इंसान अपनी तकदीर की तलाश में
आम तौर पर लोग तकदीर या भाग्य में क्यों विश्वास करते हैं? हमेशा से ही इंसान ने ज़िंदगी के पेचीदा सवालों के जवाब पाने और हो रही घटनाओं का मतलब समझकर जिंदगी का मकसद जानने की कोशिश की है। इतिहासकार हेलमर रिंगग्रेन का कहना है “जब कोई घटना किसी व्यक्ति, किसी शक्ति या किसी और वज़ह से घटती है तब ‘भगवान’, ‘तकदीर’, और ‘इत्तफाक’ जैसे शब्द मन में आते हैं।” दुनिया का इतिहास तकदीर और किस्मत को लेकर कई विश्वासों, पौराणिक और मन-गढ़ंत कहानियों से भरा पड़ा है।
अश्शूर और बाबुलियों के इतिहास का अध्ययन करनेवाले, ज़ान बोटेरो कहते हैं, “हम अपने हर संस्कार में मिसोपोटेमिया [या बाबुल] की सभ्यता का रंग बखूबी देखते हैं।” वे आगे कहते हैं, “सबूत दिखाते हैं कि दिव्य शक्तियों के बारे में इंसानों के विश्वास की शुरुआत सबसे पहले प्राचीन मिसोपोटेमिया या बाबुल की सभ्यता में हुई थी।” और यहीं से तकदीर में विश्वास करने की बात भी शुरू हुई।
तकदीर में विश्वास करने की शुरूआत
आज के ईराक में पाए जानेवाले मिसोपोटेमिया के पुराने खंडहरों में, पुरातत्वविज्ञानियों ने इंसान की लिखी कुछ सबसे पुरानी रचनाएँ खोज निकाली हैं। कीलाक्षर लिपि में ऐसी हज़ारों शिलाएँ मिली हैं जिनसे यह साफ-साफ पता चलता है कि सुमेर और अक्काद की प्राचीन सभ्यताओं में और प्राचीन बाबुल के मशहूर शहर में जीवन कैसा था। पुरातत्वविज्ञानी सैमुएल एन. क्रेमर के मुताबिक, सुमेर के लोग “इस बात को लेकर दुविधा में थे कि इंसान की ज़िंदगी में दुःख-तकलीफ क्यों आती हैं। वे खासकर तब परेशान हो जाते थे जब उन्हें दुःख-तकलीफ की कोई वज़ह साफ नहीं दिखती थी।” वज़ह ढूँढ़ते-ढूँढ़ते आखिरकार वे तकदीर या भाग्य पर विश्वास करने लगे।
पुरातत्वविज्ञानी जोन ओट्स अपनी किताब बैबिलोन में कहती हैं, “बाबुल में रहनेवाले हर किसी की अपनी एक देवी या देवता था।” बाबुलियों का मानना था कि यही देवता “हर इंसान की तकदीर पहले से ही लिखकर रखते हैं।” और क्रेमर के मुताबिक सुमेरी लोग यह मानते थे कि “इस विश्व पर जिन देवताओं का राज है उन्होंने ही इस दुनिया में दुष्टता, बेईमानी और हिंसा को इंसान की ज़िंदगी के साथ जोड़ दिया है।” दुनिया के हर कोने में लोग तकदीर में विश्वास करते थे और इस धारणा को बहुत अहमियत दी जाती थी।
बाबुल के लोग यह सोचते थे कि शकुन-विद्या यानी “देवताओं के साथ बातचीत करने का तरीका” अपनाकर देवताओं की मरज़ी जानना मुमकिन है। शकुन बतानेवाले अकसर किसी वस्तु या घटना को बारीकी से देखकर, उसके गूढ़ मतलब निकालकर भविष्य के बारे में बताते थे। भविष्य बताने के लिए वे खासकर सपनों, जानवरों की कुछ हरकतों से भावी बूझने की कोशिश करते थे और दिल, कलेजे जैसे अंगों का इस्तेमाल करके शकुन-अपशकुन विचारा जाता था। (यहेजकेल २१:२१; दानिय्येल २:१-४ से तुलना कीजिए।) अगर अचानक कोई बात हो जाती या कुछ अनोखी घटना घटती तो वे उसे मिट्टी के पटिये पर लिखकर रखते थे ताकि उनकी मदद से भविष्य के बारे में मालूम किया जा सके।
