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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 10/15 पेज 23-27

क्या आप विदेश में सेवा कर सकते हैं?

“मैं हमेशा मिशनरी बनने के सपने देखा करता था। जब मैं कुँवारा था तो अमरीका के टॆक्सस इलाके में प्रचार करता था क्योंकि वहाँ प्रचारकों की बहुत ज़रूरत थी। शादी के बाद मेरी पत्नी भी मेरे साथ प्रचार करने लगी। मगर जब हमारी बेटी पैदा हुई तो मैंने सोचा, ‘अब तो सब कुछ खत्म हो गया।’ लेकिन यहोवा सपनों को भी सच कर देता है खासकर अगर वो उसकी इच्छा के मुताबिक हों।”—जॆसी आज अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ इक्वाडोर में सेवा कर रहा है।

“मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि गिलियड मिशनरी स्कूल किए बगैर मैं कभी विदेश में पायनियर बनकर सेवा कर सकूँगी। जब मैंने अपने एक बाइबल विद्यार्थी को टॉक देते और प्रचार करते देखा तो मुझे बहुत खुशी हुई और इसके लिए मैंने यहोवा का धन्यवाद किया।”—केरन अकेली है, उसने आठ साल दक्षिण अमरीका में पायनियरिंग की।

“मैंने और मेरी पत्नी ने अमरीका में १३ साल पूर्ण-समय प्रचार किया, फिर हमें लगा कि हमें और जोश के साथ दिलचस्प तरीके से सेवा करनी चाहिए। अब हम इस नई जगह पर इतने खुश हैं जितने पहले कभी नहीं थे; वाकई जीने का यह एक बेहतरीन तरीका है।”—टॉम और उसकी पत्नी लिंडा अभी एमज़ॉन में प्रचार करते हैं।

ऊपर उन लोगों की कदरदानी भरी बातों का ज़िक्र किया गया है जिन्हें किसी मजबूरी की वज़ह से वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड से मिशनरी ट्रेनिंग लेने का मौका नहीं मिला। मगर फिर भी वे विदेश में रहकर चुनौतियों का सामना कर सके और सेवा करने का मज़ा ले सके। मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्या आप भी किसी और देश में सेवा कर सकते हैं?

सही मकसद ज़रूरी है

विदेश में सेवा करने के लिए, कुछ कर दिखाने की इच्छा काफी नहीं है। कुछ लोग दूसरे देशों में सेवा करने में इसलिए सफल हुए हैं क्योंकि उनका मकसद सही था। वे प्रेरित पौलुस की तरह खुद को न सिर्फ परमेश्‍वर के प्रति बल्कि इंसानों के प्रति भी कर्ज़दार महसूस करते हैं। (रोमियों १:१४) वे चाहे तो प्रचार करने की परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के लिए अपने घर के आस-पास के इलाकों में प्रचार कर सकते हैं। (मत्ती २४:१४) मगर वे खुद को इतना कर्ज़दार महसूस करते हैं कि वे उन देशों में रहनेवालों तक भी पहुँचना चाहते हैं जिन्हें शायद ही कभी राज्य का संदेश सुनने का मौका मिला हो।

एक और वज़ह यह है कि उनमें यह इच्छा होती है कि वे एक ऐसी जगह जाकर प्रचार करें जहाँ सुननेवाले ज़्यादा हों। ऐसी इच्छा होना सही भी है क्योंकि हममें ऐसा कौन है जो एक मछुवारे को ज़्यादा मछलियाँ पकड़ता देखे और खुद भी तालाब के उसी हिस्से में जाना न चाहे? इसी तरह दूसरी जगहों में हो रही बढ़िया तरक्की की खबर सुनकर कुछ लोग वहीं जाकर सेवा करना चाहते हैं क्योंकि वहाँ “बहुत मछलियां” हैं।—लूका ५:४-१०.

