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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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नास्तिकवाद की जड़ें

हम संकट-भरे ग्रह पर जीते हैं; अख़बार की सुर्खियों पर एक क्षणिक झलक इस तथ्य की पुष्टि हर दिन करती है। हमारे संसार की निराशाजनक स्थिति ने अनेक लोगों को परमेश्‍वर के अस्तित्त्व पर संदेह प्रकट करने के लिए प्रेरित किया है। यहाँ तक कि कुछ लोग जो नास्तिक होने का दावा करते हैं, उसके अस्तित्त्व को अस्वीकार करते हैं। क्या यह आपके विषय में सच है?

परमेश्‍वर में विश्‍वास या अविश्‍वास भविष्य के बारे में आपके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित कर सकता है। परमेश्‍वर के बिना, मानवजाति की उत्तरजीविता पूरी तरह से मनुष्य के हाथ में है—मनुष्य की विनाशक क्षमता को ध्यान में रखते हुए, एक निराशाजनक विचार। यदि आप विश्‍वास करते हैं कि परमेश्‍वर अस्तित्त्व में है, तो आप संभवतः स्वीकार करते हैं कि इस ग्रह पर जीवन का एक उद्देश्‍य है—एक ऐसा उद्देश्‍य जो अंततः पूरा हो सकता है।

हालाँकि पूरे इतिहास में परमेश्‍वर के अस्तित्त्व के अस्वीकरण कम रहे हैं, नास्तिकवाद की लोकप्रियता सिर्फ़ हाल की शताब्दियों में ही फैली है। क्या आप जानते हैं क्यों?

जड़ें देखना

एक बहुत ऊँचा पेड़ प्रभावोत्पादक दृश्‍य है। फिर भी, आँखें मात्र पत्तों, डालियों, और तने को देखती हैं। जड़ें—पेड़ का जीवन स्रोत—ज़मीन में काफ़ी अन्दर छिपी होती हैं।

नास्तिकवाद के साथ काफ़ी हद तक ऐसा ही है। एक ऊँचे पेड़ की तरह, १९वीं शताब्दी के पहले और उसके दौरान, परमेश्‍वर के अस्तित्त्व का अस्वीकरण एक प्रभावोत्पादक ऊँचाई तक बढ़ा। क्या जीवन और विश्‍व बिना एक अलौकिक आदि-कारण के अस्तित्त्व में रह सकता था? क्या एक ऐसे सृष्टिकर्ता की उपासना समय की बरबादी है? उन्‍नीसवीं शताब्दी के प्रमुख तत्त्वज्ञों के उत्तर प्रबल और स्पष्ट थे। “जैसे अब हमें एक नीति-संहिता की ज़रूरत नहीं है, वैसे ही हमें धर्म की भी ज़रूरत नहीं है,” फ्रीडरिक नीशे ने घोषित किया। “धर्म मानव मस्तिष्क का स्वप्न है,” लूटविक फॉएरबाक ने निश्‍चयपूर्वक कहा। और कार्ल मार्कस्‌ ने, जिसके लेखन का आगामी दशकों में गहरा प्रभाव होता, निडरता से कहा: “मैं धर्म की ज़ंजीरों से मस्तिष्क की स्वतंत्रता को बढ़ाना चाहता हूँ।”

अनेक लोग प्रभावित हुए। लेकिन, उन्होंने नास्तिकवाद के मात्र पत्तों, डालियों, और तने को ही देखा था। उन्‍नीसवीं शताब्दी की शुरूआत होने से काफ़ी समय पहले उसकी जड़ें मौजूद थीं और अंकुरित हो रही थीं। आश्‍चर्य की बात है, नास्तिकवाद का आधुनिक विकास मसीहीजगत के धर्मों द्वारा प्रोत्साहित किया गया था! यह कैसे? अपने भ्रष्टाचार के कारण, इन धार्मिक संस्थाओं ने अत्यधिक मोहभंग और विरोध उत्पन्‍न किया।

