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सजग होइए!–2001
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हमारे पाठकों से

झूठा प्रचार मैंने हाल ही में जुलाई-सितंबर, 2000 का अंक पढ़ा है। और मैं लेख, “क्या आपको हर सुनी-सुनायी बात सच मान लेनी चाहिए?” के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ पर रोमनीस (बंजारों) को लेकर हँसी उड़ाना एक आम बात बन गयी है। लोग बढ़ा-चढ़ाकर मज़ाक करते हैं कि वे कैसे चोरी करते हैं। इन लेखों की बदौलत मुझे यह एहसास हुआ है कि ऐसा मज़ाक ठीक नहीं है, इसलिए मैंने इनमें हिस्सा न लेने का फैसला कर लिया है।

के. एम., चेक रिपब्लिक

(g01 3/8)

विदेश में रहना “युवा लोग पूछते हैं . . . क्या मुझे विदेश जाना चाहिए?” (जुलाई-सितंबर, 2000) इस लेख के लिए बहुत धन्यवाद। मैं इस विषय से जुड़े लेखों को हमेशा पढ़ता हूँ, मगर मुझे अकसर लगता था कि इनमें बताए गए खतरों में से कुछ को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है। पिछले साल मैं अपने स्कूल की तरफ से विदेश के एक विश्‍वविद्यालय में एक्सचेंज स्टूडॆंट बनकर गया था। हालाँकि यह मेरे लिए एक दिलचस्प अनुभव था मगर मुझे एहसास हुआ कि अध्यात्मिक तौर पर यह अनुभव मेरे किसी काम का नहीं।

एम. पी., इटली

इस लेख के साथ-साथ एक और लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं विदेश में अपनी ज़िंदगी को सफल कैसे बना सकता हूँ?” (जुलाई 22,2000, अँग्रेज़ी) मेरे लिए ‘सही समय पर भोजन’ था। (मत्ती 24:45) क्योंकि मैंने पहले से ही तय कर रखा था कि मैं एक साल विदेश में रहकर नयी भाषा सीखूँगी। इसलिए लेख में दिए गए सुझावों और काम आनेवाली जानकारी के लिए मैं आपकी एहसानमंद हूँ।

आई. ज़ेड., स्विट्‌ज़रलैंड

(g01 3/8)

मुस्कराइए इस अनमोल लेख, “मुस्कराइए—दिल की खुशी पाइए!” (जुलाई-सितंबर, 2000) को प्रकाशित करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। इस लेख में जो बताया गया है, मैं उससे पूरी तरह सहमत हूँ। इसने मुझे याद दिलाया कि किस तरह मुझे हर वक्‍त अच्छी बातें सोचते रहना चाहिए, ताकि मेरी मुस्कान भी सच्ची और दिल से हो। जी हाँ, मुस्कुराने से हम दूसरों को अपना दोस्त बना सकते हैं। इससे तनाव भी दूर हो जाता है।

पी. सी., चीन

(g01 3/8)

नेकटाई “नेकटाई—कल और आज” (जुलाई-सितंबर, 2000) इस दिलचस्प लेख के लिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहती हूँ। मैं तीन बच्चों की माँ हूँ और मैं उन्हें यहोवा से प्यार करना सिखा रही हूँ। मेरा सबसे बड़ा बेटा 13 साल का है और ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल में टॉक देने के लिए उसे टाई पहनने की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन ना तो उसे और ना ही मुझे टाई बाँधना आता है। मेरे पति जो साक्षी नहीं हैं, उन्होंने भी कभी टाई नहीं बाँधी है। मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने इस लेख में हमें इतने आसान तरीके से टाई बाँधना सिखाया है।

एम. बी., अमरीका

मैं 11 साल का लड़का हूँ। और शायद आपको यह बात अजीब लगे मगर यह सच है कि इस लेख में दिए गए चित्रों के सहारे मैंने टाई बाँधना सीख ही लिया। अब मेरी अलमारी में जितनी भी टाइयाँ हैं, मैं उन सब को पहन सकता हूँ!

ऐ. पी., इटली

(g01 2/22)

अनाकोन्डा मैं जिस प्रदेश में रहती हूँ वहाँ पर अनाकोन्डा पाए जाते हैं। लोग अकसर इन साँपों के बारे में कई किस्से सुनाते हैं मगर इनमें कितनी सच्चाई है यह बताना मुश्‍किल है। आपका लेख, “अनाकोन्डा—क्या नई बातें सामने आईं?” (जून 8,2000) ने मुझे इन साँपों के बारे में क्या सच है और क्या झूठ यह जानने में मदद की है। इतना ही नहीं सृष्टि के इस आश्‍चर्यजनक प्राणी के बारे में मुझे अपने हर सवाल का जवाब भी मिला है।

जे. एस. पी., ब्राज़ील

(g01 2/8)

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