पुरानी सभ्यताओं का अध्ययन करनेवाले एक फ्रांसीसी विद्वान एड्वार डोर्म कहते हैं कि “मेसोपोटेमिया के इतिहास की जाँच करने पर हमें पता चलता है कि वहाँ के लोगों का भविष्यवाणियों और शकुन-विद्या में काफी विश्वास था।” शकुन-विद्या उनके रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा थी। दरअसल प्रोफेसर बोटेरो कहते हैं कि “भाग्य जानने के लिए दुनिया की करीब-करीब हर चीज़ को अच्छे या बुरे शकुन के साथ जोड़ा जाता था। . . . यह माना जाता था कि ब्रह्मांड में नज़र आनेवाली हर वस्तु का गहराई से अध्ययन करके किसी न किसी तरह से भविष्य के बारे में जाना जा सकता है।” इस तरह मिसोपोटेमिया के लोग भविष्य बताने के लिए ज्योतिष-विद्या पर हद-से-ज़्यादा निर्भर थे।—यशायाह ४७:१३ से तुलना कीजिए।
बाबुल के लोग ज्योतिष-विद्या के अलावा पासा या पुर डालकर भी भविष्य के बारे में जानने की कोशिश करते थे। अपनी किताब रैन्डमनॆस में डेबरा बैनेट बताती हैं कि पासे या पुर का इसलिए इस्तेमाल किया जाता था ताकि “भविष्य बताने में इंसानों पर निर्भर न होना पड़े और देवता सीधे ही इन पासों से या पुरों से अपनी इच्छा बता सकें।” फिर भी ऐसा नहीं माना जाता था कि देवताओं की मरज़ी या उनके फैसले पत्थर की लकीर हैं। बाबुल के लोग मानते थे कि अगर कोई बुरी भविष्यवाणी हुई है तो देवताओं से बिनती करके उसे टाला जा सकता है।
पुराने मिस्र में तकदीर की धारणा
सामान्य युग पूर्व १५वीं सदी में बाबुल देश और मिस्र देश में बहुत गहरा आपसी रिश्ता था। इस तरह दोनों ही देशों ने एकदूसरे के धार्मिक विश्वासों को अपना लिया। इसमें तकदीर या भाग्य से ताल्लुक रखनेवाले रीति-रिवाज़ और विश्वास भी शामिल थे। लेकिन मिस्री लोग क्यों तकदीर या भाग्य में विश्वास करने लगे? ऑक्सफर्ड यूनिवर्सीटी में मिस्र के इतिहास का अध्ययन करनेवाले प्रोफेसर जॉन आर. बार्न्ज़ के अनुसार “[मिस्र] के धर्म में भी यह कोशिश की गई थी कि गूढ़ रहस्यों, अचानक होनेवाली घटनाओं और भविष्य को पहले से ही जाना जा सके और उसके असर से बचने का समाधान भी पाया जा सके।”
मिस्री लोग कई देवी-देवताओं को पूजते थे और उनमें से एक देवी थी, आइसिस जिसे “जीवन, भाग्य और नियति की देवी” माना जाता था। मिस्र के लोग भी शकुन-विद्या और ज्योतिष-विद्या का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल किया करते थे। (यशायाह १९:३ से तुलना कीजिए।) एक इतिहासकार कहते हैं, “देवताओं की मरज़ी जानने की उनकी हुनरमंदी बेमिसाल थी।” मगर बाबुल के धर्म और इन धारणाओं को सिर्फ मिस्र ने ही नहीं बल्कि कई और देशों ने भी अपना लिया था।
यूनान और रोम
ज़ीन बोटेरो कहते हैं कि जहाँ तक धर्म का सवाल है “प्राचीन यूनान भी बाबुल के ज़बरदस्त असर से बच नहीं सका।” प्रोफेसर पीटर ग्रीन बताते हैं कि यूनान में भी तकदीर या भाग्य में विश्वास करना क्यों इतना आम था: “ऐसी दुनिया में जहाँ कल का भरोसा नहीं था, इंसान अपने फैसले के लिए खुद को ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहते थे, दरअसल उन्हें लगता था कि वह एक कठपुतली से बढ़कर कुछ नहीं जिसे तकदीर के हाथों कभी इधर तो कभी उधर नचाया जाता है। इसलिए भविष्य जानने का एक यही तरीका लोगों को बेहतर लगा कि यह मान लिया जाए कि तकदीर को टालना किसी के बस में नहीं। देवी-देवता पहले से ही हर इंसान की तकदीर लिख देते हैं। और उसे जानने का एक ही रास्ता है, शकुनविद्या। मगर जो कुछ तकदीर में लिखा हुआ है उसे जानना सिर्फ खास हुनर या अंदरूनी समझ रखनेवालों के बस की बात है। वे एक इंसान की तकदीर के बारे में जो भी बताएंगे हो सकता है कि वह उसे पसंद न आए फिर भी अगर तकदीर में लिखी बातें उसे बताकर पहले से खबरदार कर दिया जाए तो कम-से-कम वह खतरे का सामना करने के लिए तैयार तो हो सकता है।”
