मिट्टी के बरतनों में रखा हमारा धन
“हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।”—२ कुरिन्थियों ४:७.
१. यीशु की मिसाल से हमें कैसे हौसला मिलता है?
जब यीशु इस पृथ्वी पर था तब यहोवा द्वारा ढाले जाने के लिए उसने खुद उन दुख-तकलीफों और कमज़ोरियों का अनुभव किया जिनका इंसान अनुभव करते हैं। ऐसे में भी वफादार बने रहने की उसकी मिसाल से हमें कितनी हिम्मत मिलती है! प्रेरित पतरस हमें बताता है: “तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (१ पतरस २:२१) इस तरह ढाले जाने के लिए खुशी-खुशी खुद को सौंपकर यीशु इस संसार को जीत सका। उसने अपने प्रेरितों की हिम्मत बँधायी कि वे भी संसार को जीत लें। (प्रेरितों ४:१३, ३१; ९:२७, २८; १४:३; १९:८) उनके साथ आखिरी बार बात करते समय उसने उनका क्या ही हौसला बढ़ाया! उसने कहा: “मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।”—यूहन्ना १६:३३.
२. जबकि यह संसार अंधकार में है, हमारे पास कौन-सा प्रकाश है?
२ इसी तरह, ‘तेजोमय सुसमाचार के प्रकाश’ और लोगों को “इस संसार के ईश्वर” द्वारा दिए गए अंधकार के बीच फर्क दिखाने के बाद प्रेरित पौलुस ने हमारी अनमोल सेवकाई के बारे में कहा: “हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे। हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।” (२ कुरिन्थियों ४:४, ७-९) ‘मिट्टी के [नाज़ुक] बरतन’ होने के बावजूद, परमेश्वर ने अपनी आत्मा के द्वारा हमें इस तरह गढ़ा है कि हम शैतान के संसार को पूरी तरह जीत सकें।—रोमियों ८:३५-३९; १ कुरिन्थियों १५:५७.
इस्राएल का ढाला जाना
३. यशायाह ने यहूदी जाति के ढाले जाने के बारे में क्या कहा?
३ यहोवा सिर्फ एकाध व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरी-की-पूरी जाति को भी ढालता है। उदाहरण के लिए, जब इस्राएल की जाति ने ढाले जाने के लिए खुद को यहोवा के हाथों सौंप दिया, तब वे खुशहाल बने रहे। मगर बाद में वह जाति हठीली और कठोर बन गयी और उसने परमेश्वर की आज्ञा मानना छोड़ दिया। इसकी वज़ह से इस्राएल के रचनेवाले ने इस जाति को शाप दिया, और उस पर “हाय” कहा। (यशायाह ४५:९) सा.यु.पू. आठवीं सदी में यशायाह ने यहोवा से इस्राएल के घोर पाप के बारे में कहा: “हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी हैं, और तू हमारा कुम्हार है, हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं। . . . हमारी मनभावनी वस्तुएं सब नष्ट हो गई हैं।” (यशायाह ६४:८-११) इस्राएल ढलकर ऐसा बरतन बन गया था जो बस नष्ट किए जाने के लायक था।
४. यिर्मयाह ने दृष्टांत के रूप में क्या प्रदर्शित करके दिखाया?
४ एक सदी के बाद उस जाति से लेखा लेने का दिन आया। तब यहोवा ने यिर्मयाह से कहा कि मिट्टी की बनायी हुई सुराही लेकर यरूशलेम के कुछ पुरनियों और याजकों के साथ, हिन्नोम की तराई में जा। उसने उसे आदेश दिया: “तू उस सुराही को उन मनुष्यों के साम्हने तोड़ देना जो तेरे संग जाएंगे, और उन से कहना, सेनाओं का यहोवा यों कहता है कि जिस प्रकार यह मिट्टी का बासन जो टूट गया कि फिर बनाया न जा सके, इसी प्रकार मैं इस देश के लोगों को और इस नगर को तोड़ डालूंगा।”—यिर्मयाह १९:१०, ११.
५. यहोवा ने इस्राएल को किस हद तक दंड दिया?
