सभी भाषाओं व धर्मों के लोगों को साक्षी देना
प्रथम शताब्दी के मसीहियों ने ऐसे लोगों को उत्साही साक्षी दी जो अन्य भाषाएँ बोलते थे और जो भिन्न-भिन्न धर्मों को मानते थे। परिणामस्वरूप, “वर्ष १०० तक संभवतः भूमध्य सागर की सीमा के हर प्रांत में एक मसीही बिरादरी थी।”—मध्य युग का इतिहास, (अंग्रेज़ी)।
२ यहाँ भारत में लोग अनेक भाषा बोलते हैं। अधिकतर, एक ही भाषा बोलनेवाले लोग एक ही राज्य में इकट्ठे रहते हैं। फिर भी, अनेक भारतीय शहरों व कस्बों में अभी सभी जगह के लोग रहते हैं और वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलते हैं। भाषाओं में इस विविधता के कारण, यह जानना कभी-कभी एक चुनौती बन जाता है कि ऐसे लोगों से कैसे बात की जाए और उन्हें कैसे साक्षी दी जाए। दरअसल, हमारे इलाक़े में शायद मिशनरी क्षेत्र हो। हम सभी भाषाओं व धर्मों के ‘लोगों में प्रचार करने; और उन्हें पूरी-पूरी गवाही देने’ की यीशु की आज्ञा का कैसे पालन कर सकते हैं?—प्रेरि. १०:४२.
दूसरी भाषा बोलनेवाले लोगों को साक्षी देना
३ इसमें कोई शक नहीं कि अनेक लोगों को जब उनकी मातृभाषा में सिखाया जाता है, तब वे ज़्यादा जल्दी व ज़्यादा गहरी समझ प्राप्त करते हुए सीखते हैं। “सब कुछ सुसमाचार के लिये” करने और ‘औरों के साथ उसका भागी होने’ के लिए, दुनिया-भर के अनेक भाई-बहनों ने दूसरी भाषा सीखी है। (१ कुरि. ९:२३) एक अंग्रेज़ी बोलनेवाले देश में, एक अंग्रेज़ी-बोलनेवाली बहन के पत्रिका-मार्ग में एक चीनी-भाषीय स्त्री सालों से थीं। इसके बावजूद, उस स्त्री ने बाइबल अध्ययन की पेशकश को तब तक ठुकराया जब तक कि चीनी भाषा सीख रही एक बहन ने उसे उसकी भाषा में एक पुस्तक पेश न की। उसने इसे सहर्ष स्वीकारा और बाइबल अध्ययन भी शुरू किया। जिस बात ने कमाल किया वह बात थी दूसरी बहन द्वारा उस स्त्री की भाषा में चंद लफ़्ज़ बोलने का प्रयास।—प्रेरितों २२:२ से तुलना कीजिए।
४ आपके इलाक़े में आमतौर पर बोली जानेवाली भाषा को छोड़ यदि आपको कोई दूसरी भाषा आती है, तो आप अपने क्षेत्र के ऐसे लोगों पर विशेष ध्यान देने में शायद समर्थ हों जो ऐसी भाषा बोलते हैं जो आपको आती है। (मत्ती ९:३७, ३८) मिसाल के तौर पर, अमरीका के एक भाई जिसने सच्चाई में आने से पहले वियतनामी भाषा सीखी थी, अब उसे वियतनामी भाषा बोलनेवाले लोगों के साथ सुसमाचार बाँटने में बड़ी ख़ुशी मिलती है। साक्षी कार्य के लिए उस भाषा के अपने ज्ञान को और ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए, यह भाई अपने परिवार सहित देश के ऐसे दूसरे भाग को चला गया जहाँ वियतनामी क्षेत्र में ज़्यादा ज़रूरत थी। जब से वह वहाँ गया है, तब से उसे वियतनाम से आए अनेक लोगों के साथ बाइबल का अध्ययन करने में बढ़िया सफलता मिल रही है।
५ अपने क्षेत्र में एक पायनियर बहन की मुलाक़ात अनेक बधिर लोगों से हुई। उसने यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना की ताकि उसे कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो उसे संकेत-भाषा (साइन लैंग्वेज़) सिखा सके ताकि वह बधिर लोगों को सच्चाई सिखा सके। एक दिन पड़ोस के सुपरमार्केट में ख़रीदारी करते वक़्त, उसके पास एक बधिर युवती आयी। उसे कोई समान चाहिए था जिसके लिए उसने एक नोट पर लिखकर बहन से मदद