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  • राज के सेवकों का प्रशिक्षण

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  • राज के सेवकों का प्रशिक्षण
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अध्याय 17

राज के सेवकों का प्रशिक्षण

अध्याय किस बारे में है

परमेश्‍वर के संगठन के स्कूल कैसे राज के सेवकों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के काबिल बनाते हैं

1-3. (क) यीशु ने क्या इंतज़ाम किया ताकि प्रचार काम और भी बड़े पैमाने पर हो? (ख) इससे क्या सवाल उठते हैं?

यीशु ने दो साल तक पूरे गलील में प्रचार किया था। (मत्ती 9:35-38 पढ़िए।) उसने कई शहरों और गाँवों का दौरा किया और वहाँ परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी का प्रचार किया और सभा-घरों में सिखाया। वह जहाँ भी प्रचार करता था लोगों की भीड़ उसके पास जमा हो जाती थी। यीशु ने कहा, “कटाई के लिए फसल बहुत है।” इस काम के लिए और मज़दूरों की ज़रूरत थी।

2 यीशु ने ऐसा इंतज़ाम किया कि प्रचार काम बड़े पैमाने पर किया जाए। उसने अपने 12 प्रेषितों को भी “परमेश्‍वर के राज का प्रचार करने” भेजा। (लूका 9:1, 2) प्रेषितों के मन में कुछ सवाल रहे होंगे कि उन्हें यह काम कैसे करना चाहिए। इसलिए प्रचार में भेजने से पहले यीशु ने उन्हें प्रशिक्षण दिया, ठीक जैसे उसके पिता यहोवा ने उसे प्रशिक्षित किया था।

3 इससे हमारे मन में कई सवाल उठते हैं। यीशु को अपने पिता से कैसा प्रशिक्षण मिला था? यीशु ने अपने प्रेषितों को क्या प्रशिक्षण दिया? क्या आज राजा मसीह अपने चेलों को प्रचार करने का प्रशिक्षण दे रहा है? अगर हाँ, तो कैसे?

‘जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं बताता हूँ’

4. यीशु को उसके पिता ने कब और कहाँ सिखाया?

4 यीशु ने साफ बताया था कि उसे उसके पिता ने सिखाया था। अपनी सेवा के दौरान उसने कहा, “जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ।” (यूह. 8:28) यहोवा ने यीशु को कब और कैसे सिखाया था? ऐसा मालूम पड़ता है कि परमेश्‍वर ने अपने इस पहलौठे बेटे की सृष्टि करने के फौरन बाद उसे सिखाना शुरू किया था। (कुलु. 1:15) यीशु अपने पिता के साथ स्वर्ग में अनगिनत युगों से रहा है और इस दौरान वह अपने “महान उपदेशक” की बातें ध्यान से सुनता रहा और उसके काम गौर से देखता रहा। (यशा. 30:20) इस तरह उसने अपने पिता के गुणों, कामों और मकसद के बारे में इतनी बढ़िया शिक्षा पायी जितनी किसी और ने नहीं पायी है।

5. पिता ने बेटे को धरती पर सेवा करने के बारे में क्या सिखाया?

5 समय आने पर यहोवा ने अपने बेटे को उस सेवा के बारे में सिखाया जो उसे धरती पर करनी थी। एक भविष्यवाणी पर ध्यान दीजिए जिसमें बताया गया है कि महान उपदेशक यहोवा का अपने पहलौठे बेटे के साथ कैसा रिश्‍ता था। (यशायाह 50:4, 5 पढ़िए।) भविष्यवाणी कहती है कि यहोवा अपने बेटे को “हर सुबह उठाता” था, जैसे एक शिक्षक अपने विद्यार्थी को हर सुबह तड़के जगाता है ताकि वह उसे सिखाए। बाइबल की समझ देनेवाली एक किताब कहती है, ‘जैसे एक शिक्षक विद्यार्थी को स्कूल में सिखाता है, उसी तरह स्वर्ग में यहोवा ने उसे सिखाया कि उसे क्या प्रचार करना चाहिए और कैसे।’ यहोवा ने अपने बेटे को सिखाया कि उसे ‘क्या-क्या बताना है और क्या-क्या बोलना है।’ (यूह. 12:49) पिता ने उसे यह भी बताया कि उसे दूसरों को कैसे सिखाना चाहिए।a यीशु ने अपने पिता से मिले प्रशिक्षण का अच्छा इस्तेमाल किया। उसने न सिर्फ अपनी  सेवा पूरी की बल्कि अपने चेलों को भी उनकी  सेवा पूरी करने का प्रशिक्षण दिया।

6, 7. (क) यीशु ने अपने प्रेषितों को कैसा प्रशिक्षण दिया? (ख) वे किस काम के काबिल बने? (ग) हमारे दिनों में यीशु ने अपने चेलों को कैसा प्रशिक्षण दिया है?

