अध्याय 13
नज़र मिलाकर बात करना
हमारी आँखें, हमारे रवैए और हमारी भावनाओं का आईना है। इनमें हैरानी या डर नज़र आ सकता है। इनमें दया और प्यार झलक सकते हैं। कभी-कभी ये किसी बात पर शक होने की चुगली कर सकती हैं। और इनमें गहरे सदमे की झलक भी मिल सकती है। एक बुज़ुर्ग आदमी ने अपने वतन के लोगों के बारे में, जो बहुत दुःख झेल चुके थे, यूँ कहा: “लोग हमारी आँखों में पढ़ सकते हैं कि हम पर क्या बीती है।”
हम कहाँ देखकर बात करते हैं, इससे लोग हमारे बारे में और हम जो कहते हैं, उसके बारे में राय कायम करते हैं। बहुत-सी संस्कृतियों में लोग आम तौर पर ऐसे इंसान पर भरोसा करते हैं, जो दोस्ताना अंदाज़ में नज़र मिलाकर बात करता है। दूसरी तरफ, अगर एक शख्स उनकी तरफ देखकर बात करने के बजाय उनके पैरों या दूसरी चीज़ों को देखता है, तो वे उसकी ईमानदारी या काबिलीयत पर शक कर सकते हैं। कुछ जगहों पर किसी इंसान से, खासकर विपरीत लिंग के व्यक्ति, किसी मुखिया या फिर किसी जानी-मानी हस्ती से बात करते वक्त उसे घूर-घूरकर देखना, बदतमीज़ी, ढिठाई या चुनौती देने की निशानी माना जाता है। और कुछ इलाकों में तो एक जवान या बच्चे का किसी बड़े-बुज़ुर्ग से नज़र मिलाकर बात करने का मतलब है कि वह अपने बड़ों का आदर करना बिलकुल नहीं जानता।
लेकिन जिन हालात में नज़र मिलाकर बात करने में लोगों को एतराज़ नहीं होगा, वहाँ पर ज़रूरी बात कहते वक्त नज़र मिलाने से आपकी बात का वज़न बढ़ सकता है। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि आपको अपनी बात पर पूरा यकीन है। गौर कीजिए कि जब यीशु के चेलों ने बड़ी हैरानी से पूछा: “किस का उद्धार हो सकता है?” तो यीशु ने इसका जवाब कैसे दिया। बाइबल बताती है: “यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती 19:25, 26) बाइबल यह भी बताती है कि प्रेरित पौलुस बड़े ध्यान से देखता था कि सुननेवाले उसकी बातें सुनकर क्या करते थे। एक बार जब वह भाषण दे रहा था, तो उस वक्त सभा में एक ऐसा पुरुष भी मौजूद था जो पैदाइशी लँगड़ा था। इस घटना के बारे में, प्रेरितों 14:9, 10 कहता है: “वह पौलुस को बातें करते सुन रहा था और इस ने उस की ओर टकटकी लगाकर देखा कि इस को चंगा हो जाने का विश्वास है। और ऊंचे शब्द से कहा, अपने पांवों के बल सीधा खड़ा हो।”—तिरछे टाइप हमारे।
प्रचार के लिए सुझाव। प्रचार में जब आप लोगों के पास जाते हैं, तो दोस्ताना अंदाज़ में और प्यार से बात कीजिए। जहाँ सही लगे, वहाँ पर बातचीत शुरू करने के लिए ऐसे विषय पर सवाल पूछिए जिसमें सामनेवाले को दिलचस्पी हो और जिससे वह सोचने पर मजबूर हो जाए। बात करते वक्त नज़र मिलाने की कोशिश कीजिए, या कम-से-कम लिहाज़ और अदब से उसकी तरफ देखिए। जिसके चेहरे पर एक खिली मुस्कान हो और जिसकी आँखों में दिली खुशी की चमक हो, तो भला कौन उसकी बात सुनने से खुद को रोक पाएगा। चेहरे पर ऐसे भाव से सामनेवाला पाता है कि आप स्वभाव से किस तरह के इंसान हैं, साथ ही वह बिना घबराए, आराम से आपसे बात कर पाता है।
