अतिरिक्त तरक़्क़ी की तरफ़ सकारात्मक कार्य
अब तक तो हम में से अधिकांश लोगों ने १९९२ यरबुक को पढ़ लिया होगा। २११ देशों में ४२,५०,००० राज्य प्रचारकों के १९९१ वर्ष के विश्वव्यापी शिखर—६.५-प्रतिशत की वृद्धि—के बारे में जानकर हमारा दिल पुलकित हुआ है! बेशक, दुनिया भर में हो रही राज्य की वृद्धि यशायाह २:२-४ और मीका ४:१-४ की पूर्णता का उल्लेखनीय सबूत देती है।
२ हालाँकि १९९२ सेवा वर्ष की रिपोर्ट पूरी नहीं है, सबूत साफ़-साफ़ दिखाता है कि यहोवा ने इस सेवा वर्ष को उत्कृष्ट वृद्धि से पूर्ण किया है। हमारे विशाल अंतरराष्ट्रीय भाईचारे में मिल जाने का आमंत्रण दिया जा रहा है। स्मारक और ज़िला सम्मेलन में उपस्थित होनेवालों के आँकड़े दिखाते हैं कि करोड़ों लोग राज्य संदेश को सुन रहे हैं। सभी राष्ट्रों से, वे इस उत्प्रेरित आमंत्रण की तरफ़ प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं: “आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।”
३ तरक़्क़ी करने के लिए कृतसंकल्प रहें: यहोवा का संगठन बढ़ता जा रहा है। इतने सारे नए व्यक्ति धारा की नाईं यहोवा की सच्ची उपासना के पर्वत की ओर चल रहे हैं कि यह महत्त्वपूर्ण है कि हरेक अतिरिक्त आध्यात्मिक तरक़्क़ी के लिए सकारात्मक कार्रवाई लें, और फिर वैसा ही करने के लिए इससे भी ज़्यादा नए व्यक्तियों की मदद करने के लिए बढ़ें। ऐसी तरक़्क़ी की ज़रूरत इस कथन में सूचित की गयी है कि यहोवा के पर्वत पर जाने के आमंत्रण के प्रति प्रतिक्रिया दिखानेवाले लोग दूसरों से कहते हैं, “आओ।” प्रकाशितवाक्य २२:१७ में प्रेरित यूहन्ना ने एक मिलता-जुलता रिपोर्ट दिया: “और आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, आ; और सुननेवाला भी कहे, आ।”
४ यह आमंत्रण कैसे दिया जाना चाहिए यह यीशु ने प्रदर्शित किया। जब लोगों ने उनकी शिक्षा के प्रति प्रतिक्रिया दिखायी, तब उन्होंने अपनी सेवकाई में भाग लेने का आमंत्रण देकर उन्हें सिखाया कि यह कैसे किया जाए। (मत्ती ४:१९; १०:५-७, ११-१४) यीशु के साथ जाकर और वे कैसे कार्य करते हैं यह देखकर उनके शिष्यों ने उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रभावकारी तरीक़ों को सीखा। फिर उन्होंने अपनी सेवकाई को यीशु के जैसे बना लिया। उन्होंने यीशु के तरीक़ों को इतनी बख़ूबी से सीखा कि उनके निडर प्रचार कार्य ने विरोधियों का ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने स्पष्ट रूप से पहचान लिया कि ये यीशु के शिष्य थे। प्रेरितों ४:१३ रिपोर्ट करता है: “जब उन्हों ने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, . . . तो उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।”
५ स्वर्ग लौटने से पहले, यीशु ने आज्ञा दी कि उसके शिष्यों ने नए शिष्य बनाकर मसीही सेवकाई को जारी रखना चाहिए। जिस तरह उन्हें सिखाया गया उसी तरह उन्हें नए शिष्यों को सिखाना चाहिए। मत्ती २८:१९, २० में, यीशु ने आज्ञा दी: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” और यह सूचित करने के लिए कि वह चाहते थे कि यह कार्य हमारे दिनों तक जारी रहे, उन्होंने यह अतिरिक्त आश्वासन दिया: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”
६ यीशु मसीह के सच्चे शिष्यों ने नए शिष्यों को आज्ञा दी गयी सभी बातें सिखाने के आदेश का पालन किया है। बहरहाल, यहोवा के गवाहों की विश्वव्यापी कलीसिया में हो रही उत्कृष्ट वृद्धि से आवश्यक होता कि हम कलीसिया के नए बपतिस्मा-प्राप्त सदस्यों, बपतिस्मा नहीं लिए हुए प्रचारकों, और साथ ही हमारे साथ बाइबल अध्ययन करनेवाले लोगों, जो शायद कुछ हद तक नियमित रूप से कलीसिया की सभाओं में उपस्थित होते हैं, की विशेष ज़रूरतों का लिहाज़ करें।
