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    हमारी राज-सेवा—2002
सजग होइए!–1997
g97 1/8 पेज 30

विश्‍व-दर्शन

सॆल्यूलर फ़ोन समस्या

जापान में हाल के एक अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है कि सॆल्यूलर टॆलीफ़ोनों से निकलनेवाली रेडियो तरंगें अस्पताल चिकित्सा उपकरण में गंभीर समस्याएँ उत्पन्‍न कर सकती हैं। “एक परीक्षण में, एक हार्ट-लंग मशीन रुक गयी जब ४५ सॆंटीमीटर दूर एक सॆल्यूलर फ़ोन प्रयोग किया गया,” असाही ईवनिंग न्यूज़ (अंग्रेज़ी) कहता है। अनुसंधायकों ने यह भी पाया कि द्रव चढ़ानेवाले पंपों और उन पंपों के जो ऐंटीकैंसर दवाएँ सप्लाई करते हैं अलार्म बजने लगे जब इन उपकरणों से ७५ सॆंटीमीटर की दूरी के बीच सॆल्यूलर फ़ोन प्रयोग किया गया। एक्स-रे मशीन और टोनोमीटर भी प्रभावित हुए। इन खोजों पर आधारित, डाक और तार संचार सेवा सलाह देती है कि सॆल्यूलर फ़ोन ऑपरेशन कक्ष और गहन सेवा कक्ष में न ले जाए जाएँ। एक सर्वेक्षण के अनुसार, टोक्यो में लगभग २५ चिकित्सा संस्थान पहले ही सॆल्यूलर फ़ोन के प्रयोग को नियंत्रित करते हैं, जिनमें से १२ ने तो सॆल्यूलर फ़ोन पर पूरा प्रतिबन्ध लगा दिया है।

सामान्य विकास निश्‍चित करना

एक बच्चे का विकास मात्र उसकी अनुवांशिकता से प्रभावित नहीं होता, ज़ॉरनल डो ब्राज़ील में एक रिपोर्ट कहती है। “अच्छा पोषण इस बात की मुख्य गारंटी है कि उचित विकास होगा,” समाचार-पत्र कहता है, और आगे बताता है कि मध्य-वर्गीय परिवारों के बीच भी अल्प पोषण सामान्य है। “विकास में एक और मूल प्रेरक है नियमित व्यायाम,” अंतःस्राव-विज्ञान के प्रोफ़ॆसर आमॆल्यो गोडॉइ माटॉस ने कहा। “यह निश्‍चित किया जाना चाहिए कि घंटों की आरामदेह नींद मिले क्योंकि विकास हार्मोन तभी निकलते हैं जब बच्चा सो रहा होता है,” उसने कहा। उसी प्रकार भावात्मक समस्याएँ बच्चे के विकास को धीमा कर सकती हैं। अंतःस्राव-विज्ञानी वालमीर कोटीन्यू के अनुसार, “एकटक घंटों टॆलीविज़न देखना, ख़ासकर हिंसक फ़िल्में, बच्चे की नींद के लिए हानिकर है और स्वास्थ्यकर विकास को गड़बड़ा सकता है।”

आशावाद स्वास्थ्यकर हो सकता है

फिनलैंड में किए गए हाल के एक अध्ययन ने इस विश्‍वास की पुनःपुष्टि की कि निराशावाद मानसिक और शारीरिक रोग का जोख़िम बढ़ा सकता है, जबकि आशावाद अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है। ४२ से ६० की उम्र के बीच के लगभग २,५०० पुरुषों पर ४ से १० साल की अवधि तक ध्यान रखा गया। पत्रिका साइंस न्यूज़ के अनुसार, वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट किया कि ‘उन पुरुषों की तुलना में जिन्होंने निम्न या शून्य आशाहीनता रिपोर्ट की, वे पुरुष जिन्हें सामान्य से लेकर अति आशाहीनता थी दो से तीन गुणा की दर पर मरे; आशाहीन समूह को ज़्यादा जल्दी कैंसर हुआ और दिल के दौरे भी पड़े।’

