जीवन कहानी
बीते सुनहरे कल के लिए एहसानमंद!
ड्रूसिला केन की ज़ुबानी
सन् 1933 की बात है। अभी-अभी ज़नोआ केन से मेरी शादी हुई थी। ज़नोआ भी मेरी तरह एक कॉलपोर्टर थे यानी पूरे समय के प्रचारक। मेरे मन में उमंग भरी हुई थी और मैं अपने पति के साथ मिलकर उनके असाइन्मेंट में काम करना चाहती थी। मगर उसके लिए मुझे एक साइकिल की ज़रूरत थी जो उन दिनों इतनी महँगी थी कि उसे खरीदना मेरे लिए नामुमकिन था। उस समय महामंदी छाने की वजह से आर्थिक परिस्थिति बहुत खराब थी। अब मैं क्या करती?
मेरी बेबसी के बारे में सुनकर मेरे तीन छोटे देवर पास के कबाड़-खाने में गए। वहाँ पर वे साइकिल के पुराने पुरज़ों को ढूँढ़ने लगे ताकि मेरे लिए एक साइकिल बना सकें। उन्हें पुरज़े मिल गए जिन्हें जोड़कर उन्होंने एक साइकिल तैयार कर दी और वह एकदम बढ़िया चलने लगी! जैसे ही मैं साइकिल चलाना सीख गई, ज़नोआ और मैं निकल पड़े। हम अपनी साइकिल पर सवार खुशी-खुशी ब्रिटेन के वुसटर और हैरफर्ड प्रांतों में जाकर जिस किसी से भी मिलते उन्हें साक्षी देते थे।
उस समय मुझे इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था कि अपने विश्वास के लिए उठाया गया यह छोटा-सा कदम, मेरी ज़िंदगी को सुनहरी यादों से भर देगा। मगर हाँ, मेरी ज़िंदगी में आध्यात्मिक बुनियाद मेरे प्यारे माता-पिता ने डाली थी।
महायुद्ध के कठिन साल
मेरा जन्म दिसंबर 1909 में हुआ था। उसके कुछ समय बाद मेरी माँ को द डिवाइन प्लैन ऑफ दि एजस किताब मिली, और 1914 में मेरे माता-पिता मुझे “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” देखने के लिए लैंकाशायर राज्य के ओलडम नगर ले गए। (ये दोनों उन लोगों द्वारा तैयार किए गए थे जिन्हें आज यहोवा के साक्षी के नाम से जाना जाता है।) हालाँकि उस समय मैं बहुत छोटी थी, मगर मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि किस तरह फोटो-ड्रामा देखने के बाद मैं खुशी के मारे कूदती-फाँदती घर लौटी थी! उसके बाद, फ्रैंक हीली ने हमारे नगर, रौशडैल में बाइबल अध्ययन करने का एक समूह बनाया। इस बाइबल अध्ययन में हाज़िर होने से हमारे परिवार को बाइबल की समझ बढ़ाने में मदद मिली।
लेकिन उसी साल महायुद्ध छिड़ गया जो आज पहले विश्वयुद्ध के नाम से जाना जाता है। अब तक हम जो चैन की ज़िंदगी जी रहे थे उसमें मुसीबतों का दौर शुरू हो गया। पिताजी का नाम भी सेना में भर्ती होने के लिए लिख दिया गया, लेकिन उन्होंने भर्ती होने से साफ इंकार कर दिया। हमारे इलाके के अखबार ने यह रिपोर्ट दी कि अदालत ने मेरे पिता को “बड़ा ही सभ्य इंसान” करार दिया। अलग-अलग इलाकों से चिट्ठियाँ भेजकर कई “सज्जनों ने यह बयान दिया कि हथियार न उठाने का [मेरे पिता] का फैसला नेक इरादे से किया गया है।”
अदालत ने पिताजी को सेना में भर्ती होने से पूरी छूट देने के बजाय उन्हें सिर्फ लड़ाई में हिस्सा न लेने की छूट दी। कुछ ही समय बाद लोग पिताजी पर बुरी तरह ताना कसने लगे, साथ ही माँ और मुझ पर भी। आखिरकार, उनके काम के बारे में दोबारा जाँच की गई और उनका नाम खेती-बाड़ी करनेवालों के वर्ग में दर्ज़ किया गया। मगर कुछ किसान हमारी मजबूरी का नाजायज़ फायदा उठाते थे और पिताजी को या तो बहुत कम वेतन देते थे या कुछ भी नहीं। घर के गुज़ारे के लिए माँ एक प्राइवेट लाँड्री में काम करने लगी। वहाँ उसे बहुत भारी काम करना पड़ता था मगर मजदूरी बहुत कम मिलती थी। मगर आज मैं महसूस कर सकती हूँ कि जवानी में उन बुरी परिस्थितियों से गुज़रने की वजह से मेरा विश्वास मज़बूत हुआ है, साथ ही मैंने आध्यात्मिक बातों की कदर करना सीखा है जो ज़िंदगी में ज़्यादा ज़रूरी हैं।
एक छोटी-सी शुरूआत
