क्या यह दुनिया धर्म के बिना बेहतर होगी?
नए नास्तिक एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ धर्म का नामोनिशान नहीं रहेगा। फिर धर्म के नाम पर दंगे नहीं होंगे, आत्मघाती हमलावर नहीं होंगे और चेलों को लूटनेवाले धर्म गुरू नहीं रहेंगे। आपके हिसाब से क्या ऐसी दुनिया वाकई बेहतरीन होगी?
जवाब देने से पहले खुद से पूछिए, ‘क्या इस बात का कोई सबूत है कि अगर सभी लोग नास्तिक बन जाएँ, तो यह दुनिया बेहतर हो जाएगी?’ ज़रा गौर कीजिए: कम्बोडिया में नास्तिक मार्क्सवादी राज्य स्थापित करने के लिए कमेर रूज़ आंदोलन में वहाँ के करीब 15 लाख लोगों की मौत हो गयी। और आधिकारिक तौर पर नास्तिक देश सोवियत संघ में जोसफ स्टैलिन की हुकूमत के दौरान करोड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। माना कि ये घिनौने काम नास्तिकवाद की वजह से नहीं हुए, लेकिन इन घटनाओं से यह साफ हो जाता है कि नास्तिकवाद का परचम फहराने से एकता और शांति नहीं लायी जा सकती।
कई लोग इस बात से सहमत होंगे कि धर्म की वजह से लोगों को बहुत-सी दुख-तकलीफों का सामना करना पड़ा है। लेकिन क्या इसमें गलती परमेश्वर की है? नहीं! उदाहरण के लिए गाड़ी चलाते वक्त अगर ड्राइवर मोबाइल का इस्तेमाल करे और दुर्घटना हो जाए, तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा? क्या कार बनानेवाला? नहीं। उसी तरह धर्म के नाम पर होनेवाली बुरी बातों के लिए परमेश्वर को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इंसानों की दुख-तकलीफों के कई कारण हैं, जिनमें से एक है लोगों के धार्मिक विश्वास। लेकिन एक कारण इससे भी बड़ा है। बाइबल बताती है वह है विरासत में मिली असिद्धता। वह कहती है: “सब ने पाप किया है और वे परमेश्वर के शानदार गुण ज़ाहिर करने में नाकाम रहे हैं।” (रोमियों 3:23) पाप की तरफ झुकाव होने की वजह से इंसान स्वार्थी, घमंडी और हिंसक बन जाते हैं, साथ ही उनमें अपने लिए सही-गलत का फैसला खुद करने की इच्छा पैदा हो जाती है। (उत्पत्ति 8:21) पापी होने की वजह से लोग गलत कामों को नज़रअंदाज़ करने लगते हैं और अगर उनसे कोई गलत काम हो जाता है तो उसे सही करार देने के लिए सफाई पेश करने की कोशिश करते हैं। (रोमियों 1:24-27) यीशु मसीह ने बिलकुल सही कहा था: “दुष्ट विचार, हत्याएँ, शादी के बाहर यौन-संबंध, व्यभिचार, चोरियाँ, झूठी गवाही और निंदा की बातें, ये दिल से ही निकलती हैं।”—मत्ती 15:19.
एक ज़रूरी फर्क
अब ज़रूरी है कि सच्ची उपासना, यानी ऐसी उपासना जिसे परमेश्वर मंज़ूर करता है और झूठी उपासना के बीच फर्क जाना जाए। सच्ची उपासना लोगों को अपने अंदर की बुरी इच्छाओं से लड़ने में मदद देगी। यह उन्हें अपने अंदर शांति, कृपा, भलाई, कोमलता, संयम, अपने जीवन साथी के लिए वफादारी दिखाने, दूसरों का सम्मान करने और खुद से ज़्यादा दूसरों से प्यार करने के लिए उकसाएगी। (गलातियों 5:22, 23) वहीं दूसरी ओर झूठा धर्म उन बुरे कामों को रोकने की बिलकुल कोशिश नहीं करेगा, जिनकी यीशु ने निंदा की थी। और इस तरह झूठा धर्म अपनी शिक्षाओं को लोगों की पसंद-नापसंद के हिसाब से बदलता रहेगा। जैसा कि बाइबल बताती है, वह एक तरह से लोगों के “कानों की खुजली मिटा” रहा होगा।—2 तीमुथियुस 4:3.