6 यीशु ने अपने प्रेषितों को कैसा प्रशिक्षण दिया? जैसे मत्ती अध्याय 10 में बताया गया है, उसने प्रचार के बारे में उन्हें कुछ खास हिदायतें दीं। जैसे, उन्हें कहाँ प्रचार करना है (आयत 5, 6), क्या संदेश सुनाना है (आयत 7), यहोवा पर क्यों भरोसा रखना है (आयत 9, 10), घरों पर लोगों से कैसे बात करनी है (आयत 11-13), अगर कोई संदेश ठुकराए तो क्या करना है (आयत 14, 15) और सताए जाने पर क्या करना है (आयत 16-23)।b यीशु ने अपने प्रेषितों को इतना बढ़िया प्रशिक्षण दिया कि वे पहली सदी में प्रचार काम में अगुवाई करने के काबिल बने।

7 हमारे दिनों के बारे में क्या कहा जा सकता है? परमेश्‍वर के राज के राजा यीशु ने अपने चेलों को बहुत ज़रूरी काम सौंपा है। वह है, ‘राज की खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार करना ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए।’ (मत्ती 24:14) क्या राजा ने हमें यह काम करने के लिए प्रशिक्षण दिया है? बेशक दिया है! स्वर्ग से राजा ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके चेलों को सिखाया जाए कि वे लोगों को कैसे प्रचार करें और मंडली में कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ कैसे निभाएँ।

सेवकों को प्रचार करने का प्रशिक्षण

8, 9. (क) परमेश्‍वर की सेवा स्कूल का खास मकसद क्या था? (ख) हफ्ते के बीच होनेवाली सभा ने प्रचार करने का आपका हुनर कैसे बढ़ाया है?

8 यहोवा का संगठन लंबे अरसे से सम्मेलनों, अधिवेशनों और सेवा सभा जैसी सभाओं के ज़रिए अपने लोगों को प्रचार करना सिखाता रहा है। मगर 1940 के बाद से मुख्यालय में अगुवाई करनेवाले भाइयों ने कई तरह के स्कूलों का इंतज़ाम करना शुरू किया ताकि इस काम के लिए अच्छा प्रशिक्षण दिया जाए।

9 परमेश्‍वर की सेवा स्कूल: जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, यह स्कूल 1943 में शुरू हुआ था। क्या इस स्कूल का मकसद सिर्फ यह था कि विद्यार्थियों को सभाओं में बढ़िया भाषण देना सिखाया जाए? जी नहीं। इसका खास मकसद था, परमेश्‍वर के लोगों को बोलने के वरदान का अच्छा इस्तेमाल करना सिखाया जाए ताकि वे प्रचार में यहोवा की तारीफ कर सकें। (भज. 150:6) स्कूल में जितने भी भाई-बहन दाखिल हुए उन्हें राज का प्रचार करने में और भी काबिल बनाया गया। आज यह प्रशिक्षण हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में दिया जाता है।

10, 11. (क) गिलियड स्कूल के लिए अब किन्हें बुलाया जाता है? (ख) इस स्कूल का मकसद क्या है?

10 वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड: जो स्कूल आज वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड कहलाता है वह 1 फरवरी, 1943 की सोमवार को शुरू हुआ था। शुरू में यह स्कूल इस तरह तैयार किया गया था कि पायनियरों और दूसरे पूरे समय के सेवकों को मिशनरी सेवा करने का प्रशिक्षण दिया जाए। मगर अक्टूबर 2011 से इस स्कूल के लिए सिर्फ ऐसे लोगों को बुलाया जाने लगा जो पहले ही किसी तरह की खास पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। जैसे खास पायनियर, सफरी निगरान और उनकी पत्नियाँ, बेथेल के सदस्य और पूरे समय प्रचार करनेवाले ऐसे मिशनरी जो कभी गिलियड स्कूल नहीं गए हैं।

11 गिलियड स्कूल का मकसद क्या है? इस स्कूल में लंबे समय से शिक्षक रहे एक भाई ने बताया, “परमेश्‍वर के वचन के गहरे अध्ययन से विद्यार्थियों का विश्‍वास मज़बूत करना और परमेश्‍वर को भानेवाले गुण बढ़ाने में उनकी मदद करना ताकि अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते वक्‍त वे आनेवाली मुश्‍किलों का सामना कर सकें। इसका एक और बुनियादी मकसद है, विद्यार्थियों में प्रचार काम के लिए और भी ज़बरदस्त इच्छा पैदा करना।”​—इफि. 4:11.

