अध्याय 4
प्रवाह के साथ भाषण देना
जब आप ऊँची आवाज़ में पढ़ते हैं, तब कुछ शब्दों को बोलते वक्त क्या आप अटक जाते हैं? या सभा के सामने भाषण देते वक्त अकसर आपको सही शब्द नहीं सूझते? अगर ऐसा है, तो आपके बोलने में प्रवाह की कमी है। प्रवाह के साथ बोलनेवाला इंसान बहुत आराम से पढ़ता और बात करता है और उसकी ज़बान से बिना किसी परेशानी के एक लय में शब्द निकलते हैं। मगर इसका यह मतलब नहीं कि वह बिना रुके, बिना सोचे-समझे बोलता ही रहता है। इसके बजाय, उसकी बोली कानों में रस घोलती है और मन को भा जाती है। परमेश्वर की सेवा स्कूल में प्रवाह के साथ बोलने के गुण पर खास ध्यान दिया गया है।
बोलने में प्रवाह ना होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ कारण आगे दिए गए हैं। क्या आपको इनमें से किसी पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है? (1) दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्त, अगर कुछ शब्द आपके लिए नए हैं, तो आपको हिचकिचाहट हो सकती है। (2) जब आप कई जगहों पर कुछ पल रुकने के बाद फिर बोलना शुरू करते हैं, तो भाषण का हर वाक्य झटके के साथ आगे बढ़ेगा। (3) पहले से अच्छी तैयारी न करने से भी यह समस्या खड़ी हो सकती है। (4) किसी समूह के सामने बात करते वक्त, प्रवाह से न बोल पाने की एक आम वजह है, जानकारी को क्रमानुसार न लिख पाना। (5) शब्दों का पूरा ज्ञान न होने की वजह से भी एक इंसान को सही शब्द नहीं सूझते और वह अटक-अटककर बात करता है। (6) अगर बहुत-से शब्द ज़ोर देकर बोले जाते हैं, तब भी प्रवाह में कमी आ सकती है। (7) व्याकरण के नियमों से अच्छी तरह वाकिफ न होना भी इसकी एक वजह है।
अगर आपके भाषण में प्रवाह की कमी होगी, तो सुननेवाले उठकर किंगडम हॉल से बाहर नहीं जाएँगे, मगर हाँ, उनका दिमाग शायद सैर पर निकल जाए। ऐसे में आप जो कहेंगे वह ज़्यादातर बेकार ही जाएगा।
दूसरी तरफ, इस बात का भी ख्याल रहे कि भाषण को दमदार और प्रवाह से देने की कोशिश में आपके बात करने का तरीका इतना रोबीला ना लगे कि सुननेवाले शर्मिंदा महसूस करें। अगर आपके सुननेवाले दूसरी संस्कृति के हैं, तो उन्हें शायद आपके बोलने के तरीके से यह लग सकता है कि आपमें बात करने की ज़रा भी तहज़ीब नहीं है, या फिर आप जो कह रहे हैं, उस पर खुद आपको विश्वास नहीं है। और इस वजह से आप अपने मकसद तक पहुँच नहीं पाएँगे। प्रेरित पौलुस को ही लीजिए। उसे भाषण देने में काफी तजुर्बा था, फिर भी वह कुरिन्थियों के पास “निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ” गया। क्यों? क्योंकि वह नहीं चाहता था कि लोग उसकी तरफ ध्यान दें या उसकी वाह-वाही करें।—1 कुरि. 2:3.
