जीवन कहानी
वफादार लोगों को यहोवा ढेरों आशीषें देता है
क्या सालों पहले किसी से आपकी कोई बात हुई थी जो आपको आज भी याद है? मुझे भी एक बात याद है जो आज से 50 साल पहले मेरे दोस्त से हुई थी। हम उस समय केन्या देश में थे। हम दोनों महीनों से सफर कर रहे थे और धूप से हमारा रंग बदल गया था। हम आग जलाकर बैठे हुए थे और एक फिल्म के बारे में बात कर रहे थे। उसमें कुछ धार्मिक बातों के बारे में बताया गया था। मेरे दोस्त ने कहा, “उसमें बाइबल के बारे में जो बताया गया था, वह सही नहीं था।”
उसकी बात सुनकर मैं हँस पड़ा। मुझे नहीं लगता था कि वह धार्मिक बातों में दिलचस्पी रखता है। मैंने उससे कहा, “तू बाइबल के बारे में क्या जानता है?” पहले तो वह कुछ नहीं बोला। फिर थोड़ी देर बाद उसने कहा कि उसकी मम्मी यहोवा की साक्षी थीं और उन्होंने उसे बाइबल के बारे में थोड़ा-बहुत बताया था। मैंने उससे कहा कि वह इस बारे में मुझे और बताए।
हम देर रात तक बातें करते रहे। मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि बाइबल में लिखा है कि शैतान इस दुनिया का राजा है और वही इसे चला रहा है। (यूह. 14:30) हो सकता है, आप यह बात बचपन से जानते हों, पर मैं यह पहली बार सुन रहा था। अब तक मैंने यही सुना था कि परमेश्वर इस दुनिया को चला रहा है जो हमसे बहुत प्यार करता है और कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करता। लेकिन मैंने दुनिया में तो कुछ और ही देखा था। मैं बस 26 साल का था, पर मैंने इतनी बुराई देखी थी कि मैं बहुत परेशान हो जाता था। इसलिए मेरे दोस्त ने जो बताया, उस बारे में मैं और जानना चाहता था।
मेरे पापा अमरीका की वायु-सेना में पायलट थे। इसलिए मैंने बचपन से सुना था कि कभी-भी परमाणु युद्ध शुरू हो सकता है, बस बटन दबाने की देरी है। फिर जब मैं कैलिफोर्निया में कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था, तब वियतनाम में युद्ध चल रहा था। मैं दूसरे विद्यार्थियों के साथ धरना प्रदर्शन करने लगा। पुलिस-वाले हाथ में डंडे लेकर हमारा पीछा करते थे। वे आँसू-गैस के गोले छोड़ देते थे, इसलिए साँस लेना बहुत मुश्किल हो जाता था और ठीक से कुछ दिखायी भी नहीं देता था। फिर भी किसी तरह हम वहाँ से भाग जाते थे। चारों तरफ खलबली मची थी, लोग सरकार के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे, राजनीति के चलते कई लोगों का कत्ल कर दिया गया था और लोग दंगे-फसाद कर रहे थे। क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं, इस बारे में हर किसी की अपनी ही राय थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
लंदन से मध्य अफ्रीका का सफर
सन् 1970 में मैं अलास्का के उत्तरी तट पर नौकरी करने लगा और मैंने खूब पैसा कमाया। फिर मैं हवाई जहाज़ से लंदन गया और एक मोटर साइकिल खरीदी। मैं उस पर बैठकर दक्षिण की ओर यूँ ही निकल पड़ा। मैंने सोचा नहीं था कि मुझे कहाँ जाना है, मैं बस चलता ही जा रहा था। महीनों बाद मैं अफ्रीका पहुँचा। रास्ते में ऐसे बहुत-से लोगों से मेरी मुलाकात हुई जो कई मुश्किलों से घिरे थे और सोचते थे कि मेरी तरह वे भी सब छोड़-छाड़कर कहीं दूर चले जाएँ।
मैंने जो देखा और सुना था उसकी वजह से बाइबल की यह शिक्षा कि पूरी दुनिया को शैतान चला रहा है, मुझे सही लगी। लेकिन फिर मैं सोचने लगा, “अगर परमेश्वर दुनिया को नहीं चला रहा, तो वह कर क्या रहा है?”