बीज बोए जाते हैं

मध्य युगों के दौरान, कैथोलिक चर्च की अपनी प्रजा पर गलाघोंटू पकड़ थी। “लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की देखभाल करने में धर्माधिकारी वर्ग कुसज्जित लगता था,” दी एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना नोट करती है। उच्च पादरी वर्ग के सदस्य, विशेष रूप से बिशप, कुलीनवर्ग से भर्ती किए जाते थे और वे अपने पद को मुख्यतः प्रतिष्ठा और शक्‍ति का स्रोत समझते थे।”

कुछ लोग, जैसे जॉन कैल्विन और मार्टिन लूथर ने गिरजे को सुधारने की कोशिश की। लेकिन उनके तरीक़े हमेशा मसीह-समान नहीं थे; असहनशीलता और खूनख़राबे ने धर्मसुधार को चिह्नित किया। (मत्ती २६:५२ से तुलना कीजिए।) कुछ आक्रमण इतने बुरे थे कि तीन शताब्दियों बाद अमरीका के तीसरे राष्ट्रपति, थॉमस जैफ़रसन ने लिखा: “किसी भी ईश्‍वर में विश्‍वास न करना, कैल्विन के नृशंस विचारों द्वारा उसकी निन्दा करने से ज़्यादा क्षम्य होगा।”a

स्पष्टतया, धर्मसुधार ने शुद्ध उपासना को पुनःस्थापित नहीं किया। फिर भी, उसने कैथोलिक चर्च की शक्‍ति को घटा दिया। अब वैटिकन का लोगों के धार्मिक विश्‍वास पर एकाधिकार नहीं रहा। अनेक लोग हाल में बने प्रोटेस्टेंट सम्प्रदायों में शामिल हो गए। दूसरे लोगों ने, धर्म से भ्रममुक्‍त होकर, मानव मस्तिष्क को अपनी उपासना का पात्र बनाया। एक स्वच्छंद मनोवृत्ति शुरू हुई जिसमें परमेश्‍वर के बारे में विभिन्‍न विचारों की छूट थी।

संदेहवाद अंकुरित होता है

अठारहवीं शताब्दी तक, संसार की समस्याओं के हल के रूप में विवेकपूर्ण सोच-विचार का सामान्यतः गुणगान किया गया। जर्मन तत्त्वज्ञ इम्मानुएल कैंट ने निश्‍चयपूर्वक कहा कि मार्गदर्शन के लिए राजनीति और धर्म पर मनुष्य की निर्भरता उसकी प्रगति में बाधा बन रही थी। “जानकारी प्राप्त करने का साहस कीजिए!” उसने आग्रह किया। “अपनी अक़्ल इस्तेमाल करने का साहस कीजिए!”

यह मनोवृत्ति ‘ज्ञानोदय’ की विशेषता थी, जो ‘तर्क का युग’ नाम से भी जाना जाता है। यह अवधि जो १८वीं शताब्दी के दौरान रही थी, ज्ञान के लिए एक तीव्र खोज से चिह्नित थी। “संदेहवाद ने अंध-विश्‍वास की जगह ले ली,” इतिहास के मील पत्थर (अंग्रेज़ी) पुस्तक कहती है। “समस्त पुरानी परंपरानिष्ठताओं पर संदेह किया गया।”

जाँच के अधीन आनेवाली एक ‘पुरानी परंपरानिष्ठता’ धर्म था। “लोगों ने धर्म के प्रति अपना दृष्टिकोण बदला,” संसार का विश्‍व इतिहास (अंग्रेज़ी) पुस्तक कहती है। “वे अब स्वर्ग में प्रतिफल की प्रतिज्ञा से संतुष्ट नहीं थे; वे पृथ्वी पर एक बेहतर जीवन की माँग कर रहे थे। वे अलौकिक में अपना विश्‍वास खोने लगे।” वास्तव में, अधिकांश ज्ञानोदय तत्त्वज्ञों ने धर्म को घृणित समझा। विशेषकर, उन्होंने कैथोलिक चर्च के अधिकार-के-भूखे अगुओं पर लोगों को अज्ञानता में रखने का दोष लगाया।