12, 13. गिलियड स्कूल से पूरी दुनिया में प्रचार काम पर कैसा असर हुआ? एक मिसाल दीजिए।

12 गिलियड स्कूल से पूरी दुनिया में होनेवाले प्रचार काम पर कैसा असर हुआ है? सन्‌ 1943 से 8,500 से ज़्यादा भाई-बहनों ने इस स्कूल से प्रशिक्षण पाया हैc और उन्होंने 170 से ज़्यादा देशों में मिशनरी सेवा की है। इन मिशनरियों ने अपने प्रशिक्षण का अच्छा इस्तेमाल किया है। उन्होंने प्रचार काम जोश से करने में अच्छी मिसाल रखी है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाया है। कई मिशनरियों ने ऐसी जगहों में प्रचार काम को आगे बढ़ाया है जहाँ प्रचारक बहुत कम थे।

13 जापान की मिसाल लीजिए। वहाँ दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान व्यवस्थित ढंग से प्रचार करना लगभग बंद हो चुका था। अगस्त 1949 तक प्रचारकों की गिनती 10 से कम थी। लेकिन उस साल के खत्म होते-होते, वहाँ 13 गिलियड मिशनरी ज़ोर-शोर से प्रचार करने लगे। बाद में और भी कई मिशनरियों को भेजा गया। शुरू में मिशनरियों ने सिर्फ बड़े-बड़े शहरों में प्रचार किया। बाद में वे दूसरे शहरों में भी गए। उन्होंने अपने बाइबल विद्यार्थियों को और दूसरे भाई-बहनों को पायनियर सेवा करने का बढ़ावा दिया। मिशनरियों के जोश और उनकी मेहनत का बढ़िया नतीजा निकला। आज जापान में 2,16,000 से ज़्यादा प्रचारक हैं और उनमें से तकरीबन 40 प्रतिशत जन पायनियर हैं!d

14. परमेश्‍वर के संगठन के स्कूल किस बात का ज़बरदस्त सबूत हैं? (यह बक्स भी देखें: “राज के सेवकों को प्रशिक्षण देनेवाले स्कूल।”)

14 संगठन के दूसरे स्कूल: ये हैं पायनियर सेवा स्कूल, मसीही जोड़ों के लिए बाइबल स्कूल और अविवाहित भाइयों के लिए बाइबल स्कूल। इन स्कूलों में हाज़िर होनेवाले भाई-बहनों को यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने में मदद मिली है और जोश से प्रचार काम करने का बढ़ावा मिला है।e ये सारे स्कूल इस बात का ज़बरदस्त सबूत हैं कि हमारा राजा अपने चेलों को इस काबिल बना रहा है कि वे अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करें।​—2 तीमु. 4:5.

भाइयों को खास ज़िम्मेदारियों के लिए प्रशिक्षण

15. ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले भाई किस बात में यीशु की मिसाल पर चलना चाहते हैं?

15 यशायाह की वह भविष्यवाणी याद कीजिए जो बताती है कि यीशु को परमेश्‍वर से कैसा प्रशिक्षण मिला। स्वर्ग में यीशु ने सीखा कि “सही बात कहकर थके-माँदों को जवाब” कैसे देना चाहिए। (यशा. 50:4) धरती पर यीशु ने उस शिक्षा को लागू किया। उसने ‘कड़ी मज़दूरी करनेवालों और बोझ से दबे लोगों’ को ताज़गी दी। (मत्ती 11:28-30) यीशु की तरह, ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले भाई अपने भाई-बहनों को ताज़गी देना चाहते हैं। इसलिए इन काबिल भाइयों के लिए तरह-तरह के स्कूल शुरू किए गए ताकि वे अपने भाई-बहनों की और भी अच्छी तरह सेवा कर सकें।

16, 17. राज-सेवा स्कूल का मकसद क्या है? (फुटनोट भी देखें।)