सोच-समझकर फैसला कीजिए

कई देशों में उन विदेशियों को नौकरी करने की इजाज़त नहीं दी जाती जो वहाँ धार्मिक सेवा करते हैं। इसलिए जो लोग विदेश में सेवा करना चाहते हैं उनके पास इतना पैसा होना चाहिए कि वे अपनी ज़रूरतें खुद ही पूरी कर सकें। इस समस्या का सामना कैसे किया जा सकता है? विदेश में सेवा करने के लिए कुछ भाई-बहनों ने अपना घर बेच दिया या फिर किराए पर दे दिया ताकि वे अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकें। और कुछ ने अपना व्यापार बेच दिया। कुछ ने पहले से ही कुछ धन जमा किया। फिर कुछ ऐसे भी हैं जो एक-दो साल विदेश में प्रचार करते हैं फिर वापस अपने देश लौट आते हैं, वहाँ नौकरी करके पैसा जमा करते हैं और दोबारा प्रचार के लिए विदेश चले जाते हैं।

विकासशील देशों में रहने का एक फायदा यह है कि वहाँ अमीर देशों की तुलना में महँगाई कम होती है। इसलिए कुछ लोग एक छोटी पॆंशन के सहारे गुज़ारा कर लेते हैं। बेशक एक व्यक्‍ति का खर्चा इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से अपनी ज़िंदगी गुज़ारना पसंद करता है। वैसे तो विकासशील देशों में भी बहुत बढ़िया घर मिल सकते है मगर वे बहुत महँगे पड़ते हैं।

तो सीधी-सी बात है कि दूसरी जगह जाकर बसने से पहले, खर्च ज़रूर जोड़ लेना चाहिए। इसके अलावा हम दक्षिण अमरीका में जाकर सेवा करनेवाले भाई-बहनों के अनुभवों से भी फायदा उठा सकते हैं।

पहाड़ जैसी समस्या

फिनलैंड का मॉरकू कहता है, “मेरे लिए स्पैनिश भाषा सीखना बहुत मुश्‍किल था। मैंने सोचा कि मुझे यह भाषा नहीं आती इसलिए कुछ समय के लिए मिनिस्टिरियल सर्वेंट की ज़िम्मेदारियाँ नहीं लूँगा। लेकिन ताज्जुब की बात है कि मुझे आए सिर्फ दो ही महीने हुए थे कि मुझे बुक स्टडी चलाने के लिए कहा गया! यह बात तो ज़रूर है कि मुझे बहुत बार शर्मिंदा होना पड़ा था खासकर दूसरों के नाम लेते समय। जैसे कि एक दिन मैंने भाई सॉन्चो को चॉन्चो (सूअर) कह दिया और दूसरा एक वाकया है जिसे मैं कभी नहीं भूलूँगा, मैंने बहन सॉलॉमेआ को मॉलॉसेआ (दुष्ट) कह दिया। मगर खुशी की बात है कि वहाँ के भाई-बहन बहुत सहनशील थे।” मॉरकू अपनी पत्नी सलीन के साथ उस देश में आठ साल तक सर्किट ओवरसियर के रूप में सेवा करता रहा।

शुरू में जिस जॆसी के बारे में बताया गया है उसकी पत्नी क्रिस कहती है, “आज भी मुझे याद है, यहाँ आए हमें बस तीन महीने हुए थे और हमारी कलीसिया में सर्किट ओवरसियर का विज़िट था। भाई के भाषण से मैं यह तो समझ गई कि वे कोई दृष्टांत बता रहे हैं और दिल छू लेनेवाली बातें बोल रहे हैं लेकिन इसके अलावा मुझे और कुछ समझ नहीं आया। इसलिए मैं वहीं हॉल में फूट-फूट कर रोने लगी, मेरा रोना कोई मामूली नहीं था; मैं सिसक-सिसक कर रो रही थी। मीटिंग खत्म होने के बाद मैंने अपने रोने की वज़ह सर्किट ओवरसियर को बताने की कोशिश की। वे बहुत नम्र थे और उन्होंने मुझसे वही बात कही जो दूसरे भी मुझसे कहते थे, टॆन पॉसयनसयॉ एरमॉनॉ (‘धीरज से काम लो, बहन’)। दो तीन साल बाद सर्किट ओवरसियर से हमारी फिर से मुलाकात हुई और हमने ४५ मिनट तक बातें की। दरअसल उस दिन हम बहुत खुश थे क्योंकि हम एक दूसरे को समझ पा रहे थे!”

