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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 26

तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार जानकारी

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

भाषण की जानकारी को ऐसे क्रम में रखिए जिससे सुननेवाले अच्छी तरह समझ सकें कि एक विचार का दूसरे के साथ क्या ताल्लुक है। और सभी विचारों का ताल्लुक, जिस नतीजे पर आप पहुँचते हैं या जिस मकसद को हासिल करना चाहते हैं, किस तरह है।

इसकी क्या अहमियत है?

जब जानकारी को तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार ढंग से पेश की जाती है, तो उसे समझना, उस पर यकीन करना और उसे याद रखना लोगों के लिए आसान हो जाता है।

तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार जानकारी तैयार करने से पहले, आपको यह तय करने की ज़रूरत है कि आपका मकसद क्या है। क्या आपका मकसद, सिर्फ किसी विषय पर, जैसे किसी विश्‍वास, रवैए, गुण, किसी तरह के चालचलन या जीने के तरीके के बारे में जानकारी देना है? क्या आपका मकसद किसी विचार को सही या गलत साबित करना है? क्या किसी चीज़ के लिए लोगों में कदरदानी बढ़ाना या उन्हें कोई कदम उठाने के लिए उकसाना है? आप अपनी जानकारी चाहे एक इंसान के या फिर बड़े समूह के सामने पेश कर रहे हों, इसमें कामयाब होने के लिए पहले यह देखने की ज़रूरत है कि वे आपके विषय के बारे में कितना जानते हैं और उसके बारे में उनका नज़रिया कैसा है। इसके बाद, अपनी जानकारी की एक ऐसी आउटलाइन बनाइए जिससे आप अपना मकसद हासिल कर पाएँ।

प्रेरितों 9:22 कहता है कि शाऊल (पौलुस), दमिश्‍क में सेवा करते वक्‍त “इस बात का [“तर्कसंगत,” NW] प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्‍क के रहनेवाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा।” पौलुस ने कौन-सा तर्कसंगत प्रमाण दिया? पौलुस ने बाद में अन्ताकिया और थिस्सलुनीके में जो प्रचार किया, उसका रिकॉर्ड दिखाता है कि उसने इस आधार पर बात की कि यहूदी, इब्रानी शास्त्र पर विश्‍वास करते थे और दावा करते थे कि उसमें मसीहा के बारे में लिखी बातों को वे सच मानते हैं। और फिर, पौलुस ने इब्रानी शास्त्र में से ऐसे भाग चुने जिनमें मसीहा की ज़िंदगी और सेवा के बारे में बताया गया है। उसने उन आयतों का हवाला दिया और यीशु की ज़िंदगी की असल घटनाओं के साथ उनका मेल बिठाया। आखिर में, वह अपने भाषण के इस खास नतीजे पर पहुँचा जिससे ज़ाहिर था कि यीशु ही मसीहा है। (प्रेरि. 13:16-41; 17:2, 3) पौलुस की तरह अगर आप भी बाइबल की सच्चाई को तर्कसंगत तरीके से यानी तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार ढंग से पेश करें, तो आप दूसरों को कायल कर पाएँगे।

जानकारी का सिलसिला बिठाना। जानकारी को तर्क के मुताबिक पेश करने के कई तरीके हैं। अगर आपको लगता है कि एक-दो तरीकों का एक-साथ इस्तेमाल करना ठीक रहेगा, तो आप ऐसा कर सकते हैं। आइए देखें कि ये कौन-कौन-से तरीके हैं।

विषय के मुताबिक सिलसिला बिठाना। इसके तहत आपको भषण की जानकारी को अलग-अलग भागों में बाँटना होगा, जिनमें से हर भाग, आपके मकसद को पूरा करता है। आप चाहें तो भाषण के मुख्य मुद्दों को अलग-अलग भागों में बाँट सकते हैं जिनकी मदद से आप अपने विषय को ठीक तरह से समझा सकेंगे। या फिर, ये भाग ऐसी अलग-अलग दलीलें हो सकती हैं जिनका इस्तेमाल करके आप किसी बात को सही या गलत साबित कर सकेंगे। अपने सुननेवालों को या आपके बात करने के मकसद को ध्यान में रखते हुए यह तय कर सकते हैं कि आप अपने विषय से जुड़े किन मुद्दों को जोड़ना चाहते हैं और किन मुद्दों को निकालना चाहते हैं।

