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  • “तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना”

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  • “तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
w17 अप्रैल पेज 3-8
यिप्तह और उसकी बेटी पवित्र-स्थान में; हन्‍ना यहोवा से मानी अपनी मन्‍नत पूरी करती है और शमूएल को पवित्र डेरे पर ले जाती है

“तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना”

“तुम यहोवा के सामने अपनी मन्‍नतें पूरी करना।”—मत्ती 5:33.

गीत: 18, 7

आप क्या जवाब देंगे?

  • आप किस तरह समर्पण के अपने वादे को पूरा कर सकते हैं?

  • शादी की शपथ कैसे निभायी जा सकती है?

  • खास पूरे समय के सेवक किस तरह अपनी शपथ पूरी कर सकते हैं?

1. (क) यिप्तह और हन्‍ना के बीच क्या समानता थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) इस लेख में हम क्या देखेंगे?

यिप्तह एक साहसी अगुवा और दिलेर योद्धा था। वहीं दूसरी तरफ, हन्‍ना अपने पति और परिवार का खयाल रखनेवाली एक नम्र औरत थी। यिप्तह और हन्‍ना दोनों ही यहोवा की उपासना करते थे। पर उनमें एक और समानता थी। उन दोनों ने यहोवा से मन्‍नत मानी थी और उसे पूरा भी किया था। यिप्तह और हन्‍ना उन सभी के लिए एक बढ़िया मिसाल हैं, जो आज यहोवा से मन्‍नत मानते हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि मन्‍नत किसे कहते हैं? परमेश्‍वर के सामने मन्‍नत मानना कितनी गंभीर बात है? इस बारे में हम यिप्तह और हन्‍ना से क्या सीख सकते हैं?

2, 3. (क) मन्‍नत किसे कहते हैं? (ख) परमेश्‍वर से मन्‍नत मानने के बारे में बाइबल क्या बताती है?

2 बाइबल के मुताबिक, मन्‍नत मानना एक गंभीर बात है। मन्‍नत किसे कहते हैं? जब एक इंसान यहोवा से वादा करता है कि वह कोई खास काम या सेवा करेगा, उसे कोई चढ़ावा या भेंट देगा या कुछ चीज़ों से दूर रहेगा, तो उस वादे को मन्‍नत कहते हैं। मन्‍नत अपनी मरज़ी से और बिना किसी दबाव के मानी जाती है। इसके लिए किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं की जाती। इसलिए जब एक इंसान अपनी मरज़ी से कोई मन्‍नत मानता है तो यह परमेश्‍वर की नज़र में एक गंभीर बात है और उसे अपनी मन्‍नत पूरी करनी चाहिए। बाइबल के हिसाब से मन्‍नत मानना शपथ खाने के बराबर है। शपथ खाने का मतलब है, किसी काम को करने या न करने का पक्का वादा करना। (उत्प. 14:22, 23; इब्रा. 6:16, 17) परमेश्‍वर से मन्‍नत मानना कितनी गंभीर बात है, इस बारे में बाइबल क्या बताती है?

3 मूसा के नियम में कहा गया था, “अगर कोई आदमी यहोवा के लिए एक मन्‍नत मानता है या शपथ खाकर किसी चीज़ का त्याग करने की मन्‍नत मानता है . . . तो उसे अपने वचन से नहीं मुकरना चाहिए। उसने जो भी मन्‍नत मानी है उसे पूरा करना होगा।” (गिन. 30:2) आगे चलकर, सुलैमान ने भी परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा, “जब-जब तू परमेश्‍वर से मन्‍नत माने, उसे पूरा करने में देर न करना क्योंकि वह मूर्ख से खुश नहीं होता, जो अपनी मन्‍नत पूरी नहीं करता। तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना।” (सभो. 5:4) यीशु ने भी बताया कि मन्‍नत मानना एक गंभीर बात है। उसने कहा, “तुमने यह भी सुना है कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम ऐसी शपथ न खाना जिसे तुम पूरा न करो, मगर तुम यहोवा के सामने अपनी मन्‍नतें पूरी करना।’”—मत्ती 5:33.

