ज़्यादा जानकारी
1 यहोवा
परमेश्वर का नाम यहोवा है। यहोवा का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और उसी ने सबकुछ बनाया है। उसके पास इतनी ताकत है कि वह जो चाहे कर सकता है।
इब्रानी भाषा में परमेश्वर का नाम चार अक्षरों में लिखा जाता था। इन अक्षरों को अगर हिंदी में लिखा जाए तो वे इस तरह होंगे, य-ह-व-ह। बाइबल के इब्रानी शास्त्र के मूल पाठ में परमेश्वर का नाम करीब 7,000 बार आता है। पूरी दुनिया में लोग “यहोवा,” इस नाम का अलग-अलग तरीके से उच्चारण करते हैं। वे वही उच्चारण इस्तेमाल करते हैं जो उनकी भाषा में आम है।
▸ अध्या. 1, पैरा. 15, फुटनोट
2 बाइबल “परमेश्वर की प्रेरणा” से लिखी गयी है
बाइबल, परमेश्वर की तरफ से है। परमेश्वर ने कुछ आदमियों के ज़रिए इसे लिखवाया है। यह ऐसा है मानो एक बुज़ुर्ग पिता अपने बेटे से चिट्ठी लिखवाता है। परमेश्वर ने अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए बाइबल लिखनेवालों को बताया कि वे उसके विचार लिखें। पवित्र शक्ति कई तरीकों से उन्हें परमेश्वर के विचार बताती थी, जिसके बाद वे उन्हें बाइबल में लिखते थे। इनमें से दो तरीके थे, दर्शनों और सपनों के ज़रिए।
3 सिद्धांत
सिद्धांत, बाइबल की शिक्षाएँ हैं जो हमें सही फैसले करने में मदद देती हैं। उदाहरण के लिए, एक सिद्धांत है “बुरी संगति अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।” (1 कुरिंथियों 15:33) यह सिद्धांत सिखाता है कि हम जिस तरह के लोगों के साथ मेल-जोल रखते हैं, उनका हम पर या तो अच्छा असर हो सकता है या बुरा असर। एक और सिद्धांत है “एक इंसान जो बोता है, वही काटेगा भी।” (गलातियों 6:7) यह सिद्धांत सिखाता है कि हमें अपने किए का अंजाम भुगतना ही पड़ता है।
4 भविष्यवाणी
भविष्यवाणी का मतलब है परमेश्वर से मिला संदेश। इसके ज़रिए परमेश्वर अपनी मरज़ी बताता था। यह परमेश्वर की तरफ से सबक, उसकी आज्ञा, उसका फैसला या भविष्य में होनेवाली घटनाओं की खबर भी हो सकती है। बाइबल की बहुत-सी भविष्यवाणियाँ पहले ही पूरी हो चुकी हैं।
5 मसीहा के बारे में भविष्यवाणियाँ
मसीहा के बारे में जितनी भी भविष्यवाणियाँ थीं वे सब यीशु पर पूरी हुईं। बक्स “मसीहा के बारे में भविष्यवाणियाँ” देखिए।
▸ अध्या. 2, पैरा. 17, फुटनोट
6 यहोवा ने पृथ्वी क्यों बनायी
यहोवा ने पृथ्वी इसलिए बनायी ताकि यह सुंदर बगीचा हो और इसमें ऐसे लोग रहें जो यहोवा से प्यार करते हों। उसका मकसद नहीं बदला है। बहुत जल्द वह धरती से सारी बुराइयों को मिटा देगा और अपने लोगों को हमेशा की ज़िंदगी देगा।
7 शैतान और इबलीस
शैतान एक स्वर्गदूत है। उसी ने परमेश्वर के खिलाफ जाने की शुरूआत की थी। शैतान का मतलब है “विरोधी।” उसे यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वह यहोवा का विरोध करता है। उसे इबलीस भी कहा गया है, जिसका मतलब है “बदनाम करनेवाला।” उसे यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वह परमेश्वर के बारे में झूठ बोलता है और लोगों को धोखा देता है।
8 स्वर्गदूत
यहोवा ने पृथ्वी बनाने से बहुत पहले स्वर्गदूतों को बनाया था। उन्हें स्वर्ग में जीने के लिए बनाया गया था। उनकी गिनती लाखों-करोड़ों में है। (दानियेल 7:10) हर स्वर्गदूत का एक नाम और एक अलग शख्सियत है। वे नम्र हैं, इसलिए जब इंसानों ने उनकी उपासना करनी चाही तो उन्होंने मना कर दिया। स्वर्गदूतों का अलग-अलग ओहदा है और उन्हें तरह-तरह के काम दिए जाते हैं। जैसे यहोवा की राजगद्दी के सामने सेवा करना, उसके संदेश पहुँचाना, धरती पर उसके सेवकों की रक्षा करना और उनका मार्गदर्शन करना, उसकी तरफ से सज़ा देना और प्रचार काम में साथ देना। (भजन 34:7; प्रकाशितवाक्य 14:6; 22:8, 9) आनेवाले हर-मगिदोन के युद्ध में वे यीशु के साथ मिलकर लड़ेंगे।—प्रकाशितवाक्य 16:14, 16; 19:14, 15.
