घाना में “प्रथागत विवाह”
घाना में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
विवाह—संसार-भर में लाखों लोग हर साल यह सम्बन्ध जोड़ते हैं। वे सामान्यतः अपने क्षेत्र की विवाह प्रथा के अनुसार ऐसा करते हैं।
घाना में सबसे सामान्य क़िस्म का विवाह वह है जिसे प्रथागत विवाह कहा जाता है। इसमें यह सम्मिलित होता है कि वर का परिवार वधु के परिवार को कन्या-मूल्य दे। कुछ स्थानों का उल्लेख करें तो प्रथागत विवाह अफ्रीका के अधिकतर भागों में और पपुआ न्यू गिनी, सॉलोमन द्वीप-समूह और हांग-कांग जैसे स्थानों में साथ ही उत्तर-पूर्वी कोलम्बिया और उत्तर-पश्चिमी वेनेज़वेला में ग्वाकीरो जनजातियों में चलता है।
कन्या-मूल्य देना बाइबल समय की प्रथा थी। (उत्पत्ति ३४:११, १२; १ शमूएल १८:२५) प्राचीन समय में और आज यह समझ है कि कन्या-मूल्य उन सेवाओं के अभाव के लिए जो लड़की करती थी और विवाह से पहले उसकी शिक्षा और देखभाल पर लगाए गए समय, शक्ति, और साधन के लिए माता-पिता को दी गयी भरपाई है।
माता-पिता की ज़िम्मेदारी
पुराने दिनों में, घाना में युवाओं के बीच डेटिंग और कोर्टशिप नहीं होती थी। माता-पिता समुदाय में विवाह-योग्य युवकों और युवतियों को बड़ी मेहनत से देख-परख कर अपने वयस्क बच्चों के लिए विवाह का सम्बन्ध तय करते थे। घाना में अभी भी कुछ माता-पिता ऐसा करते हैं।
लड़के के माता-पिता इस तरह की बातों पर ध्यान देते हैं जैसे कि लड़की का व्यक्तित्व; उसकी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा; अनुवांशिक रोग जो उस परिवार में चल रहा हो; और यहोवा के साक्षियों के मामले में उसकी आध्यात्मिकता। यदि संतुष्ट हो जाएँ तो माता-पिता औपचारिक रूप से लड़की के माता-पिता के पास जाते हैं और विवाह का प्रस्ताव रखते हैं।
अब लड़की के माता-पिता लड़के और उसके परिवार की पृष्ठभूमि की जाँच-पड़ताल करते हैं। ऊपर बतायी गयी बातों के साथ-साथ, वे एक पत्नी को संभालने की लड़के की योग्यता पर भी ध्यान देते हैं—क्या वह काम करता है या बेरोज़गार है? यदि लड़की के माता-पिता संतुष्ट हो जाते हैं तो वे इसके बारे में लड़के के माता-पिता को सूचना देते हैं, और लड़के और लड़की के राज़ी हो जाने के बाद, दोनों तरफ़ के माता-पिता साथ मिलकर विवाह की योजना बनाते हैं।
अभी भी कुछ माता-पिता अपने वयस्क बच्चों के लिए साथी ढूँढने का काम अपने ऊपर क्यों लेते हैं? भारत की एक स्त्री ने, जिसके माता-पिता ने उसका विवाह लगाया था, कहा: “एक युवा व्यक्ति इतना बड़ा फ़ैसला करने के योग्य कैसे हो सकता है? यह काम उन पर छोड़ना कहीं बेहतर है जिनकी उम्र और अनुभव उन्हें सबसे बुद्धिमानी का चुनाव करने के योग्य बनाती है।” उसकी टिप्पणी अनेक अफ्रीकियों का विचार भी दर्शाती है।
लेकिन, घाना में समय बदल रहा है। डेटिंग और कोर्टशिप की लोकप्रियता बढ़ रही है। कोर्टशिप के दौरान उपयुक्त समय पर, युगल माता-पिताओं को अपना इरादा बताते हैं। उनके माता-पिताओं के बीच बातचीत के बाद और माता-पिताओं के संतुष्ट हो जाने के बाद कि यह अच्छा जोड़ है, उनके परिवार औपचारिक रस्म का प्रबन्ध करते हैं जिसे घाना की अनेक भाषाओं में सामान्य रूप से द्वार पर, विवाह के द्वार पर खटखटाना कहा जाता है।
द्वार-खटखटाने की रस्म
युगल के माता-पिता परिवार के सदस्यों को मिलने की तारीख़ और उद्देश्य के बारे में बताते हैं। पद “परिवार के सदस्य” विस्तृत अफ्रीकी परिवार को सूचित करता है जिसमें युगल के चाचा-मामा, मौसी-बूआ, दादा-दादी, नाना-नानी सभी बाल-बच्चों सहित सम्मिलित हैं। निश्चित दिन पर, दोनों परिवारों के प्रतिनिधि रस्म के लिए इकट्ठा होते हैं। वर चाहे तो आए चाहे नहीं। एक ऐसी ही द्वार-खटखटाने की रस्म के समय जो हुआ, उसका यहाँ सारांश दिया गया है।
कन्या का प्रतिनिधि (कप्र): [वर के प्रतिनिधियों से बात करते हुए] हम आपके आने का कारण जानते हैं, लेकिन प्रथा माँग करती है कि हम फिर भी पूछें, आप यहाँ क्यों आए हैं?