16 राज-सेवा स्कूल: इस स्कूल की पहली क्लास 9 मार्च, 1959 को न्यू यॉर्क के साउथ लैंसिंग शहर में रखी गयी थी। यह एक महीने का कोर्स था और इसके लिए सफरी निगरानों और मंडली सेवकों को बुलाया गया। (मंडली सेवक आज प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहलाता है।) बाद में इस कोर्स का अनुवाद अँग्रेज़ी से दूसरी भाषाओं में किया गया और वक्‍त के गुज़रते पूरी दुनिया के भाइयों को प्रशिक्षण दिया गया।f

1970 में भाई लॉयड बैरी जापान में राज-सेवा स्कूल में सिखा रहे हैं

1970 में भाई लॉयड बैरी जापान में राज-सेवा स्कूल में सिखा रहे हैं

17 राज-सेवा स्कूल का मकसद क्या है? इसका जवाब 1962 यहोवा के साक्षियों की सालाना किताब  (अँग्रेज़ी) में बताया गया: “आज की दुनिया में हर कोई व्यस्त है। ऐसे में यहोवा के साक्षियों की मंडली की निगरानी करनेवाले हर भाई को चाहिए कि वह अपने जीवन का हर काम अच्छे प्रबंध के अनुसार करे। तभी वह मंडली के सभी लोगों पर पूरा-पूरा ध्यान दे पाएगा और उनके लिए एक आशीष ठहरेगा। मगर मंडली के काम करने के लिए उसे अपने परिवार को अनदेखा नहीं करना चाहिए। उसे सही सोच बनाए रखनी चाहिए। पूरी दुनिया के मंडली सेवकों को क्या ही सुअवसर मिला है कि वे राज-सेवा स्कूल से प्रशिक्षण पा सकते हैं ताकि निगरानी करने की ज़िम्मेदारियाँ ठीक उसी तरह निभा सकें जैसे बाइबल में बताया गया है!”​—1 तीमु. 3:1-7; तीतु. 1:5-9.

18. राज-सेवा स्कूल से कैसे परमेश्‍वर के सभी लोगों को फायदा होता है?

18 राज-सेवा स्कूल से परमेश्‍वर के सभी लोगों को फायदा होता है। वह कैसे? जब प्राचीन और सहायक सेवक स्कूल में सीखी बातों को लागू करते हैं तो वे यीशु की तरह अपने भाई-बहनों को ताज़गी देते हैं। जब कोई प्राचीन या सहायक सेवक आपसे कोई अच्छी बात कहता है, आपकी बात सुनता है या आपसे मिलकर आपका हौसला बढ़ाता है, तो क्या आपका दिल एहसान से नहीं भर जाता? (1 थिस्स. 5:11) ऐसे काबिल भाई अपनी मंडलियों के लिए वाकई एक आशीष हैं!

19. (क) शिक्षा-समिति की निगरानी में और कौन-कौन-से स्कूल चलाए जाते हैं? (ख) इन स्कूलों में क्या सिखाया जाता है?

19 संगठन के दूसरे स्कूल: शासी निकाय की शिक्षा-समिति की निगरानी में और भी कई स्कूल चलाए जाते हैं। इन स्कूलों में ऐसे भाइयों को प्रशिक्षण दिया जाता है जिन पर बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हैं। ये स्कूल मंडली के प्राचीनों, सफरी निगरानों और शाखा-समिति के सदस्यों को अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाना सिखाते हैं। इन स्कूलों में बाइबल पर आधारित कोर्स में सिखाया जाता है कि वे यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता कैसे मज़बूत बनाए रख सकते हैं और यहोवा ने उन्हें जो अनमोल भेड़ें सौंपी हैं, उनके साथ व्यवहार करते वक्‍त बाइबल के सिद्धांतों को कैसे लागू कर सकते हैं।​—1 पत. 5:1-3.

मलावी में मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल की पहली क्लास

2007 में मलावी में मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल की पहली क्लास

20. (क) यीशु क्यों कह सका कि हम सब “यहोवा के सिखाए हुए” लोग हैं? (ख) आपने क्या करने की ठान ली है?