4. (क) परमेश्‍वर से मन्‍नत मानना कितनी गंभीर बात है? (ख) हम यिप्तह और हन्‍ना के बारे में क्या सीखेंगे?

4 इन सब बातों से पता चलता है कि यहोवा से हम जो भी वादे करते हैं हमें उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए। मन्‍नत पूरी करने या न करने का सीधा असर यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर पड़ता है। दाविद ने लिखा, “यहोवा के पहाड़ पर कौन चढ़ सकता है? कौन उसकी पवित्र जगह में खड़ा हो सकता है? वही . . . जिसने मेरे [यानी यहोवा के] जीवन की झूठी शपथ नहीं खायी, न ही शपथ खाकर छल किया।” (भज. 24:3, 4; फु.) अब आइए देखें कि यिप्तह और हन्‍ना ने क्या मन्‍नत मानी थी और क्या उनके लिए अपनी मन्‍नत पूरी करना आसान था।

उन्होंने अपनी मन्‍नत पूरी की

5. यिप्तह ने क्या मन्‍नत मानी और फिर क्या हुआ?

5 एक मौके पर, यिप्तह अम्मोनियों से लड़ने जा रहा था, जो परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मन थे। (न्यायि. 10:7-9) यिप्तह ने यहोवा से बिनती की कि वह उसे युद्ध में जीत दिलाए और उसने वादा किया, “अगर तू अम्मोनियों को मेरे हाथ कर देगा, तो मेरी जीत की खुशी में जो सबसे पहले मुझसे मिलने मेरे घर से बाहर आएगा, वह यहोवा का हो जाएगा।” परमेश्‍वर ने यिप्तह की प्रार्थना सुनी और उसे अम्मोनियों पर जीत दिलायी। फिर जब यिप्तह अपने घर लौटा, तो उसने देखा कि उसकी प्यारी बेटी उससे मिलने आ रही है। इसका मतलब था कि अब यिप्तह की बेटी ‘यहोवा की हो जाएगी।’ (न्यायि. 11:30-34) यिप्तह की मन्‍नत का उसकी बेटी पर क्या असर पड़ता?

6. (क) यिप्तह और उसकी बेटी के लिए मन्‍नत पूरी करना क्यों आसान नहीं था? (ख) व्यवस्थाविवरण 23:21, 23 और भजन 15:4 से हम मन्‍नत पूरी करने के बारे में क्या सीख सकते हैं?

6 यिप्तह की बेटी को अपने पिता की मन्‍नत पूरी करने के लिए ज़िंदगी-भर पवित्र डेरे में सेवा करनी थी। क्या यिप्तह ने बिना सोचे-समझे मन्‍नत मानी थी? नहीं। वह शायद जानता था कि उसकी बेटी सबसे पहले उससे मिलने आएगी। चाहे उसे पता था या नहीं, एक बात तो पक्की है। वह यह कि यहोवा से मानी मन्‍नत पूरी करना न तो यिप्तह के लिए आसान था, न ही उसकी बेटी के लिए। जब यिप्तह ने अपनी बेटी को आते देखा तो उसने कहा कि उसका कलेजा छलनी हो गया और उसकी बेटी कुछ वक्‍त के लिए कहीं दूर जाकर ‘अपने कुँवारेपन पर रोने’ लगी। क्यों? क्योंकि यिप्तह के कोई बेटा नहीं था और अब उसकी इकलौती बेटी भी हमेशा कुँवारी रहेगी और उसकी कोई औलाद नहीं होगी। यिप्तह के खानदान का नाम मिट जाएगा। लेकिन यिप्तह और उसकी बेटी के लिए ये बातें सबसे ज़्यादा मायने नहीं रखती थीं। यिप्तह ने कहा, “मैं यहोवा को ज़बान दे चुका हूँ और उससे मुकर नहीं सकता।” उसकी बेटी ने उससे कहा, “अगर तूने यहोवा को ज़बान दी है, तो उसे पूरा कर।” (न्यायि. 11:35-39) यिप्तह और उसकी बेटी यहोवा के वफादार थे इसलिए वे परमेश्‍वर से किया वादा तोड़ने की सोच भी नहीं सकते थे, फिर चाहे उसे निभाना उनके लिए कितना ही मुश्‍किल था।—व्यवस्थाविवरण 23:21, 23; भजन 15:4 पढ़िए।