विषय के मुताबिक सिलसिला बिठाने के एक उदाहरण पर गौर कीजिए। परमेश्‍वर के नाम के बारे में एक छोटा-सा भाषण देने के लिए यह बताया जा सकता है कि (1) परमेश्‍वर को उसके नाम से जानना क्यों ज़रूरी है, (2) परमेश्‍वर का नाम क्या है और (3) हम उस नाम का आदर कैसे कर सकते हैं?

“विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने लोगों को घर पर बाइबल सिखाने के लिए जो साहित्य तैयार किया है, उसकी जाँच करने से आप, विषय के मुताबिक जानकारी का सिलसिला बिठाने के बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं। (मत्ती 24:45) इनमें से ज़्यादातर किताबों में बहुत-से विषय दिए जाते हैं जिनकी मदद से सीखनेवाले, बाइबल की बुनियादी सच्चाइयों का निचोड़ जान सकते हैं। मोटी किताबों में हर अध्याय में अलग-अलग उपशीर्षक होते हैं। हर शीर्षक से, विद्यार्थी को झलक मिलती है कि उसके नीचे क्या बताया गया है और वह पूरे पाठ में बतायी बात से कैसे ताल्लुक रखता है।

कारण और अंजाम। पहले कारण और फिर उसका अंजाम बताना, तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार जानकारी देने का एक और तरीका है।

यह तरीका तब बहुत असरदार होता है, जब आप किसी एक इंसान को या बहुत-से लोगों को यह बता रहे होते हैं कि वे जो कदम उठा रहे हैं या उठाने की सोच रहे हैं, उसके अंजाम के बारे में गहराई से सोचें। नीतिवचन अध्याय 7 में इस तरीके से जानकारी पेश करने की एक उम्दा मिसाल दर्ज़ है। उसमें यह साफ-साफ बताया गया है कि कैसे एक नादान जवान, जो “निर्बुद्धि” है (कारण), एक वेश्‍या के चंगुल में जा फँसता है और इसलिए उसे अपनी करनी का फल भुगतना पड़ता है (अंजाम)।—नीति. 7:7.

अपनी बात पर ज़्यादा ज़ोर देने के लिए आप चाहें तो बता सकते हैं कि यहोवा के मार्गों पर न चलनेवालों को कैसे बुरे अंजाम भुगतने पड़ते हैं, जबकि यहोवा की बात माननेवालों को क्या आशीषें मिलती हैं। जब इस्राएली वादा किए देश में कदम रखने ही वाले थे, तब मूसा ने यहोवा की आत्मा से प्रेरित होकर उन्हें यही फर्क समझाया।—व्यव., अध्या. 28.

कुछ मामलों में, अच्छा होगा अगर आप चर्चा की शुरूआत में किसी हालात (अंजाम) का ज़िक्र करें और उसके बाद इस अंजाम तक लानेवाली घटनाएँ (कारण) बताएँ। यह तरीका अकसर, किसी समस्या और फिर उसका समाधान बताने के लिए अपनाया जाता है।

समस्या और समाधान। प्रचार में अगर आप किसी ऐसी समस्या पर चर्चा करेंगे जिसे लेकर लोग चिंतित हैं और फिर बताएँगे कि उसका एक बढ़िया समाधान है, तो आपकी बात सुनने में लोगों को दिलचस्पी होगी। चाहे तो आप खुद समस्या का ज़िक्र कर सकते हैं या फिर सुननेवाला जिस समस्या का ज़िक्र करता है, उस पर चर्चा कर सकते हैं।

