अध्ययन लेख 21
गीत 21 देते रहें राज को पहली जगह
उस शहर के इंतज़ार में रहिए जो हमेशा तक रहेगा
“हम उस शहर का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जो आनेवाला है।”—इब्रा. 13:14.
क्या सीखेंगे?
इब्रानियों अध्याय 13 में लिखी बातें मानने से हमें आज और आनेवाले समय में कैसे फायदा हो सकता है?
1. यीशु ने यरूशलेम शहर के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी?
अपनी मौत से कुछ दिन पहले यीशु मसीह ने यरूशलेम शहर और उसके मंदिर के बारे में एक भविष्यवाणी की थी। उसने अपने चेलों से कहा था कि फौजें आकर यरूशलेम शहर को घेर लेंगी। (लूका 21:20) यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई जब पहली सदी में रोमी सेना ने आकर यरूशलेम शहर को घेर लिया। यीशु ने अपने चेलों को पहले से बताया था कि जब ऐसा हो, तो उन्हें तुरंत उस इलाके से भाग जाना है।—लूका 21:21, 22.
2. पौलुस ने यहूदिया और यरूशलेम के मसीहियों को क्या सलाह दी?
2 रोमी सेना के आने से कुछ साल पहले प्रेषित पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को एक दमदार चिट्ठी लिखी। उस चिट्ठी को हम इब्रानियों की किताब के नाम से जानते हैं। पौलुस ने उस चिट्ठी में यहूदिया और यरूशलेम के मसीहियों को ज़रूरी सलाह दी जिससे वे आनेवाले वक्त के लिए खुद को तैयार कर सकते थे। आगे क्या होनेवाला था? जल्द ही यरूशलेम का नाश होनेवाला था। पौलुस ने लिखा, “यहाँ हमारा ऐसा शहर नहीं जो हमेशा तक रहे, बल्कि हम उस शहर का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जो आनेवाला है।” (इब्रा. 13:14) इसलिए अगर मसीहियों को आनेवाले नाश से बचना था, तो उन्हें अपना घर और कारोबार छोड़ने के लिए तैयार रहना था।
3. वह “शहर” क्या है “जो आनेवाला है” और हम क्यों उसका इंतज़ार कर रहे हैं?
3 जब यहूदिया और यरूशलेम के मसीहियों ने सबकुछ छोड़कर जाने का फैसला किया, तो शायद लोगों ने उन्हें बुरा-भला कहा होगा और उनका मज़ाक उड़ाया होगा। लेकिन उनके इस फैसले से उनकी जान बच गयी। आज हमारा भी मज़ाक उड़ाया जाता है, क्योंकि हम ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे नहीं भागते, ना ही यह मानते हैं कि इंसान हमारी समस्याओं का हल करेंगे। हम जानते हैं कि बहुत जल्द इस दुनिया का नाश होनेवाला है। इसलिए हम उस “शहर” का इंतज़ार कर रहे हैं “जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है,” यानी परमेश्वर के राज का “जो आनेवाला है।” इसी राज के ज़रिए इंसानों की सारी समस्याओं का हल होगा। (इब्रा. 11:10; मत्ती 6:33) इस लेख के हर उपशीर्षक में हमें इन तीन सवालों के जवाब मिलेंगे: (1) परमेश्वर की प्रेरणा से पौलुस ने मसीहियों को जो सलाह दी, उससे वे आनेवाले शहर का कैसे इंतज़ार कर पाए? (2) पौलुस ने उन्हें आनेवाली घटनाओं के लिए कैसे तैयार किया? और (3) उसकी सलाह से आज हमें कैसे फायदा हो सकता है?
यहोवा पर भरोसा रखिए जो आपको कभी नहीं छोड़ेगा!
4. यरूशलेम शहर मसीहियों के लिए क्यों खास था?
4 पहली सदी के मसीहियों के लिए यरूशलेम बहुत खास था। ईसवी सन् 33 में वहाँ मसीही मंडली की शुरूआत हुई थी और शासी निकाय भी इसी शहर में था। इतना ही नहीं, कई मसीहियों का वहाँ अपना खुद का घर था और उन्होंने अपने लिए बहुत-सी चीज़ें बटोर रखी थीं। लेकिन यीशु ने अपने चेलों को पहले से बताया था कि उन्हें यरूशलेम छोड़कर जाना होगा। उन्हें सिर्फ यरूशलेम से ही नहीं, बल्कि पूरे यहूदिया के इलाके से भागना था।—मत्ती 24:16.
5. पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को आनेवाले समय के लिए कैसे तैयार किया?
5 पौलुस मसीहियों को पहले से तैयार करना चाहता था, ताकि वक्त आने पर वे यरूशलेम छोड़कर भाग सकें। इसलिए उसने उन्हें समझाया कि यरूशलेम शहर के बारे में यहोवा की क्या सोच है। उसने मसीहियों को बताया कि यरूशलेम का मंदिर और वहाँ चढ़ाए जानेवाले बलिदान अब परमेश्वर की नज़र में पवित्र नहीं रहे। और वहाँ सेवा करनेवाले याजकों पर भी उसकी मंज़ूरी नहीं रही। (इब्रा. 8:13) यही नहीं, उस शहर के ज़्यादातर लोगों ने मसीहा को ठुकरा दिया था। इसलिए अब यरूशलेम का मंदिर यहोवा की उपासना के लिए एक खास जगह नहीं था और बहुत जल्द उसका नाश होनेवाला था।—लूका 13:34, 35.
6. इब्रानियों 13:5, 6 में पौलुस की जो सलाह दर्ज़ है, वह उस समय के मसीहियों के लिए क्यों ज़रूरी थी?
6 जब पौलुस ने इब्री मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तब यरूशलेम एक फलता-फूलता शहर था। उस ज़माने के एक रोमी लेखक ने कहा, “यरूशलेम पूरब के देशों में सबसे मशहूर शहर था।” अलग-अलग देशों में रहनेवाले यहूदी साल में तीन बार यरूशलेम में त्योहार मनाने आते थे जिससे उस शहर में काफी पैसा आ रहा था। इसमें कोई शक नहीं कि इस वजह से वहाँ के कुछ मसीही अच्छा-खासा पैसा कमा रहे थे। शायद यही वजह होगी कि पौलुस ने वहाँ के मसीहियों से कहा, “तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो।” इसके बाद उसने उन्हें यहोवा का यह वादा याद दिलाया, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।” (इब्रानियों 13:5, 6 पढ़िए; व्यव. 31:6; भज. 118:6) यरूशलेम और यहूदिया में रहनेवाले मसीहियों को यह बात दिलाए जाने की सख्त ज़रूरत थी। वह क्यों? क्योंकि इस चिट्ठी के मिलने के कुछ ही समय बाद उन्हें अपना घर, कारोबार और अपनी चीज़ें छोड़कर भागना पड़ा और एक नयी जगह जाकर एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करनी पड़ी।
7. हमें क्यों अभी से यहोवा पर अपना भरोसा बढ़ाना है?
7 सीख: बहुत जल्द “महा-संकट” शुरू होगा और इस दुष्ट दुनिया का नाश कर दिया जाएगा। (मत्ती 24:21) पहली सदी के मसीहियों की तरह हमें भी जागते रहना है और तैयार रहना है। (लूका 21:34-36) हो सकता है, महा-संकट के दौरान हमें अपनी कुछ चीज़ें या अपना सबकुछ छोड़ना पड़े। तब हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना होगा कि वह हमें नहीं छोड़ेगा। लेकिन आज महा-संकट के शुरू होने से पहले भी हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना है। इसलिए खुद से पूछिए, ‘मेरे फैसलों से और मैंने आगे के लिए जो सोच रखा है, उससे क्या पता चलता है? क्या मैं धन-दौलत पर भरोसा करता हूँ या उस परमेश्वर पर जिसने वादा किया है कि वह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा?’ (1 तीमु. 6:17) इसमें कोई शक नहीं कि पहली सदी के मसीहियों के उदाहरण पर ध्यान देने से हम “महा-संकट” के दौरान वफादार रह पाएँगे। लेकिन यह ऐसा मुश्किल दौर होगा जैसा अब तक नहीं आया है। उस दौरान हमें कैसे पता चलेगा कि हमें क्या करना है?