कुछ महीनों बाद मुझे इस सवाल का जवाब मिल गया। वक्त के गुज़रते ऐसे बहुत-से लोगों से मेरी दोस्ती हो गयी जो अलग-अलग हालात में वफादारी से सच्चे परमेश्वर की सेवा कर रहे थे।
उत्तरी आयरलैंड—“बम और बंदूकों का इलाका”
कुछ समय बाद मैं लंदन लौट आया। वहाँ मैं अपने दोस्त की मम्मी से मिला और उन्होंने मुझे बाइबल दी। फिर बाद में मैं नीदरलैंड्स के एमस्टरडम शहर चला गया। एक दिन मैं सड़क किनारे लगी बत्ती की रौशनी में बाइबल पढ़ रहा था। तभी उधर से यहोवा का एक साक्षी गुज़रा। जब उसने मुझे देखा, तो मुझे बाइबल के बारे में और भी बहुत कुछ बताया। फिर मैं आयरलैंड के डबलिन शहर गया। वहाँ मैं यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर गया। मैंने दफ्तर का दरवाज़ा खटखटाया। वहीं मेरी मुलाकात भाई आर्थर मैथ्यूज़ से हुई। वे बहुत ही समझदार थे और उन्हें सालों का तजुरबा था। मैंने उनसे कहा कि क्या वे मुझे बाइबल का अध्ययन करा सकते हैं और वे मान गए।
मैं बहुत कुछ जानना चाहता था। इसलिए मैं पूरी लगन से अध्ययन करने लगा। साक्षियों की जो भी किताबें-पत्रिकाएँ मेरे हाथ लगतीं, मैं वे सब पढ़ता था और मैंने पूरी बाइबल भी पढ़ ली। मैं जो नयी-नयी बातें सीख रहा था, वे मुझे इतनी अच्छा लग रही थीं कि क्या बताऊँ। मंडली की सभाओं में मैंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी उन सवालों के जवाब जानते हैं जिनके जवाब बड़े-बड़े विद्वान भी सदियों से नहीं दे पाए। जैसे, ‘दुनिया में इतनी बुराई क्यों है? परमेश्वर कौन है? मरने के बाद क्या होता है?’ उस देश में मेरे जितने भी दोस्त थे वे सब यहोवा के साक्षी थे, क्योंकि मैं वहाँ और किसी को नहीं जानता था। उन दोस्तों ने यहोवा को जानने में मेरी बहुत मदद की। मैं यहोवा से प्यार करने लगा और मेरा मन करने लगा कि मैं उसकी मरज़ी पूरी करूँ।
नाइजल, डेनिस और मैं
सन् 1972 में मेरा बपतिस्मा हो गया। फिर एक साल बाद मैं पायनियर सेवा करने लगा। मैं उत्तरी आयरलैंड के न्यूरी कसबे में एक छोटी-सी मंडली में जाने लगा। वहाँ मैंने पहाड़ी इलाके में पत्थरों से बना एक घर किराए पर लिया। वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं दिखायी देता था। लेकिन उस घर के पास में ही एक खेत था जिसमें बहुत-सी गायें होती थीं और मैं उनके सामने अपने भाषण की प्रैक्टिस करता था। उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि वे जुगाली करते-करते ध्यान से मेरा भाषण भी सुन रही हैं। वे यह तो नहीं बता सकती थीं कि मुझे कहाँ सुधार करना है, पर इस तरह मैं यह ज़रूर सीख गया कि हाज़िर लोगों से नज़र मिलाकर कैसे बात करनी है। सन् 1974 में मुझे खास पायनियर सेवा करने के लिए कहा गया और भाई नाइजल पिट को मेरे साथ सेवा करने के लिए भेजा गया। हम दोनों पक्के दोस्त बन गए।
