आप अपना भविष्य चुन सकते हैं
पुरातत्वविज्ञानी ज़ोन ओट्स कहते हैं कि “पुराने ज़माने में सारी दुनिया,” भविष्य के बारे में जानने के हुनर को भले ही “बुद्धि की निशानी मानती थी,” मगर “इस्राएली भविष्यवक्ताओं को तो इस हुनर को देखकर हँसी आती थी।” ऐसा क्यों?
हालाँकि इस्राएली लोग ऐसे राष्ट्रों के बीच रहते थे जो तकदीर में विश्वास करते थे, मगर वे नहीं मानते थे कि उनकी ज़िंदगी की डोर किसी शक्ति के हाथ में है। परमेश्वर ने इस्राएल जाति को आगाह किया था: “तुझ में कोई ऐसा न हो जो . . . भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्त्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला” हो।—व्यवस्थाविवरण १८:१०, ११.
इस्राएली न तो तकदीर में विश्वास करते थे ना ही भविष्य बतानेवालों से उनका कोई लेना-देना था। फिर भी वे भविष्य के बारे में बेफिक्र रहते थे। इसकी वज़ह समझाते हुए फ्रैंच कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया थीओ बताती है कि इस्राएली विश्वास करते थे कि “यह दुनिया किसी बेतरतीब शक्ति के हाथ में नहीं है बल्कि परमेश्वर ने इंसान को बनाया है और उसे बनाने में उसका एक मकसद भी है।” यह मकसद क्या है?
तकदीर या खुद फैसले करने की आज़ादी
परमेश्वर ने इस्राएलियों से वादा किया था कि अगर वे उसकी आज्ञाएँ मानेंगे तो उनकी ज़िंदगी शांति और खुशहाली से भर जाएगी। (लैव्यव्यवस्था २६:३-६) इसके अलावा वे जानते थे कि मसीहा आनेवाला है जिसकी उन्हें राह देखनी है और वही पूरी दुनिया में सही मायनों में सुख-शांति लाएगा। (यशायाह, अध्याय ११) लेकिन परमेश्वर के इस वादे का यह मतलब नहीं था कि इस्राएली हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहें और सब कुछ अपने आप हो जाएगा। बल्कि उनसे कहा गया था: “जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना।”—सभोपदेशक ९:१०.
यहाँ एक अहम बात यह है कि लोगों को अपनी मरज़ी पर चलने की आज़ादी थी। इस्राएली, परमेश्वर की सेवा करके भविष्य में उसकी आशीष पा सकते थे। परमेश्वर ने उनसे वादा किया था: “यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यान से सुनकर, अपने सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साथ, अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो, तो मैं तुम्हारे देश में बरसात के आदि और अन्त दोनों समयों की वर्षा को अपने अपने समय पर बरसाऊंगा, जिस से तू अपना अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल संचय कर सकेगा।” (व्यवस्थाविवरण ११:१३, १४) जब इस्राएलियों ने परमेश्वर की आज्ञा मानी तो उन्हें आशीष मिली।
इस्राएली जब वादा किये हुए देश में जाने ही वाले थे तो परमेश्वर ने उनके सामने एक चुनाव रखा: “सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।” (व्यवस्थाविवरण ३०:१५) हर आदमी का भविष्य उसके ही कामों और फैसलों पर निर्भर था। अगर वह परमेश्वर की आज्ञा मानता तो उसे आशीष मिलती, अगर नहीं मानता तो उसकी ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो जाती। लेकिन आज हमारे बारे में क्या?