माँगी। समान पाने में उसकी मदद करने के बाद, पायनियर ने नोट पर लिखकर संकेत-भाषा सीखने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की ताकि वह अपने क्षेत्र के बधिर लोगों की मदद कर सके। उस बधिर स्त्री ने लिखकर पूछा, “आप बधिर लोगों की मदद क्यों करना चाहती हैं?” बहन ने लिखकर जवाब दिया: “मैं यहोवा की एक साक्षी हूँ, और मैं बधिर लोगों को बाइबल समझने में मदद करना चाहती हूँ। यदि आप मुझे संकेत-भाषा सिखाएँगी तो आपको बाइबल सिखाने में मुझे ख़ुशी होगी।” बहन कहती है: “जब उसने ‘हामी भरी’ तो आप मेरी ख़ुशी का अंदाज़ा नहीं लगा सकते।” बहन छः सप्ताहों के लिए हर शाम उस स्त्री के घर गयी। उसने संकेत-भाषा सीखी और उस बधिर स्त्री ने सच्चाई सीखी और बपतिस्मा प्राप्त किया! यह वाक़या ३० साल से भी पहले हुआ था, और वह पायनियर बहन अब भी बधिरों को साक्षी देती है।
६ यदि आपके क्षेत्र में पूरी तरह गवाही दी जा चुकी है और यदि आप किसी ऐसे इलाक़े की भाषा को अच्छी तरह बोल लेते हैं जहाँ आप जानते हैं कि बहुत कम साक्षी हैं, और यदि उस इलाक़े में स्वेच्छा से जाने के लिए आप इच्छुक और समर्थ भी हैं, तो क्यों न अपनी कलीसिया के प्राचीनों के साथ इस मामले की चर्चा करें? यदि वे सोचते हैं कि आप क़ाबिल हैं, तो आप संस्था को लिख सकते हैं, बशर्ते कि प्राचीन आपके ख़त के साथ अपनी तरफ़ से ख़त भेजें जिसमें आपकी क़ाबिलीयत और भाषा-कुशलता के बारे में उनकी टिप्पणी हो।—अगस्त १५, १९८८, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी), पृष्ठ २१-३ देखिए।
७ दिए गए औज़ारों का इस्तेमाल करना: हमारा साहित्य अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। आपके क्षेत्र में बोली जानेवाली सभी भाषाओं में कुछ ट्रैक्ट या माँग ब्रोशर या कोई दूसरा ब्रोशर साथ रखना लाभदायक होगा। यदि यह स्पष्ट है कि स्थानीय भाषा शायद वह भाषा ना हो जो उस व्यक्ति को अच्छी तरह आती हो, तो उससे पूछिए कि वह किस भाषा में पढ़ना पसंद करता है। इसके बाद, यदि मुमकिन हो तो उसे उसी भाषा में साहित्य पेश कीजिए।
८ यदि आप अपने गवाही कार्य के दौरान मिलनेवाले किसी व्यक्ति की भाषा ना भी बोलते हों, तौभी आप उसे सुसमाचार प्रस्तुत करने में समर्थ हो सकते हैं। यह कैसे? पुस्तिका सभी जातियों के लिए सुसमाचार (Good News for All Nations) इस्तेमाल करने के द्वारा। इसमें ५९ भाषाओं में संक्षिप्त संदेश छापे गए हैं। जैसे पुस्तिका के पृष्ठ २ पर दिया गया निर्देश समझाता है, गृहस्वामी की भाषा का अंदाज़ा लगा लेने के बाद, उसे पुस्तिका के उपयुक्त पन्ने पर मुद्रित जानकारी पढ़ने दीजिए। उसके पढ़ लेने के बाद, उसकी भाषा में एक प्रकाशन दिखाइए। यदि आपके पास नहीं है, तो जिन भाषाओं में आपके पास प्रकाशन हैं, उन्हें दिखाइए। बताइए कि आप उसकी भाषा में एक प्रति लेकर फिर आने की कोशिश करेंगे। उसका नाम-पता पूछिए, और उसे लिख लीजिए। आप अपनी कलीसिया के किसी दूसरे व्यक्ति को इसकी जानकारी दे सकते हैं जो वही भाषा बोलता हो। यदि पुनःभेंट करने के लिए उस भाषा में बोलनेवाला कोई भी व्यक्ति उपलब्ध नहीं है, तो आप इस चुनौती को स्वीकार कर सकते हैं। हो सकता है कि आप अपनी भाषा में प्रकाशन साथ-साथ पढ़ने के सहारे उस व्यक्ति के साथ अध्ययन भी कर पाएँ।—१ कुरि. ९:१९-२३.