नन कराटे सीखती हैं

स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा के बढ़ते ख़तरे का सामना करते हुए, दक्षिण भारत, तमिलनाडु राज्य, माधेवरम में सेंट ऐनस्‌ प्रोविनसीएट की ननों के एक समूह ने कराटे प्रशिक्षण लेना शुरू किया है। अखिल भारतीय ईशिनरयू कराटे संघ का अध्यक्ष, शीहन हुसैनी कहता है कि ननों ने उन दूसरी स्त्रियों से कहीं बेहतर सीखा है जिन्हें उसने २४ साल से अधिक समय से कराटे प्रशिक्षक के रूप में कार्य करते हुए प्रशिक्षण दिया है। ‘मेरे ख़याल से इसका कुछ सम्बन्ध उनकी गुप्त शक्‍ति और अनुशासन से है,’ वह कहता है। एक उपकरण जिसका प्रयोग ननों को सिखाया जाता है उसे सैन को कहा जाता है। उसका आकार क्रूस-मूर्त के समान होता है, और “यह उपकरण प्रयोग करने [के द्वारा], हमला करनेवाले की हत्या करना भी संभव है,” हुसैनी दावा करता है।

π (पाइ) का मान

पाइ, जैसे अनेक लोगों ने स्कूल में सीखा है, वृत्त की परिधि का उसके व्यास के साथ अनुपात है। अधिकतर लोग पाइ के मोटे अनुमान, ३.१४१५९ से ठीक-ठाक काम चला लेते हैं, लेकिन क्योंकि पाइ एक पूर्ण संख्या नहीं है, इसके दशमिक मान का कोई अन्त नहीं है। १८वीं शताब्दी में, १०० दशमलव स्थानों तक सही मान प्राप्त किया गया था, और १९७३ में दो फ्रांसीसी गणितज्ञों ने दस लाख दशमलव स्थान प्राप्त किए। अब, जापान के टोक्यो विश्‍वविद्यालय के यासूमासा कानाडा ने कम्प्यूटर के माध्यम से इसका मान छः अरब दशमलव स्थानों से भी अधिक तक परिकलित किया है। इस संख्या का कोई कल्पनीय प्रयोग नहीं है, क्योंकि “दशमलव के मात्र ३९ स्थान उस वृत्त की परिधि परिकलित करने के लिए पर्याप्त हैं जो ज्ञात विश्‍व-मंडल को हाइड्रोजन अणु के व्यासार्ध में घेर लेता है,” लंदन का द टाइमस्‌ नोट करता है। प्रोफ़ॆसर कानाडा ने कहा कि वह पाइ को परिकलित करने का आनन्द लेता है “क्योंकि वह की जा सकती है।” लेकिन उसके हल को बोलने की कोशिश मत कीजिए। “बिना रुके, प्रति सॆकन्ड एक अंक के हिसाब से लगभग २०० साल लगेंगे,” द टाइमस्‌ कहता है।

बफलो पॉक्स भारत पर हमला बोलती है

‘एक ऐसे वाइरस से होनेवाली जो चेचक के वर्ग का है,’ बफलो पॉक्स का पश्‍चिमी भारत के बीड ज़िले में पता चला है, द टाइमस्‌ ऑफ़ इंडिया (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है। हालाँकि यह वाइरस चेचक से कम हानिकर है, फिर भी वैज्ञानिक इसके फैलाव के बारे में चिन्तित हैं। “इस वाइरस को बड़े ध्यान से देखा जाना चाहिए,” विषाणुविज्ञान राष्ट्रीय संस्थान का निदेशक, डॉ. कल्याण बैनर्जी कहता है। “हम नहीं कह सकते कि यह कितना गंभीर है।” मुख्य चिन्ता इस संभावना की है कि कहीं यह वाइरस दूर ग्रामीण क्षेत्रों में न फैल जाए जहाँ चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। बफलो पॉक्स से मनुष्यों में तेज़ बुखार, लसिका ग्रंथियों में सूजन, शरीर पर ढेर सारे चेचक के दाग़, और आम कमज़ोरी हो जाती है।

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