20 इन सारी बातों से साफ है कि राजा मसीह ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके चेलों को अच्छा प्रशिक्षण दिया जाए। यह सारा प्रशिक्षण यहोवा से मिलता है। यहोवा ने अपने बेटे को प्रशिक्षण दिया और बेटे ने अपने चेलों को प्रशिक्षण दिया। इसलिए यीशु कह सका कि हम सब “यहोवा के सिखाए हुए” लोग हैं। (यूह. 6:45; यशा. 54:13) आइए ठान लें कि राजा ने हमारे लिए जिस प्रशिक्षण का इंतज़ाम किया है उसका पूरा-पूरा फायदा उठाएँगे। हम हमेशा याद रखें कि इस पूरे प्रशिक्षण का खास मकसद यह है कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत रखें और अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करें।

a हम कैसे जानते हैं कि पिता ने अपने बेटे को प्रशिक्षण दिया कि उसे दूसरों को कैसे  सिखाना चाहिए? इस बात पर ध्यान दीजिए: यीशु ने सिखाते वक्‍त कई मिसालें बतायीं। इससे एक भविष्यवाणी पूरी हुई जो उसके जन्म से सदियों पहले लिखी गयी थी। (भज. 78:2; मत्ती 13:34, 35) ज़ाहिर है कि उस भविष्यवाणी को लिखानेवाले यहोवा ने बहुत पहले तय किया था कि उसका बेटा मिसालें देकर सिखाएगा।​—2 तीमु. 3:16, 17.

b कुछ महीनों बाद यीशु ने प्रचार के लिए ‘70 और चेले चुने और उन्हें दो-दो की जोड़ियों में भेजा।’ यीशु ने उन्हें भी प्रशिक्षण दिया।​—लूका 10:1-16.

c कुछ विद्यार्थी एक-से-ज़्यादा बार गिलियड स्कूल गए हैं।

d गिलियड से प्रशिक्षण पाए मिशनरियों ने पूरी दुनिया में प्रचार काम को कैसे आगे बढ़ाया, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहोवा के साक्षी​—परमेश्‍वर के राज के प्रचारक  (अँग्रेज़ी) किताब का अध्याय 23 देखें।

e आखिरी दो स्कूलों के बदले अब राज प्रचारकों के लिए स्कूल चलाया जाता है।

f अब सभी प्राचीन राज-सेवा स्कूल से फायदा पाते हैं। यह स्कूल कुछ सालों के फासले में रखा जाता है और अलग-अलग समय-अवधि का होता है। सन्‌ 1984 से सहायक सेवक भी इस स्कूल से प्रशिक्षण पा रहे हैं।

परमेश्‍वर का राज आपके लिए कितना असली है?

  • यीशु को अपने पिता से क्या प्रशिक्षण मिला?

  • राजा ने अपने चेलों को प्रचार काम के लिए कैसे प्रशिक्षित किया है?

  • काबिल भाइयों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए कैसे प्रशिक्षण दिया गया है?

  • राजा से मिलनेवाले प्रशिक्षण के लिए आप अपनी कदरदानी कैसे दिखा सकते हैं?

राज के सेवकों को प्रशिक्षण देनेवाले स्कूल

हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा

मकसद: प्रचारकों को खुशखबरी सुनाने और सिखाने के काम में कुशल बनने के लिए प्रशिक्षण देना।

समय-अवधि: लगातार चलनेवाला।

जगह: आपका राज-घर।

दाखिला: वे सभी दाखिला ले सकते हैं जो नियमित तौर पर मंडली के साथ संगति करते हैं, बाइबल की शिक्षाओं से सहमत हैं और मसीही सिद्धांतों के मुताबिक जीते हैं। इसमें दाखिला लेने के लिए ज़िंदगी और सेवा सभा निगरान से बात कीजिए।

फायदे: हफ्ते के बीच होनेवाली यह सभा हमें खोजबीन करना और जानकारी को सिलसिलेवार ढंग से पेश करना सिखाती है। हम यह भी सीखते हैं कि हम सिर्फ अपने बारे में सोचने के बजाय दूसरों की बात सुनें और परमेश्‍वर को जानने में उनकी मदद करें।

आर्नी, जो लंबे समय से सफरी निगरान रहा है, कहता है: “मैं बचपन से हकलाता था और दूसरों से आँख मिलाकर बात नहीं कर पाता था। इस  [सभा ] ने मुझे अपनी घबराहट दूर करने में मदद दी है। इस प्रशिक्षण से मैंने कुछ ऐसे तरीके सीखे जिससे मुझे ठीक से साँस लेने और किसी बात पर अच्छे से ध्यान देने में मदद मिली है। मैं परमेश्‍वर का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि मैं मंडली में और प्रचार में उसकी महिमा कर पाता हूँ।”

परमेश्‍वर की सेवा स्कूल में एक नन्हा प्रचारक बाइबल पढ़ रहा है

मंडली के प्राचीनों के लिए स्कूलg

मकसद: प्राचीनों को सिखाना कि वे कैसे यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत कर सकते हैं और मंडली की ज़िम्मेदारियाँ निभा सकते हैं।

