बाइबल अध्ययन में असरदार तरीके से बाइबल का इस्तेमाल करना
1. बाइबल अध्ययन चलाते वक्त हमें क्यों बाइबल पर खास ज़ोर देना चाहिए?
बाइबल अध्ययन चलाने का हमारा मकसद है, लोगों को ‘चेला बनाना,’ यानी उन्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षाएँ समझने, कबूल करने और अपनी ज़िंदगी में लागू करने में मदद देना। (मत्ती 28:19, 20; 1 थिस्स. 2:13) इसलिए अध्ययन, बाइबल पर आधारित होना चाहिए। शुरू-शुरू में विद्यार्थियों को यह सिखाना अच्छा होगा कि वे अपनी बाइबल में आयतें कैसे ढूँढ़े।
2. बाइबल की किन आयतों को पढ़कर चर्चा करनी है, यह हम कैसे तय कर सकते हैं?
2 चुनिए कि कौन-सी आयतें पढ़ी जानी हैं: अध्ययन की तैयारी करते वक्त देखिए कि अध्याय में जिन आयतों का सिर्फ हवाला दिया गया है, वे कैसे चर्चा किए जा रहे विषय से मेल खाती हैं। फिर तय कीजिए कि अध्ययन के दौरान आप किन आयतों को पढ़कर उन पर चर्चा करेंगे। अकसर उन आयतों को पढ़ना अच्छा होता है, जो बताती हैं कि हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित है। जिन आयतों में घटना के बारे में सिर्फ कुछ अतिरिक्त जानकारी दी गयी हैं जैसे, फलाँ घटना कब-कहाँ हुई थी, उन्हें पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। आयतें चुनते वक्त हर विद्यार्थी की ज़रूरतों और हालात को ध्यान में रखिए।
3. सवाल पूछने से क्या फायदा होता है और यह हम कैसे कर सकते हैं?
3 सवाल पूछिए: बाइबल की आयतों का मतलब खुद बताने के बजाय, विद्यार्थी को उसका मतलब समझाने का मौका दीजिए। आप कुशलता से सवाल पूछकर उसे ऐसा करने के लिए उकसा सकते हैं। अगर एक बार पढ़ने से ही विद्यार्थी को आयत का मतलब समझ आ जाता है, तो आप सिर्फ इतना पूछ सकते हैं कि वह आयत पैराग्राफ में दी गयी जानकारी को कैसे सही साबित करती है। दूसरे मामलों में, शायद आपको कोई खास सवाल या कई सवाल पूछने पड़ें ताकि विद्यार्थी सही नतीजे पर पहुँच सके।
4. जो आयतें पढ़ी जाती हैं, उनके बारे में विद्यार्थी को कितना समझाने की ज़रूरत है?
4 सरल रखिए: कुशल तीरंदाज़ को निशाना लगाने के लिए बस एक तीर काफी होता है। उसी तरह, एक कुशल शिक्षक को अपनी बात समझाने के लिए ज़्यादा शब्दों की ज़रूरत नहीं होती। अध्ययन के दौरान हर आयत का हरेक पहलू समझाने की कोशिश मत कीजिए। सिर्फ उतनी जानकारी दीजिए जितनी कि चर्चा किए जा रहे विषय को समझाने के लिए ज़रूरी है। कभी-कभी किसी आयत को समझने और विद्यार्थी को ठीक तरह से समझाने के लिए शायद आपको मसीही साहित्य में खोजबीन करनी पड़े।—2 तीमु. 2:15.
5, 6. परमेश्वर के वचन को अपनी ज़िंदगी में लागू करने में हम विद्यार्थियों की मदद कैसे कर सकते हैं? लेकिन हमें क्या करने से दूर रहना चाहिए?
5 ज़िंदगी में कैसे लागू करें: जब मुनासिब हो तो विद्यार्थी को यह समझने में मदद दीजिए कि वह अपनी ज़िंदगी में बाइबल की आयतों को कैसे लागू कर सकता है। मसलन, इब्रानियों 10:24, 25 पर चर्चा करते वक्त आप किसी एक सभा के बारे में उसे बता सकते हैं और फिर उसमें हाज़िर होने के लिए उसे न्यौता दे सकते हैं। लेकिन उस पर दबाव मत डालिए। परमेश्वर के वचन को उस पर असर करने दीजिए, ताकि वह ज़रूरी कदम उठा सके और यहोवा को खुश कर सके।—इब्रा. 4:12.
6 चेले बनाने की ज़िम्मेदारी निभाते वक्त हम चाहते हैं कि आयतों का कुशलता से इस्तेमाल करने के ज़रिए हम लोगों को ‘विश्वास दिला सकें और आज्ञा माननेवाले’ बना सकें।—रोमि. 16:26.