▸ अध्या. 3, पैरा. 4; अध्या. 10, पैरा. 1
9 पाप
ऐसी कोई भी सोच, भावना या काम जो यहोवा या उसकी मरज़ी के खिलाफ है, उसे पाप कहते हैं। जब हम कोई पाप करते हैं तो परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट जाता है। इसलिए उसने हमें कानून और सिद्धांत दिए हैं ताकि हम जानबूझकर कोई पाप न करें। यहोवा ने पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा को परिपूर्ण बनाया था, यानी उनमें कोई पाप या खोट नहीं था। मगर जब उन्होंने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी तो उन्होंने पाप किया और वे परिपूर्ण नहीं रहे। वे धीरे-धीरे बूढ़े हो गए और मर गए। हम सब आदम के बच्चे हैं, इसलिए हमें उसी से पाप मिला है और यही वजह है कि हम भी बूढ़े होकर मर जाते हैं।
▸ अध्या. 3, पैरा. 7; अध्या. 5, पैरा. 3
10 हर-मगिदोन
यह परमेश्वर का युद्ध है। इस युद्ध में परमेश्वर शैतान की दुनिया और सारी बुराइयों को मिटा देगा।
▸ अध्या. 3, पैरा. 13; अध्या. 8, पैरा. 18
11 परमेश्वर का राज
परमेश्वर का राज एक सरकार की तरह है। इसे यहोवा ने स्वर्ग में कायम किया है। इस राज का राजा यीशु मसीह है। यहोवा भविष्य में इसी राज के ज़रिए सारी बुराइयों को मिटा देगा। उसके बाद परमेश्वर का राज पूरी धरती पर हुकूमत करेगा।
12 यीशु मसीह
परमेश्वर ने सबसे पहले यीशु को बनाया था, उसके बाद उसने बाकी सारी चीज़ें बनायीं। यहोवा ने यीशु को धरती पर इसलिए भेजा ताकि वह सभी इंसानों की खातिर अपनी जान दे। यीशु को मार डाले जाने के बाद यहोवा ने उसे दोबारा ज़िंदा किया। आज यीशु, परमेश्वर के राज का राजा है और वह स्वर्ग में हुकूमत कर रहा है।
13 सत्तर हफ्तों की भविष्यवाणी
बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि मसीहा कब आएगा। बाइबल बताती है कि 69 हफ्तों के बीतने पर वह आएगा। इन हफ्तों की शुरूआत ईसा पूर्व 455 में हुई और इनका अंत ईसवी सन् 29 में हुआ।
हम कैसे जानते हैं कि 69 हफ्तों का समय ईसवी सन् 29 में खत्म हुआ? इन हफ्तों की शुरूआत ईसा पूर्व 455 में हुई जब नहेमायाह यरूशलेम पहुँचा और शहर को दोबारा बनाने लगा। (दानियेल 9:25; नहेमायाह 2:1, 5-8) जब हम शब्द “दर्जन” सुनते हैं तो फौरन हमारे दिमाग में 12 नंबर आता है। उसी तरह जब हम शब्द “हफ्ता” सुनते हैं तो हमारे दिमाग में 7 नंबर आता है। लेकिन इस भविष्यवाणी में जिन हफ्तों की बात की गयी है, उनमें हर हफ्ता सात दिनों का नहीं बल्कि सात सालों का है। बाइबल बताती है कि भविष्यवाणियों में ‘एक दिन के लिए एक साल’ का हिसाब लगाया जाता है। (गिनती 14:34; यहेजकेल 4:6) इसलिए 69 हफ्तों का मतलब है 483 साल (यानी 69 गुणा 7)। अब अगर हम ईसा पूर्व 455 से 483 सालों की गिनती करें तो हम ईसवी सन् 29 में पहुँचेंगे। इसी साल यीशु का बपतिस्मा हुआ और वह मसीहा बना।—लूका 3:1, 2, 21, 22.