५ नबूकदनेस्सर ने सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम को और उसके मंदिर को तहस-नहस कर दिया और वह ज़िंदा बचे यहूदियों को गुलाम बनाकर बाबुल ले गया। लेकिन गुलामी में ७० साल रहने के बाद, यहूदियों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने दिल से पश्चाताप किया। और वे यरूशलेम और उसके मंदिर को फिर से बनाने के लिए वापस आ पाए। (यिर्मयाह २५:११) लेकिन पहली सदी के आते-आते, उस जाति ने अपने महान कुम्हार को फिर से ठुकरा दिया। और-तो-और, वे इतनी नीचता पर उतर आए कि उन्होंने खुद परमेश्वर के पुत्र को मारने का सबसे संगीन जुर्म किया। इसलिए सा.यु. ७० में, परमेश्वर ने यहूदी व्यवस्था को मिटा देने के लिए रोमी विश्व शक्ति का इस्तेमाल किया, और यरूशलेम और उसके मंदिर को मिट्टी में मिला दिया। इसके बाद, इस्राएल की जाति यहोवा के हाथों से “पवित्र और शोभायमान” बनने के लिए फिर कभी ढाली नहीं जाती।a
एक आत्मिक जाति को ढालना
६, ७. (क) पौलुस आत्मिक इस्राएल के ढाले जाने के बारे में क्या कहता है? (ख) “दया के बरतनों” की कुल संख्या कितनी है, और इस संख्या को कैसे पूरा किया गया?
६ लेकिन, जिन यहूदियों ने यीशु को स्वीकार किया था, उन्हें ढालकर एक नयी जाति, यानी “परमेश्वर के [आत्मिक] इस्राएल” के पहले बुनियादी सदस्य बनाया गया। (गलतियों ६:१६) तो फिर पौलुस की बात बिलकुल सही थी: “क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं, कि एक ही लोंदे में से, एक बरतन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? . . . परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की।”—रोमियों ९:२१-२३.
७ अपने पुनरुत्थान के कई साल बाद यीशु ने यह जाहिर किया कि “दया के [इन] बरतनों” की संख्या १,४४,००० होगी। (प्रकाशितवाक्य ७:१४; १४:१) क्योंकि इस्राएल की जाति इस संख्या को पूरा नहीं कर पायी थी, इसलिए यहोवा ने अन्यजाति के लोगों पर अपनी दया दिखायी और उन्हें मौका दिया। (रोमियों ११:२५, २६) इस तरह नयी मसीही कलीसिया बड़ी तेज़ी से बढ़ने लगी, और ३० साल के अंदर ही सुसमाचार का प्रचार “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया” जा रहा था। (कुलुस्सियों १:२३) इसकी वज़ह से दूर-दूर फैली हुई कई कलीसियाओं की सही तरह निगरानी करने की ज़रूरत सामने आयी।
८. पहले शासी निकाय में कौन लोग थे, और आगे चलकर इसमें क्या-क्या बदलाव आए?
८ यीशु ने १२ प्रेरितों को पहला शासी निकाय बनने के लिए तैयार किया। उनके साथ उसने बाकी शिष्यों को भी प्रचार काम की ट्रेनिंग दी। (लूका ८:१; ९:१, २; १०:१, २) सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, मसीही कलीसिया स्थापित हुई। बाद में इसके शासी निकाय में “प्रेरितों” के साथ-साथ ‘यरूशलेम के प्राचीनों’ को शामिल किया गया। ऐसा लगता है कि इसके बाद काफी सालों के लिए यीशु के सौतेले भाई याकूब ने इस शासी निकाय के अध्यक्ष का काम किया, हालाँकि वह एक प्रेरित नहीं था। (प्रेरितों १२:१७; १५:२, ६, १३; २१:१८) इतिहासकार यूसिबियस कहता है कि इसके बाद खासकर प्रेरितों को बहुत सताया गया और वे तितर-बितर हो गए। इसलिए शासी निकाय में ज़रूरी बदलाव किए गए और प्रेरितों की जगह दूसरों ने ले ली।
९. यीशु ने किस दुःखद परिस्थिति के बारे में पहले ही बता दिया था?
९ पहली सदी के लगभग आखिर में, ‘बैरी शैतान’ ‘स्वर्ग के राज्य’ के गेहूँ समान वारिसों के बीच ‘जंगली बीज बोने’ लगा। यीशु ने पहले ही बता दिया था कि ऐसी दुःखद परिस्थिति कटनी के समय तक, यानी “जगत के अन्त” तक चलती रहेगी। इसके बाद फिर से “धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमकेंगे।” (मत्ती १३:२४, २५, ३७-४३) ऐसा कब होनेवाला था?