7. (क) हन्‍ना ने क्या मन्‍नत मानी थी और क्यों? (ख) आगे क्या हुआ? (ग) हन्‍ना की मन्‍नत का शमूएल पर क्या असर पड़ता? (फुटनोट देखिए।)

7 हन्‍ना ने भी अपनी ज़िंदगी के मुश्‍किल दौर में यहोवा से मन्‍नत मानी थी। वह बहुत दुखी और परेशान थी क्योंकि वह बाँझ थी। इस वजह से उस पर ताने कसे जाते थे और उसका मज़ाक उड़ाया जाता था। (1 शमू. 1:4-7, 10, 16) उसने यहोवा को अपने दिल का हाल बताया और उससे यह वादा किया, “हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, अगर तू अपनी दासी की हालत पर नज़र करे और मुझ पर ध्यान देकर मेरी बिनती सुने और अपनी दासी को एक बेटा दे, तो हे यहोवा, मैं उसे तुझे दूँगी ताकि वह ज़िंदगी-भर तेरी सेवा करे। उसके सिर पर कभी उस्तरा नहीं चलेगा।”a (1 शमू. 1:11) यहोवा ने हन्‍ना की प्रार्थना सुनी। अगले साल हन्‍ना के एक बेटा हुआ जिसका नाम शमूएल रखा गया। हन्‍ना खुशी से फूली नहीं समायी! लेकिन वह परमेश्‍वर से किया अपना वादा भूली नहीं। उसने शमूएल के पैदा होने पर कहा, “मैंने यह बेटा यहोवा से माँगने पर पाया है।”—1 शमू. 1:20.

8. (क) हन्‍ना के लिए अपनी मन्‍नत पूरी करना क्यों आसान नहीं था? (ख) भजन 61 कैसे आपको हन्‍ना की बढ़िया मिसाल की याद दिलाता है?

8 जब शमूएल करीब तीन साल का हुआ तो हन्‍ना ने ठीक वही किया जो उसने यहोवा से वादा किया था। वह शमूएल को शीलो ले गयी जहाँ पवित्र डेरा था। वहाँ महायाजक एली के पास जाकर उसने कहा, “यह वही लड़का है जिसके लिए मैंने प्रार्थना की थी। यहोवा ने मेरी बिनती सुनकर मेरी मनोकामना पूरी की। बदले में अब मैं अपना बेटा यहोवा को दे रही हूँ ताकि यह पूरी ज़िंदगी यहोवा का ही रहे।” (1 शमू. 1:24-28) इसके बाद से शमूएल पवित्र डेरे में ही रहा। बाइबल बताती है, “शमूएल यहोवा के सामने बढ़ने लगा।” (1 शमू. 2:21) हन्‍ना के लिए अपनी मन्‍नत पूरी करना आसान नहीं था। अब वह अपने प्यारे बेटे के साथ हर दिन वक्‍त नहीं बिता पाती जिससे वह बहुत लाड़ करती थी। वह उसे बढ़ते हुए नहीं देख पाती। लेकिन हन्‍ना ने अपनी मन्‍नत को गंभीरता से लिया। यहोवा से किया अपना वादा निभाने के लिए वह उन चीज़ों को त्यागने के लिए तैयार थी जो उसे बहुत प्यारी थीं।—1 शमू. 2:1, 2; भजन 61:1, 5, 8 पढ़िए।

यहोवा से मानी कुछ मन्‍नतें हैं, समर्पण का वादा, शादी की शपथ और खास पूरे समय के सेवकों की शपथ

आपने यहोवा से जो मन्‍नतें मानी हैं, क्या आप उन्हें पूरा कर रहे हैं?