उसी भविष्यवाणी में एक और हफ्ते के बारे में बताया गया है, यानी और सात साल जिस दौरान दो घटनाएँ होंगी। एक, मसीहा को मार डाला जाएगा और दूसरी, परमेश्वर के राज की खुशखबरी यहूदियों के अलावा सभी राष्ट्रों के लोगों को सुनायी जाएगी। पहली घटना ईसवी सन् 33 में हुई और दूसरी घटना ईसवी सन् 36 की शुरूआत में हुई।—दानियेल 9:24-27.
14 त्रिएक की शिक्षा झूठी है
बाइबल सिखाती है कि यहोवा परमेश्वर सृष्टिकर्ता है और उसने सब चीज़ों को बनाने से बहुत पहले यीशु की सृष्टि की। (कुलुस्सियों 1:15, 16) यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है। उसने कभी परमेश्वर के बराबर होने का दावा नहीं किया। इसके बजाय उसने कहा, “पिता मुझसे बड़ा है।” (यूहन्ना 14:28; 1 कुरिंथियों 15:28) मगर कुछ धर्म त्रिएक की शिक्षा सिखाते हैं। वे कहते हैं कि पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है और पवित्र आत्मा परमेश्वर है, फिर भी वे तीन नहीं बल्कि एक परमेश्वर हैं। लेकिन बाइबल में कहीं पर भी शब्द “त्रिएक” नहीं आता। यह एक झूठी शिक्षा है।
पवित्र शक्ति कोई शख्स नहीं है। इसके बजाय यह परमेश्वर की ज़ोरदार शक्ति है और इसी शक्ति का इस्तेमाल करके परमेश्वर अपनी मरज़ी पूरी करता है। उदाहरण के लिए, पहली सदी में मसीही “पवित्र शक्ति से भर गए” थे और यहोवा ने कहा था, “मैं . . . हर तरह के इंसान पर अपनी पवित्र शक्ति उँडेलूँगा।”—प्रेषितों 2:1-4, 17.
▸ अध्या. 4, पैरा. 12; अध्या. 15, पैरा. 17
15 परिपूर्ण
जब परमेश्वर ने पहले इंसान को बनाया तो उसमें कोई खोट नहीं था। उसका गलत काम की तरफ कोई झुकाव भी नहीं था। उसमें कोई पाप या खोट नहीं था, इसलिए वह न ही बूढ़ा होता, न मरता। इस दशा को परिपूर्णता कहा जाता है और ऐसे इंसान को परिपूर्ण इंसान कहा जाता है।
16 क्रूस
सच्चे मसीही उपासना में क्रूस का इस्तेमाल नहीं करते। क्यों?