कुछ समय बाद, बाइबल का गहराई से अध्ययन करनेवाले विद्यार्थी, डैनियल ह्यूज़ ने हमारी ज़िंदगी में कदम रखा। वे रूआबन नाम के कसबे में एक कोयले की खान में काम करते थे, जो आज़वस्ट्री से जहाँ हम रहने लगे थे, करीब 20 किलोमीटर दूर है। मैं उन्हें प्यार से अंकल डैन बुलाती थी। हमारे घर में उनका काफी आना-जाना होता था। जब भी वे हमारे घर आते तो हमेशा बाइबल के विषयों पर ही बातचीत करते थे, कभी-भी फिज़ूल की बातें नहीं करते थे। सन् 1920 में, आज़वस्ट्री में बाइबल अध्ययन की एक कक्षा शुरू की गई, और 1921 में अंकल डैन ने मुझे द हार्प ऑफ गॉड किताब दी। यह किताब मुझे बेहद पसंद थी क्योंकि इसमें बाइबल की शिक्षाएँ इतने सरल ढंग से लिखी गई थीं कि मैं उन्हें बड़ी आसानी से समझ सकती थी।
उनके अलावा, प्राइस ह्यूज़ भी थे,a जो बाद में, यहोवा के साक्षियों के लंदन ब्राँच ऑफिस के प्रिसाइडिंग मिनिस्टर बने। वे अपने परिवार के साथ पास के ब्रोनगार्थ में रहते थे, जो कि वेल्स की सरहद पर था। उनकी बड़ी बहन सिसी और मेरी माँ के बीच गहरी दोस्ती हो गई।
मुझे आज भी याद है कि 1922 में जब ‘राजा और उसके राज्य का ऐलान करने’ का बुलावा दिया गया तो सभी में कैसा उत्साह भरा हुआ था। उसके बाद के सालों के दौरान, हालाँकि मैं अभी स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, फिर भी मैं दूसरों के साथ मिलकर बड़े जोशो-खरोश से लोगों में खास ट्रैक्ट बाँटने में हिस्सा लेती थी, खासकर ऐक्लसियासटिक्स इंडिक्टड नामक ट्रैक्ट जिसे 1924 में प्रकाशित किया गया था। उन सालों के दौरान मुझे बहुत सारे वफादार भाई-बहनों के साथ संगति करने का क्या ही बढ़िया मौका मिला! उनमें से कुछ थे: मॉड क्लार्कb और उसकी साथी मॆरी ग्रांट,# एडगर क्ले,# रॉबर्ट हैडलिंगटन, कैटी रॉबट्र्स, एडविन स्किनर,# साथ ही पर्सी चैपमन और जैक नेथन,# जो कनाडा में सेवकाई में हाथ बँटाने के लिए वहाँ गए थे।
बाइबल पर आधारित भाषण “आज जी रहे लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे,” हमारे विशाल प्रचार-क्षेत्र में साक्षी देने के लिए सही समय पर मददगार साबित हुआ। यह भाषण देने के लिए मई 14,1922 को प्राइस ह्यूज़ का रिश्तेदार स्टैनली रॉजर्स, लिवर्पूल से चर्क नाम के गाँव में आया। यह गाँव हमारे नगर के ठीक उत्तर दिशा में है। उसी दिन शाम को वह भाषण आज़वस्ट्री के सिनेमा-घर में भी दिया गया। उस अवसर के लिए खासकर छापे गए हैंडबिल की एक कॉपी आज भी मेरे पास है। उस दौरान, तीन सफरी ओवरसियर जिन्हें हम पिल्ग्रिम कहते थे, हमारे छोटे-से समूह का लगातार दौरा करते और हमारा हौसला बढ़ाते थे। वे तीन ओवरसियर थे: हर्बर्ट सीनियर, एल्बर्ट लॉयड और जॉन ब्लैनी।
फैसला करने की घड़ी
सन् 1929 में जब मैं उन्नीस साल की थी, तब मैंने बपतिस्मा लेने का फैसला कर लिया। उसी वक्त मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली परीक्षा से गुज़रना पड़ा, जो वाकई एक बड़ी परीक्षा थी। मेरी मुलाकात एक युवक से हुई जिसका पिता राजनेता था। हम एक-दूसरे को चाहने लगे थे और उसने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा। एक साल पहले संस्था ने गवर्नमैंट नामक किताब रिलीज़ की थी। उस किताब की एक कॉपी मैंने उस युवक को पढ़ने के लिए दी। मगर बहुत जल्द मुझे साफ नज़र आने लगा कि उसे स्वर्ग के राज्य के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है, जो कि उस किताब का विषय था। अपने बाइबल के अध्ययन के ज़रिए मैंने सीखा था कि प्राचीन समय के इस्राएलियों को अविश्वासियों के साथ शादी का रिश्ता न जोड़ने की आज्ञा दी गई थी, और यही सिद्धांत मसीहियों पर भी लागू होती है। इसलिए, हालाँकि उसे ना कहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था, मगर फिर भी मैंने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।—व्यवस्थाविवरण 7:3; 2 कुरिन्थियों 6:14.
