अध्याय 23
जानकारी पर अमल करने के फायदे साफ-साफ बताना
आप चाहें किसी एक आदमी से बात कर रहे हों या बहुत सारे लोगों से, आपका यह मानना सही नहीं होगा कि आपको अपने विषय में जितनी दिलचस्पी है वैसी ही दिलचस्पी दूसरों को भी होगी। आपका संदेश है तो ज़रूरी, लेकिन अगर आप लोगों को उस पर चलने के फायदे साफ-साफ नहीं बताएँगे, तो उनका ध्यान आपकी बात पर ज़्यादा देर तक नहीं रहेगा।
यह बात तब भी सच है जब आप किंगडम हॉल में कोई भाग पेश करते हैं। अगर आप कोई ऐसा दृष्टांत या अनुभव बताएँगे, जिसे लोगों ने पहले कभी नहीं सुना है, तो वे शायद ध्यान लगाकर सुनें। लेकिन अगर आप सिर्फ जाने-पहचाने मुद्दे ही बताएँगे और उनके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं देंगे, तो लोगों का ध्यान भटक सकता है। इसलिए उन्हें यह समझाना ज़रूरी है कि आप जो बता रहे हैं, उससे उन्हें क्यों और कैसे सही मायनों में फायदा होगा।
बाइबल हमें फायदेमंद बातें यानी खरी बुद्धि की बातों के बारे में सोचने का बढ़ावा देती है। (नीति. 3:21) यहोवा ने बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के ज़रिए लोगों का ध्यान “धार्मिकों की बुद्धि” की तरफ दिलाया था जो फायदेमंद है। (लूका 1:17, नयी हिन्दी बाइबिल) यह ऐसी बुद्धि है जो यहोवा के लिए सही किस्म का भय होने पर मिलती है। (भज. 111:10) जो इस बुद्धि की अहमियत समझते हैं, वे आज ज़िंदगी के हालात का सही तरह से सामना कर पाते हैं और भविष्य में मिलनेवाले सत्य जीवन यानी हमेशा की ज़िंदगी को वश में कर लेते हैं।—1 तीमु. 4:8; 6:19.
भाषण को फायदेमंद बनाइए। आपके भाषण से लोगों को तभी फायदा होगा, जब आप भाषण की तैयारी करते वक्त न सिर्फ जानकारी के बारे में, बल्कि सुननेवालों के बारे में भी ध्यान से सोचें। उन्हें एक भीड़ मत समझिए। उस भीड़ में अलग-अलग लोग और परिवार हैं। उनमें छोटे-छोटे बच्चे, किशोर, बालिग और बुज़ुर्ग भी हो सकते हैं। दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग, साथ ही ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो तब से यहोवा की सेवा करते आ रहे हैं जब आप शायद पैदा भी नहीं हुए थे। कुछ लोग आध्यात्मिक मायनों में प्रौढ़ होंगे, तो कुछ ऐसे होंगे जिन पर शायद अब भी संसार के रवैए और तौर-तरीकों का ज़बरदस्त असर हो। इसलिए खुद से पूछिए: ‘मैं जो चर्चा करने जा रहा हूँ, उससे सुननेवालों को क्या फायदा होगा? मैं उन्हें भाषण का असली मुद्दा कैसे समझा सकता हूँ?’ आप चाहें तो ऊपर बताए किसी एक या दो श्रेणी के लोगों पर खास ध्यान देने की सोच सकते हैं। लेकिन आप बाकी लोगों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ मत कीजिए।
अगर आपको बाइबल की किसी बुनियादी शिक्षा पर भाषण सौंपा जाता है, तो आप क्या कर सकते हैं? आप अपने भाषण से सुननेवालों में उन लोगों को कैसे फायदा पहुँचा सकते हैं, जो इस बुनियादी शिक्षा पर पहले से विश्वास करते हैं? इस शिक्षा पर उनका विश्वास मज़बूत करने की कोशिश कीजिए। कैसे? इसके बारे में बाइबल में दिए सबूतों पर तर्क करने से। इसके अलावा, आप बाइबल की इस शिक्षा के लिए उनकी कदरदानी भी बढ़ा सकते हैं। आप दिखा सकते हैं कि यह शिक्षा कैसे बाइबल की दूसरी सच्चाइयों से और यहोवा के गुणों से मेल खाती है। ऐसे कुछ उदाहरण, या हो सके तो सच्चे अनुभव बताइए जिसमें यह दिखाया गया हो कि इस शिक्षा की सही समझ पाकर कैसे लोगों को फायदा हुआ है और भविष्य के बारे में उनका नज़रिया बदल गया है।
जानकारी पर अमल करके फायदा कैसे पाएँ, इस बारे में भाषण के आखिर में सिर्फ चंद शब्द कहना काफी नहीं है। भाषण की शुरूआत से ही, सुननेवाले हरेक जन को यह महसूस होना चाहिए कि “यह बात मुझ पर लागू होती है।” शुरूआत में ऐसी बुनियाद डालने के बाद, भाषण का हर खास मुद्दा समझाते वक्त और फिर समाप्ति में बताइए कि इस जानकारी पर अमल करना क्यों फायदेमंद है।
कोई जानकारी किस तरह लागू होती है, इस बारे में बताते वक्त ध्यान रखिए कि यह बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक हो। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है, जानकारी को इस तरह लागू करना जिससे नज़र आए कि आप लोगों से प्यार करते हैं और उनके हमदर्द हैं। (1 पत. 3:8; 1 यूह. 4:8) प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीके की कलीसिया की पेचीदा समस्याओं के बारे में बात करते वक्त भी, उस कलीसिया के मसीही भाई-बहनों की आध्यात्मिक तरक्की की अच्छी बातों पर ज़ोर दिया। उसने यह भी भरोसा ज़ाहिर किया कि वह जिस मामले पर चर्चा कर रहा था, उस पर वे सही कदम उठाने को ज़रूर तैयार होंगे। (1 थिस्स. 4:1-12) यह हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!
