बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल
बपतिस्मा लेनेवालों के साथ आखिर में की जानेवाली चर्चा
बपतिस्मा आम तौर पर यहोवा के साक्षियों के सम्मेलनों और अधिवेशनों में दिया जाता है। बपतिस्मे के भाषण के आखिर में वक्ता बपतिस्मा लेनेवालों से कहेगा कि वे खड़े हो जाएँ और आगे बताए दो सवालों के जवाब ऊँची आवाज़ में दें:
1. क्या आपने अपने पापों का पश्चाताप किया है, यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की है और उसने यीशु मसीह के ज़रिए उद्धार का जो इंतज़ाम किया है, उसे कबूल किया है?
2. क्या आप इस बात को समझते हैं कि बपतिस्मा लेने से आप यहोवा के संगठन का भाग बन जाएँगे और यहोवा के साक्षी कहलाएँगे?
इन सवालों के जवाब ‘हाँ’ में देने का मतलब है कि बपतिस्मे के लिए तैयार लोग “सब लोगों के सामने ऐलान” करते हैं कि उन्हें फिरौती बलिदान पर विश्वास है और उन्होंने बिना किसी शर्त के अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है। (रोमि. 10:9, 10) इस वजह से बपतिस्मा लेनेवालों को इन दो सवालों पर पहले से मनन करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए ताकि वे पूरे यकीन से जवाब दे सकें।
क्या आपने यहोवा से प्रार्थना करके उसे अपना जीवन समर्पित किया है, उससे वादा किया है कि आप सिर्फ उसकी उपासना करेंगे और उसकी मरज़ी पूरी करने को सबसे ज़्यादा अहमियत देंगे?
क्या अब आपको पूरा यकीन है कि जैसे ही मौका मिले, आपको बपतिस्मा ले लेना चाहिए?
बपतिस्मा लेते वक्त किस तरह के कपड़े पहनना सही होगा? (1 तीमु. 2:9, 10; यूह. 15:19; फिलि. 1:10)
हमें “मर्यादा के साथ और सही सोच रखते हुए” ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो “परमेश्वर की भक्ति” करनेवालों को शोभा दें। इस वजह से बपतिस्मा लेनेवालों को ऐसा स्विमिंग-सूट नहीं पहनना चाहिए जिससे शरीर की नुमाइश हो, न ही ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिन पर कुछ लिखा हो या कोई तसवीर हो। इसके बजाय उन्हें ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो साफ-सुथरे हों और जिनसे मौके की गरिमा बनी रहे।
बपतिस्मा लेते वक्त एक व्यक्ति का व्यवहार कैसा होना चाहिए? (लूका 3:21, 22)
यीशु ने अपने बपतिस्मे के वक्त जिस तरह व्यवहार किया, उससे आज मसीही बहुत कुछ सीख सकते हैं। यीशु जानता था कि बपतिस्मा एक गंभीर कदम है। यह उसने अपने रवैए और अपने व्यवहार से ज़ाहिर किया। बपतिस्मे की जगह पर मज़ाक करना, तैरना या ऐसा कोई बरताव करना सही नहीं होगा, जिससे इस मौके की गरिमा कम हो जाए। बपतिस्मा लेने के बाद एक मसीही को ऐसे पेश नहीं आना चाहिए मानो उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो। यह सच है कि बपतिस्मा खुशी का मौका है, मगर यह खुशी ज़ाहिर करते वक्त हमें गरिमा बनाए रखनी चाहिए।
आपने यहोवा को जो समर्पण किया है, उसके मुताबिक जीने के लिए लगातार सभाओं में जाना और भाई-बहनों से मिलना क्यों ज़रूरी है?
बपतिस्मा लेने के बाद भी आपको नियमित तौर पर निजी अध्ययन और प्रचार क्यों करना चाहिए?