प्रेरित पौलुस के इन शब्दों से मुझे बहुत हिम्मत मिली: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (गलतियों 6:9) मेरे प्यारे अंकल डैन ने भी चिट्ठी से मेरा हौसला बढ़ाया, जिसमें उन्होंने लिखा: “चाहे छोटी परीक्षाएँ हों या बड़ी, हमेशा रोमियों के 8वें अध्याय, आयत 28 को लागू करना,” जो कहती है: “हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।” मेरे लिए यह फैसला करना आसान नहीं था लेकिन मैं जानती थी कि मैंने जो किया वह सही था। उसी साल मैं एक कॉलपोर्टर बनी।
चुनौती का सामना करना
सन् 1931 में हमें नया नाम मिला, यहोवा के साक्षी। उसी साल हमने ज़ोर-शोर से एक अभियान चलाया जिसमें हमने राज्य, संसार की आशा (अँग्रेज़ी) पुस्तिका बाँटी। इस पुस्तिका की एक-एक कॉपी हर राजनेता, पादरी और व्यापारी को दी गई। मेरे प्रचार का इलाका आज़वस्ट्री से लेकर उत्तर की ओर, 25 किलोमीटर दूर रॆकसम तक था। इस पूरे इलाके में जाकर प्रचार करना मेरे लिए एक चुनौती थी।
अगले साल बर्मिंगहैम में हुए अधिवेशन में यह घोषणा की गई थी कि एक नये तरीके से प्रचार करने के लिए 24 लोगों की ज़रूरत है। हममें से 24 जनों ने बड़े जोश के साथ अपना नाम दे दिया हालाँकि हमें मालूम नहीं था कि वह नया तरीका क्या होगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि हम कितने चौंक गए होंगे जब हमें दो भारी बोर्ड लटकाने के लिए कहा गया जिस पर राज्य का ऐलान करनेवाले नारे लिखे होते थे और फिर दो-दो करके भेजा गया कि वही पुस्तिका राज्य, संसार की आशा (अँग्रेज़ी) को लोगों में बाँटें।
उसी शहर के मुख्य गिरजा-घर के इलाके में प्रचार करते वक्त, मैं शर्म से पानी-पानी हो रही थी क्योंकि सब मुझे ही देख रहे थे। मगर मैं खुद को दिलासा देती रही कि उस शहर में ऐसा कोई भी नहीं जो मुझे पहचानता हो। लेकिन मेरे पास आनेवालों में सबसे पहली थी मेरी स्कूल की एक बहुत पुरानी सहेली। मुझे देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं और उसने कहा: “अरे, ये सब क्या है? तुम ये बोर्ड लटकाए क्या कर रही हो?” उस अनुभव ने मेरे अंदर से लोगों का डर पूरी तरह मिटा दिया!