एक और भाई कहता है कि “अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है। भाषा सीखने के लिए जितनी ज़्यादा हम मेहनत करेंगे उतनी अच्छी तरह हम बातचीत कर पाएँगे।”

सब लोग यह मानते हैं कि जब एक आदमी नई भाषा सीखने में मेहनत करता है तो उसे बहुत-से फायदे होते हैं। एक नई भाषा सीखने से नम्रता, धीरज और लगन जैसे गुण और ज़्यादा बढ़ जाते हैं। वह और भी ज़्यादा लोगों को प्रचार करने के काबिल होता है। उदाहरण के लिए, अगर एक भाई स्पैनिश भाषा सीखता है तो वह दुनिया-भर के करीब ४० करोड़ लोगों द्वारा बोली जानेवाली भाषा में बात करने लायक बन जाता है। बाद में जब उसे अपने देश लौटना पड़ता है तो वह इस भाषा से उन लोगों की मदद कर पाता है जिनकी मातृभाषा स्पैनिश है।

घर की याद सताए तो?

डॆबरा अपने पति गेरी के साथ एमज़ॉन इलाके में सेवा कर चुकी है, वह कहती है, “जब हम पहली बार १९८९ में इक्वाडोर आए तो मुझे घर की बहुत याद सताती थी। मैं फिर कलीसिया के भाई-बहनों पर ज़्यादा निर्भर करने लगी। और वही मेरे परिवार की तरह बन गए।”

जिस केरन के बारे में शुरू में बताया गया था, वह कहती है: “घर की याद से छुटकारा पाने के लिए मैं रोज़ प्रचार काम में जाने लगी। इस तरह मुझे घर की याद नहीं सताती थी। साथ-ही मैं इस बात को भी अपने मन में रखती थी कि मैं यहाँ जो काम कर रही थी उसके लिए मेरे पापा-मम्मी को मुझ पर नाज़ था। मम्मी हमेशा मुझे हिम्मत दिलाने के लिए कहती थी: ‘मुझसे ज़्यादा यहोवा तुम्हारी अच्छी देखभाल करेगा।’”

जापान का मॉकीको मज़ाक भरे अंदाज़ में कहता है: “मैं प्रचार-कार्य में पूरा दिन बिताने के बाद बहुत थक जाता हूँ। फिर जब मैं घर पहुँचता हूँ तो मुझे अपने घर की याद आनी शुरू होती है मगर तभी मुझे नींद भी आ जाती है। इसलिए कुछ समय बाद सब कुछ ठीक हो जाता है।”

बच्चों का क्या किया जाए?

परिवार में जब बच्चे होते हैं तो उनकी ज़रूरतों का भी ख्याल रखना पड़ता है, उदाहरण के लिए उनकी पढ़ाई-लिखाई। कुछ लोग अपने बच्चों को वहाँ के स्कूल में भेजते हैं तो कुछ उन्हें घर पर ही पढ़ाते हैं।

एल अपनी पत्नी, दो बच्चों और अपनी माँ के साथ दक्षिण अमरीका में जाकर बस गया। वह कहता है: “हमने एक बात गौर किया है कि बच्चों को स्कूल भेजने से वे बहुत जल्दी भाषा सीखते हैं। हमारे बच्चे तीन महीने में ही बहुत साफ बोलने लगे।” दूसरी तरफ, मिक और कॆरी के दो लड़कों ने पत्राचार स्कूल के ज़रिए पढ़ाई की। यह माता-पिता कहते हैं: “इस तरह की पढ़ाई बच्चों पर अकेले नहीं छोड़ी जा सकती बल्कि हमें उन्हें पढ़ाना पड़ता है और इस बात का हमेशा खयाल रखना पड़ता है कि टाइम-टॆबल में जितना विषय दिया गया है, बच्चे उसमें पीछे न रह जाएँ।”