समय-अवधि: पाँच दिन।

जगह: शाखा दफ्तर तय करता है। आम तौर पर पास के राज-घर या सम्मेलन भवन में।

दाखिला: शाखा दफ्तर प्राचीनों को न्यौता देता है।

फायदे: ध्यान दीजिए कि अमरीकी राज्य न्यू यॉर्क के पैटरसन में रखी गयी 92वीं क्लास के कुछ भाइयों का क्या कहना है:

“इस स्कूल से मुझे बहुत फायदा हुआ है। मुझे खुद की जाँच करने और यह समझने में मदद मिली है कि मैं यहोवा की भेड़ों की देखभाल कैसे कर सकता हूँ।”

“मैं सीखी बातों को ज़िंदगी-भर याद रखूँगा।”

पायनियर सेवा स्कूल

मकसद: पायनियरों को अपनी सेवा ‘अच्छी तरह पूरी करने’ के लिए प्रशिक्षण देना।​—2 तीमु. 4:5.

समय-अवधि: छ: दिन।

जगह: शाखा दफ्तर तय करता है। आम तौर पर पास के राज-घर में।

दाखिला: जो कम-से-कम एक साल से पायनियर सेवा कर रहे हैं उन्हें खुद-ब-खुद दाखिला मिल जाता है। उनके सर्किट निगरान उन्हें इस बारे में इत्तला कर देते हैं। बरसों से पायनियर सेवा करनेवाले जिन भाई-बहनों को इस स्कूल में गए पाँच साल हो गए हैं, उन्हें दोबारा स्कूल के लिए बुलाया जा सकता है।

फायदे: लिली कहती है, “इस स्कूल ने मुझे अपनी सेवा और ज़िंदगी में आनेवाली चुनौतियों का सामना करना सिखाया है। जिस तरह से मैं अध्ययन करती हूँ, सिखाती हूँ और बाइबल का इस्तेमाल करती हूँ, उसमें बहुत फर्क आया है। मैं दूसरों की मदद करने, प्राचीनों को सहयोग देने और मंडली की बढ़ोतरी में अपना योगदान देने के लिए पहले से ज़्यादा तैयार हूँ।”

ब्रेंडा, जो दो बार इस स्कूल में हाज़िर हुई, कहती है: “इसकी बदौलत मैं यहोवा की सेवा से जुड़ा हर काम तन-मन से कर पाती हूँ, अपने ज़मीर को और अच्छी तरह ढाल पायी हूँ और दूसरों की मदद करने पर ध्यान दे पायी हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा बहुत दरियादिल है!”

बेथेल के नए सदस्यों के लिए स्कूल

मकसद: नए सदस्यों को अपनी बेथेल सेवा में कामयाब होने में मदद देना।

समय-अवधि: चार दिन तक, हर दिन चार घंटे के लिए।

जगह: बेथेल।

दाखिला: बेथेल परिवार के स्थायी सदस्य और ऐसे स्वयंसेवक जिन्हें एक साल या उससे ज़्यादा समय के लिए बेथेल बुलाया जाता है। उन्हें खुद-ब-खुद दाखिला मिल जाता है।

फायदे: डमीट्रीअस, जो 1980 के दशक में इस स्कूल में गया था, कहता है: “इस कोर्स ने मुझे अच्छी तरह अध्ययन करना सिखाया और लंबे समय तक बेथेल में सेवा करने के लिए तैयार किया। शिक्षकों के सिखाने के तरीकों, पढ़ाई के विषयों और अच्छी सलाहों से मेरा यकीन बढ़ गया कि यहोवा मेरी परवाह करता है और चाहता है कि मैं अपनी बेथेल सेवा में कामयाब हो जाऊँ।”

राज प्रचारकों के लिए स्कूलh

मकसद: पूरे समय के सेवकों को (शादीशुदा जोड़ों, अविवाहित भाइयों और अविवाहित बहनों को) यहोवा और उसके संगठन के निर्देश में ज़्यादा सेवा करने के लिए खास प्रशिक्षण देना। स्कूल से प्रशिक्षण पानेवाले ज़्यादातर लोगों को उनके अपने ही देश के ऐसे इलाकों में भेजा जाता है, जहाँ सेवकों की ज़्यादा ज़रूरत है। जिनकी उम्र 50 से कम है उन्हें अस्थायी खास पायनियर बनाकर दूर-दराज़ इलाकों में भेजा जा सकता है ताकि वे वहाँ प्रचार काम शुरू कर सकें।