बाहरी क्षेत्र में जाना
सन् 1933 में, ज़नोआ से मेरी शादी हुई, जो मुझसे 25 साल बड़े थे और एक विधुर थे। उनकी पहली पत्नी एक जोशीली बाइबल विद्यार्थी थी, और उसकी मौत के बाद भी ज़नोआ, वफादारी से अपने असाइन्मेंट में टिके रहे। शादी के कुछ ही समय बाद हम इंग्लैंड से अपने नये असाइन्मेंट, नॉर्थ वेल्स के लिए रवाना हुए, जो वहाँ से करीब 150 किलोमीटर दूर था। कार्टन, सूटकेस और दूसरी कीमती चीज़ों को हमने अपनी साइकिलों के हैंडल पर बस ऐसे ही लटका लिया था, कुछ सामान सीट के सामने रखा, और साइकिल की टोकरियाँ भी हमने सामान से भर दीं। मगर किसी तरह हम अपनी मंज़िल पर सही-सलामत पहुँच गए! वहाँ के प्रचार काम में हमारी साइकिलें बहुत काम आयीं। इन्हीं की मदद से हम हर कोने तक पहुँच पाते थे, यहाँ तक कि हम तकरीबन 3,000 फुट ऊँचे वॆल्श पहाड़, कादर इद्रिस की चोटी के नज़दीक तक पहुँच सके। हमारी मेहनत वाकई रंग लायी क्योंकि हमें ऐसे लोग मिले जो “राज्य का यह सुसमाचार” सुनने के लिए तरस रहे थे।—मत्ती 24:14.
हमें वहाँ आए कुछ समय भी नहीं हुआ था कि लोगों ने टॉम प्राइस नाम के एक आदमी के बारे में बताया जो हमारी तरह उनको प्रचार करता था। आखिरकार, हमने उसे ढूँढ़ लिया। वह वॆल्शपूल के पास, लॉन्ग माउंटेन में रहता था। उसे देखकर हमें अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था! शुरू-शुरू में जब मैं प्रचार में जाती थी, तो उन दिनों मैंने उसे बाइबल अध्ययन करने की किताब रीकन्सीलियेशन दी थी। उसने खुद-ब-खुद उस किताब का अध्ययन कर लिया, लंदन के ब्राँच ऑफिस को खत लिखकर और साहित्य मँगवाया और तब से वह अपने नये विश्वास के बारे में बड़े जोश के साथ दूसरों को बताने लगा। अकसर हम तीनों मिलकर घंटों बातें किया करते, साथ मिलकर अध्ययन करते और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते थे।
एक दुर्घटना से आशीषों का दरवाज़ा खुला
सन् 1934 में, नॉर्थ वेल्स के आस-पास रहनेवाले सभी कॉलपोर्टरों को बुलावा दिया गया कि वे रेकसम नगर में जाकर धर्मी शासक (अँग्रेज़ी) पुस्तिका बाँटने में मदद करें। इस खास अभियान को शुरू करने के एक दिन पहले एक ऐसी दुर्घटना घटी जिसने सारे देश में तहलका मचा दिया। रेकसम के उत्तर में 3 किलोमीटर दूरी पर ग्रैसफर्ड की कोयले की खान में एक विस्फोट हुआ जिसमें 266 मज़दूर मारे गए, जिसके कारण दो सौ से भी ज़्यादा बच्चों के पिता मारे गए और 160 औरतें विधवा हो गईं।
हमें मातम मनानेवालों के नामों की सूची बनानी थी, उनमें से हरेक से मिलकर उन्हें एक पुस्तिका देनी थी। मुझे दिए गए नामों में से एक नाम था, मिसिस चैडविक, जिसका 19 साल का बेटा मर गया था। जब मैं उसके घर गई तो उसका एक बड़ा बेटा, जैक वहाँ मौजूद था जो अपनी माँ को दिलासा देने के लिए आया था। इस नौजवान ने मुझे पहचान लिया था लेकिन उसने मुझे कुछ कहा नहीं। बाद में, उसने उस पुस्तिका को पढ़ा और फिर एक दूसरी पुस्तिका आखिरी युद्ध (अँग्रेज़ी) को ढूँढ़ने लगा जो मैंने कुछ साल पहले उसे दी थी।
जैक और उसकी पत्नी मॆ ने मेरे घर का पता लगाया और मेरे पास और भी साहित्य लेने के लिए आए। सन् 1936 में, रेकसम में वे अपने घर में सभाएँ चलाने के लिए राज़ी हो गए। छः महीने बाद एल्बर्ट लॉयड वहाँ दौरे पर आए और उसके बाद वहाँ एक कलीसिया स्थापित की गई, जिसमें जैक चैडविक को प्रिसाइडिंग ओवरसियर बनाया गया। आज रेकसम में तीन कलीसियाएँ हैं।
बंजारों के एक ट्रेलर में ज़िंदगी