इन आदतों से दूर रहिए। बहुत-से लोगों को बात-बात पर “अ..अ..” या “अम्म” कहने की आदत होती है। दूसरे अपनी हर बात “तो,” “जैसा कि,” “हम देखते हैं” या “आप समझ सकते हैं” जैसे शब्दों से शुरू करते हैं। क्या आपको भी इस तरह के तकिया-कलाम इस्तेमाल करने की आदत है? हो सकता है कि खुद आपको इसका एहसास न हो कि आप कितनी बार ये शब्द कहते हैं। तो फिर, क्यों ना आप किसी से आपकी बातचीत को ध्यान से सुनने के लिए कहें और हर बार जब आप तकिया-कलाम इस्तेमाल करते हैं, तब उसे भी उन्हीं शब्दों को दोहराने के लिए कहें। आप दंग रह जाएँगे कि ऐसे शब्द आपके मुँह से कितनी बार निकलते हैं।
कुछ लोग पढ़ते या बात करते वक्त कई बार एक वाक्य बोलना शुरू करते हैं, मगर बीच में ही रुक जाते हैं और अपने आखिर के कुछ शब्द दोहराने के बाद ही आगे की बात कहते हैं।
कुछ लोग काफी तेज़ी से बात करते हैं। मगर होता यह है कि वे एक विचार को लेकर बोलना शुरू करते हैं और आधे में ही उसे छोड़कर कोई दूसरा विचार बताने लगते हैं। हालाँकि वे अटकते नहीं, लेकिन एक विचार बताकर अचानक दूसरे विचार पर जाने से भी प्रवाह में रुकावट आती है।
सुधार करने के तरीके। अगर ऐन वक्त पर आपकी ज़बान पर सही शब्द नहीं आता, तो आपको अपना शब्द-ज्ञान बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, साथ ही जी-तोड़ मेहनत करनी होगी। प्रहरीदुर्ग, सजग होइए! या दूसरे साहित्य पढ़ते-पढ़ते जब आप ऐसे शब्दों पर आते हैं जो आपके लिए नए हैं, तो उन्हें नोट कर लीजिए। ऐसे शब्दों को शब्दकोश में खोलकर देखिए कि उनका मतलब क्या है और उन्हें कैसे बोला जाता है। फिर इनमें से कुछ शब्दों को अपने शब्द-ज्ञान में जोड़ लीजिए। अगर आपकी भाषा में शब्दकोश नहीं है, तो किसी ऐसे शख्स की मदद लीजिए जिसे उस भाषा का अच्छा ज्ञान हो।
ऊँची आवाज़ में पढ़ने की आदत डालने से भी आप सुधार कर पाएँगे। पढ़ते वक्त मुश्किल शब्दों को नोट कर लीजिए और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से कई दफा दोहराइए।
प्रवाह के साथ पढ़ पाने के लिए यह समझना ज़रूरी है कि किस तरह शब्दों को मिलाने से वाक्य का मतलब बनता है। आम तौर पर कई शब्दों को मिलाकर पढ़ने पर ही आप उनके लेखक के विचारों को समझ पाएँगे। ऐसे शब्दों पर खास ध्यान दीजिए। अगर आपको फायदेमंद लगे, तो उन पर निशान लगाइए। याद रखिए कि पढ़कर सुनाने में आपका मकसद सिर्फ शब्दों को सही-सही बोलना नहीं है, बल्कि विचारों को साफ-साफ ज़ाहिर करना भी है। एक वाक्य की इस तरह जाँच करने के बाद, अगले वाक्य पर जाइए। ऐसा करते हुए आप पूरे पैराग्राफ का अध्ययन कीजिए। यह जानने की कोशिश कीजिए कि पूरे पैराग्राफ में एक-के-बाद-एक विचारों को किस तरह पिरोया गया है। फिर ज़ोर से पढ़ने का अभ्यास कीजिए। पैराग्राफ को तब तक बार-बार पढ़िए जब तक कि आप बिना अटके और बिना गलत जगहों पर रुके, आसानी से नहीं पढ़ लेते। इसके बाद दूसरे पैराग्राफ पर जाइए।