धर्म से असंतुष्ट, इनमें से अनेक तत्त्वज्ञ देववादी बन गए; वे परमेश्‍वर में विश्‍वास करते थे लेकिन दृढ़तापूर्वक कहते रहे कि उसे मनुष्य में कोई दिलचस्पी नहीं।b कुछ लोग स्पष्टवादी नास्तिक बन गए, जैसे कि तत्त्वज्ञ पॉल ऑन्री तीरी ऑलबाक, जिसने दावा किया कि धर्म “विभाजनों, पागलपन, और अपराधों का स्रोत” था। जैसे-जैसे साल बीतते गए, और अधिक लोग मसीहीजगत से ऊब गए और ऑलबाक के विचारों से सहमत हुए।

कितना व्यंग्यात्मक है कि मसीहीजगत ने नास्तिकवाद के विकास को प्रेरित किया! “चर्च नास्तिकवाद की भूमि थे,” धर्मविज्ञान का प्रोफ़ेसर माईकल जे. बक्ले लिखता है। “सामान्य मत वाले संगठित धर्मों ने यूरोप और अमरीका में लोगों की नैतिक संवेदनशीलता को गहरी ठेस पहुँचाई और उन लोगों को इन धर्मों से घृणा हो गयी। चर्चों और सम्प्रदायों ने यूरोप को बरबाद कर दिया था, क़त्ले-आम की योजनाएँ बनायी थीं, धार्मिक विरोध या क्रांति की माँग की थी, राजाओं को जाति-बहिष्कृत करने या उनके पद से उतारने की कोशिश की थी।”

नास्तिकवाद अपनी चरम-सीमा तक पहुँचता है

उन्‍नीसवीं शताब्दी तक, परमेश्‍वर का अस्वीकरण बिना रोक के व्यक्‍त किया जाने लगा और बढ़ने लगा। तत्त्वज्ञों और वैज्ञानिकों को अपने विचारों को निडरतापूर्वक घोषित करने के बारे में कोई खटका नहीं था। “हमारा शत्रु परमेश्‍वर है,” एक स्पष्टवादी नास्तिक ने घोषित किया। “परमेश्‍वर से घृणा करना बुद्धि का मूल है। यदि मानवजाति को असली प्रगति करनी है तो यह नास्तिकवाद के आधार पर ही होनी चाहिए।”

लेकिन, २०वीं शताब्दी के दौरान एक दुर्बोध परिवर्तन हुआ। परमेश्‍वर का अस्वीकरण कम आक्रमणशील हुआ; एक अलग क़िस्म का नास्तिकवाद फैलने लगा, जिसने उन्हें भी प्रभावित किया जो परमेश्‍वर में विश्‍वास का दावा करते हैं।

[फुटनोट]

a धर्मसुधार से परिणित प्रोटेस्टेंट सम्प्रदायों ने अनेक अशास्त्रीय सिद्धान्तों को नहीं छोड़ा। अवेक! अंक अगस्त २२, १९८९, के पृष्ठ १६-२०, और सितम्बर ८, १९८९, के पृष्ठ २३-७ देखिए।

b देववादियों ने दावा किया कि, काफ़ी हद तक घड़ीसाज़ की तरह, परमेश्‍वर ने अपनी सृष्टि को शुरू कर दिया और फिर भावशून्य रीति से असंबद्ध रहते हुए उस पर से अपना ध्यान पूरी तरह से हटा लिया। आधुनिक मीरास (अंग्रेज़ी) पुस्तक के अनुसार, देववादी “विश्‍वास करते थे कि नास्तिकवाद निराश लोगों द्वारा सृजी गयी एक त्रुटि है लेकिन, कैथोलिक चर्च का सत्तावादी ढाँचा और उसके धर्म-सिद्धान्तों की सख़्ती तथा असहनशीलता उससे भी ज़्यादा दुःखद था।”

[पेज 3 पर तसवीर]

कार्ल मार्कस्‌

[पेज 3 पर तसवीर]

लूटविक फॉएरबाक

[पेज 3 पर तसवीर]

फ्रीडरिक नीशे

[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]

COVER: Earth: By permission of the British Library; Nietzsche: Copyright British Museum (see also page 3); Calvin: Musée Historique de la Réformation, Genève (Photo F. Martin); Marx: U.S. National Archives photo (see also page 3); Planets, instruments, crusaders, locomotive: The Complete Encyclopedia of Illustration/J. G. Heck; Feuerbach: The Bettmann Archive (see also page 3)

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