क्या आपके भाषण का मकसद, सुसमाचार के प्रचार और सिखाने के काम के लिए दूसरों में जोश पैदा करना है? तो इस काम के लिए सुननेवालों के दिल में उत्साह और इस बड़े सम्मान के लिए कदरदानी जगाइए। लेकिन, ऐसा करते वक्त याद रखिए कि प्रचार में हर कोई एक-बराबर हिस्सा नहीं ले पाता, कुछ ज़्यादा हिस्सा ले पाते हैं, तो कुछ कम और बाइबल भी इस बात को मानती है। (मत्ती 13:23) इसलिए अपने भाइयों को दोषी मत महसूस करवाइए कि वे ज़्यादा प्रचार नहीं कर रहे हैं। इब्रानियों 10:24 हमसे “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये” गुज़ारिश करता है। अगर हम लोगों के अंदर प्रेम की भावना जगाएँगे, तो वे अपने आप ही नेक इरादे से काम करेंगे। सबके लिए एक ही स्तर तय करने के बजाय, यह बात ध्यान में रखिए कि यहोवा हमसे चाहता है कि हम ‘विश्वास से आज्ञा मानें।’ (रोमि. 16:26) इसलिए, हमें अपना और अपने भाइयों का भी विश्वास मज़बूत करना चाहिए।
हमारे संदेश की अहमियत समझने में दूसरों की मदद करना। जब आप लोगों को गवाही देते हैं, तब उन्हें यह ज़रूर बताइए कि सुसमाचार को कबूल करने के क्या-क्या फायदे हैं। इसके लिए यह जानना ज़रूरी है कि आपके प्रचार के इलाके में लोगों को ज़्यादातर किन बातों की चिंता रहती है। यह आप कैसे जान सकते हैं? रेडियो या टी.वी. पर समाचार सुनिए। अखबार की खास-खास खबरें पढ़िए। इसके अलावा, लोगों को बातचीत में शामिल करने की कोशिश कीजिए और जब वे बोलते हैं, तब ध्यान से सुनिए। आप शायद पाएँ कि वे ऐसी गंभीर समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं, जैसे कि वे नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, उन्हें घर का किराया भरने की परेशानी है, वे बीमार हैं, उनके परिवार में किसी सदस्य की मौत हो गयी है, वे अपराध के खतरे को लेकर चिंतित हैं, उन्होंने किसी ऊँचे अधिकारी के हाथों नाइंसाफी झेली है, उनका परिवार टूट गया है, उन्हें जवान बच्चों को अनुशासन में रखने की समस्या है, वगैरह। क्या बाइबल इन समस्याओं से निपटने में उनकी मदद कर सकती है? बेशक कर सकती है।
किसी से बातचीत शुरू करते वक्त, आप शायद एक विषय को मन में रखकर बात करें। लेकिन जब सामनेवाला यह ज़ाहिर करता है कि वह किसी और बात को लेकर परेशान है, तब मुमकिन हो तो उसी बात पर चर्चा कीजिए। या फिर बताइए कि आप उस विषय पर कुछ फायदेमंद जानकारी लेकर उसके पास दोबारा आएँगे। यह सच है कि हमारा मकसद, ‘दूसरों की बातों में टाँग अड़ाना’ नहीं है, लेकिन बाइबल जो बढ़िया सलाह देती है, उसे दूसरों को बताने में हमें खुशी मिलती है। (2 थिस्स. 3:11, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसमें कोई शक नहीं कि लोगों पर ऐसी सलाह का ज़्यादा असर होता है, जो उनकी ज़िंदगी से ताल्लुक रखती हो।
अगर लोग यह नहीं समझ पाएँगे कि हमारे संदेश का उनकी ज़िंदगी से क्या नाता है, तो वे शायद फौरन बातचीत रोक दें। और अगर उन्होंने बातचीत ना भी रोकी, तब भी अगर हम उन्हें अपने संदेश से होनेवाले फायदे न बताएँ, तो हमारे संदेश का उनकी ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दूसरी तरफ, अगर हम अपने संदेश से होनेवाले फायदे साफ-साफ बताएँ, तो हमारी बातचीत लोगों की ज़िंदगी को पूरी तरह बदल सकती है।
दूसरों को बाइबल का अध्ययन कराते वक्त, उन्हें हमेशा बताइए कि सीखी हुई बातों पर वे कैसे अमल कर सकते हैं। (नीति. 4:7) उन्हें बाइबल की सलाह, सिद्धांत और उदाहरण समझाइए जिनसे वे सीख सकते हैं कि उन्हें यहोवा के मार्गों पर कैसे चलना चाहिए। यहोवा के मार्गों पर चलने से होनेवाले फायदों पर ज़ोर दीजिए। (यशा. 48:17, 18) इससे अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने की उनमें इच्छा पैदा होगी। उनके दिल में यहोवा के लिए प्रेम और उसे खुश करने की इच्छा बढ़ाइए और कोशिश कीजिए कि वे परमेश्वर के वचन की सलाह पर चलने के लिए दिल से प्रेरित हों।