उस वक्त उत्तरी आयरलैंड में राजनैतिक उथल-पुथल चल रही थी और बहुत दंगे-फसाद हो रहे थे। इसलिए उस जगह को कुछ लोगों ने एकदम सही नाम दिया, “बम और बंदूकों का इलाका।” सड़कों पर लड़ाई-झगड़ा, गोलीबारी और बम से कार उड़ा देना बहुत आम हो गया था। इस सब में धर्म का भी हाथ था। लेकिन प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों चर्च के लोग जानते थे कि यहोवा के साक्षी राजनीति में किसी का पक्ष नहीं लेते। इसलिए हमें कोई नुकसान नहीं हुआ और हम आराम से प्रचार कर पाए। कई बार तो जब हम घर-घर प्रचार करते थे, तब लोग हमें बता देते थे कि कब और कहाँ दंगे होनेवाले हैं ताकि हम वहाँ ना जाएँ।
लेकिन कुछ मुश्किलें भी आयीं। एक दिन भाई डेनिस कैरिगन और मैं पास के ही कसबे में प्रचार कर रहे थे। वे भी पायनियर थे। उस इलाके में और कोई साक्षी नहीं था और हम भी वहाँ दूसरी बार ही गए थे। वहाँ चाय की एक दुकान पर एक औरत ने हम पर यह इलज़ाम लगाया कि हम ब्रिटेन के खुफिया सैनिक हैं। उसे शायद ऐसा इसलिए लगा क्योंकि हमारा बोलने का लहज़ा वहाँ के लोगों से अलग था। अगर उस समय कोई सैनिकों से अच्छे-से बात भी कर लेता था, तो लोग उसे जान से मार देते थे या उसके घुटनों पर गोली मार देते थे। इसलिए उसकी बात सुनकर हम दोनों बहुत डर गए। फिर हम बाहर खड़े होकर बस का इंतज़ार करने लगे। हमें बहुत ठंड लग रही थी और आस-पास कोई नहीं था। तभी एक कार उस दुकान के सामने आकर रुक गयी। वह औरत बाहर आयी और कार में बैठे दो आदमियों से बात करने लगी। उनसे बात करते वक्त वह हमारी तरफ इशारा कर रही थी। फिर वे आदमी धीरे-धीरे अपनी गाड़ी लेकर हमारे पास आए और हमसे बस के बारे में कुछ सवाल करने लगे। जब बस आयी तो वे जाकर बस के ड्राइवर से बात करने लगे। हम उनकी बातचीत नहीं सुन पाए। लेकिन वह बस एकदम खाली थी, इसलिए हमें लगा, ‘अब तो गए काम से! वे पक्का उससे कह रहे होंगे कि वह हमें कसबे के बाहर ले जाकर छोड़ दे और वहाँ वे हमसे निपट लेंगे।’ पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब मैं बस से उतरा तो मैंने ड्राइवर से पूछा, “क्या वे हमारे बारे में ही बात कर रहे थे?” उसने कहा, “मैं जानता हूँ तुम लोग कौन हो और मैंने उन्हें बता दिया। चिंता मत करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा।”
मार्च 1977 में हमारी शादी के दिन
सन् 1976 में डबलिन में एक ज़िला सम्मेलनa रखा गया। वहाँ मेरी मुलाकात पॉलीन लोमैक्स से हुई। वह इंग्लैंड से इस सम्मेलन में आयी थी और एक खास पायनियर थी। उसे यहोवा से बहुत प्यार था और वह एक नम्र बहन थी और बहुत ही प्यारी थी। वह और उसका भाई रे लोमैक्स बचपन से सच्चाई जानते थे। ज़िला सम्मेलन में हुई मुलाकात के एक साल बाद पॉलीन और मैंने शादी कर ली। फिर हम उत्तरी आयरलैंड के बैलीमीना शहर में खास पायनियर सेवा करने लगे।