ग़ैर-ईसाई धर्मों के लोगों को साक्षी देना
९ व्यक्ति की धार्मिक पृष्ठभूमि की कुछ जानकारी रखने से, परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रभावकारी साक्षी देने में मदद मिलती है। पुस्तक मानवजाति द्वारा परमेश्वर की खोज (अंग्रेज़ी) हमें संसार के कुछ बड़े-बड़े धर्मों के बारे में अंतर्दृष्टि देती है ताकि हम लोगों के विश्वासों को भली-भाँति समझ सकें जिससे कि हम सच्चाई का ज्ञान प्राप्त करने में उनकी मदद कर सकें।
१० इस अंतःपत्र के आखिरी पन्ने पर दिया गया बक्स कुछ ऐसे प्रकाशनों की सूचि देता है जिसे यहोवा के संगठन ने ग़ैर-ईसाई लोगों को साक्षी देने में इस्तेमाल करने के लिए प्रदान किया है। इन प्रकाशनों को पढ़ने से हम समझ सकते हैं कि हमें सुसमाचार के साथ लोगों के पास कैसे जाना है। सहायक औज़ार के रूप में रीज़निंग (अंग्रेज़ी) पुस्तक को नहीं भूलना चाहिए। इस पुस्तक के पृष्ठ २१-४ में व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं कि हमें बौद्ध, हिंदुओं, यहूदियों व मुसलमानों को कैसे जवाब देना है।
११ आप जो कहते हैं उसके बारे में सावधानी बरतना: यदि हम ऐसा निष्कर्ष निकालते हैं कि किसी अमुक धर्म के व्यक्ति का निजी विश्वास उस धर्म के अन्य लोगों की तरह ही होगा, तो उनके बारे में यह हमारी पूर्वधारणा है। ऐसा करने से हमें सावधान रहना चाहिए। इसके बजाय, यह समझने की कोशिश कीजिए कि जिस व्यक्ति से आप बात कर रहे हैं, वह कैसा सोचता है। (प्रेरि. १०:२४-३५) मुसलमान होने के नाते, सालिमुन को इस विश्वास में पाला-पोसा गया था कि कुरान ही परमेश्वर का वचन है। लेकिन वह कभी-भी इस मुसलमानी शिक्षा को पूरी तरह क़बूल नहीं कर पाया कि रहीम खुदा किसी जलते दोज़क (नरक) में लोगों को तड़पाएगा। एक दिन यहोवा के साक्षियों ने उसे सभा में आने का निमंत्रण दिया। सच्चाई को फ़ौरन पहचान लेने के बाद अब वह एक मसीही कलीसिया में प्राचीन के तौर पर ख़ुशी-ख़ुशी सेवा कर रहा है।
१२ ग़ैर-ईसाई विश्वासवाले लोगों को साक्षी देते वक़्त, हमें सावधानी बरतने की ज़रूरत है कि अपनी प्रस्तावना की वज़ह से कहीं ऐसा न हो कि हम सुसमाचार के बारे में उनसे बात करने का मौक़ा खो दें। (प्रेरि. २४:१६) कुछ धर्मों के अनुयायी उन्हें ‘परिवर्तित’ करने की कोशिशों से बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं। सो साझा विचार बनाने की कोशिश कीजिए ताकि उन्हें परमेश्वर के वचन की पूरी सच्चाई की ओर आकर्षित कर सकें। भेड़-समान लोग कृपालु व्यवहार और सच्चाई की स्पष्ट प्रस्तुति के प्रति अनुक्रिया दिखाएँगे।