आज परमेश्वर के इस्राएल का ढाला जाना
१०, ११. (क) इस सदी में परमेश्वर के इस्राएल को किस तरह ढाला गया? (ख) ईसाईजगत और सच्चे बाइबल विद्यार्थियों की शिक्षाओं के बीच क्या फर्क था?
१० सन् १८७० में, चार्ल्स टेज़ रस्सल ने पिट्सबर्ग, पॆनसिलवेनिया, अमरीका में बाइबल स्टडी के लिए एक ग्रूप बनाया। सन् १८७९ में उन्होंने हर महीने एक पत्रिका छापनी शुरू की, जिसे आज द वॉचटावर (प्रहरीदुर्ग) कहा जाता है। यह ग्रूप ‘बाइबल स्टूडन्ट्स’ के नाम से जाना जाने लगा। इनको जल्द ही समझ आया कि ईसाईजगत ने बाइबल से हटकर झूठे धर्म की शिक्षाओं को अपना लिया है, जैसे अमर आत्मा, नरकाग्नि, शोधन-लोक, त्रियेक, और शिशुओं के बपतिस्मे की शिक्षा।
११ लेकिन और भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि बाइबल सच्चाई से प्रेम करनेवाले इन लोगों ने बाइबल की असली शिक्षाओं को सिखाना शुरू किया। ऐसी शिक्षाएँ जैसे यीशु के छुड़ौती बलिदान के द्वारा छुटकारा और पुनरुत्थान पाकर परमेश्वर के राज्य में इस ज़मीन पर फैले खूबसूरत बगीचे में शांति से हमेशा के लिए जीने की आशा। सबसे बढ़कर, इस बात पर ज़ोर दिया गया कि जल्द ही यह साबित होगा कि यहोवा परमेश्वर ही इस विश्वमंडल का महाराजाधिराज और मालिक है और सिर्फ उसे ही इस विश्व पर राज करने का हक है। बाइबल के ये विद्यार्थी विश्वास करते थे कि प्रभु की इस प्रार्थना का जल्द ही जवाब दिया जाएगा: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०) परमेश्वर की पवित्र आत्मा उन्हें ढालकर दुनिया भर में फैली शांति से प्रेम करनेवाली मसीहियों की एक बिरादरी बना रही थी।
१२. बाइबल विद्यार्थियों को एक महत्त्वपूर्ण तारीख का पता कैसे चला?
१२ दानिय्येल के ४ अध्याय और दूसरी भविष्यवाणियों के गहरे अध्ययन से ये बाइबल विद्यार्थी जान गए कि यीशु, मसीहा राजा बनकर जल्द ही उपस्थित होगा। उन लोगों ने समझ लिया कि “अन्य जातियों का समय” १९१४ में खत्म होगा। (लूका २१:२४; यहेजकेल २१:२६, २७) इसलिए बाइबल विद्यार्थी अपने काम में तेज़ी लाए और उन्होंने पूरे अमरीका में बाइबल क्लासें स्थापित कीं (जिन्हें बाद में कलीसिया कहा जाने लगा)। २०वीं सदी के शुरू में बाइबल सिखाने का उनका काम यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और उसके आस-पास के द्वीपों में फैलने लगा। इसलिए काम को अच्छी तरह व्यवस्थित करना ज़रूरी हो गया।
१३. कानूनी तौर पर मान्यता पाने के लिए बाइबल विद्यार्थियों ने क्या किया, और संस्था के पहले अध्यक्ष ने किस तरह बेमिसाल सेवा की थी?