मंडली के प्राचीनों के लिए हिदायतें
जब एक प्रचारक प्राचीनों को बताता है कि वह बपतिस्मा लेना चाहता है, तो उन्हें उससे कहना चाहिए कि वह पेज 185-207 पर दिए “बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल” में दी जानकारी ध्यान से पढ़े। उन्हें पेज 182 पर दिए “बपतिस्मा-रहित प्रचारक के लिए संदेश” की तरफ उसका ध्यान दिलाना चाहिए, जहाँ समझाया गया है कि वह प्राचीनों के साथ होनेवाली चर्चा की तैयारी कैसे कर सकता है। जैसे वहाँ बताया गया है, प्रचारक चाहे तो जवाब लिखकर ला सकता है और चर्चा के दौरान यह किताब खुली रख सकता है। प्राचीनों के साथ उसकी चर्चा होने से पहले ज़रूरी नहीं कि कोई और उसके साथ इन सवालों पर चर्चा करे।
जो प्रचारक बपतिस्मा लेना चाहता है, उसे प्राचीनों के निकाय के संयोजक को इस बारे में बताना चाहिए। जब प्रचारक “बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल” में दी जानकारी पढ़ लेता है, तो प्राचीनों के निकाय का संयोजक उससे पूछेगा कि क्या उसने यहोवा से प्रार्थना करके अपना जीवन समर्पित किया है और उससे वादा किया है कि वह उसकी मरज़ी पूरी करेगा। अगर उसने समर्पण किया है, तो प्राचीनों के निकाय का संयोजक दो प्राचीनों से कहेगा कि वे उस प्रचारक के साथ “बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल” भागों पर चर्चा करें। हर भाग के लिए अलग-अलग प्राचीन चुने जाने चाहिए। ऐसी चर्चाओं के लिए किसी सम्मेलन या अधिवेशन की घोषणा होने तक इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है।
इन दोनों भागों पर दो बैठकों के दौरान चर्चा की जा सकती है। हर भाग के लिए करीब एक घंटे का समय लिया जाना चाहिए, मगर ज़रूरत पड़े तो ज़्यादा समय भी लिया जा सकता है। हर चर्चा को प्रार्थना से शुरू और खत्म किया जाना चाहिए। सवालों पर चर्चा करते वक्त न तो प्रचारक को और न ही प्राचीनों को हड़बड़ी करनी चाहिए। जिन प्राचीनों से यह चर्चा करने के लिए कहा जाता है, उन्हें अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों से ज़्यादा इस चर्चा को अहमियत देनी चाहिए।
बपतिस्मा लेने की इच्छा रखनेवाले सभी प्रचारकों से एक-साथ चर्चा करने के बजाय, हर एक के साथ अलग से चर्चा की जानी चाहिए। हर सवाल पर प्रचारक का जवाब सुनने से प्राचीन जान पाएँगे कि वह बाइबल की सच्चाइयाँ कितनी अच्छी तरह समझ पाया है और बपतिस्मे के लिए योग्य है या नहीं। हर प्रचारक से चर्चा करने का एक और फायदा यह है कि वह खुलकर अपनी बात बता सकेगा। जब पति-पत्नी दोनों बपतिस्मा लेना चाहते हैं, तो उनसे एक-साथ चर्चा की जा सकती है।
अगर कोई बहन बपतिस्मा लेना चाहती है, तो उसके साथ ऐसी जगह चर्चा की जानी चाहिए जहाँ से दूसरे उन्हें देख सकें, मगर सुन न सकें। अगर किसी और व्यक्ति को साथ ले जाना ज़रूरी हो, तो ऐसा किया जा सकता है। जिस भाग पर चर्चा की जा रही है, उसे ध्यान में रखते हुए वह किसी प्राचीन या फिर सहायक सेवक को साथ ले जा सकता है। इससे जुड़ी जानकारी अगले पैराग्राफ में दी गयी है।
जिन मंडलियों में बहुत कम प्राचीन हैं, वहाँ काबिल सहायक सेवक प्रचारकों के साथ “भाग 1: मसीही शिक्षाएँ” पर चर्चा कर सकते हैं। मगर ये ऐसे सहायक सेवक होने चाहिए जो समझ-बूझ से काम लेते हैं। लेकिन “भाग 2: मसीही ज़िंदगी” में दिए सवालों पर सिर्फ प्राचीनों को चर्चा करनी चाहिए। अगर मंडली में काबिल भाइयों की कमी है, तो सर्किट निगरान से पूछा जा सकता है कि क्या आस-पास की मंडली के प्राचीन उनकी मदद कर सकते हैं।
अगर बपतिस्मे की इच्छा रखनेवाला प्रचारक नाबालिग है, तो चर्चा के दौरान उसके मसीही माता-पिता को या उनमें से किसी एक को उसके साथ बैठना चाहिए। अगर वे साथ नहीं बैठ सकते, तो दो प्राचीनों को (या जिस भाग पर चर्चा की जा रही है, उसे ध्यान में रखते हुए एक प्राचीन और एक सहायक सेवक को) उसके साथ चर्चा करनी चाहिए।