१३ शब्दों के हमारे चुनाव पर भी विचार करना महत्त्वपूर्ण है, कहीं ऐसा न हो कि हम लोगों को बेवज़ह अपने संदेश के प्रति उदासीन कर दें। मिसाल के तौर पर, यदि आप फ़ौरन अपनी पहचान एक मसीही के तौर पर कराते हैं, तो आपका सुननेवाला शायद आपको स्वतः मसीहीजगत के गिरजों से जोड़ दे। इससे रोड़ा खड़ा हो सकता है। बाइबल को “शास्त्र” या “पवित्र लेखन” कहना भी लाभदायक हो सकता है।—मत्ती २१:४२; २ तीमु. ३:१५.
१४ बौद्ध को साक्षी देना: (मानवजाति द्वारा परमेश्वर की खोज [अंग्रेज़ी] का अध्याय ६ देखिए।) हर बौद्ध अनुयायी का विश्वास एक दूसरे से बहुत भिन्न होता है। व्यक्तित्त्ववाले सृष्टिकर्ता के अस्तित्त्व को बढ़ावा देने के बजाय, बौद्ध-धर्म सा.यु.पू. छठी शताब्दी के गौतम बुद्ध को बतौर धार्मिक आदर्श मानता है। जब गौतम ने पहली बार एक बीमार व्यक्ति, एक वृद्ध व्यक्ति, और एक मृत व्यक्ति को देखा, तब वह जीवन का अर्थ जानने के लिए तड़प उठा। ‘क्या इंसान दुःख भुगतकर, बूढ़ा होकर मरने के लिए ही जन्म लेता है?’ वह सोचने लगा। बेशक, हम उन सवालों के जवाब ऐसे निष्कपट बौद्ध लोगों को दे सकते हैं, जो जवाब जानना चाहते हैं।
१५ बौद्ध लोगों से बात करते वक़्त, सकारात्मक संदेश और स्पष्ट सच्चाइयों का ही इस्तेमाल कीजिए जो सभी पवित्र पुस्तकों में से सर्वश्रेष्ठ पुस्तक, बाइबल में पायी जाती हैं। अधिकांश लोगों की तरह, बौद्ध लोग शांति, नैतिकता, व पारिवारिक जीवन में गहरी दिलचस्पी रखते हैं और वे इन विषयों पर चर्चा करने के लिए अकसर राज़ी हो जाते हैं। इससे आप राज्य को मानवजाति की समस्याओं का असल हल के तौर पर विशिष्ट कर सकते हैं। जब एक बहन ने एक चीनी पुरुष को किराने की दुकान पर देखा, तो उसने उसे उसकी भाषा में एक ट्रैक्ट दिया और बाइबल अध्ययन पेश किया। उस व्यक्ति ने कहा: “आपका मतलब है पवित्र बाइबल? मैं तो पूरी जिंदगी इसी की तलाश में था!” वह उसी सप्ताह से अध्ययन करने लगा और सभी सभाओं में उपस्थित होने लगा।
१६ एक दशक से भी ज़्यादा समय से, एक और पायनियर बहन चीनी विद्यार्थियों को सच्चाई सिखा रही है। आठ घरोंवाली एक इमारत में काम करते वक़्त, जहाँ ये विद्यार्थी रहते हैं, उसने हरेक घर में एक अध्ययन शुरू करने में उसकी मदद करने के लिए यहोवा से प्रार्थना की। दो सप्ताहों के अंदर वह हर घर में कम-से-कम एक विद्यार्थी के साथ अध्ययन कर रही थी। एक प्रस्तावना जो उसके लिए काफ़ी कारगर है वह यह कहना है कि उसने विद्यार्थियों के बीच एक-जैसी चिंता पायी है—वे सभी शांति व ख़ुशी चाहते हैं। उसके बाद वह उनसे पूछती है कि क्या उनकी भी यही चिंता है। वे हमेशा सहमत होते हैं। वह उनका ध्यान ब्रोशर स्थायी शांति व ख़ुशी—इन्हें कैसे पाएँ (अंग्रेज़ी) की ओर आकर्षित करती है, जिसे चीनी लोगों के लिए ही तैयार किया गया है। मात्र पाँच अध्ययन करने के बाद, एक विद्यार्थी ने उससे कहा कि वह काफ़ी समय से सच्चाई की तलाश में था और अब जाकर उसे पा ली है।
