गीत 24
इनाम पे रखो नज़र!
1. आँ-खों की ज्यो-ति लौ-टे-गी
बंद कान सुन पा-एँ-गे हँ-सी
वी-रा-ने में आ-ए ब-हार
रे-गि-स्ताँ में फू-टे फु-हार;
ना हों-गी फिर बै-सा-खि-याँ
अ-ज़ीज़ क-भी ना हों जु-दा
ऐ-सा वक़्त तुम दे-खो-गे गर
र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।
2. खुल जा-एँ-गी जब बंद ज़ु-बाँ
हों-गे जब बू-ढ़े फिर ज-वाँ
हो-गी तब फस्-लों की भर-मार
आ-शी-षों की हो-गी बौ-छार;
गूँ-जे किल-का-री ब-च्चों की
हो-गी ख़ुश-हा-ली हर क-हीं
म-रे अ-ज़ीज़ मि-लें-गे गर
र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।
3. जब शेर भी भू-सा खा-एँ-गे
भा-लू बछ-ड़े संग खे-लें-गे
हो-गा नन्-हा उन पे स-वार
सु-नें-गे वो उस-की पु-कार;
फिर ग़म के आँ-सू ना ब-हें
और सा-या ख़ौफ़ का ना र-हे
दे-खो-गे ये स-भी अ-गर
र-खो तुम इ-नाम पे न-ज़र।
(यशा. 11:6-9; 35:5-7; यूह. 11:24 भी देखिए।)