तकदीर में विश्वास करने की वज़ह से न सिर्फ भविष्य के बारे में जानकर लोगों का हौसला बढ़ता था मगर कुछ बुरे मकसद भी हासिल किए जा सकते थे। तकदीर में विश्वास करने की धारणा की वज़ह से लोगों को अपने कब्ज़े में रखना आसान हो गया था। इसलिए जैसा कि इतिहासकार एफ. एच. सैंडबाक कहते हैं, “दूसरों पर राज करनेवाले राष्ट्रों के राजाओं को यह विश्वास बहुत पसंद आया होगा कि दुनिया में जो कुछ हो रहा है वह भाग्य की वज़ह से ही हो रहा है और उनका राज भी ईश्वर की मरज़ी है।”
ऐसा क्यों हुआ? प्रोफेसर ग्रीन समझाते हैं कि तकदीर या भाग्य पर विश्वास जैसी धारणा ही ने “उस सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था को नैतिक, धार्मिक और हर अर्थ में न्यायसंगत करार दिया था। यह एक ऐसा शक्तिशाली और ज़बरदस्त माध्यम था जिसके ज़रिए यूनान के शासक लोगों पर अपने राज को जायज़ ठहरा सकते थे। इसलिए जब कोई भी घटना होती तो उसे तकदीर का फैसला करार दिया जाता था और उनके मुताबिक क्योंकि कुदरत का हर काम इंसान के फायदे के लिए ही होता है इसलिए समझा जाता था कि तकदीर में लिखी हर बात आखिर सबकी भलाई के लिए ही हुई है।” दरअसल तकदीर में विश्वास का फायदा उठाकर वे “स्वार्थ के लिए किए गए हर क्रूर काम को सही ठहराते थे।”
जब हम यूनान की पुरानी किताबें पढ़ते हैं तो देख सकते हैं कि तकदीर में विश्वास करना एक आम बात थी। इनमें से कुछ रचनाएँ वीर-गाथा, पौराणिक कथा और दुःख की कहानियों के रूप में थीं और इन सबमें हमेशा तकदीर की बात सामने आती है। यूनान की पौराणिक कथाओं में लिखा गया है कि इंसान की ज़िंदगी की बागडोर तीन देवियों के हाथ में है जिन्हें मोइराइ कहा जाता है। पहली देवी, क्लोथो जीवन की डोर की फिरकनी चलाती है, दूसरी, लॉकेसीस तय करती है कि ज़िंदगी कितनी लंबी होगी और तीसरी, ऑट्रोपोस इंसान का नियत समय खत्म होने पर उसके जीवन की डोर काट देती है। इसी तरह रोमी लोगों के भी ऐसे ही त्रियेक देवता थे जिन्हें वे पॉर्की कहते थे।
रोम और यूनान के लोग अपनी तकदीर या भाग्य जानने के लिए बड़े बेताब रहते थे। इसलिए उन्होंने बाबुल की ज्योतिष-विद्या और शकुन-विद्या अपना ली और बाद में उन्होंने इसमें और भी बहुत कुछ जोड़ दिया। रोमी लोग जिन घटनाओं के ज़रिए भविष्य जानने की कोशिश करते थे, वे उसे पोर्टेन्ट या चिन्ह कहते थे। और ये चिन्ह जो संदेश देते थे उन्हें ओमीन कहा जाता था। यूनान में सामान्य युग तीसरी सदी तक ज्योतिष-विद्या काफी फैल चुकी थी और सा.यु.पू. ६२ में यूनान ने जन्म कुंडली का ईज़ाद किया। जो अब तक की जानकारी के मुताबिक यूनान की सबसे पहली जन्म कुंडली थी। प्रोफेसर गीलर्बट मुर्रे कहते हैं कि यूनान के लोग ज्योतिष-विद्या में इतनी दिलचस्पी लेने लगे कि ज्योतिष-विद्या “यूनानियों में इस तरह फैल गई जिस तरह दूर-दराज़ के किसी टापू के लोगों में कोई छूत की बीमारी फैल जाती है।”
