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गीत 24

इनाम पे रखो नज़र!

(2 कुरिंथियों 4:18)

1. आँ-खों की ज्यो-ति लौ-टे-गी

बंद कान सुन पा-एँ-गे हँ-सी

वी-रा-ने में आ-ए ब-हार

रे-गि-स्ताँ में फू-टे फु-हार;

ना हों-गी फिर बै-सा-खि-याँ

अ-ज़ीज़ क-भी ना हों जु-दा

ऐ-सा वक़्त तुम दे-खो-गे गर

र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।

2. खुल जा-एँ-गी जब बंद ज़ु-बाँ

हों-गे जब बू-ढ़े फिर ज-वाँ

हो-गी तब फस्‌-लों की भर-मार

आ-शी-षों की हो-गी बौ-छार;

गूँ-जे किल-का-री ब-च्चों की

हो-गी ख़ुश-हा-ली हर क-हीं

म-रे अ-ज़ीज़ मि-लें-गे गर

र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।

3. जब शेर भी भू-सा खा-एँ-गे

भा-लू बछ-ड़े संग खे-लें-गे

हो-गा नन्‌-हा उन पे स-वार

सु-नें-गे वो उस-की पु-कार;

फिर ग़म के आँ-सू ना ब-हें

और सा-या ख़ौफ़ का ना र-हे

दे-खो-गे ये स-भी अ-गर

र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।

(यशा. 11:6-9; 35:5-7; यूह. 11:24 भी देखिए।)

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