आप मौके ढूँढ़कर गवाही दे सकते हैं!
1. (क) मौके ढूँढ़कर गवाही देने का क्या मतलब है? (ख) इस सभा में हाज़िर कितने लोगों को घर-घर के प्रचार को छोड़, किसी और तरीके से सच्चाई मिली?
आपकी मंडली में ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें सच्चाई घर-घर के प्रचार में नहीं, बल्कि किसी और तरीके से मिली? जवाब शायद आपको हैरत में डाल दे। मौके ढूँढ़कर गवाही देने में उन लोगों को खुशखबरी बाँटना शामिल है, जिनसे हमारी मुलाकात रोज़मर्रा के काम के वक्त होती है, जैसे सफर में, रिश्तेदारों या पड़ोसियों से मुलाकात, या खरीदारी करते वक्त, काम की जगह या स्कूल में या ऐसे ही दूसरे मौकों पर। साक्षियों का एक समूह जिसमें 200 से ज़्यादा बपतिस्माशुदा प्रचारक हैं, उसमें 40 प्रतिशत लोगों को सच्चाई घर-घर के प्रचार में नहीं, बल्कि किसी और तरीके से मिली! इसमें कोई शक नहीं कि प्रचार का यह तरीका वाकई असरदार है।
2. मौके ढूँढ़कर गवाही देने के बारे में हमें बाइबल में कौन-सी मिसालें मिलती हैं?
2 पहली सदी के जोशीले प्रचारक अकसर मौके ढूँढ़कर गवाही देते थे। मिसाल के लिए, जब यीशु सामरिया से होकर जा रहा था, तो उसने एक स्त्री को गवाही दी जो याकूब के कुएँ पर पानी भरने आयी थी। (यूह. 4:6-26) फिलिप्पुस ने इथियोपिया के एक खोजे से, जो यशायाह की किताब पढ़ रहा था, बातचीत शुरू करने के लिए पूछा: “तू जो पढ़ रहा है, क्या उसे समझता भी है?” (प्रेषि. 8:26-38) जब पौलुस फिलिप्पी के जेल में कैद था तब उसने वहाँ के जेलर को गवाही दी। (प्रेषि. 16:23-34) बाद में, जब उसे घर में नज़रबंद कर दिया गया, तब “जो कोई उसके यहाँ आता था उसका [वह] बड़े प्यार से स्वागत करता था और उनको परमेश्वर के राज का प्रचार करता था और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाया करता था।” (प्रेषि. 28:30, 31) आप भी मौके ढूँढ़कर गवाही दे सकते हैं। अगर आप शर्मीले स्वभाव के हैं, तब भी आप ऐसा कर सकते हैं। कैसे?
3. अगर हम शर्मीले स्वभाव के हैं, तो क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
3 शुरूआत करना: हममें से बहुत लोगों को अजनबियों से बातचीत शुरू करना मुश्किल लगता है। यहाँ तक की जिन लोगों को हम जानते हैं, उनके साथ भी सच्चाई के बारे में बात करना हमें अजीब लग सकता है। लेकिन अगर हम गौर करें कि यहोवा कितना भला है, उसने अपने सेवकों को सच्चाई का कितना अनमोल खज़ाना दिया है और दुनिया के लोगों की हालत कितनी बुरी है, तो हम सच्चाई के बारे में ज़रूर लोगों से बात करेंगे। (योना 4:11; भज. 40:5; मत्ती 13:52) इसके अलावा, हम ‘हिम्मत जुटाने’ के लिए यहोवा से मदद माँग सकते हैं। (1 थिस्स. 2:2) एक बार एक गिलियड विद्यार्थी ने कहा: “जब मेरे लिए लोगों से बात करना मुश्किल होता है, तो मैंने अकसर पाया है कि प्रार्थना करने से मुझे काफी मदद मिलती है।” अगर आप बात करने में हिचक महसूस कर रहे हैं, तो मन-ही-मन एक छोटी-सी प्रार्थना कीजिए।—नहे. 2:4.
4. शुरू-शुरू में हम अपने लिए कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं और ऐसा करने से क्या फायदा होता है?