कुछ वक्त तक मैंने सर्किट निगरान के तौर पर सेवा की। मुझे और पॉलीन को बेलफास्ट, लंडनडेरी और ऐसे ही दूसरे इलाकों में जाना होता था जहाँ बहुत खतरे थे। वहाँ हम ऐसे कई भाई-बहनों से मिले जो पहले लोगों से भेदभाव करते थे, अपने धर्म को लेकर बहुत कट्टर थे और जिनमें एक वक्त पर नफरत भरी हुई थी। पर उन्होंने यहोवा पर विश्वास किया और यह सब छोड़ दिया। यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दीं और उनकी हिफाज़त की। उनका विश्वास देखकर हमारा बहुत हौसला बढ़ा।
मैं दस साल से आयरलैंड में था। फिर 1981 में हमें गिलियड स्कूल की 72वीं क्लास के लिए बुलाया गया। स्कूल के बाद हमें पश्चिम अफ्रीका के सिएरा लियोन देश में सेवा करने के लिए भेजा गया।
सिएरा लियोन—तंगी में भी अटूट विश्वास
हम एक ही घर में ऐसे 11 भाई-बहनों के साथ रहते थे जिन्हें सिएरा लियोन में मिशनरी सेवा के लिए भेजा गया था। वे सब बहुत अच्छे थे। पर उस घर में सिर्फ एक रसोई, तीन टॉयलेट, दो बाथरूम, एक कपड़े धोने की और एक कपड़े सुखाने की मशीन और एक ही टेलीफोन था। वहाँ कभी-भी बिजली गुल हो जाती थी और ऐसा बहुत होता था। उस घर की छत पर चूहे अड्डा जमाए रहते थे और नीचे बेसमेंट में ज़हरीले साँपों का आना-जाना लगा रहता था।
पास के गिनी देश में रखे गए एक अधिवेशन में जाने के लिए नदी पार करते हुए
ऐसे घर में रहना आसान नहीं था, मगर प्रचार में हमें बहुत मज़ा आता था! लोग बाइबल की कदर करते थे और जब हम उन्हें प्रचार करते थे, तो वे ध्यान से हमारी सुनते थे। कई लोग बाइबल अध्ययन करने लगे और यहोवा के साक्षी बन गए। वहाँ के लोग मुझे “मिस्टर रॉबर्ट” बुलाते थे और पॉलीन को “मिसेस रॉबर्ट।” लेकिन कुछ समय बाद मुझे शाखा दफ्तर की तरफ से काफी काम मिलने लगा और मैं प्रचार के लिए ज़्यादा नहीं निकल पाता था। इसलिए लोग पॉलीन को “मिसेस पॉलीन” बुलाने लगे और मुझे “मिस्टर पॉलीन।” यह सुनकर पॉलीन को बड़ा मज़ा आता था!
सिएरा लियोन में प्रचार के लिए जाते हुए
हमारे कई भाई-बहन बहुत गरीब थे। लेकिन यहोवा ने हमेशा उनकी ज़रूरतों का खयाल रखा और कई बार तो इस तरह उनकी मदद की कि वे सोच भी नहीं सकते थे। (मत्ती 6:33) मुझे याद है कि एक बार एक बहन के पास सिर्फ इतने ही पैसे थे कि वे उस दिन अपना और अपने बच्चों का पेट भर सकती थीं। लेकिन उन्होंने वह सारा पैसा एक भाई को दे दिया जिसे मलेरिया हो गया था, क्योंकि उसके पास दवाई खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। पर उसी दिन एक औरत अपने बाल बनवाने के लिए बहन के पास आयी और इसके लिए उन्हें पैसे दिए। उस बहन की तरह और भी कई भाई-बहनों ने देखा कि यहोवा कैसे उन्हें सँभाल रहा है।
नाइजीरिया—नए तौर-तरीके सीखे
