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सजग होइए!–1998
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मस्तिष्क-आघात श्रृंखला “मस्तिष्क-आघात से निपटना” (मार्च ८, १९९८) मेरी प्रार्थनाओं का जवाब थी। कुछ साल पहले मेरे पति और मैं एक अधिवेशन में थे जब उन्हें मस्तिष्क-आघात हुआ। जब वे मुझे कुछ लिखकर देना चाहते थे तब उनका हाथ कागज़ पर ही रपटकर रह गया। उनके शरीर की पूरे दाहिने हिस्से को आघात पहुँचा था। इस लेख ने मेरे लिए इतना कुछ किया कि मैं बयान नहीं कर सकती। यह जानकर दिल कितना खुश होता है कि यहोवा हमें नहीं भूला।

एफ. एस. एच., अमरीका

इस पत्रिका के मिलने से बस कुछ ही घंटे पहले मैं अपनी पत्नी को यह बताने की कोशिश कर रहा था कि मुझे कैसा लग रहा है। लेकिन इस आघात की वज़ह से मैं अपनी बात सही तरह बता नहीं पा रहा था। मैं इस पत्रिका को अब तक तीन बार पढ़ चुका हूँ और मेरी पत्नी ने भी इसे पढ़ा है।

आर. ज़ैड., इटली

पिछले साल मेरे पिता की आघात की वज़ह से मौत हो गई। उन्होंने बरसों वफादारी से यहोवा की सेवा की थी। मरने से पहले मेरे पिताजी जिस तरह का बर्ताव करने लगे थे इस लेख ने उसे अच्छी तरह समझने में मेरी मदद की। भावनात्मक रूप से होनेवाले बदलावों के बारे में इसने समझाया और यह भी कि आघात से पीड़ित एक आदमी को अपनी बात समझाने में क्यों मुश्‍किल होती है। इसे पढ़कर मैं और भी अच्छी तरह समझ पायी कि मेरे पिता पर क्या-क्या गुज़र रही थी।

वी. सी., अमरीका

मुझे एक साल पहले आघात हुआ था और आज भी मेरे शरीर का बाँया हिस्सा कमज़ोर है। यह लेख आघात के बारे में किसी भी रहस्य और डर को दूर कर देगा। यह कहना गलत है कि सिर्फ बूढ़े लोगों को ही आघात होता है। मुझे जब आघात हुआ था तब मैं सिर्फ ४७ साल की थी।

ए. ए., इंग्लैंड

इस लेख ने मुझे अपनी बेटी लूसिया को समझने में बहुत मदद दी जिसे एक कार दुर्घटना में सिर पर चोट लग गई थी जब वह बस दो महीने की थी। वह अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर सकती है। लेकिन इस लेख ने यह समझने में मेरी मदद की कि ऐसा क्यों होता है।

एन. के., स्लोवाकिया

मैं रिहैब्लिटेशन अस्पतालों में काम करने के लिए एक मान्यता-प्राप्त नर्स हूँ और मुझे मस्तिष्क आघात के मरीज़ों का इलाज करने में काफी तजुरबा हुआ है। इस लेख के बारे में जिस बात की मैंने बहुत कदर की है वह यह है कि इसमें सचमुच हमदर्दी के साथ बताया गया है कि मस्तिष्क आघात से पीड़ित मरीज़ों के परिवारों को क्या-क्या मुश्‍किलें झेलनी पड़ती हैं।

एल. सी., अमरीका

मेरी माँ को अस्थायी स्थानिक-अरक्‍तता (TIA) दौरा पड़ा। शारीरिक नज़रिए से देखा जाए तो वह बिल्कुल ठीक हो गई थी पर मानसिक रूप से उसे गहरा सदमा था। वह बहुत ही पक्के इरादोंवाली थी और उसे अपने आप पर पूरा भरोसा रहता था लेकिन अब उसमें ज़रा भी आत्म-विश्‍वास नहीं है। आपका बहुत शुक्रिया कि आपने इस बात पर रोशनी डाली कि इस बीमारी से कैसे मानसिक प्रभाव पड़ते हैं।

आर. सी., इटली

दो साल पहले मेरी माँ को दो बार मस्तिष्क-आघात हुआ। पहली बार जब हुआ तो वह अपनी याददाश्‍त खो बैठी और दूसरी बार जब हुआ तो उसके शरीर के दाहिने हिस्से को लकवा मार गया। कभी-कभी मेरा सब्र टूट जाता है और मैं उससे परेशान हो जाती हूँ और ऐसा कुछ कह देती हूँ जिससे उसे दुःख पहुँचता है। आपके लेख ने मुझे इस मामले में और ज़्यादा समझदार बनने में मदद की है।

आर. टी., ब्राज़ील

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