१७ हिंदुओं को साक्षी देना: (मानवजाति द्वारा परमेश्वर की खोज का अध्याय ५ देखिए।) जैसा कि हममें से अधिकांश जन जानते हैं, हिंदू धर्म का कोई निश्चित धर्म-सिद्धांत नहीं है। इसके तत्त्वज्ञान बहुत पेचीदा हैं। हिंदुओं में अपने मुख्य देवता ब्रह्म (सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, संरक्षक विष्णु, और विनाशक शिव) के बारे में त्रियेक की धारणा है। पुर्नजन्म की उनकी शिक्षा में अमर आत्मा में विश्वास करना अनिवार्य है, जिसकी वज़ह से हिंदुओं का जीवन के प्रति एक भाग्यवादी नज़रिया है। (रीज़निंग पुस्तक, पृष्ठ ३१७-२१, और प्रहरीदुर्ग, मई १५, १९९७, पृष्ठ ३-८ देखिए।) हिंदू धर्म सहनशीलता सिखाता है, यही कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाता है।
१८ हिंदू तत्त्वज्ञान के बारे में लंबे-चौड़े चर्चे करने के बजाय, हिंदुओं को साक्षी देते वक़्त जो प्रस्तावना इस्तेमाल करना चाहिए वह है, पृथ्वी पर मानवी परिपूर्णता में हमेशा जीने की हमारी बाइबल-आधारित आशा के बारे में, साथ ही सारी मानवजाति द्वारा सामना किए जानेवाले महत्त्वपूर्ण सवालों का बाइबल जो संतोषजनक जवाब देती है, उनके बारे में समझाना।
१९ यहूदियों को साक्षी देना: (मानवजाति द्वारा परमेश्वर की खोज का अध्याय ९ देखिए।) अन्य ग़ैर-ईसाई धर्मों से भिन्न, यहूदी-धर्म की जड़ इतिहास में है, न कि मिथ्य-कथा में। ईश्वर-प्रेरित इब्रानी शास्त्र के ज़रिए, मानवजाति द्वारा सच्चे परमेश्वर की खोज में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी प्रदान की गयी है। और फिर भी, परमेश्वर के वचन के विपरीत, आज के यहूदी-धर्म की मूल शिक्षा है अमर मानव आत्मा में आस्था। इसकी पुष्टि करने के द्वारा कि हम इब्राहीम के परमेश्वर की उपासना करते हैं और यह स्वीकारने के द्वारा कि हम आज की दुनिया में वैसी ही कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, साझा विचार बनाया जा सकता है।
२० यदि आप एक ऐसे यहूदी से मिलते हैं जिसे परमेश्वर में विश्वास नहीं है, तो यह पूछना कि क्या वह हमेशा से ऐसा ही महसूस करता रहा है, शायद आपको यह समझने में मदद करे कि उसे सबसे ज़्यादा क्या रोचक लगेगा। मिसाल के तौर पर, उसने शायद इस बारे में एक संतोषजनक व्याख्या कभी ना सुनी हो कि क्यों परमेश्वर दुःख-तकलीफ़ की अनुमति देता है। निष्कपट यहूदियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है कि मसीहीजगत द्वारा उसके ग़लत चित्रण के ज़रिए नहीं, बल्कि जिस तरह से यूनानी शास्त्र के यहूदी लेखकों ने इसे प्रस्तुत किया है, उस तरह से वे मसीहा के तौर पर यीशु की पहचान को फिर से जाँचें।