जहाँ सही लगे वहाँ पर सामनेवाले की आँखों में देखकर आप पता लगा सकते हैं कि आपको उन हालात में क्या करना है। अगर वह गुस्से में है या उसे दिलचस्पी नहीं है, तो यह आप उसकी आँखें देखकर बता सकते हैं। अगर उसे आपकी बात समझ में नहीं आयी है, तो आप यह भाँप सकते हैं। अगर उसे बेचैनी महसूस हो रही है, तो आम तौर पर यह बताना मुश्किल नहीं होगा। और अगर वह जानने के लिए बड़ा उत्सुक है, तो यह भी साफ ज़ाहिर हो जाएगा। उसकी आँखों के भाव से आप समझ जाएँगे कि आपको कितनी तेज़ी से बात करनी चाहिए, बातचीत में उसे भी शामिल करने के लिए थोड़ी और कोशिश करनी चाहिए, बात वहीं खत्म करनी चाहिए, या अगर मुमकिन हो तो बाइबल अध्ययन कैसे किया जाता है, इसका एक प्रदर्शन दिखाना चाहिए।
चाहे आप गवाही दे रहे हों या फिर किसी को घर पर बाइबल अध्ययन करा रहे हों, सामनेवाले इंसान का लिहाज़ करते हुए, नज़र-से-नज़र मिलाकर बात करने की कोशिश कीजिए। लेकिन उसे घूर-घूरकर मत देखिए वरना उसे बेचैनी महसूस होगी। (2 राजा 8:11) फिर भी, स्वाभाविक और दोस्ताना अंदाज़ में, समय-समय पर उसकी तरफ देखिए। बहुत-से देशों में ऐसा करना, सच्ची दिलचस्पी दिखाने की निशानी है। यह बात सही है कि जब आप बाइबल से या किसी और साहित्य से पढ़ते हैं, तो आपकी नज़र उसी पर टिकी होगी। लेकिन किसी मुद्दे पर ज़ोर देने के लिए, आपको सीधे सामनेवाले को देखना चाहिए, चाहे यह सिर्फ घड़ी-भर के लिए ही हो। अगर आप बीच-बीच में आँख उठाकर उसकी तरफ देखेंगे, तो आप अंदाज़ा लगा पाएँगे कि जो पढ़ा जा रहा है, उसके बारे में उसका रुख कैसा है।
अगर शुरू-शुरू में शर्मीलेपन की वजह से, आँख-से-आँख मिलाकर बात करने में आपको झिझक महसूस होती है, तो हिम्मत मत हारिए। इसके बजाय, कोशिश करते रहने से धीरे-धीरे सही तरीके से आँख-से-आँख मिलाकर बात करना आपकी आदत बन जाएगी। और इससे आप ज़्यादा असरदार तरीके से दूसरों से बात कर पाएँगे।
भाषण देते वक्त। बाइबल बताती है कि यीशु ने अपना पहाड़ी उपदेश शुरू करने से पहले, ‘अपने चेलों की ओर देखा।’ (लूका 6:20) आप भी उसकी मिसाल पर चलिए। अगर आप एक समूह के सामने भाषण देने जा रहे हैं, तो सबसे पहले नज़र उठाकर उनकी तरफ देखिए और कुछ सेकंड रुकने के बाद अपना भाषण शुरू कीजिए। बहुत-सी जगहों पर, इसका मतलब सभी को देखना नहीं है, बल्कि समूह में से कुछ लोगों को चुनकर फिर उनसे नज़र मिलाना है। इस तरह थोड़ी देर रुककर अपनी बात शुरू करने से आपकी घबराहट काफी कम हो सकती है। साथ ही इससे, लोगों को आपके चेहरे पर जो भाव नज़र आ रहा है, उसके मुताबिक अपना मन तैयार करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, उन्हें शांत बैठने और आपके भाषण को ध्यान से सुनने के लिए तैयार होने का भी वक्त मिलता है।
भाषण के दौरान सुननेवालों की तरफ देखिए। हाज़िर सभी लोगों को देखना काफी नहीं होगा, बल्कि उनमें से कुछ लोगों को चुनकर उनके साथ आँख-से-आँख मिलाकर बात करने की कोशिश कीजिए। लगभग हर संस्कृति में, भाषण देनेवाले से यह उम्मीद की जाती है कि वह कुछ हद तक लोगों से नज़र मिलाकर बात करे।
हाज़िर लोगों को देखकर बात करने का मतलब सिर्फ कुछ मिनटों के अंतर पर, हॉल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक नज़र दौड़ाना नहीं है। इसके बजाय, पूरे अदब के साथ सुननेवालों में से किसी एक जन के साथ नज़र मिलाइए और अगर मुनासिब हो, तो उसी को देखते हुए पूरा वाक्य कहिए। फिर दूसरे सुननेवाले की तरफ देखकर, उससे एक या दो वाक्य बोलिए। किसी भी व्यक्ति को ज़्यादा देर तक मत देखिए वरना उसे बेचैनी महसूस होगी और हाज़िर सभी लोगों में से सिर्फ गिने-चुने लोगों से नज़र मत मिलाइए। सुननेवालों में से अलग-अलग लोगों के साथ इसी तरह नज़र-से-नज़र मिलाइए। और जब आप एक जन से कुछ कह रहे हों, तब उसी से बात कीजिए और उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कीजिए, उसके बाद दूसरे की तरफ नज़र घुमाइए।