9. हम आगे क्या चर्चा करेंगे?

9 हन्‍ना और यिप्तह की मिसाल से हमने जाना कि यहोवा से मन्‍नत मानना कितनी गंभीर बात है। अब आइए इन सवालों पर गौर करते हैं: आज हम किस तरह की मन्‍नतें मानते हैं? उन्हें पूरा करने का हमारा इरादा कितना मज़बूत होना चाहिए?

समर्पण का वादा

एक औरत घुटनों के बल प्रार्थना करती है और समर्पण का वादा करती है

समर्पण का वादा (पैराग्राफ 10 देखिए)

10. एक मसीही की ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी वादा क्या है और इसमें क्या शामिल है?

10 एक मसीही अपनी ज़िंदगी में जो सबसे ज़रूरी वादा करता है, वह है समर्पण का वादा। वह निजी प्रार्थना में यहोवा से वादा करता है कि चाहे जो हो जाए वह ज़िंदगी-भर सिर्फ उसी की सेवा करेगा। यीशु ने कहा था, हम समर्पण करते वक्‍त “खुद से इनकार” करते हैं यानी हम यहोवा से वादा करते हैं कि हम उसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देंगे, न कि खुद को। (मत्ती 16:24) उस दिन से ‘हम यहोवा ही के हो जाते हैं।’ (रोमि. 14:8) हमें समर्पण के अपने वादे को गंभीरता से लेना चाहिए। हमें भजनहार की तरह महसूस करना चाहिए जिसने कहा, “यहोवा ने मेरे साथ जितनी भी भलाई की है, उसका बदला मैं कैसे चुकाऊँगा? मैंने यहोवा से जो मन्‍नतें मानी हैं, वे उसके सब लोगों के देखते पूरी करूँगा।”—भज. 116:12, 14.

11. आपके बपतिस्मे के दिन क्या हुआ था?

11 क्या आपने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है और इसे ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लिया है? अगर हाँ, तो यह तारीफ की बात है! मगर क्या आपको याद है कि आपके बपतिस्मे के दिन क्या हुआ था? बपतिस्मे का भाषण देनेवाले भाई ने पूछा था कि क्या आपने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है और आप इस बात को समझते हैं कि ‘समर्पण और बपतिस्मे के बाद से आप यहोवा के साक्षी कहलाएँगे’? आपने ज़ोरदार आवाज़ में इस सवाल का जवाब ‘हाँ’ में दिया था और सब लोगों पर ज़ाहिर किया था कि आप यहोवा परमेश्‍वर के ठहराए सेवक के तौर पर बपतिस्मा लेने के योग्य हैं। उस दिन वाकई आपने यहोवा का दिल बहुत खुश किया था!

12. (क) हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए? (ख) पतरस ने हमें कौन-से गुण बढ़ाते रहने के लिए कहा?

12 बपतिस्मा बस एक शुरूआत है। इसके बाद भी हमें अपने समर्पण के मुताबिक जीना चाहिए और वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए। इसलिए हमें खुद से ये सवाल करने चाहिए: ‘बपतिस्मे के बाद से यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता कितना मज़बूत हुआ है? क्या मैं अभी-भी तन-मन से उसकी सेवा कर रहा हूँ? (कुलु. 3:23) क्या मैं अकसर प्रार्थना करता हूँ? हर दिन बाइबल पढ़ता हूँ? क्या मैं बिना नागा मंडली की हर सभा में हाज़िर होता हूँ? क्या मैं लगातार प्रचार में जाता हूँ? या क्या इन कामों में मेरा जोश पहले से कम हो गया है?’ प्रेषित पतरस ने समझाया था कि हम यहोवा की सेवा में ठंडे पड़ने से कैसे बच सकते हैं। उसने कहा था कि हमें अपने विश्‍वास के साथ ज्ञान, धीरज और परमेश्‍वर की भक्‍ति को बढ़ाते जाना है।—2 पतरस 1:5-8 पढ़िए।

13. एक समर्पित और बपतिस्मा पाए हुए मसीही को क्या समझने की ज़रूरत है?