झूठे धर्म की तरह क्या नास्तिकवाद भी सही-गलत के मामलों में उलझन पैदा करता है? कानून के प्रोफेसर फिलिप जॉनसन बताते हैं कि अगर हम यह मानते हैं कि ‘परमेश्वर वजूद में नहीं’ है तो इसका मतलब है कि हमें न तो उसे लेखा देने की ज़रूरत होगी, और “न ही ठहराए गए नियमों को मानने की।” इस तरह सही-गलत के मामले में हर इंसान को अपने लिए अलग स्तर बनाने की छूट मिल जाएगी। यही वजह है कि कुछ लोगों को नास्तिकवाद का फलसफा बहुत अच्छा लगता है।—भजन 14:1.
लेकिन सच तो यह है कि परमेश्वर, धर्म के नाम पर या नास्तिकवाद के ज़रिए फैलाए किसी भी झूठ को और उन लोगों को हमेशा के लिए बरदाश्त नहीं करेगा, जो झूठ को बढ़ावा देते हैं।a वह वादा करता है: “धर्मी [नैतिक और आध्यात्मिक तौर से शुद्ध] लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।” (नीतिवचन 2:21, 22) परमेश्वर ऐसी दुनिया लाएगा जो कोई भी इंसान, या इंसानी फलसफे या संगठन कभी नहीं ला सकते। उसकी दुनिया में चारों ओर शांति और खुशी का समाँ होगा।—यशायाह 11:9. (g10-E 11)
[फुटनोट]
a परमेश्वर ने बुराई और दुख-तकलीफों को क्यों रहने दिया है, इस बारे में बाइबल से सही समझ पाने के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 11 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
[पेज 6 पर बक्स]
धर्म के नाम पर होनेवाले घिनौने कामों के बारे में परमेश्वर का नज़रिया
प्राचीन इसराएल जाति को जो देश दिया गया था, वहाँ पहले कनानी लोग रहते थे। कनानी बेहद गंदे किस्म के लोग थे जो अनैतिक काम करते थे, जैसे कि परिवार के सदस्यों के साथ लैंगिक संबंध, समलैंगिकता और पशुगमन। इसके अलावा उनमें बच्चों की बलि चढ़ाने का भी रिवाज़ था। (लैव्यव्यवस्था 18:2-27) किताब आर्किएलॉजी एंड दी ओल्ड टेस्टामेंट कहती है कि खुदाई में “झूठे देवी-देवताओं की वेदियों के पास बने कब्रिस्तानों में राख और नवजात बच्चों के कंकालों के ढेर से साबित होता है कि उस समय [बच्चों की बलि चढ़ाना] बहुत आम था।” बाइबल की व्याख्या देनेवाली एक किताब कहती है कि कनानी लोग अनैतिक कामों के ज़रिए अपने देवताओं की उपासना करते थे और उन्हीं देवताओं के सामने अपने पहले बच्चे की बलि चढ़ाते थे। यह किताब आगे कहती है: “जिन पुरातत्वविज्ञानियों ने कनान के खंडहरों की खुदाई की, उनके मन में अकसर यह सवाल उठता है कि परमेश्वर ने पहले ही इनका नाश क्यों नहीं किया।”
परमेश्वर ने जिस तरह कनानी लोगों का नाश किया, उससे आज हम यह गंभीर सबक सीखते हैं कि वह अपने नाम पर किए जाने वाले बुरे कामों को हमेशा तक बरदाश्त नहीं करेगा। प्रेषितों 17:31 में लिखा है: ‘परमेश्वर ने एक दिन तय किया है जिसमें वह सच्चाई से सारे जगत का न्याय करनेवाला है।’
[पेज 7 पर तसवीरें]
धर्म पर विश्वास करनेवालों और न करनेवालों, दोनों ने ही लोगों पर कहर ढाया है
चर्च ने हिटलर का साथ दिया
कमेर रूज़ आंदोलन में मारे गए लोगों की अस्थियाँ, कम्बोडिया
[चित्र का श्रेय]
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