4 मौके ढूँढ़कर गवाही देना, जैसा कि इन शब्दों से पता चलता है इसके लिए ज़रूरी नहीं कि हम अपना परिचय देकर या कोई आयत पढ़कर बातचीत शुरू करें। अगर हम यह सोचे बगैर बातचीत शुरू करें कि हमें फौरन गवाही देनी है, तो शायद हमें ज़्यादा मदद मिले। कई प्रचारक कहते हैं कि ऐसा करने से उनमें खुशखबरी के बारे में बताने का विश्वास बढ़ा है। अगर कोई व्यक्ति बात नहीं करना चाहता, तो उससे ज़बरदस्ती बात करने की कोशिश मत कीजिए। अदब के साथ अपनी बातचीत खत्म कर दीजिए।
5. मौका ढूँढ़कर गवाही देने में एक शर्मीले स्वभाव की बहन को किस बात से मदद मिलती है?
5 एक बहन जो स्वभाव से बेहद शर्मीली है, बाज़ार में खरीदारी करते वक्त पहले लोगों को देखकर मुस्कराती है। अगर वह व्यक्ति भी मुस्कराता है तब वह उससे बात शुरू करती है। अगर वह बातचीत में शामिल होता है तो बहन को उससे बातचीत जारी रखने का विश्वास मिलता है। बहन उस व्यक्ति की बात ध्यान से सुनती है और यह पता लगाने की कोशिश करती है कि खुशखबरी का कौन-सा पहलू उसके दिल को छू जाएगा। यह तरीका अपनाकर इस बहन ने कई लोगों को साहित्य दिए हैं, यहाँ तक कि एक बाइबल अध्ययन भी शुरू किया है।
6. मौका ढूँढ़कर गवाही देते वक्त, हम बातचीत कैसे शुरू कर सकते हैं?
6 बातचीत शुरू करना: बातचीत शुरू करने के लिए हम क्या कह सकते हैं? जब यीशु ने कुएँ पर एक स्त्री से बात की, तब उसने बातचीत शुरू करने के लिए उससे पानी माँगा। (यूह. 4:7) हम भी शायद कोई सवाल पूछकर, या दोस्ताना अंदाज़ में नमस्ते कहकर बातचीत शुरू कर सकते हैं। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें फौरन ही परमेश्वर के राज पर बात करनी है या सीधे-सीधे बाइबल से कोई बात बतानी है। इस समय में जब लोग एक-दूसरे से भेदभाव करते हैं, तब खासकर हमारा लक्ष्य होना चाहिए, दोस्ताना बातचीत जारी रखना। बातचीत के दौरान शायद आपको बाइबल से कोई बात कहने का मौका मिल जाए और आप उसके दिल में सच्चाई का बीज बो सकें। (सभो. 11:6) कुछ भाई-बहनों ने पाया है कि एक दिलचस्प सवाल पूछने से, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर दे और जिसका जवाब जानने के लिए उनके मन में इच्छा पैदा हो, उन्हें काफी कामयाबी मिलती है। मिसाल के लिए, डॉक्टर को दिखाने के लिए इंतज़ार करते वक्त आप यह कहकर बातचीत शुरू कर सकते हैं, “मैं उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ जब मैं कभी बीमार नहीं पड़ूँगा।”
7. आस-पास ध्यान देने से कैसे हमें मौके ढूँढ़कर गवाही देने में मदद मिलेगी?
7 आस-पास के माहौल पर ध्यान देने से भी हम बातचीत शुरू कर सकते हैं। अगर हम कभी ऐसे माता-पिता को देखते हैं जिनके बच्चे बहुत अदब से पेश आते हैं तो हम माता-पिता की तारीफ कर सकते हैं और उनसे पूछ सकते हैं, “आप कैसे अपने बच्चों की इतनी अच्छी तरह परवरिश कर पाए हैं?” एक बहन अपने काम की जगह पर ध्यान देती है कि दूसरे किन विषयों पर बात करते हैं और फिर उनकी दिलचस्पी के हिसाब से उन्हें जानकारी देती है। जैसे कि जब उसे पता चला कि उसके साथ काम करनेवाली एक लड़की की शादी होनेवाली है तो बहन ने उसे एक सजग होइए! पत्रिका दी, जिसमें बताया गया था कि शादी की तैयारी कैसे करनी चाहिए। इस तरह वह उसके साथ आगे भी बाइबल से चर्चा कर पायी।
8. बातचीत शुरू करने के लिए हम अपने साहित्य का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?
