जन भाषणों की तैयारी करना
यहोवा के साक्षियों की ज़्यादातर कलीसियाओं में, हर हफ्ते बाइबल के किसी विषय पर जन भाषण दिया जाता है। अगर आप एक प्राचीन या एक सहायक सेवक हैं, तो क्या आप ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप एक अच्छे वक्ता और काबिल शिक्षक हैं? अगर हाँ, तो शायद आपको जन भाषण देने के लिए कहा जाए। परमेश्वर की सेवा स्कूल से मिली तालीम की बदौलत हज़ारों भाई, जन भाषण देने का बढ़िया सुअवसर पाने के काबिल बने हैं। अगर आपको जन भाषण देने के लिए कहा जाता है, तब आपको किस तरह तैयारी करनी चाहिए?
आउटलाइन का अध्ययन कीजिए
भाषण की तैयारी में किसी भी तरह की खोजबीन शुरू करने से पहले, आउटलाइन को पूरा पढ़िए और फिर उस पर मनन करते रहिए, जब तक आप उसमें दी गयी बातों को अच्छी तरह समझ न लें। भाषण के शीर्षक को अपने मन में अच्छी तरह बिठा लीजिए। गौर कीजिए कि आप अपने सुननेवालों को क्या सिखाना चाहते हैं। भाषण देने का आपका मकसद क्या है?
भाषण के उपशीर्षकों को पढ़िए, समझने की कोशिश कीजिए और जाँचिए। ये आपके भाषण के मुख्य मुद्दे हैं। ध्यान दीजिए कि हरेक मुद्दा, भाषण के शीर्षक से क्या ताल्लुक रखता है? हर मुख्य मुद्दे के नीचे कई छोटे-छोटे मुद्दे दिए होते हैं और इन मुद्दों के नीचे इनका खुलासा करनेवाले कुछ विचार होते हैं। गौर कीजिए कि आउटलाइन का हर भाग, किस तरह पिछले भाग से जुड़ा है और अगले भाग के लिए सुननेवालों के मन को तैयार करता है। और देखिए कि हर भाग, भाषण के मकसद तक पहुँचने के लिए कैसे मदद करता है। जब आप भाषण के शीर्षक और उसके मकसद को समझ लेते हैं और कि मुख्य मुद्दों के ज़रिए किस तरह यह मकसद पूरा होता है, तब आप दी गयी जानकारी की तैयारी शुरू कर सकते हैं।
सबसे पहले यह कीजिए कि आपके भाषण में जितने मुख्य मुद्दे हैं यानी चार या पाँच, उतने ही भागों में भाषण को बाँटना अच्छा होगा। फिर हरेक भाग को एक छोटे-से भाषण के तौर पर तैयार कीजिए।
याद रखिए कि आउटलाइन, भाषण तैयार करने में सिर्फ एक सहायक है। यह आपके नोट्स् का काम नहीं करती जिसे देखकर आप भाषण देते हैं। आउटलाइन एक पंजर या कंकाल की तरह है जिसमें मानो माँस-पेशियाँ भरने, दिल डालने और जान फूँकने की ज़रूरत होती है, तभी जाकर एक जीता-जागता भाषण बनता है।
बाइबल का इस्तेमाल कीजिए
यीशु मसीह और उसके चेलों ने जो कुछ सिखाया, पवित्र शास्त्र से सिखाया। (लूका 4:16-21; 24:27; प्रेरि. 17:2, 3) आप भी वैसा ही कर सकते हैं। बाइबल ही आपके भाषण की बुनियाद होनी चाहिए। इसलिए आउटलाइन में दी गयी जानकारी सिर्फ समझाने और उसे लागू करने के बजाय यह समझने की कोशिश कीजिए कि बाइबल इस जानकारी को कैसे सही साबित करती है। और फिर, बाइबल का इस्तेमाल करके सिखाइए।
अपने भाषण की तैयारी करते वक्त, आउटलाइन में दी हर आयत खोलकर पढ़िए और उसकी जाँच कीजिए। उसके आस-पास की आयतों पर भी ध्यान दीजिए। कुछ आयतें सिर्फ हालात के बारे में हमारी समझ बढ़ाने के लिए होती हैं। इसलिए हर आयत को पढ़ने या उस पर बात करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सिर्फ उन्हीं आयतों को चुनिए जिनसे आपके सुननेवालों को खास फायदा हो। अगर आप आउटलाइन में दी गयी आयतों पर ही ध्यान देंगे, तो आपको उनके अलावा दूसरी आयतों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