२१ मुसलमानों को साक्षी देना: (मानवजाति द्वारा परमेश्वर की खोज का अध्याय १२ देखिए।) इस्लाम के अनुयायी, मुसलमान लोग अल्लाह को अपना वाहिद खुदा करके और मुहम्मद (सा.यु. ५७०-६३२) को उसका अंतिम व सबसे महत्त्वपूर्ण नबी करके मानते हैं। क्योंकि मुसलमान लोग यह विश्वास नहीं करते कि खुदा का एक बेटा था, वे यीशु मसीह को बस परमेश्वर के एक निम्न नबी के तौर पर मानते हैं, और इससे बढ़कर कुछ नहीं। कुरान, जो बस १,४०० साल से ज़्यादा पुराना नहीं है, इब्रानी व यूनानी शास्त्र, दोनों को उद्धृत करता है। इस्लाम और कैथोलिसिज़म में भारी समानताएँ हैं। दोनों धर्म मानव आत्मा के अमर होने, थोड़े समय की पीड़ा की दशा, और जलनशील नरक की मौजूदगी की शिक्षा देते हैं।
२२ एक स्पष्ट साझा विचार हमारा यह विश्वास है कि केवल एक सच्चा परमेश्वर है और कि बाइबल उसी के द्वारा प्रेरित है। कुरान को ध्यान से पढ़नेवाले ने तोराह, भजन संहिता, व सुसमाचार-पुस्तकों का उल्लेख देखा है और पढ़ा है कि उन्हें इसी रूप में पहचाना जाना व माना जाना चाहिए। अतः, आप उस व्यक्ति के साथ इनका अध्ययन करने की पेशकश कर सकते हैं।
२३ यह प्रस्तावना एक मुसलमान व्यक्ति के लिए शायद कारगर हो: “मैंने इस किताब में आपके मज़हब की चंद तालीमों के बारे में कुछ पढ़ा है। [रीज़निंग पुस्तक का पृष्ठ २४ खोलिए।] इसमें लिखा है कि आप यकीन करते हैं कि यीशु एक नबी था लेकिन मुहम्मद आखिरी व सबसे अहम नबी था। क्या आप यह भी यकीन करते हैं कि मूसा एक सच्चा नबी था? [प्रतिक्रिया के लिए रुकिए।] क्या मैं आपको यह दिखा सकता हूँ कि मूसा ने खुदा से उसके ज़ाती नाम के बारे में क्या जाना?” इसके बाद निर्गमन ६:२, ३ पढ़िए। पुनःभेंट पर, आप उपशीर्षक “एक परमेश्वर, एक धर्म” की चर्चा कर सकते हैं, जो कि पुस्तिका परमेश्वर के प्रति सच्ची अधीनता का समय (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ १३ पर दिया है।
२४ आज, अनेक लोग यशायाह ५५:६ में दिए गए शब्दों के सामंजस्य में कार्य कर रहे हैं। उसमें यूँ लिखा है: “[हे लोगो,] जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो।” यह सभी नेकदिल इंसानों पर लागू होता है, चाहे वे कोई भी भाषा क्यों न बोलते हों, या उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि चाहे कुछ भी क्यों न हों। हम विश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा हमारे प्रयासों पर आशीष देगा जब हम जाकर ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाने’ का प्रयत्न करते हैं।—मत्ती २८:१९.
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