13 समर्पण का वादा करने के बाद हम उससे पीछे नहीं हट सकते। जब एक इंसान परमेश्‍वर की सेवा करते-करते या मसीही ज़िंदगी जीते-जीते थक जाता है तो वह यह नहीं कह सकता कि मैंने परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित नहीं किया था और मेरा बपतिस्मा जायज़ नहीं।b एक समर्पित मसीही अगर कोई गंभीर पाप करता है तो वह यहोवा और मंडली के सामने जवाबदेह है। (रोमि. 14:12) हम कभी उन लोगों की तरह नहीं बनना चाहते, जिनके बारे में यीशु ने कहा था, “तुझमें अब वह प्यार नहीं रहा जो पहले था।” इसके बजाय हम उन लोगों की तरह बनना चाहते हैं जिनके बारे में उसने कहा, “मैं तेरे काम, प्यार, विश्‍वास, सेवा और धीरज के बारे में जानता हूँ। और यह भी जानता हूँ कि तूने हाल में जो काम किए हैं वे उन कामों से बढ़कर हैं जो तूने पहले किए थे।” (प्रका. 2:4, 19) आइए हम समर्पण का अपना वादा निभाते रहें और यहोवा का दिल खुश करें।

शादी की शपथ

एक दूल्हा-दुल्हन शादी की शपथ लेते हैं

शादी की शपथ (पैराग्राफ 14 देखिए)

14. एक मसीही की ज़िंदगी का दूसरा सबसे ज़रूरी वादा कौन-सा है और क्यों?

14 एक मसीही अपनी ज़िंदगी में जो दूसरा सबसे ज़रूरी वादा करता है वह है शादी की शपथ। शादी एक पवित्र बंधन है। यहोवा शादी की शपथ को एक गंभीर बात समझता है। जब दूल्हा और दुल्हन शादी की शपथ लेते हैं तो वे यहोवा और वहाँ हाज़िर सभी लोगों के सामने ऐसा करते हैं। वे वादा करते हैं कि वे आखिरी साँस तक परमेश्‍वर के ठहराए शादी के बंधन में बँधे रहेंगे, एक-दूसरे को दिलो-जान से प्यार करते रहेंगे और एक-दूसरे का गहरा आदर भी करेंगे। दूसरों ने शायद शपथ लेते वक्‍त ठीक यही शब्द न कहे हों, लेकिन उन्होंने परमेश्‍वर के सामने वादा ज़रूर किया है, जिसके बाद वे पति-पत्नी बनें। उनका यह बंधन, जीवन-भर का बंधन है। (उत्प. 2:24; 1 कुरिं. 7:39) यीशु ने कहा था, “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” शादी करनेवाले जोड़े को यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर आगे चलकर उनकी शादी कामयाब नहीं हुई, तो वे कभी-भी तलाक ले सकते हैं।—मर. 10:9.

15. शादी के बारे में मसीहियों का नज़रिया दुनिया के लोगों जैसा क्यों नहीं होना चाहिए?

