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सजग होइए!–1998
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मस्तिष्क-आघात—इसका कारण

“मस्तिष्क शरीर का सबसे नाज़ुक अंग है,” लंदन, कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ वॆस्टर्न ऑनटारीओ का तंत्रिकाविज्ञानी, डॉ. व्लडीमिर हाचिनस्की कहता है। मस्तिष्क का वज़न शरीर के कुल वज़न का केवल २ प्रतिशत होता है। परंतु इसमें दस अरब से अधिक तंत्रिका कोशिकाएँ होती हैं। ये कोशिकाएँ हमारे हर विचार, क्रिया, और संवेदना को उत्पन्‍न करने के लिए निरंतर संचार करती रहती हैं। मस्तिष्क ऊर्जा के लिए ऑक्सीजन और ग्लुकोज़ पर निर्भर रहता है। इनकी निरंतर सप्लाई उसे धमनियों की जटिल प्रणाली के माध्यम से मिलती रहती है।

लेकिन, यदि मस्तिष्क के किसी भाग को कुछ क्षणों के लिए भी ऑक्सीजन न मिले, तो नाज़ुक तंत्रिका क्रियाओं में बाधा आती है। यदि यह एकाध मिनट से ज़्यादा समय तक रहे, तो परिणामस्वरूप मस्तिष्क को हानि पहुँचती है, क्योंकि मस्तिष्क कोशिकाएँ मरने लगती हैं, साथ ही वे क्रियाएँ भी रुक जाती हैं जिन्हें ये कोशिकाएँ नियंत्रित करती हैं। इस अवस्था को स्थानिक अरक्‍तता (इस्कीमिया) कहते हैं, ऑक्सीजन की कमी जो मुख्यतः धमनी में रुकावट के कारण उत्पन्‍न होती है। मस्तिष्क ऊतक को और भी हानि पहुँचती है जब ऑक्सीजन की कमी से रसायन प्रतिक्रियाओं की घातक लड़ी फूट पड़ती है। परिणाम होता है मस्तिष्क-आघात। आघात तब भी होता है जब रक्‍त वाहिकाएँ फट जाती हैं और मस्तिष्क में बहुत रक्‍तस्राव हो जाता है, जिससे आस-पास के रास्ते बंद हो जाते हैं। यह मांसपेशियों तक जानेवाले रसायन और विद्युत प्रवाह में बाधा डालता है और मस्तिष्क ऊतक को चोट पहुँचाता है।

इसके प्रभाव

हर मस्तिष्क-आघात भिन्‍न होता है, और मस्तिष्क-आघात अनगिनत तरीकों से व्यक्‍तियों को प्रभावित कर सकते हैं। हालाँकि कोई व्यक्‍ति आघात के हर संभव परिणाम से पीड़ित नहीं होता, फिर भी इसके प्रभाव हलके से लेकर बहुत भारी तक हो सकते हैं। कुछ प्रभाव ऐसे होते हैं जो शायद ही दिखायी दें और कुछ ऐसे होते हैं जो साफ-साफ नज़र आते हैं। मस्तिष्क के जिस भाग में आघात होता है उसी से तय होता है कि शरीर की कौन-सी क्रियाओं में बाधा आएगी।

एक आम प्रभाव है हाथ-पैर में कमज़ोरी आना या लकवा मारना। आम तौर पर, यह शरीर के एक हिस्से तक सीमित होता है। मस्तिष्क की जिस तरफ आघात हुआ है, उसकी दूसरी तरफ शरीर पर प्रभाव होता है। इस प्रकार, दाँयीं तरफ मस्तिष्क को हानि पहुँचने से बाँयीं तरफ लकवा मारता है, और बाँयीं तरफ मस्तिष्क को हानि पहुँचने से दाँयीं तरफ लकवा मारता है। कुछ लोगों के हाथ-पैर काम तो करते हैं, लेकिन उनकी मांसपेशियाँ इस हद तक कँपकँपाती हैं कि लगता है उन्हें अपने हाथ-पैर पर काबू नहीं रहा। बीमार ऐसा दिखता है मानो कोई नौसिखिया स्केटिंग कर रहा हो और अपना संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा हो। न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी मॆडिकल सॆंटर का डॉ. डेविड लवाइन कहता है: “उनमें से उस किस्म की संवेदना चली जाती है जो उन्हें बताए कि उनका अंग हिल रहा है या नहीं और वह किस जगह पर है।”

