दूसरों को सिखाने के लिए योग्य और सज्जित
जब मूसा की नियुक्ति यहोवा के प्रतिनिधि के तौर पर हुई थी, तब उसने फ़िरौन को परमेश्वर का वचन घोषित करने के लिए ख़ुद को योग्य महसूस नहीं किया। (निर्ग. ४:१०; ६:१२) यिर्मयाह ने यहोवा के भविष्यवक्ता के रूप में सेवा करने में समर्थ होने के लिए अपने आत्मविश्वास की कमी परमेश्वर से यह कहकर ज़ाहिर की कि वह नहीं जानता था कि कैसे बोले। (यिर्म. १:६) अपने आत्मविश्वास की प्रारंभिक कमी के बावजूद, ये दोनों भविष्यवक्ता यहोवा के लिए निडर साक्षी साबित हुए। वे परमेश्वर द्वारा पर्याप्त रूप से योग्य ठहरे।
२ यहोवा की बदौलत, आज, हमारे पास वह है जिसकी हमें अपनी सेवकाई को आत्मविश्वास के साथ पूरा करने के लिए ज़रूरत है। (२ कुरि. ३:४, ५; २ तीमु. ३:१७) एक योग्य मिस्त्री की तरह जिसके पास औज़ारों का पूरा सॆट हो, हम अपनी नियुक्त सेवकाई दक्षता से पूरी करने के लिए उचित रूप से सज्जित हैं। जनवरी में हमें अपनी कोई भी १९२-पृष्ठ की पुरानी पुस्तक प्रस्तुत करनी है, जो विशेष दर पर प्रस्तुत करने के लिए सूचीबद्ध है। हालाँकि ये आध्यात्मिक औज़ार नए नहीं हैं, इनके शास्त्रीय विषय अब भी सामयिक हैं और ये पुस्तकें लोगों को सच्चाई सीखने में मदद करेंगी। जो भी पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है, निम्नलिखित सुझाई गई प्रस्तुतियाँ उसके अनुकूल बनाई जा सकती हैं।
३ परमेश्वर के वचन में रुचि जगाने के लिए शिक्षा का विषय इस्तेमाल किया जा सकता है। जहाँ उपयुक्त हो, वहाँ आप ऐसा कहकर एक वार्तालाप आरंभ कर सकते हैं:
▪ “आज उच्च स्तरीय शिक्षा की आवश्यकता पर बहुत ज़ोर है। आपके विचार से, एक व्यक्ति को जीवन में सर्वोत्तम आनंद और सफलता निश्चित करने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा लेनी चाहिए? [प्रतिक्रिया के लिए रुकिए।] जो परमेश्वर का ज्ञान लेते हैं वे अनन्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं। [नीतिवचन ९:१०, ११ पढ़िए।] यह पुस्तक [आप जो पुस्तक प्रस्तुत कर रहे हैं उसका शीर्षक बताइए] बाइबल पर आधारित है। यह समझाती है कि बाइबल ज्ञान का एक अद्भुत स्रोत है जो अनन्त जीवन की ओर ले जा सकता है।” पुस्तक में एक ख़ास उदाहरण दिखाइए। यदि वास्तविक रुचि है, तो पुस्तक दीजिए और एक पुनःभेंट का प्रबन्ध कीजिए।
४ उस गृहस्वामी के पास लौटते समय, जिसके साथ आपने बाइबल शिक्षण के महत्त्व की चर्चा की, आप शायद कहें:
▪ “मेरी पिछली भेंट में, हमने बाइबल की चर्चा शिक्षा के ऐसे स्रोत के रूप में की जो हमारा अनन्त भविष्य निश्चित कर सकता है। बेशक, शास्त्र से हमें जो जानने की ज़रूरत है, उसे सीखने के लिए प्रयास करना पड़ता है। [नीतिवचन २:१-५ पढ़िए।] अनेक लोगों को बाइबल के कुछ भाग समझने में कठिन लगते हैं। मैं संक्षेप में एक तरीक़े का प्रदर्शन करना चाहूँगा जिसका इस्तेमाल हमने लोगों को मूल बाइबल शिक्षाओं के बारे में और अधिक सीखने में मदद करने के लिए व्यापक रूप से किया है।” जो पुस्तक दी गई थी उसका इस्तेमाल करते हुए, एक उपयुक्त पृष्ठ खोलिए और संक्षेप में एक बाइबल अध्ययन प्रदर्शित कीजिए। यदि गृहस्वामी एक नियमित अध्ययन करना चाहता है, तो समझाइए कि आप हमारे अध्ययन सहायक ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है के साथ लौटेंगे।
५ अनेक लोग संसार के करोड़ों बच्चों की दुःख-तकलीफ़ से व्यथित हैं। परमेश्वर इस दुर्दशा को किस नज़रिए से देखता है, गृहस्वामी को यह समझने में आप संभवतः ऐसा कहने के द्वारा सहायता कर सकते हैं:
