1
निर्दोष अय्यूब; उसकी दौलत (1-5)
शैतान ने उसकी नीयत पर सवाल उठाया (6-12)
अय्यूब संपत्ति और बच्चे खो बैठा (13-19)
परमेश्वर को दोष नहीं दिया (20-22)
2
शैतान ने दोबारा सवाल उठाया (1-5)
शैतान को उसे पीड़ित करने दिया गया (6-8)
अय्यूब की पत्नी: “परमेश्वर की निंदा कर और मर जा!” (9, 10)
अय्यूब के तीन साथी आए (11-13)
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अय्यूब का जवाब (1-30)
कहा, आवाज़ उठाना गलत नहीं (2-6)
उसे दिलासा देनेवाले दगाबाज़ (15-18)
“खरी बात कभी नहीं अखरती!” (25)
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अय्यूब का जवाब (1-35)
अदना इंसान परमेश्वर से नहीं लड़ सकता (2-4)
‘परमेश्वर के काम समझ से परे’ (10)
उससे कोई बहस नहीं कर सकता (32)
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अय्यूब का जवाब (1-25)
“मैं किसी भी तरह तुमसे कम नहीं” (3)
‘मैं मज़ाक बनकर रह गया हूँ’ (4)
‘परमेश्वर के पास बुद्धि है’ (13)
वह न्यायियों और राजाओं से बढ़कर है (17, 18)
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अय्यूब का जवाब (1-22)
‘दिलासा देना तो दूर, तुम मेरी तकलीफ बढ़ा रहे हो’ (2)
कहा, परमेश्वर ने मुझे निशाना बनाया (12)
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अय्यूब का जवाब (1-29)
“दोस्तों” की फटकार ठुकरायी (1-6)
कहा, सबने उसे छोड़ दिया (13-19)
“मेरा एक छुड़ानेवाला है” (25)
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अय्यूब का जवाब (1-17)
परमेश्वर के सामने अपना मामला रखूँगा (1-7)
कहा, उसे परमेश्वर नहीं मिल रहा (8, 9)
‘मैं उसकी राह से नहीं भटका’ (11)
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अय्यूब का जवाब (1-14)
“क्या खूब मदद की है तूने कमज़ोरों की!” (1-4)
‘परमेश्वर पृथ्वी को बिना सहारे के लटकाए है’ (7)
“उसके कामों के छोर को छूने जैसा है” (14)
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अय्यूब ने यहोवा को जवाब दिया (1-6)
उसके तीन साथी दोषी ठहरे (7-9)
यहोवा ने अय्यूब की खुशहाली लौटा दी (10-17)