अब पढ़ने की अपनी रफ्तार बढ़ाइए। अगर आपको मालूम है कि किस तरह वाक्य में शब्दों को मिलाकर मतलब बनता है, तब आप एक-एक शब्द पढ़ने के बजाय उन्हें मिलाकर पढ़ पाएँगे। साथ ही, आपको पहले से अंदाज़ा हो जाएगा कि अगले शब्द क्या होने चाहिए। तब आप काफी असरदार तरीके से पढ़ने के काबिल होंगे।
कुछ किताबों को बिना किसी तैयारी के पढ़ने की आदत डालना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। मिसाल के लिए, बिना तैयारी के हर दिन का वचन और उसके नीचे दी गयी टिप्पणियाँ ज़ोर से पढ़िए; ऐसा रोज़ कीजिए। अपनी आँखों को एक-एक शब्द पढ़ने के बजाय ऐसे शब्दों को मिलाकर पढ़ने की आदत डलवाइए जिससे पूरे-पूरे विचार ज़ाहिर हों।
अपनी बातचीत में प्रवाह लाने के लिए ज़रूरी है कि आप सोच-समझकर बोलें। हर रोज़ की बातचीत में ऐसा करने की आदत डालिए। पहले यह तय कर लीजिए कि आप कौन-कौन-से विचार, किस क्रम में बताना चाहते हैं; फिर अपनी बात शुरू कीजिए। हड़बड़ाइए मत। एक विचार पूरी तरह व्यक्त करने के बाद ही दूसरे विचार पर बोलना शुरू कीजिए, बीच में ही बात को मत बदलिए। अगर आप छोटे-छोटे सरल वाक्यों का इस्तेमाल करेंगे, तो आपको आसानी होगी।
अगर आपके मन में यह पहले से साफ हो कि आपको क्या कहना है तो शब्द खुद-ब-खुद निकलेंगे। आम तौर पर, हमें बात करने के लिए शब्दों को चुनने की ज़रूरत नहीं पड़ती। प्रवाह के साथ बोलने का अभ्यास करने के लिए अच्छा होगा अगर आप पहले, अपने विचार को मन में पूरी तरह उतार लें, उसके बाद जैसे-जैसे आप बात करते हैं, शब्दों का चुनाव करें। इस तरह जब आप शब्दों के बजाय विचारों पर ध्यान देंगे, तो शब्द खुद-ब-खुद आपकी ज़बान पर आने लगेंगे और आप दिल से बात कर पाएँगे। लेकिन अगर आप विचारों के बदले शब्दों के बारे में सोचने लगेंगे, तो आप रुक-रुककर बात करेंगे। इसलिए अभ्यास कीजिए, तभी जाकर आप प्रवाह के साथ बोलने का गुण निखारने में कामयाब होंगे। यह एक ऐसा गुण है जो असरदार तरीके से बात करने और पढ़ने के लिए बेहद ज़रूरी है।
जब यहोवा ने मूसा को अपनी तरफ से इस्राएल जाति और फिरौन के सामने बात करने के लिए भेजा, तो मूसा को लगा कि वह इस काम के काबिल नहीं है। क्यों? क्योंकि मूसा बोलने में निपुण नहीं था; शायद उसकी बोली में दोष था। (निर्ग. 4:10; 6:12) मूसा ने ज़िम्मेदारी उठाने से इनकार करते हुए कई वजह बतायीं, मगर यहोवा ने उसकी एक न सुनी। यहोवा ने उसके साथ हारून को भेजा ताकि हारून, मूसा की ज़बान बनकर उसके लिए बात करे। इतना ही नहीं, यहोवा ने खुद मूसा को बात करने में मदद दी। नतीजा यह हुआ कि मूसा अलग-अलग जनों और छोटे-छोटे समूहों के सामने ही नहीं, बल्कि पूरी-की-पूरी जाति के सामने भी बोल पाया। यह उसने एक बार नहीं, मगर कई बार किया और वह भी बड़े असरदार ढंग से। (व्यव. 1:1-3; 5:1; 29:2; 31:1, 2, 30; 33:1) अगर आप भी प्रवाह के साथ बोलने के लिए अपनी तरफ से पूरी-पूरी कोशिश करेंगे और यहोवा पर भरोसा रखेंगे, तो आप भी अपनी बोली से परमेश्वर का आदर कर पाएँगे।