8 बातचीत शुरू करने का एक दूसरा तरीका है, ऐसी जगह अपने साहित्य पढ़ना जहाँ लोग हमें देख सकें। जैसे एक भाई प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! के ऐसे लेख खोलकर पढ़ता है जिनके शीर्षक बहुत दिलचस्प होते हैं और अगर वह किसी को पत्रिका पर ध्यान देते देखता है, तो उससे कोई सवाल पूछता है या उस लेख में दी जानकारी के बारे में कुछ कहता है। इससे अकसर उसे बातचीत करने और गवाही देने का मौका मिल जाता है। अगर हम अपनी मेज़ पर या ऐसी जगह हमारा कोई साहित्य रखें जहाँ दूसरों की नज़र उस पर पड़े, तो शायद साथ काम करनेवालों या साथ पढ़नेवाले बच्चों का ध्यान उस पर जाए और वे उसके बारे में हमसे पूछें।
9, 10. (क) गवाही देने के लिए हम मौके कैसे बना सकते हैं? (ख) आप कैसे यह कर पाए हैं?
9 मौके बनाना: प्रचार का काम जल्द-से-जल्द किया जाना है, इस बात को ध्यान में रखते हुए हमें मौके ढूँढ़कर गवाही देने की अहमियत समझनी चाहिए और इसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। हमें रोज़मर्रा के काम करते वक्त गवाही देने के मौके बनाने चाहिए। पहले से सोचिए कि आप किन लोगों से मिलेंगे और कैसे आप उनके साथ एक दोस्ताना बातचीत शुरू कर सकते हैं। अपने साथ बाइबल और कुछ दूसरे साहित्य हमेशा रखिए ताकि आप दिलचस्पी दिखानेवालों को खुशखबरी सुना सकें। (1 पत. 3:15) कुछ लोगों को अपने साथ “ट्रैक्टों का पैक” रखना कारगर लगता है।—हमारी राज्य सेवकाई 6/07 पेज 3.
10 सूझ-बूझ से काम लेने की वजह से कई प्रचारक गवाही देने के मौके बना पाए हैं। एक बहन जो एक कड़ी सुरक्षावाली बिल्डिंग में रहती है, वह बिल्डिंग के मनोरंजन की जगह में एक खेल खेलती है, जिसमें अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर पूरी तसवीर बनानी होती है (जिग्सौ पज़ल)। वह टुकड़ों को जोड़कर कुदरत के खूबसूरत नज़ारों की तसवीर बनाती है और जब लोग वहाँ से गुज़रते हुए उस तसवीर को देखते हैं और उस खूबसूरत तसवीर की तारीफ करते हैं, तो वह उस मौके का फायदा उठाकर उनके साथ बातचीत शुरू करती है और उन्हें ‘एक नए आकाश और नयी पृथ्वी’ के बारे में बाइबल का वादा बताती है। (प्रका. 21:1-4) क्या आप ऐसे कुछ तरीके सोच सकते हैं जिनसे आप मौका ढूँढ़कर गवाही दे सकें?
11. मौके ढूँढ़कर गवाही देते वक्त दिलचस्पी दिखानेवालों से दोबारा मिलने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
11 दिलचस्पी दिखानेवालों से दोबारा मिलना: अगर कोई बाइबल संदेश में दिलचस्पी दिखाता है, तो उससे दोबारा ज़रूर मिलिए। अगर सही लगे तो आप उससे कह सकते हैं: “आपसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा। दोबारा बात करने के लिए मैं आपसे कहाँ मिल सकता हूँ?” कुछ इलाकों में यह पता लगाने में आपको बहुत सावधानी बरतनी चाहिए कि सुननेवाले को सच्ची दिलचस्पी है या नहीं। विरोधियों ने खुशखबरी में झूठी दिलचस्पी दिखाकर कुछ प्रचारकों को अपने जाल में फँसाया है। अगर आप दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्ति से दोबारा नहीं मिल सकते तो अपनी मंडली के सचिव को प्लीज़ फॉलो अप (S-43) फॉर्म में उसका नाम और पता भरकर दे दीजिए, ताकि जो मंडली उसके इलाके में काम करती है वहाँ का कोई प्रचारक उससे मिल सके।
12. (क) मौके ढूँढ़कर गवाही देने में हम जो समय बिताते हैं, उसका हमें क्यों रिकॉर्ड रखना चाहिए? (ख) मौके ढूँढ़कर गवाही देने के क्या नतीजे मिले हैं? (बक्स “मौके ढूँढ़कर गवाही देने से अच्छे नतीजे मिलते हैं!” देखिए।)
12 मौके ढूँढ़कर गवाही देने में हम जो समय बिताते हैं, हमें उसे प्रचार सेवा रिपोर्ट में ज़रूर भरना चाहिए। इसलिए इसका अच्छा रिकॉर्ड रखिए, फिर चाहे आप दिन-भर में सिर्फ कुछ ही मिनट लोगों से बात करते हों। गौर कीजिए: अगर हर प्रचारक हर दिन सिर्फ 5 मिनट मौके ढूँढ़कर गवाही दे, तो इस तरह हम सभी मिलकर हर महीने प्रचार में 1 करोड़ 70 लाख घंटे से भी ज़्यादा समय बिता रहे होगें!
