पत्रिकाएँ पेश करने के लिए क्या कहना चाहिए
सजग होइए! जुला.-सितं.
“जब किसी के साथ कोई हादसा होता है तो अकसर उसके मन में यह सवाल उठता है: ‘क्या परमेश्वर शक्तिशाली नहीं है? फिर क्यों उसने मुझ पर ऐसी तकलीफ आने दी है?’ क्या आपने कभी ऐसा सोचा है? [जवाब के लिए रुकिए।] बाइबल के ज़माने के कुछ वफादार लोगों के मन में भी ऐसा ही सवाल उठा था। [हबक्कूक 1:13 पढ़िए।] परमेश्वर ने इस सवाल का जो जवाब दिया, उसके बारे में सजग होइए! के इस लेख में अच्छी तरह समझाया गया है।”
प्रहरीदुर्ग अग. 15
“आज लोग शादी और बच्चों की परवरिश के बारे में तरह-तरह की किताबें पढ़ते और दूसरों से सलाह-मशविरा करते हैं। आपकी राय में सबसे बढ़िया सलाह कहाँ से मिल सकती है? [जवाब के लिए रुकिए।] सिरजनहार ने परिवार के बारे में कुछ बुद्धि भरी सलाह दी हैं। उनमें से कुछ के बारे में प्रहरीदुर्ग के इस अंक में चर्चा की गयी है।” भजन 32:8 पढ़िए।
सजग होइए! जुला.-सितं.
“हालाँकि आज भी कई लोग शादी को एक पवित्र बंधन मानते हैं, मगर क्या आप इस बात से सहमत नहीं होंगे कि आज शादी-शुदा ज़िंदगी में समस्याएँ पहले से ज़्यादा बढ़ती जा रही हैं? [जवाब के लिए रुकिए।] ज़रा सोचिए कि इस आयत में जिन दो गुणों पर ज़ोर दिया गया है, वे पति-पत्नी की कैसे मदद कर सकते हैं। [इफिसियों 5:33 पढ़िए।] सजग होइए! का यह लेख समझाता है कि कोई समस्या उठने पर भी पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए प्यार और आदर कैसे दिखा सकते हैं।”
प्रहरीदुर्ग सितं. 1
“हम सभी खुश रहना चाहते हैं। क्या आपको लगता है कि यहाँ बतायी बातों से हमें वाकई खुशी मिल सकती है? [मत्ती 5:4क, 6क, 10क पढ़िए। फिर जवाब के लिए रुकिए।] यह पत्रिका समझाती है कि मशहूर पहाड़ी उपदेश की इन बातों का क्या मतलब है। इसमें यह भी बताया गया है कि हमारी खुशी के लिए और क्या-क्या ज़रूरी है।”