लंबे समय से क्रूस का इस्तेमाल झूठी उपासना में होता आया है। पुराने ज़माने में सृष्टि की पूजा में क्रूस का इस्तेमाल होता था। इसके अलावा, झूठे धर्मों के उन रीति-रिवाज़ों में भी क्रूस का इस्तेमाल होता था, जिनमें लोग लैंगिक काम करते थे। यीशु की मौत के बाद, 300 सालों तक मसीहियों ने उपासना में क्रूस का इस्तेमाल नहीं किया। बहुत बाद में जाकर रोमी सम्राट कॉन्सटनटाइन ने क्रूस को मसीहियों की निशानी बना दी। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि मसीही धर्म मशहूर हो जाए। मगर क्रूस का यीशु मसीह के साथ दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। द न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया बताती है, “क्रूस का इस्तेमाल यीशु के आने से पहले के धर्मों और गैर-मसीही धर्मों में भी होता था।”
यीशु की मौत क्रूस पर नहीं हुई थी। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद क्रूस किया गया है, उस शब्द का मतलब है “एक सीधा काठ,” “लट्ठा” या “पेड़।” द कंपेनियन बाइबल बताती है, “जिस यूनानी भाषा में [नया नियम] लिखा गया था, उसमें ऐसा कोई शब्द नहीं है जिसका मतलब लकड़ी के दो टुकड़े हो।” यीशु को एक सीधे काठ पर लटकाकर मार डाला गया था।
यहोवा नहीं चाहता है कि हम उपासना में कोई मूर्ति या निशानी इस्तेमाल करें।—निर्गमन 20:4, 5; 1 कुरिंथियों 10:14.
17 स्मारक
यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी थी कि वे उसकी मौत की यादगार मनाएँ। वे ऐसा हर साल नीसान 14 को करते हैं। यह वही तारीख है जब इसराएली फसह मनाते थे। स्मारक सभा में रोटी और दाख-मदिरा सबके पास से फिरायी जाती है। रोटी, यीशु के शरीर की और दाख-मदिरा, उसके खून की निशानी है। जिन लोगों की आशा स्वर्ग जाकर यीशु के साथ राज करने की है, वे रोटी खाते हैं और दाख-मदिरा पीते हैं। और जिन लोगों की आशा इसी धरती पर हमेशा जीने की है, वे आदर के साथ स्मारक सभा में आते हैं, मगर वे रोटी नहीं खाते न ही दाख-मदिरा पीते हैं।
18 आत्मा
कई हिंदी बाइबलों में इब्रानी शब्द रुआख और यूनानी शब्द नफ्मा का अनुवाद “आत्मा” किया गया है। मगर यह अनुवाद सही नहीं है क्योंकि इससे अमर आत्मा की गलत शिक्षा को बढ़ावा मिला है। जबकि इन इब्रानी और यूनानी शब्दों के कई मतलब होते हैं, जैसे हवा, इंसानों और जानवरों की साँस, स्वर्गदूत और परमेश्वर की ज़ोरदार शक्ति यानी पवित्र शक्ति।—निर्गमन 35:21; भजन 104:29; मत्ती 12:43; लूका 11:13.
▸ अध्या. 6, पैरा. 5, फुटनोट; अध्या. 15, पैरा. 17
19 गेहन्ना
गेहन्ना एक घाटी का नाम है, जो यरूशलेम के पास थी। इस घाटी में कूड़ा जलाया जाता था। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यीशु के ज़माने में गेहन्ना में जानवरों और इंसानों को ज़िंदा जलाया या तड़पाया जाता था। इसलिए गेहन्ना ऐसी अनदेखी जगह नहीं हो सकता, जहाँ इंसानों को मरने के बाद हमेशा-हमेशा के लिए सचमुच की आग में तड़पाया और जलाया जाता है। जब यीशु ने कहा कि कुछ लोगों को गेहन्ना में फेंक दिया जाएगा, तो उसका मतलब था कि उन्हें हमेशा के लिए नाश किया जाएगा।—मत्ती 5:22; 10:28.