आघात झेलनेवालों में से १५ प्रतिशत से अधिक लोगों को दौरे पड़ते हैं जिनके फलस्वरूप व्यक्‍ति को क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता और आम तौर पर ऐसा होता है कि दौरा पड़ने पर व्यक्‍ति बेहोश हो जाता है। साथ ही, दर्द होना और संवेदनाओं में बदलाव आना आम बात है। एक व्यक्‍ति जिसने आघात झेला है और जिसके हाथ-पैर हमेशा सुन्‍न रहते हैं, यूँ कहता है: “कभी-कभी रात को कोई चीज़ मेरे पैरों को छू जाती है और मैं जाग जाता हूँ क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि मुझे बिजली के झटके दिये जा रहे हैं।”

आघात के परिणामों में यह भी हो सकता है कि हर चीज़ दो-दो दिखाई दे और किसी भी चीज़ को निगलने में समस्या हो। यदि मुँह और गले की संवेदन तंत्रिकाओं को हानि पहुँची है, तो आघात के पीड़ितों को और भी ज़िल्लत उठानी पड़ सकती है, जैसे लार टपकना। पाँचों इंद्रियों में से कोई भी प्रभावित हो सकती है, जिससे देखने, सुनने, सूँघने, चखने और छूने की क्रियाओं में गड़बड़ी हो सकती है।

संचार समस्याएँ

कल्पना कीजिए कि आप एक अँधेरी-सी गली से जा रहे हैं और दो भारी-भरकम अजनबी आपका पीछा कर रहे हैं। पीछे मुड़ने पर, आप देखते हैं कि वे आपकी तरफ बढ़े चले आ रहे हैं। आप मदद के लिए चिल्लाने की कोशिश करते हैं, लेकिन मुँह से आवाज़ ही नहीं निकलती! क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसी स्थिति में आपको कितनी कुंठा होगी? आघात के अनेक पीड़ितों को ऐसा ही अनुभव होता है जब अचानक उनके बोलने की क्षमता चली जाती है।

विचार, भावनाएँ, आशाएँ, और शंकाएँ न बता पाना—लाक्षणिक रूप से मित्रों और परिवार से कट-सा जाना—आघात का एक अति विनाशकारी परिणाम है। आघात झेलनेवाले एक व्यक्‍ति ने इस प्रकार कहा: “जब भी मैं कुछ कहने की कोशिश करता, मेरी आवाज़ ही नहीं निकलती। मैं चुप रहने के लिए मजबूर हो गया। मुझे न तो मौखिक, न ही लिखित बातें समझ आतीं। शब्द ऐसे सुनायी पड़ते . . . मानो मेरे आस-पास लोग कोई विदेशी भाषा बोल रहे हों। मुझे न तो भाषा समझ आती और न ही मैं उसे इस्तेमाल कर पाता।”

दूसरी ओर, चार्ल्स को उससे कही गयी हर बात समझ आती थी। तोभी जवाब देने के बारे में वह लिखता है: “मैं अपने विचारों को शब्दों में पिरोता, लेकिन मुँह से वह गड़बड़ और अस्पष्ट निकलते। उस समय मुझे ऐसा लगता कि मैं अपने ही अंदर कैद हूँ।” अपनी पुस्तक स्ट्रोक: ऐन ओनर्स मैनुएल में आर्थर जोज़ॆफ्स बताता है: “बोलते समय एक सौ से अधिक अलग-अलग मांसपेशियाँ नियंत्रित और समन्वित होती हैं और उनमें से हरेक मांसपेशी औसतन एक सौ से अधिक प्रेरक इकाइयों द्वारा नियंत्रित होती है। . . . एक सॆकॆंड बोलने के लिए विस्मयकारक १,४०,००० तंत्रिकापेशी संबंधी घटनाओं की ज़रूरत होती [है]। सो यदि इन मांसपेशियों को नियंत्रित करनेवाले मस्तिष्क के एक हिस्से में लगी चोट के कारण बोली स्पष्ट नहीं निकलती, तो क्या इसमें कोई हैरानी की बात है?”