भविष्य जानने के लिए यूनानी और रोमी लोग ओझाओं या तांत्रिकों की काफी मदद लेते थे। माना जाता था कि ओझाओं के ज़रिए देवता इंसान से बात करते हैं। (प्रेरितों १६:१६-१९ से तुलना कीजिए।) ऐसी बातों में विश्वास करने का क्या नतीजा हुआ? तत्वज्ञानी बर्ट्रेन्ड रसल कहते हैं: “लोगों के मन में उम्मीद जाग उठने के बजाय डर ही डर समा गया। अच्छाई या भलाई करने के बारे में सोचने के बजाय खुद को दुर्घटनाओं या मुसीबतों से बचाने की सोचना ही लोगों की ज़िंदगी का मकसद बन गया।” कुछ ऐसी ही धारणाएँ ईसाईजगत में भी विवाद बन गईं।
“ईसाईजगत” में तकदीर को लेकर बहस
शुरू के ईसाई एक ऐसे समाज में जी रहे थे जहाँ लोगों पर यूनानी और रोमी संस्कृति का ज़बरदस्त असर था इसलिए तकदीर में ईसाईजगत के इन लोगों का विश्वास बहुत ही पक्का था। मिसाल के तौर पर, जो ईसाई धर्म के चर्च फादर कहलाते थे, उनकी शिक्षाएँ काफी हद तक एरीस्टोटल और अफलातून जैसे यूनानी तत्वज्ञानियों की रचनाओं पर आधारित थीं। उन फादरों ने कई पेचीदा सवालों का जवाब देने की कोशिश की। ऐसा ही एक सवाल था कि “अन्त की बात आदि से” जाननेवाला परमेश्वर जब सब कुछ जानता है और सर्वशक्तिमान भी है, तो वह एक प्रेमी परमेश्वर कैसे हो सकता है? (यशायाह ४६:१०; १ यूहन्ना ४:८) उन्होंने यह नतीजा निकाला कि अगर परमेश्वर अंत की बात आदि से ही जानता है तो इसका मतलब है कि उसे ज़रूर पहले से ही यह भी मालूम था कि पहला इंसान पाप करेगा और फिर इसका बुरा अंजाम क्या होगा।
शुरू के एक बहुत ही जाने-माने ईसाई लेखक ऑरिजन ने दावा किया कि हमें एक बहुत ही अहम बात को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और वह यह है कि परमेश्वर ने इंसान को अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी है। उसने लिखा कि “बाइबल में ऐसी कई बातें बताई गईं हैं जिनसे साफ ज़ाहिर होता है कि इंसान को अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी गई है।”
ऑरिजन ने कहा कि अपने कामों के लिए किसी बाहरी शक्ति को दोषी ठहराना “न तो सही है और ना ही तर्कसंगत। अपनी करनी के अंजाम के लिए किसी और को ज़िम्मेदार ठहराने की धारणा ऐसे लोगों की है जो इस धारणा को जड़ से मिटा देना चाहते हैं कि इंसान अपने फैसले करने के लिए आज़ाद है।” ऑरिजन ने दलील दी कि जबकि परमेश्वर जान सकता है कि आगे कौन-सी घटना कब होगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वही उस घटना के लिए ज़िम्मेदार है या फिर वह उसे ज़रूर मुमकिन करेगा। लेकिन सभी इस बात से सहमत नहीं हुए।
चर्च के एक फादर ऑगस्टिन (सा.यु. ३५४-४३०) का लोगों में काफी बोल-बाला था। उसने इस बात की अहमियत कम कर दी कि इंसान अपने फैसले के अंजाम के लिए खुद ज़िम्मेदार होता है और इस तरह उसने तकदीर या भाग्य को लेकर चल रहे विवाद को और भी पेचीदा बना दिया। ऑगस्टिन ने तकदीर की धारणा को ईसाई धर्म के साथ जोड़ दिया। उसकी लिखी एक किताब डे लेबेरो ऑर्बेट्रो को लेकर मध्य युगों के दौरान काफी बहस हुई। इस बहस का आखिर यह नतीजा हुआ कि ईसाईजगत में धर्म-सुधार हुआ और तकदीर के बारे में मतभेद होने की वज़ह से अलग-अलग चर्च अपने-अपने तरीके से इसे समझाने लगे।a