वर का प्रतिनिधि (वप्र): हमारा पुत्र क्वाज़ी आपके घर के पास से गुज़र रहा था और उसने एक सुन्दर फूल देखा और वह उस फूल को तोड़ने के लिए आपकी अनुमति चाहता है।
कप्र: [अनजान होने का ढोंग करते हुए] इस घर में कोई फूल नहीं है। आप स्वयं इस बात की पुष्टि कर सकते हैं।
वप्र: हमारे पुत्र से भूल नहीं हुई है। हम फिर यह कहते हैं कि इस घर में एक इतना सुन्दर फूल है। उस फूल का नाम एफ़ी है।
कप्र: अच्छा तो आप फूल-जैसी लड़की की बात कर रहे हैं। हाँ, एफ़ी यहाँ रहती है।
वप्र: हम द्वार खटखटाकर अपने पुत्र क्वाज़ी के साथ विवाह के लिए एफ़ी का हाथ माँगना चाहते हैं।
लड़के का परिवार अब कुछ भेंट प्रस्तुत करता है, जैसे तरह-तरह के पेय और कुछ पैसा। जाति-जाति के हिसाब से, प्रस्तुत की गयी वस्तुएँ और उनकी मात्रा अलग-अलग होती है। यह रस्म कुछ-कुछ पाश्चात्य-शैली की सगाई के समान होती है, और कुछ मामलों में सगाई की अंगूठी तय की जाती है।
कन्या का प्रतिनिधि अब सब देखनेवालों के सामने उससे पूछता है कि क्या लायी गयी वस्तुओं को स्वीकार किया जाना चाहिए। जब वह हामी भरती है, तब सभी उपस्थित जन इसके चश्मदीद गवाह हैं कि वह विवाह करने के लिए तैयार है। कन्या-मूल्य और विवाह की क़ीमत देने के लिए ऐसी तारीख़ चुनी जाती है जो दोनों परिवारों के लिए ठीक बैठे। रस्म की समाप्ति में नाश्ता-पानी होता है।
विवाह की रस्म
कन्या-मूल्य और विवाह की क़ीमत देने के लिए जो लोग लड़की के घर या एक चुने हुए प्रतिनिधि के घर इकट्ठा होते हैं उनकी संख्या अकसर द्वार खटखटाने की रस्म में उपस्थित लोगों से अधिक होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब कई मित्र भी उपस्थित होते हैं।
ख़ुशी का माहौल होता है। अविवाहित युवक और युवतियाँ यह देखने के लिए उत्सुक होते हैं कि कन्या के लिए क्या लाया गया है। लेकिन ख़ुशी के माहौल में तनाव आ जाता है जब कन्या का परिवार शिक़ायत करता है कि कन्या-मूल्य की सभी वस्तुएँ नहीं आयी हैं। उपस्थित लोगों में से कुछ अपनी साँस थाम लेते हैं जब लगता है कि कन्या का परिवार टस से मस नहीं हो रहा। वर का प्रवक्ता कुशलता से समझा-बुझाकर कन्या के परिवार को मना लेता है कि थोड़ा तरस खाएँ। तनाव हट जाता है जब कन्या का परिवार मान जाता है। माहौल फिर बदल जाता है। अब हँसी-ख़ुशी होती है, और हलका नाश्ता परोसा जाता है।