आघात से वाक्‌ क्षेत्र में अनेक चकरानेवाली घटनाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्‍ति जो बोल नहीं सकता वह शायद गाने में समर्थ हो। दूसरा व्यक्‍ति शायद एकाएक कुछ शब्द बोल सके लेकिन जब वह बोलना चाहता है तब न बोल पाए, या दूसरी ओर, शायद वह बात करता ही चला जाए। दूसरे हैं जो शब्दों या वाक्याँशों को बार-बार दोहराते हैं या शब्दों का गलत प्रयोग करते हैं, जब वे ‘नहीं’ कहना चाहते हैं तब ‘हाँ’ कहते हैं या इसका उलटा करते हैं। कुछ लोग जानते हैं कि वे कौन-से शब्द इस्तेमाल करना चाहते हैं, लेकिन उनका मस्तिष्क उनके मुँह, होंठों और जीभ को प्रेरित नहीं कर पाता कि शब्दों को उच्चारित करें। या मांसपेशियों की कमज़ोरी के कारण उनके शब्द स्पष्ट रीति से नहीं निकलते। कुछ लोग बोलते समय बीच-बीच में भड़क उठते हैं।

आघात से मस्तिष्क के उस भाग को हानि पहुँच सकती है जो भावात्मक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करता है। परिणामस्वरूप बोली नीरस सुनायी पड़ सकती है। या दूसरों के भावात्मक उतार-चढ़ाव को समझने में कठिनाई हो सकती है। इस तरह की और ऊपर बतायी गयी संचार बाधाएँ परिवार के सदस्यों के बीच अलगाव पैदा कर सकती हैं, जैसे पति-पत्नी के बीच। गेऑर्ग बताता है: “क्योंकि आघात भाव-भंगिमाओं को, असल में पूरे व्यक्‍तित्व को प्रभावित करता है, इसलिए अचानक हममें पहले जैसा एका नहीं रहा। मुझे ऐसा लगा मानो मेरी पत्नी बिलकुल बदल गयी है, मुझे फिर से उसे जानने की ज़रूरत होगी।”

भावात्मक और व्यक्‍तित्व बदलाव

अकारण मूड बदलना, बहुत रोना या हँसना, बहुत गुस्सा करना, संदेह की असामान्य भावनाएँ उठना, और बहुत उदास हो जाना, ये उलझानेवाली भावात्मक और व्यक्‍तित्व गड़बड़ियों का भाग भर हैं जिनसे आघात झेलनेवालों और उनके परिवारों को निपटना पड़ सकता है।

गिल्बर्ट नाम का एक आघात पीड़ित कहता है: “कभी-कभी, मैं भावुक हो जाता हूँ, छोटी-सी बात पर हँसने या रोने लगता हूँ। कभी, जब मैं हँसता हूँ, तब कोई पूछता है, ‘आप क्यों हँस रहे हैं?’ और सच कहूँ तो मुझे कारण पता ही नहीं होता।” इसके साथ-साथ उसे संतुलन की समस्याएँ और हलका-सा लँगड़ापन है। इन सब बातों ने गिल्बर्ट को यह कहने के लिए प्रेरित किया: “मुझे लगता है मानो मैं किसी दूसरे शरीर में हूँ, मानो मैं कोई और हूँ, वही व्यक्‍ति नहीं हूँ जो मैं आघात से पहले हुआ करता था।”

तन-मन को बदल देनेवाली अपंगताओं के साथ जीते हुए, सभी नहीं तो ज़्यादातर लोग भावात्मक उथल-पुथल का अनुभव करते हैं। आघात के बाद हीरॉयूकी हकलाने लगा और उसे आंशिक लकवा मार गया। वह कहता है: “समय के गुज़रने पर भी मेरी हालत बेहतर नहीं हुई। यह समझते हुए कि मैं पहले की तरह अपना काम नहीं कर पाऊँगा, मैं हताश हो गया। मैंने दूसरों पर दोष लगाना शुरू किया और मुझे लगा मानो मेरी भावनाएँ फूट पड़ेंगी। मैंने मर्दों के जैसा व्यवहार नहीं किया।”