15 पति-पत्नी परिपूर्ण नहीं, इसलिए उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ आएँगी। बाइबल बताती है कि पति-पत्नी को “शारीरिक दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिं. 7:28) दुख की बात है कि आज कई लोग शादी को मामूली बात समझते हैं। वे सोचते हैं कि अगर शादीशुदा ज़िंदगी में कुछ ठीक नहीं चला तो वे कभी-भी शादी को तोड़ सकते हैं। लेकिन मसीही पति-पत्नी ऐसा नज़रिया नहीं रखते। वे इस बात को समझते हैं कि उन्होंने परमेश्‍वर के सामने शादी की शपथ ली है। अगर वे इसे तोड़ेंगे तो यह ऐसा है मानो वे परमेश्‍वर से झूठ बोल रहे हों और परमेश्‍वर झूठ बोलनेवालों से नफरत करता है। (लैव्य. 19:12; नीति. 6:16-19) शादीशुदा मसीहियों को प्रेषित पौलुस की यह बात याद रखनी चाहिए, “क्या तू पत्नी से बँधा हुआ है? तो उससे आज़ाद होने की कोशिश करना बंद कर।” (1 कुरिं. 7:27) पौलुस यह इसलिए कह सका क्योंकि वह जानता था कि यहोवा को ऐसे तलाक से भी नफरत है जो विश्‍वासघात करके लिया जाता है।—मला. 2:13-16.

16. बाइबल तलाक लेने और पति-पत्नी के अलग होने के बारे में क्या बताती है?

16 यीशु ने बताया कि शास्त्र के मुताबिक तलाक सिर्फ तभी लिया जा सकता है जब एक जीवन-साथी व्यभिचार करता है और निर्दोष साथी उसे माफ न करने का फैसला करता है। (मत्ती 19:9; इब्रा. 13:4) पति-पत्नी के अलग होने के बारे में क्या? बाइबल में ऐसा कोई कारण नहीं दिया गया है जिसके आधार पर पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। (1 कुरिंथियों 7:10, 11 पढ़िए।) लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे हालात होते हैं जिनमें एक शादीशुदा मसीही को लग सकता है कि अपने जीवन-साथी से अलग होना उसके लिए निहायत ज़रूरी है। जैसे, शायद उसका जीवन-साथी उसे बुरी तरह मारता-पीटता हो और इस वजह से उसकी जान को खतरा हो या फिर उसका साथी परमेश्‍वर से बगावत करनेवाला हो और इस वजह से यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खतरे में हो।c

17. मसीही पति-पत्नी अपने शादी के बंधन को कैसे मज़बूत बनाए रख सकते हैं?

17 जब एक पति-पत्नी किसी समस्या के बारे में मंडली के प्राचीनों से सलाह लेने आते हैं, तो प्राचीन क्या कर सकते हैं? वे उन्हें अँग्रेज़ी वीडियो सच्चा प्यार क्या होता है? देखने और आपका परिवार खुश रह सकता है ब्रोशर का अध्ययन करने का बढ़ावा दे सकते हैं। क्यों? क्योंकि इस वीडियो और ब्रोशर में बाइबल के ऐसे सिद्धांत बताए गए हैं जिनसे पति-पत्नी का रिश्‍ता मज़बूत हो सकता है। एक जोड़े ने कहा, “जब से हमने इस ब्रोशर का अध्ययन करना शुरू किया है हमारी शादीशुदा ज़िंदगी पहले से ज़्यादा खुशहाल बन गयी है।” एक बहन जिसकी शादी को 22 साल हो चुके थे, लेकिन उसकी शादी टूटने की कगार पर थी कहती है, “हम दोनों का बपतिस्मा हो चुका था मगर हम दोनों की सोच और भावनाएँ एक-दूसरे से बिलकुल अलग थीं। यह वीडियो बिलकुल सही वक्‍त पर हमें मिला। अब हम शादीशुदा जोड़े के तौर पर पहले से बेहतर जीवन बिता रहे हैं।” इससे साफ पता चलता है कि अगर पति-पत्नी शादी के बारे में यहोवा के सिद्धांतों को मानें तो उनका आपसी रिश्‍ता मज़बूत हो सकता है और उनकी ज़िंदगी में खुशियाँ आ सकती हैं।

खास पूरे समय के सेवकों की शपथ

18, 19. (क) आज कई मसीही माता-पिताओं ने क्या किया है? (ख) खास पूरे समय के सेवकों ने क्या शपथ खायी है और वे किस तरह उस पर खरे उतरते हैं?