अपने नोट्स्, स्पीकर स्टैंड पर रखिए, हाथ में पकड़िए या फिर अपनी बाइबल में रखिए ताकि थोड़ी-सी आँख नीची करके उन पर एक नज़र डाल सकें। अगर आपको अपने नोट्स् देखने के लिए पूरा सिर झुकाना होगा, तो आप ठीक से सुननेवालों की तरफ नहीं देख पाएँगे। आपको यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि आप कितनी बार और कब अपने नोट्स् देखेंगे। जब आपका भाषण अपनी बुलंदी पर आ रहा है, तब अगर आपकी नज़र नोट्स् पर रहेगी, तो आप न सिर्फ लोगों के भाव देखने से चूक जाएँगे बल्कि आपकी बातों का दम भी कम हो जाएगा। उसी तरह, अगर आप बार-बार अपने नोट्स् देखते रहेंगे, तो आप सुननेवालों के साथ नज़र नहीं मिला पाएँगे।
जब आप किसी की तरफ गेंद फेंकते हैं, तो आप उसकी तरफ देखते हैं कि उसने गेंद पकड़ी है या नहीं। अपने भाषण में हर बार जब आप एक अलग विचार पेश करते हैं, तो यह सुननेवालों की तरफ “गेंद फेंकने” के बराबर है। और जब वे सिर हिलाते, मुस्कुराते, या पूरे ध्यान से आपकी ओर देखते हैं, तो इसका मतलब है कि उन्होंने आपकी “गेंद पकड़ ली” है यानी वे आपके विचार को समझ गए हैं। अगर आप सही तरीके से लोगों की तरफ देखकर बात करेंगे, तो इससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि आपके विचारों को लोग “पकड़” रहे हैं या नहीं।
जब आपको कलीसिया को पढ़कर सुनाने का भाग मिलता है, तो पढ़ते वक्त क्या आपको लोगों की तरफ देखना चाहिए? अगर आप बाइबल से पढ़ रहे हैं और हाज़िर सभी जन अपनी-अपनी बाइबलें खोलकर आपकी पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं, तो उन्हें शायद ही इस बात की खबर हो कि आप उनकी तरफ देख रहे हैं। फिर भी सुननेवालों को देखने से आप जोश और भावनाओं के साथ पढ़ पाएँगे क्योंकि उनकी तरफ नज़र उठाने से आप उनके चेहरे के भाव देख पाएँगे। और अगर हाज़िर लोगों में से किसी का ध्यान बाइबल पर होने के बजाय इधर-उधर भटक रहा है, तो भाषण देनेवाले के साथ आँख मिलते ही उसका ध्यान दोबारा पढ़ाई में लग जाएगा। यह बात सच है कि पढ़ते वक्त आप सिर्फ एक पल के लिए अपनी नज़र उठा पाएँगे, मगर यह इस तरह नहीं किया जाना चाहिए कि आप पढ़ाई करते-करते अटक जाएँ। इसलिए, अच्छा होगा कि बाइबल को हाथ में ऊपर उठाए रखें, अपना सिर सीधा सामने की तरफ और अपनी ठुड्डी, छाती से सटने न दें।
कभी-कभी, प्राचीनों को अधिवेशन में मैन्यूस्क्रिप्ट से पढ़कर भाषण देने के लिए कहा जाता है। इसे असरदार तरीके से पेश करने के लिए तजुर्बे, अच्छी तैयारी करने और बार-बार अभ्यास करने की ज़रूरत पड़ती है। माना कि मैन्यूस्क्रिप्ट से भाषण देते वक्त सुननेवालों को देखने के बहुत कम मौके मिलते हैं। लेकिन अगर भाषण देनेवाले ने अच्छी तैयारी की हो, तो वह अपने नोट्स् पर ध्यान बनाए रखने के साथ-साथ, समय-समय पर नज़र उठाकर सुननेवालों को भी देख पाएगा। ऐसा करने से वह अपने सुननेवालों का ध्यान बाँध पाएगा और इससे वे पेश की जा रही ज़रूरी आध्यात्मिक हिदायतों से पूरा-पूरा फायदा उठा पाएँगे।