दूसरों के साथ भलाई करने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी ले लेना
प्रेरित पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को इस बात की याद दिलायी: “पर भलाई करना, और उदारता न भूलो।” (इब्रा. १३:१६) प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने भाइयों की मदद करने की उनकी कोशिशों से परमेश्वर के लिए और एक दूसरे के लिए उनका प्रेम मज़बूत हो जाता। (यूहन्ना १३:३५) हमें भी भलाई करने और दूसरों के साथ बाँटने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
२ इस लक्ष्य से, यहोवा ने हमें आध्यात्मिक रूप से तृप्त होने और अच्छी तरह से तैयार रहने का प्रबन्ध किया है। हर वॉचटावर और अवेक! में हमें जानकारी की क्या ही बहुतायत मिलती है! प्रत्येक अंक के मिलने के बाद उसे यथासंभव जल्द से जल्द पढ़ने से हमें कितना हर्ष मिलता है! धर्मशास्त्रीय जानकारी पर मनन करते हुए, हम शायद ऐसी बातों को नोट कर सकते हैं, जिन्हें हम क्षेत्र सेवकाई में और साथ ही दूसरों के साथ हमारी बातचीतों में इस्तेमाल कर सकते हैं। उसी तरह, हम हर एक सभा के लिए, और ख़ास तौर से द वॉचटावर के साप्ताहिक अध्ययन के लिए तैयारी करने के लिए समय निकाल सकते हैं। परमेश्वर के वचन के व्यक्तिगत अध्ययन से हमें “मसीह का मन” विकसित करने की मदद मिलती है और इस से हम उन लोगों को, जिन से हम मिलते हैं, ऐसा कुछ दे सकते हैं जिस से उन पर अनुग्रह हो।—१ कुरि. २:१४-१६; भजन १९:१४.
३ स्वीकारने के क़ाबिल ज़िम्मेदारियाँ: सभी जो यहोवा से प्रेम करने लगते हैं, वे उनके प्रति अपना जीवन समर्पित करते हैं। समर्पण से संबद्ध ज़िम्मेदारियों को स्वीकारने के ज़रिए, हम दर्शाते हैं कि हम यहोवा के पक्ष में हैं और हम ने अपने आप को शैतान की दुनिया से और उसके घिनौने तौर-तरीक़ों से अलग कर दिया है। मसीह यीशु द्वारा छोड़े गए आदर्श का अनुसरण करने के द्वारा, हम दूसरों के लिए एक अच्छी मिसाल पेश करते हैं। (१ पत. २:२१) सर्किट सभा कार्यक्रम, १९९२ सेवा वर्ष के लिए दिए गए कार्यक्रम के जैसे, जिसका मूल विषय है “ज़िम्मेदारी का अपना-अपना भार उठाना,” हमें अपने समर्पण के प्रति निष्ठावान् होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
४ मण्डली की सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होना हमें दूसरों के साथ ऐसे विचारों का आदान-प्रदान करने देता है, जो उन्नति के लिए हैं। सभाओं के लिए हमारे व्यक्तिगत अध्ययन और तैयारी से हमें बहुत सारी अच्छी जानकारी मिलती है जो हम दूसरों को बता सकते हैं। दूसरों में ऐसी व्यक्तिक दिलचस्पी दिखाने से एक स्नेहशील, दोस्ताना पारिवारिक मनोवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। सभाओं में हिस्सा लेने के द्वारा, हम दिखाते हैं कि हम सचमुच ही इब्रानियों १०:२४, २५ में दिए पौलुस के शब्दों से सहमत हैं और कि हम दूसरों को प्रोत्साहित करने की अपनी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हैं।
५ अतिरिक्त ज़िम्मेदारियों के लिए आगे बढ़ें: १९९२ सेवा वर्ष के दौरान, क्या हम ऐसी अतिरिक्त ज़िम्मेदारियों के लिए आगे बढ़ सकेंगे, जैसे कि सहायक या नियमित पायनियर सेवा? फ़लाँ घंटे भरने की ज़रूरत पर अयोग्य ज़ोर देने के बजाय, क्यों न आप एकत्र करने के कार्य में हिस्सा लेने के बढ़े हुए मौक़े पर ध्यान केंद्रित करें? (यूहन्ना ४:३५, ३६) अन्य योग्य प्रचारकों और पायनियरों के साथ नियमित रूप से काम करने से हमें सेवकाई में अपनी कुशलताएँ सुधारने में मदद होगी। सहायक पायनियरों के एक बढ़ी हुई संख्या भी मण्डली के लिए एक स्वास्थ्यकर उत्तेजना का काम करती है। अगर संभव हो, तो क्यों न आप एक नियमित पायनियर होने के लिए अर्ज़ी दें या नियमित रूप से या फिर इस साल जितना अक्सर हो सके उतनी बार, एक सहायक पायनियर बनने का प्रबन्ध करें?
६ मण्डली के योग्य समर्पित और बपतिस्मा-प्राप्त पुरुष सदस्यों को ज़िम्मेदारियाँ तत्परता से दी जाती हैं। (१ तीमु. ३:१-१०, १२, १३) सभाओं में अच्छी तरह से सोची गयी टीका-टिप्पणी, थियोक्रॅटिक मिनिस्ट्री स्कूल में हिस्सेदारी, और कोई प्रदर्शन पेश करने या सेवकाई सभा में कोई अन्य भाग संचालित करने के नियत कार्य को स्वीकार करने के द्वारा सभी लोग सेवा करने की अपनी तत्परता दर्शा सकते हैं। इन मामलों में और किंग्डम हॉल में उनके आचरण में बच्चे भी आदर्श हो सकते हैं। जब उनके पुस्तक अध्ययन समूह को सभागृह साफ़ करने, या ऐसी अन्य ज़रूरतों की देख-रेख करने का नियत काम दिया जाता है, तब उनके साथ काम करने के द्वारा वे सहायक हो सकते हैं।—km ४/७६ पृष्ठ १, ८.
७ यीशु ने दूसरों के साथ भलाई करने की अपनी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने के लिए अपनी तत्परता इन शब्दों में व्यक्त की: “मैं चाहता हूँ।” (लूका ५:१२, १३) उसकी मिसाल का अनुसरण करते हुए, हम भी अपने भाई, दिलचस्पी लेनेवाले लोग, और क्षेत्र सेवकाई में हम जिन निष्कपट लोगों से मिलते हैं, उनको यहोवा के संघटन के साथ नियमित रूप से संग-साथ करने के लिए प्रोत्साहन दे सकते और उनकी मदद कर सकते हैं। “सब के साथ भलाई करने” की अपनी ज़िम्मेदारी ले लेने से एक कृतसंकल्प प्रयास ज़रूरी होता है और हमारी ओर से शायद एक निजी त्याग भी। (गल. ६:१०) पर जब हम उस भलाई को देखते हैं जो पूरा किया जाता है, हम पौलुस से सहमत हो सकते हैं, जिसने कहा: “परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है।”—इब्रा. १३:१६.