गीत 10
“मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज”
1. इल्-ज़ाम ल-गा-ते हैं झू-ठे
बद-नाम य-हो-वा को कर-ते
को-ई क-हे वो निर्-द-यी
मू-रख क-हे, ‘ई-श्वर नहीं’
आ-रोप सा-रे मि-टा-ए कौन?
उस-की म-हि-मा क-रे कौन?
‘प्र-भु, य-हाँ हूँ! भेज मु-झे।
गुन गा-ऊँ-गा स-दा ते-रे।’
(कोरस)
‘इस-से ब-ड़ा मान मि-ले क-हाँ?
भेज मु-झे, मैं हूँ य-हाँ!’
2. आज ता-ना दे-ते लोग ऐ-सा
‘य-हो-वा पर-वाह ना कर-ता।’
पत्-थ-रों को को-ई पू-जे,
भक्-ति को-ई देश की क-रे।
अब दुष्-टों को चि-ता-ए कौन?
युद्ध याह का ऐ-लाँ क-रे कौन?
‘प्र-भु, य-हाँ हूँ! भेज मु-झे।
ऐ-लाँ क-रूँ बि-ना ड-रे।’
(कोरस)
‘इस-से ब-ड़ा मान मि-ले क-हाँ?
भेज मु-झे, मैं हूँ य-हाँ!’
3. आज धर्-मी लोग आ-हें भर-ते
देख के बु-रा-ई को बढ़-ते
सच्-चा-ई के प्या-से हैं वो
त-रस-ते मन की शां-ति को
दे-गा इन्-हें दि-ला-सा कौन?
नेक राह इन्-हें दि-खा-ए कौन?
‘प्र-भु, य-हाँ हूँ! भेज मु-झे।
सि-खा-ऊँ धी-रज से उन्-हें।’
(कोरस)
‘इस-से ब-ड़ा मान मि-ले क-हाँ?
भेज मु-झे, मैं हूँ य-हाँ!’