१३ बाइबल विद्यार्थियों ने कानूनी तौर पर मान्यता पाने के लिए, १८८४ में अमरीका में ज़ायन्स वॉच टावर ट्रैक्ट सोसाइटी के नाम से एक निगम बनाया। इस निगम का मुख्यालय पिट्सबर्ग, पॆनसिलवेनिया में था। इसके निर्देशक ही शासी निकाय के तौर पर काम करते थे और पूरी दुनिया में परमेश्वर के राज्य के प्रचार के काम की निगरानी करते थे। संस्था के पहले अध्यक्ष, चार्ल्स टी. रस्सल ने स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स के छः खंड लिखे और प्रचार के लिए दूर-दूर तक दौरा किया। उन्होंने बाइबल शिक्षा का कार्यक्रम शुरू करने से पहले जितनी धन-दौलत कमायी थी, उसे दुनिया भर में राज्य का प्रचार करने के लिए दे दिया। सन् १९१६ में जब पहला विश्वयुद्ध यूरोप में कहर ढा रहा था, तब प्रचार का दौरा करते वक्त पस्त-हाल भाई रस्सल ने सफर में दम तोड़ दिया। परमेश्वर के राज्य की और ज़्यादा गवाही देने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था।
१४. जे. एफ. रदरफर्ड ने किस तरह ‘अच्छी कुश्ती लड़ी’? (२ तीमुथियुस ४:७)
१४ जोसॆफ एफ. रदरफर्ड अगले अध्यक्ष बने जो इससे पहले कुछ समय तक मिज़ोरी में जज थे। उन्होंने बेधड़क होकर बाइबल सच्चाई की पैरवी की। इस वज़ह से ईसाईजगत के पादरी भड़क उठे और उन्होंने ‘कानून की आड़ में उत्पात मचाने’ के लिए राजनैतिक नेताओं का सहारा लिया। जून २१, १९१८ को, भाई रदरफर्ड के साथ सात और प्रमुख बाइबल विद्यार्थियों को जेल हो गई। उन पर कई इलज़ाम लगाए गए और हर एक इलज़ाम के लिए १० या २० साल की सज़ा थी। बाइबल विद्यार्थियों ने भी कानून का सहारा लिया। (भजन ९४:२०; फिलिप्पियों १:७) उन्होंने एक अपील की जिसकी मंज़ूरी के साथ उन्हें मार्च २६, १९१९ को रिहा कर दिया गया और बाद में देशद्रोह के झूठे इलज़ाम से पूरी तरह बरी कर दिया गया।b इस अनुभव से ढलकर वे सच्चाई के निडर समर्थक बन गए। महा बाबुल ने उनके प्रचार काम को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन यहोवा की मदद से उन्होंने इस आत्मिक लड़ाई को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। और यह लड़ाई आज १९९९ के इस साल तक जारी है।—मत्ती, अध्याय २३ से तुलना कीजिए। यूहन्ना ८:३८-४७.
१५. सन् १९३१ ऐतिहासिक साल क्यों था?
१५ सन् १९२० और १९३० के दशकों के दौरान, महान कुम्हार अपने अभिषिक्त इस्राएल को अपने हाथों से ढालता रहा। बाइबल की रोशनी में भविष्यवाणियों की समझ बढ़ने लगी जिसकी वज़ह से यहोवा की महिमा पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया और यीशु के मसीहाई राज्य के बारे जानकारी और ज़्यादा बढ़ी। सन् १९३१ में बाइबल विद्यार्थियों की खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने नया नाम यहोवा के साक्षी, अपनाया।—यशायाह ४३:१०-१२; मत्ती ६:९, १०; २४:१४.
१६ और पेज १९ का बक्स. १,४४,००० की कुल संख्या कब पूरी हुई और इसका क्या सबूत है?
१६ लगता है कि सन् १९३० के दशक में “बुलाए हुए, और चुने हुए, और विश्वासी” लोग, यानी १,४४,००० की संख्या लगभग पूरी हो गयी। (प्रकाशितवाक्य १७:१४; पेज १९ पर बक्स देखिए।) हम नहीं जानते कि पहली सदी में और उस समय कितने अभिषिक्तों को चुना गया जब अंधकार युग के दौरान ईसाईजगत में बड़े धर्मत्याग की वज़ह से ‘जंगली दाने’ उग रहे थे। लेकिन १९३५ में ५६,१५३ प्रकाशकों में से कुल मिलाकर ५२,४६५ प्रकाशक ऐसे थे जिन्होंने स्मारक में रोटी और दाखमधु लेकर दिखाया कि उनकी आशा स्वर्ग जाने की है। मगर उन बहुत-से लोगों की क्या आशा होगी जिन्हें इकट्ठा किया जाना बाकी था?
