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प्रश्‍न बक्स

ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल पुस्तकालय में कौन-से प्रकाशनों को रखा जाना चाहिए?

परमेश्‍वर के लोगों के फ़ायदे के लिए बहुतायत में आध्यात्मिक प्रकाशन प्रदान किए गए हैं। चूँकि अनेक प्रकाशकों के पास ये सभी प्रकाशन निजी तौर पर नहीं होते हैं, राज्यगृह का ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल पुस्तकालय, उन प्रकाशनों में खोजबीन करने के लिए ज़रिया प्रदान करता है जो शायद अन्यथा उपलब्ध नहीं होते। अतः, इसे विभिन्‍न बाइबल अनुवादों, संस्था के सामयिक प्रकाशनों, हमारी राज्य सेवकाई की प्रतियों, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के सजिल्द खंडों, और प्रहरीदुर्ग प्रकाशन अनुक्रमणिकाओं से सज्जित होना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, एक अच्छा आधुनिक शब्दकोश भी साथ रखा जाना चाहिए। यदि उपलब्ध हो, तो कुछ एनसायक्लोपीडिया, एटलस, या व्याकरण और इतिहास की संदर्भ पुस्तकें उपयोगी हो सकती हैं। लेकिन, हमारा मुख्य ध्यान “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा प्रदान किए गए प्रकाशनों पर होना चाहिए।—मत्ती २४:४५.

कुछ मामलों में ऐसी रिपोर्ट की जाती है कि अनुपयुक्‍त पुस्तकों को ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल पुस्तकालय में रखा गया है। कथा-साहित्य संबंधी विषय, ऐसी बाइबल व्याख्याएँ जो उच्च-समालोचना को विशिष्ट करती हैं, या तत्त्वज्ञान अथवा प्रेतात्मवाद की पुस्तकों को शामिल करना उपयुक्‍त न होगा। ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल पुस्तकालय में केवल ऐसे विषय शामिल होने चाहिए जो इसका इस्तेमाल करनेवाले लोगों को आध्यात्मिक उन्‍नति करते रहने में समर्थ करेंगे।—१ तीमु. ४:१५.

स्कूल ओवरसियर पुस्तकालय के लिए ज़िम्मेदार है, हालाँकि एक और भाई को इसकी देखरेख करने में उसकी मदद करने के लिए नियुक्‍त किया जा सकता है। उसे यह देखना चाहिए कि पुस्तकालय में सामयिक प्रकाशन उपलब्ध हैं, और उपलब्ध होते ही नए प्रकाशनों को जोड़ा जाता है। हरेक पुस्तक के भीतरी आवरण पर साफ़-साफ़ उस कलीसिया का नाम लिखा होना चाहिए जिसकी यह संपत्ति है। सालाना, यह देखने के लिए पुस्तकों की जाँच की जानी चाहिए कि किसी पुस्तक की मरम्मत करने या इनके बदले में नए लाने की ज़रूरत तो नहीं।

सभी लोग पुस्तकालय की देखभाल करने में सहयोग दे सकते हैं। पुस्तकों को संभालने और इस्तेमाल करने में सावधानी बरतने की ज़रूरत है। बच्चों को इनके साथ खिलवाड़ करने के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, ना ही किसी को इन पर कोई चिन्ह लगाना चाहिए। एक साफ़-सुथरा नोट एक अनुस्मारक के तौर पर लिखा जा सकता है कि पुस्तकों को राज्यगृह से बाहर ले जाना मना है।

निरन्तर नयी कलीसियाओं के निर्माण होते रहने से, यह संभव है कि अनेक पुस्तकालयों में सीमित प्रकाशन हों। कुछ प्रकाशक जिनके पास हमारे पुराने प्रकाशन हैं, शायद इन्हें कलीसिया को दान करने का विचार करें। प्राचीन शायद प्रहरीदुर्ग के सजिल्द खंडों के संस्था के पुनःमुद्रण, यदि या जब वे उपलब्ध हैं तब, मँगाना चाहें। इन तरीक़ों से, ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल पुस्तकालय, परमेश्‍वर के वचन, जो ज्ञान, बुद्धि, और समझ देता है, के छुपे ख़ज़ानों को उजागर करने में सभी की मदद करने में बहुत ही उपयोगी साबित होगा।—नीति. २:४-६.

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