आघात पीड़ितों के लिए भय और चिंता सामान्य बातें हैं। ऎलन टिप्पणी करती है: “जब मैं अपने सिर में दबाव का अनुभव करती हूँ जो भविष्य में आघात होने का चिन्ह हो सकता है, तब मुझमें असुरक्षा की भावनाएँ उठती हैं। यदि मैं नकारात्मक बातें सोचती रहूँ, तो मैं सचमुच भयभीत हो जाती हूँ।” रॉन जिस चिंता का सामना करता है, उसका वर्णन यूँ करता है: “सही निष्कर्ष पर पहुँचना कभी-कभी एकदम असंभव-सा होता है। एक ही समय पर दो या तीन छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाना मुझे कुंठित कर देता है। मैं बातों को इतनी जल्दी भूल जाता हूँ कि कभी-कभी मुझे कुछ ही मिनट पहले किया फैसला भी याद नहीं रहता। फलस्वरूप, मैं कुछ भयानक गलतियाँ कर बैठता हूँ और इससे मैं ही नहीं, दूसरे भी लज्जित हो जाते हैं। कुछ साल बाद मेरा क्या हाल होगा? क्या मैं अकलमंदी से बातचीत कर पाऊँगा या गाड़ी चला पाऊँगा? क्या मैं अपनी पत्नी पर एक भार बन जाऊँगा?”

परिवार के सदस्य भी दुःख झेलते हैं

तो फिर, यह देखा जा सकता है कि आघात पीड़ित ही अकेले नहीं हैं जिन्हें विनाशक परिणामों से जूझना पड़ता है। इसके भागी उनके परिवार भी होते हैं। कुछ मामलों में उन्हें एक कुशल, निपुण व्यक्‍ति को अचानक ही अपनी आँखों के सामने बिखरते, एक बेसहारा बच्चे की तरह बनते देखना पड़ता है, जो कि उनके लिए एक बड़ा धक्का होता है। संबंधों में गड़बड़ी आ सकती है क्योंकि परिवार के सदस्यों को दूसरी, अपरिचित भूमिकाएँ अपनानी पड़ सकती हैं।

हारूको त्रासद प्रभावों को इस प्रकार बताती है: “लगभग हर महत्त्वपूर्ण बात के बारे में मेरे पति की याददाश्‍त चली गयी। हमें अचानक वह कंपनी छोड़नी पड़ी जिसे वह चलाया करते थे और हमारा घर और संपत्ति भी चली गयी। सबसे ज़्यादा चोट इस बात से पहुँची कि अब मैं अपने पति के साथ खुलकर बात नहीं कर पाती थी और उनकी सलाह नहीं ले पाती थी। क्योंकि उन्हें पता नहीं चलता है कि रात है या दिन, वह अकसर उन पोतड़ों को उतार देते हैं जिनकी ज़रूरत रात में पड़ती है कि बिस्तर खराब न हो। हालाँकि हमें पता था कि एक समय आएगा जब उनकी यह हालत हो जाएगी, फिर भी हमारे लिए उनकी इस दशा को स्वीकार करना कठिन है। हमारी स्थिति पूरी तरह उलट गयी है, अब मैं और मेरी बेटी मेरे पति के पालक बन गये हैं।”

“आघात पीड़ित की देखरेख करना—चाहे आप उससे कितना ही प्रेम क्यों न करते हों—कभी-कभी बहुत भारी लग सकता है,” इलेन फैन्टल शिम्बर्ग आघात: परिवारों को क्या पता होना चाहिए (अंग्रेज़ी) में कहती है। “दबाव और ज़िम्मेदारी घटती नहीं।” कुछ मामलों में परिवार के सदस्य बहुत अच्छी देखरेख करते हैं। लेकिन इससे देखरेख करनेवाले के स्वास्थ्य, भावनाओं, और आध्यात्मिकता को हानि पहुँच सकती है। मारिया बताती है कि उसकी माँ के आघात का उसके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा: “मैं हर दिन उनसे मिलने जाती हूँ और आध्यात्मिक रूप से उन्हें प्रोत्साहन देने की कोशिश करती हूँ, उन्हें पढ़कर सुनाती हूँ और उनके साथ प्रार्थना करती हूँ, और फिर उन्हें ढेर सारा प्यार और स्नेह देती हूँ। घर आते-आते मैं भावात्मक रूप से पस्त हो चुकी होती हूँ—किसी-किसी दिन तो इतनी थक जाती हूँ कि उलटी कर देती हूँ।”