‘देखो, बड़ी भीड़’
१७. सन् १९३५ में कौन-सी ऐतिहासिक घटना हुई थी?
१७ वॉशिंगटन, डी.सी., अमरीका में सन् १९३५ को, मई ३० से जून ३ तक एक अधिवेशन हुआ, जिसमें भाई रदरफर्ड ने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाषण दिया जिसका शीर्षक था “बड़ी भीड़।” यह भीड़ “जिसे कोई गिन नहीं सकता था,” आत्मिक इस्राएल के १,४४,००० पर मोहर लगाने का काम समाप्त होने के लगभग दिखायी देती। यह भीड़ यीशु के, यानी “मेम्ने के लोहू” की छुड़ौति के मूल्य पर विश्वास करेगी और यहोवा द्वारा ठहराए गए मंदिर, यानी उपासना के प्रबंध के मुताबिक पवित्र सेवा करेगी। यह भीड़ ‘बड़े क्लेश में से निकलकर आएगी’ और ऐसी खुशहाल और शांतिमय पृथ्वी की वारिस बनेगी जहाँ “मृत्यु न रहेगी।” उस अधिवेशन से पहले कई सालों तक इस समूह को योनादाब वर्ग के नाम से पुकारा जाता था।—प्रकाशितवाक्य ७:९-१७; २१:४; यिर्मयाह ३५:१०.
१८. सन् १९३८ क्यों बहुत ही महत्त्वपूर्ण था?
१८ इन दो वर्गों को पहचानने में १९३८ का साल बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा। द वॉचटावर के मार्च १५ और अप्रैल १, १९३८ के अंक में दो-भागों का अध्ययन लेख “उसका झुंड” प्रकाशित किया गया। इनमें अभिषिक्त शेषवर्ग और उनके साथी, बड़ी भीड़ की अलग-अलग भूमिका के बारे में साफ-साफ बताया गया। उसके बाद जून १ और जून १५ के अंकों में, यशायाह ६०:१७ पर आधारित अध्ययन लेख प्रकाशित किए गए जिनका शीर्षक था “संगठन।” सभी कलीसियाओं से कहा गया कि वे ज़िम्मदारी का पद संभालने के लिए भाइयों को खुद नियुक्त करने के बजाय शासी निकाय से उन्हें नियुक्त करने की सिफारिश करें। इस तरह एक ऐसा बेहतर प्रबंध स्थापित हुआ जो परमेश्वर द्वारा ठहराया गया एक ईशतंत्र था। इसके जवाब में कलीसियाओं ने ऐसा ही किया।
१९ और फुटनोट। कौन-सी बातें यह साबित करती हैं कि ‘अन्य भेड़ों’ को इकट्ठा किए जाने का बुलावा करीब पिछले ६० सालों से दिया जा रहा है?
१९ सन् १९३९ की यहोवा के साक्षियों की इयरबुक (अंग्रेज़ी) की रिपोर्ट में लिखा था: “पृथ्वी पर बचे यीशु मसीह के अभिषिक्त शिष्यों की संख्या बहुत कम रह गयी है, और यह कभी नहीं बढ़ेगी। इन अभिषिक्त जनों को बाइबल में परमेश्वर के संगठन, यानी सियोन की ‘शेष सन्तान’ कहा गया है। (प्रका. १२:१७) अब प्रभु अपने पास अपनी ‘अन्य भेड़ों’ को इकट्ठा कर रहा है जिनसे ‘बड़ी भीड़’ बनेगी। (यूह. १०:१६, NW) जिन्हें अब इकट्ठा किया जा रहा है वे अभिषिक्त शेषजनों के साथी हैं, और उनके साथ मिलकर काम करते हैं। अब से ‘अन्य भेड़ों’ की संख्या तब तक बढ़ती जाएगी जब तक कि एक ‘बड़ी भीड़’ इकट्ठी नहीं हो जाती।” अभिषिक्त शेषजनों को इस तरह ढाला गया था ताकि वे बड़ी भीड़ को इकट्ठा करने के काम की देखभाल कर सकें। अब बड़ी भीड़ को भी ढाला जाना है।c
२०. सन् १९४२ से संगठन के काम करने के तरीके में क्या-क्या बदलाव किए गए?