प्राचीन इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे कि जो बपतिस्मा लेना चाहता है, वह बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं की मुख्य बातें साफ-साफ समझता हो। वे यह भी जानना चाहेंगे कि क्या वह दिल से सच्चाई की कदर करता है और यहोवा के संगठन के अधीन रहता है। अगर प्रचारक बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ नहीं समझता, तो प्राचीन उसकी मदद करने के लिए कुछ इंतज़ाम करेंगे, जिससे वह आगे चलकर बपतिस्मे के योग्य हो सके। कुछ मामलों में प्राचीन शायद यह तय करें कि उस व्यक्ति को कुछ समय इंतज़ार करना चाहिए क्योंकि उसे प्रचार काम को और अहमियत देने की ज़रूरत है या फिर संगठन की हिदायतें मानने पर और ध्यान देना है। प्राचीनों को अच्छी तरह तय करना चाहिए कि एक प्रचारक बपतिस्मा लेने के योग्य है या नहीं। इसके लिए वे चाहे तो हर चर्चा के लिए एक घंटा या थोड़ा ज़्यादा समय ले सकते हैं। वे कुछ सवालों पर चर्चा करने के लिए ज़्यादा समय बिता सकते हैं, तो कुछ पर कम, मगर उन्हें सभी सवालों पर चर्चा करनी चाहिए।
जिन प्राचीनों से इन सवालों पर चर्चा करने के लिए कहा जाता है, वे दूसरी चर्चा के बाद आपस में बात करेंगे और तय करेंगे कि उस प्रचारक को बपतिस्मे की मंज़ूरी दी जानी चाहिए या नहीं। फैसला लेते वक्त प्राचीन हर व्यक्ति की परवरिश, काबिलीयत और बाकी हालात ध्यान में रखेंगे। प्राचीनों को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या उसने यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाया है और क्या वह बाइबल की बुनियादी सच्चाइयाँ समझता है। अगर आप बपतिस्मा लेनेवालों की प्यार से मदद करेंगे, तो वे खुशखबरी के सेवक होने की अहम ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा पाएँगे।
प्राचीनों की आपस में चर्चा होने के बाद, उनमें से एक या दोनों को प्रचारक से मिलकर उसे बताना चाहिए कि वह बपतिस्मा लेने के योग्य है या नहीं। अगर वह योग्य है, तो प्राचीनों को उसके साथ पेज 206-207 पर दी जानकारी पर चर्चा करनी चाहिए, जो “बपतिस्मा लेनेवालों के साथ आखिर में की जानेवाली चर्चा” शीर्षक के तहत दी गयी है। अगर उसने खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब का अध्ययन पूरा नहीं किया है, तो प्राचीनों को उसे बढ़ावा देना चाहिए कि वह बपतिस्मे के बाद अपना अध्ययन जारी रखे। प्रचारक को बताइए कि उसके कॉन्ग्रीगेशन्स पब्लिशर रेकॉर्ड पर उसके बपतिस्मे की तारीख लिखी जाएगी। उसे बताइए कि प्राचीन उसकी यह निजी जानकारी इसलिए लेते हैं ताकि संगठन दुनिया भर में यहोवा के साक्षियों के धार्मिक कामों की अच्छी तरह देखरेख कर पाए, वह व्यक्ति मंडली के इंतज़ामों में हिस्सा ले पाए और प्राचीन उसे निर्देश और हौसला दे पाएँ। इसके अलावा प्राचीन नए प्रचारकों को बता सकते हैं कि उनकी निजी जानकारी का इस्तेमाल jw.org पर दी ‘यहोवा के साक्षियों की विश्वव्यापी डेटा सुरक्षा नीतियाँ’ के मुताबिक किया जाएगा। यह चर्चा सिर्फ दस मिनट या उससे कम समय में की जानी चाहिए।
प्रचारक के बपतिस्मे के एक साल बाद दो प्राचीनों को उससे मिलकर उसका हौसला बढ़ाना चाहिए और उसे कुछ सुझाव देने चाहिए। उनमें से एक प्राचीन उसका समूह निगरान होना चाहिए। अगर वह नाबालिग है और उसके माता-पिता साक्षी हैं, तो उन्हें भी इस मौके पर मौजूद होना चाहिए। इस मुलाकात में प्राचीनों की बातचीत से प्यार झलकना चाहिए और उन्हें उसका हौसला बढ़ाना चाहिए। प्राचीन उसके साथ इस बारे में चर्चा करेंगे कि वह सच्चाई में कितनी अच्छी तरक्की कर रहा है। वे उसे कुछ सुझाव देंगे कि वह कैसे और अच्छी तरह निजी अध्ययन कर सकता है, रोज़ बाइबल पढ़ सकता है, हर हफ्ते पारिवारिक उपासना कर सकता है, लगातार सभाओं में जा सकता है, उनमें जवाब दे सकता है और हर हफ्ते प्रचार कर सकता है। (इफि. 5:15, 16) अगर उसने खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब का अध्ययन पूरा नहीं किया है, तो प्राचीनों को किसी भाई या बहन से कहना चाहिए कि वह उसे बाइबल का अध्ययन कराए। प्राचीनों को दिल खोलकर उसकी तारीफ करनी चाहिए। ज़्यादातर मामलों में एक या दो मुद्दों पर सलाह और सुझाव देना काफी होगा।