20 प्रभु की प्रार्थना
यीशु ने यह प्रार्थना एक नमूने के तौर पर अपने चेलों को सिखायी थी। इसे आदर्श प्रार्थना भी कहा गया है। यीशु ने हमें इन बातों के बारे में प्रार्थना करना सिखाया:
“तेरा नाम पवित्र किया जाए”
हमारी इस बिनती का मतलब है कि परमेश्वर के नाम पर जितने भी कलंक लगे हैं, वे सब मिट जाएँ ताकि स्वर्ग में और धरती पर सभी परमेश्वर के नाम का आदर करें।
“तेरा राज आए”
हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर का राज शैतान की दुष्ट दुनिया का नाश कर दे, इस धरती पर हुकूमत करे और इसे एक खूबसूरत बगीचा बना दे।
‘तेरी मरज़ी धरती पर पूरी हो’
हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर ने जिस मकसद से धरती और इंसान को बनाया है, वह पूरा हो ताकि आज्ञा माननेवाले इंसानों के अंदर से पाप मिटा दिया जाए और वे बगीचे जैसी सुंदर धरती पर हमेशा जीएँ।
21 फिरौती
यहोवा ने फिरौती का इंतज़ाम इसलिए किया ताकि इंसानों को पाप और मौत से छुड़ाया जा सके। फिरौती की ज़रूरत इसलिए पड़ी ताकि पहले आदमी, आदम ने जो बढ़िया ज़िंदगी खो दी थी उसे वापस खरीदा जा सके। यही नहीं, यहोवा के साथ इंसान का जो रिश्ता टूट गया था उसे वापस जोड़ने के लिए भी फिरौती की ज़रूरत थी। परमेश्वर ने यीशु को धरती पर इसलिए भेजा ताकि वह सब पापी इंसानों की खातिर अपनी जान दे। यीशु की मौत की वजह से ही सब इंसानों को यह मौका मिला है कि उनके अंदर से पाप मिटाया जा सके और वे हमेशा के लिए जी सकें।
▸ अध्या. 8, पैरा. 21; अध्या. 9, पैरा. 13
22 सन् 1914 क्यों एक खास साल है?
दानियेल के अध्याय 4 में लिखी भविष्यवाणी से पता चलता है कि परमेश्वर ने सन् 1914 में अपना राज स्वर्ग में कायम किया।
भविष्यवाणी: यहोवा ने राजा नबूकदनेस्सर को सपने में एक बड़ा पेड़ दिखाया। उस पेड़ को काट दिया गया, मगर उसके ठूँठ को जड़ों समेत रहने दिया गया। ठूँठ को लोहे और ताँबे के एक बंधन से बाँधा गया ताकि वह “सात काल” तक न बढ़ पाए। सात काल के बाद वह पेड़ फिर से बढ़ने लगेगा।—दानियेल 4:1, 10-16.
भविष्यवाणी का मतलब: वह पेड़ परमेश्वर के राज करने के अधिकार को दर्शाता है। पुराने ज़माने में यहोवा ने कई सालों तक इंसानी राजाओं के ज़रिए इसराएल राष्ट्र पर हुकूमत की थी। ये राजा यरूशलेम से राज करते थे। (1 इतिहास 29:23) मगर उन राजाओं ने यहोवा के साथ विश्वासघात किया, इसलिए उनकी हुकूमत का अंत हो गया। ईसा पूर्व 607 में यरूशलेम को नाश कर दिया गया और तब से “सात काल” की शुरूआत हुई। (2 राजा 25:1, 8-10; यहेजकेल 21:25-27) जब यीशु ने कहा, “जब तक राष्ट्रों के लिए तय किया गया वक्त पूरा न हो जाए, तब तक यरूशलेम राष्ट्रों के पैरों तले रौंदा जाएगा,” तो वह दरअसल इन्हीं “सात काल” के बारे में बात कर रहा था। (लूका 21:24) इसका मतलब है कि जब यीशु धरती पर आया तब सात काल खत्म नहीं हुए थे। यहोवा ने वादा किया था कि “सात काल” के बीतने पर वह एक राजा ठहराएगा। यह नया राजा यीशु है। यीशु के राज में पूरी धरती पर परमेश्वर के लोगों को ढेरों आशीषें मिलेंगी और वह भी हमेशा-हमेशा के लिए।—लूका 1:30-33.
“सात काल” कितना लंबा समय था? 2,520 साल। अगर हम ईसा पूर्व 607 से 2,520 साल गिनना शुरू करें तो हम सन् 1914 पर पहुँचेंगे। यह वही साल था जब यहोवा ने मसीहा यीशु को स्वर्ग में अपने राज का राजा बनाया।
लेकिन हम कैसे जानते हैं कि “सात काल” 2,520 साल लंबा था? बाइबल बताती है कि साढ़े तीन काल 1,260 दिन के बराबर है। (प्रकाशितवाक्य 12:6, 14) और साढ़े तीन काल का दुगुना सात काल है। इसलिए सात काल 1,260 का दुगुना होगा यानी 2,520 दिन। और भविष्यवाणियों में ‘एक दिन एक साल’ के बराबर होता है। इसलिए 2,520 दिन का मतलब 2,520 साल है।—गिनती 14:34; यहेजकेल 4:6.