२० जनवरी १९४२ को जब दूसरा विश्वयुद्ध पूरे ज़ोरों पर था, उस दौरान जोसेफ रदरफर्ड चल बसे और उनकी जगह पर नेथन नॉर अध्यक्ष बने। संस्था के तीसरे अध्यक्ष को अब भी याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने कलीसियाओं में ईश्वरशासित स्कूल और मिशनरियों के प्रशिक्षण के लिए गिलियड स्कूल की शुरुआत की। सन् १९४४ में हुई संस्था की सालाना मिटिंग में उन्होंने घोषणा की कि संस्था की नियमावली में सुधार किया जा रहा है, जिससे अब संस्था के सदस्यों को उनकी आध्यात्मिक योग्यता के आधार पर चुना जाएगा, ना कि इस आधार पर कि उन्होंने संस्था को कितना दान दिया है। अगले ३० सालों के दौरान, प्रचारकों की संख्या दुनिया भर में १,५६,२९९ से बढ़कर २१,७९,२५६ हो गयी। सन् १९७१-७५ के दौरान संगठन के काम करने के तरीके में और भी बदलाव करने की ज़रूरत पड़ी। अब पूरी दुनिया में होनेवाले राज्य के प्रचार के काम को सिर्फ एक अध्यक्ष अकेला ही नहीं संभाल सकता था। इसलिए शासी निकाय के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर १८ कर दिया गया और ये सभी अभिषिक्त जन अपनी बारी आने पर अध्यक्षता करते थे। उस निकाय में से लगभग आधे जन आज पृथ्वी पर अपना जीवनकाल समाप्त कर चुके हैं।
२१. किस बात ने छोटे झुंड के सदस्यों को राज्य के लिए योग्य ठहराया है?
२१ छोटे झुंड के बचे सदस्यों को कई बरसों से परीक्षाओं के ज़रिए ढाला गया है। उन्होंने ‘आत्मा की गवाही’ पायी है, इसलिए वे बिलकुल बेधड़क होकर काम करते हैं। यीशु ने इस छोटे झुंड से कहा है: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।”—रोमियों ८:१६, १७; लूका १२:३२; २२:२८-३०.
२२, २३. छोटे झुंड और अन्य भेड़ों को किस तरह ढाला जा रहा है?
२२ अब पृथ्वी पर आत्मा से अभिषिक्त जन बहुत ही कम बचे हैं, इसलिए दुनिया भर की लगभग सभी कलीसियाओं की आध्यात्मिक निगरानी का ज़िम्मा बड़ी भीड़ के आध्यात्मिक अनुभवी भाइयों को दिया गया है। और जिस वक्त बचे हुए वृद्ध अभिषिक्त साक्षियों के आखिरी सदस्य पृथ्वी पर अपना जीवनकाल समाप्त करेंगे, तब तक अन्य भेड़ के राजकुमार सारिम पृथ्वी पर प्रधान वर्ग के तौर पर प्रशासन की ज़िम्मेदारियाँ अपने हाथों में लेने के लिए अच्छी तरह प्रशिक्षित हो चुके होंगे।—यहेजकेल ४४:३; यशायाह ३२:१.
२३ छोटे झुंड और अन्य भेड़ दोनों को लगातार ढाला जा रहा ताकि वे आदर के बरतन बन सकें। (यूहन्ना १०:१४-१६) चाहे हमारी आशा ‘नये आकाश’ की यानी स्वर्ग में रहने की हो या “नई पृथ्वी” पर रहने की हो, आइए हम पूरे दिल से यहोवा के आमंत्रण को स्वीकार करें: “जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊंगा।” (यशायाह ६५:१७, १८) कमज़ोर इंसान होने के बावजूद आइए हम हमेशा नम्रता से सेवा करते रहें और “असीम सामर्थ” यानी परमेश्वर की पवित्र आत्मा की शक्ति द्वारा ढाले जाते रहें!—२ कुरिन्थियों ४:७; यूहन्ना १६:१३.