18 हमने शुरूआत में यिप्तह और हन्‍ना की मन्‍नत के बारे में चर्चा की थी। उनकी मन्‍नत की वजह से यिप्तह की बेटी और हन्‍ना का बेटा दोनों खास तरीके से यहोवा की सेवा कर पाए। आज भी कई मसीही माता-पिताओं ने अपने बच्चों को पूरे समय की सेवा करने और इसी में अपना ध्यान लगाए रखने का बढ़ावा दिया है। हम पूरे समय की सेवा करनेवाले इन जवान भाई-बहनों का हौसला बढ़ा सकते हैं ताकि वे अपनी सेवा में लगे रहें।—न्यायि. 11:40; भज. 110:3.

एक भाई खास पूरे समय की सेवा में है

खास पूरे समय के सेवकों की शपथ (पैराग्राफ 19 देखिए)

19 आज करीब 67,000 भाई-बहन दुनिया-भर में खास पूरे समय के सेवकों की श्रेणी में आते हैं। इनमें से कुछ बेथेल में सेवा करते हैं, कुछ निर्माण काम में हैं और कुछ सर्किट का काम करते हैं। दूसरे कुछ भाई इलाके के शिक्षक, खास पायनियर और मिशनरी हैं। कुछ ऐसे भाई-बहन भी हैं जो सम्मेलन भवन या बाइबल स्कूल की इमारतों की देखभाल करनेवाले सेवकों के नाते काम करते हैं। इनमें से हरेक सदस्य ने “आज्ञा मानने और गरीबी की शपथ” खायी है। उन्होंने वादा किया है कि यहोवा की सेवा में उन्हें जो भी काम मिलेगा उसे वे पूरी लगन से करेंगे, सादगी-भरा जीवन बिताएँगे और तब तक किसी भी तरह की नौकरी नहीं करेंगे जब तक उन्हें ऐसा करने की इजाज़त न मिले। पूरे समय के सेवक किसी भी तरह खास नहीं हैं बल्कि उनकी सेवा खास है। वे नम्र रहते हैं और उन्होंने ठान लिया है कि जब तक वे पूरे समय की सेवा में हैं वे अपनी शपथ पर खरे उतरेंगे।

20. हमें “रोज़-ब-रोज़” क्या करना चाहिए और क्यों?

20 इस लेख में हमने तीन वादों पर चर्चा की है जो हम परमेश्‍वर से करते हैं। हो सकता है कि आपने भी इनमें से कोई वादा किया हो। हम जानते हैं कि हमें अपने वादे को गंभीरता से लेना चाहिए और इसे पूरा करने की भरसक कोशिश करनी चाहिए। (नीति. 20:25) अगर हम यहोवा से की अपनी मन्‍नत पूरी नहीं करेंगे तो इसके बुरे अंजाम हो सकते हैं। (सभो. 5:6) इसलिए आइए हम भजनहार की तरह बनें जिसने यहोवा से कहा, “मैं रोज़-ब-रोज़ अपनी मन्‍नतें पूरी करूँगा और सदा तक तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।”—भज. 61:8.

a हन्‍ना ने वादा किया था कि अगर यहोवा उसे एक बेटा देगा तो वह ज़िंदगी-भर एक नाज़ीर रहेगा। इसका मतलब था कि उसका बेटा यहोवा की सेवा के लिए समर्पित होता और अलग किया जाता।—गिन. 6:2, 5, 8.

b एक व्यक्‍ति बपतिस्मे के योग्य है या नहीं, यह तय करते वक्‍त प्राचीन कई बातों पर गौर करते हैं, इसलिए ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी का बपतिस्मा जायज़ न हो।

c “खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखो” किताब का अतिरिक्‍त लेख “तलाक और पति-पत्नी के अलग होने के बारे में बाइबल क्या कहती है” देखिए।

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