डेविड और जेनीट ऑस्ट्रेलिया के हैं, वे अपने ११ और १३ साल के दो बेटों के बारे में कहते हैं। “आदमी बड़ी आसानी से यह सोच बैठता है कि जिस माहौल में वह खुद पला-बड़ा है दूसरे भी उसी तरह रहते होंगे, मगर ऐसा बहुत कम होता है इसलिए हम अपने बेटों को उनकी आँखों से यह दिखाना चाहते थे कि दूसरे लोग कैसे जीते हैं। हमारे बच्चों ने यह भी देखा है कि चाहे कोई भी देश क्यों न हो या वहाँ का रिवाज़ कैसा भी क्यों न हो, परमेश्‍वर के सिद्धांत पूरी दुनिया में लागू होते हैं।”

कॆन याद करते हुए बताता है, “मैं सिर्फ चार साल का था जब मेरे परिवार ने १९६९ में इंग्लैंड छोड़ दिया था। हालाँकि मुझे इस बात का दुःख था कि जैसा मैं सोचता था वैसे घास-फूस की छतवाले मिट्टी के घर में मुझे रहने को नहीं मिला, मगर मुझे यह एहसास था कि दूसरे बच्चों से अलग, मेरी परवरिश बहुत ही निराले ढंग से हुई। और दूसरे बच्चों के लिए मुझे हमेशा दुःख होता था क्योंकि उनकी परवरिश मेरी तरह नहीं हुई थी। मिशनरियों और स्पैशल पायनियरों के साथ रहने की वज़ह से नौ साल की उम्र में ही मैंने ऑग्ज़लरी पायनियरिंग शुरू कर दी थी।” कॆन आज एक सफरी ओवरसियर है।

जॆसी की बेटी गॆबरीला कहती है कि “सचमुच अब इक्वाडोर हमारा घर बन गया है। मैं बहुत खुश हूँ कि मेरे पापा-मम्मी ने यहाँ आकर बस जाने का फैसला किया।”

दूसरी तरफ ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन्हें विदेश रास नहीं आता, इसलिए परिवार को अपने देश वापस लौटना पड़ता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि विदेश जाकर बसने से पहले वहाँ का एक दौरा कर आएँ। ऐसा करने से आप सही जानकारी के आधार पर फैसला कर सकेंगे।

परदेस जाने से मिलनेवाली बरकतें

यह सच है कि विदेश में जाकर बसने से बहुत-सी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है और बहुत-से त्याग भी करने पड़ते हैं। लेकिन जो लोग दूसरी जगह जाकर बस गए हैं, क्या उन्हें कोई फायदा हुआ है? आइए उन्हीं से सुनते हैं।

जॆसी कहता है: “पिछले दस साल से हम ऑमबॉटो शहर में रह रहे हैं और हमने २ कलीसियाओं से ११ कलीसियाएँ बनते देखी हैं। इनमें से पाँच कलीसियाओं को बनाने में हमें मदद करने का सुअवसर मिला, साथ-ही दो किंगडम हॉल बनाने में भी हमने काम किया। हमें इस बात की भी खुशी है कि हम हर साल करीब दो नए लोगों को बपतिस्मा पाने में मदद कर पाए। मुझे दुःख है तो सिर्फ एक बात का, कि हम यहाँ और दस साल पहले क्यों नहीं आए।”

लिंडा: “जब लोग हमारी मेहनत और हमारे खुशी के संदेश की कदर करते हैं तो हमें बहुत हिम्मत मिलती है। उदाहरण के लिए, जंगल में बसे एक छोटे-से गाँव में ऑलफोनसो नाम का आदमी रहता था जिसे हम बाइबल सिखाते थे। उसे लगा कि अगर गाँव में जन-भाषण दिया जाए तो नतीजा बहुत अच्छा होगा। उसके पास लकड़ी का बना एक नया घर था जो उस गाँव में एक्के-दूक्के लोगों के पास ही था। उसने इस घर में रहना शुरू ही किया था। मगर यह सोचकर कि यहोवा की उपासना के लिए सिर्फ वही घर उचित है उसने अपना घर किंगडम हॉल के इस्तेमाल के लिए दे दिया और खुद वापस घास की झोपड़ी में रहने चला गया।”

जिम कहता है: अमरीका में प्रचार-कार्य में हम जितना समय बिताते थे, उससे दस गुना ज़्यादा समय हम यहाँ बिता पाते हैं। इसके अलावा यहाँ ज़िंदगी में बहुत भागा-दौड़ी नहीं करनी पड़ती। इसलिए अध्ययन करने और प्रचार करने के लिए हमें ज़्यादा समय मिलता है।

