“क्या मुझे नयी जगह जाना चाहिए?”
यीशु ने आज्ञा दी थी कि “जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ”, इसे मानते हुए यहोवा के कई समर्पित सेवक ऐसी जगहों पर सेवा करने गए हैं जहाँ सुसमाचार सुनाने की बेहद ज़रूरत है। (मत्ती 28:19) ये सब, प्रेरित पौलुस के उदाहरण पर चल रहे हैं जिसने खुद इस आज्ञा का पालन किया और जब बुलावा आया कि “पार उतरकर मकिदुनिया में आ; और हमारी सहायता कर,” तो यह सुनकर वह मकिदुनिया गया। (प्रेरि. 16:9) तो सवाल उठता है कि व्यवहारिक रूप से ऐसा कैसे किया जा सकता है?
2 सोच-समझकर कदम उठाइए: आपकी कलीसिया के पास क्या ऐसा कोई इलाका है जहाँ बहुत कम प्रचार किया गया है? अगर है, तो आप अपना ध्यान पहले वहाँ लगा सकते हैं। किसी दूसरी जगह जाने का फैसला करने से पहले, आपको अपने प्राचीनों के साथ सलाह-मशविरा कर लेना चाहिए। आप उनकी राय ले सकते हैं कि आपके नयी जगह जाकर प्रचार करने की योग्यता के बारे में उन्हें क्या लगता है। आप अपने सफरी ओवरसियर से भी आस-पास की ऐसी किसी कलीसिया की जानकारी हासिल कर सकते हैं जहाँ आपको अपनी सेवकाई बढ़ाने का और ज़्यादा मौका मिल सकता है। दूसरी ओर, खुद के हालात को परखने के बाद आप शायद अपने ही देश के किसी दूसरे भाग में जाकर मदद करने की भी सोच सकते हैं। अगर आपकी यह ख्वाहिश है तो आपको और आपके प्राचीनों के निकाय, दोनों को देश के शाखा दफ्तर को पत्र लिखना चाहिए। इस पत्र में आप अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों का और खुद का ब्यौरा दे सकते हैं। नयी जगह जाने का फैसला करने से पहले उस जगह को एक बार देख लेने में अक्लमंदी होगी।
3 विदेश में बसने के खतरों से सावधान रहिए: हमारे कई ऐसे भाई हैं जो या तो अपने जीवन के स्तर को और बेहतर बनाने के लिए या दुःख मुसीबतों और लाचारी से राहत पाने के लिए दूसरे देश में जाकर बस रहे हैं। ऐसा करने से कुछ भाई, ऐसे बेईमान लोगों का शिकार हुए हैं जिन्होंने पहले तो विदेश में बसने के लिए मदद देने का पक्का वादा किया, मगर बाद में उनका पैसा लेकर रफू-चक्कर हो गए। कुछ परिस्थितियों में ऐसे लोगों ने हमारे भाई-बहनों को ज़बरदस्ती ऐसी जगहों पर गुलाम बनाकर रखने की कोशिश की है जहाँ अनैतिक काम किये जाते हैं। और जब भाई-बहनों ने ऐसा करने से इंकार किया, तो उन्हें उस अंजान देश में अकेला भटकने और दर-दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया गया। इस तरह नए देश में हमारे भाइयों की हालत उनके खुद के देश से भी बदतर हो गई। तब शायद उन्हें उस देश में रहनेवाले भाइयों से मदद माँगने की या उनके घर में ठहरने की भी ज़रूरत पड़े। इस तरह वे ऐसे मसीही परिवारों पर बोझ बन सकते हैं जो खुद अपनी समस्याओं और दिक्कतों से जूझ रहे हैं। बिना सोचे-समझे किसी दूसरे देश में बसने की वजह से वे अपने परिवार से अलग हो गए हैं और उनके परिवार के सदस्य अध्यात्मिक तौर से बहुत कमज़ोर भी पड़ गए हैं।—1 तीमु. 6:8-11.
4 अगर आप खुद के फायदे के लिए विदेश जाना भी चाहते हैं, तब भी यह बात ध्यान में रखिए कि चाहे आप कहीं भी रहें किसी-न-किसी समस्या का सामना तो आपको करना ही पड़ेगा। इसलिए जिस देश की भाषा और संस्कृति आप नहीं जानते वहाँ रहकर समस्याओं का सामना करने से भला है अपने देश में रहना जहाँ की भाषा और संस्कृति से आप अच्छी तरह परिचित हैं।