जैसी करनी वैसी भरनी
हम कुदरत के कई नियमों से घिरे हुए हैं और ये सारे नियम हमारी भलाई के लिए ही बनाए गए हैं। ऐसा ही एक नियम है, ‘जैसा करोगे, वैसा भरोगे’ या फिर बाइबल के शब्दों में कहें तो “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।” (गलतियों ६:७) जब हम इस उसूल का मतलब समझ जाते हैं तब कुछ हद तक इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमारे साथ आगे क्या-क्या होगा।
मिसाल के तौर पर, अगर हम अंधाधुंध, तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाएँगे तो हो सकता है कि हमारे साथ कोई दुर्घटना हो जाए लेकिन अगर हम ध्यान से गाड़ी चलाएँगे तो दुर्घटना होने का खतरा कम रहता है। उसी तरह अगर हम सिगरेट पीते हैं तो कैंसर होने का खतरा ज़्यादा होता है, अगर हम नहीं पीते तो कम। बेशक यह ज़रूरी नहीं कि पहले लेख में बताए गए आतंकवादी हमलों जैसा कोई हादसा हमारे साथ भी हो और ऐसा हमारे साथ होगा या नहीं इसका अंदाज़ा लगाना भी वक्त बरबाद करना है। लेकिन तकदीर या भाग्य में विश्वास करने से हमें कुछ फायदा नहीं होगा। इससे हम न तो आज के बारे में और ना ही कल के बारे में जान सकते हैं। झूठी बातों पर विश्वास कर लेने से हमें भविष्य का सामना करने के लिए हौसला नहीं मिल सकता और न ही यह मान लेने से कि हर घटना के लिए परमेश्वर ज़िम्मेदार है।
आपका भविष्य कैसा होगा?
हमारा भविष्य पहले से ही नहीं लिखा जाता मगर आज हम जो भी करते हैं उसी के मुताबिक हमारा भविष्य बनता है। बाइबल साफ-साफ बताती है कि हालाँकि ज़िंदगी परमेश्वर से मिला एक तोहफा है लेकिन आज की हमारी ज़िंदगी और हमारा आनेवाला कल कैसा होगा, यह काफी हद तक हम पर ही निर्भर करता है। परमेश्वर ने यह फैसला हमारे हाथ में छोड़ा है कि अगर हम चाहें तो परमेश्वर को खुश कर सकते हैं या फिर उसे नाराज़ कर सकते हैं और इससे यह ज़ाहिर होता है कि परमेश्वर ने अपना भविष्य चुनने का ज़िम्मा काफी हद तक हम पर छोड़ा है।—उत्पत्ति ६:६; भजन ७८:४०; नीतिवचन २७:११.
इसके अलावा, बाइबल बार-बार इसी बात पर ज़ोर देती है कि हमारा भविष्य हमारे धीरज धरने और जीने के तरीके पर निर्भर करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि अगर सब कुछ पहले से ही लिख दिया जाता है तो हम चाहे धीरज धरें या नहीं या फिर चाहे जिस तरह की भी ज़िंदगी बिताएँ इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। (मत्ती २४:१३; लूका १०:२५-२८) लेकिन अगर हम परमेश्वर की आज्ञा मानने और उसके वफादार रहने का चुनाव करें तो हमारा भविष्य कैसा होगा?
बाइबल बताती है कि हर इंसान के सामने एक बहुत ही उज्जवल भविष्य रखा गया है। जल्द ही पूरी धरती को एक खूबसूरत सुंदर बगीचा बनाया जाएगा जहाँ लोग चैन और अमन से जीएँगे। (भजन ३७:९-११; ४६:८, ९) ऐसा भविष्य आकर ही रहेगा और यह एक पक्की बात है क्योंकि सर्वशक्तिमान सिरजनहार हर हाल में अपने वादे पूरे करता है। (यशायाह ५५:११) लेकिन उस बगीचे समान खूबसूरत दुनिया में हम रहेंगे या नहीं यह तकदीर पर निर्भर नहीं है; अगर इस वक्त हम परमेश्वर की आज्ञाएँ मानकर चलेंगे तो हमें ज़रूर वह ज़िंदगी मिलेगी। (२ थिस्सलुनीकियों १:६-८; प्रकाशितवाक्य ७:१४, १५) परमेश्वर ने यह फैसला हमारे हाथ में छोड़ा है और वह हमसे कहता है: ‘तू जीवन ही को अपना ले, कि तू जीवित रहे।’ (व्यवस्थाविवरण ३०:१९) तो आपका फैसला क्या होगा? आपका भविष्य तकदीर के हाथ में नहीं बल्कि आप ही के हाथ में है।
[पेज 10 पर तसवीरें]
परमेश्वर ने आज्ञा माननेवालों के लिए एक शानदार भविष्य रखा है