सेन्ड्रा कहती है: “जब मैं देखती हूँ कि बाइबल की सच्चाई लोगों को बदलकर अच्छा बना देती है, तो मुझे बहुत खुशी होती है। मैंने ऑमाडा नाम की ६९ साल की औरत को बाइबल की सच्चाई सिखानी शुरू की। उसकी एक छोटी-सी पंसारी की दुकान थी। वह हमेशा दस भाग दूध में, दो भाग पानी मिलाती थी। और तो और, इस मिलावटी दूध को ठीक से नहीं नापती थी और बेचते समय ग्राहकों को लूटती थी। लेकिन जब ऑमाडा ने ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का अध्याय १३ ‘धर्म-परायण जीवन जीने से क्यों खुशी मिलती है’ पढ़ा तो उसने सब गलत काम बंद कर दिए। और कुछ समय बाद जब उसने बपतिस्मा लिया तो उसे देखकर मुझे बहुत खुशी हुई।”

केरन: “आज मैं यहोवा पर पहले से कहीं ज़्यादा भरोसा करता हूँ और उसकी सेवा करने के लिए मुझे अब पहले से ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। मेरी दोस्ती यहोवा के साथ बहुत गहरी और मज़बूत हुई है।”

आप अपने बारे में क्या कहेंगे?

काफी सालों से हज़ारों साक्षी विदेश में सेवा करने के लिए जाते रहे हैं। कुछ एक-दो साल के लिए जाते हैं, कुछ बहुत सालों के लिए। ऐसे भाइयों के पास काबिलीयत, और आध्यात्मिक बातों में तजुर्बा होता है जिससे वे विदेश में राज्य काम को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं साथ-ही वे अपना खर्चा खुद ही उठाते हैं। वे ऐसे इलाकों में सेवा कर पाते हैं जहाँ के भाई-बहन नौकरी की वज़ह से ज़्यादा सेवा नहीं कर पाते। कई पायनियरों ने मोटर-गाड़ी खरीद ली है क्योंकि इसके बगैर कुछ इलाकों में प्रचार करना मुमकिन नहीं होता। दूसरे हैं जो शहर में रहना पसंद करते हैं, और कुछ ऐसी बड़ी-बड़ी कलीसियाओं को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करते हैं जहाँ बहुत कम प्राचीन हैं। लेकिन, बिना दो राय के सभी इस बात को मानते हैं कि जितने उन्होंने त्याग किए हैं उससे कहीं ज़्यादा उन्हें आध्यात्मिक आशीषें मिली हैं।

विदेश में सेवा करने की आशीष पानेवालों में क्या आप होना चाहते हैं? अगर आपके हालात इज़ाज़त देते हैं तो क्यों न इस बारे में पूछताछ करें? सबसे पहला और ज़रूरी कदम है, अपने देश में सोसाइटी के ब्रांच ऑफिस को लिखना और यह बताना कि आप कहाँ सेवा करना चाहते हैं। फिर उस देश के बारे में आपको जो भी जानकारी मिलेगी उससे आप तय कर सकेंगे कि सफल होने के लिए आपको क्या करना होगा। इसके अलावा और बहुत-सी फायदेमंद हिदायतें आप अगस्त १५, १९८८ की वॉचटावर में “अपने देश और रिश्‍तेदारों से दूर जाइए” नामक लेख में पा सकते हैं। सही योजना और यहोवा की आशीष से आप भी विदेश में सेवा करने का मज़ा ले सकते हैं।

[पेज 24 पर तसवीर]

टॉम और लिंडा, आदिवासी श्‍वॉरी लोगों के पास जाते हुए

[पेज 25 पर तसवीर]

बहुत लोग इक्वाडोर की राजधानी, कीटो शहर में सेवा कर रहे हैं

[पेज 25 पर तसवीर]

मॉकीको ऐनडीज़ पर्वत पर प्रचार करते हुए

[पेज 26 पर तसवीर]

पिछले पाँच सालों से हिलबिग परिवार इक्वाडोर में सेवा कर रहा है

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