हम नौ साल तक सिएरा लियोन में रहे, फिर हमें नाइजीरिया शाखा दफ्तर भेज दिया गया। यह शाखा दफ्तर बहुत बड़ा था। मुझे तो वैसा ही काम दिया गया था जैसा मैं सिएरा लियोन में किया करता था, लेकिन पॉलीन के लिए सबकुछ नया था। पहले वह हर महीने 130 घंटे प्रचार करती थी और ऐसे कई लोगों का बाइबल अध्ययन कराती थी जो तरक्की कर रहे थे। लेकिन यहाँ बेथल में उसे सिलाई का काम दिया गया और उसका पूरा दिन फटे कपड़े सही करने में निकल जाता था। शुरू-शुरू में उसके लिए यह बदलाव आसान नहीं था। लेकिन जब उसने देखा कि भाई-बहन उसके काम की कितनी कदर करते हैं, तो धीरे-धीरे उसे बेथेल में यह काम अच्छा लगने लगा। और वह कोशिश करती थी कि उसे जब भी मौका मिले वह बेथेल में काम करनेवाले दूसरे भाई-बहनों का हौसला बढ़ाए।
नाइजीरिया के लोगों का रहन-सहन और उनके दस्तूर बहुत अलग थे और हम अब भी उन्हें सीख रहे थे। एक बार मैं अपने ऑफिस में था और एक भाई एक बहन को मुझसे मिलवाने लाया जो नयी-नयी बेथेल में आयी थी। जैसे ही मैंने उससे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, वह झुक गयी और मेरे पैरों पर गिर गयी। यह देखकर मेरे होश उड़ गए! मुझे तुरंत दो आयतें याद आयीं: प्रेषितों 10:25, 26 और प्रकाशितवाक्य 19:10. मैंने सोचा, ‘यह बहन क्या कर रही है? इसे बोलूँ कि ऐसा ना करे?’ पर फिर मैंने सोचा कि इसे बेथेल बुलाया गया है, तो इसे तो पता ही होगा कि इस बारे में बाइबल में क्या लिखा है।
जब तक हमारी बातचीत चली, मुझे बहुत अजीब लग रहा था। पर उसके जाने के बाद मैंने इस बारे में खोजबीन की। तब मुझे पता चला कि यह वहाँ का एक रिवाज़ है जो देश के कई इलाकों में अब भी माना जाता है। और सिर्फ औरतें ही नहीं, आदमी भी यह रिवाज़ मानते हैं। वे ऐसा उपासना करने के इरादे से नहीं, बल्कि लोगों का आदर करने के लिए करते हैं। बाइबल में भी बताया गया है कि कुछ वफादार लोगों ने ऐसा किया था। (1 शमू. 24:8) मैंने सोचा, अच्छा हुआ मैंने बिना सोचे-समझे उस बहन से कुछ ऐसा नहीं कहा जिससे उसे बुरा लग जाता।
हम नाइजीरिया में ऐसे कई लोगों से मिले जिन्होंने सालों तक वफादारी से यहोवा की सेवा की। ऐसे ही एक भाई थे, आइज़ेया आडागबोना।b जब वे नौजवान ही थे, तभी उन्होंने सच्चाई सीखी थी। लेकिन बाद में उन्हें कोढ़ हो गया। इसलिए उन्हें ऐसी जगह भेज दिया गया जहाँ सिर्फ कोढ़ी लोग रहते थे। वहाँ वही अकेले साक्षी थे। उनका काफी विरोध किया गया, फिर भी वे प्रचार करते रहे। उन्होंने 30 से भी ज़्यादा कोढ़ी लोगों की साक्षी बनने में मदद की। बाद में वहाँ एक मंडली भी बन गयी।
केन्या—भाइयों ने मेरे साथ बहुत सब्र रखा
केन्या में एक अनाथ गैंडे के साथ
सन् 1996 में हमें केन्या शाखा दफ्तर भेजा गया। मैंने शुरू में आपको जो किस्सा सुनाया था उसके बाद मैं पहली बार केन्या आया था। हम बेथेल में रहते थे। वहाँ लोगों के अलावा बंदर भी बेथेल घूमने आते थे। वे अगर किसी बहन के हाथ में फल देखते, तो उसे “लूट” लेते थे। एक दिन एक बहन अपने कमरे से बाहर गयी और उसके कमरे की खिड़की खुली रह गयी। जब वह वापस आयी, तो उसने देखा कि बंदरों की पूरी पलटन उसके कमरे में बैठी मज़े से खाना खा रही है। वह बहन डर के मारे ज़ोर से चिल्लायी और बाहर भाग गयी। बंदर भी ज़ोर से चीखे और खिड़की से बाहर कूद गए।