आप कुछ ऐसी समस्याओं पर बात कर सकते हैं, जैसे इंसान का बूढ़ा होकर मरना, हर जगह अपराध का बढ़ना या चारों तरफ अन्याय का फैलना। ऐसी समस्याएँ मौजूद हैं, इनके बारे में आपको ढेर सारे सबूत देने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इनकी खबर सबको है। इसलिए सिर्फ समस्या का ज़िक्र कीजिए और फिर बताइए कि उसका बाइबल में क्या हल बताया है।

आप चाहें तो घर-मालिक की किसी निजी समस्या पर भी बात कर सकते हैं, जैसे बच्चों की परवरिश अकेले करने में आनेवाली चुनौतियाँ, गंभीर बीमारी की वजह से हताशा या किसी के बुरे बर्ताव की वजह से तकलीफें सहना। बातचीत से बढ़िया नतीजे पाने के लिए पहले आपको दूसरे की बात ध्यान से सुननी चाहिए। ऊपर बतायी सभी समस्याओं का सामना करने के बारे में बाइबल फायदेमंद जानकारी देती है। लेकिन यह जानकारी बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल की जानी चाहिए। आपकी चर्चा से सामनेवाले को तभी फायदा होगा, जब आप समस्या के समाधान के बारे में उसे असलियत बताएँगे। घर-मालिक को यह साफ-साफ बताइए कि आप एक समस्या का हमेशा के लिए समाधान बता रहे हैं, थोड़े समय के लिए मिलनेवाली राहत के बारे में बता रहे हैं या किसी ऐसी समस्या का सामना करने का तरीका समझा रहे हैं जो इस पुरानी दुनिया में दूर नहीं होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो आप समस्या का जो समाधान बता रहे हैं, उसका सबूत देने के लिए आप बाइबल से इतनी दलीलें दें ताकि सुननेवाले को यकीन हो जाए। वरना आप जो समाधान बताएँगे, वह सामनेवाले को तर्क के मुताबिक सही नहीं लगेगा और उस पर यकीन नहीं कर पाएगा।

समय के हिसाब से। कुछ जानकारी ऐसी होती है जिसे समय के हिसाब से क्रम में पेश करना ज़रूरी होता है। मिसाल के लिए, निर्गमन की किताब में दस विपत्तियों का ब्यौरा उसी क्रम में दिया गया है जिस क्रम में वे घटी थीं। इब्रानियों के अध्याय 11 में, प्रेरित पौलुस ने विश्‍वास की बढ़िया मिसाल रखनेवाले स्त्री-पुरुषों की सूची उसी क्रम में दी जिस क्रम में वे जीए थे।

अगर आप बीते समय की घटनाओं को उसी क्रम में बताएँगे जैसे वे घटी थीं, तो सुननेवाले यह भी समझ पाएँगे कि कुछ हालात कैसे पैदा हुए थे। यह बात हमारे ज़माने का इतिहास और बाइबल के समय की घटनाएँ बताते वक्‍त भी लागू होती है। इस तरह आप जानकारी का न सिर्फ समय के हिसाब से सिलसिला बिठा पाएँगे, बल्कि कारण-और-अंजाम बताकर सुननेवालों के साथ तर्क कर सकेंगे। अगर आप भविष्य में होनेवाली घटनाओं के बारे में बाइबल से बताने की सोच रहे हैं, तो उनको उसी क्रम में बताइए जिनमें वे घटेंगी। तब लोगों को समझने और उन्हें याद रखने में आसानी होगी।

समय के हिसाब से सिलसिला बिठाने का यह मतलब नहीं कि आपको हमेशा सबकुछ शुरू से बताना चाहिए। कुछ मामलों में, कोई कहानी बताते वक्‍त आप उस कहानी की किसी अहम घटना का ज़िक्र पहले करेंगे, तो बढ़िया रहेगा। मिसाल के लिए, किसी का अनुभव बताते वक्‍त आप पहले उसकी ज़िंदगी की एक ऐसी घटना बता सकते हैं जब उसकी खराई की परीक्षा हुई थी। कहानी का वह हिस्सा बताकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के बाद, आप वक्‍त के हिसाब से सिलसिलेवार ढंग से पहले की घटनाओं के बारे में बता सकते हैं।