अच्छा भाषण देने का मतलब यह नहीं कि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा आयतों का इस्तेमाल करें। इसके बजाय, अच्छा भाषण वह होता है जिसमें बेहतरीन तरीके से सिखाया जाता है। जब आप आयत खोलकर पढ़ने के लिए कहते हैं, तो सुननेवालों को बताइए कि आप वह आयत क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं। थोड़ा वक्त देकर समझाइए कि वह आयत कैसे लागू होती है। और आयत पढ़ने के बाद, उस पर चर्चा करते वक्त अपनी बाइबल खुली ही रखिए। मुमकिन है कि यह देखकर सभा में हाज़िर लोग भी अपनी-अपनी बाइबल खुली रखें। आप, अपने सुननेवालों में परमेश्वर के वचन से ज्ञान हासिल करने की दिलचस्पी कैसे जगा सकते हैं और इससे पूरा फायदा पाने के लिए आप उनकी मदद कैसे कर सकते हैं? (नहे. 8:8, 12) ऐसा करने के तीन तरीके हैं: आयतों का मतलब समझाना, उदाहरण देना और उन्हें लागू करने का तरीका बताना।
मतलब समझाना। जब आप किसी खास आयत को समझाने की तैयारी करते हैं, तो उस वक्त खुद से पूछिए: ‘इसका क्या मतलब है? इसे मैं अपने भाषण में क्यों बताना चाहता हूँ? इस आयत के बारे में सुननेवालों के मन में कौन-कौन-से सवाल उठ सकते हैं?’ आपको यह जाँच करनी पड़ सकती है कि आस-पास की आयतें क्या बताती हैं, उसे कब, कहाँ और किसने लिखा था। यह किन हालात में लिखी गयी थी, उसके शब्दों का ज़ोर किस पर है और ईश्वर-प्रेरणा से लिखनेवाले ने उसे किस इरादे से लिखा था। यह सब जानने के लिए आपको खोजबीन करनी होगी। इस बारे में आपको, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए तैयार किए गए साहित्य में जानकारी का अनमोल खज़ाना मिलेगा। (मत्ती 24:45-47) आयत की हर बारीकी समझाने की कोशिश मत कीजिए, बल्कि इतना ही बताइए कि आपने अपने सुननेवालों को जो आयत पढ़कर सुनायी, उसका मुद्दे से क्या ताल्लुक है।
उदाहरण देना। उदाहरण इसलिए दिए जाते हैं कि सुननेवाले मामले की तह तक जाएँ और उसे अच्छी तरह समझें या आपने जो मुद्दा या सिद्धांत बताया है, उसे याद रख सकें। उदाहरणों की मदद से लोग आपकी बात आसानी से समझ पाते हैं और जो वे पहले से जानते हैं, उसकी तुलना इस जानकारी के साथ करते हैं। यीशु ने अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश में इसी तरह उदाहरणों का इस्तेमाल किया था। उसने “आकाश के पक्षियों,” “जंगली सोसनों,” “सकेत फाटक,” और ‘चटान पर बने घर’ जैसी कई मिसालें दीं जिनकी वजह से उसका सिखाने का तरीका बड़ा ज़बरदस्त था, उसकी शिक्षाएँ समझने में आसान थीं और भूली नहीं जा सकतीं।—मत्ती, अध्या. 5-7.
लागू करना। जैसे ऊपर बताया है, समझाने और उदाहरण देने से सुननेवालों को ज्ञान तो ज़रूर मिलता है, मगर इसका फायदा तभी होगा जब वे इस ज्ञान को अमल में लाएँगे। सच है कि बाइबल के संदेश को अपने जीवन में लागू करने की ज़िम्मेदारी हर सुननेवाले की है, फिर भी उन्हें क्या कदम उठाने चाहिए, यह जानने के लिए आप उनकी मदद कर सकते हैं। पहले ध्यान दीजिए कि आपके सुननेवाले, चर्चा की जा रही आयत का मतलब और उसके ज़रिए आप क्या कहना चाहते हैं, यह समझ चुके हैं या नहीं। उसके बाद, कुछ वक्त के लिए यह बताइए कि पेश की गयी जानकारी का हमारे विश्वासों और चालचलन पर क्या असर होना चाहिए। जिस सच्चाई पर चर्चा हो रही है, उससे मेल न खानेवाले गलत विचारों और चालचलन से दूर रहने के फायदों पर ज़ोर दीजिए।
जब आप सोच रहे होते हैं कि आयतों को कैसे लागू करें, तो हमेशा याद रखिए कि सभा में हाज़िर लोग, अलग-अलग माहौल में पले-बड़े हैं और वे तरह-तरह के हालात का सामना कर रहे हैं। सुननेवालों में कुछ दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग हो सकते हैं, कुछ जवान तो कुछ बूढ़े और ऐसे लोग भी हो सकते हैं, जो अपनी ज़िंदगी में तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। आप अपना भाषण इस ढंग से पेश कीजिए जिससे सुननेवाले कुछ सीखें और जानकारी उनके काम आए। ऐसी सलाह मत दीजिए जिससे सुननेवालों को यह लगे कि आप सिर्फ चंद लोगों को मन में रखकर सलाह दे रहे हैं।