अगुवाई करनेवाले भाइयों की आज्ञा मानिए
8. यीशु ने अपने चेलों को क्या हिदायत दी थी?
8 जब इब्री मसीहियों को पौलुस का खत मिला, तो उसके कुछ साल बाद रोमी सेना ने आकर यरूशलेम को घेर लिया। यह देखते ही मसीही समझ गए कि उनके भागने का वक्त आ गया है और यरूशलेम शहर का नाश होनेवाला है। (मत्ती 24:3; लूका 21:20, 24) लेकिन उन्हें भागकर कहाँ जाना था? यीशु ने बस यह कहा था कि “जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें।” (लूका 21:21) लेकिन उस इलाके में बहुत-से पहाड़ थे, तो वे किन पहाड़ों की तरफ भागते?
9. मसीही क्यों सोच में पड़ गए होंगे कि उन्हें किन पहाड़ों की तरफ भागना है? (नक्शा भी देखें।)
9 ध्यान दीजिए कि वहाँ आस-पास कौन-से पहाड़ थे: सामरिया के पहाड़, गलील के पहाड़, हेरमोन पहाड़ और लबानोन पर्वतमाला। यही नहीं, यरदन के पार भी कई पहाड़ थे। (नक्शा देखें।) कुछ लोग शायद सोच रहे थे कि इन पहाड़ों पर बसे कुछ शहरों में जाना सुरक्षित होगा। जैसे गामला शहर बहुत ही ऊँचे पहाड़ पर बसा था और वहाँ तक पहुँचना काफी मुश्किल था। इसलिए कुछ यहूदियों को लगा कि यह शहर छिपने के लिए बढ़िया जगह होगी। लेकिन आगे चलकर उस शहर में यहूदियों और रोमी सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ और वहाँ रहनेवाले कई लोगों को मार डाला गया।a
ऐसे बहुत-से पहाड़ थे जहाँ मसीही भागकर जा सकते थे, लेकिन सभी पहाड़ सुरक्षित नहीं थे (पैराग्राफ 9)
10-11. (क) यहोवा ने शायद किस तरह मसीहियों को राह दिखायी? (इब्रानियों 13:7, 17) (ख) अगुवाई करनेवाले भाइयों की आज्ञा मानने से मसीहियों को कैसे फायदा हुआ? (तसवीर भी देखें।)
10 ऐसा मालूम होता है कि यहोवा ने अगुवाई करनेवाले भाइयों के ज़रिए मसीहियों को राह दिखायी। युसेबियस नाम के एक इतिहासकार ने बाद में लिखा, “यरूशलेम की मंडली के लोगों को परमेश्वर की तरफ से मार्गदर्शन मिला। परमेश्वर ने नियुक्त भाइयों पर ज़ाहिर किया कि उन्हें क्या करना है; उन्हें आज्ञा दी गयी . . . कि वे युद्ध शुरू होने से पहले शहर छोड़कर चले जाएँ और पेरिया के पेल्ला शहर में बस जाएँ।” ऐसा मालूम होता है कि पेल्ला एकदम सही जगह थी। वह क्यों? क्योंकि यह शहर यरूशलेम से ज़्यादा दूर नहीं था और वहाँ पहुँचना आसान था। पेल्ला गैर-यहूदियों का शहर था और वहाँ बहुत ही कम यहूदी रहते थे। इसलिए जब कट्टर यहूदियों और रोमी लोगों के बीच युद्ध छिड़ा, तो उसका पेल्ला शहर पर ज़्यादा असर नहीं हुआ।—नक्शा देखें।
11 पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी थी कि “जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो।” और जब अगुवाई करनेवालों ने भाई-बहनों से कहा कि वे पेल्ला की तरफ भाग जाएँ, तो उन्होंने उनकी आज्ञा मानी। (इब्रानियों 13:7, 17 पढ़िए।) इसका क्या नतीजा हुआ? उनकी जान बच गयी। परमेश्वर ने अपने लोगों को नहीं छोड़ा, क्योंकि वे उसके राज का यानी उस “शहर” का इंतजार कर रहे थे, “जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है।”—इब्रा. 11:10.
