को अगली सेवा सभा तक स्थगित किया जाए ताकि प्रत्येक जन को इसके बारे में सोचने का वक्‍त मिले। असल वोट कलीसिया के सदस्यों द्वारा हाथ उठाए जाने के द्वारा लिया जाता है।

प्रस्ताव पर वोट देना कलीसिया के समर्पित और बपतिस्मा-प्राप्त सदस्यों तक ही सीमित है जब तक कि कानूनी आवश्‍यकताएँ कुछ और निदेशित नहीं करतीं, जैसे कि जब निगम के मामले या राज्यगृह ऋण शामिल हैं। यह उचित नहीं होगा कि दूसरी कलीसियाओं से भेंट करनेवाले गवाह भाग लें।

प्रस्ताव के स्वीकृत किए जाने के बाद, उस पर तारीख़ लगानी चाहिए, हस्ताक्षर करने चाहिए, और कलीसिया की फाइल में रखा जाना चाहिए।

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