सिर्फ ज़रूरी बातें बताना। आप अपनी जानकारी का सिलसिला चाहे किसी भी तरह से बिठाएँ, ध्यान रहे कि आप सिर्फ वही बताएँ जो ज़रूरी है। आपके भाषण के विषय से तय होगा कि आप कौन-सी जानकारी देंगे। आपको यह भी देखना होगा कि आपके सुननेवाले कौन हैं। कुछ लोगों के लिए एक मुद्दा बहुत फायदेमंद हो सकता है, वही मुद्दा शायद कुछ और किस्म के लोगों के लिए ज़रा भी अहमियत न रखे। आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो भी जानकारी दे रहे हैं, उससे आपके भाषण का मकसद पूरा हो। नहीं तो आपका भाषण सुनने में भले ही दिलचस्प लगे, मगर उससे लोगों को कुछ फायदा नहीं होगा।

अपने विषय पर खोजबीन करते समय आपको उससे जुड़ी ढेर सारी दिलचस्प जानकारी मिल सकती है। उसमें से कितनी जानकारी आपको इस्तेमाल करनी चाहिए? अगर आप सुननेवालों पर बहुत सारी जानकारी की भरमार कर दें, तो आप अपना मकसद हासिल नहीं कर पाएँगे। एक-के-बाद-एक दुनिया भर की बातें कहने के बजाय अगर आप चंद खास मुद्दे ही बताएँ और उन्हें अच्छी तरह समझाएँ, तो लोगों को याद रखने में आसानी होगी। इसका मतलब यह नहीं कि आपको अपने विषय के बारे में छोटी-मोटी दिलचस्प जानकारी बिलकुल भी नहीं देनी चाहिए। मगर ध्यान रखें कि बहुत सारी गैर-ज़रूरी बातें बताकर आप भाषण का असली मुद्दा न छिपा दें। ध्यान दीजिए कि मरकुस 7:3, 4 और यूहन्‍ना 4:1-3, 7-9 में ऐसी छोटी-मोटी जानकारी को कैसे सोच-समझकर पेश किया गया है।

एक मुद्दे पर बात करने के बाद, दूसरे मुद्दे पर अचानक बात शुरू मत कीजिए। ऐसा करने से सुननेवाले यह नहीं जान पाएँगे कि विचार कैसे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। विचारों के बीच का संबंध समझाने के लिए आपको शायद कड़ी जोड़नी होगी। यह कड़ी चाहे तो वाक्य का एक भाग या फिर एक पूरा वाक्य हो सकता है जिससे यह ज़ाहिर होगा कि विचारों का आपस में क्या ताल्लुक है। कई भाषाओं में, ऐसा एक शब्द या कई शब्द होते हैं जिनके ज़रिए बताया जा सकता है कि आगे का नया विचार कैसे पिछले विचार से जुड़ा है।

सिर्फ ज़रूरी जानकारी देने और उसे तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार ढंग से पेश करने से आप अपने भाषण का मकसद हासिल कर पाएँगे।

खुद से पूछिए . . .

  • मेरे भाषण का मकसद क्या है?

  • क्या हर मुख्य मुद्दा साफ-साफ उस मकसद से जुड़ा है?

  • क्या मैंने जानकारी चुनते वक्‍त यह ध्यान दिया है कि मेरे सुननेवालों की ज़रूरत क्या है?

  • क्या मैंने जानकारी का सिलसिला इस तरह से बिठाया है कि सुननेवालों को एक के बाद दूसरे विचार पर जाने में दिक्कत न हो और इनके बीच का संबंध वे आसानी से समझ पाएँ?

अभ्यास: इस पूरे अध्याय को पढ़ लेने के बाद, इसकी जानकारी को दोबारा धीमी रफ्तार से पढ़िए और खुद को बताइए कि हर पैराग्राफ का निचोड़ क्या है। ध्यान दीजिए कि हर पैराग्राफ कैसे पूरे अध्याय का मकसद पूरा करता है।

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