23 प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल
बाइबल में सिर्फ एक ही “प्रधान स्वर्गदूत” के बारे में बताया गया है और उसका नाम मीकाएल है।—दानियेल 12:1; यहूदा 9.
मीकाएल, वफादार स्वर्गदूतों से बनी परमेश्वर की सेना का अगुवा है। प्रकाशितवाक्य 12:7 में लिखा है, ‘मीकाएल और उसके स्वर्गदूतों ने अजगर और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से लड़ाई की।’ प्रकाशितवाक्य की किताब बताती है कि परमेश्वर की सेना का अगुवा यीशु है। इससे पता चलता है कि मीकाएल, यीशु का दूसरा नाम है।—प्रकाशितवाक्य 19:14-16.
▸ अध्या. 9, पैरा. 4, फुटनोट
24 आखिरी दिन
“आखिरी दिनों” का मतलब है, समय का वह दौर जिस दौरान धरती पर बड़ी-बड़ी घटनाएँ होंगी और जिसके तुरंत बाद परमेश्वर का राज शैतान की दुनिया का नाश करेगा। बाइबल की भविष्यवाणियों में इस दौर को ‘दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्त’ और “इंसान के बेटे की मौजूदगी” भी कहा गया है। (मत्ती 24:3, 27, 37) “आखिरी दिनों” की शुरूआत सन् 1914 में हुई जब परमेश्वर का राज स्वर्ग में हुकूमत करने लगा। और ये दिन तब खत्म होंगे जब हर-मगिदोन के युद्ध में शैतान की दुनिया को नाश कर दिया जाएगा।—2 तीमुथियुस 3:1; 2 पतरस 3:3.
25 मरे हुओं में से ज़िंदा करना
बाइबल में ऐसे नौ लोगों के बारे में बताया गया है जिन्हें मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था। एलियाह, एलीशा, यीशु, पतरस और पौलुस ने चमत्कार करके मरे हुओं को ज़िंदा किया था। वे ये चमत्कार इसलिए कर पाएँ क्योंकि उन्हें परमेश्वर से शक्ति मिली थी। यहोवा वादा करता है कि वह धरती पर “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों” को मरे हुओं में से ज़िंदा करेगा। (प्रेषितों 24:15) बाइबल यह भी बताती है कि कुछ लोगों को स्वर्ग में ज़िंदा किया जाएगा। ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने चुना है। जब उन्हें स्वर्ग में ज़िंदा किया जाएगा तब वे वहाँ यीशु के साथ रहेंगे।—यूहन्ना 5:28, 29; 11:25; फिलिप्पियों 3:11; प्रकाशितवाक्य 20:5, 6.
26 जादू-टोना
जादू-टोने का मतलब है, दुष्ट स्वर्गदूतों से संपर्क करना, फिर चाहे एक इंसान खुद ऐसा करे या किसी तांत्रिक, ओझा या मरे हुओं से बात करने का दावा करनेवाले के ज़रिए ऐसा करे। जादू-टोना करना गलत है, फिर भी लोग जादू-टोना करते हैं। वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे यह झूठी शिक्षा मानते हैं कि इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा ज़िंदा रहती है या वह भूत बन जाता है। दुष्ट स्वर्गदूत इंसानों को परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के लिए बहकाते हैं। ज्योतिष-विद्या, भविष्य बताना, जादूगरी, टोना-टोटका, अंधविश्वास, ये सब जादू-टोने का ही हिस्सा हैं। बहुत-सी किताबों, पत्रिकाओं, राशिफल, फिल्मों, पोस्टरों और गानों में दुष्ट स्वर्गदूतों, जादूगरी और अलौकिक शक्तियों को ऐसे पेश किया जाता मानो उनसे कोई खतरा नहीं बल्कि वे बहुत आकर्षक हैं। अंतिम संस्कार या मैयत से जुड़े कई रीति-रिवाज़ हैं, जैसे जश्न मनाना, बरसी मनाना, मरे हुओं के लिए बलिदान चढ़ाना, विधवाओं की प्रथाएँ या लाश के पास पूरी रात बैठना। इन रिवाज़ों में दुष्ट स्वर्गदूतों से संपर्क करना भी शामिल होता है। जब लोग दुष्ट स्वर्गदूतों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं, तो वे अकसर ड्रग्स लेकर ऐसा करते हैं।—गलातियों 5:20; प्रकाशितवाक्य 21:8.