समय-अवधि: दो महीने।

जगह: शाखा दफ्तर तय करता है। आम तौर पर राज-घर या सम्मेलन भवन में।

एक बहन प्रचार में

परमेश्‍वर के संगठन से मिलनेवाले प्रशिक्षण से भाई-बहन फायदा पाते हैं

दाखिला: पूरे समय के वे सेवक जिनकी उम्र 23 से 65 के बीच है, जिनकी सेहत अच्छी है, जिनके हालात उन्हें ज़्यादा ज़रूरतवाले इलाकों में जाकर सेवा करने की इजाज़त देते हैं और जो ऐसा रवैया रखते हैं, “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज!” (यशा. 6:8) इसके अलावा, ज़रूरी है कि उन सभी को पूरे समय की सेवा में लगातार दो साल बीत गए हों। शादीशुदा जोड़ों की शादी को कम-से-कम दो साल होने चाहिए। भाइयों को कम-से-कम दो साल से लगातार प्राचीन या सहायक सेवक होना चाहिए। अगर यह स्कूल आपकी शाखा के इलाके में चलाया जाता है, तो क्षेत्रीय अधिवेशन में ऐसे लोगों के लिए एक सभा रखी जाएगी जो इस स्कूल में जाना चाहते हैं और उन्हें इस बारे में जानकारी दी जाएगी।

फायदे: जिन्होंने अविवाहित भाइयों के लिए बाइबल स्कूल और मसीही जोड़ों के लिए बाइबल स्कूल से प्रशिक्षण पाया है, उन्होंने इन स्कूलों की बहुत तारीफ की है। सन्‌ 2013 में शासी निकाय ने दोनों स्कूलों को मिलाकर एक स्कूल बनाने की मंज़ूरी दे दी। इसे राज प्रचारकों के लिए स्कूल कहा जाता है। अब इस स्कूल से और भी कई वफादार पायनियरों को फायदा होगा, जिनमें अविवाहित बहनें भी शामिल हैं।

वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड

मकसद: स्कूल से ग्रैजुएट होनेवालों को सफरी निगरान या पूरे समय प्रचार करनेवाले मिशनरी या बेथेल सेवक ठहराया जाता है। वे स्कूल से सीखी बातों को अच्छी तरह लागू करके मंडलियों को और शाखा दफ्तरों को मज़बूत करने में मदद देते हैं।

समय-अवधि: पाँच महीने।

जगह: न्यू यॉर्क राज्य के पैटरसन में वॉचटावर शिक्षा केंद्र।

गिलियड स्कूल की एक क्लास में विद्यार्थी, शिक्षक की बात सुन रहे हैं

न्यू यॉर्क के पैटरसन में गिलियड क्लास

दाखिला: शादीशुदा जोड़े, अविवाहित भाई और अविवाहित बहनें जो पहले से किसी तरह की खास पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। जैसे, खास पायनियर, बेथेल सेवक, सफरी निगरान और उनकी पत्नियाँ या पूरे समय प्रचार करनेवाले ऐसे मिशनरी जो अब तक गिलियड नहीं गए हैं। यह ज़रूरी है कि उन्हें अँग्रेज़ी बोलना और लिखना आना चाहिए। शाखा-समिति उन्हें इस स्कूल के लिए अर्ज़ी भरने का न्यौता देती है।

फायदे: लाडे और उसकी पत्नी मॉनीक, जो अमरीका से हैं, कई सालों से विदेश में सेवा कर रहे हैं।

लाडे कहता है, “गिलियड स्कूल ने हमें तैयार किया कि हम दुनिया के किसी भी हिस्से में जाकर अपने प्यारे भाइयों के साथ काम में जुट जाएँ।”

मॉनीक कहती है, “परमेश्‍वर के वचन से सीखी बातों को लागू करने से मुझे अपनी सेवा में बहुत खुशी मिलती है। यह खुशी इस बात का सबूत है कि यहोवा मुझसे प्यार करता है।”

राज-सेवा स्कूल

मकसद: सफरी निगरानों, प्राचीनों और सहायक सेवकों को संगठन में मिलनेवाली ज़िम्मेदारियाँ सँभालने और निगरानी करने के लिए प्रशिक्षण देना। (प्रेषि. 20:28) इस स्कूल में मौजूदा हालात, दुनिया में बढ़ते चलन और मंडली की खास ज़रूरतों पर चर्चा की जाती है। यह स्कूल कुछ सालों के फासले में रखा जाता है। शासी निकाय तय करता है कि यह स्कूल कब होगा।