▪ “बेशक आपने संसार-भर के बच्चों के बारे में, जो भूखे, बीमार और अपेक्षित हैं, समाचार रिपोर्टों को देखा है। सम्बन्धित संगठन स्थिति सुधारने में समर्थ क्यों नहीं हुए हैं? [प्रतिक्रिया के लिए रुकिए।] परमेश्वर सिर्फ़ वही चाहता है जो मनुष्यों के लिए सर्वोत्तम है। ग़ौर कीजिए कि वह बच्चों और बड़ों के लिए क्या प्रतिज्ञा करता है, जैसा कि बाइबल में अभिलिखित है। [प्रकाशितवाक्य २१:४ पढ़िए।] यह पुस्तक [शीर्षक बताइए] परमेश्वर द्वारा बनाए गए एक संसार के बारे में और अधिक विस्तृत वर्णन करती है जहाँ दुःख-तकलीफ़ नहीं होगीं।” यदि संभव हो, तो एक चित्र खोलिए जो परादीस प्रदर्शित करता है, और उस पर चर्चा कीजिए। पुस्तक प्रस्तुत कीजिए, और अगली भेंट का प्रबन्ध कीजिए।
६ यदि आपने पहले बच्चों की दुःख-तकलीफ़ों के बारे में बात की थी, तो अगली भेंट में आप शायद यह कहने के द्वारा चर्चा जारी रख सकें:
▪ “जब कुछ समय पहले मैं यहाँ आया था, आपने बच्चों की दुर्दशा के बारे में चिन्ता ज़ाहिर की थी जो टूटे परिवार, अकाल, बीमारी, और हिंसा के कारण तकलीफ़ उठाते हैं। बाइबल में एक ऐसे संसार के बारे में पढ़ना सांत्वनादायक है जहाँ न तो बच्चे ना ही बड़े बीमारी, पीड़ा, या मृत्यु भुगतेंगे। यशायाह की पुस्तक में एक भविष्यवाणी पृथ्वी पर आनेवाले एक बेहतर जीवन का वर्णन करती है।” यशायाह ६५:२०-२५ पढ़िए और उसकी चर्चा कीजिए। ज्ञान पुस्तक से अंततः एक बाइबल अध्ययन की ओर ले जाइए।
७ चूँकि प्रार्थना करना धार्मिक लोगों के लिए सामान्य है, आप इस विषय पर यह कहकर वार्तालाप आरंभ कर सकते हैं:
▪ “हममें से अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में किसी न किसी मोड़ पर समस्याओं का अनुभव किया है जिन्होंने हमें सहायता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया है। और फिर भी, अनेक लोग महसूस करते हैं कि उनकी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं मिलता। ऐसा भी लगता है कि धार्मिक अगुवे जो सार्वजनिक रूप से शांति के लिए प्रार्थना करते हैं, उनकी नहीं सुनी जा रही है। हम ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि युद्ध और हिंसा मानवजाति को व्यथित किए जा रहे हैं। क्या परमेश्वर सचमुच प्रार्थनाओं को सुनता है? यदि सुनता है, तो इतनी सारी प्रार्थनाएँ अनुत्तरित जाती क्यों प्रतीत होती हैं? [प्रतिक्रिया के लिए रुकिए।] भजन १४५:१८ समझाता है कि हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर मिलने के लिए किस बात की आवश्यकता है। [शास्त्रवचन पढ़िए।] एक बात यह है, कि परमेश्वर से की गई प्रार्थनाएँ निष्कपट और उसके वचन में पाए जानेवाले सत्य के सामंजस्य में होनी चाहिए।” जो पुस्तक आप प्रस्तुत कर रहे हैं उसे दिखाइए, और बताइए कि प्रार्थना के महत्त्व के बारे में वह क्या कहती है।
८ प्रार्थना के बारे में पिछली चर्चा पर पुनःभेंट करते समय, आप शायद इस प्रस्तावना को आज़माएँ:
▪ “प्रार्थना के विषय पर हमारे वार्तालाप का मैंने आनन्द उठाया। किस चीज़ के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, इस बारे में यीशु के विचार आपको निश्चित रूप से मददगार मार्गदर्शक लगेंगे।” मत्ती ६:९, १० पढ़िए और यीशु की आदर्श प्रार्थना में उसके द्वारा विशिष्ट किए गए मुख्य विषयों को दिखाइए। ज्ञान पुस्तक का अध्याय १६ दिखाइए, “आप परमेश्वर के निकट कैसे आ सकते हैं,” और यह प्रदर्शित करने की अनुमति लीजिए कि सामग्री का अध्ययन कैसे किया जाता है।
९ जब दूसरों को परमेश्वर का ज्ञान देने की बात आती है, तो हम शायद पूछें, “इन बातों के योग्य कौन है?” शास्त्र उत्तर देता है: ‘हम हैं।’—२ कुरि. २:१६, १७.