[फुटनोट]
a प्राचीन इस्राएल जैसा आज का धर्मद्रोही ईसाईजगत यहोवा से आनेवाले ऐसे ही न्यायदंड की चेतावनी को समझ ले।—१ पतरस ४:१७, १८.
b जज मैनटन एक रोमन कैथोलिक था, जिसने बाइबल विद्यार्थियों को बेल पर रिहा करने से इनकार किया था। लेकिन बाद में उसे खुद रिश्वत लेने के इलज़ाम में जेल की सज़ा हो गई।
c सन् १९३८ में पूरी दुनिया में ७३,४२० लोग मसीह की मृत्यु का स्मारक मनाने के लिए हाज़िर हुए थे, जिनमें से ३९,२२५ लोगों ने, यानी उपस्थित लोगों के ५३ प्रतिशत ने रोटी और दाखमधु लिया था। सन् १९९८ तक इस स्मारक को मनाने के लिए हाज़िर होनेवालों की संख्या बढ़कर १,३८,९६,३१२ हो गयी जिनमें से सिर्फ ८,७५६ लोगों ने रोटी और दाखमधु लिया था, यह १० कलीसियाओं में से १ व्यक्ति से भी कम की औसत है।
क्या आपको याद है?
◻ अपने पिता द्वारा ढाले जाने के लिए खुद को सौंपकर यीशु ने हमारे लिए कैसे एक आदर्श रखा?
◻ प्राचीन इस्राएल में ढलाई का कौन-सा काम हुआ?
◻ ‘परमेश्वर के इस्राएल’ को अब तक किस तरह ढाला गया है?
◻ “अन्य भेड़” को किस उद्देश्य से ढाला गया है?
[पेज 18 पर बक्स]
ईसाईजगत और ज़्यादा ढाला जा रहा है
ग्रीस के एथेन्स से निकली एसोशिएटॆड प्रॆस की एक रिपोर्ट ने ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के हाल ही में ठहराए गए अध्यक्ष के बारे में यह कहा: “उसे तो शांति का दूत होना चाहिए। लेकिन ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के अध्यक्ष की बातों से ऐसा लगता है कि मानो वह जंग की तैयारी करनेवाला एक जनरल हो।
“हाल ही के असम्पशन ऑफ द वर्जिन पवित्र दिवस पर, जब ग्रीस का सेना दिवस भी मनाया गया, आर्चबिशप क्रिसटोडूलोस ने यूँ कहा: ‘अगर ज़रूरत पड़े तो हम खून बहाने और कुरबानियाँ देने के लिए तैयार रहेंगे। एक चर्च के तौर पर हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं . . . लेकिन वक्त पड़ने पर हम लड़ाई के पवित्र हथियारों को भी आशीष देंगे।’”
[पेज 19 पर बक्स]
“और नहीं जोड़े जाएँगे”
सन् १९७० में गिलियड ग्रैजुएशन के समय पर, वॉच टावर संस्था के उस समय के उपाध्यक्ष, फ्रॆडरिक फ्रांज़ ने पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले अन्य भेड़ के उन सभी विद्यार्थियों को इस संभावना के बारे में बताया कि उन्हें शायद किसी ऐसे व्यक्ति को बपतिस्मा देना पड़े जो अभिषिक्त शेषजन से होने का दावा करे। क्या ऐसा हो सकता है? उन्होंने समझाया कि हालाँकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला अन्य भेड़ का था, फिर भी उसने यीशु को और दूसरे प्रेरितों को बपतिस्मा दिया था। इसके बाद उन्होंने आगे पूछा कि क्या शेषवर्ग को इकट्ठा करने का बुलावा अब भी दिया जा रहा है या नहीं। “जी नहीं, और नहीं जोड़े जाएँगे!” उन्होंने कहा। “बुलावा तो १९३१-३५ में ही खत्म हो गया! उसके बाद और लोग नहीं जोड़े गए। तो फिर हाल ही में संगति करनेवाले ये नए लोग कौन हैं जो स्मारक की रोटी और दाखमधु ले रहे हैं? अगर वे शेषवर्ग का भाग हैं, तो फिर वे दूसरों की जगह लेनेवाले जन हैं! इन्हें अभिषिक्त जनों में जोड़ा नहीं गया है, बल्कि ये उन अभिषिक्तों की जगह लेनेवाले हैं, जो शायद अपने विश्वास से मुकर गए हों।”
[पेज 15 पर तसवीर]
हम कितने एहसानमंद हैं कि हमारे पास सेवा का यह अनमोल धन है!
[पेज 16 पर तसवीर]
प्राचीन इस्राएल ढलकर ऐसा बरतन बन गया था जो बस नष्ट किए जाने के लायक था