अब तक हम जैसे-जैसे एक जगह से दूसरी जगह जाते थे, हमें जहाँ भी रहने को मिलता था, वहाँ हम रहते थे। मगर ज़नोआ ने फैसला किया कि अब समय आ गया है कि हम अपने लिए एक घर बना लें, एक ऐसा घर, जिसे हम अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। मेरे पति बंजारों के वंश से थे और एक कुशल बढ़ई थे। उन्होंने हमारे लिए बंजारों का एक ट्रेलर बनाया। हमने बाइबल से उस ट्रेलर का नाम ऎलीज़बेथ रखा जिसका मतलब है “दरियादिली परमेश्वर।”
खासकर एक जगह मुझे हमेशा याद रहेगी। वह नदी के किनारे के पास एक बगीचा था। वह बगीचा मेरे लिए बिलकुल फिरदौस जैसा था! हमने उस ट्रेलर में जितने साल एक-साथ बिताए थे, वे सचमुच खुशियों भरे थे। हमें किसी बात का गम नहीं था, हालाँकि ट्रेलर में रहने की कुछ परेशानियाँ भी थीं। सर्दी के मौसम में हमारी चादर और कंबल जमकर ट्रेलर की दीवारों से चिपक जाते थे और हर चीज़ के ऊपर पानी की बूँदों के बनने से हमारे लिए लगातार समस्या खड़ी होती थी। यही नहीं, हमें ट्रेलर तक पानी लाना होता था, कभी-कभी तो काफी दूर से, लेकिन फिर भी हमने साथ मिलकर इन सभी मुश्किलों को पार किया।
एक बार ठंड के मौसम में, मैं बीमार पड़ गई। हमारे पास खाने के लिए भोजन बहुत कम था और एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। ज़नोआ बिस्तर पर बैठे थे, उन्होंने मेरे हाथों को अपने हाथों में लिया और मुझे भजन 37:25 पढ़कर सुनाने लगे: “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।” फिर वे मेरी ओर ताकते हुए बोले: “अगर जल्द ही कुछ इंतज़ाम नहीं हुआ, तो हमें भीख माँगनी पड़ेगी और मैं हरगिज़ नहीं मानता कि परमेश्वर ऐसा होने देगा!” उसके बाद वे हमारे पड़ोसियों को प्रचार करने चले गए।
जब ज़नोआ मुझे कुछ पिलाने के लिए दोपहर को घर लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके नाम एक लिफाफा आया हुआ है। उसमें 75 डॉलर थे जो उनके पिता ने भेजे थे। कुछ साल पहले ज़नोआ पर जायदाद गबन करने का झूठा आरोप लगाया गया था मगर हाल ही में यह साबित हुआ कि वे निर्दोष हैं। यह पैसों की भेंट बाप-बेटे के रिश्ते को फिर से जोड़ने के लिए थी। सचमुच, क्या ही एन मौके पर यह पैसा आया!
एक बड़ा सबक
कभी-कभी बरसों गुज़रने के बाद कहीं जाकर हम ज़िंदगी में होनेवाले अनुभवों से सबक सीखते हैं। मिसाल के लिए: 1927 में स्कूल छोड़ने से पहले, मैंने अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों और टीचरों को साक्षी दी थी, सिवाय एक टीचर के, जिसका नाम था, लॆवीन्या फैरक्लो। पहली बात तो स्कूल में किसी को भी यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि मैं आगे जाकर क्या बनना चाहती हूँ और फिर, मिस फैरक्लो के साथ मेरी ठीक से पटती भी नहीं थी, इसलिए मैंने सोचा कि मैं उसे साक्षी नहीं दूँगी। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मैं कितनी हैरान रह गई, साथ ही मुझे कितनी खुशी भी हुई जब करीब 20 साल बाद मेरी माँ ने मुझे बताया कि यही टीचर अपने पुराने दोस्तों और विद्यार्थियों को यह बताने के लिए वापस शहर आई थी कि अब वह यहोवा की एक साक्षी बन गई है।
जब मैं अपनी टीचर से मिली तो मैंने उसे खुलकर बताया कि क्यों मैंने उसे पहले अपने विश्वास और भविष्य की योजनाओं के बारे में नहीं बताया था। उसने चुपचाप मेरी सारी बात सुनी और फिर बोली: “मैं हमेशा से सच्चाई को ढूँढ़ रही थी। यही मेरी ज़िंदगी की तलाश थी!” यह अनुभव मेरे लिए एक बड़ा सबक था कि जिस किसी से भी मेरी मुलाकात होगी उसे मैं बेझिझक साक्षी दूँगी और किसी के बारे में पहले से राय कायम करने की गलती दोबारा नहीं करूँगी।