७ उन्नीस सौ तिरानबे सेवा वर्ष की शुरुआत में, भारत में हर ९ प्रचारकों में से तक़रीबन १ प्रचारक सिर्फ़ एक ही साल से सेवकाई में सक्रिय रह चुका था। इसके अलावा, ४ में से १ प्रचारक तीन या कम सालों से प्रचार कर रहा था; और ३ में से १ ज़्यादा से ज़्यादा पाँच सालों से सेवकाई में हिस्सा ले रहा था। हालाँकि अनेक नए व्यक्तियों ने कलीसिया के सदस्य बनने के बाद बढ़िया तरक़्क़ी की है, कुछ एक मामलों में अतिरिक्त सहायता पाने से बेशक उनकी आध्यात्मिक तरक़्क़ी की रफ़्तार बढ़ाने में मदद होगी।
८ इब्रानियों ६:१ हम सब को “परिपक्वता की ओर आगे बढ़ते जाने” (NW) का प्रोत्साहन देता है। मसीही परिपक्वता सिर्फ़ एक सेवा रिपोर्ट डालने के कहीं ज़्यादा अर्थ रखता है। वैयक्तिक अध्ययन, नियमित सभा उपस्थिति और साथ ही क्षेत्र सेवकाई में जोशीली सहभागिता में उन्नति करना इस में सम्मिलित है। दूसरों को उद्धार के लिए सच्चाई का ज्ञान लेने में मदद करना भी सम्मिलित है। ‘पवित्र शास्त्रों से विवाद करने’ में हमें अपनी प्रवीणता तेज़ करने के लिए कार्य करना चाहिए। (प्रेरितों १७:२) परिपक्वता तक बढ़ने के लिए समय की ज़रूरत है और यह बड़े पैमाने पर हमारी ईश्वरीय भक्ति और क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव पाने पर निर्भर है। हालाँकि हमें ख़ुद अपनी ईश्वरीय भक्ति की गहराई पर नियंत्रण है, अन्य परिपक्व भाई-बहनों को हमें व्यावहारिक अनुभव पाने में मदद करने देना बुद्धिमानी होगी। हम उनके अनुभव से सीख सकते हैं, ख़ास तौर से क्षेत्र सेवकाई में। हमें सब कुछ अपने आप परीक्षण-प्रणाली से सीखने की ज़रूरत नहीं।
९ अनुभव-रहित व्यक्तियों के लिए मदद: मसीही कलीसिया की शुरुआत में सहायता देने का नमूना स्थापित किया गया। यीशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया। (मरकुस ३:१४; लूका ९:१; १०:१) बारी से, उन्होंने अन्यों को सिखाया। तीमुथियुस को प्रेरित पौलुस से ख़ास प्रोत्साहन और मदद मिली, और शिष्य अपुल्लोस ने ज़्यादा अनुभवी अक्विला और प्रिस्किल्ला से वैयक्तिक सहायता पाकर तरक़्क़ी की। (प्रेरितों १८:२४-२७; १ कुरि. ४:१७) मसीही कलीसिया के परिपक्व सदस्य आज उन मिसालों का अनुकरण करते हैं। वे कम अनुभवी जनों को, ख़ासकर नए व्यक्ति और युवकों को, सिखाते हैं और प्रोत्साहन देते हैं। जैसे रोमियों १५:१, २ कहता है, “निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें।”
१० अपने बच्चों की आध्यात्मिक तरक़्क़ी के लिए सकारात्मक कार्य करने के लिए माँ-बाप ज़िम्मेदार हैं। इस में पारिवारिक अध्ययन, बच्चों को वैयक्तिक रूप से अध्ययन करना सिखाना, नियमित सभा उपस्थिति और सहभागिता, और सीखी हुई बातों को लागू करने में अनुभव शामिल है। (इफि. ६:४; १ तीम. ५:८) ख़ास तौर से कलीसिया पुस्तक अध्ययन संचालकों को अपने पुस्तक अध्ययन और क्षेत्र सेवा दलों में सभी को आध्यात्मिक रूप से तरक़्क़ी करने की मदद देने का इंतज़ाम करने में अगुआई करनी चाहिए। सेवा अध्यक्ष और अन्य प्राचीनों के अलावा सहायक सेवक और कलीसिया के अन्य सदस्य भी मदद कर सकते हैं।
११ ज़रूरी चीज़ें दें: मसीही गतिविधियों में से किसी एक पहलू, जैसे वैयक्तिक अध्ययन, में शायद सहायता की ज़रूरत होगी। एक व्यावहारिक अध्ययन तालिका स्थापित करने के लिए एक व्यक्ति को सुझावों की ज़रूरत हो सकती है। किसी अन्य व्यक्ति को टिप्पणी या अपना नियतकार्य तैयार करने में मदद की ज़रूरत होगी। शायद दूसरों को बाइबल विषयों पर कैसे अनुसंधान किया जा सकता है सीखने की ज़रूरत होगी।
