गीत 29
इनाम पे नज़र रखो
1. जब अंधे फिर से देखेंगे,
और बहरे फिर सुन पाएँगे,
वीराने में आए बहार,
रेगिस्ताँ में फूटे फुहार;
ना होंगी फिर बैसाखियाँ,
अज़ीज़ कभी ना हों जुदा,
ऐसा वक़्त तुम देखोगे गर,
रखो तुम इनाम पे नज़र।
2. जब गूँगों की खुले ज़ुबान,
जब बूढ़े फिर होंगे जवान,
फसलों की तब होगी भरमार,
आशीषों की होगी बौछार;
गूँजे किलकारी बच्चों की,
होगी हर कहीं ख़ुशहाली,
मुर्दे ज़िंदा देखोगे गर,
रखो तुम इनाम पे नज़र।
3. जब शेर भी भूसा खाएँगे,
भालू और बछड़े खेलेंगे,
नन्हा होगा उन पे सवार,
सुनेंगे वो उसकी पुकार;
फिर ग़म के आँसू ना बहे,
और साया खौफ़ का ना रहे,
देखोगे ये सभी अगर,
रखो तुम इनाम पे नज़र।