इसके बाद, कन्या का प्रवक्ता सबको शान्त होने के लिए कहता है और सबका स्वागत करता है। वह वर के प्रतिनिधियों से उनके अभिप्राय के बारे में पूछता है। वर का प्रवक्ता उनके आने का कारण बताता है, और उपस्थित जनों को याद दिलाता है कि द्वार पहले ही खटखटाया जा चुका है और अन्दर आने की अनुमति मिल गयी है।
तब दोनों परिवार के प्रवक्ता उपस्थित जनों से परिवार के निकट सदस्यों का परिचय कराते हैं, जिसमें वह भी होता है जो कन्यादान कर रहा है साथ ही वह जो लड़के के लिए खड़ा हो रहा है। रस्म आगे बढ़ती है।
कप्र: [वर के प्रतिनिधियों से बात करते हुए] कृपया विवाह की वे वस्तुएँ सामने लाइए जो हमने माँगी थीं।
कन्या का प्रवक्ता कन्या-मूल्य की वस्तुओं की सूची देता है ताकि सब पुष्टि कर सकें कि वे आ गयी हैं। यदि वर के प्रतिनिधियों को लगता है कि कन्या के परिवार ने अपनी माँग बढ़ा दी है, तो वे विवाह के दिन से पहले अकेले में मामला सुलझा लेते हैं। लेकिन, रस्म के समय वर का परिवार किसी अतिरिक्त माँग की कटौती के लिए सौदेबाज़ी करने को तैयार होकर आता है यदि कन्या के परिवार के कुछ लोग अड़ जाते हैं। व्यक्ति जहाँ भी रहता हो, शुरू में जो कन्या-मूल्य तय किया गया है—चाहे अधिक हो या कम—वह पूरा चुकाया जाना है।
कुछ परिवार ऐसी वस्तुएँ जैसे कि गले के हार, बालियाँ, और स्त्रियों की अन्य वस्तुएँ तय करते हैं। उत्तरी घाना में, कन्या-मूल्य में नमक, कोला फलियाँ, गिनी मुर्गी, भेड़, और गाय-भैंस भी हो सकती हैं। कन्या-मूल्य में लगभग हमेशा ही नगद रक़म भी होती है।
जब सौदेबाज़ी चल रही होती है, कन्या उपस्थित नहीं होती परन्तु पास ही से देख रही होती है। वर चाहे तो आए चाहे नहीं। अतः, एक व्यक्ति जो दूर रहता है अपने माता-पिता को यह अधिकार दे सकता है कि उसकी ओर से विवाह की बातचीत कर लें। लेकिन, यहाँ वर्णित अवसर पर, वर उपस्थित है। अब एक माँग करने की उसके परिवार की बारी है।
वप्र: हमसे जो माँगा गया था हमने वह सब पूरा कर दिया है, लेकिन हमने अपनी बहू को नहीं देखा है।
विवाह की रस्म पूरी तरह से गंभीर बात नहीं है; यह कुछ मौज-मस्ती करने का भी अवसर है। अब कन्या को देखने के लिए लड़के के परिवार की माँग पर लड़की का परिवार यह प्रतिक्रिया दिखाता है।
कप्र: काश कन्या यहाँ होती। दुःख की बात है कि वह विदेश गयी हुई है और हमारे पास पासपोर्ट या वीज़ा नहीं है कि जाकर उसे वापस ले आएँ।
सब जानते हैं उसका क्या अर्थ है। तुरन्त, वर का परिवार कुछ पैसे देता है—जितनी भी वर की हैसियत है—चुटकी बजाते ही! झूठमूठ के पासपोर्ट और वीज़ा तैयार हो जाते हैं। और कन्या अपनी यात्रा से लौट आयी है!