एक और युद्ध और उसके बाद की मेरी ज़िंदगी
जैसे ही 1930 का दशक अंत होने आया, युद्ध के काले बादल फिर से मँडराने लगे। मेरे भाई डैनिस को, जो मुझसे दस साल छोटा था, सेना में भर्ती न होने की छूट दी गई थी, मगर इस शर्त पर कि वह अपनी नौकरी करता रहे। उसने सच्चाई में कभी खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी इसलिए मेरे पति और मैंने उसके इलाके में काम करनेवाले पायनियरों, रूपर्ट ब्रॆडबैरी और उसके भाई डेविड से पूछा कि क्या वे उससे जाकर मिल सकते हैं। वे उससे मिलने गए और उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। सन् 1942 में डैनिस ने बपतिस्मा ले लिया। बाद में उसने पायनियर सेवा शुरू कर दी और 1957 में उसे सफरी ओवरसियर नियुक्त किया गया।
सन् 1938 में हमारी बेटी ऎलीज़बेथ पैदा हुई। अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़नोआ ने हमारे ट्रेलर को और भी बड़ा किया। सन् 1942 में जब हमारी दूसरी बेटी, यूनिस पैदा हुई तो हमें लगा कि अब रहने के लिए एक घर ढूँढ़ लेना ही ठीक रहेगा। इस वजह से ज़नोआ ने कुछ सालों के लिए पायनियर सेवा छोड़ दी और हम रेकसम के पास एक छोटे-से घर में रहने लगे। कुछ समय बाद, हम चेशायर के पड़ोसी नगर, मिडलिज में जाकर बस गए। वहीं पर मेरे प्यारे पति 1956 में चल बसे।
हमारी दोनों बेटियों ने पूरे समय की सेवा शुरू की और दोनों अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी खुशी से बिता रही हैं। यूनिस का पति एक प्राचीन है और आज भी वे दोनों लंदन में स्पेशल पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं। ऎलीज़बेथ का पति भी एक प्राचीन है। मेरे लिए यह बेहद खुशी की बात है कि वे दोनों, उनके बच्चे और मेरे चार परनाती-पोते प्रेस्टन, लैंकशायर में मेरे घर के पास ही रहते हैं।
आज मैं इस बात के लिए एहसानमंद हूँ कि मैं कम-से-कम अपने घर से राज्यगृह तक चलकर जा सकती हूँ जो सड़क के उस पार है। पिछले कुछ सालों में मैंने गुजराती बोलनेवाले समूह से संगति करना शुरू किया जो उसी राज्यगृह में इकट्ठा होता है। गुजराती सीखना मेरे लिए आसान नहीं रहा है क्योंकि अब मुझे सुनने में ज़रा मुश्किल होती है। जिस तरह जवान लोग बात करने के लहज़े और बारीकियों को तुरंत समझ लेते हैं, वैसा करने में कभी-कभी मुझे परेशानी होती है। लेकिन मेरे लिए यह एक दिलचस्प चुनौती है।
मैं अभी तक घर-घर के प्रचार में हिस्सा लेती हूँ और अपने घर में लोगों के साथ बाइबल का अध्ययन करती हूँ। जब मेरे दोस्त मुझसे मिलने आते हैं तो अपने बीते हुए कल के कुछ अनुभव बताने में खुशी पाती हूँ। यहोवा के लोगों के साथ संगति करते हुए करीब 90 साल बीत गए हैं और इन सालों के दौरान मिली बेशुमार आशीषों के लिए मैं बहुत एहसानमंद हूँ।
[फुटनोट]
a प्राइस ह्यूज़ की जीवन कहानी “वफादार संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाना,” अप्रैल 1,1963 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में छपी है।
b यहोवा के इन वफादार सेवकों की जीवन कहानियाँ प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पिछले अंकों में छपी हैं।
[पेज 25 पर तसवीर]
“आज जी रहे लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे,” बाइबल पर आधारित इस भाषण की घोषणा करनेवाला हैंडबिल। यह भाषण मैंने मई 14,1922 को सुना था
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् 1933 में ज़नोआ के साथ, शादी के कुछ ही समय बाद
[पेज 26 पर तसवीर]
मेरे पति द्वारा बनाए गए ट्रेलर, “ऎलीज़बेथ” के पास मैं खड़ी हूँ