प्रचार करना—एक सम्मानित विशेषाधिकार
सुसमाचार की सेवकाई एक सम्मानित विशेषाधिकार है जो यहोवा ने हमें दिया है। (रोमि. १५:१६; १ तीमु. १:१२) क्या आपका दृष्टिकोण ऐसा है? हमें न तो समय के गुज़रने को ना ही दूसरों के उपहास को हमारी नज़रों में इसकी अहमियत को कम करने का मौक़ा देना चाहिए। परमेश्वर का नाम धारण करना एक सम्मान है जो सिर्फ़ थोड़े लोगों को ही दिया जाता है। इस विशेषाधिकार के लिए हम कैसे अपने मूल्यांकन को बढ़ा सकते हैं?
२ राज्य संदेश का प्रचार करने से हमें संसार का अनुमोदन नहीं मिलता है। अनेक लोग हमारे कार्य को भावशून्यता या उदासीनता की नज़र से देखते हैं। अन्य लोग इसका उपहास और विरोध करते हैं। ऐसा विरोध एकसाथ काम करनेवालों, पड़ोसियों, या यहाँ तक कि परिवार के सदस्यों से भी आ सकता है। उनकी नज़रों में हम शायद बहकाए हुए और मूर्ख प्रतीत होते हों। (यूह. १५:१९; १ कुरि. १:१८, २१; २ तीमु. ३:१२) उनकी निरुत्साहित करनेवाली टिप्पणियाँ हमारे उत्साह को कम करने के लिए और हमें धीमा करने या हमारे सम्मानित विशेषाधिकार को त्यागने के लिए बनायी गयी हैं। शैतान, जिसने ‘अविश्वासियों की बुद्धि अन्धी कर दी है, ताकि तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके,’ नकारात्मक विचारों को बढ़ावा देता है। (२ कुरि. ४:४) आप कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
३ यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि राज्य के बारे में हमारा प्रचार करना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है जो हममें से कोई भी व्यक्ति आज कर सकता है। हमारे पास एक ऐसा जीवन-रक्षक संदेश है जो कोई दूसरे ज़रिए से उपलब्ध नहीं है। (रोमि. १०:१३-१५) मनुष्यों का नहीं, बल्कि परमेश्वर का अनुमोदन होना ही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। हमारे प्रचार कार्य के बारे में संसार का नकारात्मक दृष्टिकोण हमें सुसमाचार को हियाव से घोषणा करने से रोकता नहीं है।—प्रेरि. ४:२९.
४ अपने पिता की इच्छा करने के अपने विशेषाधिकार को यीशु ने अधिकतम मान दिया। (यूह. ४:३४) उसने अपने आपको सेवकाई के लिए अनन्य रूप से समर्पित किया और उसे धीमा करने के लिए उसने न तो विकर्षणों को ना ही विरोधियों को मौक़ा दिया। राज्य संदेश के प्रचार ने उसके जीवन में हमेशा प्रथम स्थान लिया। (लूका ४:४३) हमें उसके उदाहरण का अनुकरण करने का आदेश दिया गया है। (१ पत. २:२१) ऐसा करने से, हम ‘परमेश्वर के सहकर्मियों’ के तौर पर सेवा करते हैं। (१ कुरि. ३:९) क्या हम इस विशेषाधिकार का पूरा लाभ उठा रहे हैं? क्या हम दूसरों के साथ दोनों, औपचारिक और अनौपचारिक रीति से सुसमाचार बाँटने के अवसरों की तलाश करते हैं? यहोवा के गवाहों के तौर पर, हमें ‘उसके नाम का अंगीकार [सार्वजनिक घोषणा, NW] करने’ के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।—इब्रा. १३:१५.
५ सेवकाई में हमारा हिस्सा मुख्यतः हमारी मनोवृत्ति से निर्धारित होता है। क्या हम उन सब चीज़ों का अत्यधिक मूल्यांकन करते हैं जो यहोवा ने हमारे लिए की हैं? क्या हमने अपने हृदय में यहोवा के लिए ऐसा प्रेम विकसित किया है जो हमें उसकी सेवा में अपना भरसक करने के लिए प्रेरित करता है? जिन आशिषों का हम अभी आनन्द उठा रहे हैं और साथ ही भविष्य के लिए जो यहोवा ने प्रतिज्ञा की है, उस पर मनन करना हमें अपने सृष्टिकर्ता के लिए प्रेम से परिपूर्ण होने में मदद करता है। ऐसा प्रेम हमें कार्य करने को प्रेरित करता है—जिस हद तक हमारी परिस्थितियाँ हमें अनुमति देती हैं उस हद तक राज्य-प्रचार कार्य में निरन्तरता और नियमितता। हमारा उत्साह यहोवा और अपने पड़ोसी के लिए हमारे प्रेम का सबूत देगा।—मर. १२:३०, ३१.
६ किसी चीज़ को हम कितना अधिक मूल्यवान समझते हैं, यह हम जो उसके साथ करते हैं और जो उसके बारे में कहते हैं, उसके द्वारा दिखाते हैं। क्या हम राज्य के बारे में प्रचार करने के अपने विशेषाधिकार को सचमुच मूल्यवान समझते हैं? क्या हम अपनी सेवकाई की बड़ाई करते हैं? विरोध के बावजूद इस अत्यावश्यक कार्य में लगे रहने के लिए क्या हम दृढ़संकल्प हैं? यदि हम इस अद्भुत विशेषाधिकार का अधिकतम मान करते हैं, तो हम निश्चय ही उत्साही और एकनिष्ठ होंगे।—२ कुरि. ४:१, ७.