मैं और पॉलीन स्वाहिली भाषावाली मंडली में जाने लगे। कुछ ही समय बाद मुझे मंडली पुस्तक अध्ययन (जिसे आज मंडली का बाइबल अध्ययन कहा जाता है) चलाने के लिए कहा गया। लेकिन यह नयी भाषा बोलने के मामले में, मैं अभी छोटा बच्चा ही था। मैं काफी पहले से अध्ययन की तैयारी करता था इसलिए मैं सवाल तो ठीक से पढ़ लेता था, लेकिन अगर भाई-बहनों के जवाब पैराग्राफ से थोड़े भी इधर-उधर होते, तो मुझे कुछ समझ में नहीं आता था। मुझे बड़ा अजीब लगता था और भाई-बहनों के बारे में सोचकर भी बहुत बुरा लगता था। लेकिन वे बहुत सब्र रखते थे। उन्होंने कभी इस बात से कोई एतराज़ नहीं जताया कि मैं बाइबल अध्ययन चलाऊँ, वे बहुत नम्र थे। उनकी यह बात मेरे दिल को छू गयी।
अमरीका—पैसों पर नहीं, यहोवा पर अटूट विश्वास
हम केन्या में एक साल भी नहीं रहे। 1997 में हमें न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन बेथेल बुला लिया गया। यहाँ ज़्यादातर लोग पैसेवाले हैं और इस वजह से भी कुछ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। (नीति. 30:8, 9) लेकिन यहाँ के भाई-बहन वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। वे अपना समय और साधन यहोवा के कामों में लगाते हैं, ना कि ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने में।
इतने सालों के दौरान हमने देखा है कि हमारे भाई-बहन कैसे अलग-अलग हालात में वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। जैसे आयरलैंड में लड़ाई और दंगों के बावजूद भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत बना रहा। अफ्रीका में गरीबी और भाई-बहनों से दूर रहने के बावजूद यहोवा के लोगों का विश्वास कमज़ोर नहीं पड़ा। और अमरीका में जहाँ लोग पैसों पर भरोसा रखते हैं, वहीं हमारे भाई-बहनों का यहोवा पर अटूट विश्वास है। सोचिए, जब यहोवा नीचे झुककर देखता होगा कि उसके लोग कैसे अलग-अलग हालात में भी उसके वफादार रहते हैं, तो उसे कितनी खुशी होती होगी!
पॉलीन के साथ वॉरविक बेथेल में
समय बहुत तेज़ी से गुज़र गया, ‘जुलाहे के करघे से भी ज़्यादा तेज़ी से।’ (अय्यू. 7:6) आज हम न्यू यॉर्क के वॉरविक में विश्व मुख्यालय में सेवा कर रहे हैं। हमें आज भी ऐसे भाई-बहनों के साथ सेवा करके खुशी होती है जो सच में एक-दूसरे से प्यार करते हैं। आज हम जो भी कर पाते हैं, उससे बहुत खुश हैं। हम जानते हैं कि हम अपने राजा यीशु का साथ दे रहे हैं जो बहुत जल्द सभी वफादार सेवकों को इनाम देगा।—मत्ती 25:34.
a पहले क्षेत्रीय अधिवेशनों को ज़िला सम्मेलन कहा जाता था।
b भाई आइज़ेया आडागबोना की जीवन कहानी पढ़ने के लिए 1 अप्रैल, 1998 की प्रहरीदुर्ग के पेज 22-27 देखें। सन् 2010 में भाई की मौत हो गयी।