कुछ देखरेख करनेवालों के लिए सबसे कठिन काम होता है व्यवहार में आये बदलाव से निपटना। तंत्रिकामनोविज्ञानी डॉ. रॉनल्ड कालवॉन्यो सजग होइए! को बताता है: “जब व्यक्‍ति को ऐसी बीमारी होती है जो जटिल मस्तिष्कप्रान्तस्था क्रियाओं को प्रभावित करती है—अर्थात्‌ व्यक्‍ति कैसे सोचता है, कैसे अपना जीवन-यापन करता है, उसकी भावात्मक प्रतिक्रियाएँ क्या हैं—हम व्यक्‍ति के संपूर्ण व्यक्‍तित्व से व्यवहार कर रहे होते हैं, अतः जो मनोवैज्ञानिक हानि होती है वह कुछ हद तक, सचमुच बड़े नाटकीय रूप से परिवार की दुनिया बदल देती है।” योशीको बताती है: “अपनी बीमारी के बाद मेरे पति मानो पूरी तरह बदल गये, छोटी-सी बात पर भी भड़क उठते हैं। उस समय मैं बहुत दुःखी हो जाती हूँ।”

अकसर परिवार के बाहर के लोग व्यक्‍तित्व बदलावों को नहीं देख पाते। इसलिए, देखरेख करनेवाले कुछ लोग अकेला महसूस करते हैं और अपने भार अकेले ही उठाये फिरते हैं। मीडोरी बताती है: “आघातों ने मेरे पति को मानसिक और भावात्मक रूप से अपंग कर दिया है। हालाँकि उन्हें प्रोत्साहन की बहुत ज़रूरत है, वह उसके बारे में किसी से बात नहीं करते और अकेले ही कुढ़ते हैं। सो उनकी भावनाओं का ध्यान रखने का ज़िम्मा मुझ पर है। हर दिन अपने पति के व्यवहार में उतार-चढ़ाव देखने से मैं चिंतित हो गयी हूँ और कभी-कभी घबरा भी जाती हूँ।”

आघात झेलनेवाले अनेक लोगों और उनके परिवारों ने उन बदलावों का सामना कैसे किया है जो आघात के कारण उनके जीवन में आते हैं? जो आघात के अपंगकारी प्रभावों से पीड़ित हैं उन्हें हम किन तरीकों से सहारा दे सकते हैं? यही हमारा अगला लेख बताता है।

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

चेतावनी चिन्ह

• अचानक कमज़ोरी आना, अंग सुन्‍न हो जाना, या चेहरे, बाँह, अथवा पैर में लकवा मारना, खासकर शरीर की एक तरफ

• अचानक धुँधला या कम दिखना, खासकर एक आँख से; हर चीज़ दो-दो दिखना

• आसान वाक्यों को भी बोलने या समझने में कठिनाई होना

• चक्कर आना या संतुलन अथवा तालमेल खोना, खासकर जब दूसरे लक्षण भी दिख रहे हों

कम सामान्य लक्षण

• अचानक, अकारण, और तेज़ सिरदर्द—अकसर इसे “अब तक का सबसे बुरा सिरदर्द” कहा जाता है

• अचानक मिचली आना और बुखार चढ़ना—यह वाइरल बीमारी से भिन्‍न होता है क्योंकि यह बहुत जल्दी होता है (कई दिनों के बजाय कुछ ही मिनटों या घंटों में)

• थोड़ी देर के लिए चेतना खोना या कुछ समय के लिए सतर्कता घटना (बेहोशी, उलझन, मिरगी, कोमा)

लक्षणों को नज़रअंदाज़ मत कीजिए

डॉ. डेविड लवाइन आग्रह करता है कि लक्षण दिखायी पड़ते ही मरीज़ को “जल्दी-से-जल्दी किसी अस्पताल के आपात-कक्ष में जाना चाहिए। इसका प्रमाण है कि यदि पहले ही कुछ घंटों में आघात का उपचार किया जाए, तो ज़्यादा हानि नहीं पहुँचती।”

कभी-कभी लक्षण बहुत कम समय के लिए दिखायी पड़ते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। इन घटनाओं को TIA या ‘अस्थायी स्थानिक-अरक्‍तता दौरा’ कहा जाता है। इनको नज़रअंदाज़ मत कीजिए, क्योंकि ये शायद संकेत दे रहे हों कि गंभीर आघात का जोखिम है और पूर्ण आघात होनेवाला है। डॉक्टर दोष का उपचार कर सकता है और भविष्य में आघात होने के जोखिम को घटा सकता है।

ऎंगलवुड, कॉलरैडो, अमरीका में राष्ट्रीय आघात संघ द्वारा प्रदान किये गये निर्देशों से रूपांतरित किया गया।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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