समय-अवधि: पिछले कुछ सालों में इसकी समय-अवधि अलग-अलग रही है।

जगह: आम तौर पर पास के राज-घर या सम्मेलन भवन में।

दाखिला: प्राचीनों और सहायक सेवकों को सर्किट निगरान इत्तला करता है। और सफरी निगरानों को शाखा दफ्तर न्यौता देता है।

फायदे: “हालाँकि इस स्कूल में कम समय में बहुत-सी जानकारी पर चर्चा की जाती है, लेकिन यह स्कूल यहोवा की सेवा में अपनी खुशी बरकरार रखने और दिलेर बनने के लिए प्राचीनों का हौसला बढ़ाता है। सभी प्राचीन, फिर चाहे वे नए हों या लंबे समय से प्राचीन रहे हों, सीखते हैं कि वे कैसे भेड़ों की अच्छी रखवाली कर सकते हैं और एक जैसे विचार रख सकते हैं।”​—क्विन।

“इस प्रशिक्षण ने अलग-अलग विषयों की तरफ हमारा ध्यान खींचा। हमें अपने विश्‍वास से जुड़ी बातों की बेहतर समझ मिली, खतरों से आगाह किया गया और भेड़ों की देखभाल करने की कारगर सलाह भी दी गयी।”​—माइकल।

सर्किट निगरानों और उनकी पत्नियों के लिए स्कूलi

मकसद: सर्किट निगरानों को प्रशिक्षण देना ताकि वे मंडलियों की अच्छी तरह सेवा कर सकें, “बोलने और सिखाने में कड़ी मेहनत” कर सकें और भेड़ों की देखभाल कर सकें जो उन्हें सौंपी गयी हैं।​—1 तीमु. 5:17; 1 पत. 5:2, 3.

समय-अवधि: एक महीना।

जगह: शाखा दफ्तर तय करता है।

दाखिला: शाखा दफ्तर सर्किट निगरानों और उनकी पत्नियों को न्यौता देता है।

फायदे: “संगठन पर यीशु के मुखियापन के लिए हमारी कदरदानी बढ़ गयी। हमने जाना कि जिन भाइयों की सेवा हम करते हैं, उनकी हिम्मत बढ़ाना और हरेक मंडली की एकता मज़बूत करना कितना ज़रूरी है। इस कोर्स ने हमारे दिलो-दिमाग में यह बात बिठा दी कि हालाँकि सफरी निगरान सुझाव देता है और ज़रूरत पड़ने पर सुधार के लिए सलाह भी देता है, मगर उसका खास मकसद है, भाइयों को एहसास दिलाना कि यहोवा उनसे प्यार करता है।”​—जोअल और कॉनी, अमरीका की पहली क्लास, 1999.

शाखा-समिति के सदस्यों और उनकी पत्नियों के लिए स्कूल

मकसद: शाखा-समिति के सदस्यों को बेथेल घरों की निगरानी करने, मंडलियों से जुड़ी सेवा के मामलों पर ध्यान देने और सर्किटों की अच्छी देखरेख करने का प्रशिक्षण देना।​—लूका 12:48ख.

समय-अवधि: दो महीने।

जगह: न्यू यॉर्क राज्य के पैटरसन में वॉचटावर शिक्षा केंद्र।

दाखिला: शाखा-समिति और देश-समिति के सदस्यों और उनकी पत्नियों को शासी निकाय की सेवा-समिति न्यौता देती है।

फायदे: 25वीं क्लास के लोअल और कारा, नाइजीरिया में सेवा करते हैं।

लोअल कहता है, “इस स्कूल से मुझे याद दिलाया गया कि अगर हम हर काम यहोवा के बताए तरीके से करेंगे, तो हम उसे खुश कर पाएँगे, फिर चाहे वह काम छोटा हो या बड़ा या उसे करने के लिए हमारे पास समय की कमी क्यों न हो।”

कारा बताती है कि उसने स्कूल से खासकर क्या सीखा: “अगर मैं दूसरों को एक बात आसानी से समझा नहीं पा रही हूँ, तो पहले मुझे खुद उस बारे में अच्छे से अध्ययन करना होगा।”

g यह स्कूल हर देश में नहीं चलाया जाता।

h यह स्कूल हर देश में नहीं चलाया जाता।

i यह स्कूल हर देश में नहीं चलाया जाता।

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