अध्याय 43
दी गयी जानकारी का इस्तेमाल
बाइबल, बताती है कि मसीही कलीसिया, इंसान के शरीर की तरह है। हर अंग की अपनी अहमियत है, मगर “सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।” उसी तरह, कलीसिया के हर सदस्य की भी अपनी-अपनी अहमियत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमें सेवा करने की जो भी ज़िम्मेदारी दी गयी है, उसे हमें मन लगाकर पूरा करना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हमें, बोलने का जो भी भाग सौंपा जाता है, उसे हम समझें और उसकी अच्छी तैयारी करें, न कि यह सोचें कि कुछ विषय इतने ज़रूरी नहीं हैं, जबकि कुछ विषय बहुत दिलचस्प हैं। (रोमि. 12:4-8) विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास को “समय पर” आध्यात्मिक भोजन देने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। (मत्ती 24:45) इसलिए जब हम अपनी काबिलीयतों का इस्तेमाल करके, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास की हिदायतों के मुताबिक भाषण पेश करते हैं, तो हम उसके ज़रिए किए गए इंतज़ाम के लिए कदर दिखाते हैं। इस तरह पूरी कलीसिया का काम, सही ढंग से हो पाता है।
क्या-क्या बताएँ। जब आपको, परमेश्वर की सेवा स्कूल में अपना भाग पेश करने के लिए एक विषय दिया जाता है, तो ध्यान रहे कि आप उसी विषय पर बोलें ना कि किसी और विषय पर। ज़्यादातर भागों के लिए, बताया जाएगा कि जानकारी किस साहित्य से लेनी है। अगर आपको नहीं बताया जाता कि आपको अपने भाषण के लिए किस साहित्य से जानकारी लेनी है, तो आप अपनी पसंद के मुताबिक किसी भी साहित्य से जानकारी ले सकते हैं। लेकिन अपने भाषण की तैयारी करते वक्त, ध्यान दें कि शुरू से आखिर तक आप जो भी जानकारी देंगे, वह दिए गए विषय के मुताबिक ही हो। कौन-सी जानकारी पेश करनी है, यह तय करते वक्त आपको यह भी ध्यान रखना है कि आपके सुननेवाले कौन हैं।
आपको जिस साहित्य से जानकारी लेनी है, उसका ध्यान से अध्ययन कीजिए और उसमें दी गयी आयतों को भी अच्छी तरह जाँचिए। फिर सोचिए कि इसे बेहतरीन ढंग से कैसे पेश किया जाए ताकि सुननेवालों को ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा हो। जिस साहित्य से आप जानकारी ले रहे हैं, उसी में से दो या तीन मुद्दे चुनकर उन्हें अपने भाषण के मुख्य मुद्दे बनाइए। उसी तरह कुछ ऐसी आयतें भी चुनिए जिन्हें आप पढ़कर उन पर चर्चा करना चाहते हैं।
दी गयी जानकारी में से कितना हिस्सा आपको लेना चाहिए? सिर्फ उतना, जितना कि आप बेहतरीन ढंग से पेश कर पाएँ। ढेर सारी जानकारी देने की धुन में, असरदार तरीके से सिखाने के गुण को नज़रअंदाज़ मत कीजिए। अगर जानकारी का कुछ हिस्सा आपके भाषण के लक्ष्य के मुताबिक सही नहीं बैठता, तो उसे छोड़कर सिर्फ वही हिस्से पेश कीजिए जिनकी मदद से आप उस लक्ष्य को पूरा कर पाएँगे। दिए गए भाग में से सिर्फ वही जानकारी पेश कीजिए जिससे आपके सुननेवाले ज़्यादा-से-ज़्यादा सीख पाएँ और उन्हें फायदा हो। भाषण के इस गुण में आपका लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए कि आप कितनी जानकारी पेश कर सकते हैं, बल्कि यह कि क्या आप दी गयी जानकारी का ही इस्तेमाल करके भाषण दे रहे हैं या नहीं।
आपको भाषण में, सिर्फ दी गयी जानकारी का सारांश नहीं देना है। आपको पहले से तैयारी करनी चाहिए कि आप किन-किन मुद्दों के बारे में समझाएँगे, उनके बारे में ज़्यादा जानकारी देंगे, उदाहरण देकर उनके बारे में समझाएँगे और हो सके तो उन पर अमल करने का तरीका भी बताएँगे। अगर आप कुछ और विचार बताना चाहते हैं, तो ये सिर्फ आपके भाषण के मुख्य मुद्दों को और अच्छी तरह समझाने के लिए होने चाहिए, न कि उनके बदले में इस्तेमाल किए जाने चाहिए।
जिन भाइयों में सिखाने की ज़रूरी काबिलीयत है, उन्हें समय आने पर, शायद सेवा-सभा में भाग पेश करने के लिए कहा जाए। वे जानते हैं कि उन्हें, दी गयी जानकारी का ही अच्छी तरह इस्तेमाल करना चाहिए, न कि उसके बदले कोई और जानकारी पेश करनी चाहिए। उसी तरह, जन भाषण देनेवाले भाइयों को भी आउटलाइन दी जाती है। जन भाषण देते वक्त भाई चाहें तो अपनी पेशकश में थोड़ी-बहुत फेरबदल कर सकते हैं। मगर फिर भी आउटलाइन में साफ-साफ बताया जाता है कि चर्चा के खास मुद्दे क्या हैं, इन्हें समझाने के लिए कौन-सी दलीलें पेश करनी चाहिए और कौन-सी आयतें, भाषण का आधार हैं। दी गयी जानकारी का इस्तेमाल करके भाषण देने की कला सीखने से भाई उस वक्त के लिए तैयार होंगे जब उन्हें सिखाने के और भी बढ़िया अवसर दिए जाएँगे।
इस तालीम की मदद से आप अच्छी तरह बाइबल अध्ययन भी चला पाएँगे, जिससे कि आपका विद्यार्थी तरक्की कर सकेगा। आप सीखेंगे कि कैसे अध्ययन के लिए दी गयी जानकारी पर ध्यान देना है, न कि अपने विषय से हटकर ऐसी बातों पर ज़ोर देना जो सुनने में दिलचस्प तो लगती हैं, मगर विषय को समझने के लिए इतनी ज़रूरी नहीं होतीं। फिर भी, अगर आप इस अध्याय का सही मायनों में अर्थ समझ लें, तो अध्ययन कराते वक्त आप ऐसे हठी भी न होंगे कि विद्यार्थी को विषय समझने में मदद करने के लिए ज़्यादा जानकारी बिलकुल भी न दें।