पेल्ला ज़्यादा दूर नहीं था और वहाँ कोई खतरा नहीं था (पैराग्राफ 10-11)
12-13. मुश्किल वक्त में यहोवा ने कैसे अपने लोगों को राह दिखायी है?
12 सीख: यहोवा अगुवाई करनेवालों भाइयों के ज़रिए अपने लोगों को निर्देश देता है कि उन्हें क्या करना है। बाइबल में कई उदाहरण दिए हैं जिनसे पता चलता है कि यहोवा ने मुश्किल वक्त में अपने लोगों को राह दिखाने के लिए चरवाहों को खड़ा किया। (व्यव. 31:23; भज. 77:20) और आज भी हम ढेरों सबूत देख सकते हैं कि यहोवा अगुवाई करनेवाले भाइयों के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखा रहा है।
13 मिसाल के लिए जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई, तब ‘अगुवाई करनेवाले’ भाइयों ने हमें ज़रूरी निर्देश दिए। प्राचीनों को हिदायतें दी गयीं कि उन्हें किस तरह सभाएँ चलानी हैं और भाई-बहनों के लिए प्रचार का इंतज़ाम करना है, ताकि वे यहोवा की उपासना करते रहें। महामारी के शुरू होने के कुछ ही समय बाद हमने 500 से भी ज़्यादा भाषाओं में अपना अधिवेशन रखा। भाई-बहनों ने इंटरनेट और टीवी पर कार्यक्रम देखा और रेडियो पर भी इसे सुना। यह अधिवेशन बहुत ही अनोखा था, क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। महामारी के दौरान सभी भाई-बहनों को यहोवा की तरफ से सही समय पर निर्देश मिलते रहे। इस वजह से हमारे बीच एकता बनी रही। हम यकीन रख सकते हैं कि आनेवाले समय में चाहे जैसी भी मुश्किलें आएँ, यहोवा अगुवाई करनेवाले भाइयों के ज़रिए हमें राह दिखाएगा ताकि हम सही फैसले ले सकें। अगर हमें महा-संकट के लिए तैयार होना है और उस वक्त समझदारी से काम लेना है, तो हमें यहोवा पर भरोसा रखना होगा और उसकी आज्ञा माननी होगी। लेकिन दुनिया को हिलाकर रख देनेवाले उस दौर का सामना करने के लिए हमें अपने अंदर और कौन-से गुण बढ़ाने होंगे?
भाइयों की तरह प्यार कीजिए और मेहमान-नवाज़ी कीजिए
14. जैसा इब्रानियों 13:1-3 में बताया है, यरूशलेम का नाश होने से पहले मसीहियों को अपने अंदर कौन-से गुण बढ़ाने थे?
14 महा-संकट के दौरान हमें और भी बढ़-चढ़कर अपने भाई-बहनों से प्यार करना होगा। इस मामले में हम यरूशलेम और यहूदिया के मसीहियों से काफी कुछ सीख सकते हैं। वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। (इब्रा. 10:32-34) लेकिन यरूशलेम के नाश से पहले उन्हें और भी बढ़-चढ़कर “भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार” करना था और “मेहमान-नवाज़ी” करनी थी।b (इब्रानियों 13:1-3 पढ़िए।) आज इस दुनिया का अंत बहुत करीब है और उससे पहले हमें भी भाई-बहनों के लिए अपना प्यार बढ़ाना है।
15. जब मसीही यरूशलेम छोड़कर भागे, तो उन्हें क्यों एक-दूसरे से भाइयों की तरह प्यार करना था और मेहमान-नवाज़ी करनी थी?
15 जब रोमी सेना ने यरूशलेम की घेराबंदी की, तो इसके कुछ ही समय बाद वे अचानक शहर छोड़कर चले गए। अब मसीहियों के पास वहाँ से भागने का मौका था। ऐसे में वे अपने साथ ज़्यादा चीज़ें नहीं ले जा सकते थे। (मत्ती 24:17, 18) इसलिए पेल्ला जाते वक्त उन्हें एक-दूसरे की मदद करनी थी और वहाँ एक नयी ज़िंदगी शुरू करने में एक-दूसरे का साथ देना था। कई भाई-बहन ऐसे थे जिन्हें खाना, कपड़े और रहने की जगह चाहिए थी। ‘मुसीबत के इस वक्त’ में मसीहियों के पास यह मौका था कि वे एक-दूसरे से भाइयों की तरह प्यार करें और मेहमान-नवाज़ी करें, यानी एक-दूसरे का साथ दें और उनके पास जो कुछ है, वह दूसरों के साथ बाँटें।—तीतु. 3:14.
16. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम ज़रूरतमंद भाई-बहनों से प्यार करते हैं? (तसवीर भी देखें।)
16 सीख: अगर हम भाई-बहनों से प्यार करते हैं, तो हम ज़रूरत की घड़ी में उनकी मदद करेंगे। हाल ही में युद्ध और प्राकृतिक विपत्तियों की वजह से जब भाई-बहनों को दूसरी जगह पनाह लेनी पड़ी, तो वहाँ के मसीहियों ने उनकी मदद की और उनका हौसला बढ़ाया। इस तरह वे यहोवा की सेवा में लगे रह पाए। यूक्रेन में हमारी एक बहन को युद्ध की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ा। वह कहती है, “हमने देखा कि यहोवा ने कैसे भाई-बहनों के ज़रिए हमारा खयाल रखा और हमें राह दिखायी। भाई-बहनों ने प्यार से हमारा स्वागत किया। पहले यूक्रेन में, फिर हंगरी में और अब यहाँ जर्मनी में भी यहोवा ने भाई-बहनों के ज़रिए हमारी मदद की।” जब हम भाई-बहनों का खयाल रखते हैं और उनकी मेहमान-नवाज़ी करते हैं, तो असल में हम यहोवा के साथ मिलकर काम कर रहे होते हैं।—नीति. 19:17; 2 कुरिं. 1:3, 4.
जिन भाई-बहनों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पनाह लेनी पड़ती है, उनकी मदद कीजिए (पैराग्राफ 16)
17. यह क्यों ज़रूरी है कि हम अभी से दूसरों से भाइयों की तरह प्यार करें और उनकी मेहमान-नवाज़ी करें?
17 इसमें कोई शक नहीं कि महा-संकट के दौरान हमें और भी बढ़-चढ़कर भाई-बहनों की मदद करनी होगी। (हब. 3:16-18) यहोवा आज हमें सिखा रहा है कि हम कैसे भाइयों की तरह दूसरों से प्यार करें और उनकी मेहमान-नवाज़ी करें। आनेवाले वक्त में हमें ऐसा करने की सख्त ज़रूरत होगी।
आगे क्या होगा?
18. हम पहली सदी के इब्री मसीहियों से क्या सीख सकते हैं?
18 जिन मसीहियों ने आज्ञा मानी और यरूशलेम छोड़कर पहाड़ों की तरफ भागे, उनकी जान बच गयी। उन्हें सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा था, लेकिन यहोवा ने उन्हें नहीं छोड़ा। उसने उनका खयाल रखा। हम उनसे क्या सीख सकते हैं? हम यह नहीं जानते कि आगे चलकर घटनाएँ ठीक कैसे घटेंगी। पर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि हमें आज्ञा मानने के लिए तैयार रहना है, क्योंकि यीशु ने हमसे ऐसा करने को कहा है। (लूका 12:40) यही नहीं, पौलुस ने इब्री मसीहियों को अपनी चिट्ठी में जो सलाह दी थी, हमें उसे भी मानना है। और यहोवा के उस वादे को भी याद रखना है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। (इब्रा. 13:5, 6) तो आइए हम बेसब्री से परमेश्वर के राज का, ‘उस शहर का इंतज़ार करें जो हमेशा तक रहेगा’ और हमारे लिए ढेरों आशीषें लाएगा।—मत्ती 25:34.
गीत 157 चैन की साँस!
a जब मसीही यहूदिया और यरूशलेम से निकले, तो उसके कुछ ही समय बाद यानी ईसवी सन् 67 में यह युद्ध हुआ था।
b जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘भाइयों की तरह प्यार करना’ किया गया है, वह उस प्यार के लिए इस्तेमाल किया जाता था जो करीबी रिश्तेदारों के बीच होता है। पौलुस उसी शब्द का इस्तेमाल करता है और बताता है कि मसीही भाई-बहनों के बीच कैसा प्यार होना चाहिए।