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हमारी राज-सेवा—2005
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बाइबल पर और ज़्यादा ज़ोर!

1. शुरू-शुरू में द वॉचटावर और द गोल्डन एज खास किन लोगों के लिए छापी गयी थीं?

अक्टूबर 1, 1919 को द गोल्डन एज नाम की पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया गया। यह पत्रिका प्रचार काम में एक सबसे अनमोल औज़ार साबित हुई। भला क्यों? क्योंकि यह खासकर आम लोगों के लिए तैयार की गयी थी। लेकिन द वॉचटावर (हिंदी में, प्रहरीदुर्ग) की बात अलग थी, क्योंकि बरसों तक यही माना गया था कि यह पत्रिका खासकर “छोटे झुण्ड” के लिए है। (लूका 12:32) राज्य प्रचारकों को जब पहली बार द गोल्डन एज पत्रिका मिली, तो वे इसे इतनी गर्मजोशी के साथ लोगों को पेश करने लगे कि काफी साल तक द वॉचटावर से कहीं ज़्यादा यह पत्रिका बाँटी गयी।

2. द गोल्डन एज पत्रिका आज किस नाम से जानी जाती है, और शुरू से इसका क्या मकसद रहा है?

2 द गोल्डन एज पत्रिका को प्रकाशित करने का मकसद था, लोगों को यह दिखाना कि सिर्फ मसीह के हज़ार साल की हुकूमत में ही उन्हें अपनी सारी समस्याओं से निजात मिलेगी। और तब इस पत्रिका के नाम के मुताबिक सही मायनों में इंसान के लिए सुनहरा युग शुरू होगा। इसे छापने के बाद के सालों में, बदलते ज़माने की माँग के हिसाब से इस पत्रिका में कई फेरबदल किए गए। जैसे सन्‌ 1937 में इसका नाम बदलकर कन्सोलेशन रखा गया। फिर सन्‌ 1946 में यह अवेक! (हिंदी में, सजग होइए!) कहलायी और आज भी यह इसी नाम से जानी जाती है।

3. किस भविष्यवाणी के पूरा होने में अवेक! एक ज़बरदस्त औज़ार साबित हुई है?

3 जब से इस पत्रिका की शुरूआत हुई है, तब से इसने गवाही देने में एक अहम भूमिका निभायी है। बड़े पैमाने पर गवाही देने का यह काम सन्‌ 1919 से शुरू हुआ। (मत्ती 24:14) लेकिन आज हम जिस नाज़ुक दौर में जी रहे हैं, उसे मद्देनज़र रखते हुए समझदारी इसी में है कि अवेक! में और भी फेरबदल की जाए।

4. (क) अगर एक इंसान “यहोवा के क्रोध के दिन” में बचना चाहता है, तो उसे क्या करने की ज़रूरत है? (ख) प्रकाशितवाक्य 14:6, 7 के मुताबिक, ‘आकाश के बीच में उड़ता स्वर्गदूत’ सभी को क्या कदम उठाने का बढ़ावा दे रहा है?

4 लाखों लोगों को अवेक! पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि इसमें मनभावने अंदाज़ में अलग-अलग विषयों पर लेख दिए जाते हैं जिनका धर्म से कोई नाता नहीं। इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि हर साल जितने लोग स्मारक में हाज़िर होते हैं, उनमें से ज़्यादातर जन नियमित तौर पर अवेक! पढ़ते हैं। फिर भी, अगर एक इंसान “यहोवा के क्रोध के दिन” में बचना चाहता है, तो उसका सिर्फ नियमित तौर पर हमारा साहित्य पढ़ना काफी नहीं, बल्कि उसे और भी ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।—सप. 2:3; प्रका. 14:6, 7.

5. (क) जनवरी 2006 से अवेक! किस बात पर ज़्यादा ज़ोर देगी? (ख) बहुत-से लोगों में क्या करने की इच्छा जागेगी, और इससे कौन-सी भविष्यवाणी पूरी होगी?

5 इसलिए जनवरी 2006 से अवेक! परमेश्‍वर के राज्य पर ज़्यादा ज़ोर देगी। यह अपने पढ़नेवालों को बाइबल में अपनी समस्याओं का हल ढूँढ़ने का सीधे-सीधे बढ़ावा देगी। मगर इससे भी बढ़कर यह इस बात पर ज़ोर देगी कि बाइबल, आज दुनिया में हो रही घटनाओं के बारे में क्या कहती है। इस तरह पढ़नेवालों को घटनाओं की बेहतर समझ मिलेगी और हो सकता है कि वे जो पढ़ते हैं, उससे यहोवा के बारे में और ज़्यादा जानने की उनमें इच्छा जागे।—जक. 8:23.

6, 7. (क) भविष्य में अवेक! को कैसे तैयार किया जाएगा जिससे बहुतों को 1 थिस्सलुनीकियों 2:13 की आयत को लागू करने में मदद मिलेगी? (ख) अवेक! को महीने में कितनी बार प्रकाशित किया जाएगा, और इस बदलाव से कितनी भाषाओं पर असर पड़ेगा?

6 अवेक! में ऐसे विषयों पर लेख छपना जारी रहेगा जिनमें सभी को दिलचस्पी हो। मगर बाइबल पर और ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा। (1 थिस्स. 2:13) प्रहरीदुर्ग में बाइबल की गूढ़ बातों की जानकारी दी जाती है और अब अवेक! में भी बाइबल पर आधारित ज़्यादा लेख छापे जाएँगे। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए महीने में अवेक! के दो अंक छापना ज़रूरी नहीं लगता। इसी वजह से जनवरी 2006 के अंक से अवेक! मासिक पत्रिका होगी। इससे इस पत्रिका को तैयार करना, इसका अनुवाद करना और भेजना, सबकुछ आसान हो जाएगा।

7 इस बदलाव से करीब 40 प्रतिशत भाषाओं पर असर पड़ेगा जिनमें अवेक! प्रकाशित की जाती है। बहुत-सी भाषाओं में अवेक! पहले से मासिक है या फिर हर तीन महीने में एक बार प्रकाशित होती है। लेकिन प्रहरीदुर्ग पत्रिका में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।

8. प्रचारक अवेक! को प्रहरीदुर्ग के साथ कैसे पेश सकते हैं?

8 प्रचारक हर महीने की अवेक! उसी महीने की प्रहरीदुर्ग के अंकों में से किसी एक के साथ पेश कर सकता है। जो लोग प्रचार में अवेक! पेश करते हैं, वे पूरा महीना उसी पत्रिका को पेश कर सकते हैं और उन्हें 15 दिन बाद अपनी पेशकश बदलने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जैसा कि फिलहाल हम करते हैं।

9. अवेक! भविष्य में भी क्या भूमिका अदा करती रहेगी?

9 सन्‌ 1919 में इस पत्रिका के पहले अंक की छपाई से लेकर आज तक, एक-के-बाद-एक इसके कई नाम बदले हैं जैसे द गोल्डन एज, कन्सोलेशन और अब अवेक! इसने प्रचार काम में भी बड़ी अहम भूमिका निभायी है। हमारी दुआ है कि नए तरीके से तैयार की गयी इस पत्रिका को बाँटने पर यहोवा की आशीष रहे और इससे “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा” में से और भी ज़्यादा लोगों को मदद मिलती रहे ताकि वे परमेश्‍वर के राज्य की तरफ फिरें जो उनके लिए आशा की एकमात्र किरण है।—प्रका. 7:9.

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