१२ क्षेत्र सेवकाई में कई नए व्यक्तियों को मदद की आवश्यकता है। एक प्रचारक घर-घर कार्य में, पुनःभेंट करने, या एक बाइबल अध्ययन आरंभ तथा संचालित करने में ज़्यादा प्रभावकारी बनना चाहेगा। रीज़निंग किताब या हमारी राज्य सेवा में सुझायी गयी प्रस्तावनाएँ और प्रस्तुतीकरणों के कुछेक अभ्यास सत्र करना काफ़ी होगा। अन्य समय, क्षेत्र सेवा के लिए एक व्यावहारिक तालिका के लिए सुझाव और इसके अनुरूप चलने की मदद ही काफ़ी होगी। एक ऐसे व्यक्ति के साथ कार्य करने का निश्चित प्रबंध करना, जिसे सहायता की ज़रूरत है, उस पुरुष या स्त्री को ख़ास लक्ष्य की ओर तरक़्क़ी करने की मदद करेगा।
१३ परमेश्वर का वचन हमें प्रोत्साहित करता है कि हमारी आध्यात्मिक उन्नति सब पर प्रगट हो। यह सलाह पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस को लिखी। (१ तीम. ४:१५) उस प्रोत्साहन के अनुसार, प्रेरित ने ज़ोर दिया कि हमें अपने आपका इस तरह अभ्यास कराना चाहिए मानो किसी खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लेना या आध्यात्मिक युद्ध में सफलतापूर्वक हिस्सा लेना हो। (१ कुरि. ९:२४-२७; २ कुरि. १०:५, ६) हमें परमेश्वर की इच्छा के बारे में सीखी हुई सभी बातों को जल्द ही अमल में लाना चाहिए ताकि देखनेवाले हम में सच्चे मसीही विश्वास की ज़िंदा मिसाल देखेंगे। उसी तरह, यीशु मसीह के समर्पित शिष्य बनने के लिए हमें दूसरों को सिखाने की कला में तरक़्क़ी करते रहना चाहिए।—याकूब १:२२-२५; १ तीम. ४:१२-१६.
१४ तरक़्क़ी में परीक्षाएँ सहना सम्मिलित है: झेली हुई बातों से यीशु मसीह ने भी बहुमूल्य सबक सिखे। (इब्रा. ५:८) हम भी सीख सकते हैं। अतः, आध्यात्मिक उन्नति बढ़ जाती है जब हम याकूब १:२, ३ में उपुयक्त बतायी गयी सकारात्मक मनोवृत्ति को अपनाते हैं: “हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।” इस प्रकार, चाहे हमें पुरानी बीमारियों, आर्थिक मुश्किलों, विभाजित घर में जीवन, क्षेत्र में विरोध, या अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों की चुनौती का सामना करना पड़े, हमें यहोवा की ओर से यक़ीन दिलाया जाता है कि उनकी मदद से हम कामयाब हो सकते हैं और उनकी उपासना करने में तरक़्क़ी करते रह सकते हैं। (१ कुरि. १०:१३; २ कुरि. १२:९; १ पत. ५:८-११) हर स्थिति में अटल होने से सफलता मिल जाती है, ‘परमेश्वर का वचन बोलने से और सेवा उस शक्ति से करने से जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो।’—१ पत. ४:११.
१५ अतिरिक्त तरक़्क़ी के लिए मदद स्वीकार करें: अगर आपको अतिरिक्त आध्यात्मिक तरक़्क़ी करने के वास्ते सहायता की ज़रूरत है, तो कलीसिया के एक अनुभवी सदस्य से मदद स्वीकार करने के लिए इच्छुक रहें। यदि अब तक आपकी मदद के लिए कोई आया नहीं है, फिर भी, आपको शर्मीलेपन को आप से मदद पाने का मौक़ा छीनने देने की ज़रूरत नहीं है। सहायता के लिए पूछें। कलीसिया के किसी भी अनुभवी जन की मदद के लिए बिना संकोच के पूछें। या आप अपने कलीसिया पुस्तक अध्ययन संचालक, सेवा अध्यक्ष, या अन्य प्राचीनों में से किसी से आवश्यक सहायता माँग सकते हैं।—उत्पत्ति ३२:२६; मत्ती ७:७, ८ से तुलना करें.
१६ यक़ीनन, यहोवा की सच्ची उपासना के पर्वत पर धारा की नाईं जानेवाली, सतत बढ़ती हुई अंतरराष्ट्रीय “बड़ी भीड़” में शामिल होना एक अद्भुत ख़ास अनुग्रह है। (प्रका. ७:९) इस चढ़ाव में दूसरों को हमारे साथ आने का आमंत्रण देना भी एक ख़ास अनुग्रह है। हार्दिक क़दरदानी के साथ, अपने आप में आध्यात्मिकता निर्माण करते हुए और यहोवा की सेवा में हमारे साथ चलनेवाले अन्य लोगों को तरक़्की करने में जो भी मदद ज़रूरी हो, वह देते हुए, हम अधिक तरक़्क़ी के लिए सकारात्मक कार्य करते रहें।