हर कहीं विश्वास किया जाता है
ऐसा नहीं कि तकदीर पर केवल पश्चिम के लोग ही विश्वास करते हैं। कई मुसलमान भी तकदीर में विश्वास करते हैं क्योंकि जब कोई मुसीबत आ पड़ता है तो वे कहते हैं “मकतूब” यानी यह तो लिखा था। यह सच है कि पूरब के कई धर्मों में सिखाया जाता है कि अपने भविष्य को बनाने में इंसान का भी हाथ होता है लेकिन तकदीर या भाग्य की शिक्षा इन धर्मों में भी नज़र आती है।
मिसाल के तौर पर, हिंदू और बौद्ध धर्म के लोग कर्म में विश्वास करते हैं जिसका मतलब है, एक इंसान को पिछले जन्म में किए कर्मों की सज़ा इस जन्म में ज़रूर भुगतनी पड़ेगी। चीन में कछुओं के खोल पर लिखे गए कुछ पुराने लेख मिले हैं जिन्हें भविष्य बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। अमरीका के आदिवासी भी तकदीर में विश्वास करते हैं। उदाहरण के लिए एज़टेक्स कहलानेवाले आदिवासियों ने ऐसे कैलैंडर बनाए जिनसे एक इंसान की तकदीर के बारे में बताया जाता था। अफ्रीका के लोग भी तकदीर में विश्वास करते हैं।
जब हम देखते हैं कि दुनिया के हर कोने में लोग तकदीर में विश्वास करते हैं तो इससे साबित होता है कि एक उच्च शक्ति में विश्वास करना, इंसान की एक बुनियादी ज़रूरत है। अपनी किताब मैन्स रीलिजियन्स में जॉन बी. नॉस कहते हैं, “सभी धर्म किसी न किसी तरीके से यही बात कहते हैं कि इंसान अपने बलबूते पर नहीं जीता और न ही जी सकता है। इंसान का कुदरत से और समाज से बहुत करीबी रिश्ता है और वह उसी के सहारे जीता है। उसे थोड़ा-बहुत एहसास है या फिर वह अच्छी तरह जानता है कि वह किसी दूसरे की मदद के बिना अपनी ही ताकत के भरोसे ज़िंदा नहीं रह सकता।”
परमेश्वर में विश्वास रखने की ज़रूरत के अलावा अपने आस-पास हो रही घटनाओं को भी समझने की बुनियादी ज़रूरत हमारे अंदर है। लेकिन यह विश्वास करना कि इस दुनिया की सृष्टि एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने की है, इस बात को मानने से बिलकुल अलग है कि वह हमारी तकदीर लिख देता है और उसे कोई बदल नहीं सकता। मगर अपना भविष्य बनाने में हम कौन-सी भूमिका अदा करते हैं? और इसमें कहाँ तक परमेश्वर का हाथ होता है?
[फुटनोट]
a हमारी एक और पत्रिका प्रहरीदुर्ग के फरवरी १५, १९९५ के अंक में पेज ३-४ देखिए।
[पेज 5 पर तसवीर]
ज्योतिष-विद्या पर आधारित बाबुल का एक कैलेंडर, जो सा.यु.पू. १००० का है
[चित्र का श्रेय]
Musée du Louvre, Paris
[पेज 7 पर तसवीर]
यूनान और रोम के लोग मानते थे कि तीन देवियाँ हर इंसान का भविष्य तय करती हैं
[चित्र का श्रेय]
Musée du Louvre, Paris
[पेज 7 पर तसवीर]
मिस्र की आइसिस, “भाग्य और नियति की देवी”
[चित्र का श्रेय]
Musée du Louvre, Paris
[पेज 8 पर तसवीर]
कछुओं के खोल पर लिखे चीन के कुछ पुराने लेख जिन्हें भविष्य बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता था
[चित्र का श्रेय]
Institute of History and Philology, Academia Sinica, Taipei
[पेज 8 पर तसवीर]
इस फारसी बक्स पर राशि चक्र का चिन्ह
[चित्र का श्रेय]
Photograph taken by courtesy of the British Museum