पत्रिकाएँ पेश करने के लिए क्या कहना चाहिए
सजग होइए! अक्टू.-दिसं.
“क्या आप एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं जहाँ यहूदी और अरबी, हिंदू और मुसलिम, श्वेत और अश्वेत, कैथोलिक और प्रोटेस्टंट, सारे लोग मिलकर शांति से रह सकेंगे? आपको शायद यह नामुमकिन लगे, मगर सारी दुनिया में लोगों की मदद की जा रही है कि दूसरी जाति के लोगों के बारे में गलत धारणा और नफरत न रखें। यह कैसे किया जा रहा है, इस बारे में पढ़कर आपको अच्छा लगेगा।”
प्रहरीदुर्ग नवं. 15
“हमने कई बार यह सुना है कि ‘यीशु ने हमारे लिए अपनी जान दे दी।’ [यूहन्ना 3:16 का हवाला दीजिए।] क्या आपने कभी सोचा है कि एक इंसान की मौत हम सभी को कैसे बचा सकती है? [जवाब के लिए रुकिए।] बाइबल इसका सीधा जवाब देती है। इस लेख, ‘यीशु उद्धार करता है—कैसे?’ में यह बात साफ-साफ समझायी गयी है।”
सजग होइए! अक्टू.-दिसं.
“ज़्यादातर धर्मों के लोग मानते हैं कि सारे विश्व को बनानेवाला एक परमात्मा है। क्या आप भी यही मानते हैं? [जवाब के लिए रुकिए।] आपके मन में शायद कभी यह सवाल आया हो कि उसे जानना मुमकिन है भी कि नहीं। यह लेख दिखाता है कि कैसे एक आदिवासी स्त्री ने परमेश्वर का नाम जाना, जब उसे बाइबल से यह आयत दिखायी गयी: [भजन 83:18 पढ़िए।] आपको शायद यह जानने में दिलचस्पी होगी कि इस नाम को जानकर उसकी ज़िंदगी कैसे बदल गयी।”
प्रहरीदुर्ग दिसं. 1
“साल के इस वक्त के दौरान, बहुत-से लोग एक-दूसरे को तोहफे देते हैं और भलाई के काम करते हैं। इससे हमें सुनहरा नियम याद आता है। [मत्ती 7:12 पढ़िए।] क्या आपको लगता है कि साल के हर दिन और हर घड़ी, इस नियम पर चलना मुमकिन है? [जवाब के लिए रुकिए।] इस पत्रिका से हमें ‘सुनहरा नियम—क्या इस पर चलना आज भी मुमकिन है?’ पर सोचने के लिए बहुत-सी जानकारी मिलती है।”