▸ अध्या. 10, पैरा. 10; अध्या. 16, पैरा. 4
27 यहोवा का हुकूमत करने का अधिकार
यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और उसने पूरा विश्व बनाया। (प्रकाशितवाक्य 15:3) इसलिए वही सब चीज़ों का मालिक है और उसी को सारी सृष्टि पर हुकूमत करने का अधिकार है। (भजन 24:1; यशायाह 40:21-23; प्रकाशितवाक्य 4:11) उसने सृष्टि के लिए नियम बनाए हैं। यहोवा, शासक ठहराने का भी अधिकार रखता है। जब हम उससे प्यार करते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम उसके हुकूमत करने के अधिकार को मानते हैं।—1 इतिहास 29:11.
28 गर्भपात
गर्भपात करने का मतलब है, गर्भ में पल रहे बच्चे को जानबूझकर मार डालना। गर्भपात किसी हादसे से या माँ के शरीर की गड़बड़ी की वजह से नहीं होता। जब एक औरत का गर्भ ठहरता है, तो भ्रूण माँ के शरीर का बस एक और अंग नहीं होता बल्कि वह एक अलग जान होता है।
29 खून चढ़वाना
यह इलाज का एक तरीका है जिसमें मरीज़ को खून या खून के चार खास तत्वों में से एक चढ़ाया जाता है। यह खून उसका अपना जमा हुआ खून हो सकता है या किसी दूसरे व्यक्ति का हो सकता है। खून के चार तत्व हैं प्लाज़मा, लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स।
30 शिक्षा देना
बाइबल में ‘शिक्षा देने’ का मतलब सिर्फ सज़ा देना नहीं है बल्कि इसमें निर्देश देना, सिखाना और सुधारना भी शामिल हैं। यहोवा जिन्हें शिक्षा देता है उनके साथ वह कभी बेरहमी से पेश नहीं आता और न ही उनका अपमान करता है। (नीतिवचन 4:1, 2) यहोवा, माता-पिताओं के लिए एक बढ़िया मिसाल है। वह जो शिक्षा देता है वह इतनी असरदार होती है कि शिक्षा पानेवाला इसे पाकर खुश होता है। (नीतिवचन 12:1) यहोवा अपने लोगों से प्यार करता है और उन्हें प्रशिक्षण देता है। वह उनकी सोच सुधारता है। वह उन्हें सही तरीके से सोचना और काम करना सिखाता है। जब माता-पिता से कहा गया है कि वे अपने बच्चों को शिक्षा दें तो इसमें कई बातें शामिल हैं। उन्हें बच्चों को यह समझने में मदद देनी चाहिए कि क्यों उन्हें उनका कहना मानना चाहिए। उन्हें बच्चों को यह भी सिखाना चाहिए कि वे यहोवा से और उसके वचन बाइबल से प्यार करें। उन्हें बच्चों को बाइबल के सिद्धांत समझने में भी मदद देनी चाहिए।
31 दुष्ट स्वर्गदूत
दुष्ट स्वर्गदूत हम इंसानों से ज़्यादा ताकतवर हैं और हम उन्हें नहीं देख सकते। इन स्वर्गदूतों ने जब परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी तब से वे दुष्ट हो गए और उसके दुश्मन बन गए। (उत्पत्ति 6:2; यहूदा 6) बाद में वे शैतान से मिल गए।—व्यवस्थाविवरण 32:17; लूका 8:30; प्रेषितों 16:16; याकूब 2:19.