13. किन वजहों से हम मौके ढूँढ़कर गवाही देते हैं?
13 मौके ढूँढ़कर गवाही देने की हमारे पास बेहतरीन वजह हैं। वे हैं कि हम परमेश्वर और पड़ोसी दोनों से प्यार करते हैं। (मत्ती 22:37-39) यहोवा के मकसद और उसके गुणों के लिए कदरदानी से भरा हमारा दिल हमें उकसाता है कि हम उसके “राज्य के प्रताप की महिमा” करें। (भज. 145:7, 10-12) अपने पड़ोसियों के लिए सच्ची परवाह हमें उभारती है कि जितना समय बचा है उसमें हम खुशखबरी सुनाने के हर मौके का फायदा उठाएँ। (रोमि. 10:13, 14) थोड़ी-सी सावधानी, तैयारी और सोच-विचार से हम सभी मौके ढूँढ़कर गवाही दे सकते हैं और शायद हमें किसी नेक व्यक्ति को सच्चाई देने की खुशी भी मिले।
[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
अगर आप सिर्फ लोगों से मिलने और बातचीत शुरू करने का लक्ष्य रखें, तो शायद आपको मदद मिले
[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
सूझ-बूझ से काम लेने की वजह से कई प्रचारक गवाही देने के मौके बना पाए हैं
[पेज 5 पर बक्स]
बातचीत शुरू करने के सुझाव
▪ परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको बातचीत शुरू करने में मदद करे
▪ उनसे बातचीत कीजिए जो मिलनसार दिखते हैं और जल्दबाज़ी में नहीं हैं
▪ नज़र मिलाइए, मुस्कराइए और ऐसे विषय पर बात कीजिए जिसमें उन्हें भी दिलचस्पी हो
▪ दूसरे व्यक्ति की बात ध्यान से सुनिए
[पेज 6 पर बक्स]
मौके ढूँढ़कर गवाही देने से अच्छे नतीजे मिलते हैं!
• एक भाई जब गराज में अपनी कार की मरम्मत के लिए इंतज़ार कर रहा था, तो उसने वहाँ मौजूद लोगों को गवाही दी और उन्हें परचे दिए जिसमें जन भाषण में आने का न्यौता दिया गया था। एक साल बाद अधिवेशन में एक व्यक्ति बड़े प्यार से इस भाई से मिला, लेकिन भाई उसे पहचान नहीं सका। यह व्यक्ति और कोई नहीं, उन लोगों में से एक था जिसे भाई ने एक साल पहले गराज में जन भाषण का परचा दिया था! यह व्यक्ति जन भाषण सुनने गया था और वहाँ उसने बाइबल अध्ययन के लिए गुज़ारिश की। आगे जाकर उसने और उसकी पत्नी, दोनों ने बपतिस्मा ले लिया।
• एक बहन को सच्चाई घर-घर के प्रचार में नहीं बल्कि मौके ढूँढ़कर गवाही देने के ज़रिए मिली। वह उन लोगों को अपने प्रचार का खास इलाका मानती है, जिनसे उसकी मुलाकात अपने तीन बच्चों के ज़रिए होती है। जैसे कि पड़ोसी और वे माता-पिता जिनसे वह स्कूल में और माता-पिताओं के लिए रखी मीटिंग में मिलती है। अपना परिचय देने के बाद वह दिल से कहती है कि बच्चों की परवरिश करने में उसे बाइबल से बहुत मदद मिली है, फिर वह दूसरे विषय पर बात करने लगती है। एक बार उनसे जान-पहचान हो जाने से वह दोबारा मिलने पर उन्हें आसानी से बाइबल के बारे में बता पाती है। इस तरह वह 12 लोगों को बपतिस्मा लेने में मदद कर पायी है।