मज़ा बढ़ाने के लिए, कुछ जातियों में यह प्रबन्ध किया जाता है कि कन्या की कुछ सहेलियाँ उसका रूप धरकर सामने आएँ। जमा भीड़ झूठे रूपवाली हर लड़की को पूरी तरह से अस्वीकार कर देती है, जब तक कि तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सचमुच की दुल्हन सामने नहीं आती। तब उसे उसका प्रवक्ता बुलाता है कि कन्या-मूल्य की विभिन्न वस्तुओं को एक नज़र देख ले। उससे पूछा जाता है कि वर जो लाया है उसे स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं। सन्नाटा छा जाता है और सभी उत्सुकता से उसके उत्तर का इंतज़ार करते हैं। कुछ लड़कियाँ शर्मीली होती हैं और कुछ तेज़, लेकिन उत्तर ज़्यादातर हाँ ही होता है, जिसके बाद ज़ोर से तालियाँ बजती हैं।
यदि वर उपस्थित है, तो कन्या का परिवार उसे जानने की माँग करता है। मौज-मस्ती ज़ोर-शोर से चलती रहती है यदि इसका प्रबन्ध किया गया है कि उसका एक मित्र उसका रूप धरकर सामने आए। सीना तानकर, उसका मित्र खड़ा होता है, लेकिन तुरन्त शोर मचाकर उसे बैठा दिया जाता है।
कन्या के माता-पिता अपने दामाद को देखने की माँग करते हैं। अब ख़ुशी की मुस्कान बिखेरता हुआ, सचमुच का वर खड़ा होता है। कन्या का परिवार उसे अनुमति देता है कि अपने पति के पास जाए, जो उसकी उँगली में अंगूठी पहनाता है यदि कन्या-मूल्य में अंगूठी भी तय की गयी है। अंगूठी पश्चिम की उपज है। बदले में, वह भी लड़के की उँगली में अंगूठी पहनाती है। माहौल बधाइयों और ख़ुशी से भर जाता है। सुविधा और किफ़ायत के लिए, कुछ लोग अब द्वार-खटखटाने की रस्म और विवाह को एक ही दिन रख लेते हैं।
दोनों परिवारों के अनुभवी सदस्य और दूसरे अब नव-विवाहितों को सलाह देते हैं कि कैसे वे अपने विवाह को सफल बना सकते हैं जब तक कि मृत्यु उन्हें अलग न कर दे। हँसी-ख़ुशी से दिन समाप्त करने के लिए, नाश्ता परोसा जाता है।
विवाह की रस्म पूरी हो गयी! घाना में, उस दिन से, समाज उस युगल को कानूनी रूप से विवाहित मानता है। यदि किसी कारण लड़की के परिवार के कुछ मुख्य सदस्य रस्म में उपस्थित नहीं हो पाए थे, तो इस बात की पुष्टि करने के लिए कि विवाह हो गया है, भेंट में आए कुछ पेय उन्हें भेजे जाते हैं। यदि वर और वधु यहोवा के साक्षी हैं, तो साक्षी फिर यह प्रबन्ध करते हैं कि एक बाइबल भाषण दिया जाए, जिसके बाद हलका नाश्ता-पानी होता है।
घाना में कुछ युगल पाश्चात्य-शैली की विवाह रस्म करते हैं, जिसे यहाँ पंजीकृत विवाह, या धर्मविधि विवाह कहा जाता है। यह माता-पिता की सहमति के साथ या बिना किया जा सकता है बशर्ते युगल बालिग़ हैं। प्रथागत विवाह में माता-पिता की सहमति अनिवार्य है।
पंजीकृत विवाह में युगल विवाह वचन देते हैं। लेकिन प्रथागत विवाहों में वचन नहीं दिए जाते। सरकार माँग करती है कि सभी प्रथागत विवाहों को पंजीकृत कराया जाए, और यहोवा के साक्षी ऐसा करते हैं। (रोमियों १३:१) फिर पंजीकरण पत्र जारी किया जाता है।
प्राचीन समय से जब तक कि गोल्ड कोस्ट, जो अब घाना है, ब्रिटिश उपनिवेश नहीं बन गया, प्रथागत विवाह उस देश में विवाह का एकमात्र तरीक़ा था। तब ब्रिटिश लोगों ने यहाँ रह रहे अपने नागरिकों के लिए पाश्चात्य-शैली विवाह शुरू किया। इस देश के मूलवासियों को भी अनुमति थी कि इस क़िस्म का विवाह करें, और अब कई सालों से, पाश्चात्य-शैली विवाह और प्रथागत विवाह एकसाथ चल रहे हैं। घाना में दोनों को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है, इसलिए यहोवा के साक्षियों को यह स्वीकार्य है। यह व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि वे किस क़िस्म का विवाह करना चाहेंगे।
कुछ अफ्रीकी देशों में, प्रथागत विवाह को पंजीकृत कराने की ज़रूरत होती है इससे पहले कि युगल को कानूनी रूप से विवाहित माना जाए। लेकिन, घाना में, प्रथागत विवाह जैसे ऊपर बताया गया है पंजीकरण के बिना कानूनी रूप से मान्य है, और प्रथागत विवाह की रस्म पूरी होने पर युगल को कानूनी रूप से विवाहित माना जाता है। बाद में, प्रथागत विवाह को केवल रिकॉर्ड रखने के उद्देश्य से पंजीकृत किया जाता है।
विवाह सचमुच मानवजाति को परमेश्वर का एक प्रेममय वरदान है, एक अनोखा वरदान जो स्वर्गदूतों को भी नहीं दिया गया। (लूका २०:३४-३६) यह एक अनमोल सम्बन्ध है जो संभालकर रखे जाने के योग्य है जिससे इसके आरंभक, यहोवा परमेश्वर की महिमा हो।
[पेज 29 पर तसवीर]
अंगूठियाँ बदलते हुए