भाषण देनेवाले के फैसले
आपके भाषण के संबंध में कुछ बातें पहले से तय होती हैं। जैसे कि आउटलाइन के उपशीर्षक यानी भाषण के मुख्य मुद्दे साफ-साफ लिखे होते हैं और यह भी बताया जाता है कि हर उपशीर्षक पर चर्चा करने के लिए कितना समय लेना चाहिए। बाकी के फैसले आपको करने होते हैं। जैसे हर मुख्य मुद्दे के नीचे जो छोटे मुद्दे दिए होते हैं, उनमें से किन मुद्दों पर आप ज़्यादा समय बिताएँगे और किन पर कम, यह चुनाव आपको करना होगा। यह मत सोचिए कि आपको हर छोटे मुद्दे पर बराबर ज़ोर देना है। ऐसा करने से आपको पूरी जानकारी फटाफट बतानी पड़ेगी और सुननेवालों को यह सबकुछ याद रखना बड़ा मुश्किल लगेगा। आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि आपको किन छोटे मुद्दों को खोलकर समझाना है, और किन्हें थोड़े शब्दों में बताना है या उनका महज़ ज़िक्र करके छोड़ देना है? इसके लिए खुद से पूछिए: ‘किन मुद्दों पर ज़्यादा ज़ोर देने से मैं भाषण का ज़रूरी संदेश अपने सुननेवालों तक पहुँचा सकूँगा? किन मुद्दों से मेरे सुननेवालों को ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा होगा? किसी आयत और उससे जुड़े मुद्दे का ज़िक्र न करने से, क्या पेश की गयी दलीलें कमज़ोर पड़ जाएँगी?’
इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखिए कि आप अपने भाषण में अनुमान की बिनाह पर कोई भी बात न कहें, ना ही अपनी राय ज़ाहिर करें। परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह ने भी “अपनी ओर से” कोई बात नहीं कही थी। (यूह. 14:10) यह मत भूलिए कि लोग यहोवा के साक्षियों की सभाओं में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इनमें बाइबल पर चर्चा की जाती है। अगर आप एक अच्छे वक्ता के तौर पर जाने जाते हैं, तो यह शायद इसलिए है क्योंकि आप हमेशा लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं बल्कि परमेश्वर के वचन पर दिलाते हैं। और इसी वजह से लोग, आपके भाषण सुनना पसंद करते हैं।—फिलि. 1:10, 11.
एक आउटलाइन जिसमें सिर्फ कुछ मुद्दे दिए होते हैं, उससे बाइबल की बढ़िया जानकारी देनेवाला भाषण तैयार करने के बाद, अब आपको उसका अभ्यास करना चाहिए। ऐसा ऊँची आवाज़ में करना ज़्यादा फायदेमंद होगा। आपको इस बात का ध्यान रखना है कि सारे मुद्दे आपके मन में अच्छी तरह बैठ जाएँ। भाषण देते वक्त आपको पूरे यकीन के साथ बोलना चाहिए, जानकारी को जानदार बनाना चाहिए, साथ ही पूरे जोश के साथ सच्चाई पेश करनी चाहिए। अपना भाषण पेश करने से पहले, खुद से यह सवाल पूछिए: ‘भाषण देने का मेरा मकसद क्या है?’ इसके अलावा, ये सवाल भी पूछिए: ‘क्या मुख्य मुद्दे साफ पहचाने जाते हैं? क्या मेरा भाषण पूरी तरह बाइबल पर आधारित है? क्या एक मुख्य मुद्दे की चर्चा अगले मुद्दे के लिए सुननेवालों को तैयार करती है? क्या भाषण से यहोवा और उसके इंतज़ामों के लिए कदरदानी बढ़ती है? क्या भाषण की समाप्ति का इसके शीर्षक से सीधा संबंध है? क्या इससे सुननेवालों को पता लगता है कि उन्हें क्या-क्या कदम उठाने हैं और क्या भाषण के आखिरी शब्द उनके अंदर यह सब करने का जोश भरते हैं?’ अगर इन सारे सवालों का जवाब आप ‘हाँ’ में दे सकते हैं, तो पूरी कलीसिया को फायदा पहुँचाने और यहोवा की स्तुति करने के लिए, आप “ज्ञान का ठीक बखान” करने के काबिल हैं।—नीति. 15:2.