• जब एक बहन से एक बीमा एजेंट मिलने आया, तो बहन ने मौके का फायदा उठाकर उसे गवाही दी। बहन ने उससे पूछा क्या वह अच्छी सेहत, और हमेशा की खुशहाल ज़िंदगी पाना चाहेगा? एजेंट ने हाँ कहा और पूछा कि वह कौन-सी बीमा पॉलिसी की बात कर रही है। बहन ने बाइबल से उसे परमेश्वर के वादों के बारे में बताया और हमारा एक साहित्य पढ़ने के लिए दिया, जिसे उस आदमी ने एक शाम में ही पढ़ लिया। उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया गया, वह सभाओं में आने लगा और आगे चलकर उसका बपतिस्मा भी हो गया।
• एक बहन जब सफर कर रही थी तो उसने अपनी बगलवाली सीट पर बैठी स्त्री से बात की और उसे गवाही दी। सफर के अंत में बहन ने उस स्त्री को अपना पता और फोन नंबर दिया और बढ़ावा दिया कि अगली बार अगर कोई यहोवा का साक्षी उससे मिले तो वह बाइबल अध्ययन ज़रूर करे। दूसरे ही दिन दो साक्षी बहनें उस स्त्री के घर आयीं। उस स्त्री ने बाइबल अध्ययन शुरू किया, जल्द-ही तरक्की की, बपतिस्मा लिया और खुद तीन बाइबल अध्ययन चलाने लगी।
• एक भाई जिसकी उम्र सौ साल है और जिसकी आँखों की रौशनी चली गयी है, वृद्धाश्रम में रहता है। वह अकसर कहता है, “हमें राज की ज़रूरत है।” यह सुनकर वहाँ के मरीज़ और नर्स उससे सवाल करते हैं और भाई उन्हें बता पाते हैं कि राज आखिर है क्या। वहाँ काम करनेवाली एक स्त्री ने भाई से पूछा कि आप फिरदौस में क्या करेंगे। भाई ने जवाब दिया: “मैं दोबारा देख और चल सकूँगा और मैं अपनी व्हीलचेयर को जला दूँगा।” भाई की आँखों की रौशनी चली गयी है, इसलिए वे उस स्त्री से उन्हें पत्रिकाएँ पढ़कर सुनाने के लिए कहते हैं। जब भाई की बेटी उनसे मिलने आयी, तो उस स्त्री ने उससे पत्रिकाएँ घर ले जाने की इजाज़त माँगी। एक नर्स ने भाई की बेटी से कहा, “हमारे वद्धाश्रम में चर्चा का एक नया विषय है: ‘हमें राज की ज़रूरत है।’”
• एक बहन रेस्तराँ में खाने का इंतज़ार कर रही थी। तभी उसने पास बैठे बुज़ुर्गों के एक समूह को राजनैतिक मामलों पर चर्चा करते सुना। एक आदमी कह रहा था कि सरकार हमारी समस्याओं को नहीं सुलझा सकती। बहन ने खुद से कहा, ‘यही मौका है।’ उसने मन-ही-मन एक छोटी-सी प्रार्थना की और उन लोगों के पास गयी। अपना परिचय देने के बाद उसने उन्हें परमेश्वर के राज के बारे में बताया, एक ऐसी सरकार जो इंसानों की समस्याओं को सुलझाएगी। फिर उसने उन्हें एक ब्रोशर दिया। उसी दरमियान रेस्तराँ का मैनेजर वहाँ आ गया। बहन ने सोचा कि शायद वह उससे वहाँ से चले जाने के लिए कहेगा। मगर ऐसा नहीं हुआ, बल्कि उसने कहा कि वह उनकी बातें सुन रहा था और उसे भी एक ब्रोशर चाहिए। वहाँ काम करनेवाली एक स्त्री भी उनकी बातें सुन रही थी, वह रोते-रोते बहन के पास आयी। वह पहले कभी बाइबल अध्ययन करती थी और अब फिर से बाइबल अध्ययन करना चाहती थी।